मुंबई. लवासा में भ्रष्टाचार के आरोपों का भूत केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का पीछा नहीं छोड़ रहा है।
पुणे के पास बसाए जा रहे इस शहर को लेकर समाजसेवक वाई.पी. सिंह ने अब पवार और उनके परिवार पर भ्रष्टचार के आरोप लगाए हैं।
सिंह
का कहना है कि लवासा से जुड़ी कंपनी में पवार की बेटी और दामाद के करीब 21
करीब फीसदी शेयर थे और उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के
आदेशों की अवहेलना की गई।
इस मामले में शामिल सभी लोगों के खिलाफ सिंह जल्द ही भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में शिकायत दर्ज करने वाले हैं।
वैसे
लवासा मामले में पवार पर पहले भी आरोप लग चुके हैं। पर्यावरण समेत कई तरह
के कानूनों के उल्लंघन के लिए बांबे हाई कोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई
जारी है।
लेकिन सिंह ने गुरुवार को एक पत्रकार परिषद में कहा कि लवासा प्रकरण में भ्रष्टाचार की शिकायत अब तक नहीं हुई है।
मेरे
पास जो दस्तावेज हैं, उनसे साफ जाहिर होता है कि लवासा निर्माण करने वाली
हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी को कौड़ियों के दाम में वह 348 एकड़ सरकारी
जमीन दी गई, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत जमीन की नीलामी होनी
चाहिए थी।
सिंह
ने बताया कि लवासा को ग्लोबल टेंडर और फ्लोटिंग टेंडर समेत सड़क व अन्य
तरह की अनुमति दिलाने के लिए पवार ने 14 मई, 2007 को लवासा के ही एकांत
नामक गेस्ट हाउस में एक बैठक बुलाई, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव
देशमुख, तत्कालीन जल संसाधन मंत्री अजित पवार समेत सभी आला अधिकारी मौजूद
थे।
सिंह
बताते हैं कि इस बैठक में लवासा को वह हर सहूलियत दी गई जो उसे चाहिए थी।
सिंह ने मीडिया के सामने बैठक के सबूत भी पेश किए, जो उन्होंने सूचना के
अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत हासिल किए हैं।
सिंह
के मुताबिक, पवार कहेंगे कि उनकी बेटी सुप्रिया और दामाद सदानंद सुले ने
2006 में कंपनी के शेयर बेच दिए हैं। पर दस हजार करोड़ रुपए की कंपनी के
लगभग 21 फीसदी शेयर की रकम आखिर कहां गई।
क्योंकि
2009 के चुनावी हलफनामे में सुप्रिया ने अपनी संपत्ति महज 50 करोड़ रुपए
बताई। उन्होंने पूछा कि 348 एकड़ जमीन को अजित पवार ने महज 23,000 प्रति
माह की लीज पर देने का फैसला कैसे किया?
कृष्णा
घाटी विकास बोर्ड ने व्यापारिक इस्तेमाल के लिए अपनी जमीन किस आधार पर दी?
लवासा को तमाम सरकारी सहूलियतें और मंजूरी दिलाने के लिए केंद्रीय कृषि
मंत्री ने एकांत गेस्ट हाउस में सरकारी बैठक क्यों बुलाई? दस हजार करोड़
रुपए के मूल्यांकन वाली कंपनी के शेयर कितने में बिके और हलफनामे में उस
रकम का समावेश क्यों नजर नहीं आता?
सिंह
ने बताया कि तत्कालीन राजस्व सचिव रमेश कुमार ने इस मनमानी का कड़ा विरोध
किया था। उन्होंने तब के राजस्व मंत्री नारायण राणो को बाकायदा एक रिपोर्ट
सौंपी। राणो ने भी मीडिया में आकर लवासा पर कार्रवाई के लिए बड़े-बड़े दावे
किए, पर बाद में अचानक खामोश हो गए।
सिंह
को आशंका है कि 21 जून को मंत्रालय की आग में शायद यह रिपोर्ट भी जलकर खाक
हो गई है। उन्होंने बताया कि मैंने और मेरे साथियों ने कई बार आईटीआई
कानून के तहत वह रिपोर्ट हासिल करने की कोशिश की, पर नाकाम रहे।