दीपावली मनाने के पीछे कई मान्यताएं और किवदंतियां प्रचलित हैं।
एक मान्यता यह भी है दीपावली का पर्व राजा बलि की स्मृति में मनाया जाता
है। इसकी कथा इस प्रकार है-
दानवीर राजा बली की त्रिलोक विजय से भयभीत इंद्र ने भगवान विष्णु से उसे रोकने का अनुरोध किया। भगवान बौने(वामन) का रूप धारण कर बली के पास पहुंचे और कहा, मुझे अपने तीन कदम के बराबर भूमि दान चाहिए। फिर उन्होंने विराट रूप धारणकर एक कदम में पूरी धरती, दूसरे कदम में पूरा आकाश नाप लिया। बली को यह समझते देर नहीं लगी कि वे स्वयं नारायण हरि है।
उसने हाथ जोड़कर कहा कि तीसरे पग के लिए मेरा मस्तक प्रस्तुत है। भगवान ने उसके सिर पर पैर रखकर उसे पाताल में भेज दिया। उन्होंने बली की दानशीलता से प्रसन्न होकर यह वरदान दिया कि उसकी याद में धरती पर प्रतिवर्ष दीपोत्सव मनाया जाएगा।
दानवीर राजा बली की त्रिलोक विजय से भयभीत इंद्र ने भगवान विष्णु से उसे रोकने का अनुरोध किया। भगवान बौने(वामन) का रूप धारण कर बली के पास पहुंचे और कहा, मुझे अपने तीन कदम के बराबर भूमि दान चाहिए। फिर उन्होंने विराट रूप धारणकर एक कदम में पूरी धरती, दूसरे कदम में पूरा आकाश नाप लिया। बली को यह समझते देर नहीं लगी कि वे स्वयं नारायण हरि है।
उसने हाथ जोड़कर कहा कि तीसरे पग के लिए मेरा मस्तक प्रस्तुत है। भगवान ने उसके सिर पर पैर रखकर उसे पाताल में भेज दिया। उन्होंने बली की दानशीलता से प्रसन्न होकर यह वरदान दिया कि उसकी याद में धरती पर प्रतिवर्ष दीपोत्सव मनाया जाएगा।