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01 अगस्त 2012

मुस्लिम धर्म ग्रन्थ कुरान एक परिचय

क़ुरआन


क़ुरआन (अरबी : القرآن अल्-क़ुर्-आन्) इस्लाम की पवित्रतम पुस्तक है और इस्लाम की नींव है । इसे परमेश्वर (अल्लाह) ने देवदूत (फ़रिश्ते) जिब्राएल द्वारा हज़रत मुहम्मद को सुनाया था। मुसलमानों का मानना हैं कि क़ुरान ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च पुस्तक है।

क़ुरान का आवरण पृष्ठ

इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार क़ुरान का अल्लाह के दूत जिब्रील (जिसे ईसाइयत में गैब्रियल कहते हैं) द्वारा मुहम्मद साहब को सन् ६१० से सन् ६३२ में उनकी मृत्यु तक खुलासा किया गया था। हालाँकि आरंभ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद सन् ६३३ में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् ६५३ में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियां इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी। मुसलमानों का मानना है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए पवित्र संदेशों के सबसे आख़िरी संदेश कुरान में लिखे गए हैं। इन संदेशों का शुभारम्भ आदम से हुआ था। आदम इस्लामी (और यहूदी तथा ईसाई) मान्यताओं में सबसे पहला नबी (पैगम्बर या पयम्बर) था और इसकी तुलना हिन्दू धर्म के मनु से एक सीमा तक की जा सकती है। जिस प्रकार से हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मानव कहा गया है वैसे ही इस्लाम में आदम की संतानों को आदम या आदमी कहा जाता है। आदम को ईसाईयत में एडम कहते हैं।

एकेश्वरवाद, धार्मिक आदेश, स्वर्ग, नरक, ‎‎धैर्य, धर्म परायणता (तक्वा) के विषय ऐसे हैं जो बारम्बार दोहराए गए। क़ुरआन ने अपने समय में एक सीधे साधे, नेक व्यापारी व्यक्तियों को, जो अपने ‎परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था, विश्व की दो महान शक्तियों ‎‎(रोमन तथा ईरानी) के समक्ष खड़ा कर दिया। केवल यही नहीं ‎उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर ‎इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी इसके चिह्न मिलते हैं । ‎क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत ‎किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है। मुसलमानों के अनुसार कुरआन में दिए गए ज्ञान से ये साबित होता है कि मुहम्मद साहब एक नबी थे।


शब्द और नामकरण

क़ुरान शब्द का प्रथम उल्लेख स्वयं कुरान में ही मिलता है, जहाँ इसका अर्थ है - उसने पढ़ा, या उसने उच्चारा । यह शब्द इसके सीरियाई समानांतर कुरियना का अर्थ लेता है जिसका अर्थ होता है ग्रंथों को पढ़ना । हालाँकि पाश्चात्य जानकार इसको सीरियाई शब्द से जोड़ते हैं, अधिकांश मुसलमानों का मानना है कि इसका मूल क़ुरा शब्द ही है। पर चाहे जो हो मुहम्मद साहब के जन्मदिन के समय ही यह एक अरबी शब्द बन गया था।

स्वयं कुरान में इस शब्द का कोई ७० बार उल्लेख हुआ है। इसके अतिरिक्त भी कुरान के कई नाम हैं। इसे अल फ़ुरक़ान (कसौटी), अल हिक्मः (बुद्धिमता), धिक्र (याद) और मशहफ़ (लिखा हुआ) जैसे नामों से भी संबोधित किया गया है।

क़ुरान कथ्य

क़ुरान में कुल ११४ अध्याय हैं जिन्हें सूरा कहते हैं। बहुवचन में इन्हें सूरत कहते हैं। यानि १५वें अध्याय को सूरत १५ कहेंगे। हर अध्याय में कुछ श्लोक हैं जिन्हें आयत कहते हैं। ‎क़ुरआन की ६,६६६ आयतों में से (कुछ के अनुसार ६,२३८) अभी तक १,००० आयतें वैज्ञानिक तथ्यों पर बहस करती हैं ।

ऐतिहासिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि इस धरती पर उपस्थित हर क़ुरान की प्रति वही मूल प्रति का प्रतिरूप है जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ‎पर अवतरित हुई थी। जिसे इस पर विश्वास न हो वह कभी भी इस की जांच ‎कर सकता है। धरती के किसी भी भू भाग से क़ुरान लीजिए और उसे ‎प्राचीन युग की उन प्रतियों से मिला कर जांच कर लीजिए जो अब तक ‎सुरक्षित रखी हैं। तृतीय ख़लीफ़ा हज़रत उस्मान (रज़ि.) ने अपने सत्ता समय ‎में हज़रत सि¬द्दीक़े अकबर (रज़ि.) द्वारा संकलित क़ुरआन की ९ प्रतियां तैयार ‎करके कई देशों में भेजी थी उनमें से दो क़ुरान की प्रतियां अभी भी पूर्ण ‎सुरक्षित हैं। एक ताशक़ंद में और दूसरी तुर्की में उपस्थित है। यह १५०० वर्ष ‎पुरानी हैं, इसकी भी जांच वैज्ञानिक रूप से काराई जा सकती है। फिर यह ‎भी एतिहासिक रूप से प्रमाणित है कि इस पुस्तक में एक मात्रा का भी ‎अंतर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के समय से अब तक नहीं आया है।

कुरान की मान्यताएँ

इस आरंभिक विचार के बाद यह समझ लें कि क़ुरान के अनुसार इस धरती पर मनुष्य की क्या स्थिति है?‎

अल्लाह ने इस धरती पर मनुष्य को अपना प्रतिहारी (ख़लीफ़ा) ‎बनाकर भेजा है। भेजने से पूर्व उसने हर व्यक्ति को ठीक-ठीक समझा दिया ‎था कि वे थोड़े समय के लिए धरती पर जा रहे हैं, उसके बाद उन्हें उसके ‎पास लौट कर आना है। जहाँ उसे अपने उन कार्यों का अच्छा या बुरा बदला ‎मिलेगा जो उसने धरती पर किए। ‎

इस धरती पर मनुष्य को कार्य करने की स्वतंत्रता है। धरती के ‎साधनों को उपयोग करने की छूट है। अच्छे और बुरे कार्य को करने पर उसे ‎तक्ताल कोई दण्ड या पुरस्कार नहीं है। किन्तु इस स्वतंत्रता के साथ ईश्वर ने ‎धरती पर बसे मनुष्यों को ठीक उस रूप में जीवन गुज़ारने के लिए ईश्वरीय ‎आदेशों के पहुंचाने का प्रबंध किया और धरती के हर भाग में उसने अपने ‎दूत (पैग़म्बर) भेजे, जिन्होंने मनुष्यों तक ईश्वर का संदेश भेजा। कहा जाता ‎है कि ऐसे ईशदूतों की संख्या १,८४,००० के लगभग रही। इस सिलसिले की ‎अंतिम कड़ी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) थे। कुरान के अनुसार उनके (सल्ल.) के बाद अब कोई ‎दूत नहीं आएगा किन्तु हज़रत ईसा (अलै.) अपने जीवन के शेष वर्ष इस ‎धरती पर पुन: गुज़ारेंगे। मुसलमानों का यह भी मानना ईश्वर की अंतिम पुस्तक (क़ुरान) आपके हाथ में है कोई ‎और ईश्वरीय पुस्तक अब नहीं आएगी।

हज़ारों वर्षों तक निरंतर आने वाले पैग़म्बरों का चाहे वे धरती के ‎किसी भी भाग में अवतरित हुए हों, उनका संदेश एक था, उनका लक्ष्य एक ‎था, ईश्वरीय आदेश के अनुसार मनुष्यों को जीना सिखाना। हज़ारों वर्षों का ‎समय बीतने के कारण ईश्वरीय आदेशों में मनुष्य अपने विचार, अपनी ‎सुविधा जोड़ कर नया धर्म बना लेते और मूल धर्म को विकृत कर एक ‎आडम्बर खड़ा कर देते और कई बार तो ईश्वरीय आदेशों के विपरित कार्य ‎करते। क्यों कि हर प्रभावी व्यक्ति अपनी शक्ति के आगे सब को नतमस्तक ‎देखना चाहता था।

आख़िर अंतिम नबी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) क़ुरआन के साथ इस ‎धरती पर आए और क़ुरआन ईश्वर की इस चुनौती के साथ आई कि इसकी ‎रक्षा स्वयं ईश्वर करेगा। १५०० वर्षों का लम्बा समय यह बताता है कि क़ुरान विरोधियों के सारे प्रयासों के बाद भी क़ुरान के एक शब्द में भी ‎परिवर्तन संभव नहीं हो सका है। यह पुस्तक अपने मूल स्वरूप में प्रलय ‎तक रहेगी। इसके साथ क़ुरान की यह चुनौती भी अपने स्थान पर अभी ‎तक बैइ हुई है कि जो इसे ईश्वरीय ग्रंथ नहीं मानते हों तो वे इस जैसी पूरी ‎पुस्तक नहीं बल्कि उसका एक छोटा भाग ही बना कर दिखा दें।

क़ुरान के इस रूप को जानने के बाद यह जान लिया जाना चाहिए कि यह ‎पुस्तक रूप में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को नहीं दी गई कि इसे पढ़कर ‎लोगों को सुना दें और छाप कर हर घर में रख दें। बल्कि समय-समय पर २३ वर्षों तक आवश्यकता अनुसार यह पुस्तक अवतरित हुई और हज़रत मुहम्मद ‎‎(सल्ल.) ने ईश्वर की इच्छा से उसके आदेशों के अनुसार धरती पर वह ‎समाज बनाया जैसा ईश्वर का आदेश था।

पश्चिमी विचारक ऍच॰ जी॰ वेल्स के ‎अनुसार इस धरती पर प्रवचन तो बहुत दिए गए किन्तु उन प्रवचनों के ‎आधार पर एक समाज की रचना पहली बार हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ‎करके दिखाई। यहाँ यह जानना रूचिकर होगा कि वेल्स इस्लाम प्रेमी नहीं ‎बल्कि इस्लाम विरोधी है और उसकी पुस्तकें इस्लाम विरोध में प्रकाशित हुई ‎हैं।

गूढ़ वैज्ञानिक तथ्य ‎जो अब तक हमें ज्ञात हैं, क़ुरान में छुपे हैं और ऐसे सैकड़ों स्थान है जहां ‎लगता है कि मनुष्य ज्ञान अभी उस सच्चाई तक नहीं पहुंचा है। बार-बार क़ुरान आपको विचार करने की दावत देता है। धरती और आकाश के ‎रहस्यों को जानने का आमंत्रण देता हैं।

एक उलझन और सामने आती है। क़ुरान के दावे के अनुसार वह ‎पूरी धरती के मनुष्यों के लिए और शेष समय के लिए है, किन्तु उसके ‎संबोधित उस समय के अरब दिखाई देते हैं। सरसरी तौर पर यही लगता है ‎कि क़ुरान उस समय के अरबों के लिए ही अवतरित किया गया था किन्तु ‎आप जब भी किसी ऐसे स्थान पर पहुंचें जब यह लगे कि यह बात केवल ‎एक विशेष काल तथा देश के लिए है, तब वहां रूक कर विचार करें या इसे ‎नोट करके बाद में इस पर विचार करें तो आप को हर बार लगेगा कि ‎मनुष्य हर युग और हर भू भाग का एक है और उस पर वह बात ठीक वैसी ‎ही लागू होती है, जैसी उस समय के अरबों पर लागू होती थी।

मुसलमानों के लिए

मुसलमानों के लिए कुरान के संबंध में बड़ी-बड़ी पुस्तकें लिखी गई ‎हैं और लिखी जा सकती हैं। यहां उद्देश्य कुरान का एक संक्षिप्त परिचय ‎और उसके उम्मत पर क्या अधिकार हैं, यहा स्पष्ट करना है।

हज़रत अली (रज़ि.) से रिवायत की गई एक हदीस है। हज़रत हारिस ‎फ़रमाते हैं कि मैं मस्जिद में प्रविष्ट हुआ तो देखा कि कुछ लोग कुछ ‎समस्याओं पर झगड़ा कर रहे हैं। मैं हज़रत अली (रज़ि.) के पास गया और ‎उन्हें इस बात की सूचना दी। हज़रत अली (रज़ि.) ने फरमाया- क्या यह ‎बातें होने लगीं?
मैंने कहा, जी हां।
हज़रत अली (रज़ि.) ने फरमाया- याद ‎रखो मैंने रसूल अल्लाह (सल्ल.) से सुना है। आप (सल्ल.) ने फरमाया- ‎खबरदार रहो निकट ही एक बड़ा फ़ितना सर उठाएगा मैंने अर्ज़ किया- इस ‎फ़ितने से निजात का क्या साधन होगा?
फरमाया-अल्लाह की पुस्तक

  • इसमें तुमसे पूर्व गुज़रे हुए लोगों के हालात हैं।
  • तुम से बाद होने वाली बातों की सूचना है।
  • ‎तुम्हारे आपस के मामलात का निर्णय है।‎
  • ‎यह एक दो टूक बात हैं, हंसी दिल्लगी की नहीं है।
  • ‎जो सरकश इसे छोड़ेगा, अल्लाह उसकी कमर तोड़ेगा।
  • ‎और जो कोई इसे छोड़ कर किसी और बात को अपनी हिदायत का ‎ज़रिया बनाएगा। अल्लाह उसे गुमराह कर देगा।
  • ‎ख़ुदा की मज़बूत रस्सी यही है।
  • ‎यही हिकमतों से भरी हुई पुन: स्मरण (याददेहानी) है, यही सीधा मार्ग ‎है।
  • ‎इसके होते इच्छाऐं गुमराह नहीं करती हैं।‎
  • ‎और ना ज़बानें लड़खड़ाती हैं।
  • ‎ज्ञानवान का दिल इससे कभी नहीं भरता। ‎
  • ‎इसे बार बार दोहराने से उसकी ताज़गी नहीं जाती (यह कभी पुराना नहीं ‎होता)।
  • ‎इसकी अजीब (विचित्र) बातें कभी समाप्त नहीं होंगी।
  • ‎यह वही है जिसे सुनते ही जिन्न पुकार उठे थे, निसंदेह हमने ‎अजीबोग़रीब क़ुरआन सुना, जो हिदायत की ओर मार्गदर्शन करता है, ‎अत: हम इस पर ईमान लाऐ हैं।
  • ‎जिसने इसकी सनद पर हां कहा- सच कहा।‎
  • ‎जिसने इस पर अमल किया- दर्जा पाएगा।‎
  • ‎जिसने इसके आधार पर निर्णय किया उसने इंसाफ किया।
  • ‎जिसने इसकी ओर दावत दी, उसने सीधे मार्ग की ओर राहनुमाई की।

क़ुरआन का सारा निचोड़ इस एक हदीस में आ जाता है। क़ुरआन ‎धरती पर अल्लाह की अंतिम पुस्तक उसकी ख्याति के अनुरूप है। यह ‎अत्यंत आसान है और यह बहुत कठिन भी है। आसान यह तब है जब इसे ‎याद करने (तज़क्कुर) के लिए पढ़ा जाए। यदि आप की नियत में खोट नहीं ‎है और क़ुरआन से हिदायत चाहते हैं तो अल्लाह ने इस किताब को आसान ‎बना दिया है। समझने और याद करने के लिए यह विश्व की सबसे आसान ‎पुस्तक है। खुद क़ुरआन मे है 'और हमने क़ुरआन को समझने के लिए ‎आसान कर दिया है, तो कोई है कि सोचे और समझे?' (सूर: अल क़मर:17)‎

दूसरी ओर दूरबीनी (तदब्बुर) की दृष्टि से यह विश्व की कठिनतम ‎पुस्तक है पूरी पूरी ज़िंदगी खपा देने के बाद भी इसकी गहराई नापना संभव ‎नहीं। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह एक समुद्र है। सदियां बीत गईं और ‎क़ुरआन का चमत्कार अब भी क़ायम है। और सदियां बीत जाऐंगी किन्तु ‎क़ुरआन का चमत्कार कभी समाप्त नहीं होगा।

केवल हिदायत पाने के लिए आसान तरीक़ा यह है कि अटल आयतों ‎‎(मुहकमात) पर ध्यान रहे और आयतों (मुतशाबिहात) पर ईमान हो कि यह ‎भी अल्लाह की ओर से हैं। दुनिया निरंतर प्रगति कर रही है, मानव ज्ञान ‎निरंतर बढ़ रहा है, जो क़ुरआन में कल मुतशाबिहात था आज वह स्पष्ट हो ‎चुका है, और कल उसके कुछ ओर भाग स्पष्ट होंगे।

इसी तरह ज्ञानार्जन के लिए भी दो विभिन्न तरीक़े अपनाना होंगे। ‎आदेशों के लिहाज़ से क़ुरआन में विचार करने वाले को पीछे की ओर यात्रा ‎करनी होगी। क़ुरआन के आदेश का अर्थ धर्म शास्त्रियों (फ़ुह्लाँहा), विद्वानों ‎‎(आलिमों) ने क्या लिया, तबाताबईन (वे लोग जिन्होने ताबईन को देखा। ), ‎ताबईन (वे लोग जिन्होने सहाबा (हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)) के साथियों को ‎देखा। ) और सहाबा ने इसका क्या अर्थ लिया। यहां तक कि ख़ुद को हज़रत ‎मुहम्मद (सल्ल.) के क़दमों तक पहुंचा दे कि ख़ुद साहबे क़ुरआन का इस ‎बारे में क्या आदेश था?‎

दूसरी ओर ज्ञानविज्ञान के लिहाज़ से आगे और निरंतर आगे विचार ‎करना होगा। समय के साथ ही नहीं उससे आगे चला जाए। मनुष्य के ज्ञान ‎की सतह निरंतर ऊंची होती जा रही है। क़ुरआन में विज्ञान का सर्वोच्च स्तर ‎है उस पर विचार कर नए अविष्कार, खोज और जो वैज्ञानिक तथ्य हैं उन ‎पर कार्य किया जा सकता है।

ईश्वरीय चमत्कार (मौअजज़ा)

मौअजज़ उस चमत्कार को कहते हैं जो किसी नबी या ‎रसूल के हाथ पर हो और मानव शक्ति से परे हो, जिस पर मानव बुद्धि आश्चर्यचकित हो जाए।‎

हर युग में जब भी कोई ईश दूत ईश्वरीय आदेशों को मानव ‎तक पहुँचता, तब उसे अल्लाह की ओर से चमत्कार दिए जाते थे। हज़रत ‎मूसा (अलै.) को असा (हाथ की लकड़ी) दी गई, जिससे कई चमत्कार ‎दिखाए गये। हज़रत ईसा (अलै.) को मुर्दों को जीवित करना, बीमारों को ‎ठीक करने का मौअजज़ा दिया गया। किसी भी नबी का असल मौअजज़ा वह ‎है जिसे वह दावे के साथ पेश करे। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के हाथ पर ‎सैकड़ों मौअजज़े वर्णित हैं, किन्तु जो दावे के साथ पेश किया गया और जो ‎आज भी चमत्कार के रूप में विश्व के समक्ष मौजूद है, वह है कुरान जिसकी यह चुनौती दुनिया के समक्ष अनुत्तरित है कि इसके एक भाग जैसा ‎ही बना कर दिखा दिया जाए। यह दावा कुरान में कई स्थान पर किया ‎गया। ‎

कुरान पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेगा, इस दावे को १५०० वर्ष बीत गए ‎और क़ुरआन सुरक्षित है, पूर्ण सुरक्षित है। यह प्रमाणित हो चुका है, जो एक ‎चमत्कार है।‎

क़ुरआन विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरा है, और उसके वैज्ञानिक ‎वर्णनों के आगे वैज्ञानिक नतमस्तक हैं। यह भी एक चमत्कार है। १५०० वर्ष ‎पूर्व अरब के रेगिस्तान में एक अनपढ़ व्यक्ति ने ऐसी पुस्तक प्रस्तुत की जो ‎बीसवीं सदी के सारे साधनों के सामने अपनी सत्यता प्रकट कर रही है। यह ‎कार्य कुरान के अतिरिक्त किसी अन्य पुस्तक ने किया हो तो विश्व उसका ‎नाम जानना चाहेगा। कुरान का यह चमत्कारिक रूप आज हमारे लिए है ‎और हो सकता है आगे आने वाले समय के लिए उसका कोई और ‎चमत्कारिक रूप सामने आए।

जिस समय कुरान अवतारित हुआ उस युग में उसका मुख्य ‎चमत्कार उसका वैज्ञानिक आधार नहीं था। उस युग में कुरान का ‎चमत्कार था उसकी भाषा, साहित्य, वाग्मिता, जिसने अपने समय के अरबों ‎के भाषा ज्ञान को झकझोर दिया था। यहां स्पष्ट करना उचित होगा कि उस ‎समय के अरबों को अपने भाषा ज्ञान पर इतना गर्व था कि वे शेष विश्व के ‎लोगों को गूंगा कहते थे। कुरान की शैली के कारण अरब के ‎भाषा ज्ञानियों ने अपने घुटने टेक दिए।

क्रांतिकारी पुस्तक

कुरान ऐसी पुस्तक है जिसके आधार पर एक क्रांति ‎लाई गई। रेगिस्तान के ऐसे अनपढ़ लोगों को जिनका विश्व के मानचित्र में उस ‎समय कोई महत्व नहीं था। कुरान की शिक्षाओं के कारण, उसके ‎प्रस्तुतकर्ता के प्रशिक्षण ने उन्हे उस समय की महान शाक्तियों के समक्ष ला ‎खड़ा किया और एक ऐसे कुरानी समाज की रचना मात्र २३ वर्षों में की ‎गई जिसका उत्तर विश्व कभी नहीं दे सकता।

आज भी दुनिया के करोड़ों मुसलामान मानते है कि कुरान और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ‎ने एक आदर्श समाज की रचना की। इस दृष्टि से यदि कुरान का अध्ययन ‎किया जाए तो आपको उसके साथ पग मिला कर चलना होगा। उसकी ‎शिक्षा पर विचार करें। केवल निजी जीवन में ही नहीं बल्कि सामाजिक, ‎राजनैतिक और क़ानूनी क्षैत्रों में, तब आपके समक्ष वे सारे चरित्र जो कुरान ‎में वर्णित हैं, जीवित दिखाई देंगे। वे सारी कठिनाई और वे सारी परेशानी ‎सामने आजाऐंगी। तन, मन, धन, से जो समूह इस कार्य के लिए उठे तो कुरान की हिदायत हर मोड़ पर उसका मार्ग दर्शन करेगी।

अल्लाह की रस्सी

कुरान अल्लाह की रस्सी है। इस बारे में तिरमिज़ी ‎में हज़रत ज़ैद बिन अरक़म (रज़ि.) द्वारा वर्णित हदीस है जिसमें कहा गया ‎है कि कुरान अल्लाह की रस्सी है जो धरती से आकाश तक तनी है। ‎यह शब्द हुज़ूर (सल्ल.) के है जिन्हे हज़रत ज़ैद (रज़ि.) ने वर्णित किया है। ‎

तबरानी में वर्णित एक और हदीस है जिसमें कहा गया है कि एक ‎दिन हुज़ूर (सल्ल.) मस्जिद में पधारे तो देखा कुछ लोग एक कोने ‎में बैठे कुरान पढ़ रहे हैं और एक दूसरे को समझा रहे हैं। यह देख कर ‎आप (सल्ल.) के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। आप (सल्ल.) सहाबा के ‎उस गुट के पास पहुंचे और उन से कहा- क्या तुम मानते हो कि अल्लाह के ‎अतिरिक्त कोई अन्य माबूद (ईश) नहीं है, मैं अल्लाह का रसूल हुँ और कुरान अल्लाह की पुस्तक है? सहाबा ने कहा, या रसूल अल्लाह हम ‎गवाही देते हैं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई ईश्वर नहीं, आप अल्लाह के ‎रसूल हैं और कुरान अल्लाह की पुस्तक है। तब आपने कहा, खुशियां ‎मानाओ कि कुरान अल्लाह की वह रस्सी है जिसका एक सिरा‎ उसके हाथ में है और दूसरा तुम्हारे हाथ में। ‎

कुरान अल्लाह की रस्सी इस अर्थ में भी है कि यह मुसलमानों को ‎आपस में बांध कर रखता है। उनमें विचारों की एकता, मत भिन्नता के ‎समय अल्लाह के आदेशों से निर्णय और जीवन के लिए एक आदर्श नमूना ‎प्रस्तुत करता है। ‎

स्वयं कुरान में है कि अल्लाह की रस्सी को दृढ़ता से पकड़ लो। कुरान के मूल आधार पर मुसलमानों के किसी गुट में कोई टकराव नहीं ‎है।

कुरान का अधिकार - कुरान के हर मुसलमान पर पांच अधिकार हैं, जो उसे ‎अपनी शाक्ति और सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण करना चाहिए।

  1. ‎ईमान: हर मुसलमान कुरान पर ईमान रखे जैसा कि ईमान ‎का अधिकार है अर्थात केवल वाणी से स्वीकरोक्ति नहीं हो, दिल से विश्वास रखे कि ‎यह अल्लाह की पुस्तक है।
  2. ‎तिलावत: कुरान को हर मुसलमान निरंतर पढ़े जैसा कि पढ़ने ‎का अधिकार है अर्थात उसे समझ कर पढ़े। पढ़ने के लिए तिलावत का शब्द स्वयं कुरान ने बताया है, जिसका अरबी में शाब्दिक अर्थ है अनुपालन ‎करना। पढ़ कर कुरान पर विचार करना (उसके पीछे चलना) यही ‎तिलावत का सही अधिकार है। स्वयं कुरान कहता है और वे इसे पढ़ने के अधिकार ‎के साथ पढ़ते हैं। (२:१२१) इसका विद्वानों ने यही अर्थ लिया है कि ध्यान से ‎पढ़ना, उसके आदेशों में कोई फेर बदल नहीं करना, जो उसमें लिखा है उसे ‎लोगों से छुपाना नहीं। जो समझ में नहीं आए वह विद्वानों से जानना। पढ़ने ‎के हक़ में ऐसी समस्त बातों का समावेश है।
  3. ‎समझना: क़ुरआन का तीसरा हक़ हर मुसलमान पर है, उसको ‎पढ़ने के साथ समझना और साथ ही उस पर विचार ग़ौर व फिक्र करना। ‎खुद क़ुरआन ने समझने और उसमें ग़ौर करने की दावत मुसलमानों को दी ‎है।
  4. अमल: क़ुरआन को केवल पढ़ना और समझना ही नहीं। ‎मुसलमान पर उसका हक़ है कि वह उस पर अमल भी करे। व्यक्तिगत रूप ‎में और सामजिक रूप मे भी। व्यक्तिगत मामले, क़ानून, राजनिति, आपसी ‎मामलात, व्यापार सारे मामले क़ुरआन के प्रकाश में हल किए जाऐं। ‎
  5. प्रसार: क़ुरआन का पांचवां हक़ यह है कि उसे दूसरे लोगों तक ‎पहुंचाया जाए। हुज़ूर (सल्ल.) का कथन है कि चाहे एक आयत ही क्यों ना ‎हो। हर मुसलमान पर क़ुरआन के प्रसार में अपनी सार्मथ्य के अनुसार दूसरों ‎तक पहुंचाना अनिवार्य है।

समझने के लिए

कुरान को समझने के लिए उसके अवतीर्ण ‎‎(नुज़ूल) की पृष्ठ भूमि जानना आवश्यक है। यह इस प्रकार की पुस्तक नहीं है कि ‎इसे पूरा लिख कर पैग़म्बर (सल्ल.) को देकर कह दिया गया हो कि जाओ ‎इसकी ओर लोगों को बुलाओ। बल्कि कुरान थोड़ा-थोड़ा उस क्रांति के ‎अवसर पर जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने अरब में आरंभ की थी, ‎आवश्यकता के अनुसार अवतरित किया गया। आरंभ से जैसे ही कुरान का ‎कुछ भाग अवतरित होता आप (सल्ल.) उसे लिखवा देते और यह भी बता ‎देते कि यह किसके साथ पढ़ा जाएगा।

अवतीर्ण के क्रम से विद्वानों ने कुरान को दो भागों में बांटा है। एक ‎मक्की भाग, दूसरा मदनी भाग। आरंभ में मक्के में छोटी-छोटी सूरतें अवतीर्ण हुईं। उनकी भाषा श्रेष्ठ, प्रभावी और अरबों की पसंद के अनुसार श्रेष्ठ ‎साहित्यिक दर्जे वाली थी। उसके बोल दिलों में उतर जाते थे। उसके दैविय ‎संगीत से कान उसको सुनने में लग जाते और उसके दैविय ‎प्रकाश से लोग आकर्षित हो जाते या घबरा जाते। इसमें सृष्टि ‎के वे नियम वर्णित किए गए जिन पर सदियों के बाद अब भी मानव ‎आश्चर्य चकित है, किन्तु इसके लिए सारे उदाहरण स्थानीय थे। उन्हीं के ‎इतिहास, उन्ही का माहौल। ऐसा पांच वर्ष तक चलता रहा।

इसके बाद मक्के की राजनैतिक तथा आर्थिक सत्ता पर बने हुए ‎लोगों ने अपने लिए इस खतरे को भांप का अत्याचार व दमन का वह तांडव ‎किया कि मुसलमानों की जो थोड़ी संख्या थी उसमें भी कई लोगों को घरबार ‎छोड़ कर हब्शा (इथोपिया) जाना पड़ा।[तथ्य वांछित] स्वयं नबी (सल्ल.) को एक घाटी में ‎सारे परिवारजनों के साथ क़ैद रहना पड़ा और अंत में मक्का छोड़ कर ‎मदीना जाना पड़ा।

मुसलमानों पर यह बड़ा कठिन समय था और अल्लाह ने इस समय ‎जो क़ुरआन अवतीर्ण किया उसमें तलवार की काट और बाढ़ की तेज़ी थी। ‎जिसने पूरा क्षैत्र हिला कर रख दिया। मुसलमानों के लिए तसल्ली और इस ‎कठिन समय में की जाने वाली प्रार्थनाऐं हैं जो इस आठ वर्ष के कुरान का ‎मुख्य भाग रहीं।

मक्की दौर के तेरह वर्ष बाद मदीने में मुसलमानों को एक केन्द्र प्राप्त ‎हो गया। जहाँ सारे ईमान लाने वालों को एकत्रित कर तीसरे दौर का ‎अवतीर्ण शुरू हुआ। यहाँ मुसलमानों का दो नए प्रकार के लोगों से परिचय ‎हुआ। प्रथम यहूदी जो यहाँ सदियों से आबाद थे और अपने धार्मिक विश्वास ‎के अनुसार अंतिम नबी (सल्ल.) की प्रतिक्षा कर रहे थे। किन्तु अंतिम नबी ‎‎(सल्ल.) को उन्होंने अपने अतिरिक्त दूसरी क़ौम में देखा तो उत्पात मचा ‎दिया। क़ुरआन में इस दौर में अहले किताब (ईश्वरीय ग्रंथों को मानने वाले ‎विषेश कर यहूदी तथा ईसाई) पर क़ुरआन में सख्त टिप्पणियाँ की गईं। इसी ‎युग में कुटाचारियों (मुनाफिक़ों) का एक गुट मुसलमानों में पैदा हो गया जो ‎मुसलमान होने का नाटक करते और विरोधियों से मिले रहते थे।

यहीं मुसलमानों को सशस्त्र संघर्ष की आज्ञा मिली और उन्हें निरंतर ‎मक्का वासियों के हमलों का सामना करना पड़ा। दूसरी ओर एक इस्लामी ‎राज्य की स्थापना के साथ पूरे समाज की रचना के लिए ईश्वरीय नियम ‎अवतरित हुए। युध्द, शांति, न्याय, समाजिक रीति रिवाज, खान पान सबके ‎बारे में ईश्वर के आदेश इस युग के क़ुरआन की विशेषता हैं। जिनके आधार ‎पर समाजिक बराबरी का एक आदर्श राज्य अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने ‎खड़ा कर दिया। जिसके आधार पर आज सदियों बाद भी हज़रत मुहम्मद ‎‎(सल्ल.) का क्रम विश्व नायकों में प्रथम माना जाता है। उन्होंने जीवन के ‎हर क्षैत्र में ज़बानी निर्देश नहीं दिए, बल्कि उस पर अमल करके दिखाया।

इस पृष्ठ भूमि के कारण ही क़ुरआन में कई बार एक ही बात को बार ‎बार दोहराया जाना लगता है। एकेश्वरवाद, धार्मिक आदेश, स्वर्ग, नरक, धैर्य, धर्म परायणता (तक्वा) के विषय हैं जो बार बार दोहराए गए।

कुरान ने एक सीधे साधे, नेक व्यापारी इंसान को, जो अपने ‎परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था। विश्व की दो महान शक्तियों ‎‎(रोमन तथा ईरानी साम्राज्य) के समक्ष खड़ा कर दिया।[तथ्य वांछित] केवल यही नहीं ‎उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर ‎इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता।[तथ्य वांछित] ‎क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत ‎किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है।[तथ्य वांछित]

कुरान पर शोध

कुछ वर्षों पूर्व अरबों के एक गुट ने भ्रुण शास्त्र से संबंधिक कुरान ‎की आयतें एकत्रित कर उन्हे अंग्रेज़ी में अनुवाद कर, प्रो. डॉ. कीथ मूर के ‎समक्ष प्रस्तुत की जो भ्रूण शास्त्र के प्रोफेसर और टोरंटो ‎विश्वविद्यालय (कनाडा) के विभागाध्यक्ष हैं। इस समय विश्व में भ्रूण शास्त्र के ‎सर्वोच्च ज्ञाता माने जाते हैं।

उनसे कहा गया कि वे क़ुरआन में भ्रूण शास्त्र से संबंधित आयतों पर ‎अपने विचार प्रस्तुत करें। उन्होंने उनका अध्ययन करने के पश्चात कहा कि ‎भ्रूण शास्त्र के संबंध में क़ुरआन में वर्णन ठीक आधुनिक खोज़ों के अनुरूप ‎हैं। कुछ आयतों के बारे में उन्होंने कहा कि वे इसे ग़लत या सही नहीं कह ‎सकते क्यों कि वे खुद इस बात में अनभिज्ञ हैं। इसमें सबसे पहले नाज़िल ‎की गई क़ुरआन की वह आयत भी शामिल थी जिसका अनुवाद है।

अपने परवरदिगार का नाम ले कर पढ़ो, जिसने (दुनिया को) पैदा ‎किया। जिसने इंसान को खून की फुटकी से बनाया।

इसमें अरबी भाषा में एक शब्द का उपयोग किया गया है अलक़ इस ‎का एक अर्थ होता खून की फुटकी (जमा हुआ रक्त) और दूसरा अर्थ होता है ‎जोंक जैसा।

डॉ. मूर को उस समय तक यह ज्ञात नहीं था कि क्या माता के गर्भ ‎में आरंभ में भ्रूण की सूरत जोंक की तरह होती है। उन्होंने अपने प्रयोग इस ‎बारे में किए और अध्ययन के पश्चात कहा कि माता के गर्भ में आरंभ में ‎भ्रूण जोंक की आकृति में ही होता है। डॉ कीथ मूर ने भ्रूण शास्त्र के संबंध ‎में ८० प्रश्नों के उत्तर दिए जो कुरान और हदीस में वर्णित हैं।‎

उन्ही के शब्दों में, यदि ३० वर्ष पूर्व मुझसे यह प्रश्न पूछे जाते तो ‎मैं इनमें आधे भी उत्तर नहीं दे पाता। क्यों कि तब तक विज्ञान ने इस क्षैत्र ‎में इतनी प्रगति नहीं की थी।

१९८१ में सऊदी मेडिकल कांफ्रेंस में डॉ. मूर ने घोषणा की कि उन्हें कुरान की भ्रूण शास्त्र की इन आयतों को देख कर विश्वास हो गया है कि ‎हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ईश्वर के पैग़म्बर थे। क्यों कि सदियों पूर्व जब ‎विज्ञान खुद भ्रूण अवस्था में हो इतनी सटीक बातें केवल ईश्वर ही कह ‎सकता है।

डॉ. मूर ने अपनी पुस्तक के १९८२ के संस्करण में सभी बातों को ‎शामिल किया है जो कई भाषाओं में उपलब्ध है और प्रथम वर्ष के ‎चिकित्साशास्त्र के विद्यार्थियों को पढ़ाई जाती है। इस पुस्तक द डेवलपिन्ग ह्यूमन को किसी एक व्यक्ति द्वारा चिकित्सा शास्त्र के क्षैत्र में ‎लिखी पुस्तक का अवार्ड भी मिल चुका है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जिन्हे कुरान की इस टीका में आप निरंतर पढ़ेंगे।

मत भिन्नता पर एक अपत्ति की जाती है कि जब कुरान इतनी ‎सिध्द पुस्तक है तो उसकी टीका में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से अब तक ‎विद्वानों में मत भिन्नता क्यों है।

यहां इतना कहना पर्याप्त होगा कि पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) ने ‎अपने अनुयायियों में सेहतमंद विभेद को बढ़ावा दिया किन्तु मतभिन्नता के ‎आधार पर कट्टरपन और गुटबंदी को आपने पसंद नहीं किया। सेहतमंद ‎मतभिन्नता समाज की प्रगति में सदैव सहायक होती है और गुटबंदी सदैव क्षति पहुंचाती है।

इसलिए इस्लामी विद्वानों की मतभिन्नता भी क़ुरआन हदीस में कार्य ‎करने और आदर्श समाज की रचना में सहायक हुई है किन्तु क्षति इस ‎मतभिन्नता को कट्टर रूप में विकसित कर गुटबंदी के कारण हुई है।

शाब्दिक वह्य कुरान हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर अवतरित हुआ वह ‎ईश्वरीय शब्दों में था। यह वह्य शाब्दिक है, अर्थ के रूप में नहीं। यह बात ‎इसलिए स्पष्ठ करना पड़ी कि ईसाई शिक्षण संस्थाओं में यह शिक्षा दी जाती ‎है कि वह्य ईश्वरीय शब्दों में नहीं होती बल्कि नबी के हृदय पर उसका अर्थ ‎आता है जो वह अपने शब्दों में वर्णित कर देता है। ईसाईयों के लिए यह ‎विश्वास इसलिए आवश्यक है कि बाईबिल में जो बदलाव उन्होंने किए हैं, उसे वे ‎इसी प्रकार सत्य बता सकते थे। पूरा ईसाई और यहूदी विश्व सदियों से यह ‎प्रयास कर रहा है कि किसी प्रकार यह सिध्द कर दे कि कुरान हज़रत ‎मुहम्मद (सल्ल.) के शब्द हैं और उनकी रचना है। इस बारे में कई पुस्तकें ‎लिखी गई और कई तरीक़ों से यह सिध्द करने के प्रयास किए गए किन्तु ‎अभी तक किसी को यह सफलता नहीं मिल सकी।

जानिए इस पौधे के गजब के आयुर्वेदिक गुण


आपने अक्सर गमलों में लगी कांटेदार वनस्पति देखी होगी जो तीन,दस या बीस शाखाओं में लगी होती है। लेकिन इस पौधे को बहुत कम लोग जानते हैं। इस वनस्पति का नाम है सेहुंडद है जिसे स्नुही या थूहर के नाम से जाना जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि थूहर का पौधा घर में लगाने से घर को नजर नहीं लगती तो कुछ मानते हैं कि जिस घर छत पर थूहर लगी हो वहां आकाशीय बिजली नहीं गिरती है। लेकिन बहुत कम लोग इसके औषधिय गुणों के बारे में जानते हैं। सम्पूर्ण भारत में सूखे स्थलों में पाई जाने वाली इस वनस्पति को अपने परगेटिव गुणों के कारण जाना जाता है। इस वनस्पति में कमाल का दूध पाया जाता है,जो त्वचा रोगों और पेट के कब्ज को दूर करने वाले गुणों से युक्त होता है। आइए हम बताते हैं, इस वनस्पति के चमत्कारिक गुणों के लाइव वीडियो के माध्यम से जिन्हें जानकर आप भी आश्चर्य में पड़ जाएंगे।

- इसके दो पत्तों को केवल आग पर गर्म कर थोड़ा हाथों से मसल कर रस निकालकर थोड़ा सा काला नमक मिलाकर पीएं और देखें खांसी में कितना आराम मिलता है।

-यदि बच्चों में कब्ज की शिकायत हो तो इसके पतले कोमल डंडों को धीमी आंच पर गर्म कर रस निकालकर थोड़ा सा गुड़ मिलाकर पीला दें।

-इसकी पत्तियों को वासा (अडूसे) की पत्तियों के साथ पीसकर छोटी -छोटी गोलियां बनाकर एक से दो गोली दिन में दो से तीन बार चूसने से भी खांसी में आराम मिलता है।

- कान में दर्द हो रहा हो तो केवल इसके रस को गर्म कर कानों में दो -दो बूँद डालने मात्र से कानों का दर्द दूर होता है।

- किसी के दांत हिल रहे हों तो बस इसके दूध को हिलते हुए दांत पर लगाएं और लाभ देखें। दांत सहजता से गिर जाएंगे।-स्नूही (थूहर ) के दूध में हल्दी का पाउडर मिलाकर एक लेप जैसा बना लें और इसे अर्श (पाइल्स ) के मस्सों पर लगा दें मस्से समाप्त हो जाएंगे।

-इसकी जड़ को हींग के साथ पीसकर बच्चों के पेट पर लेप करने मात्र से उदर शूल में लाभ मिलता है।

-बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हुआ एक शोध सर्वाइकल एरोजन के लिए इसे इलेक्ट्रिक काटरी से बेहतर विकल्प के रूप में बतलाता है।

-थूहर (स्नूही),अर्क (मदार ),करंज एवं चमेली की पत्तियों को गोमूत्र के साथ किसी भी प्रकार के घाव में लेप करने से घाव भर जाते हैं।

-स्नूही के स्वरस को तिल के तेल में मिलाकर सुखाकर काजल जैसा बनाकर आंखों पर लगाने से लाभ मिलता है। ऐसे अनेक गुणों से भरपूर इस औषधि को विष के प्रभाव को नष्ट करने वाला भी बताया गया है। बस ध्यान यह रहे कि सका औषधिय प्रयोग केवल और केवल आयुर्वेदिक चिकित्सक के निर्देशन में हो।

जानिए आज कैसे शिवलिंग की पूजा से पूरा होगा घर बनाने का सपना


शास्त्रों के मुताबिक शिवलिंग व अरघा शिव-शक्ति का सामूहिक स्वरूप होकर सृजन या उत्पत्ति का प्रतीक है, जो अर्द्धनारीश्वर के रूप में भी पूजनीय है।पौराणिक मान्यता है कि शिवलिंग पूजा उस शक्ति की उपासना है जो सृष्टि की रचना का कारण है। इसलिए शिवलिंग साक्षात् परब्रह्म का स्वरूप भी माना जाता है।

यही वजह है कि कण-कण और हर जीव में शिव मानकर अलग-अलग चीजों के शिवलिंग की उपासना सोमवार, चतुर्दशी, अष्टमी या प्रदोष की पुण्यतिथियों के अलावा खासतौर पर सावन माह के आखिरी दिन या श्रावणी पूर्णिमा सांसारिक इच्छाओं को जल्द पूरा करने वाली मानी गई है। इनमें से एक ज़िंदगी की अहम जरूरतों से जुड़ी है और वह है - मकान। जानिए किस-पदार्थ के शिवलिंग की पूजा घर के अलावा कौन-सी इच्छा सिद्ध करती है -

- हवन-यज्ञ की विभूति या भस्म से बने शिवलिंग मनचाही कामना सिद्ध करते हैं।

- अक्षत, गेंहू या जौ के आटे से बने शिवलिंग की पूजा पारिवारिक सुख-शांति व संतान की कामना पूरी करती है।

- स्फटिक शिवलिंग की पूजा हर कामना और कार्य सिद्धि करने वाली मानी गई है।

- चांदी, सोने या मोती से बने शिवलिंग क्रमश: पैसा, खुशहाली व भाग्य वृद्धि करते हैं।

- दही का जल निकालकर निथारकर बने शिवलिंग धन कामना पूरी करते हैं।

- पीपल की लकड़ी से बने शिवलिंग अभाव व दरिद्रता का नाश करते हैं।

- चंदन-कस्तूरी से बने शिवलिंग ऐश्वर्यमय जीवन की कामना पूरी करते हैं।

- रोगमुक्ति के लिए मिश्री या शक्कर के बने शिवलिंग मंगलकारी होते हैं।

- मकान या संपत्ति की चाहत पूरी करने के लिए फूलों से बने शिवलिंग की पूजा करें।

- लहसुनिया के शिवलिंग शत्रु बाधा दूर करते है।

- मृत्यु व काल का भय दूर्वा दल से बने शिवलिंग पूजा से दूर होता है।

यह कोई फ़िल्मी सीन नहीं: पिता की ख्वाहिश पूरी, अस्पताल में हुआ बेटी का निकाह

जयपुर.सोफे पर एक तरफ लड़के और काजी के बैठने के लिए इंतजाम तो वहीं दूसरी तरफ कोने में पर्दा लगाकर दुल्हन के लिए खास इंतजाम। बुधवार को फोर्टिस हॉस्पिटल परिसर में कुछ अलग ही माहौल था। हॉस्पिटल में पहली बार निकाह जो होने जा रहा था। यहां भले ही शादियों में होने वाली वो भव्य सजावट नहीं थी, लेकिन अपने पेशेंट आबिद की खुशी में पूरा स्टाफ ही खुश था।

लंग्स कैंसर से पीड़ित आबिद की यह ख्वाहिश थी कि उनकी बेटी सारा का निकाह उनके सामने हो। सारा आबिद सिद्दीकी की इकलौती बेटी हैं। उन्होंने अप्रैल में बेटी की मंगनी धूमधाम से की थी। इसके बाद खुदा का शुक्र अदा करने के लिए वो बेटी को लेकर सऊदी अरब में मक्का मदीना उमरा करने भी गए थे।

इसके कुछ समय बाद ही वह इस बीमारी में उलझते चले गए और आज हालात काफी क्रिटिकल हैं। जहां दवा से ज्यादा अब दुआओं की जरूरत है। इस सेरेमनी में आईसीयू इंचार्ज डॉ. शब्बर ज्योत और डॉ. सुशील कालरा भी मौजूद थे। डॉ. कालरा कहने लगे यह पहला मौका है जब मैंने हॉस्पिटल में निकाह होते हुए देखा है।

आबिद का ट्रीटमेंट मैं ही कर रहा हूं। मेरा पेशेंट अभी बात करने की स्थिति में नहीं, लेकिन उनकी आंखें कह रही थीं वाकई खुश थे वे।शाम 4 बजे हुए इस निकाह में रिश्तेदारों के साथ हॉस्पिटल स्टाफ भी इसका गवाह बना।

आबिद का बेड ऐसी जगह लगाया गया जहां से वो दूल्हा-दुल्हन को देख पाएं। सारा ने पिता के सिरहाने बैठकर ही निकाह पढ़ा। निकाह के बाद अबिद ने दामाद को शगुन के तौर पर कुछ रुपए भी दिए। आबिद की पत्नी और नगर निगम में पार्षद आयशा सिद्दीकी कहने लगी मेरे पति जब से बीमार हुए हैं तभी से चाहते हैं कि सारा का निकाह उनके सामने हो।

दिल्ली में जब यह हॉस्पिटल में थे तब भी इन्होंने इस ख्वाहिश का इजहार किया था और अब जयपुर में भी कई बार यह इस बात को दोहरा चुके थे। मुझे घर के बड़ों ने भी यह सलाह दी और आज हॉस्पिटल में यह निकाह हो गया।

ये अगर ठीक होते तो हम इसकी शादी बहुत धूमधाम से करते। आज तो निकाह सिर्फ छुआरों से हुआ है। इस पर उनके दामाद आजम कहने लगे मैं तो खुद चाहता था कि मेरा निकाह सादगी से हो। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि हम अंकल की यह ख्वाहिश पूरी कर पाए।

कुछ खास हुई दुआ

निकाह के बाद अक्सर काजी साहब दूल्हा-दुल्हन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाने के लिए दुआ करते हैं, जिससे दोनों के रिश्ते में और भी मिठास घुले, लेकिन इस निकाह के बाद की दुआ भी कुछ अलग थी। काजी मो. हफीजुर्रहमान रहमान कासमी ने इस दुआ में पेशेंट की सेहत की दुआ मांगी, जिसमें यह इल्तिजा थी कि बिटिया की जिंदगी में आई ये खुशी उन्हें सेहत का तोहफा दे जाए।

माता-पिता ने लाख कोशिश की कि घर लौट आए

अजमेर.इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले एक छात्र में वैदिक संस्कृति और उपनिषद के बारे में जानकारी हासिल करने की ऐसी लगन लगी कि वो अपना घर छोड़कर आर्य समाज संस्थान में आकर रहने लग गया। बेटे के संन्यासी होने की आशंका से ग्रसित माता पिता उसे लेने भरतपुर से अजमेर पहुंच गए। बेटे को खूब समझाया, लेकिन वह बिना अध्ययन के चलने को तैयार नहीं हुआ। परेशान मां बाप ने पुलिस से गुहार लगाई।

पुलिस ने प्रयास भी किया लेकिन बेटे के अटल निर्णय के चलते मां बाप को वापस लौटना पड़ा। बेटे ने आश्वासन दिया कि वह अध्ययन के बाद वापस घर लौटेगा। बयाना के 23 वर्षीय रविशंकर गुप्ता ने बैचलर ऑफ टेक्नॉलॉजी की डिग्री लेने के बाद वैदिक, संस्कृत और उपनिषद के अध्ययन के लिए ऋषि उद्यान स्थित गुरुकुल आर्य समाज संस्थान में विद्यार्थी के तौर पर प्रवेश लिया है।

रविशंकर की इच्छा वेद-उपनिषद और संस्कृत व्याकरण के गूढ़ रहस्य को जानने की है। बयाना के सेंड स्टोन व्यापारी मोहनलाल गुप्ता व उनकी पत्नी ने गंज थाने में शिकायत दर्ज कराई कि गुरुकुल में उसके पुत्र को जबरन संन्यासी बनाने की कोशिश की जा रही है। शिकायत पर पुलिस ने जांच की। पता चला कि उसने अपनी इच्छा से गुरुकुल में प्रवेश लिया है।

वह वेद-उपनिषद का अध्ययन करना चाहता है। वह विद्यार्थी के तौर पर गुरुकुल में रह रहा है। संन्यासी या वानप्रस्थ के बारे में वह कोई दीक्षा ग्रहण नहीं कर रहा है। अध्ययन पूरा करने के बाद वह खुद घर लौट जाएगा। बेटे की ओर से वादा करने के बाद भी परिजन रविशंकर को घर चलने के लिए मनाने की कोशिश करते रहे। रोते-बिलखते माता-पिता ने रविशंकर को उसके पुत्र धर्म का वास्ता दिलाया।

घर के इकलौते पुत्र की जिम्मेदारियों का आभास कराया। गुप्ता ने बताया कि उसकी चार संतानों में तीन पुत्रियां और एक पुत्र रविशंकर है। पुत्रियां शादी के बाद ससुराल में हैं। उन्हें बुढ़ापे के सहारे के तौर पर रविशंकर से ही उम्मीद है लेकिन उसके संन्यासी की दिशा में कदम उठाने से भयभीत हैं।

आठ साल की उम्र से आर्य समाज से जुड़ाव

जयपुर के स्वामी केशवानंद इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी से बी-टेक की डिग्री लेने के बाद बयाना निवासी 23 वर्षीय रविशंकर ने आर्यसमाज गुरुकुल में वैदिक ज्ञान के लिए प्रवेश लिया है। रविशंकर ने भास्कर से बातचीत में स्पष्ट किया कि वो संन्यासी या वानप्रस्थ में प्रवेश करने के लिए नहीं आया है। उसकी मंशा वेद-उपनिषद, संस्कृत और दर्शन शास्त्र के गहन अध्ययन करने की है। इसके लिए यह संस्थान उपयुक्त है।

रविशंकर ने बताया कि आठ साल की उम्र से ही वह आर्य समाज की गतिविधियों से जुड़ा रहा है। उसके परिजन भी आर्य समाज से जुड़े हैं। दसवीं में टॉपर रहने के बाद उसने इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया था लेकिन इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद भी उसके मन को संतुष्टि नहीं मिली।

इंजीनियर पुत्र को वैरागी लिबास में देख कर माता-पिता दुखी

वेद-उपनिषद के विद्यार्थी रविशंकर के माता-पिता को आशंका है कि वह संन्यासी बन गया है। बयाना निवासी रविशंकर के पिता गुप्ता ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि इंजीनियरिंग बेटे को वैरागी लिबास में देख कर वह दुखी है। दूसरी ओर इस बारे में रविशंकर का कहना है कि गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों का सफेद धोती ड्रेस कोड है। उसने तर्क दिया कि जिस तरह कॉलेज में धोती-कुर्ता नहीं पहन सकते उसी तरह गुरुकुल का भी अनुशासन है। अध्ययन के दौरान वह अनुशासन का पूर्ण पालन करेगा।

संन्यास नहीं अध्ययन केंद्र

ऋषि उद्यान गुरुकुल आर्य समाज संस्थान के आचार्य सत्यजीत आर्य और सोमदत्त आर्य ने इंजीनियर रविशंकर को संन्यासी बनाए जाने के आरोप को निराधार बताया है। उन्होंने कहा कि संस्थान में रविशंकर ने वैदिक, संस्कृति, दर्शन और उपनिषद के अध्ययन के लिए प्रवेश लिया है। विद्यार्थी के रूप में वह संस्थान के अनुशासन के तहत यहां रहेगा। संस्थान के नियमानुसार आचार, विचार उसे अपनाने होंगे।

विद्यार्थी, वानप्रस्थ और संन्यासी

ऋषि उद्यान गुरुकुल संस्थान में विद्यार्थी, वानप्रस्थी और संन्यासी तीन अलग-अलग श्रेणियों में लोग आवास करते हैं। विद्यार्थी अध्ययन के दौरान प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां भी करते हैं। पूरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। इसी तरह वानप्रस्थ लोग गृहस्थ जीवन यापन करते हुए संस्थान में अध्ययन अध्यापन का कार्य करते हैं, इस श्रेणी के लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं। संन्यास दीक्षा ग्रहण करने वाले लोगों का जीवन ब्रह्मचारी का होता है। वर्तमान में संस्थान में करीब पचास लोग रहते हैं।

गुरुकुल से आईएएस अफसर बनने की लगन

मध्यप्रदेश छिंदवाड़ा के मूल निवासी दीपक ऋषि उद्यान गुरुकुल आर्य समाज में व्याकरण विषय के विद्यार्थी के तौर पर अध्ययनरत है। दीपक ने बताया कि वह संस्थान में अध्ययन के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में संस्कृत और व्याकरण में टॉपर रहा है। अब वह यहां रहते हुए आईएएस परीक्षा की तैयारी कर रहा है। दीपक का कहना है कि संस्थान में अध्ययन का आदर्श वातावरण है।

सुनवाई में देरी पर अब साहब देंगे जुर्माना

अजमेर.सुनवाई का अधिकार कानून लागू होने के साथ ही सरकारी महकमों ने अपने यहां तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया है। कानून वैसे आज से लागू हो गया लेकिन अजमेर में औपचारिक शुरुआत पांच अगस्त को प्रभारी मंत्री बीना काक द्वारा की जाएगी।

कानून लागू होने के साथ ही अब तय समय समय में सुनवाई नहीं करने वाले सरकारी अफसरों को जेब से जुर्माना भरना पड़ेगा। नगर निगम, जिला परिषद, कलेक्ट्रेट तथा अधिकांश सरकारी महकमों के परिसर में हालांकि सुनवाई अधिकार को लेकर सूचना बोर्ड पहले से ही लगाए जा चुके हैं।

सुनवाई व अपील अधिकारियों की नियुक्ति का काम जिला अधिकारियों के दफ्तरों में लगभग हो चुका है। शिकायतों के रजिस्ट्रीकरण की व्यवस्था निगम, पीडब्ल्यूडी, सिंचाई, यूआईटी, डिस्कॉम में ऑनलाइन व्यवस्था की गई है। शिकायतों के संधारण के लिए रजिस्टर व शिकायतकर्ता को रसीद देने की व्यवस्था की जा रही है। एसडीएम, तहसीलदार तथा जिला परिषद स्तर पर व्यवस्थाओं को लेकर अंतिम रूप दे दिया गया है।

एडीएम होंगे प्रभारी अधिकारी

जिले में एडीएम गजेंद्र सिंह को सुनवाई अधिकार का प्रभारी अधिकारी बनाया गया है। कलेक्टर ने कहा उपखंड व तहसील स्तर पर कानून प्रभावी रूप से लागू करने तथा शिकायतों के निस्तारण के लिए बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।

पंचायत स्तर पर पटवारियों व ग्राम सेवकों को प्रशिक्षण दिया गया है। कानून को लेकर जिला स्तर पर वर्कशॉप का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा विभागीय स्तर पर अधिकारियों को कानून के तहत शिकायतों को दर्ज करने तथा तय समय पूर्व उनके निस्तारण की हिदायत दी जा चुकी है।

गांवों में लोग अभी अनजान

ग्राम पंचायतों में सुनवाई अधिकार को लेकर स्थिति तैयारियों के उलट लगी है। कुछ सरपंचों का कहना है कि ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर अभी तक सूचना बोर्ड नहीं लग सके हैं। ग्राम पंचायतों को इस संबंध में किसी प्रकार के निर्देश भी नहीं मिले है। गौरतलब है कि राज्य भर में बुधवार से कानून लागू हो चुका है इसके बाद सरकारी दफ्तरों में आने वाली शिकायतों की समय पर सुनवाई नहीं होने पर संबंधित अधिकारियों को जुर्माना देना पड़ेगा।

भंवरी सेक्स सीडी कांड: हत्या के लिए मदेरणा के निवास से मिल रहे थे निर्देश


जोधपुर.एएनएम भंवरी के अपहरण व हत्या के मामले में सीबीआई ने बुधवार को चार्ज बहस आगे बढ़ाते हुए अदालत को बताया कि वारदात के दिन एक सितंबर 2011 को आरोपी सहीराम विश्नोई मोबाइल फोन पर अन्य आरोपियों को तत्कालीन जल संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा के जयपुर स्थित निवास और उसके आसपास से निर्देश दे रहा था। इन्हीं निर्देशों के अनुसार अन्य आरोपियों ने बिलाड़ा, खेजड़ला, नेवरा रोड व राजीव गांधी लिफ्ट कैनाल इलाके में वारदात को अंजाम दिया। चार्ज बहस बुधवार को भी अधूरी रही। अगली सुनवाई 7 अगस्त को होगी।

अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण मामलात की विशेष अदालत के न्यायाधीश गिरीश कुमार शर्मा के समक्ष सीबीआई के वरिष्ठ लोक अभियोजक एसएस यादव व विशेष लोक अभियोजक अशोक जोशी ने बहस को आगे बढ़ाते हुए बताया कि एक सितंबर 2011 की शाम चार बजे सोहनलाल विश्नोई ने भंवरी को बिलाड़ा से स्विफ्ट कार में अपने साथ ले लिया था। भंवरी को अटपड़ा रोड व बरना के पास बिशनाराम गैंग को सौपना था, सोहन के साथ शहाबुद्दीन व बलदेव को देखने के बाद बिशनाराम की गैंग ने भंवरी को नहीं उठाया।

तफ्तीश में सामने आया कि बिशनाराम गैंग जब भंवरी को लिए बिना ही चली गई तो सोहनलाल, शहाबुद्दीन व बलदेव करीब साढ़े तीन घंटे तक भंवरी को गाड़ी में घूमते रहे। बाद में भंवरी ने गाड़ी से कूदने का प्रयास किया। सोहनलाल, शहाबुद्दीन व बलदेव ने उसे गाड़ी की सीटों के बीच में फंसा गला घोंटकर हत्या कर दी।

बिशनाराम की गैंग ने अपने 164 सीआरपीसी के बयानों में बताया कि उन्हें भंवरी मृत अवस्था में नेवरा रोड पर सुपुर्द की गई थी। सहीराम के कहने पर उन्होंने भंवरी की लाश को जालोड़ा गांव के पास स्थित रावला पुलिया के नजदीक 23 फीट गहरे गड्ढे में डीजल व लकड़ी से जला दिया था।

अवशेषों को बहा दिया नहर में :

सीबीआई का कहना था कि बिशनाराम, कैलाश जाखड़, ओमप्रकाश व अशोक विश्नोई ने भंवरी को जलाने के बाद बेसबॉल के बैट से उसकी हड्डियों के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए व उन्हें पास में बह रही राजीव गांधी लिफ्ट कैनाल में डाल दिया था। इसके दूसरे दिन बिशनाराम ने भंवरी के शव के निस्तारण की सूचना सहीराम को दी। सहीराम ने मदेरणा को बताया। इसी प्रकार सहीराम ने इसकी जानकारी सोहनलाल को भी दी। इसके बाद मलखान की बहन इंद्रा विश्नोई, भाई परसराम व मां अमरी देवी को भी इसकी जानकारी दी गई।

सहीराम ने किया को-ऑर्डिनेट :

सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि सहीराम व उमेशाराम 30 अगस्त से 1 सितंबर 2011 तक जयपुर में इंदिरा गांधी नहर परियोजना के अतिथि गृह में ठहरे हुए थे। इस दौरान सहीराम, महिपाल मदेरणा के जयपुर स्थित 49 सिविल लाइन्स स्थित सरकारी आवास पर आता-जाता रहा और वहीं से सोहनलाल व बिशनाराम को निर्देश देता रहा।

कुरान का संदेश

जानिए, क्यों खास है इस बार राखी और साथ में शुभ मुहूर्त भी


श्रावण पूर्णिमा यानी 2 अगस्त को इस बार रक्षा बंधन का त्योहार है। इस बार राखी कई मायनों में थोड़ी खास है क्योंकि इस बार राखी पर भद्रा का योग न बनने से बहनों को भाइयों की कलाई पर राखी बांधने से पहले शुभ मुहूर्त नहीं देखना पड़ेगा वहीं गुरुवार को पूर्णिमा का योग होने से कोई भी शुभ कार्य करने श्रेष्ठ रहेगा। यह योग सबके लिए शुभ व सुख-समृद्धि दायक रहेगा।

ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इस बार 1 अगस्त, बुधवार की रात 10 बजकर 49 से श्रवण नक्षत्र प्रारंभ होगा जो 2 अगस्त, गुरुवार की रात 10 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इस तरह श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षा बंधन के दिन करीब 24 घंटे श्रवण नक्षत्र का योग बन रहा है। रक्षा बंधन पर विशेष बात यह है कि इस बार भद्रा नक्षत्र न होने से पूरे दिन कभी भी राखी बांधी जा सकेगी। ऐसा कम ही होता है जब रक्षा बंधन के दिन भद्रा नक्षत्र का योग न बनता हो। भद्रा की ये स्थिति 2007 में भी बनी थी।

क्या होता है श्रवण व भद्रा नक्षत्र

श्रवण नक्षत्र श्रावण (सावन) की पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्रमा से संयोग करता है इसलिए हिंदू धर्म में इस महीने को श्रावण कहते हैं। 27 नक्षत्रों में एक श्रवण नक्षत्र को अति शुभ माना गया है क्योंकि इसके आराध्य भगवान विष्णु हैं। श्रवण नक्षत्र सभी प्रकार के अवरोधों को समाप्त कर सभी कार्यों को शुभ बनाता है।

इसके विपरीत भद्रा नक्षत्र को शुभ कामों के लिए अच्छा नहीं माना जाता। इस नक्षत्र में किए गए शुभ काम फलदाई नहीं होते। राखी पर अक्सर भद्रा नक्षत्र का योग बनता है इसलिए इस दिन राखी बांधते समय शुभ नक्षत्र अवश्य देखा जाता है।

महिलाएं करेंगी श्रवण पूजन

श्रवण नक्षत्र के समय महिलाएं परंपरानुसार घर के बाहर गाय के गोबर व लाल गेरु से श्रवण कुमार की कृति बनाकर पूजन कर उन पर रक्षासूत्र अर्पित करेंगी। सुख-समृद्धि के लिए यह पूजन किया जाता है।

राखी बांधने के शुभ मुहूर्त

रक्षा बंधन के दिन वैसे तो पूरे दिन राखी बांधी जा सकेगी लेकिन यदि शुभ चौघडिय़ा देखकर राखी बांधी जाए तो इसका विशेष फल मिलेगा। चौघडिय़ा के अनुसार राखी बांधने के शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-

- सुबह 6 से 7:30 बजे तक (सिंह लग्न में)

- दोपहर में 12 से 1:30 बजे तक

- दोपहर में 3 से 3:30 बजे तक (वृश्चिक लग्न में)

- शाम को 4:30 से 6 बजे तक

- रात को 7:30 से 9 बजे तक

2 को इस मंत्र से बांधें व बंधवाएं रक्षासूत्र, संकट रहेंगे दूर


सावन माह की पूर्णिमा को राखी का त्योहार मनाया जाता है। इसमें भाई अपनी बहन से रक्षासूत्र बंधाकर उसकी रक्षा का वादा करता है। लेकिन इस त्योहार की धार्मिक परंपराएं शास्त्रों में कुछ अलग मिलती है, लेकिन इनमें भी रक्षा और स्नेह की भावना ही उजागर होती हैं। हर स्त्री-पुरुष को इन परंपराओं का पालन करना चाहिए। इससे जीवन में स्वयं के साथ परिवार व समाज की भी संकटों में रक्षा होती है।

जानिए धार्मिक नजरिए से रक्षासूत्र बांधने का मंत्र विशेष व तरीका -

- सुबह स्नान के बाद शुभ मुहूर्त में स्वयं या किसी योग्य ब्राह्मण से देवता, पितरों और ऋषियों का तर्पण कराएं।

- उसके बाद ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े में सरसों, सोना, केसर, चंदन, अक्षत और दूर्वा बांध लें।

- फिर गोबर से लीपे स्थान पर कलश स्थापित करें। कलश पर यह रक्षासूत्र रख कर विधिवत पूजन करें या करवाएं।

- ब्राह्मण से रक्षासूत्र सीधे हाथ में बंधवाएं। शास्त्रों में रक्षासूत्र को भगवान, राजा, मंत्री, वैश्य, शिष्य, पुत्र-पौत्रादि या यजमान की कलाई पर बांधते समय यह मंत्र बोलने का महत्व बताया गया है -

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वां मनुबध्रामि रक्षे मा चल मा चल।

- इस दिन विरोधियों की पराजय के लिए वरुण पूजा का भी महत्व है।

सरकार का भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्रियों के मामले में रुख साफ़ नहीं ..चिदम्बरम के स्थान पर शिंदे को लाकर सरकार दो कदम पीछे हटी

देश के पन्द्राह भ्रष्ट मंत्रियों के विरुद्ध प्रमाणित अपराध होने का दावा कर उन्हें हटाने की मांग पर अड़े अन्ना और उनकी टीम ने चिदम्बरम को गृहमंत्रालय से हटवाकर एक लड़ाई तो जीत ली है लेकिन मिडिया ने इसको खबर नहीं बनाई है इससे लगता है के मिडिया को इस मामले में पहले से ही फील गुड करवाया गया है ...............सभी जानते है के सरकार को अन्ना और उनकी टीम ने कई बार भ्रष्ठ मंत्रियों का लिखा जोखा दिया है उनके नाम दिए है लेकिन सरकार इन आरोपों की जाँच मामले में टस से मस नहीं हुई है ..सरकार के मंत्री चोर है या इमानदार इस मामले में सरकार ने अब तक कोई अधिक्रत बयान नहीं दिया है केवल यह कहना के अख़बार की कतरनों के आधार पर जाँच नहीं हो सकती यह साबित करता है के सरकार मामला टाल रही है और अख़बार की कतरनों को कचरा मान रही है ..अगर सरकार को भरोसा है के उसके मंत्री चोर और भ्रष्ठ नहीं है तो सरकार को सीना ठोक कर बयान जारी करना चाहिए के हमारे मंत्री चोर नहीं है वोह बेदाग़ है लेकिन सरकार न जाने क्यूँ अब तक यह हिम्मत नहीं जुटा पाई है ..दूसरी बात जेसे ही अन्ना का अनशन शुरू हुआ अचानक पी चिदम्बरम जिससे अन्ना सबसे नाराज़ है उन्हें गृह मंत्रालय से हटा कर वित्त मंत्री बनाया और सुशिल कुमार शिडे को गृह मंत्री बनाया यह एक मामूली सा फेर बदल चाहे सामने घटना हो चाहे मिडिया ने इसे फीलगुड फेक्टर के तहत नज़र अंदाज़ किया हो लेकिन यह सच है के अन्ना के आगे सरकार ने थोडा झुक कर यह कदम उठाया है ..इसके पीछे सरकार की चाहे जो रणनीति हो लेकिन यह साफ है के सरकार पी चिदम्बरम को लेकर कोई सीधा टकराव नहीं चाहती .........अब सरकार चाहे मिडिया में खुद को सख्त होने का वातावरण बनाने की खबरें प्रचारित करे लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ अहिंसात्मक अनशन देश में पहली बार इस बड़े पैमाने पर है और सरकार ने भी अब तक आरोपी मंत्रियों के बेदाग होने के बारे में कोई श्वेत पत्र या क्लीन चीत वाला अधिक्रत वाला बयान जारी नहीं किया है और यही गलती सरकार को किसी परेशानी में डालने के लियें काफी है खेर देखते है भ्रष्टाचार मामले भ्रष्ट लोग और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे लोगों में से जीत किसकी होती है वेसे आज तक भ्रष्टाचार का रावन ही जीता है राम तो केवल एक दिन जीतता है .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

गुजरात में मुसलमानों को आज भी लगता है डर : अमेरिकी रिपोर्ट


वाशिंगटन. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में मुसलमान अपने हिंदू पड़ोसियों से आज भी डरते हैं क्योंकि वे अदालत में मामले के निपटारे का इंतजार कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ी इस रिपोर्ट में हालांकि धार्मिक आजादी का सम्मान करने के लिए भारत की तारीफ की गई है। लेकिन, गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार लोगों को न्याय के कठघरे में खड़ा करने की धीमी प्रक्रिया पर चिंता जताई गई है। कहा गया है कि गुजरात के मुसलमान आज भी डर के माहौल में जी रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की ओर से हिंदुत्व के एजेंडे को खारिज किए जाने के बावजूद देश के कई भाजपा शासित राज्य इस विचारधारा से प्रभावित हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक, गुजरात में दंगे के जिम्मेदार लोगों को पकड़ने में राज्य सरकार की नाकामी को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता निरंतर चिंता जता रहे हैं।

गौरतलब है कि 2002 में हुए गुजरात दंगे में 1200 से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर मुसलमान थे

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