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05 अक्तूबर 2012

"पशुओं की तरह बिकते हैं विधायक"




 

सीकर/चूरू. विधायक पेमाराम ने चिकित्सा राज्यमंत्री और शिक्षा उपनिदेशक के बीच तीखी बहस के संदर्भ में कहा कि विधायक तो आजकल पशुओं की तरह बिकते हैं। उल्लेखनीय होगा कि चूरू माध्यमिक शिक्षा उपनिदेशक और चिकित्सा राज्यमंत्री डॉ. राजकुमार शर्मा की गुरुवार को मोबाइल पर कहासुनी हो गई थी।


पेमाराम शुक्रवार को कस्बे में शिक्षक संघ शेखावत के सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी समय नवलगढ़ में पशुओं के मेले में पशु बिकते थे, अब विधायक भी बिकने लगे हैं। कई मंत्री पैसे खुद ले लेते हैं और दूसरे से कहते हैं स्थानांतरण तुम कर देना। धोद विधायक ने देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार के लिए भी मंत्रियों और विधायकों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री निजी विश्वविद्यालय और कॉलेज आदि की मान्यता के लिए फाइलों का ढेर लेकर पहुंचते हैं। सरकार के मंत्री बिना रोक-टोक नियमों का उल्लंघन कर विश्वविद्यालयों को मान्यता दे रहे हैं, जहां पर न भवन है न स्टाफ है, सिर्फ रुपए के लिए खेल चल रहा है।

गिरफ्तार लोगों में से 65 प्रतिशत निर्दोष : मुख्य न्यायाधीश



जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा ने एक स्टडी का हवाला देते हुए कहा कि गिरफ्तार लोगों में से 65 प्रतिशत लोग निर्दोष होते हैं। ये न्याय व्यवस्था के लिए सही नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि किसी मामले में ट्रायल में 15 से 20 साल लगते हैं। इस दौरान व्यक्ति न्यायिक हिरासत में रहता है और बाद में निर्दोष साबित हो जाता है। ऐसे में क्या उसके जीवन का कोई हर्जाना तय हो सकता है? शुक्रवार को तीन दिवसीय वेस्ट जोन रीजनल ज्युडिशियल कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले पुलिस को मामले के सभी पहलुओं की जांच करनी चाहिए और व्यक्ति को यह बताना चाहिए कि उसे क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है। पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति के परिजनों को सूचित करे और देखे कि उसके अधिकार कैसे संरक्षित रहें। उसको कानूनी सहायता मुहैया कराई जानी चाहिए। जेल में व्यक्ति को उचित खाना, इलाज व देखभाल मुहैया करानी चाहिए, ताकि जेल से व्यक्ति बाहर आए तो वह सुधरकर निकले न कि खतरनाक अपराधी बनकर। इससे पहले तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सीके ठक्कर ने किया। कॉन्फ्रेंस का आयोजन राजस्थान हाईकोर्ट, नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी भोपाल व राजस्थान स्टेट ज्यूडिशियल एकेडमी कर रही है। इसमें राजस्थान सहित मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात के 80 से ज्यादा न्यायिक अफसर भाग ले रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अधीनस्थ कोर्ट को निष्पक्ष अनुसंधान तय करने का अधिकार है क्योंकि ऊपरी अदालतों में तकनीकी बिन्दुओं पर ही मामला चलता है। जल्द ट्रायल होनी चाहिए क्योंकि इसमें देरी पीडि़त ही भुगतता है। इसलिए जल्द ट्रायल के उपाय ढूंढने चाहिए, लेकिन मशीनरी तरीके से काम नहीं हो। सुप्रीम कोर्ट तक कम लोग जाते हैं। अदालतों को अनावश्यक स्थगन नहीं देने चाहिए। किसी जज के खिलाफ भी पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है.. इस मुद्दे पर भी विचार करना है। 60 साल बाद भी नहीं मिले अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली ने कहा कि देश को लोकतांत्रिक हुए 60 साल हो गए हैं लेकिन लोगों को समानता व स्वतंत्रता का अधिकार पूरी तरह से नहीं मिला है। सभी के लिए निष्पक्ष ट्रायल होना चाहिए चाहे वह आरोपी ही क्यों न हो। भारतीय संविधान मानव अधिकार का दस्तावेज है, न्यायिक अधिकारी संविधान के प्रावधानों का भी पालन करें। लोगों के आधारभूत अधिकारों में पक्षपात नहीं किया जा सकता। अलग अलग बेंच अलग निर्णय देती हैं, लेकिन इनमें एकरूपता होनी चाहिए। निर्दोष को सजा नहीं हो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सीके ठक्कर ने कहा कि पढ़ते आए हैं कि चाहे 99 अपराधी बरी हो जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए, लेकिन ऐसा क्यों। अब 99 अपराधी बरी नहीं होने चाहिए बल्कि एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। कोई भी अपराधी न तो सजा से बचना चाहिए और न ही निर्दोष को सजा होनी चाहिए। अपराध समाज के खिलाफ है और संदेह का लाभ सोच समझकर देना चाहिए। कोई व्यक्ति पूरे समाज को प्रभावित करने के मुद्दे को चुनौती देता है तो हमें उसे सुनने से इंकार नहीं करना चाहिए। कानून के अनुसार कसाब को सहायता मुंबई पर आतंकी हमले के दोषी कसाब को कानूनी सहायता देने के प्रश्न के जवाब में न्यायाधीश गांगुली ने कहा कि कसाब को संविधान के प्रावधानों पर कानूनी सहायता मुहैया कराई है। सभी को न्याय के लिए समान अवसर मिलना चाहिए चाहे कोई देश का नागरिक ही नहीं हो।

कुरान का संदेश

 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग खुद अपना कानून लागू करवाकर मानवाधिकार अदालतें नहीं खुलवा सका

भाइयों एक कडवा सच जिसे में उन्नीस सालों में भी ना बदल सका ...देश में न्यूयार्क सम्मेलन के बाद अंतर्राष्ट्रीय दबाव में मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया एक मानवाधिकार कानून बनाया गया जिसें राष्ट्रीय मानवाधिकार अधिनियम १९९३ कहा गया यानी उन्नीस साल पहले वर्ष १९९३ में मानवाधिकार संरक्षण का कानून बना और अब तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में आधे दर्जन से भी ज्यादा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जा चुके है जो अध्यक्ष बने है सभी दबंग सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टीस रहे है जिन्होंने नेतिक मूल्यों की बात की कानून का राज लाने की बात की और पीड़ितों को न्याय की बात की लेकिन अरबो खरबों रूपये राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर इस आयोग और राज्य आयोगों पर खर्च के बाद भी आज तक किसी भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष ने १९९३ में बने कानून को लागु करने के लियें सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खट खटाया है ना ही इन्साफ के तकाज़े के तहत सरकार पर दबाव बनाया है दोस्तों मानवाधिकार संरक्षण कानून में १९९३ में मानवाधिकार हनन के मामलों की सुनवाई के लियें प्रत्येक जिले में विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान है और इस प्रावधान को देश में उन्नीस साल गुजरने के बाद भी किसी भी अध्यक्ष ने लागू करवाने का प्रयास नहीं किया है हमारी ह्युमन रिलीफ सोसाइटी के माध्यम से में एडवोकेट अख्तर खान अकेला और एडवोकेट आबिद अब्बासी हर साल दस दिसम्बर मानवाधिकार दिवस पर काला दिवस मनाकर प्रधानमन्त्री ..राष्ट्रपति और खुद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को ज्ञापन भेजते है लेकिन ना जाने वोह ज्ञापन कहाँ और किस कचरे की टोकरी में जाते है पता नहीं चल सका है ...इसी तरह से राजस्थान में पुलिस अधिनियम २००७ में लागू हुआ निरंकुश पुलिस पर अंकुश लगाने के लियें जवादार समिति सहित कई आयोग और समितियों के गठन का प्रावधान है इस मामले में भी लगातार पत्र लिखे जा रहे है लेकिन कोई पुलिस की निमामता और निरंकुशता पर अंकुश लगाकर जनता को इंसाफ दिलाना ही नहीं चाहता तो फिर केसा मानवाधिकार केसा कौन दोस्तों हम तो इस बार भी दस दिसम्बर मानवाधिकार दिवस पर काला दिवस मनाकर इस मांग को फिर आगे बढ़ाएंगे लेकिन आप से भी मदद की दरकार है प्लीज़ एक कमेन्ट एक पत्र मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रपति  जी को ज़रूर लिखिए जनाब ...............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

पत्रकारों के अगर शराब ना पीने की शर्त लगा दे तो क्या पत्रकार रह सकेंगे

दोस्तों अभी कोटा प्रेस क्लब के चुनाव हुए ..चुनाव में जो लोग एक दुसरे के दुशमन बन गए थे साधारण सभा में एक दुसरे के खिलाफ नकारा होने का ढिंढोरा मचा रहे थे वाही लोग फिर से नेतिक मूल्यों का पतन कर साथ साथ हमजोली बनकर नज़र आने लगे ..चुनाव हुए थोड़ी कशीदगी हुई लेकिन फिर भाईचारा और सद्भावना का फार्मूला अपनाया नतीजे बहुत ज्यादा उलट फेर तो नहीं लेकिन फिर भी दुसरे पेनल जो रजत खन्ना का था उसके कई लोग शानदार वोटों से जीत कर आये एक निर्वाचित भाईजान तो तय नहीं कर पा रहे थे के में इधर रहूँ या उधर रहे खेर चुनाव हुए खाने हुए ..प्रचार हुआ ..शराब चली और फिर नतीजे सामने थे ....इन चुनाव के बाद पत्रकारिता सदस्यता और नेतिकता पर सवाल उठने लगे ...कहा गया के प्रेस क्लब प्रेस क्लब नहीं रहा है अब तो हालात बदलने के लियें नेतिक लोगों का एक समूह एकत्रित किया जाए जो मजबूत हो पत्रकारिता और उसके मूल्यों को समझता हो ..वक्त बा वक्त पीड़ित पत्रकार की मदद के लियें सभी बहाने बाज़ी छोड़ कर आगे आये ..पत्रकारों के लियें कार्यशालाए स्थापित करे ....जिन पत्रकारों का शोषण हो रहा है मालिकों से उन्हें आज़ाद कराए उन्हें इन्साफ दिलवाए जो पत्रकार रात को शराब की मजलिसें सजाते है या फिर किसी न किसी नेता की प्रेस विज्ञप्तियां बनाते हैं उनसे बचा जाए ...कहा गया के पेड़ न्यूज़ देने वाले पत्रकारों का बहिष्कार किया जाये ..दोस्तों मेने सोचा के अगर किसी भी पत्रकार क्लब के गठन के साथ प्रमुख शर्तों में यह शर्त रखी जाए के जो भी पत्रकार शराब पिएगा .जो भी पत्रकार प्रेस कोंफ्रेंस में गिफ्ट लेगा ..पेड़ न्यूज़ चलाएगा ..या फिर किसी भी खबर को अपनी दोस्ती और दुश्मनी के तराजू पर तोल कर उस खबर की हत्या नहीं करेगा ..खबर को विज्ञापन की वजह से नहीं दबाएगा ....मरने की खबर के लियें भी विज्ञापन ...डॉक्टरेट की उपाधि की खबर के लियें भी विज्ञापन ..किसी नियुक्ति की खबर के लीयें भी विज्ञापन का इन्तिज़ार करेगा तो वोह सदस्य नहीं हो सकेगा तो जरा सोचो क्या किसी भी प्रेस क्लब का एक भी सदस्य बन सकेगा ..कुछ अपवाद ज़रूर हैं जिनके कारन यह पत्रकारिता चल रही है वरना तो अभी बहुत कुछ कहना बाक़ी है इसलियें हम पहले खुद में सुधार करे फिर निकल पढ़े अपने साथियों में समझायश कर उनेह सूधारने के लियें बुराई भी मिलेगी गालियाँ भी मिलेंगे लेकिन जरा कोशिश तो करो .....शराब नेतिकता का पतन करती है ...खबरों को रोज़ प्रभावित करती है तो फिर पहले इस बुराई को छोड़ने के लियें पत्रकार साथी संकल्प नहीं ले सकते अगर ऐसा किया जाए तभी लोगों को नेतिकता की बात करने का हक मिलना चाहिए वरना   देश के प्रेस क्लबों में रोज़ रात की महफिलों में क्या होता है सब जानते है ......................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

लाखों सालों से अस्तित्व में हैं मत्स्य कन्याएं, जानें उससे जुड़ी सच्चाई!



पटना। भगीरथ जब गंगा को जमीन पर ला रहे थे तो उनके आगे-आगे झूमती-इठलाती कन्याएं गंगा मैया के स्वागत में खुशियां मना रही थीं। ये मत्स्य कन्याएं थीं। ऐसी पौराणिक मान्यता है।
ऐसा अनुमान है कि 250 लाख साल पहले हिमालय से नदियां निकलीं। इस आधार पर नदी में मिलने वाली मत्स्य कन्याओं की उम्र इतनी ही मानी जाती है। इन मत्स्य कन्याओं को लेकर भारत, चीन और अफ्रीका में अलग-अलग दंत कथाएं प्रचलित हैं। महाभारत में इनका जिक्र आता है।
अब इन्हें डॉल्फिन के नाम से जाना जाता है। सोंस या पनडुब्बा इनके प्रचलित नाम हैं। जिस तरह धरती पर कन्याओं को बचाने के लिए मुहिम चल रही है, उसी तरह इन मत्स्य कन्याओं को बचाने के अभियान को आज एक मंजिल मिली। आज यानी 5 अक्टूबर को दुनिया में पहली बार बिहार में डॉल्फिन डे मनाया गया। 2 से 9 अक्टूबर तक वाइल्ड लाइफ विक मनाया जाता है। 2009 में प्रधानमंत्री ने डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जंतु घोषित किया था।

कुरान का संदेश

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