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धोराजी (गुजरात)।सौराष्ट्र के धोराजी तहसील के पाटणवाव गांव में
ओसम पर्वत स्थित है। इस पर्वत का महाभारत की कथा मंे भी उल्लेख मिलता है,
क्योंकि इसका संबंध पांडवों से है।
इस पर्वत पर महाभारत के कई अवशेष भी मौजूद हैं। पांडव वनवास के दौरान ओसम पर्वत की गुफाओं में रुके थे। इस पर्वत से जुड़ा दिलचस्प तथ्य यह है कि यहीं पर भीम की आंख हिडम्बा नामक दैत्य कन्या से मिल गई थी। एक बार भीम व हिडम्बा के प्रेमालाप के दौरान हिडम्बा पर्वत के नीचे आ गिरी थी। इतनी ऊंचाई से नीचे गिरने पर हिडम्बा के शरीर की कई हड्डियां टूट कर पर्वत की तलहटी तक पहुंच गईं। इसी के चलते पर्वत के नीचे स्थित गांव का नाम हाडफोडी पड़ गया। आज भी यह गांव पर्वत की तलहटी में मौजूद है।
ओमस पर्वत पर पांडवों के विश्राम के कई सुबूत भी मिलते हैं। यहां पर पांडवों द्वारा निर्मित टपकेश्वर महादेव का मंदिर भी स्थित है। साथ ही मंदिर के पास एक कुंड भी है। इसके साथ ही यहां पर वह थाल भी मौजूद है, जिसमें भीम भोजन किया करते थे।
ओसम पर्वत महाभारत के समय मात्री माताजी छत्रेश्वरी माताजी के नाम से प्रचलित था। इस पर्वत की शिलाएं बहुत खतरनाक थीं। कुछ समय बाद पर्वत की कई चोटियां ‘ओम’ आकार में परिवर्तित हो गईं, जिससे इस पर्वत का नाम ओम+सम- ओसम पर्वत हो गया।
यहां प्रतिवर्ष भाद्र अमावस पर तीन दिवसीय मेला भरता है। इस मेले का आयोजन ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है
इस पर्वत पर महाभारत के कई अवशेष भी मौजूद हैं। पांडव वनवास के दौरान ओसम पर्वत की गुफाओं में रुके थे। इस पर्वत से जुड़ा दिलचस्प तथ्य यह है कि यहीं पर भीम की आंख हिडम्बा नामक दैत्य कन्या से मिल गई थी। एक बार भीम व हिडम्बा के प्रेमालाप के दौरान हिडम्बा पर्वत के नीचे आ गिरी थी। इतनी ऊंचाई से नीचे गिरने पर हिडम्बा के शरीर की कई हड्डियां टूट कर पर्वत की तलहटी तक पहुंच गईं। इसी के चलते पर्वत के नीचे स्थित गांव का नाम हाडफोडी पड़ गया। आज भी यह गांव पर्वत की तलहटी में मौजूद है।
ओमस पर्वत पर पांडवों के विश्राम के कई सुबूत भी मिलते हैं। यहां पर पांडवों द्वारा निर्मित टपकेश्वर महादेव का मंदिर भी स्थित है। साथ ही मंदिर के पास एक कुंड भी है। इसके साथ ही यहां पर वह थाल भी मौजूद है, जिसमें भीम भोजन किया करते थे।
ओसम पर्वत महाभारत के समय मात्री माताजी छत्रेश्वरी माताजी के नाम से प्रचलित था। इस पर्वत की शिलाएं बहुत खतरनाक थीं। कुछ समय बाद पर्वत की कई चोटियां ‘ओम’ आकार में परिवर्तित हो गईं, जिससे इस पर्वत का नाम ओम+सम- ओसम पर्वत हो गया।
यहां प्रतिवर्ष भाद्र अमावस पर तीन दिवसीय मेला भरता है। इस मेले का आयोजन ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है