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13 अगस्त 2012

शालिनी कोशिक जी को प्रणाम तिरंगा शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए ,


Flag Foundation Of India Flag Foundation Of India
तिरंगा
शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए ,
फतह की ये है निशानी ,फ़लक पर आज फहराए .

रहे महफूज़ अपना देश ,साये में सदा इसके ,
मुस्तकिल पाए बुलंदी फ़लक पर आज फहराए .

मिली जो आज़ादी हमको ,शरीक़ उसमे है ये भी,
शाकिर हम सभी इसके फ़लक पर आज फहराए .

क़सम खाई तले इसके ,भगा देंगे फिरंगी को ,
इरादों को दी मज़बूती फ़लक पर आज फहराए .

शाहिद ये गुलामी का ,शाहिद ये फ़राखी का ,
हमसफ़र फिल हकीक़त में ,फ़लक पर आज फहराए .

वज़ूद मुल्क का अपने ,हशमत है ये हम सबका ,
पायतख्त की ये लताफत फ़लक पर आज फहराए .

दुनिया सिर झुकाती है रसूख देख कर इसका ,
ख्वाहिश ''शालिनी''की ये फ़लक पर आज फहराए .

शालिनी कौशिक [कौशल]

कोग्रेस लोकतंत्र के ब्लेकमेलर बाबा और अन्ना के आगे नहीं झुकी ..दम है तो अपने समर्थित विपक्ष और सांसदों से इस्तीफा दिलवाएं

दोस्तों विश्व के सबसे बढ़े लोकतंत्र को ब्लेकमेल कर मनमानी कार्यवाही की मांग करने वाले बाबा रामदेव और अन्ना जी की अब बोलती बंद है कोंग्रेस ने इन ब्लेक्मेलरों के आगे झुकने से इंकार कर खुद को फिर एक बार मजबूत और लोकतंत्र की रक्षक साबित कर दिया है ....सभी जानते है डरा धमका कर भीड़ को उकसाकर इन लोगों ने किस दल के साथ मिलकर कोंग्रेस को ब्लेकमेल करने का प्रयास किया यह लोग कोंग्रेस को ही नहीं देश के लोकतंत्र को बिखेर देना चाहते थे लेकिन बेचारे टांय टांय फीस हो गए है ..हमने और आपने इस देश में वी पी सिंह के पीछे भीड़ भी देखी है फिर भीड़ को वी पी सिंह को गालियाँ बकते हुए देखा है ..हमने कल्याण सिंह और अडवानी को पूजते हुए देखा है लेकिन अब क्या हाल है सब जानते है ......अन्ना जी और बाबा रामदेव जी पहले एक थे फिर अलग अलग हुए फिर एक हो गए दिशाएं अलग अलग फिर भी टार्गेट कोई उद्देश्य नहीं केवल कोंग्रेस ....बाबा रामदेव कहते है सारा विपक्ष उनके साथ है गडकरी जो उनसे उम्र में काफी बढ़े है उनसे पैर पकडवा कर बाबा रामदेव गद गद नज़र आते है उनके मंच पर आते है ..वोह कहते है दो सो पैतालीस सांसद उनके साथ है मुलायम और मायावती उनके साथ है शरद उनके साथ है लेकिन गाली केवल और केवल कोंग्रेस को दी जाती है सभी जानते है देश में कोंग्रेस की नहीं यु पी ऐ की सरकार है और इसमें शरद वगेरा बराबर के हिस्सेदार है अप्रत्यक्ष रूप से खुद मुलायम माया भी कोंग्रेस के साथ है ..देश के लोकतंत्र के बारे में पता है के विपक्ष बगेर संसद अधूरी है मुद्दा अगर काले धन का है ..मुद्दा अगर भ्रष्टाचार का है और सभी लोग बाबा रामदेव या अन्ना से सहमत है तो कोंग्रेस यु पी ऐ सरकार से यह लोग समर्थन वापस क्यूँ नहीं ले लेते क्यूँ सत्ता के मजे चूस रहे है ..इतना ही नहीं विपक्ष में बेठे लोग अगर ऐसे इमानदार है और उन्हें देश के लोकतंत्र की ऐसी चिंता है ..अगर वोह भ्रष्टाचार के खिलाफ है या फिर कला धन इमानदारी से देश में लाना चाहते है तो सामूहिक इस्तीफा देकर लोकसभा के चुनाव दुबारा क्यूँ नहीं कराते चीत भी मेरी पट भी मेरी अनटा मेरी जेब में ......पहला अन्ना ने जनता को गुमराह किया अब बाबा रामदेव ने जनता को गुमराह किया खुद में तो आमरण अनशन कर देश के लियें कुर्बान होने का जज्बा नहीं है कभी ओरतों के कपड़े फन कर भागते है कभी अनशन में फंस जाने सम्मानजनक तरीके से अनशन तुडवाने के लियें गिडगिडाते है ...देश के लियें केवल एक दिन दो दिन का अनशन और खुद को राष्ट्रभक्त बताते है फिर आन्दोलन करेंगे आन्दोलन जारी रहेगा आखिर यह नोटंकी यह तमाशा जनता कब तक सहे ..देश जानता है बाबा का और अन्ना का सच ..कोंग्रेस के सामने इनकी खीज बार बार कोंग्रेस को गाली ब्क्वाती है लेकिन बाबा हो चाहे अन्ना हो उनके सियासी रूप गिरगिट की तरह से बदल कर सामने आ रहे है ..दोस्तों बाबा रामदेव कहते है के देश और विपक्ष उनके साथ है तो वोह विप्क्स से अपील करके दिखाए के काला धन वापस लाने और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सभी विक्षि संसद और मुलायम माया शरद संसद से इस्तीफा दें ताकि सरकार को फिर से चुनाव कराना मजबूरी हो जाये फिर यह चुनाव जीत कर आ जाएँ लेकिन बाबा जानते है के वोह एक मात्र प्यादे है विप्क्स ऐसे न जाने कितने बाबा जी को साधुओं को लाया है लेकिन कोग्न्रेस अपनी जगह अडीग है अडीग थी और अडीग रहेगी वोह बात अलग है के कोंग्रेस में भी सांझा सरकार के चलते चोर और बेईमान घुसे है जो लोग दल बदल कर कोंग्रेस में गए है वोह भी चोर बेईमान है लेकिन क्या करें जो लोग कोंग्रेस गालियाँ बकते है वही लोग कोंग्रेस के तलवे चाटते दिखते है क्योंकि कोंग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसने देश को गणतन्त्र दिया ..देश को आज़ादी डी ..देश को स्वतन्त्रता दिवस दिया .देश को तिरंगा दिया ..देश को राष्ट्रगान दिया ...सम्मान दिया ....और यह पब्लिक है बाबा को भी जानती है अन्ना को भी जानती है और कोंग्रेस को भी जानती है ..........इसलियें नोटंकी बाजों के बीच इस देश का वक्त रुपया बर्बाद मत होने दो भाई हो सके तो पहले मन्दिर के नाम पर इकठ्ठा किया धन का हिसाब मांगों ..बाबा और अन्ना के आन्दोलन के लियें खर्च कहाँ से आया कितना खर्च हुआ और उसका हिसाब किया है यह सब जनता को जान्ने का हक है के काले धन वापसी और भ्रष्टाचार खत्म करने के नाम पर कितनी च्न्देबाज़ी हुई है और किस मद में कितना खर्च हुआ है देश के कानूनों का इस च्न्देबाज़ी के आमद खर्च में ध्यान भी रखा गया है या नहीं ........तो बाबा जी अन्ना जी क्या हिसाब बताओगे क्या आपके लाडले विपक्ष और कथित दलों के सांसदों से इस्तीफा दिलवाकर नये चुनाव करवाओगे नहीं न तो फिर मिया मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखना छोड़ दो भाई वापस अपने दवा लूट व्यापर में चले जाओ ......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

भारत का ध्वज


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भारत का ध्वज
भारत का ध्वज
नाम तिरंगा
प्रयोग राष्ट्रीय ध्वज एवं चिन्ह National flag and ensign
अनुपात 2:3
अंगीकृत 1947

भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच एक नीले रंग के चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है, जिसकी अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी। इसे १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व २२ जुलाई, १९४७ को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था। इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं , जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात २:३ का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें २४ अरे होते हैं। इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है व रूप सम्राट अशोक की राजधानी सारनाथ में स्थित स्तंभ के शेर के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले की तरह होता है।

सरकारी झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार झंडा खादीमें ही बनना चाहिए। यह एक विशेष प्रकार से हाथ से काते गए कपड़े से बनता है जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया था। इन सभी विशिष्टताओं को व्यापक रूप से भारत में सम्मान दिया जाता हैं भारतीय ध्वज संहिता के द्वारा इसके प्रदर्शन और प्रयोग पर विशेष नियंत्रण है। [4] ध्वज का हेराल्डिक वर्णन इस प्रकार से होता है:
Party per fess Saffron and Vert on a fess Argent a "Chakra" Azure.


तिरंगे का विकास

यह ध्वज भारत की स्वतंत्रता के संग्राम काल में निर्मित किया गया था। १८५७में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय भारत राष्ट्र का ध्वज बनाने की योजना बनी थी, लेकिन वह आंदोलन असमय ही समाप्त हो गया था और उसके साथ ही वह योजना भी बीच में ही अटक गई थी। वर्तमान रूप में पहुंचने से पूर्व भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अनेक पड़ावों से गुजरा है। इस विकास में यह भारत में राजनैतिक विकास का परिचायक भी है। कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं[5] :-


  • द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और १९०७ में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह १९०५ में हुआ था। यह भी पहले ध्वज के समान था; सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।[6]


  • १९१७ में भारतीय राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान तृतीय चित्रित ध्वज को फहराया। इस ध्वज में ५ लाल और ४ हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्ततऋषि के अभिविन्यास में इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।


  • कांग्रेस के सत्र बेजवाड़ा (वर्तमान विजयवाड़ा) में किया गया यहाँ आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वैंकैया ने एक झंडा बनाया (चौथा चित्र) और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्वं करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।


  • वर्ष १९३१ तिरंगे के इतिहास में एक स्मरणीय वर्ष है। तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र-ध्वज के रूप में मान्यता मिली।[6] यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।


  • २२ जुलाई १९४७ को संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।
ब्रिटिश कालीन झंडे

रंग-रूप

अशोक चक्र, "धर्म का पहिया (धर्म)

भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का श्वेत धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। सफ़ेद पट्टी पर बने चक्र को धर्म चक्र कहते हैं। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।

भारतीय ध्वज में निम्न अनुमानित रंगों के अंतरण प्रयोग होते हैं।ध्वज में जो केसरिया, श्वेत, हरा तथा नीला रंग है वह एचटीएमएल आर.जी.बीवेब रंगों में (हेक्साडेसिमल संकेतन में); सीएमवाइके के समकक्ष; डाई रंग और पेन्टोन के बराबर संख्या हल है।[7]

योजना HTML: सीएमवाइके वस्त्र रंग पैन्टोन
भगवा # FF9933 0-50-90-0 गहरा केसर 1495c
श्वेत # FFFFFF 0-0-0-0 फीका सफेद 1c
हरा # 138808 100-0-70-30 भारतीय हरा 362c
नीला # 000080 100-98-26-48 गहरा नीला 2755c

आधिकारिक (सीएमवाइके) शीर्ष पट्टी के मूल (0,50,90,0)-रंग कद्दू के सबसे करीब-सीएमवाइके (0,54,90,0 के साथ); ट्रू डीप भगवा (23, 81, 5)) और (0, 24, 85, 15)) हैं।[7]

विनिर्माण प्रक्रिया

ध्वज के आकार
आकार मिमी
1% 6300 × 4200
2 3600 × 2400
3% 2700 × 1800
4% 1800 × 1200
5) 1350 × 900
6 900 × 600
7 450 × 300
8% 225 × 150
9% 150 × 100
विधान सौदा बेंगलुरु (बंगलोर) के ऊपर भारतीय झंडा और राज्य प्रतीक

१९५० में भारत के गणतंत्र बनने के उपरांत, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने १९५१ में पहली बार ध्वज की कुछ विशिष्टताएँ बताईं। ये १९६४ में संशोधित की गयीं, जो भारत में मीट्रिक प्रणाली के अनुरूप थीं। इन निर्देशों को आगे चलकर १७ अगस्त १९६८ में संशोधित किया गया। ये दिशा निर्देश अत्यंत कड़े हैं और झंडे के विनिर्माण में कोई दोष एक गंभीर अपराध समझा जाता है, जिसके लिए जुर्माना या जेल या दोनों सजाएं भी हो सकती हैं। [8]

केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडे के लिए उपयुक्त माना जाता है। खादी के लिए कच्चा माल केवल कपास, रेशम और ऊन हैं। झंडा बनाने में दो तरह के खादी का उपयोग किया जाता है, एक वह खादी, जिससे कपडा बनता है, और दूसरा है खादी-टाट, जो बेज रंग का होता है और खम्भे में पहनाया जाता है। खादी टाट एक असामान्य प्रकार की बुनाई है जिसमें तीन धागों के जाल जैसे बनते हैं । यह परम्परागत बुनाई से भिन्न है, जहां दो धागों को बुना जाता है। इस प्रकार की बुनाई अत्यंत दुर्लभ है, इस कौशल को बनाए रखने वाले बुनकर भारत में एक दर्जन से भी कम हैं। दिशा-निर्देश में यह भी बताया गया है कि प्रति वर्ग सेंटीमीटर में १५० सूत्र होने चाहिए,[8] इसके साथ ही कपड़े में प्रति चार सूत्र और एक वर्ग फुट का शुद्ध भार २०५ ग्राम ही होना चाहिये।[9][10] इस बुनी खादी को दो इकाइयों से प्राप्त किया जाता है, धारवाड़ के निकट गदग से और उत्तरी कर्नाटक के बागलकोट जिलों से। वर्तमान में, हुबली में स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ को ही एक मात्र लाइसेंस प्राप्त है जो झंडा उत्पादन और आपूर्ति करता है। यद्यपि भारत में झंडा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना की अनुमति खादी विकास और ग्रामीण उद्योग आयोग (केवीअईसी) द्वारा दिया जाता है परन्तु यदि दिशा-निर्देशों की अवज्ञा की गयी तो बीआईएस को इन्हें रद्द करने के सारे अधिकार प्राप्त हैं।

बुनाई पूरी होने के बाद, सामग्री को परीक्षण के लिए बीआईएस प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है। कड़े गुणवत्ता परीक्षण करने के बाद, यदि झंडा अनुमोदित हो जाता है तो, उसे कारखाने वापस भेज दिया जाता है। तब उसे प्रक्षालित कर संबंधित रंगों में रंग दिया जाता है। केंद्र में अशोक चक्र को स्क्रीन मुद्रित, स्टेंसिल्ड या काढा जाता है। विशेष ध्यान इस बात को दिया जाना चाहिए कि चक्र अच्छी तरह से मिलता हो और दोनों तरफ ठीक से दिखाई देता हो। बीआईएस झंडे की जांच करता है और तभी वह बेचा जा सकता हैं। भारत में सालाना लगभग चार करोड़ झंडे बिकते हैं। भारत में सबसे बड़ा झंडा (६१३ × ४१२ मी.) राज्य प्रशासनिक मुख्यालय, महाराष्ट्र के मंत्रालय भवन से फहराया जाता है।

ध्वज संहिता

Flag of भारत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक
ध्वज तिरंगा
राष्ट्रीय चिह्न अशोक की लाट
राष्ट्र-गान जन गण मन
राष्ट्र-गीत वंदे मातरम्
पशु बाघ
जलीय जीव गंगा डाल्फिन
पक्षी मोर
पुष्प कमल
वृक्ष बरगद
फल आम
खेल मैदानी हॉकी
पञ्चांग
शक संवत
संदर्भ "भारत के राष्ट्रीय प्रतीक"
भारतीय दूतावास, लन्दन
Retreived ०३-०९-२००७

२६ जनवरी २००२ को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्ट्रियों आदि संस्थानों में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है, बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कड़ाई से पालन करें और तिरंगे के सम्मान में कोई कमी न आने दें। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, २००२ को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।

नियम व विनियम

२६ जनवरी २००२ विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्वज को किस प्रकार फहराया जाए :

  • राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्काउट शिविरों आदि) में ध्वज को सम्मान की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्वज-आरोहण में निष्ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
  • किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
  • नई संहिता की धारा ( २ ) में सभी निजी नागरिकों अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्‍वीकार किया गया है।
  • इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्‍त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्‍त तक फहराया जाना चाहिए।
  • इस ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्‍पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
  • किसी अन्‍य ध्वज या ध्वज पट्ट को राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचे स्‍थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।

अधिक जानकारी भारतीय ध्वज संहिता में देखी जा सकती है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज भारत के नागरिकों की आशाएं और आकांक्षाएं दर्शाता है। यह देश के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है।

झंडे का उचित प्रयोग

सन २००२ से पहले, भारत की आम जनता के लोग केवल गिने चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहरा नहीं सकते थे। एक उद्योगपति, नवीन जिंदल ने, दिल्ली उच्च न्यायालय में, इस प्रतिबंध को हटाने के लिए जनहित में एक याचिका दायर की। जिंदल ने जान बूझ कर, झंडा संहिता का उल्लंघन करते हुए अपने कार्यालय की इमारत पर झंडा फहराया। ध्वज को जब्त कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाने की चेतावनी दी गई। जिंदल ने बहस की कि एक नागरिक के रूप में मर्यादा और सम्मान के साथ झंडा फहराना उनका अधिकार है और यह एक तरह से भारत के लिए अपने प्रेम को व्यक्त करने का एक माध्यम है। तदोपरांत केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने, भारतीय झंडा संहिता में २६ जनवरी २००२, को संशोधन किए जिसमें आम जनता को वर्ष के सभी दिनों झंडा फहराने की अनुमति दी गयी और ध्वज की गरिमा, सम्मान की रक्षा करने को कहा गया।

भारतीय संघ में वी.यशवंत शर्मा के मामले में कहा गया कि यह ध्वज संहिता एक क़ानून नहीं है, संहिता के प्रतिबंधों का पालन करना होगा और राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान को बनाए रखना होगा। राष्ट्रीय ध्वज को फहराना एक पूर्ण अधिकार नहीं है, पर इस का पालन संविधान के अनुच्छेद ५१-ए के अनुसार करना होगा।

झंडे का सम्मान

भारतीय कानून के अनुसार ध्वज को हमेशा 'गरिमा, निष्ठा और सम्मान' के साथ देखना चाहिए। "भारत की झंडा संहिता-२००२", ने प्रतीकों और नामों के (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, १९५०" का अतिक्रमण किया और अब वह ध्वज प्रदर्शन और उपयोग का नियंत्रण करता है। सरकारी नियमों में कहा गया है कि झंडे का स्पर्श कभी भी जमीन या पानी के साथ नहीं होना चाहिए। उस का प्रयोग मेज़पोश के रूप में, या मंच पर नहीं ढका जा सकता, इससे किसी मूर्ति को ढका नहीं जा सकता न ही किसी आधारशिला पर डाला जा सकता था। सन २००५ तक इसे पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता था। पर ५ जुलाई २००५, को भारत सरकार ने संहिता में संशोधन किया और ध्वज को एक पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग किये जाने की अनुमति दी। हालांकि इसका प्रयोग कमर के नीचे वाले कपडे के रूप में या जांघिये के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। ध्वज को तकिये के रूप में या रूमाल के रूप में करने पर निषेध है। झंडे को जानबूझकर उल्टा, रखा नहीं किया जा सकता, किसी में डुबाया नहीं जा सकता, या फूलों की पंखुडियों के अलावा अन्य वस्तु नहीं रखी जा सकती। किसी प्रकार का सरनामा झंडे पर अंकित नहीं किया जा सकता है।

सँभालने की विधि

झंडे का सही प्रदर्शन

झंडे को संभालने और प्रदर्शित करने के अनेक परंपरागत नियमों का पालन करना चाहिए। यदि खुले में झंडा फहराया जा रहा है तो हमेशा सूर्योदय पर फहराया जाना चाहिए और सूर्यास्त पर उतार देना चाहिए चाहे मौसम की स्थिति कैसी भी हो। 'कुछ विशेष परिस्थितियों' में ध्वज को रात के समय सरकारी इमारत पर फहराया जा सकता है।

झंडे का चित्रण, प्रदर्शन, उल्टा नहीं हो सकता ना ही इसे उल्टा फहराया जा सकता है। संहिता परंपरा में यह भी बताया गया है कि इसे लंब रूप में लटकाया भी नहीं जा सकता। झंडे को ९० अंश में घुमाया नहीं जा सकता या उल्टा नहीं किया जा सकता। कोई भी व्यक्ति ध्वज को एक किताब के समान ऊपर से नीचे और बाएँ से दाएँ पढ़ सकता है, यदि इसे घुमाया जाए तो परिणाम भी एक ही होना चाहिए। झंडे को बुरी और गंदी स्थिति में प्रदर्शित करना भी अपमान है। यही नियम ध्वज फहराते समय ध्वज स्तंभों या रस्सियों के लिए है। इन का रखरखाव अच्छा होना चाहिए।

दीवार पर प्रदर्शन

IndiaFlagTwoNations.png

झंडे को सही रूप में प्रदर्शित करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। यदि ये किसी भी मंच के पीछे दीवार पर समानान्तर रूप से फैला दिए गए हैं तो उनका फहराव एक दूसरे के पास होने चाहिए और भगवा रंग सबसे ऊपर होना चाहिए। यदि ध्वज दीवार पर एक छोटे से ध्वज स्तम्भ पर प्रदर्शित है तो उसे एक कोण पर रख कर लटकाना चाहिए। यदि दो राष्ट्रीय झंडे प्रदर्शित किए जा रहे हैं तो उल्टी दिशा में रखना चाहिए, उनके फहराव करीब होना चाहिए और उन्हें पूरी तरह फैलाना चाहिए। झंडे का प्रयोग किसी भी मेज, मंच या भवनों, या किसी घेराव को ढकने के लिए नहीं करना चाहिए।

अन्य देशों के साथ

जब राष्ट्रीय ध्वज किसी कम्पनी में अन्य देशों के ध्वजों के साथ बाहर खुले में फहराया जा रहा हो तो उसके लिए भी अनेक नियमों का पालन करना होगा। उसे हमेशा सम्मान दिया जाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि झंडा सबसे दाईं ओर (प्रेक्षकों के लिए बाईं ओर) हो। लाटिन वर्णमाला के अनुसार अन्य देशों के झंडे व्यवस्थित होने चाहिए। सभी झंडे लगभग एक ही आकार के होने चाहिए, कोई भी ध्वज भारतीय ध्वज की तुलना में बड़ा नहीं होना चाहिए। प्रत्येक देश का झंडा एक अलग स्तम्भ पर होना चाहिए, किसी भी देश का राष्ट्रीय ध्वज एक के ऊपर एक, एक ही स्तम्भ पर फहराना नहीं चाहिए। ऐसे समय में भारतीय ध्वज को शुरू में, अंत में रखा जाए और वर्णक्रम में अन्य देशों के साथ भी रखा जाए। यदि झंडों को गोलाकार में फहराना हो तो राष्ट्रीय ध्वज को चक्र के शुरुआत में रख कर अन्य देशों के झंडे को दक्षिणावर्त तरीके से रखा जाना चाहिए, जब तक कि कोई ध्वज राष्ट्रीय ध्वज के बगल में न आ जाए। भारत का राष्ट्रीय ध्वज हमेशा पहले फहराया जाना चाहिए और सबसे बाद में उतारा जाना चाहिए।

जब झंडे को गुणा चिह्न के आकार में रखा जाता है तो भारतीय ध्वज को सामने रखना चाहिए और अन्य ध्वजों को दाईं ओर (प्रेक्षकों के लिए बाईं ओर) होना चाहिए। जब संयुक्त राष्ट्र का ध्वज भारतीय ध्वज के साथ फहराया जा रहा है, तो उसे दोनों तरफ प्रदर्शित किया जा सकता है। सामान्य तौर पर ध्वज को दिशा के अनुसार सबसे दाईं ओर फहराया जाता है।

गैर राष्ट्रीय झंडों के साथ

IndiaFlagNonNational.png

जब झंडा अन्य झंडों के साथ फहराया जा रहा हो, जैसे कॉर्पोरेट झंडे, विज्ञापन के बैनर हों तो नियमानुसार अन्य झंडे अलग स्तंभों पर हैं तो राष्ट्रीय झंडा बीच में होना चाहिए, या प्रेक्षकों के लिए सबसे बाईं ओर होना चाहिए या अन्य झंडों से एक चौडाई ऊंची होनी चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज का स्तम्भ अन्य स्तंभों से आगे होना चाहिए, यदि ये एक ही समूह में हैं तो सबसे ऊपर होना चाहिए। यदि झंडे को अन्य झंडों के साथ जुलूस में ले जाया जा रहा हो तो झंडे को जुलूस में सबसे आगे होना चाहिए, यदि इसे कई झंडों के साथ ले जाया जा रहा है तो इसे जुलूस में सबसे आगे होना चाहिए।

घर के अंदर प्रदर्शित झंडा

जब झंडा किसी बंद कमरे में, सार्वजनिक बैठकों में या किसी भी प्रकार के सम्मेलनों में, प्रदर्शित किया जाता है तो दाईं ओर (प्रेक्षकों के बाईं ओर) रखा जाना चाहिए क्योंकि यह स्थान अधिकारिक होता है। जब झंडा हॉल या अन्य बैठक में एक वक्ता के बगल में प्रदर्शित किया जा रहा हो तो यह वक्ता के दाहिने हाथ पर रखा जाना चाहिए। जब ये हॉल के अन्य जगह पर प्रदर्शित किया जाता है, तो उसे दर्शकों के दाहिने ओर रखा जाना चाहिए।

IndiaFlagIndoors.png

भगवा पट्टी को ऊपर रखते हुए इस ध्वज को पूरी तरह से फैला कर प्रदर्शित करना चाहिए। यदि ध्वज को मंच के पीछे की दीवार पर लंब में लटका दिया गया है तो, भगवा पट्टी को ऊपर रखते हुए दर्शेकों के सामने रखना चाहिए ताकि शीर्ष ऊपर की ओर हो।

परेड और समारोह

यदि झंडा किसी जुलूस या परेड में अन्य झंडे या झंडों के साथ ले जाया जा रहा है तो, झंडे को जुलूस के दाहीनें ओर या सबसे आगे बीच में रखना चाहिए। झंडा किसी मूर्ति या स्मारक, या पट्टिका के अनावरण के समय एक विशिष्टता को लिए रहता है, पर उसे किसी वस्तु को ढकने के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए। सम्मान के चिह्न के रूप में इसे किसी व्यक्ति या वस्तु को ढंकना नहीं चाहिए। पलटन के रंगों, संगठनात्मक या संस्थागत झंडों को सम्मान के चिह्न रूप में ढका जा सकता है।

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किसी समारोह में फहराते समय या झंडे को उतारते समय या झंडा किसी परेड से गुजर रहा है या किसी समीक्षा के दौरान, सभी उपस्थित व्यक्तियों को ध्वज का सामना करना चाहिए और ध्यान से खड़े होना चाहिए। वर्दी पहने लोगों को उपयुक्त सलामी प्रस्तुत करनी चाहिए। जब झंडा स्तम्भ से गुजर रहा हो तो, लोगों को ध्यान से खड़े होना चाहिए या सलामी देनी चाहिए। एक गणमान्य अतिथि को सिर के पोशाक को छोड़ कर सलामी लेनी चाहिए। झंडा-वंदन, राष्ट्रीय गान के साथ लिया जाना चाहिए।

वाहनों पर प्रदर्शन

वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज उड़ान के लिए विशेषाधिकार होते हैं, राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, राज्यपाल, और उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रीमंडल के सदस्य और भारतीय संसद के कनिष्ठ मंत्रीमंडल के सदस्य, राज्य विधानसभाओं के सदस्य, लोकसभा के वक्ताओं और राज्य विधान सभाओं के सदस्यों, राज्य सभा के अध्यक्षों और राज्य के विधान सभा परिषद के सदस्य, भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और जल सेना, थल सेना और नौ सेना के अधिकारिकयों को जो ध्वज श्रेणीं में आते हैं, को ही अधिकार प्राप्त हैं। वे अपनी कारों पर जब भी वे जरुरी समझे झंडा प्रर्दशित कर सकते हैं। झंडे को एक निश्चित स्थान से प्रर्दशित करना चाहिए, जो कार के बोनेट के बीच में दृढ़ हो या कार के आगे दाईं तरफ रखा जाना चाहिए। जब सरकार द्वारा प्रदान किए गए कार में कोई विदेशी गणमान्य अतिथि यात्रा कर रहा है तो, हमारा झंडा कार के दाईं ओर प्रवाहित होना चाहिए और विदेश का झंडा बाईं ओर उड़ता होना चाहिए।

झंडे को विमान पर प्रदर्शित करना चाहिए यदि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर जा रहे हों। राष्ट्रीय ध्वज के साथ, अन्य देश का झंडा जहां वे जा रहे हैं या उस देश का झंडा जहां यात्रा के बीच में विराम के लिए ठहरा जाता है, उस देश के झंडे को भी शिष्टाचार और सद्भावना के संकेत के रूप में प्रवाहित किया जा सकता है। जब राष्ट्रपति भारत के दौरे पर हैं, तो झंडे को पोतारोहण करना होगा जहां से वे चढ़ते या उतरते हैं। जब राष्ट्रपति विशेष रेलगाड़ी से देश के भीतर यात्रा कर रहें हों तो झंडा स्टेशन के प्लेटफार्म का सामना करते हुए चालाक के डिब्बे से लगा रहना चाहिए जहां से ट्रेन चलती हैं। झंडा केवल तभी प्रवाहित किया जाएगा जब विशेष ट्रेन स्थिर है, या जब उस स्टेशन पर आ रही हो जहां उसे रुकना हो।

झंडे को उतारना

शोक के समय, राष्ट्रपति के निर्देश पर, उनके द्वारा बताये गए समय तक झंडा आधा प्रवाहित होना चाहिए। जब झंडे को आधा झुका कर फहराना क है तो पहले झंडे को शीर्ष तक बढ़ा कर फिर आधे तक झुकाना चाहिए। सूर्यास्त से पहले या उचित समय पर, झंडा पहले शीर्ष तक बढ़ा कर फिर उसे उतारना चाहिए। केवल भारतीय ध्वज आधा झुका रहेगा जबकि अन्य झंडे सामान्य ऊंचाई पर रहेंगे।

समस्त भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्रियों की मृत्यु पर झंडा आधा झुका रहेगा। लोक सभा के अध्यक्ष या भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के शोक के समय झंडा दिल्ली में झुकाया जाता है और केन्द्रीय मंत्रिमंडल मंत्री के समय दिल्ली में और राज्य की राजधानियों में भी झुकाया जाता है। राज्य मंत्री के निधन पर शोकस्वरूप मात्र दिल्ली में ही झुकाया जाता है। राज्य के राज्यपाल, उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के लिए राज्य और घटक राज्यों में झुकाया जाता है। यदि किसी भी गणमान्य अतिथि के मरने की सूचना दोपहर में प्राप्त होती है, यदि अंतिम संस्कार नहीं हुए हैं तो ऊपर बताये गए स्थानों में दूसरे दिन भी झंडा आधा फहराया जाएगा। अंतिम संस्कार के स्थान पर भी झंडा आधा फहराया जाएगा।

गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती, राष्ट्रीय सप्ताह (६ से १३ अप्रैल), किसी भी राज्य के वर्षगाँठ या राष्ट्रीय आनन्द के दिन, किसी भी अन्य विशेष दिन, भारत सरकार द्वारा निर्दिष्ट किये गए दिन पर मृतक के आवास को छोड़कर झंडे को आधा झुकाना नहीं चाहिए। यदि शव को शोक की अवधि की समाप्ति से पहले हटा दिया जाता है तो ध्वज को पूर्ण मस्तूल स्थिति में उठाया जाना चाहिए। किसी विदेशी गणमान्य व्यक्तियों की मृत्यु पर गृह मंत्रालय से विशेष निर्देश से राज्य में शोक का पालन किया जाएगा। हालांकि, किसी भी विदेश के प्रमुख, या सरकार के प्रमुख की मृत्यु पर, उस देश के प्रत्यायित भारतीय मिशन उपर्युक्त दिनों में राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकते हैं। राज्य के अवसरों, सेना, केन्द्रीय अर्ध सैनिक बलों की अन्तेय्ष्टि पर, झंडे के भगवा पट्टी को शीर्ष पर रखकर टिकटी या ताबूत को ढक देना चाहिए। ध्वज को कब्र में नीचे नहीं उतारना चाहिए या चिता में जलाना नहीं चाहिए।

निपटान

जब झंडा क्षतिग्रस्त है या मैला हो गया है तो उसे अलग या निरादरपूर्ण ढंग से नहीं रखना चाहिए, झंडे की गरिमा के अनुरूप विसर्जित / नष्ट कर देना चाहिए या जला देना चाहिए। तिरंगे को नष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका है, उसका गंगा में विसर्जन करना या उचित सम्मान के साथ दफना देना।

भारतीय तिरंगे का इतिहास


"सभी राष्‍ट्रों के लिए एक ध्‍वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान न्‍यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्‍ट करना पाप होगा। ध्‍वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्‍व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्‍वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्‍लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्‍द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है।"

"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्‍यूस, पारसी और अन्‍य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्‍वज को मान्‍यता दें और इसके लिए मर मिटें।"

- महात्‍मा गांधी

प्रत्‍येक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र का अपना एक ध्‍वज होता है। यह एक स्‍वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज की अभिकल्‍पना पिंगली वैंकैयानन्‍द ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्‍वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इसे 15 अगस्‍त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्‍चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ‘’तिरंगे’’ का अर्थ भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज है।

भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की प‍ट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्‍वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्‍य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्‍तंभ पर बना हुआ है। इसका व्‍यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।

तिरंगे का विकास

यह जानना अत्‍यंत रोचक है कि हमारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्‍वतंत्रता के राष्‍ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्‍यता दी गई। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा। एक रूप से यह राष्‍ट्र में राजनैतिक विकास को दर्शाता है। हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं:

1906 में भारत का गैर आधिकारिक ध्‍वज

1907 में भीका‍जीकामा द्वारा फहराया गया बर्लिन समिति का ध्‍वज

इस ध्‍वज को 1917 में गघरेलू शासन आंदोलन के दौरान अपनाया गया

इस ध्‍वज को 1921 में गैर अधिकारिक रूप से अपनाया गया

इस ध्‍वज को 1931 में अपनाया गया। यह ध्‍वज भारतीय राष्‍ट्रीय सेना का संग्राम चिन्‍ह भी था।

भारत का वर्तमान तिरंगा ध्‍वज

प्रथम राष्‍ट्रीय ध्‍वज 7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्‍वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।

द्वितीय ध्‍वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्‍वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्‍तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्‍वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।

तृतीय ध्‍वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्‍वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्‍तऋषि के अभिविन्‍यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्‍व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।

वर्ष 1931 ध्‍वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्‍वज को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पारित किया गया । यह ध्‍वज जो वर्तमान स्‍वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। तथापि यह स्‍पष्‍ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्‍प्रदायिक महत्‍व नहीं था और इसकी व्‍याख्‍या इस प्रकार की जानी थी।

22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्‍त भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया। स्‍वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्‍व बना रहा। केवल ध्‍वज में चलते हुए चरखे के स्‍थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्‍वज अंतत: स्‍वतंत्र भारत का तिरंगा ध्‍वज बना।

ध्‍वज के रंग

भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्‍य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।

चक्र

इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्‍यु है।

ध्‍वज संहिता

26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्‍वज संहिता में संशोधन किया गया और स्‍वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्‍ट‍री में न केवल राष्‍ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्‍ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है। बशर्ते कि वे ध्‍वज की संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्‍वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्‍ट्रीय ध्‍वज का सामान्‍य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्‍थानों आदि के सदस्‍यों द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्‍द्रीय और राज्‍य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।

26 जनवरी 2002 विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्‍वज को किस प्रकार फहराया जाए:

क्‍या करें

  • राष्‍ट्रीय ध्‍वज को शैक्षिक संस्‍थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्‍काउट शिविरों आदि) में ध्‍वज को सम्‍मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्‍वज आरोहण में निष्‍ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
  • किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्‍थान के सदस्‍य द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज का अरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्‍यथा राष्‍ट्रीय ध्‍वज के मान सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
  • नई संहिता की धारा 2 में सभी निजी नागरिकों अपने परिसरों में ध्‍वज फहराने का अधिकार देना स्‍वीकार किया गया है।

क्‍या न करें

  • इस ध्‍वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्‍त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्‍त तक फहराया जाना चाहिए।
  • इस ध्‍वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्‍पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
  • किसी अन्‍य ध्‍वज या ध्‍वज पट्ट को हमारे ध्‍वज से ऊंचे स्‍थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्‍वज को वंदनवार, ध्‍वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी ही सरकार और मंत्रियों के खिलाफ खड़े हुए विधूड़ी



जयपुर.संसदीय सचिव राजेंद्र सिंह विधूड़ी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी ही सरकार और मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विधूड़ी ने सोमवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि हम तीन विधायकों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ रथयात्रा निकालने की घोषणा की तो एक साजिश के तहत हमारी छवि खराब करने का षड्यंत्र किया गया।


चित्तौड़गढ़ के प्रभारी मंत्री और ऊपर बैठे लोगों ने बेगूं प्रधान को मोहरा बनाकर मेरे पर 20 लाख रुपए लेने का झूठा आरोप लगवाया। अब प्रधान खुद भ्रष्टाचार के मामले में फंस गई है। प्रधान को एसीबी अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही है? एसीबी के मुखिया खुद मुख्यमंत्री हैं, फिर भी किसके इशारे पर प्रधान को बचाया जा रहा है? भ्रष्टाचार में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष को जांच कमेटी बनाने की क्या जरूरत है?

कमेटी तो लीपापोती के लिए बनाई जाती है। उन्होंने कहा कि प्रतापसिंह, रघु शर्मा और मैंने सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाई थी। हम सिस्टम के खिलाफ बोल नहीं सके, इसके लिए हमारे खिलाफ साजिश की गई। मैं सोनिया गांधी को सचाई नहीं बता सकूं, इसके लिए मुझ पर आरोप लगाने के लिए प्रधान का इस्तेमाल किया गया। इस मुद्दे के बाद भ्रष्टाचार के और भी मुद्दे उठेंगे। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो फिर यात्रा निकालेंगे।

भरतसिंह की शह पर दबाए घोटाले

चित्तौड़गढ़ जिले में नरेगा में भारी भ्रष्टाचार हुआ। उस समय के ग्रामीण विकास मंत्री भरत सिंह की शह पर उन सब घोटालों को दबा दिया। इन घोटालों के लिए तत्कालीन कलेक्टर समित शर्मा जिम्मेदार है। मैंने भरत सिंह का विरोध किया था, इसलिए उसने जिला प्रभारी की हैसियत से मेरे खिलाफ प्रधान का इस्तेमाल किया।

डॉ. जितेंद्र ने 2003 में गुर्जर आरक्षण का विरोध किया

बेगूं प्रधान का बिजली चोरी का मामला बना, लेकिन ऊर्जा मंत्री ने रिपोर्ट बदलवा दी। मैं भी गुर्जर समाज की राजनीति करता हूं, इसलिए डॉ. जितेंद्र सिंह ने डाह रखते हुए रिपोर्ट बदलवाई। ये वही जितेंद्र सिंह हैं, जिन्होंने 2002-03 में सचिवालय में बयान दिया था कि गुर्जरों को आरक्षण की जरूरत नहीं है।

डॉ. जितेंद्र उसी समय पद छोड़ देते तो आरक्षण के लिए गुर्जर समाज के 72 बेटों को कुर्बानी नहीं देनी पड़ती। इस मामले में डॉ. जितेंद्र सिंह से उनका पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क किया, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सके।

हमें सोनिया गांधी ने पद दिया है, किसी नेता का थेला उठाकर घूमने वालों में नहीं

उन्होंने कहा कि मुझे और रघु शर्मा को पद दिया है तो सोनिया गांधी ने दिया है। प्रताप सिंह खाचरियावास को भी मौका मिलना चाहिए था। हमारे पास नाम मात्र का पद है, कोई ताकत तो है नहीं। केवल लालबत्ती की गाड़ी है, इसकी मुझे चाह नहीं है।

हम कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी व सोनिया गांधी के वफादार हैं। हम किसी व्यक्ति के वफादार नहीं हैं। हम किसी नेता का थेला उठाने वाले और चारों तरफ दुम हिलाते घूमने वालों में नहीं हैं। हम सीधे हाईकमान से जुड़े हैं, प्रदेश में सीधे हाईकमान से जुड़े लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है, उनके काम नहीं हो रहे हैं।

पहली बार दिखा 'चोरी' का यह नया तरीका, जिसने भी देखा सोच में पड़ गया!




जयपुर.राजापार्क इलाके में एक घर में मीटर के सर्किट में डिवाइस लगाकर रिमोट से बिजली चोरी करने का मामला पकड़ में आया है। बिजली कंपनी के एक्सईएन विनय शर्मा व उनकी टीम ने मीटर जब्त कर लैब में उपभोक्ता के सामने ही जांच करवाई तो यह खुलासा हुआ। शहर में इस तरीके से बिजली चोरी का यह पहला मामला है।

मीटर लैब की रिपोर्ट आने के बाद इंजीनियरों ने सोमवार को सतीश केशोट (कनेक्शन उपभोक्ता आनंद किशोर केशोट) के खिलाफ बिजली चोरी निरोधक पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज कराया है। साथ ही उपभोक्ता पर डेढ़ लाख रु. से ज्यादा जुर्माना लगाने की तैयारी की जा रही है, जिस पर मंगलवार को फैसला होगा।

एईएन अनिल टोड़वाल ने बताया कि उपभोक्ता आनंद किशोर केशोट के नाम से 12 किलोवाट का घरेलू बिजली कनेक्शन है। एक्सईएन विनय शर्मा के नेतृत्व में गठित टीम ने कम उपभोग वाले मीटर की जांच की तो सतीश केशोट के मीटर की सील टूटी थी। मीटर बंद पाया गया तो लैब में भेजा गया और उपभोक्ता के सामने ही खोला गया, ताकि उपभोक्ता खुद के बचाव में झूठी दलील न दे सके।

'मीटरों की रीडिंग पर नजर रख रहे हैं। जिनकी रीडिंग में अचानक कमी आई है, उनकी जांच करवाई जाएगी। इसके अलावा ऐसे मामलों को पकड़ने का कोई और तरीका नहीं है।'

एसके सौंखिया, अधीक्षण अभियंता

ऐसे होती थी बिजली चोरी

उपभोक्ता ने अपने मीटर के रीडिंग बढ़ाने के काउंटर के सर्किट में 15 एमएम की डिवाइस लगा रखी थी। यह डिवाइस सेंसर के आधार पर रिमोट से संचालित होती थी। उपभोक्ता अपने बैडरूम से ही इस डिवाइस को संचालित करता था। उपभोक्ता अपनी इच्छानुसार मीटर को बंद व चालू कर देता था। इंजीनियरों ने आशंका जताई है कि मीटर ज्यादातर समय बंद ही रहता था।

अचानक उपभोग कम, तो हुई जांच

राजापार्क इलाके में इस बार गर्मियों में दो दर्जन से ज्यादा उपभोक्ताओं का बिजली उपभोग पिछले साल की तुलना में कम हो गया। इसके बाद एक्सईएन विनय शर्मा ने ऐसे संदेहास्पद केसों की जानकारी मंगवाई तथा उनकी जांच की। जिनमें से कुछ केसों में बिजली चोरी के मामले पाए गए।

बिजली चोर गिरोह सक्रिय

अब तक मीटर में डिवाइस लगा कर रिमोट से बिजली चोरी के मामले अलवर, भरतपुर व धौलपुर सर्किलों में बड़ी संख्या में पकड़ में आते रहे हैं। अब राजधानी के पॉश इलाकों के उपभोक्ताओं को कम यूनिट के बिल का लोभ देकर डिवाइस से बिजली चोरी लगाने का मामला सामने आने के बाद ऐसे गिरोह की सक्रियता की आशंका बढ़ गई है। इसको लेकर बिजली कंपनी के बिजली चोरी निरोधक थाने ने भी जांच तेज कर दी है।

कुरान का संदेश

रोज़ेदार की तलाशी फिर इफ्तार तोबा तोबा

दोस्तों कल्पना करो और सही सच जवाब देना एक मुस्लिम जिसके मुंह में रोजा हो और वोह किसी वी आई पी रोज़े अफ्तार में जहां रोजा इफ्तार के लियें बुलाया गया है वहां इफ्तार कार्ड अपने हाथ में लेकर लाइन में लगे ..अपना मोबाइल जमा कराए .....खुद की तलाशी लिवाये ..सिक्युरिटी जांच करवाए और फिर भीड़ में खोकर रोज़े इफ्तार में शामिल हो जहाँ से वोह इफ्तार कर वापस आये तो बताओ दोस्तों क्या यह इन जनाब का मुकम्मल रोजा इफ्तार है ऐसे लोगों और ऐसे रोज़े इफ्तार पार्टियों के लियें आप क्या पैगाम देंगे ...अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

भारत का विभाजन एक कडवा सच

भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना के आधार पर तैयार भारतीय स्वतंत्रा अधिनियम१९४७ के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में काहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगें और उनको ब्रितानी सरकार सत्ता सौंप देगी।[1] स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तानी डोमिनियन (बाद में इस्लामी जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को भारतीय यूनियन (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में नहीं गिना जाता है। (नेपाल और भूटान इस दौरान भी स्वतंत्र राज्य थे और इस बंटवारे से प्रभावित नहीं हुए।)

15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतंत्र राष्ट्र बने। लेकिन पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश वाइसराय लुइस माउंटबैटन कराची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले सके। इसलिए पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया जाता है।

भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 5 लाख[2] लोग मारे गए, और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली।


पृष्ठभूमि

भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में "फूट डालो और राज्य करो" की नीति का अनुसरण किया। उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा। उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति। 20वीं सदी आते-आते मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।

सन् 1906 में ढाका में बहुत से मुसलमान नेताओं ने मिलकर मुस्लिम लीग की स्थापना की। इन नेताओं का विचार था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम अधिकार उपलब्ध थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती थी। मुस्लिम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मांगें रखीं। 1930 में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इक़बाल ने एक भाषण में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई।[तथ्य वांछित] 1935 में सिंध प्रांत की विधान सभा ने भी यही मांग उठाई। इक़बाल और मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने मुहम्मद अली जिन्ना को इस मांग का समर्थन करने को कहा।[तथ्य वांछित] इस समय तक जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में लगते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि कांग्रेसी नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे। लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ़ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं

"हिन्दुओं और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज़ और साहित्य बिलकुल अलग-अलग हैं।.. एक राष्ट्र बहुमत में और दूसरा अल्पमत में, ऐसे दो राष्ट्रों को साथ बाँध कर रखने से असंतोष बढ़ कर रहेगा और अंत में ऐसे राज्य की बनावट का विनाश हो कर रहेगा।"[

हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के प्रबल विरोधी थे, लेकिन मानते थे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद हैं। 1937 में इलाहाबाद में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में एक भाषण में वीर सावरकर ने कहा था - आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान।[3] कांग्रेस के अधिकतर नेता पंथ-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के विरुद्ध थे। महात्मा गांधी का विश्वास था कि हिन्दू और मुसलमान साथ रह सकते हैं और उन्हें साथ रहना चाहिये। उन्होंने विभाजन का घोर विरोध किया: "मेरी पूरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं। ऐसे सिद्धांत का अनुमोदन करना मेरे लिए ईश्वर को नकारने के समान है।"[तथ्य वांछित] बहुत सालों तक गांधी और उनके अनुयायियों ने कोशिश की कि मुसलमान कांग्रेस को छोड़ कर न जाएं, और इस प्रक्रिया में हिन्दू और मुसलमान गरम दलों के नेता उनसे बहुत चिढ़ गए।

अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के प्रति शक को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में सिधी कार्यवाही दिवस मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे किये जिसमें करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए। ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में न आ जाए।

विभाजन की प्रक्रिया

भारत के विभाजन के ढांचे को '3 जून प्लान' या माउण्टबैटन योजना का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने 'भारतीय स्वतंत्रता कानून' (इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट) पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। इस समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ (देखें भारत का राजनैतिक एकीकरण)। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली।

संपत्ति का बंटवारा

ब्रिटिश भारत की संपत्ति को दोनों देशों के बीच बाँटा गया लेकिन यह प्रक्रिया बहुत लंबी खिंचने लगी। गांधीजी ने भारत सरकार पर दबाव डाला कि वह पाकिस्तान को धन जल्दी भेजे[तथ्य वांछित] जबकि इस समय तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरु हो चुका था, और दबाव बढ़ाने के लिए अनशन शुरु कर दिया। भारत सरकार को इस दबाव के आगे झुकना पड़ा और पाकिस्तान को धन भेजना पड़ा। नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के इस काम को उनकी हत्या करने का एक कारण बताया।[
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