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23 अगस्त 2012

न्यायपालिका मामले में राजीव चतुर्वेदी का आलेख पढिये जनाब


"1992 में नागुर बार एसोसिएसन के समारोह में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन. वेंकटचलैया बिफर पड़े थे. उन्होंने कहा था --- "मैं 90 जजों को जानता हूँ जो दारू और दावत के लिए वकीलों के घर शाम को आ धमकते हैं. मैं ऐसे जजों को भी जानता हूँ जो लालच और अवैध लाभ के लिए विदेशी दूतावासों के दरवाजों पर दस्तक देते घूमते हैं." यह नहीं कि न्याय पालिका के शीर्ष से संताप का यह स्वर पहली बार फूटा हो, पहले भी लोग यही कहते रहे हैं और आज भी यह क्रम जारी है. "न्यायपालिका में कुछ सड़े अंडे सडांध पैदा कर रहे हैं. न्यायिक विलम्ब और भ्रष्टाचार का परष्पर रिश्ता है. ---सोली सोराबजी (तत्कालीन ) एटोर्नी जनरल ऑफ इंडिया. "भ्रष्ट जजों पर मुकदमा चलाने के लिए ट्रिब्यूनल होना चाहिए . कोई जज तब तक सफल भ्रष्ट नहीं हो सकता जब तक उसके भ्रष्टाचार को वकीलों का सक्रीय सहयोग न हो." --जे.एस.वर्मा (तत्कालीन ) मुख्य न्याधीश सुप्रीम कोर्ट. "मुंबई के न्यायाधीश ने माफिया डोन छोटा शकील से 40 लाख रुपये लिए और वह अब फरार है. पुलिस को अब इस जे.डब्लू.सिंह नामक जज की तलाश है. हम उसकी गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगायेंगे."---मुंबई उच्चन्यायालय की खंड पीठ. आज की न्यायिक व्यवस्था पर इन तमाम "ख़ास लोगों" की टिप्पणीयाँ भी उतनी प्रमाणिक और सटीक नहीं हो सकतीं, जितनी देश के "आम आदमी" की राय. क्यों नहीं देश के जन -गण -मन से पूछा जाता है कि देश की न्याय व्यवस्था कैसी है ? अदालतों के गलियारों में फूलती दम और पिचकी जेब लिए वादकारी से पूछो कि वह कैसा न्याय किस कीमत पर भोगता है ? गाँव की सिकुडती झोपडी और शहर में वकील की बड़ी होती कोठी का परस्पर समानुपातिक रिश्ता है. सुना है न्याय की देवी की आँखें बंद हैं और यह भी सुना है कि वह देखने के लिए "कोंटेक्ट लेंस" लगाती है. है कोई कोंटेक्ट ?
जो मुंसिफी की परीक्षा में असफल हुआ वह भी वकालत करने लगता है. फिर चालू होता है चतुरता , चापलूसी और चालाकी का अद्भुत समीकरण. इस समीकरण का एक उपकरण है राजनीति. सभी का योग बना दो तो उच्च न्यायालय का जज बनने का संयोग विकसित होता है. इस संयोग में अभिषेक मनु सिंघवी का जज बनाने का नुस्खा भी शामिल है और एस.सी.माहेश्वरी जैसी जज बनाने की कई आढतें भी हैं. बहरहाल नारायण दत्त तिवारी और अभिषेक मनु सिंघवी जैसी प्रतिभाओं की "ख़ास" सेवा कर हाई कोर्ट का जज बनेवालों की फेहरिश्त शोध का विषय है. उच्च न्यायालय में न्याय के नाम पर जो हो रहा है जगजाहिर है. किस प्रक्रिया से स्थानीय वकील उसी उच्च न्यायालय में जज नियुक्त किये जा रहे हैं जहा वह दसियों साल वकालत कर रहे थे और वकीलों की गुटबाजी का हिस्सा थे. फिर उच्च न्यायालय के अधिकाँश जजों के बेटे -बेटी, भाई-भतीजे उसी उच्च न्यायालय में वकालत करते हैं और चालू होता है तेरा लड़का मेरी अदालत में और मेरा लड़का तेरी अदालत में का गारंटी फार्मूला. दूसरी ओर न्याय के इन गलियारों में कोई न्याय पाने नहीं आता यहाँ लोग मुकदमा जीतने आते हैं.
गुजरे साल "ओ.आर.जी. मार्ग" ने एक सर्वेक्षण किया था. देश के नागरिकों ने न्यायपालिका को भी भ्रष्ट माना और अंक तालिका में भ्रष्टाचार के लिए 5.4 अंक दिए.बेहमई की विधवाएं न्याय की गुहार आज तक कर ही रहीं है और फूलन देवी इस बीच दो बार सांसद हो कर ससम्मान संसदीय भाषा में स्वर्गवासी भी हो गयी. दस्यु सरगना मलखान सिंह सौ से अधिक मुकदमों में "बाइज्जत बारी" हो गया. मुकदमा चलाते-चलाते लाखू भाई पाठक मर गए और नरसिम्हा राव दोष मुक्त हो गए. भोपाल गैस काण्ड का क्या हश्र हुआ ? मुंबई के एक जज जे.डब्लू. सिंह के छोटा शकील से रिश्ते, उन्हें 40 लाख का लाभ दे देते हैं, बदले में जज साहब उस गिरोह के कुछ सदस्यों को जमानत दे देते हैं.
अदालतों की शब्दावली में "पैरोकार" बड़ा रहस्यमय शब्द है. जज साहब के सामने उनका पेशकार जब हाथ नीचे बढ़ा कर मुन्सीयों /वकीलों /वादकारियों से हाथ में जो लेता है उसे "पैरोकारी" और "कार्यवाही" कहा जाता है. यह "संज्ञेय अपराध" जज साहब की निगाहों के सामने जब हो रहा होता है तब वह रंगमंच के किसी मजे पात्र के जैसे जज साहब किसी फाइल को पढने का कार्यक्रम करने लगते हैं. दरअसल पैरोकारी से ही पेशकार शाम को मेंम साहब के पास तरकारी पहुंचाता है. 26 जनवरी 1997 को हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) में वहां के विधायक अशोक चंदेल ने सरेबाजार दो अबोध बच्चों सहित पांच लोगों को सरे बाज़ार गोलियों से भून दिया. हामीरपुर का अधिकार क्षेत्र इलाहाबाद उच्चन्यायालय को है जहाँ अशोक चंदेल की गिरफ्तारी रोकने की याचिका जब खारिज कर दी गयी तो उसने लखनऊ में "पैरोकारी" की और इसी पैरोकारी के प्रताप से उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के पीठासीन एक जज ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. इन जज साहब ने 5 बार अशोक चंदेल की गिरफ्तारी पर रोक लगाई. जब पाप का घड़ा भर गया तो मुख्य न्यायाधीश को अपने इस साथी जज के आचरण पर संदेह हुआ और अशोक चंदेल की गिरफ्तारी के आदेश हुए. 23 अक्टूबर 98 को अशोक चंदेल ने हमीरपुर के अतिरिक्त जिला जज आर.बी.लाल की अदालत में समर्पण किया. "पैरोकारी" का प्रताप यहाँ भी काम आया. जज आर.बी लाल ने बिना दूसरे पक्ष को सुने, बिना अभियुक्तों को जेल भेजे तत्काल जमानत देदी. आर.बी.लाल नामक इस जज को इसी हरकत के कारण 30 अक्टूबर 1998 को उच्चन्यायालय ने निलंबित कर दिया.
निर्मल यादव पंजाब एंड हरियाण उच्च न्यायलय की जज थीं उन पर आरोप यह था कि रिश्वत के लिए 15 लाख रूपए की पोटली उनके यहाँ भेजी गयी लेकिन घूस लेकर गया कर्मचारी भूलवश मिलते- जुलते नाम वाली एक अन्य महिला जज निर्मल जीत कौर के यहाँ 13 अगस्त' 08 को घूस दे आया. याह घूस हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल ने भिजवाई थी. न्यायमूर्ति निर्मल जीत कौर ने रिपोर्ट दर्ज करवा दी जिसकी विवेचना CBI ने की और अभियुक्त जज निर्मल यादव व अन्य के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल कर दिया . इस बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश ने जज निर्मल यादव की विभागीय जांच भी करवाई. यह जांच इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एच. एल. गोखले की अध्यक्षता में हुई. इस जांच समिति ने भी उनको भ्रष्टाचार का दोषी पाया और पड़ से हटाने की सिफारिश की. लेकिन फिर रहस्यमय तरीके से भारत के अटॉर्नी जनरल मिलन बनर्जी ने विधि मंत्रालय को यह मुकदमा वापस लेने की सलाह दी और आज कल यही निर्मल यादव उत्तराखंड उच्च न्यायलय की पीठासीन जज हैं....अब समझ लीजिए न्याय कैसा होता होगा ? " ----राजीव चतुर्वेदी

राजस्थान में आपदा का प्रबन्धन है या फिर नोकरशाहों का कुप्रबंधन है .

राजस्थान में आपदा का प्रबन्धन है या फिर नोकरशाहों का कुप्रबंधन है ..कुछ समझ नहीं आ रहा है ..राजस्थान में आपदा प्रबन्धन कानून है ..आपदा प्रबन्धन समितियां बनाई गयी है ..जिला ..सम्भाग और प्रबंध स्तर पर किसी भी आकस्मिक प्राक्रतिक प्रकोप के वक्त या दुर्घटना के वक्त परेशान न हो और तुरंत राहत कार्य शुरू हो जाए इसकी व्यवस्था राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कानून बनाकर की है .........लेकिन नोकरशाह अशोक गहलोत को डुबोने में लागे है और यही कारण है के अफसरशाहों के कुप्रबंध और नालायकी के चलते राजस्थान में अनावश्यक सरकार के राहत कार्यों पर उँगलियाँ उठ रही है ...........दोस्तों राजस्थान में आपदा राहत कानून के तहत प्रत्येक जिले ..सम्भाग और राजस्थान स्तर पर एक समिति का गठन किया गया है जिसका कार्य आपात स्थिति में राहत कार्यों को केसे किया जाए और क्या सुझाव है बाबत रखा गया है इसके कार्य सदस्यों की नियुक्ति उनके कर्तव्य भी कानून में परिभाषित किये गए है जिला कलेक्टरों ..सम्भागीय आयुक्त ..मुख्यसचिव को भी आवश्यक निर्देश है लेकिन अफ़सोस इस बात का है के अफसर शाह राजस्थान में प्राक्रतिक आपदा और अचानक दुर्घटना के लियें गम्भीर नहीं है यहाँ वर्ष के पूर्व ...गर्मी ..अंधी ..तूफान के पूर्व के सर्वे नहीं है ...समाजसेवकों और जनप्रतिनिधियों के साथ बैठकें आयोजित नहीं की गयी है .......हालत यह है के डूब वाला इलाका कोनसा है ..सडकें कहाँ टूटी है ..जर्जर इमारतें कोनसी है .राहत शिविर कहाँ लगेंगे ..सडकें केसे मरम्मत हों .......आकस्मिक दुर्घटना से निपटने के लियें फायर ब्रिगेड ...सिविल डिफेन्स ..स्काउट ..ऍन सी सी केडेट्स ..समाज सेवी संस्थाएं ..राजनितिक पार्टियों की तत्काल क्या ज़िम्मेदारी रहेगी और क्या प्राथमिकता रहेगी ....राहत के लियें खाने के पेकेट ..ठहरने के स्थान ...रस्से....नावें ..मोटर बोट ..हेलिकोप्टर ..अन्य राहत उपकरणों की क्या व्यवस्था होंगी इसका राजस्थान के किसी जिले या खुद मुख्यसचिव महोदय ने पोस्टमार्टम नहीं किया है जबकि राहत प्रबन्धन समितियों का गठन हो चूका है दो वर्षों में कितनी बैठकें हुईं जिला कलेक्टरों ने क्या कारगर कदम उठाये अगर हम देखेंगे तो अफसर शाही से नफरत होने लगेगी ..तो दोस्तों राजस्थान प्राक्रतिक आपदा से घिरा राज्य है यहाँ ..कभी ..आंधी ..कभी बरसात..कभी तूफ़ान ...कभी अकाल ..कभी बाढ़ ..कभी महामारी तो कभी बढ़ी दुर्थ्नाएं होती रहती है लेकिन अगर वक्त रहते इन हालातों को नहीं सुधार और आपदा प्रबन्धन समितियों का पुनर्गठन कर ज़िम्मेदार लोगों को उसमे नियुक्त नहीं किया तो यह अफसर शाह इस राजस्थान को डुबो देंगे और अगर ऐसा होने लगा तो फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सभी सकारात्मक कोशिशों पर पानी फिर जाएगा ...........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

तैयार हो जाइए एक नया ईमेल अकाउंट बनाने के लिए क्योंकि...



भोपाल। अगर आप जीमेल और फेसबुक नियमित तौर पर इस्तेमाल करते हैं, तो कभी-कभी लगता होगा कि इनके फीचर्स एक साथ मिल जाते तो कितना अच्छा होता। जाहिर है, इस तरह दो जगह लॉग-इन करने का झंझट खत्म हो जाता। अब इसी इच्छा को पूरा कर सकता है फ्लुएंट। कुछ ही महीनों में शुरू होने वाली यह एक ई-मेल सर्विस है, जिसका इनबॉक्स आपको कुछ-कुछ फेसबुक जैसा अहसास देगा। फिलहाल प्रायोगिक दौर में चल रहा यह मॉडल ई-मेल जैसी कम और टेक्स्टिंग वाली फील ज्यादा देगा।

रिप्लाई लिंक है खास : किसी मेल का जवाब देने के लिए अभी आपको पहले उसे खोलना पड़ता है, लेकिन फ्लुएंट में पूरा मैसेज नहीं खोलना पड़ेगा, बल्कि इनबॉक्स के दाएं तरफ दिए गए रिप्लाई लिंक पर क्लिक करके आप उस मेल का जवाब दे सकते हैं। देखा जाए, तो यह काफी कुछ फेसबुक की कमेंट सुविधा जैसा है।

नेवीगेशन बार : फ्लुएंट के इंटरफेस में बाएं तरफ ग्रे कलर की एक छोटी नेवीगेशन बार होगी। यहां यूजर्स को सेटिंग्स, ड्राफ्ट्स, स्टार्ट मैसेज, अटैचमेंट, लेबल और ऑल मेल जैसे विकल्प मिलेंगे। खास बात यह होगी कि बार में एक बटन पर क्लिक करने से तमाम अटैचमेंट्स की लिस्ट आ जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो फ्लुएंट में सारी ई-मेल्स की अटैच्ड फाइल्स को एक जगह इकट्ठा करके रखने की सुविधा होगी। इससे अटैचमेंट सर्च करने के लिए पूरा इनबॉक्स नहीं खंगालना पड़ेगा, बल्कि स्लाइड शो में सारे परिणाम दिखेंगे।

सर्च होगी अलग तरह से : फ्लुएंट में सर्च करना भी थोड़ा अलग होगा। दरअसल, यह ‘इंस्टेंट’ सर्च तकनीक केंद्रित है। ऊपरी तरफ दी गई सर्च बार पर एक लेटर टाइप करते ही ई-मेल में से उससे जुड़े परिणाम नजर आएंगे और फिर सर्च वर्ड के पूरे होने के साथ ही रिजल्ट्स सीमित हो जाएंगे।

अन्य फीचर्स : इसके अलावा जीमेल के नेटिव फीचर, टू डू लिस्ट को भी फ्लुएंट ने फॉर्मेट किया है और इसमें इसे इस्तेमाल करना व देखना आसान रहेगा। दूसरी ओर मल्टीपल ई-मेल अकाउंट्स वाले एक अकाउंट से ही यह देख पाएंगे कि दूसरे में कोई नया मैसेज लोड हुआ है या नहीं।

पैदल यात्रा की ऐसी धुन सवार कि 17 साल से नहीं देखा अपने परिवार का मुंह



जयपुर.पिछले 17 साल से पैदल यात्रा कर रही टोली के 20 सदस्य अपने परिवारवालों का चेहरा तक नहीं देख पाए। वे अपनों से इंटरनेट और डाक के जरिए संपर्क करते हैं। यात्रा का मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, स्कूलों में छात्र-छात्राओं को विश्व शांति, विश्व एकता, भाई-चारा, सद्भावना का संदेश देना और दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं पर घरेलू हिंसा, भ्रष्टाचार, आतंकवाद सहित सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों को जागृत करना है।


उत्तर प्रदेश के लखनऊ से 15 जून 1995 से शुरू हुई सद्भावना यात्रा गुरुवार को गुलाबी नगर पहुंची। टोली अब तक 2.48 लाख किमी. चल चुकी है। अब उसका उद्देश्य 3 लाख किमी पैदल यात्रा कर गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्डस में नाम दर्ज कराना है।

यह यात्रा युवा जागृति जनजागरण अन्तर्वेद सेवा संस्थान के प्रबंध निदेशक महेंद्र प्रताप, जितेंद्र मिश्रा और सदस्य अवध बिहारी लाल के नेतृत्व में आयोजित की जा रही है। यात्रा में 20 युवा सदस्यों सहित तीन महिलाएं शामिल हैं। ये सभी अविवाहित हैं। जितेंद्र ने बताया कि 17 साल में बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत, वर्मा, नेपाल, चाइना सहित भारत के अधिकांश राज्य का यात्रा कर चुके हैं।

महेंद्र प्रताप मिश्रा ने बताया कि लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में पुस्तक दी ह्यूमन स्टोरी ऑफ लांगेस्ट पदयात्रा के नाम से दर्ज हो चुकी है। यात्रा डाक्यूमेंट्री फिल्म के माध्यम से डिसकवरी चैनल पर प्रकाशित हो चुकी है। यात्रा के दौरान लोगों और स्कूली छात्रों के माध्यम से 2 करोड़ पौधे लगा चुके हैं।

घर से भागे शादीशुदा प्रेमी-प्रेमिका, पुलिस हिरासत में आते ही खाया ज़हर



रतलाम/जयपुर.जम्मूतवी एक्सप्रेस के एस-7 कोच में बैठे प्रेमी-प्रेमिका ने गुरुवार शाम जहर खा लिया। बाद में प्रेमिका ने दम तोड़ दिया। दोनों शादीशुदा हैं। जयपुर के शाहपुरा थाने के ग्राम लीलो की खेड़ी से 30 जून को भागे थे।

शाहपुरा पुलिस इन्हें पुणे के पास उर्ली से पकड़ कर बांद्रा टर्मिनस-जम्मूतवी एक्सप्रेस से ला रही थी। एएसआई जगदीशप्रसाद ने बताया कोटा जाते वक्त रतलाम से कुछ दूर स्थित अमरगढ़ रेलवे स्टेशन से पहले सुमन और फिर रामकिशन ने लघुशंका के लिए कहा।

महिला आरक्षक बिंदु शेखावत व यज्ञवीर दोनों को अलग-अलग टॉयलेट ले गए। अमरगढ़ में सुमन को उल्टी हुई और थोड़ी देर बाद रामकिशन भी उल्टी करने लगा। दोनों ने पुलिस को बताया उन्होंने चॉकलेट में जहर मिलाकर खा लिया है। पुलिस के साथ सुमन के देवर सरदार चौधरी और कैलाश चौधरी भी थे। रतलाम स्टेशन पर दोनों को उतारकर जिला अस्पताल लाया गया। यहां सुमन की मौत हो गई।

इंटरनेट सेंसरशिप में सरकार ने की खामियां


सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी ने 18 अगस्त से 21 अगस्त के बीच सरकार द्वारा इंटरनेट पर प्रतिबंधित की गईं 309 सामग्रियों का अध्ययन किया और सरकारी प्रक्रिया में कई तरह की कमियां पाईं। कुछ तो ऐसे यूआरएल को ही ब्लॉक कर दिया गया था जो कभी इंटरनेट पर थे ही नहीं।


सेंटर के प्रोग्राम मैनेजर प्रणेश प्रकाश कहते हैं, 'यह स्पष्ट है कि सूची को ध्यान से नहीं बनाया गया। अफवाहों रोकने के लिए प्रतिबंधित की गई कुछ पोस्टों में कुछ ऐसी पोस्ट भी शामिल थी जो कि अफवाहों के ही खिलाफ थीं। सूची में कुछ तो ऐसे आइटम भी शामिल थे जो की इंटरनेट पर मौजूद ही नहीं थे।'

जिन 309 पोस्टों को ब्लॉक करने के लिए सरकार द्वारा कहा गया उनमें कुछ यूआरएल, ट्विटर खाते, तस्वीरों में टैग, ब्लॉग पोस्ट और कुछ वेबसाइटें शामिल थी। इंटरनेट पर सेंसरशिप के सरकारी कदम पर प्रकाश ने कुछ कानूनी सवाल भी उठाए है। सेंटर की वेबसाइट पर पोस्ट एक लेख में प्रकाश कहते हैं, 'ब्लॉक किए गई कुछ सामग्रियों का कानून और नैतिक रूप से बचाव किया जा सकता है हालांकि कुछ पोस्टों को हटाया जाना जरूरी था।'

प्रकाश के मुताबिक भारतीय इंटरनेट सेवा प्रोवाइडर भी सरकार के इशारों पर कुछ ज्यादा ही जल्दी काम करते हैं। कई बार ऐसा भी हुआ है कि सरकार ने किसी खास यूआरएल को ब्लॉक करने के लिए कहा हो और आईएसपी ने पूरी वेबसाइट ही ब्लॉक कर दी हो। रिपोर्टों के मुताबिक एयरटेल ने कुछ शहरों में यूट्यूब के शॉर्ट यूआरएल youtu.be को पूरी तरह ही ब्लॉक कर दिया है। सरकार ने कुछ समाचार वेबसाइटों से लेखों को हटाने की भी गुजारिश की है।

वहीं इंटरनेट पर फैलाई जा रही नफरत की आग के बारे में सरकार ने तर्क दिया था कि अधिकतर संदेश पाकिस्तान से शुरू किए गए थे लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक बीस फीसदी से अधिक आक्रामक और हिंसक पोस्टों को हिंदू कट्टरवादी संगठनों की वेबसाइटों और ट्विटर और फेसबुक खातों से पोस्ट किया गया।

कुरान का सनदेश

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