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30 सितंबर 2012

आपकी कुंडली में पितृदोष है, तो करें ये आसान उपाय




जिस भी व्यक्ति को पितृ दोष होता है उसे जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार पितृ दोष सफलता न मिलने का कारण भी होता है। ज्योतिष के अनुसार पितृ दोष का एक प्रमुख कारण राहु व केतु भी होते हैं। पितृ दोष की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष उत्तम समय होता है। पितृ दोष शांंति के लिए कुछ साधारण टोटके इस प्रकार हैं-

- राहु की शांति के लिए शनिवार को तथा केतु की शांति के लिए मंगलवार का व्रत रखें।

- शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं।

- ब्रह्मभोज और पशुओं में कुत्ते को खाना खिलाने से केतु की शांति होती है।

- राहु दोष शांति के लिए शनिवार के दिन महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

- सोमवार को नागों के देवता भगवान शिव और विघ्र हरने वाले श्रीगणेश की आराधना करें।

- राहु-केतु के मंत्रों का जप करें।

- शनिवार को राहु की प्रसन्नता के लिए पूरे दिन नीले या काले कपड़े पहनें।

जानें गांधीजी के नाती-पोतों के शब्दों में


‘गांधी’ मतलब क्या? जानें गांधीजी के नाती-पोतों के शब्दों में
तुषार गांधी। ‘इनसे मिलिए, ये हैं - तुषार गांधी’। मुझे याद है जब भी कोई व्यक्ति यह कहकर किसी अन्य व्यक्ति से मेरा परिचय करवाता है तो इसके जवाब में ‘हैलो’ या दूसरा कोई सामान्य अभिवादन ही मिलता है। लेकिन कुछ विशेष मौकों पर जब मेरी पहचान ‘गांधी के पपौत्र’ के रूप में होती है तो सामने वाला व्यक्ति मेरा हाथ तुरंत नए उत्साह से पकड़ लेता है। ‘ओह हैलो’ शब्द के साथ उसकी आंखों में अचानक ही आश्चर्य और सम्मान की भावना नजर आती है। लाजिमी है यह प्रतिक्रिया आपको आनंदित और गर्वित कर देने वाली है।


अपने पूर्वज की प्रसिद्धि के कारण आपको बहुत सम्मान मिले तो सचमुच में यह गर्व की ही बात है। साथ ही साथ आपको यह वास्तविकता भी स्वीकारनी होगी कि यह मान-सम्मान आपको स्वत: ही मिला है। इसे आपने अपनी मेहनत से हासिल नहीं किया। आपको सम्मान मिलता है तो सिर्फ और सिर्फ इसलिए कि आप एक ख्यातिनाम व्यक्ति के परिवार में जन्मे हो। इस सतत प्रकाशपुंज में रहकर कई व्यक्ति बिखर भी जाते हैं, लेकिन मुझे अपने वंश के लिए बचपन से ही गर्व था, परिवार के आदर्शो ने मुझे बिखरने नहीं दिया। 


मोहनदास करमचंद गांधी, महात्मा की हत्या के बाद मेरा जन्म हुआ। इसलिए मैं प्रत्यक्ष उनके संपर्क में नहीं आ सका। जब मेरा जन्म हुआ, तब मेरे दादा, मणिलाल-महात्मा और कस्तूरबा के दूसरे पुत्र का भी देहांत हो चुका था। इसलिए मेरे पिता अरुण, दादी सुशीला और बुआ इला द्वारा महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े हजारों किस्से सुन-सुनकर मैं बड़ा हुआ हूं। 


बचपन में मैं ये बातें सुनकर कभी-कभी बोर हो जाता था और मांग करता था कि मुझे भी दूसरे बच्चों की तरह कोई परिकथा सुनाओ। लेकिन आज मैं उन सभी का आभारी हूं, क्योंकि आज जब भी मैं वे बातें याद करता हूं तो लगता है कि उन्हीं बातों के चलते ही आज मैं उन सभी को अच्छी तरह से समझ सका हूं। उन्हीं बातों-कहानियों ने मेरी अब तक की प्रसिद्धि को संभाले रखा है और काफी हद तक समृद्ध जीवन के लिए वे मेरी सहायक हैं।


मेरे दादा-दादी दक्षिण अफ्रीका में ही रहते थे और बापूजी (महात्मा गांधी) फिनिक्स में। मेरे पिता और उनकी दो बहनों का जन्म और लालन-पालन भी वहीं हुआ। बा (कस्तूरबा गांधी) और बापूजी भारत आ गए। मेरे पिता और उनकी छोटी बहन इला ने बा और बापूजी के साथ सेवाग्राम आश्रम में काफी समय व्यतीत किया। इसलिए मुझे उनके द्वारा सुनाई जाने वाली बातों में अधिकतर उसी समय की यादांे का जिक्र रहा करता था। इसमें मेरे पिता और बुआ इला की दो बातंे मेरे दिमाग पर हमेशा के लिए छाप छोड़ गई हैं।


एक बार वे अपने दादा-दादी के साथ विदर्भ में वर्धा के पास स्थित बापूजी के आश्रम सेवाग्राम में रुके थे। मेरे पिताजी को लगभग पूरे दिन पढ़ाई करनी पड़ती और शाम को बापूजी से चेक करवाना होता था। इसके लिए उन्हें एक पेंसिल और एक नोटबुक दी गई थी। एक बार मेरे पिताजी दो इंच की पंेसिल से तंग आ गए और उन्होंने बापूजी से नई पेंसिल की मांग की। बापूजी ने नई पेंसिल के लिए मना कर दिया और कहा, ‘इतनी पेंसिल तो पूरे एक सप्ताह तक चल सकती है।’ नई पेंसिल के लिए दो दिनों तक काफी धूम मचाने के बाद आखिरकार मेरे पिताजी ने पेंसिल का वह टुकड़ा फेंक दिया, इस आशा से कि अब तो नई पेंसिल आ ही जाएगी।


जब बापूजी ने उनसे पेंसिल के बारे में पूछा तो पिताजी ने स्वीकार किया कि हां, मैंने वह पेंसिल फेंक दी है। बापूजी ने उनसे वह पेंसिल खोजकर लाने को कहा। पिताजी ने पेंसिल खोजने की काफी कोशिश की, लेकिन नहीं मिली और उन्होंने बापूजी से कह दिया कि पेंसिल नहीं मिल रही। तब खुद बापूजी पेंसिल खोजने के अभियान में पिताजी के साथ जुड़ गए और आखिरकार एक घंटे की मेहनत के बाद घर के पीछे स्थित झाड़ियों में से पेंसिल का टुकड़ा खोज निकाला गया।


आठ वर्ष का बालक अपने दादा के इस व्यवहार को समझने में असमर्थ था। नित्यक्रम की तरह शाम को बापूजी ने पिताजी को अपने पास बुलाया और समझाया, ‘अरुण, तुम्हें पता है पेंसिल किस तरह बनती है। अगर दुनिया के सभी बच्चे इस तरह आधी उपयोग की गई पेंसिल फेंकना शुरू कर दें तो सोचो कि दुनिया के सभी बच्चों के लिए पेंसिल बनाने में कितनी खदानें खोदनी पड़ेगीं और उसके लिए कितने वृक्ष काटने पड़ेंगे।’ पर्यावरण की रक्षा के विषय में बापूजी ने मेरे पिता को ऐसा पाठ सिखाया जो पुस्तक में लिखी बात से ज्यादा असरकारक थी।


दूसरा प्रसंग... मेरी बुआ इला से जुड़ा हुआ है। जब बा और बापूजी दक्षिण अफ्रीका से सेवाग्राम आए तब मेरी बुआ की 6 वर्ष की थीं। एक शाम को रोजाना की प्रार्थनासभा में आश्रमवासियों को कुछ कहने की छूट दी गई। बुआ खड़ी हुईं और उन्हांेने सबसे अपनी बात सुनने को कहा, ‘बापूजी, मुझे लगता है कि आपके इस आश्रम का नाम ‘सेवाग्राम’ के बदले ‘कोलाग्राम’ कर देना चाहिए। बापूजी ने आश्चर्य के साथ इसका कारण पूछा। जवाब में इला बुआ ने कहा, मैं इस आश्रम से पिछले 7 दिनों से हूं। जब भी मुझे भूख लगती है और मैं कुछ खाने के लिए मांगती हूं तो तुरंत ही मुझे रोटी के साथ कद्दू दे दिया जाता है।’


बापूजी को इस बात का पता नहीं था, उन्होंने रसोईए को बुलवाया और उससे मात्र कद्दू की सब्जी पकाने का कारण पूछा। रसोईए ने जवाब दिया, मुझे तो बगीचा संभालने वाला जो पकाने के लिए देता है, मैं वही पकाता हूं। यह बात सुन बापूजी ने बगीचे के माली को बुलाया और उससे सवाल किया कि तुम हमेशा कद्दू ही पकाने के लिए क्यों देते हो?


माली ने जवाब दिया, ‘बापूजी, आप ही ने तो कहा है कि अपने आश्रम की जमीन पर जो उगता है, वही खाया जाए। हमारे यहां मात्र कद्दू ही ऊगता है।’ बापूजी ने माली से सारी जानकारियां जुटाईं कि आश्रम की जमीन में ऐसा क्या खास है कि सिर्फ और सिर्फ कद्दू ही ऊगता है। सभी जानते हैं कि कद्दू की पैदावार में अधिक मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। और जब एक ही जगह बहुत सारे लोगांे के भोजन की व्यवस्था करनी हो तो कद्दू से अच्छा विकल्प और क्या हो सकता है?


लेकिन अगर किसी को टमाटर, फूल गोभी या हरी सब्जियां या मशरूम उगाना हो तो उसमें काफी मेहनत लगती है। इस बात से एक गूढ़ अर्थ भी निकाला जा सकता है। आज के गांधीवादियों ने बापूजी की विचारधारा को इसी तरह कद्दू में कैद कर रखा है, यानी की वे गांधीवाद के नाम पर सिर्फ कद्दू ही उगा रहे हैं। गांधीवादियों के मतानुसार गांधीवाद मतलब कि खादी पहनना, शाकाहार करना और २ अक्टूबर व 30 जनवरी को आयोजित होने वाले गांधीजी से संबंधित कार्यक्रमों में उपस्थित दर्ज करवाने तक ही सीमित है।


आज भी आपको किसी गांधीवादी संस्था में काम करना हो तो आपको खादी ही पहननी होगी और शाकाहार ही लेना होगा। 


गांधीजी को समझने के लिए खादी धारण करना और शाकाहार लेना इतना ही? 


जब मैं छोटा था, तब एक बार मेरी दादीजी ने कहा था, ‘तुषार, अब तुम्हंे तय करना है कि गांधीजी की विरासत को तुम भार समझकर नीचे पटक दोगे या गौरवरूप मानकर इससे अपने जीवन को समृद्ध करोगे।’ साथ ही साथ उन्होंने मुझे चेतावनी भी दी कि ‘विरासत हमेशा ही पूर्ण जिम्मेदारी मांगेगी और तुम्हें इस पर खरा उतरना है’। दादी की सलाह ने इस विरासत को समझने और उसके प्रति जिम्मेदार बनने में मुझे बहुत सहायता की।


कई बार ऐसा होता है कि लोग मुझमें बापूजी को देखने का प्रयास करते हैं और फिर निराश हो जाते हैं। तब मुझे उन्हें समझाना पड़ता है कि मैं महात्मा का सिर्फ वारसदार हूं, खुद महात्मा नहीं। गांधीजी को यह महानता विरासत में नहीं मिली थी। अपने कार्यो से उन्होंने यह प्राप्त की थी। सिर्फ इसलिए कि हमारी रगों में उनका लहू दौड़ रहा है तो हम भी महात्मा बन जाएंगे, ऐसी अपेक्षा किसी को नहीं रखनी चाहिए।


मैं अपनी जिंदगी में बापूजी की एक उक्ति का अनुसरण करता हूं, ‘अगर आपको आपके कार्यो को छुपाना पड़े तो इसका मतलब है कि वह कार्य गलत है।’ मुझे लगता है कि इसके चलते ही मैं अपना जीवन अपनी इच्छानुसार जी सका और अपने वंश के प्रति सरल रह सका हूं।

गर्भ ठहरने पर महबूबा ने दिखाई मर्दानगी, बारात लेकर पहुंच गई महबूब के घर




 

भंडरा/कैरो. झारखंड के गुमला जिला स्थित आकाशी निवासी असीम अंसारी की पुत्री रवीना खातून (18)और नरौली निवासी रब्बूल अंसारी के पुत्र सलमान अंसारी (29) का पिछले एक वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। दोनों परिवारों के बीच नजदीकी रिश्तेदारी भी हैं जिसके कारण लड़का-लड़की एक दूसरे के घर आना करते थे। निकाह का झांसा देकर लड़के ने एक साल तक लड़की का यौन शोषण किया।

इस दौरान लड़की गर्भवती हो गई। लड़की द्वारा बार-बार निकाह किए जाने की बात को लड़के द्वारा टाला जाता रहा। निकाह से इंकार किए जाने पर सदर इस्लामिया द्वारा शनिवार को 10 बजे बैठक आहूत की गई। बैठक में लड़के के पक्ष से किसी के नहीं आने पर सदर इस्लामिया द्वारा निर्णय लिया गया कि लड़की बारात लेकर प्रेमी के घर जाएगी। शनिवार को शाम 4 बजे लड़की बारात लेकर प्रेमी के घर नरौली पहुंची।

जहां प्रेमी और उसके पिता फरार पाए गए। आए बारातियों ने लड़की को लड़के की मां रतीजा खातून के हाथों सौंप दिया। लड़की को रखने से इंकार करने पर ग्रामीणों ने गांव से हुक्का पानी बंद करने की धमकी दी। इस मौके पर नरौली मुखिया अरबिंद उरांव, आकाशी पंचायत सदस्य निराफुल निशा, कमिटी अध्यक्ष युसुफ अंसारी, सचिव मंजूर अंसारी, महताब अंसारी, शफीक अंसारी आदि ग्रामीण उपस्थित थे।

बस.. तब से श्मशान में ही बस गई मां




 
सीकर. शिवधाम धर्माणा श्मशान घाट। शवयात्रा आते ही एक पेड़ के नीचे बैठी 50 साल की महिला झट से उठकर लोगों की सेवा में जुट जाती है। कभी लोगों को पानी पिलाने लगती है। तो कभी अंतिम क्रिया के लिए लकड़ियां लाने में जुट जाती है, तो कभी चिता पर कांपते हाथों से लकड़ियां रखती है।


लोग हैरत में। किसी को लगता है शायद मृतक के परिवार की कोई रिश्तेदार होगी। तभी दूसरी शवयात्रा आती है तो यह महिला उधर चली जाती है। वहां भी इसी प्रकार की सेवा। पता किया तो चौंकाने वाली जानकारी मिली। इस बुजुर्ग महिला का नाम है राजू कंवर। पौने चार साल से यही उसकी दिनचर्या है। पूछने पर पता चला कि एक हादसे में काल का शिकार हुए 22 साल के जवान इकलौते बेटे की चिता को खुद मुखाग्नि देने के बाद वह आज तक घर नहीं गई। वैसे भी किराए के एक कमरे के सिवा उसके पास था ही क्या। उसे भी छोड़ आई। तब से ये श्मशान ही उसका घर है।

वह यहां क्यों आई

कुछ टूटते बिखरते शब्दों से उसने दर्दभरी कहानी सुनाई। एक लंबी सांस और आसमान की ओर टकटकी लगाने के बाद पहला शब्द था- तीन दिसंबर 2008। फिर बोली- कोई पौने चार साल हो गए मेरे इंदर को मरे। बस वही तो इकलौता इस दुनिया में मेरा सहारा था। पति तो पहले ही गुजर गए। तब से ससुराल छोड़ आई। यहां सीकर में राजश्री सिनेमा के पास पीहर में मां का आसरा था। वो भी चल बसीं।

जैसे तैसे इंदर को पाला, पढ़ाया- लिखाया। वह एक दुकान पर नौकरी भी करने लगा। आस लगाई, वह बुढ़ापे का सहारा बनेगा। अर्थी को कांधा देगा लेकिन ये सब मुझे करना..कहते-कहते राजू कंवर के शब्द थम गए।


फिर पथरायी सी आंखों में भर आए आंसू पोंछते हुए बोली-एक मां का खुद अपने 22 साल के जवान बेटे की चिता को मुखाग्नि देने से बड़ा दुख दुनिया में दूसरा क्या होगा? श्मशान घाट में एक जलती चिता की ओर इशारा करते हुए बोली ‘यहीं है मेरा इंदर’। पौने चार साल हो गए। लोग कहते हैं, वो नहीं रहा। मुखाग्नि भी मैंने ही दी, इसी जगह। अस्थियां भी खुद ही बहा कर आई हूं हरिद्वार में। पर, मां हूं ना। कलेजा नहीं मानता। वह निर्मोही तो मुझे अकेला छोड़ गया। मैं कैसे जाऊं उसे यहां अकेला छोड़कर।

आखिरी वक्त में बेटे का चेहरा भी नहीं देख पाई

लोग कहते हैं कि इंदर का एक्सीडेंट हुआ। अब आप ही बताइए, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चार इंच का घाव बताया। डाक्टर बोले-वह साढ़े सात घंटे तक जीया। भला ऐसा कैसे हो सकता है ? मुझसे मिलाया तक नहीं। चेहरा तक नहीं देखने दिया उसका। अब तो बस यहां लोगों की सेवा कर रोज मेरा इंदर ढूंढ़ती हूं।


-राजू कंवर

लाखों बरस पुरानी इसी पहाड़ी पर पहली बार तैयार किया गया था च्यवनप्राश





लाखों बरस पुरानी इसी पहाड़ी पर पहली बार तैयार किया गया था च्यवनप्राश
अरावली पर्वत श्रृंखला के अंतिम छोर पर उत्तर-पश्चिमी हिस्से में एक सुप्त ज्वालामुखी है, जिसे धोसी पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। यह इकलौती पहाड़ी है, जो कई महत्वपूर्ण और रहस्यमयी कारणों से चर्चित है। 
 
विश्व के सबसे पुराने धर्म यानी सनातन धर्म के शुरूआती विकास से लेकर आयुर्वेद की महत्वपूर्ण खोज च्यवनप्राश का नाता धोसी पहाड़ी से है। एक सुप्त ज्वालामुखी की संरचना होते हुए भी भूगर्भशास्त्री इसे ज्वालामुखीय संरचना मानने से इंकार करते हैं। भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि पिछले 2 मिलियन सालों में अरावली पर्वत श्रृंखला में कोई ज्वालामुखी विस्फोट नहीं हुआ, इसलिए इसे ज्वालामुखी संरचना मानना सही नहीं है। 
 
भारत के दो राज्यों हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर स्थित धोसी पहाड़ी अपने भीतर कई पौराणिक रहस्य और जानकारियां समेटे हुए है

कुरान का संदेश


अन्ना के लिए राजनीति बहुत गंदी, केजरीवाल के लिए एकमात्र विकल्प



    
नई दिल्‍ली. अरविंद केजरीवाल से अलग होने के बाद पहली बार रविवार को अन्ना हजारे दिल्ली पहुंचे। उन्‍होंने कहा कि राजनीति में बहुत गंदगी है और राजनीतिक हाथों में देश सुरक्षित नहीं है। हजारे ने यह भी कहा कि देश में एक बड़े आंदोलन की जरूरत है। यानी वो नई टीम बना सकते हैं। अन्ना दो दिन दिल्ली में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर, रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस और सेना के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। वह यहां अपने समर्थकों से मिलेंगे और आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे लेकिन केजरीवाल से नहीं मिलेंगे। पुणे से दिल्ली रवाना होने से पहले अन्ना ने कहा कि वो लोकपाल के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

वहीं अरविंद केजरीवाल ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अब राजनीति ही उनके सामने एकमात्र विकल्प हैं। ताजा बयान में केजरीवाल ने कहा, 'मैंने कहा था कि अगर अन्ना कहेंगे कि पार्टी मत बनाओ तो मैं मान जाऊंगा। अब मेरे सामने यह धर्म संकट है। मुझे लगता था कि अन्ना पूरा मन बना कर ही राजनीतिक विकल्प की बात कर रहे हैं लेकिन फिर उन्होंने अपना मन बदल दिया, मैं धर्मसंकट में फंस गया हूं। एक तरफ मेरा देश है दूसरी तरफ अन्ना हैं।दोनों में से मैं किसको चुनूं। तो मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा है सिवाय राजनीति में कूदने के क्योंकि मेरे सामने सवाल है कि भारत बचेगा या नहीं। जिस तरह संसाधनों की लूट यहां मची है  उसे देखते हुए पांच-सात साल बाद कुछ बचेगा भी या नहीं यही डर बना हुआ है।'

इससे पहले अन्‍ना ने पुणे में कहा, ‘अब मैं अपनी मांगे मनवाने के लिए अनशन नहीं करूंगा, बल्कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन का सहारा लूंगा।’
हजारे ने यहां पिंपरी-चिंचवाड में एक गणोश मंडल कार्यक्रम में कहा कि वे अब भी संसद में साफ छवि वाले लोगों को भेजने का काम जारी रखेंगे। उन्होंने कहा, ‘बड़ी संख्या में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों ने इस आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जताई है।’ अन्ना रविवार को दिल्ली पहुंच रहे हैं। यहां वे आंदोलनकारियों से मिलेंगे।
अपने नए ब्लॉग Rannahazarethink’ पर उन्होंने लिखा, ‘लोकपाल के पहले ही दुर्भाग्यवश हमारी टीम दो हिस्सों में बंट गई। एक हिस्सा आंदोलन का सहारा लेना चाहता है तो दूसरा राजनीति में जाना चाहता है। शुरुआत में सरकार ने हमें अलग करने की बहुत कोशिश की। लेकिन इस बार उनके बिना कुछ किए ही हम अलग हो गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अन्य वर्ग की राजनीति में जाने की इच्छा हो गई थी।’
टीम के एक वर्ग पर लगाए अलग करने के आरोप 
हजारे ने अपने साथियों के साथ टकराव पर पहली बार चुप्पी तोड़ी। उन्होंने इसके लिए टीम में मौजूद एक ‘वर्ग’ को जिम्मेदार ठहराया। साथ ही उन्होंने वोटरों को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के नाम पर वोट मांगने वालों से भी सचेत रहने को कहा।

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