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26 अक्तूबर 2012

बी एस ऍन एल को घटा देने वाले डेपुटेशन कर्मचारियों को हटाने की मांग पर आन्दोलन होगा


हमारे भारत में  सरकारी दूरसंचार कम्पनी के कर्मचारी  डेपुटेशन  पर आये कर्मचारियों अधिकारीयों को हटाने की मांग को लेकर हडताल पर  वाले है ....बी एस ऍन एल कर्मचारियों का कहना है के अगर इस कम्पनी का प्रबन्धन डेपुटेशन  पर आये कर्मचारियों के हाथों में नहीं होता तो यह कम्पनी निरंतर घटे में होने की जगह फायदे में रहती और टू  जी स्पेक्ट्रम जेसे महाघोटाले नहीं होते ..............बात सही भी है एक तरफ यह सरकारी कम्पनी है जो निरंतर घटे में है और सेवाओं में त्रुटी के दोष की अपराधी है दूसरी तरफ इनसे सस्ते दामों पर सेवायें दे रही प्राइवेट कम्पनी है जो निरंतर फायदे में है इसके पीछे जरुर कुछ राज़ तो है जिसकी बुनियाद कर्मचारियों ने समझ ली है और वोह कहते है के बाहर से दूसरी कम्पनियों के मेनेजमेंट अधिकारी बी एस ऍन एल को घुन की तरह खा रहे है ..उनका आरोप है के मैनजमेंट डेपुटेशन  का जिसका कम्पनी और कर्मचारियों से कोई आत्मिक लगाव नहीं कोई जवाबदारी नहीं कोई ज़िम्मेदारी नहीं ऐसे में जब अधिकारीयों का बी एस ऍन एल से कुछ लेना  ही नहीं तो फिर तो वोह मजे करेंगे और उन्हें कम्पनी डूबे या तिरे इससे उन्हें क्या लेना देना ...अब कर्मचारी सरकार और बी एस ऍन एल के घाटे के इस खेल को समझ गए है और उन्होंने साफ तोर पर कह दिया है के अधिकारी अगर बी एस ऍन एल कम्पनी में रहना चाहते है तो रहे लेकिन कम्पनी के हितेषी और जवाबदार बन कर रहें और इसके लियें उन्हें कम्पनी में समायोजित होना पढ़ेगा वरना बाहर के गेर लोग कम्पनी का प्रबन्धन सम्भालें तो यह हमे बर्दाश्त नहीं है ..बात भी सही है गेरों को इस कम्पनी का दुःख दर्द समझ में केसे आएगा और हालत यह है के जो कम्पनी दस हजार करोड़ मुनाफे में थी आज वाही कम्पनी निरंतर घाटे में जा रही है और इस घाटे का रहस्य भी यही है यह आंकड़ा दस हजार करोड़ रूपये घटे तक पहुंच गया है हाई कोर्ट ने भी देपुतेष्ण कर्मचारियों को हटाने के निर्देश दिए है लेकिन सरकार टस से मस नहीं हो रही है ...बी एस ऍन एल कर्मचारी अपनी इन मांगों के समर्थन में अब अगले हफ्ते से धरना प्रदर्शन कर हडताल करेंगे देखते है इस वाजिब लड़ाई का नतीजा क्या निकलता है और सरकार इस मामले में अपना क्या तर्क देती है .........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

शरद पूर्णिमा 29 को, लक्ष्मी को प्रसन्न करने का अचूक मौका



 

29 अक्टूबर, सोमवार को शरद पूर्णिमा है, इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी का व्रत रखने व उनकी आराधना करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। कोजागर पूर्णिमा से जुड़ी कुछ कथाएं भी हैं उन्हीं में से एक कथा इस प्रकार है-

किसी समय मगध देश में वलित नामक एक संस्कारी लेकिन दरिद्र ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण जितना सज्जन था उसकी पत्नी उतनी ही दुष्ट थी। वह ब्राह्मण की दरिद्रता को लेकर रोज उसे ताने देती थी। यहां तक की पूरे गांव में भी वह अपने पति की निंदा ही किया करती थी। पति के विपरीत आचरण करना ही उसने अपने धर्म बना लिया था। यहां तक कि धन की चाह में वह  रोज अपने पति को चोरी करने के लिए उकसाया करती थी।

एक बार श्राद्ध के समय ब्राह्मण की पत्नी ने पूजन में रखे सभी पिण्डों को उठाकर कुएं में फेंक दिया। पत्नी की इस हरकत से दु:खी होकर ब्राह्मण जंगल में चला गया, जहां उसे नागकन्याएं मिलीं। उस दिन आश्विन मास की पूर्णिमा थी। नागकन्याओं ने ब्राह्मण को रात्रि जागरण कर लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाला कोजागर व्रत करने को कहा। ब्राह्मण ने विधि-विधानपूर्वक कोजागर व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण के पास अतुल धन-सम्पत्ति हो गई। भगवती लक्ष्मी की कृपा से उसकी पत्नी की बुद्धि भी निर्मल हो गई और वे दंपत्ति सुखपूर्वक रहने लगे।

रोचक बातें: क्या सचमुच शरद पूर्णिमा पर अमृत बरसता है?



 

हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष में बारह पूर्णिमा आती हैं। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूर्ण चंद्रमा के कारण वर्ष में आने वाली सभी 12 पूर्णिमा पर्व के समान ही हैं लेकिन इन सभी में आश्विन मास में आने वाली पूर्णिमा सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। यह पूर्णिमा शरद ऋतु में आती है इसलिए इसे शरद पूर्णिमा भी कहते हैं। इस बार यह 29 अक्टूबर, सोमवार को है। शरद ऋतु की इस पूर्णिमा को पूर्ण चंद्र अश्विनी नक्षत्र से संयोग करता है। अश्विनी जो नक्षत्र क्रम में पहला है और जिसके स्वामी अश्विनीकुमार है।

कथा है च्यवन ऋषि को आरोग्य का पाठ और औषधि का ज्ञान अश्विनीकुमारों ने ही दिया था। यही ज्ञान आज हजारों वर्ष बाद भी परंपरा से हमारे पास धरोहर के रूप में संचित है। अश्विनीकुमार आरोग्य के दाता हैं और पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्रोत। यही कारण है कि ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा को आसमान से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को घरों की छतों पर खीर आदि भोज्य पदार्थ रखने का प्रचलन भी है। जिसका सेवन बाद में किया जाता है। मान्यता यह है कि ऐसा करने से चंद्रमा की अमृत की बूंदें भोजन में आ जाती हैं जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां आदि दूर हो जाती हैं।

इतनी हो सकती है एक बकरे की लंबाई और कीमत, यकीन नहीं होता!



इतनी हो सकती है एक बकरे की लंबाई और कीमत, यकीन नहीं होता!
नागपुर। शहर की प्रमुख मंडी मोमिनपुरा में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए के बकरे ईद के त्योहार पर बेचे जाते हैं। इस वर्ष डेढ़ लाख का ‘अलबख्श’ आकषर्ण का केंद्र बना हुआ है।
इसका वजन 125 किलो है। यहां 6 फीट ऊंचे बकरे लाए गए हैं। गुरुवार की शाम तक एक सप्ताह में 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का व्यापार किए जाने का दावा किया गया।
शुक्रवार को यह आंकड़ा 3 करोड़ पार करने की संभावना बताई गई है। म.प्र. से लाए गए विशालकाय बकरों को ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है। 
मध्य प्रदेश के दमोह, सागर तथा अन्य शहरों से प्रतिवर्ष ईद के त्योहार पर शहर में करोड़ों रुपए का व्यापार किया जाता है।
शहर में बकरों की प्रमुख मंडी मोमिनपुरा में विभिन्न विशिष्ठता के  बकरे देखे जा रहे हैं। महंगे बकरों की खरीद- फरोख्त पर शुक्रवार को मंडी में उछाल आने की संभावना बताई गई। 
गत दिनों मेडिकल चौक निवासी मम्मू भाई पहलवान ने सवा लाख का बकरा खरीदा। कुर्बानी के लिए इन्हें खरीदा जाता है। पिपरिया निवासी ज्वाला प्रसाद वंजारा ने अपने छह फीट ऊंचे बकरे की कीमत डेढ़ लाख रुपए रखी है।
भालदारपुरा निवासी मो. साबिर ने बताया कि कुरान के अनुसार अपनी सबसे अजीज वस्तु अल्लाह के नाम पर कुर्बान करने का नियम है। यहां कीमत कोई मायने नहीं रखती है। मंडी में बकरा पसंद आने पर दाम तय किए जाते हैं।

कांग्रेस की बैठक में चले लात-घूंसे, प्रदेश उपाध्यक्ष देखते रहे


पाली. जिलाध्यक्ष पद को लेकर दो गुटों में बंटी कांग्रेस की गुटबाजी शुक्रवार को फिर एक बार विवादों में घिर गई। प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष महेंद्रसिंह की मौजूदगी में दोनों गुटों के कार्यकर्ता राजीव गांधी स्मृति भवन में आपस में उलझ गए और स्थिति लातों-घूसों तक पहुंच गई।

इस दौरान महिला कार्यकर्ताओं की उपस्थिति को भी उन्होंने नजर अंदाज कर दिया और एक-दूसरे के साथ गाली गलौज करते हुए धक्का मुक्की करते रहे। ऐसी स्थिति देख पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष ने भी कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाकर बैठक समाप्त करना ही उचित समझा।


सोनिया गांधी की 4 नवंबर को दिल्ली में प्रस्तावित रैली की तैयारी को लेकर शुक्रवार को यहां कांग्रेस भवन में प्रदेश उपाध्यक्ष महेंद्रसिंह के नेतृत्व में बैठक बुलाई गई। शुरुआत में ही जब उनके स्वागत के लिए कांग्रेस जिलाध्यक्ष सीडी देवल उद्बोधन के लिए खड़े हुए तो पूर्व विधायक भीमराज भाटी व उनके समर्थकों ने उनको यह कहते हुए नीचे बैठने को कहा कि वे जिलाध्यक्ष नहीं है। इस पर दोनों गुट के कार्यकर्ता आमने-सामने हो गए। देखते ही देखते बात लातों-घूंसों तक पहुंच गई। इस बीच वहां मौजूद महिला कार्यकर्ताओं के साथ भी धक्का-मुक्की की गई, तब बड़ी मुश्किल से उन्हें भवन के बाहर ले जाया जा सका।

प्रदेश उपाध्यक्ष महेंद्रसिंह की काफी समझाइश के बाद कार्यकर्ता शांत हुए। इसके बाद जब महेंद्रसिंह कार्यकर्ताओं को संबोधित करने लगे तो एक स्थानीय कार्यकर्ता ने बैठक में पार्टी के पार्षदों के नहीं आने का सवाल उठाया। इस पर एक अन्य पदाधिकारी ने उसे नीचे बैठने को कहा। इस पर मामला फिर गरमा गया और फिर कार्यकर्ता आपस में उलझ गए तथा एक-दूसरे पर बाहें चढ़ाने लगे। इसके बाद सभी पदाधिकारी एक-एककर बैठक से चलते बने। बैठक के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में महेंद्रसिंह ने इस घटना पर निंदा जताई।

उन्होंने कहा कि जिलाध्यक्ष पद पर नियुक्ति का मामला हाईकमान के पास है। इधर, पार्टी जिलाध्यक्ष देवल ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र प्रेषित कर पूर्व विधायक भीमराज भाटी तथा रोहट ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष लूणाराम जाट को पार्टी से निष्कासित करने की मांग की है। इस बैठक में जिला प्रमुख खुशवीरसिंह जोजावर व चेयरमैन केवलचंद गुलेछा सहित बड़ी संख्या में पार्टी पदाधिकारी व कार्यकर्ता मौजूद थे।

कुरान का संदेश

27 को हनुमान पूजा में इस मंत्र व सरसों तेल के दीये के उपाय से बनेंगे मनचाहे काम



रुद्र अवतार के रूप में श्रीहनुमान जहां शैव यानी शिव भक्तों व तंत्र साधकों के लिए तो श्रीरामदूत के रूप में विष्णु उपासकों के भी इष्ट हैं। इस तरह श्रीहनुमान चरित्र में समाई हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव की शक्तियों का असर हर भक्त के लिए संकटमोचक बन खुशहाल बनाने वाला होता है।
धार्मिक मान्यता है कि दण्डाधिकारी शनि देव भी शिव के आदेश पर ही सांसारिक प्राणियों पर अच्छे कामों के लिए कृपा करते हैं, तो बुरे कामों की सजा नियत करते हैं।
यह भी एक वजह है कि शनिवार के दिन रुद्र अवतार श्रीहनुमान की उपासना से न केवल शनि दोष शांति होती है, बल्कि इससे पैदा कई तरह के कामों की अड़चने व कष्ट-बाधाएं दूर होती हैं।
इसी कड़ी में अगली तस्वीर के साथ बताया जा रहा है शनिवार और खासतौर पर शरद पूर्णिमा के दिन हनुमान पूजा में अपनाए जाने वाला एक ऐसा उपाय जो शनि दशा के बुरे असर से बचाने करने के साथ-साथ सारे मनचाहे काम भी बनाएगा।

धोबी रिजर्वेशन पाए और मुस्लिम धोबी धक्के खाए: यह कैसा इन्साफ है ?


लेखक : अब्दुल हफीज गाँधी

सेकुलरिस्म हिंदुस्तान की ज़रुरत है. ज़रुरत इसलिए क्योंकि हमारे मुल्क में मुक्तलिफ़ मजाहिब को मानने वाले लोग रहते हैं. हमने इरादतन अपने मुल्क का सेकुलर आईन बनाया ताकि सभी मजाहिब के मानने वालों के साथ इन्साफ हो सके. सेकुलर निजाम की ज़रुरत शायद इसलिए भी थी क्योंकि ऐसे निजाम में ही कमजोर, पिछड़े तबको और अकलियतों की तरक्की मुमकिन है. हमारा सेकुलर आईन सरकारों और उसके मुक्तलिफ़ विभागों को यह हिदायत देता है कि वो मजहब के आधार पर किसी भी तरह का कोई भेद भाव नहीं बरतेंगे. लेकिन इस देश में सरकारें आईन के सेकुलर उसूल के खिलाफ कई बार काम करती आयीं हैं. Presidential Order, 1950 , जो कि हिन्दुस्तानी आईन के दफा 341 के तहत लाया गया है, इसकी जीती-जागती मिशाल है. यह 1950 का आर्डर मजहब के आधार पर भेद भाव करता है. इसके तीसरे हिस्से में 1956 से पहले लिखा गया था कि हिन्दू मजहब के मानने वाले दलित समाज के लोग ही सिर्फ Scheduled Caste (SC ) माने जायेंगे. 1956 में इस आर्डर में तब्दीली की गयी और सिख मजहब के मानने वाले दलितों को इसमें शामिल कर लिया गया. इसके बाद 1990 में बौद्ध मजहब के मानने वाले दलित समाज के लोगों को भी इसमें जोड़ दिया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि सिख और बौद्ध मजाहिब के मानने वाले दलित समाज के लोगों को भी रिजर्वेशन के फायदे हिन्दू दलितों के साथ मिलने शुरू हो गए. लेकिन जो दलित समाज के लोग इस्लाम और इसाई मजाहिब में शामिल हुए उनको यह रिजर्वेशन का फायदा नहीं मिल पा रहा है क्योंकि यह लोग Presidential Order,1950 के दायरे में शामिल नहीं हैं. इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि जो मजाहिब हिंदुस्तान में पैदा हुए इनके मानने वाले या बाद में इन मजाहिब में शामिल हुए दलित समाज के लोगों को तो रिजर्वेशन का फायदा मिल रहा है और जो दलित समाज के लोग हिंदुस्तान के बहार से आये मजाहिब जैसे इस्लाम और इसाई मजहब में शामिल हुए इनको रिजर्वेशन का हक नहीं है. यह तो साफ़ तौर पर नाइंसाफी है क्योंकि हिंदुस्तान में मजहब बदलने से जात-पात नहीं बदल जाती है. हिन्दू दलित समाज के लोग चाहे वो किसी भी मजहब में अपना मजहब बदल कर गए बदनसीबी से जात-बिरादरी उनके साथ ही गयी. मजहब की तब्दीली के बाद भी दलितों के तालीमी और समाजी हालात वही रहते हैं, इसलिए सिर्फ हिन्दू, सिख और बौद्ध मजाहिब में रहे या गए दलितों को को ही रिजर्वेशन देना और दूसरे मजाहिब जैसे इस्लाम, पारसी और इसाई में गए दलित समाज के लोगों को रिजर्वेशन से महरूम रखना आईनी एतबार से ठीक नहीं है. बड़ी अजीब बात है की हिंदुस्तान में जात-पात के निजाम ने इतनी मजबूत जड़े बना ली हैं कि इंसान अपना मजहब तो बदल सकता है पर जात नहीं. जात उसको ज़िन्दगी भर परेशान करती है और मरने के बाद भी पीछा नहीं छोडती.

1985 में सुप्रीम कोर्ट ने Soosai Versus Union of India 1985 (Supp SCC 590) के फैसले में कहा था कि जात मजहब बदलने के बाद भी जारी रहती है. इसलिए कोई भी दलित समाज का फर्द चाहे सिख, बौद्ध, इस्लाम और इसाई मजहब में जाये उसकी जात उसका पीछा नहीं छोडती. हिन्दुस्तानी समाज में जो नुकसानात जात से जोड़ दिए गए हैं वो उसका पीछा बदले हुए मजहब में भी करते हैं. कोई इसको माने या न माने पर हर धर्म के मानने वाले ज़यादातर लोग जात-बिरादरी के वायरस से आज भी उसी सिद्दत से बीमार हैं जैसा पहले थे और उन्होंने अपनी यह बिमारी आज के मॉडर्न ज़माने में भी कमोवेश जारी रखी हुई है. जात-बिरादरी से जुड़े नुकसानात उतने ही बराबर हैं चाहे दलित समाज के लोग किसी भी मजहब में जायें. फिर क्यों नहीं जो दलित समाज के लोग इस्लाम और इसाई मजहब में जाते हैं उनको Scheduled Caste का फायदा दिया जाता है? यह तो मजहब के आधार पर भेद भाव हुआ. जब मजहब बदलने पर तालीमी और समाजी हालात वही रहते हैं तो फिर यह भेद भाव क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवम्बर, 1992 को अपने Indra Sawhney Versus Union of India (Supp 3 SCC 217 ) के फैसले में माना था कि जात सिर्फ हिन्दुओं तक ही महदूद नहीं है, यह दूसरे मजाहिब के मानने वालों में भी पाई जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने बिलकुल सही पहचान की और यह सच्चाई भी है. हालांकि सिख, बौद्ध, इस्लाम और इसाई मजाहिब में जात-पात का कोइ तजकिरा नहीं है. यह सभी मजाहिब उसूलन इंसानों की बराबरी की बात करते हैं, लेकिन इनके मानने वाले सिखों, बौद्धों, मुसलमानों और इसाईयों में जात-पात देखने को मिलती है. जात-पात समाज की एक कडवी हकीकत के तौर पर हमारे सामने मुंह बाए खड़ी रहती है. जो लोग हिन्दू दलितों से सिख, बौद्ध, मुस्लमान या इसाई बने वो आज भी अपनी जात-बिरादरी का दाग अपने सर पर ढौह रहे हैं. इस हकीकत से कोई इंकार नहीं कर सकता.

दलित समाज से जो लोग मुस्लमान या इसाई बने उनके लिए Scheduled Caste दर्जे की मुफलिफत करने वाले लोग कहते हैं कि यह रिजर्वेशन का फायदा मुसलमानों और इसाईयों को नहीं दिया जा सकता क्योंकि इस्लाम और इसाई मजहब में जात-बिरादरी का कोई तसव्वुर नहीं है. हाँ यह सच है. लेकिन अगर यह तर्क माने तो सिख और बौद्ध मजाहिब भी जात-पात के खिलाफ ही खड़े हुए और इनमे भी जात-पात की मनाही है पर इन मजाहिब के मानने वालों में भी जात-पात पायी जाती है और इसके वावजूद रिजर्वेशन का फायदा उनको मिल रहा है. फिर क्यों नहीं ये फायदा उन दलित समाज के लोगों तक पहुंचना चाहिए जिन्होंने इस्लाम या इसाई मजहब कबूल किया. यह कैसा इन्साफ है कि समाज में हसियत एक पेशा एक और सरकारी फायदों में भेद भाव. क्या यह इंसाफी है कि हिन्दू धोबी को तो रिजर्वेशन मिले लेकिन मुस्लिम धोबी का नहीं, जबकि समाज में इनकी एक ही हसियत है और पेशा भी. इन दोनों में ही तालीमी और समाजी पिछड़ापन है. फिर क्यों नहीं Scheduled Caste से जुड़े फायदे दोनों को ही दिए जाते हैं ?

इस मसले पर बहुत सी कमीशन और कमेटियों की रिपोर्ट आ चुकी हैं. 1969 में एल्यापेरुमल कमेटी ने कहा था Scheduled Caste से जुड़े फायदे गैर-हिन्दू दलितों को भी मिलने चाहिए. मंडल कमीशन ने 1980 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जात-पात हिन्दू मजहब में है पर इसका असर दूसरे धर्मों में भी मिलता है. 1983 में गोपाल सिंह कमीशन ने भी माना था कि Presidential Order,1950 में तरमीम हो ताकि इसके फायदे दूसरे मजहिब में गए दलित समाज के लोगों को भी मिलें. मरकजी अकलियती कमीशन ने भी पुरजोर तरीके से कहा है कि 1950 के आर्डर में तरमीम करके मुस्लिम और ईसाई समाज में गए दलितों को रिजर्वेशन और दूसरे फायदे जो Scheduled Caste को मिलते हैं वो मिलने चाहिए. इस 1950 के आर्डर को गैर-आईनी करारे देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 3 और मुक्तलिफ़ हाई कोर्ट्स में 7 रिट पेटिसन ज़ैरे गौर हैं. 21 मई 2007 को रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने भी 1950 के आर्डर को गैर-आईनी करार दिया है और अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस आर्डर में मजहब की बुनियाद ख़त्म की जाये और Scheduled Caste उन सभी दलितों को माना जाये जो किसी भी मजहब में चले गए हैं. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह 1950 का आर्डर किसी भी हिन्दू दलित को कोई और मजहब अपनाने से रोकता है और यह हिन्दुस्तानी आईन में दी गयी उसकी मजहबी आजादी के हक की खिलाफ वर्जी है. इससे किसी भी इंसान को अपनी मर्ज़ी का मजहब अख्तियार करने पर रोक लगती है, क्योंकि अगर कोई हिन्दू दलित सिख और बौद्ध मजहब के अलावा कोई और धर्म अख्तियार करेगा तो उसको Scheduled Caste को दिए गए रिजर्वेशन के सारे फायदे से महरूम होना पड़ेगा. यह आईन की दफा 14 , 15 ,16 और 25 के खिलाफ है. आईन के मुताबिक न तो रिजर्वेशन मजहब के आधार पर हो सकता है और ना ही मजहब के आधार पर रिजर्वेशन छीना जा सकता है. लेकिन यह 1950 का आर्डर तो यही कर रहा है कि यह उन दलितों से रिजर्वेशन छीन लेता है जो गैर-हिन्दू मजाहिब जैसे इस्लाम, ईसाईयत, पारसी बगैरह में शामिल हो जाते हैं.

मुझे लगता है कि हिंदुस्तान में जो लोग दलितों की लडाई लड़ रहे हैं उनको Presidential Order, 1950 को तरमीम कराने की लडाई लड़नी होगी ताकि दलित समाज के लोग जो किसी भी मजहब में हों, जिनको समाज के ज़रिये सदियों के सताने और जुल्मात से जख्म मिले हैं, वो जख्म उनके भर सकें, वो तालीमी इदारों और नौकरियों में आ सकें. अगर दलित समाज के लीडरान ऐसा नहीं करते हैं तो यह सन्देश जायेगा कि दलित सिर्फ हिन्दू और उससे जुड़े मजाहिब से ही हो सकता और उन्ही को फायदा पहुंचे. और आम लोग यह भी सोचने पर मजबूर हो जायेंगे कि जो दलित समाज के लोग दूसरे मजहिब में चले गए उनकी दलित समाज के लीडरान को कोई चिंता नहीं है. मतलब यह निकलेगा कि अब भी दलित सिर्फ हिन्दू समाज में ही बंधा रहना चाहता है और बाबा साहेब भीम राव आम्बेडकर की वर्ण-व्यवस्था के खिलाफ सारे संघर्षों को दलित लीडरान ने भुला दिया है. और अगर ऐसा नहीं है तो दलित समाज के लीडरान को पुख्तगी से Presidential Order , 1950 को तरमीम कराने की लडाई में साना- बसाना खड़े होना पड़ेगा.

सेकूलरिस्म हमारे आईन का अहम् उसूल है.लेकिन 1950 का यह आर्डर इस उसूल के बिलकुल खिलाफ है. इसे जितनी जल्दी दुरुस्त किया जायेगा उतना बढ़िया है. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर जल्दी ही अपना फैसला सुनाएगा. मरकजी सरकार को भी इस गैर-आईनी आर्डर को जल्द से जल्द तरमीम करके मजहब की बुनियाद Scheduled Caste से हटा लेनी चाहिए. अगर इतनी सारी कमीशन और कमेटी की रिपोर्टों के बाद भी सरकार इस आर्डर को तरमीम नहीं करती है तो यह हमारे मुल्क के सेकुलर निजाम के लिए बढ़िया बात नहीं है. सभी मजाहिब में मौजूद दलित समाज के लोगों का विकास इससे जुडा हुआ है. इससे तालीमी इदारों में, नौकरियों में, सियासी रिजर्वेशन (पंचायतों, municipal corporation , विधान सभा और लोक सभा की सीटों में ) और जो कानून दलितों के ताफ्फुज़ में ,जैसे SC /ST (Prevention of Atrocities) Act , 1989 , Prevention of Civil Liberties Act ,1955, बनाये गए हैं इनका फायदा हर मजहब में मौजूद या गए हुए दलित समाज के लोगों को मिलेगा. सेकुलर आईन और निजाम में फायदे मजहब के आधार पर नहीं बल्कि तालीमी और समाजी हालात के आधार पर दिए जाने चाहिए.

(लेखक: जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय में रिसर्च स्कोलर और अलीगढ मुस्लिम विश्वविधालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं. उनसे abdulhafizgandhi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है).

क्यों मनाते हैं बकरीद, क्या आप जानते हैं?



27 अक्टूबर, शनिवार को बकरीद का पर्व है। बकरीद को इस्लाम में बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। इस्लाम में एक वर्ष में दो ईद मनाई जाती है। एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी है बकरीद। बकरीद पर अल्लाह को बकरे की कुर्बानी दी जाती है। पहली ईद यानी मीठी ईद समाज और राष्ट्र में प्रेम की मिठास घोलने का संदेश देती है।

दूसरी ईद अपने कर्तव्य के लिए जागरूक रहने का सबक सिखाती है। राष्ट्र और समाज के हित के लिए खुद या खुद की सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का संदेश देती है। बकरे की कुर्बानी तो प्रतीक मात्र है, यह बताता है कि जब भी राष्ट्र, समाज और गरीबों के हित की बात आए तो खुद को भी कुर्बान करने से नहीं हिचकना चाहिए।

कुर्बानी का मतलब है दूसरों की रक्षा करना

कोई व्यक्ति जिस परिवार में रहता है, वह जिस समाज का हिस्सा है, जिस शहर में रहता है और जिस देश का वह निवासी है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह अपने देश, समाज और परिवार की रक्षा करें। इसके लिए यदि उसे अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देना पड़े तब भी वह पीछे ना हटे।

तीन हिस्से किए जाते हैं कुर्बानी के

इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से ईद-उल-जुहा पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों का बांटा दिया जाता है।

घरेलू हिंसा के मामलों में पति के रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई से बचें- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली. दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मामलों में पति के रिश्तेदारों को भी आरोपी बनाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि बिना किसी ठोस आरोप सिर्फ शिकायत में नाम आने पर पति के रिश्तेदारों के खिलाफ मामला दर्ज नहीं होना चाहिए। 
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को दहेज उत्पीड़न के मामलों में पति के परिजनों के खिलाफ फैसला देते हुए सावधान रहना चाहिए क्योंकि कई पत्नियां ससुराल पक्ष के लोगों से बदला लेने के लिए ऐसी शिकायतें दर्ज करा देती हैं। 
 
 
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस टीएस ठाकुर और ज्ञन सुधा मिश्रा की खंडपीठ ने कहा, 'घरेलू और वैवाहिक कलह के मामलों में दर्ज एफआईआर में अगर आरोपी और सह आरोपियों के खिलाफ तफसील से आरोप नहीं लगाए गए हैं तो फिर शिकायत में नाम आने पर आरोपियों को कठोर न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने के लिए मजबूर करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। '
 
खंडपीठ ने कहा कि पति के परिजनों के खिलाफ तब तक अदालती कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए जब तक एफआईआर में उनके खिलाफ विशेष तौर पर आरोप न हो क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वो पीड़िता के मानसिक या शारिरिक शोषण में शामिल नहीं होते हैं। 
 
अदालत ने यह फैसला उत्पीड़न के आरोपी एक पति के रिश्तेदारों की याचिका पर दिया। इन रिश्तेदारों को भी पत्नी ने अपनी एफआईआर में नामित किया था। अदालत ने कहा, 'वैवाहिक कलह के मामलों में दर्ज एफआईआर की सुनवाई को दौरान अदालतों को सावधान रवैया अपनाना चाहिए क्योंकि कई बार प्रत्यक्ष रूप से यह प्रतीत होता है कि पत्नी ने ससुराल पक्ष के लोगों से घरेलू नोक-झोंक का बदला लेने के लिए उनका भी नाम एफआईआर में दर्ज करवाया होता है।'
 
इस मामले में दर्ज एफआईआर का विश्लेषण करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि रिश्तेदारों द्वारा उत्पीड़न करने का कोई भी ठोस प्रमाण एफआईआर में नहीं था और न ही किसी ऐसे वाक्ये का जिक्र किया गया था जब परिजनों ने उत्पीड़न किया हो। 
 
अदालत ने पति के रिश्तेदारों के खिलाफ चल रही दाण्डिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और अदालत और पुलिस को ऐसे मामलों में सावधानी से कार्रवाही करने की सलाह दी। अदालत ने कहा, 'यदि एफआईआर में अपराध करने का जिक्र न हो तो अदालत का ऐसे मामलों को रद्द करना पूरी तरह न्यायोचित है ताकि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न किया जा सके।
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