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22 अक्तूबर 2012

अगर ये एक बात नहीं कहता रावण तो शायद कभी नहीं मरता!



 

जीवन प्रबंधन गुरु पं. विजयशंकर मेहता के व्याख्यान एक शाम रावण के नाम की सीरिज के अतंर्गत आज हम आपको बता रहे हैं कि रावण ने ऐस कौन सी सबसे बड़ी गलती की थी जिसके कारण उसे पराजित होना पड़ा और उसका नामोनिशान मिट गया। रावण की उस गलती से हमें भी ज्ञान की बातें सिखनी चाहिए।

रावण विश्वविजेता बनना चाहता था लेकिन वह जानता था कि बिना वरदान के यह संभव नहीं है। तब उसने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की। इतने पर भी जब ब्रह्माजी नहीं आए तो उसने अपने मस्तक काटने शुरु कर दिए। यह देखकर ब्रह्माजी को उसके समझ आना ही पड़ा। ब्रह्मीजी ने रावण को वरदान मांगने के लिए कहा। तब रावण ने वरदान मांगा कि- हम काहू के मरहिं न मारैं अर्थात हम किसी के हाथ नहीं मरें।

तब ब्रह्माजी ने कहा- ऐसा तो नहीं हो सकता, मृत्यु तो आएगी ही। रावण बोला - देना हो तो यही दीजिए अन्यथा कुछ भी नहीं। बहुत समझाने पर रावण बोला- हम काहू के मरहिं न मारैं, बानर, मनुज जाति दोइ बारैं अर्थात मनुष्य और बंदरों को छोड़कर कोई भी मेरा वध न कर सके।बस यहीं रावण से सबसे बड़ी भूल हो गई क्योंकि वह तो मानव और बंदरों को अपना भोजन मानता था। ब्रह्माजी ने भी उसे वरदान दे दिया।

यहीं रावण सबसे बड़ी भूल कर गया कि वो जिन मानव और बंदरों को अपना भोजन मानता था उन्हीं के कारण उनकी उसकी मृत्यु हो गई। सार यह है कि किसी भी प्राणी को अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए क्योंकि एक चींटी भी हाथी का मृत्यु का कारण बन सकती है।

नवरात्रि में क्यों करते हैं कन्या पूजन, जानिए महत्व व विधि



 

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार चैत्र व शारदीय नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। अष्टमी व नवमी तिथि के दिन तीन से नौ वर्ष की कन्याओं का पूजन किए जाने की परंपरा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है।

शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। कन्या पूजन की विधि इस प्रकार है-



पूजन विधि

कन्या पूजन में तीन से लेकर नौ साल तक की कन्याओं का ही पूजन करना चाहिए इससे कम या ज्यादा उम्र वाली कन्याओं का पूजन वर्जित है। अपने सामथ्र्य के अनुसार नौ दिनों तक अथवा नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करें। कन्याओं को आसन पर एक पंक्ति में बैठाएं। ऊँ कुमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद उन्हें रुचि के अनुसार भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें। भोजन के बाद कन्याओं के पैर धुलाकर विधिवत कुंकुम से तिलक करें तथा दक्षिणा देकर हाथ में पुष्प लेकर यह प्रार्थना करें-



मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।

नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।

जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।

पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।



 तब वह पुष्प कुमारी के चरणों में अर्पण कर उन्हें ससम्मान विदा करें।

युद्ध से पहले भगवान श्रीराम ने भी की थी मां दुर्गा की आराधना



 

शक्ति की उपासना पुरातन काल से की जाती रही है। इसके कई प्रमाण हमारे धर्म ग्रंथों में भी मिलते हैं। भगवान श्रीराम ने भी रावण वध करने से पहले आराधना कर शक्ति को प्रसन्न किया था।

जब राम-रावण युद्ध चल रहा था तब नारदजी ने श्रीराम को शक्ति की आराधना करने के लिए कहा था। श्रीराम ने ऐसा ही किया। उन्होंने आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिनों का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा प्रतिदिन कमल के बारह पुष्प अर्पित करते हुए की। अष्टमी की मध्यरात्रि को भगवती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और कहा कि हे नरोत्तम, देवताओं के अंश से उत्पन्न ये वानर मेरी शक्ति से संपन्न होकर आपके सहायक होंगे। आपके अनुज लक्ष्मण मेघनाद का वध करेंगे और आप स्वयं पापी रावण का संहार करेंगे।  ऐसा कहकर देवी अंतध्र्यान हो गईं। मां दुर्गा के आशीर्वाद से श्रीराम में ऊर्जा का ऐसा संचार हुआ कि उन्होंने रावण के वंश का नाश कर दिया। इस तरह देवी दुर्गा की आशीर्वाद से भगवान श्रीराम ने असुरों के राजा महाबली रावण का वध किया।

...जब मां दुर्गा ने किया महिषासुर का वध



देवी भगवती ने असुरों का वध करने के लिए कई अवतार लिए। सर्वप्रथम महादुर्गा का अवतार लेकर देवी ने महिषासुर का वध किया था। दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतार का स्पष्ट उल्लेख आता है जिसके अनुसार एक बार महिषासुर नामक असुरों के राजा ने अपने बल और पराक्रम से देवताओं से स्वर्ग छिन लिया।

जब सारे देवता भगवान शंकर व विष्णु के पास सहायता के लिए गए। पूरी बात जानकर शंकर व विष्णु को क्रोध आया तब उनके तथा अन्य देवताओं से मुख से तेज प्रकट हुआ, जो नारी स्वरूप में परिवर्तित हो गया। शिव के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से वक्षस्थल, सूर्य के तेज से पैरों की अंगुलियां, कुबेर के तेज से नासिका, प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से तीनों नेत्र, संध्या के तेज से भृकुटियां और वायु के तेज से कानों की उत्पत्ति हुई।

इसके बाद देवी को शस्त्रों से सुशोभित भी देवों ने किया। देवताओं से शक्तियां प्राप्त कर महादुर्गा ने युद्ध में महिषासुर का वध कर देवताओं को पुन: स्वर्ग सौंप दिया। महिषासुर का वध करने के कारण उन्हें ही महादुर्गा को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है।

महानवमी पर ऐसी श्रीयंत्र पूजा बना देगी दौलतमंद



धन या पैसा जीवन की अहम जरूरतों में एक है। आज तेज रफ्तार के जीवन में कईं मौकों पर यह देखा जाता है कि युवा पीढ़ी चकाचौंध से भरी जीवनशैली देखकर प्रभावित होती है और बहुत कम वक्त में ज्यादा कमाने की सोच में गलत तरीके भी अपनाती है। जबकि धन का वास्तविक सुख और शांति सच्चाई व मेहनत से की गई कमाई में ही है। ऐसा कमाया धन आत्मविश्वास के साथ रुतबा और साख भी बढ़ाता है।

धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति ऐसे ही तरीकों में विश्वास रखता है। इसलिए मातृशक्ति की आराधना के आखिरी दिन यहां बताया जा रहा है एक ऐसा ही उपाय, जिसको अपनाकर ज़िंदगी में किसी भी सुख से वंचित नहीं रहेंगे और धन का अभाव कभी नहीं सताएगा। यह उपाय है श्रीयंत्र पूजा।

धार्मिक नजरिए से लक्ष्मी कृपा के लिए की जाने वाली श्रीयंत्र साधना संयम और नियम के लिहाज से कठिन होती है। इसलिए यहां आसान तरीके से बताई जा रही है श्रीयंत्र पूजा, जिसे कोई भी सामान्य व्यक्ति भी अपनाकर सुख और वैभव पा सकता है। सरल शब्दों में यह पूजा मालामाल बना देती है। श्रीयंत्र पूजा की आसान विधि कोई भी भक्त नवरात्रि या उसके बाद भी शुक्रवार या प्रतिदिन कर सकता है।

श्रीयंत्र पूजा के पहले कुछ सामान्य नियमों का जरूरी ध्यान रखें -

- ब्रह्मचर्य का पालन करें और ऐसा करने का बखान न करें।

- स्वच्छ वस्त्र पहनें।

- सुगंधित तेल, परफ्यूम, इत्र न लगाएं।

- बिना नमक का आहार लें।

- प्राण-प्रतिष्ठित श्रीयंत्र की ही पूजा करें। यह किसी भी मंदिर, योग्य और सिद्ध  ब्राह्मण, ज्योतिष या तंत्र विशेषज्ञ से प्राप्त करें।

- यह पूजा लोभ के भाव से न कर सुख और शांति की कामना से करें। श्रीयंत्र पूजा की इस विधि से करें। इसे किसी योग्य ब्राह्मण से भी करा सकते हैं-

- सुबह स्नान कर एक थाली में श्रीयंत्र स्थापित करें।

- इस श्रीयंत्र को लाल कपड़े पर रखें।

- श्रीयंत्र का पंचामृत यानि दुध, दही, शहद, घी और शक्कर को मिलाकर स्नान कराएं। गंगाजल से पवित्र स्नान कराएं।

- इसके बाद श्रीयंत्र की पूजा लाल चंदन, लाल फूल, अबीर, मेंहदी, रोली, अक्षत, लाल दुपट्टा चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं।

- धूप, दीप, कर्पूर से आरती करें।

- श्रीयंत्र के सामने लक्ष्मी मंत्र, श्रीसूक्त, दुर्गा सप्तशती या जो भी श्लोक आपको आसान लगे, का पाठ करें। किंतु लालच, लालसा से दूर होकर श्रद्धा और पूरी आस्था के साथ करें।

- अंत में पूजा में जाने-अनजाने हुई गलती के लिए क्षमा मांगे और माता लक्ष्मी का स्मरण कर सुख, सौभाग्य और समृद्धि की कामना करें। श्रीयंत्र पूजा की यह आसान विधि नवरात्रि में बहुत ही शुभ फलदायी मानी जाती है। इससे नौकरीपेशा से लेकर बिजनेसमेन तक धन का अभाव नहीं देखते। इसे प्रति शुक्रवार या नियमित करने पर जीवन में आर्थिक कष्टों का सामना नहीं करना पड़ता।

बुधवार को इन मंत्रों से करें दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन, जानिए शुभ मुहूर्त



 

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि यानी दशहरे (इस बार 24 अक्टूबर, बुधवार) के दिन माता दुर्गा की प्रतिमा का विधि-विधान पूर्वक विसर्जन किया जाता है। कहीं-कहीं नवमीं की शाम को ही विसर्जन करने की परंपरा भी है। विसर्जन के पूर्व माता भगवती तथा जवारों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। पूजा विधि इस प्रकार है-

विसर्जन के पूर्व भगवती दुर्गा का गंध, चावल, फूल, आदि से पूजा करें तथा इस मंत्र से देवी की आराधना करें-

रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।

पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।

महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी।

आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।



इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद हाथ में चावल व फूल लेकर देवी भगवती का इस मंत्र के साथ विसर्जन करना चाहिए-

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि।

पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।

इस प्रकार विधिवत पूजन अर्चन करने के बाद दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन कर देना चाहिए लेकिन जवारों को फेंकना नही चाहिए। उसको परिवार में बांटकर सेवन करना चाहिए। इससे नौ दिनों तक जवारों में व्याप्त शक्ति हमारे भीतर प्रवेश करती है। माता की प्रतिमा, जिस पात्र में जवारे बोए गए हो उसे तथा इन नौ दिनों में उपयोग की गई पूजन सामग्री का श्रृद्धापूजन विसर्जन कर दें।

कभी नवरात्रि में चढ़ा करती थी बलि, एक पहल और बंटने लगा मीठा प्रसाद!



उदयपुर.जिले के कई गांवों में अब नवरात्रि के दौरान बली नहीं दी जाएगी। इसके स्थान पर मीठी प्रसादी का आयोजन होगा। यह निर्णय सोमवार को पई, उंदरी, दमाना, जगन्नाथपुरा, डीमड़ी, चरपुर, बिजली, झाड़ोल, मोडीफलां, गामणा बेड़ा, उपली सरदरी, पालावाडा, झालरा फलां, बेडवपाडा, उबरी, खादरा, उभरियाजी, बागपुरा आदि गांवों के भोपों ने लिया है।



इन भोपों को बली प्रथा को त्यागने के लिए दिनेश मुनि, महाश्रमणी पुष्यवती, महासती सोहन कुंवर, जैन महिला मंडल की सदस्याओं ने प्रेरित किया है। भोपों ने सोमवार को तारक गुरु जैन ग्रंथालय  में श्रमण संघीय सलाहकार दिनेशमुनि, डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि एवं डॉ. पुष्पेंन्द्र मुनि के सामने भविष्य में कभी भी बलि नहीं चढ़ाने का संकल्प लिया।
पांच देवरों से हुई थी शुरुआत

दिनेश मुनि ने बताया कि 2003 में उपाध्याय पुष्कर मुनि की जयंती पर ग्रामीणों में  अलख जगाने के लिए इस अभियान को शुरू किया गया था। आरंभ में महज पांच देवरे लिए लेकिन धीरे-धीरे इस प्रयास में कई लोग जुड़ते चले गए। वर्तमान में 30 देवरों में बली प्रथा बंद कर दी गई है। प्रथा को बंद करने वाले भोपों को जैन समाज की ओर से प्रसाद के लिए घी, शक्कर, चावल प्रदान किया जाता है।

कुरान का संदेश

वालिद की मजार का दीदार कर दुनिया से रुख़सत हो लिए



 

बाड़मेर.भारत पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान में बसे बाड़मेर के हाजी अब्दुल सत्तार करीब तीस वर्ष बाद अपने वतन की मिट्टी के दीदार व घरवालों तथा दोस्तों की ख्वाहिश पाले बाड़मेर आना चाह रहे थे। मगर उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली। मजबूरन उन्हें अपनी ससुराल बीकानेर रुकना पड़ा। फिर काफी मिन्नतों के बाद उन्हें मात्र सात दिन के लिए बाड़मेर रहने की परमिशन मिली। इन सात दिनों में वह अपने घरवालों के साथ दोस्तों से भी मिले। 
 
शनिवार को वह अपने वालिद की मजार पर गए और अकीदत के फूल चढ़ाए। उन्होंने इन पलों में सुकून का इजहार किया और कहा नसीब वालों को मयस्सर होती है मादरे वतन की मिट्टी। शनिवार की रात अपने रिश्तेदारों के अलावा अपने पुराने दोस्तों के साथ गपशप की ओर करीब रात ढाई बजे सो गए। सुबह जब घर वालों ने चाय के लिए जगाया तो वो दुनिया से अलविदा हो चुके थे। रविवार शाम उनके भाई हाजी अब्दुल गनी के यहां से निकले जनाजे में उनके परिवार वालों के साथ उनके हिंदू दोस्त भी शरीक हुए।
 
 
पिता के कदमों में किया दफन
 
पूर्व सदर अशरफ अली ने बताया कि मामा (अब्दुल) बाड़मेर आने के बाद बहुत खुश थे। रात को कह रहे थे कि बाड़मेर आने के बाद उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश पूरी हो गई है। वह कई सालों से यहां आने के लिए कोशिश कर रहे थे, लेकिन परमिशन नहीं मिलने के कारण बाड़मेर नहीं आ पा रहे थे। रविवार को वे पूर्वजों के साथ चिरनिंद्रा में सो गए। उन्होंने बताया कि मामा को अपने वतन व बाड़मेर से खासा लगाव था,उनके पिता की मजार के पास ही दफनाया गया।
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