खबरदार हो की मुहर्रम का महीना अहलेबैत (अ:स) और इनके
पैरोकारों के लिये रंज व ग़म का महीना है! ईमाम रज़ा (अ:स) से रिवायत है की
जब माहे मुहर्रम आता था तो हर कोई शख्स वालिदे बुज़ुर्गवार ईमाम मूसा काज़िम
(अ:स) क़ो हँसते हुए नही पाटा था! आप पर रंज व ग़म तारी रहा करता था और दसवीं
मुहर्रम के दिन आप आह-व ज़ारी करते और फ़रमाते की आज वो दिन है जिसमे ईमाम
हुसैन (अ:स) क़ो शहीद किया गया था!
पहली मुहर्रम की रात
सैय्यद ने किताबे इक़बाल में ईस रात की चंद नमाजें
ज़िक्र फ़रमाई हैं :
1. 100 रक्'अत नमाज़ जिसके हर रक्'अत में सूरः हम्द और
सूरः तौहीद पढ़ें
2. 2 रक्'अत नमाज़ जिसकी पहली रक्'अत में सूरः अल-हम्द
के बाद सूरः अन-आम और दूसरी रक्'अत में सूरः अल-हम्द के बाद सूरः यासीन पढ़ें
3. 2 रक्'अत नमाज़ जिसकी हर रक्'अत में सूरः अल-हम्द के
बाद ११ मर्तबा सूरः तौहीद पढ़ें
रिवायत हुई है की हज़रत रसूल'अल्लाह
(स:अ:व:व) ने फ़रमाया की
जो शख्स ईस रात क़ो
दो रक्'अत नमाज़ अदा करे और इसकी सुबह क़ो जो साल का पहला दिन
है रोज़ा रखे तो वो ईस शख्स के मानिंद होगा जो साल भर तक अमाले ख़ैर बजा
लाता रहा! वो शख्स ईस साल महफूज़ रहेगा और अगर इसे मौत आ जाए
तो वोह बहिश्त में दाख़िल
हो जाएगा! इसके बाद सैय्यद ने
मुहर्रम का चाँद देखने के वक़्त की एक तवील दुआ
भी नक़ल फ़रमाई है!
पहली मुहर्रम का दिन :
यह साल का पहला दिन है और इसके लिये दो अमल ब्यान हुए
हैं!
1. रोज़ा रखे, ईस सिलसिले में रियान बिन शबीब ने ईमाम
अली रज़ा (अ:स) से रिवायत फ़रमाई है की जो शख्स पहली मुहर्रम का रोज़ा रखे
और ख़ुदा से कुछ तलब करे तो वो इसकी दुआ क़बूल फ़रमाएगा, जैसे हज़रत ज़करिया
(अ;स) की दुआ क़बूल फ़रमाई थी!
2. इमा अली रज़ा (अ:स) से रिवायत हुई है की हज़रत रसूल
अल्लाह (स:अ:व:व) पहली मुहर्रम के दिन २ रक्'अत नमाज़ अदा फ़रमाये और नमाज़
के बाद अपने हाथ आसमान की तरफ़ बुलंद करके तीन मर्तबा यह दुआ पढ़े :
اَللَّهُمَّ انْتَ
ٱلإِلٰهُ ٱلْقَدِيمُ
|
अल्लाहुम्मा अन्ता अल-इलाहू अल'क़'दीमु
|
ऐ अल्लाह तू क़दीमी माबूद है
|
وَهٰذِهِ سَنَةٌ جَدِيدَةٌ
|
वा हा'ज़िही सनातुं जदी'दतून
|
और यह नया साल है ;
|
فَاسْالُكَ
فِيهَا ٱلْعِصْمَةَ مِنَ ٱلشَّيْطَانِ
|
फ़-अस'अलुका फीहा' अल'इस्मता
मिना अलश'
शैतानी
|
जो अब आया है,
बस ईस साल के
दौरान में शैतान से बचाव का सवाल करता हूँ,
|
وَٱلْقُوَّةَ عَلَىٰ هٰذِهِ ٱلنَّفْسِ ٱلامَّارَةِ
بِٱلسُّوءِ
|
वल'क़ुव'वता `अला हा'ज़िही अलं'नफ्सी अल-अम्मा'रति बिल'सुई
|
ईस नफ़स पर
______
का सवाल करता हूँ जो
बुराई पर आमादा करता है ,
|
وَٱلاِﹾشْتِغَالَ
بِمَا يُقَرِّبُنِي إِلَيْكَ يَا كَرِيمُ
|
वल'इश्ती'गाला बीमा युक़र'रिबुनी इलयका या करीमु
|
और यह के मुझे ईन कामों में लगा जो मुझे तेरे नज़दीक करें! ऐ
मेहरबान,
!
|
يَا ذَا ٱلْجَلاَلِ وَٱلإِكْرَامِ
|
या ज़ा'
अल्जलाली वल-इक्रामी
|
ऐ जलालत और बुज्र्गी के मालिक!
|
يَا عِمَادَ مَنْ لاَ عِمَادَ لَهُ
|
या `इमादा मन ला
'इमादा
लहू
|
ऐ बे'सहारों
के मालिक!
|
يَا ذَخِيرَةَ مَنْ لا ذَخِيرَةَ لَهُ
|
या ज़खी'रता मन ला ज़खी'रता लहू
|
ऐ तंग-दस्त लोगों के
खज़ाने!
|
يَا حِرْزَ مَنْ لاَ حِرْزَ لَهُ
|
या
हिर्ज़ा मन ला
हिर्ज़ा लहू
|
ऐ बेकस लोगों के निगहबान!
|
يَا غِيَاثَ مَنْ لاَ غِيَاثَ لَهُ
|
या गियासा मन ला गियासा लहू
|
ऐ बेबस लोगों के फ़रयाद'रस!
|
يَا سَنَدَ مَنْ لاَ سَنَدَ لَهُ
|
या सनद मन ला सनद लहू
|
ऐ बे हैसियतों की
हैसियत !
|
يَا كَنْزَ مَنْ لاَ كَنْزَ لَهُ
|
या कंजा मन ला कंजा लहू
|
ऐ बे खज़ाना लोगों के खज़ाने!
|
يَا حَسَنَ ٱلْبَلاَءِ
|
या हसना अल'बला'इ
|
ऐ बेहतर आज़माइश करने वाले !
|
يَا عَظِيمَ ٱلرَّجَاءِ
|
या `अज़ीमा अल'रजा'इ
|
ऐ सबसे बड़ी उम्मीद!
|
يَا عِزَّ ٱلضُّعَفَاءِ
|
या `इज्ज़ा अल्द'दु`अफ़ा'इ
|
ऐ कमजोरों की इज़्ज़त!
|
يَا مُنْقِذَ ٱلْغَرْقَىٰ
|
या मून'किज़ा अल'गर्क़ा
|
ऐ डूबतों क़ो तैराने वाले!
|
يَا مُنْجِيَ ٱلْهَلْكَىٰ
|
या मुन्जिया अल'हल्का
|
ऐ मरतों क़ो बचाने वाले!
|
يَا مُنْعِمُ يَا مُجْمِلُ
|
या मून`इमू या मुज'मिलु'
|
ऐ नेमत
वाले,
ऐ जमाल वाले!
|
يَا مُفْضِلُ يَا مُحْسِنُ
|
या मुफ्दिलू या मुह्सिनु'
|
ऐ फज़ल वाल!
ऐ एहसान वाले!
|
انْتَ
ٱلَّذِي سَجَدَ لَكَ سَوَادُ ٱللَّيْلِ وَنُورُ ٱلنَّهَارِ
|
अन्ता अल'लज़ी सजदा लका सवादु अल'लयली वा
नूरु अल'नहारि
|
तू वो है जिसको सजदा करते हैं,
रात
के अँधेरे दिन के उजाले,
|
وَضَوْءُ ٱلْقَمَرِ وَشُعَاعُ ٱلشَّمْسِ
|
वा दव'उ अल'क़मरी वा शु`आ`उ अल'श-शाम'सि
|
चाँद की चांदनियां सूरज की
किरणें,
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وَدَوِيُّ ٱلْمَاءِ وَحَفِيفُ ٱلشَّجَرِ
|
वा दविय्यु अल्मा'ई वा हफीफ़ु अल'श-शाजरि
|
पानी की रवानियाँ और
दरख्तों की सरसराहटें!
|
يَا اللَّهُ لاَ شَرِيكَ لَكَ
|
या अल्लाहू ला शरीका लका
|
ऐ अल्लाह!
तेरा कोई साथी नहीं है!
|
اَللَّهُمَّ ٱجْعَلْنَا خَيْراً مِمَّا يَظُنُّونَ
|
अल’लाहुम्मा इज`अल्ना खैरन मिम्मा यज़ुं'नून'
|
ऐ अल्लाह !
हमें बना जैसा
लोग हमको अच्छा समझते
हैं!
|
وَٱغْفِرْ لَنَا مَا لاَ يَعْلَمُونَ
|
अव'अग्फ़िर लना मा ला या`लमूना'
|
हमारे वो गुनाह
बख्श दे
जो वो नहीं जानते
हैं!
|
وَلاَ تُؤَاخِذْنَا بِمَا يَقُولُونَ
|
वा ला तू'आखिज़'ना बीमा यक़ूलूना'
|
और जो
कुछ वो
हमारे बारे में कहते
हैं इसपर हमारी गिरफ़्त ना
कर!
|
حَسْبِيَ ٱللَّهُ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ هُوَ
|
हसबिया अल्लाहू ला इलाहा इल्ला हुवा'
|
अल्लाह काफ़ी
है
(हमारे लिये), नहीं
कोई
माबूद सिवाए इसके,
|
عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَهُوَ رَبُّ ٱلْعَرْشِ ٱلْعَظِيمِ
|
अलैही
तवक'कल्तु वा हुवा रब्बु अल'अर्शी
अल'अज़ीमी
|
मै इसपर
भरोसा करता हूँ, और
वो अर्शे अज़ीम
का परवरदिगार है.
|
آمَنَّا بِهِ كُلٌّ مِنْ عِنْدِ رَبِّنَا
|
अमन्ना बिही कुल्लुन मिन `इंदी रब्बिना
|
हमारा ईमान
है की सब कुछ हमारे
रब की तरफ़
से है!
|
وَمَا يَذَّكَّرُ إِلاَّ
اوْلُوٱ
ٱلالْبَابِ
|
वा मा यज़'ज़क'करू इल्ला उलू अल-अल्बाबी
|
और साहिबाने अक़ल के सिवा
कोई
नसीहत नहीं पकड़ता.
|
رَبَّنَا لاَ تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا
|
रब्बना ला तुजिग़ क़ुलू'बना बा`दा ईज़ हादय'तना
|
ऐ हमारे रब हमारे दिलों क़ो टेढ़ा
न होने दे,
जबकि हमें
हिदायत
दी है,
|
وَهَبْ لَنَا مِنْ لَدُنْكَ رَحْمَةً إِنَّكَ انْتَ
ٱلْوَهَّابُ
|
वा हब लना मिन लदुनका रहमतन इन्नका अन्ता अल'वह'हाबू
|
और हमें अपनी तरफ़ से रहमत अता कर,
बेशक तो
बहुत अता करने वाला है!.
|
शेख़ तूसी (र:अ) ने फ़रमाया की मुहर्रम के पहले 9 दिनों के रोज़े रखना मुस्तहब है, मगर यौमे आशूरा क़ो असर तक कुछ न खाए पिये, और असर के बाद, थोड़ी सी ख़ाके शिफ़ा ख़ा ले, सैय्यद ने पुरे मुहर्रम के रोज़े रखने की फ़ज़ीलत लिखी और फ़रमाया है की ईस महीने का रोज़ा इंसान क़ो हर गुनाह से महफूज़ रखता है! सिवाए यौमे आशूरा के क्योंकि ईस दिन का रोज़ा मकरूह है और बाज़ लोगों के नज़दीक हराम है!
तीसरी मुहर्रम का दिन
यह वो दिन है की जिसमे हज़रत युसूफ (अ:स)
क़ैदखाने से आज़ाद हुए थे, जो शख्स ईस दिन का रोज़ा रखे, हक्क़े ताला इसकी
मुश्किलों क़ो आसान करता है, और इसके ग़मो क़ो दूर करता है, इसके इलावा रसूल अल्लाह (स:अ:व:व)
से रिवायत हुई है की ईस दिन का रोज़ा रखने वाले की दुआ क़बूल की जाती है!.
नौवीं मुहर्रम का दिन
यह रोज़े तासू'अ1
है,
ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) से रिवायत है की
9
मुहर्रम के दिन फौजे यज़ीद ने ईमाम हुसैन (अ:स)
और इनके अंसार का
घेराव करके लोगों
क़ो इनके क़त्ल पर आमादा किया! इब्ने मरजाना और
उमर-ए-साद अपने
लश्कर की कसरत पर
ख़ुश थे,
और ईमाम हुसैन (अ:स) क़ो इनकी फ़ौज की कमी की
वजह
से कमज़ोर समझ रहे
थे! इन्हें यक़ीन हो गया था की
अब ईमाम हुसैन (अ:स) का कोई
यारो-मददगार नहीं आ सकता,
और इराक़ वाले इनकी कुछ भी मदद नहीं करेंगे! ईमाम जाफ़र
अल-सादीक़ (अ:स) ने यह भी फ़रमाया की ईस ग़रीब व ज़'इफ़
यानी ईमाम
हुसैन (अ:स) पर
मेरे वालिदे बुज़ुर्गवार फ़िदा व
क़ुर्बान हों!
”
दसवीं मुहर्रम की रात; आशूरा की रात (शबे आशूर)
यह शबे आशूर है, सैय्यद ने ईस रात
क़ो बहुत सी बा-फ़ज़ीलत नमाजें और दुआएं नक़ल फ़रमाई हैं, ईनमें 100 रक्'अत
नमाज़ है जो ईस रात पढ़ी जाती है, ईस नमाज़ की हर एक रक्'अत में सुरः अल-हम्द के
बाद ३ मर्तबा सुरः तौहीद पढ़ें, और नमाज़ से फारिग़ होने के बाद 70 मर्तबा कहें:
पाक-तर है
अल्लाह!,
|
सुबहान
अल्लाहि
|
سُبْحَانَ ٱللَّهِ
|
हम्द अल्लाह
ही के लिये है,
|
वल
हम्दो लील'लाही
|
وَٱلْحَمْدُ لِلَّهِ
|
नहीं कोई
माबूद सिवाए अल्लाह के,
|
वा ला इलाहा इल्लल'लाहू
|
وَلاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ
|
और अल्लाह
बुज़ुर्गतर है,
|
वल'लाहू
अकबर
|
وَٱللَّهُ اكْبَرُ
|
और नहीं है
कोई हरकत व क़ुव्वत मगर वोही जो ख़ुदाए बुलंद व बरतर से मिलती है.
|
वा ला हौला वा ला क़ुव्वाता
इल्ला बिल्लाहि-अल अलियुल अज़ीमु
|
وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِٱللَّهِ ٱلْعَلِيِّ
ٱلْعَظِيمِ
|
बाज़
रिवायत है की "अल-अलियुल अज़ीम
ٱلْعَلِيِّ ٱلْعَظِيمِ" के बाद इस्तग़'फ़ार
भी पढ़ें.
दूसरा अमाल : ईस रात के आख़िरी हिस्से में 4
रक्'अत नमाज़ पढ़े जिसकी हर रक्'अत में सुराः अल-हम्द के बाद 10 मर्तबा
आयतल-कुर्सी, 10 मर्तबा सुरः तौहीद 10 मर्तबा सुराः फ़लक और 10 मर्तबा सुराः
नास पढ़े, और सलाम फेरने के बाद 100 मर्तबा सुराः तौहीद पढ़े!
तीसरा अमाल : आज की रात 4 रक्'अत नमाज़ अदा करे
जिसकी हर रक्'अत में सुराः अल-हम्द के बाद 50 मर्तबा सुराः तौहीद पढ़े! यह
वोही नमाज़े अमीरुल मोमिनीन (अ:स) है की जिसकी बहुत ज़्यादा फ़ज़ीलत
ब्यान की गयी है! ईस नमाज़ के बाद ज़्यादा से ज़्यादा ज़िक्रे इलाही करे, हज़रत
रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) पर सलवात भेजे और इनके दुश्मनों पर बहुत लानत करे!
ईस रात
में बेदारी की फ़ज़ीलत में रिवायत हुई है की ईस रात के जागने वाला इसके जैसा है
जिसने तमाम मलाएका जितनी ईबादत की हो! ईस रात में की गयी ईबादत 70 साल की इबादत
के बराबर है! अगर किसी शख्स के लिये मुमकिन हो तो आज रात इसे ज़मीने कर्बला में
रहना चाहिए, जहां वो ईमाम हुसैन (अ:स) के रौज़ा-ए-अक़दस की ज़्यारत करे और हज़रत
के नज़दीक शब् बेदारी करे ताकि हक्क़े त'आला इसको ईमाम हुसैन (अ:स) के ईन साथियों
में शुमार करे जो अपने खून में लुथ्ड़े हुए थे!.
दसवीं मुहर्रम का
दिन;
रोज़े आशूरा’
यह "यौमे आशूर" है जो ईमाम हुसैन (अ:स) की शहादत का
दिन है, यह अ'ईम्मा-ए-ताहेरीन (अ:स) और इनके पैरोकारों के लिये मुसीबत का
दिन है, और हुज़न-ओ-मलाल में रहने का दिन है! बेहतर यही है की ईमाम आली (अ:स)
के चाहने और इनकी इत्तेबा (इनको माने वाले) करने वाले मोमीन मुसलमान आज के
दिन दुनयावी कामों में मसरूफ़ न हों और घर के लिये कुछ ना कमायें बल्कि नौहा व
मातम और नाला-व-बुका में लगे रहे! ईमाम हुसैन (अ:स) के लिये मजलिस बरपा करें और
ईस तरह मातम व सीना ज़नी करें जिस तरह अपने किसी अज़ीज़ की मौत पर मातम किया
करते हों! आज के दिन ईमाम हुसैन (अ:स) की ज़्यारत आशूरा पढ़ें! हज़रत (अ:स) के
कातिलों पर बहुत बहुत लानत करें और एक दुसरे क़ो ईमाम हुसैन (अ:स) की
मुसीबत पर ईन लफ़्ज़ों में पुरसा दें!
اعْظَمَ
ٱللَّهُ
اجُورَنَا
بِمُصَابِنَا بِٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ
|
अ'ज़मा
अल्लाहु उजू'राना बे'मुसाबीना बिल हुस्सैनी अलैहिस'सलाम
|
अल्लाह
ज़्यादा करे हमारे अजर व सवाब क़ो, इसपर जो कुछ हम ईमाम हुसैन (अ:स)
की सोगवारी में करते हैं
|
وَجَعَلَنَا وَإِيَّاكُمْ مِنَ ٱلطَّالِبِينَ بِثَارِهِ
|
वा
जा'अल्ना वा इय्याकुम मिनल'तालिबीना बी'सारिही
|
और हमें
तुम्हें ईमाम हुसैन (अ:स) के खून का बदला लेने वालों में क़रार दे,
|
مَعَ وَلِيِّهِ ٱلإِمَامِ ٱلْمَهْدِيِّ مِنَ آلِ مُحَمَّدٍ
عَلَيْهِمُ ٱلسَّلاَمُ
|
मा'अ
वली'य्यिही अल-इमामिल मेहदीय्यी मिन आले मुहम्मदीन अलैहुमुस'सलामु
|
अपने वली
ईमाम मेहदी (अ:त:फ़) के हम-रिकाब होकर के जो आले मोहम्मद (अ:स) में
से हैं.
|
ज़रूरी है की आज के दिन ईमाम हुसैन (अ:स) की मजलिस और
वाक़ेआत शहादत पढ़े! खुद रोयें और दूसरों क़ो रुलाएं, रिवायत में है! जब हज़रत
मूसा (अ:स) क़ो हज़रत खिज़र (अ:स) से मुलाक़ात2 करने
और इन्से तालीम लेने का हुक्म हुआ तो सबसे पहली बात की जिस पर इनके बीच चर्चा हुई
वो यह की हज़रत खिज़र (अ:स) ने हज़रत मूसा (अ:स) के सामने ईन मसाएब की ज़िक्र किया
जो आले मुहम्मद (अ:स) पर आना था, फिर इन दोनो बुजुर्गवारों ने ईन मसाएब पर
बहुत गिरया व बुका किया!
इब्ने अब्बास से रिवायत है की इन्होंने कहा, मै मुक़ामे ज़ीक़ार में
हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ:स) के हुज़ूर गया, तो आप ने एक किताबचः निकाला जो आप
का लिखा हुआ और हज़रत रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) का लिखवाया हुआ था, आप ने इसका
कुछ हिस्सा मरे सामने पढ़ा, इसमें ईमाम हुसैन (अ:स) की शहादत का ज़िक्र ईस
तरह यह था की शहादत किस तरह होगी, और कौन आप क़ो शहीद करेगा, कौन कौन आपकी
मदद व नुसरत करेगा, और कौन कौन आपके हम-रिकाब होकर शहीद होगा! यह ज़िक्र पढ़ कर
अमीरुल मोमिनीन ने खुद भी गिरया किया और मुझ क़ो भी खूब रुलाया!
मो'अल्लिफ़ कहते हैं अगर ईस किताब में इतनी गुंजाइश होती
तो मै यहाँ ईमाम हुसैन (अ:स) के कुछ मसाएब करता लेकिन मौज़ू के लिहाज़ से
इसमें ईन वाक़े'आत का ज़िक्र नहीं किया जा सकता! लिहाज़ा पढ़ने वाले "किताबे मक़ातिल" पढ़ें!
खुलासा यह है की अगर कोई शख्स आज के दिन ईमाम हुसैन (अ:स)
के रौज़ा-ए-अक़दस के नज़दीक रहकर लोगों क़ो पानी पिलाता रहे तो वो ईस शख्स
की तरह होगा जिस ने हज़रत (अ:स) के लश्कर क़ो पानी पिलाया हो और आप के
हम-रिकाब कर्बला में मौजूद रहा हो! आज के दिन 1000 मर्तबा सुराः
तौहीद पढ़ने की बड़ी फ़ज़ीलत है! जैसा की रिवायत में है की खुदाए
त'अला ऐसे शख्स पर रहमत फ़रमाता है! सैय्यद ने आज के दिन एक दुआ पढ़ने की
ताकीद फ़रमाई है, जो दुआए अश्रात की तरह है, बल्कि बाज़ रिवायत के मुताबिक़ वो
दुआए अश्रात ही है!
शेख़ ने अब्दुल्लाह बिन सिनान से, उन्होंने ईमाम जाफा अल-सादीक़
(अ:स) से रिवायत की है की रोज़े आशूरा क़ो चाश्त () के वक़्त ४ रक्'अत नमाज़
और दुआ पढ़ना चाहिए की जिसे हम ने इख्तेसार के पेशे नज़र तर्क कर दिया है, बस जो
शख्स इसे पढ़ना चाहता हो वो किताब "ज़ाद-उल-मीयाद" देखे! यह भी ज़रूरी और
मुनासिब है की शिया मुसलमान आज के दिन इम्साक करें यानी कुछ खाएं पियें नहीं,
मगर रोज़े का क़स्द भी न करें और असर के बाद ऐसी चीज़ से फ़ाक़ा तोड़ें जो
मुसीबतज़दा इंसान खाते हैं, मसलन दूध या दही वगैरा, इसके इलावा आज के दिन
कमीजों के गरेबान खुले रखें और आस्तीनें चढ़ा कर ईन लोगों की तरह रहे जो
मुसीबत में मुब्तला होते हैं, यानी मुसीबतज़दा लोगों जैसी शक्ल व सूरत बनाए रहे!
ईमाम हुसैन (अ:स) के दुश्मनों की जालसाज़ी
अल्लामा मजलिसी (र:अ) ने ज़ाद-उल-मियाद में फ़रमाया है की
बेहतर यही है की नवीं और दसवीं मुहर्रम का रोज़ा न रखे की बनी उमैय्या और
इनके पैरोकार ईन दिनों क़ो बहुत बा'बरकत तसव्वुर करते हैं! शहादत हुसैन (अ:स)
पर ताना कसते हैं, और दिनों में रोज़ा रखते हैं! इन्होंने बहुत सारी झूटी हदीसें रसूल
अल्लाह (स:अ:व:व) की तरफ़ मंसूब करके यह ज़ाहिर किया की ईन दो दिनों का रोज़ा
रखने में बड़ा ही अजर व सवाब है! हालांकि अहलेबैत (अ:स) से जुडी बहुत सारी हदीसों में
ईन दो दिनों और ख़ासकर रोज़े आशूरा का रोज़ा रखने की मोज़म्मत (मनाही) आई है!
बनी उमैय्या और इनके पैरवी करने वाले लोग बरकत के ख़्याल से आशूरा के दिन
साल भर का खर्चा जमा करके रख लेते थे, ईस बिना पर ईमाम आली रज़ा (अ:स) से
मन्कूल है की जो शख्स यौमे आशूरा के दिन अपना दुनयावी कारोबार छोड़े रहे तो
हक्क़े त'आला इसके दुन्या व आख़ेरत सब कामों क़ो अंजाम तक पहुंचा देगा, जो
शख्स यौमे आशूर क़ो गिरया व ज़ारी और रंज व ग़म में गुज़ारे तो खुदाए त'आला
क़यामत के दिन क़ो इसके लिये खुशी व मुसर्रत का दिन क़रार देगा और ईस शख्स
की आँखें जन्नत में हम अहलेबैत (अ:स) के दीदार से रौशन होंगी! मगर जो लोग
यौमे आशूरा क़ो बा'बरकत वाला दिन तसव्वुर करें और ईस दिन अपने घर में साल
भर का खर्चा लाकर रखें तो हक्क़े त'आला इनकी फ़राहम की हुई ईस जींस व माल
क़ो इनके लिये बा'बरकत ना करेगा और ऐसे लोग क़यामत के दिन, यज़ीद बिन
मु'आविया, उबैदुल्लाह बिन ज़्याद, और उम्रो बिन साद जैसे मल'उन अज़ाबियों के
साथ महशूर होंगे! इसलिए यौमे आशूरा में किसी इंसान क़ो दुन्या के धंधे में
न पढ़ना चाहिए और इसकी बजाये गिरया व ज़ारी, नौहा व मातम और रंज व ग़म में
मश'ग़ूल रहना चाहिए! इसके इलावा अपने अहलो'अयाल क़ो भी आमादा करे की वो सीना
ज़नी व मातम में इया तरह मश'ग़ूल हो जैसे अपने किसी रिश्तेदार की मौत पर
हुआ करते हैं!
आज के दिन रोज़े की नियत के बगैर खाना पीना तर्क किये रहें,
और असर के वक़्त थोड़े से पानी वगैरा से फ़ाक़ा शिकनी करें! और दिन के तमाम
होने तक फ़ाक़ा से न रहें! आज के दिन घर में साल भर के लिये ग़ल्ला व जींस
जमा न करें, आज के दिन हंसने से परहेज़ करें, और खेल कूद में हरगिज़ मश्गूल
ना हों और ईमाम हुसैन (अ:स) के क़ातिलों पर ईन लफ़्ज़ों में लानत करें
:
ऐ अल्लाह
ईमाम हुसैन (अ:स) के क़ातिलों पर लानत कर.
|
अल्लाहुम्मा अल'अन क़ता'लता अल'हुसैने
अलैहिस'सलामु
|
اللَّهُمَّ ٱلْعَنْ قَتَلَةَ ٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ
|
साहिबे शिफ़ा-उस-सुदूर[3] ने
ज़्यारत के निम्नलिखित जुमले के बारे में एक तवील हदीस से ईस की तशरीह फ़रमाई
है, जिस के खुलासा यह है की बनी उमैय्या आज के मनहूस दिन क़ो कुछ वजह की
बिना पर बा'बरकत तसव्वुर किया करते थे :
१. बनी उमैय्या ने आज के दिन आगे आने वाले साल के लिये
ग़ल्ला व जिंस जमा कर रखने क़ो मुस्तहब जाना और इसको वुस'अते रिज्क़ और
ख़ुश'हाली का सबब क़रार दिया! चुनान्चेह अहलेबैत (अ:स) की तरफ़ से इनके ईस
ज़ोमे बातिल की बार बार तरदीद और मोज़म्मत की गयी!
२. बनी उमैय्या ने आज के दिन क़ो रोज़े ईद क़रार दिया और
इसमें ईद की रस्मे जारी कीं, जैसे अहलो अयाल के लिये उम्दा लिबास व खुराक
फ़राहम करना, एक दुसरे से गले मिलना, और हजामत बनवाना वगैरा! लिहाज़ा यह सारे काम इनके
पैरोकारों में आम तौर पर रायेज हो गए और अपना लिये गए!
३. इन्होंने आज दिन का रोज़ा रखने की फ़ज़ीलत में बहुत से
मन'गढ़त हदीसें जारी की और ईस दिन रोज़ा रखने पर अमल पैरा हुए!
४. इन्होंने आशूरा के दिन दुआ करने और अपनी हाजात तलब करने
क़ो मुस्तहब ठहराया इसलिए इससे मुता'अल्लिक़ बहुत सारे फज़ायेल और मूनाकिब घड़
लिये! इसके अलावा आज के दिन पढ़ने के लिये बहुत सारी दुआएं बनाईं और इन्हें
आम किया ताकि लोगों क़ो वाक़ये की हक़ीक़त समझ न आये! चुनान्चेह वो आज के
दीन अपने शहरों में मिम्बरों पर जो ख़ुत्बे देते, इनमे यह ब्यान हुआ करता
था की आज के दिन हर नबी के लिये शरफ़ और वसीले में इज़ाफा हुआ है, जैसे
नमरूद की आग बुझ गयी, हज़रत नूह की किश्ती किनारे लगी, फ़िरऔंन का लश्कर
ग़रक़ हुआ, और हज़रत ईसा (अ:स) क़ो यहूदियों के चंगुल से निजात मिली[4], यानी
यह सब उमूर आज के दिन ही हुए! इनका यह सब कहना सफ़ेद झूट के सिवा कुछ भी नहीं
है!
इसके बारे में शेख़ सुददूक़ (र:अ) जिबिल्लाह
अल-मक्कियाह से नक़ल करते हैं की मैंने मी'समे तम्मार से सुना है की वो कहते
थे, ख़ुदा की क़सम ! यह उम्मत अपने नबी (स:अ:व:व) के फ़र्ज़न्द (अ:स) क़ो
दसवीं मुहर्रम के दिन शहीद करेगी और ख़ुदा के दुश्मन ईस दिन क़ो बा'बरकत
तसव्वुर करेंगे, यह सब काम होकर रहेंगे और यह बातें अल्लाह के ईल्म में आ
चुकी हैं! यह बात तुझे ईस अहद के ज़रिये से मालूम है, जो मुझ क़ो अमीरुल
मोमिनीन (अ:स) की तरफ़ से मिला है! जिबिल्लाह कहते हैं की मैंने मीसम से
अर्ज़ की के वो लोग ईमाम हुसैन (अ:स) के रोज़े शहादत क़ो किस तरह बा'बरकत
क़रार देंगे, तब मीसम रो पड़े और कहा की लोग एक ऐसी हदीस बनायेंगे जिस में
कहेंगे की आज का दिन ही वो दिन है की जब हक्क़े त'आला ने हज़रत आदम (अ:स) की
तौबा क़बूल फ़रमाई, हालांकि खुदाए त'आला ने इनकी तौबा ज़िल'हिज्ज में क़बूल
की थी! वो कहेंगे आज के दिन ही ख़ुदा'वनदे करीम ने हज़रत युनुस (अ:स) क़ो
मछली के पेट से बाहर निकाला, हालांकि अल्लाह त'आला ने इनको ज़िल'क़ाद में
शिकम-ए-माहि (मछली के पेट) से निकाला था, वो तसव्वुर करेंगे की आज के दिन
हज़रत नूह (अ:स) की किश्ती किनारे पर रुकी थी जबकि किश्ती 18 ज़िल'हिज्ज क़ो
रुकी थी, वो कहेंगे की आज के दिन ही हक्क़े त'आला ने हज़रत मूसा (अ:स) के
लिये दरया क़ो चीरा था हालांकि यह वाक़ेया रबिल'अव्वल में हुआ था!
खुलासा यह की मी-समे तम्मार की ईस रिवायत में यह सारे फेर बदल किये
गए जो की अस्ल में नबूवत व इमामत की निशानियाँ हैं, और शिया मुसलमान के सही होने
की दलील हैं, क्योंकि इसमें (मीसमे तम्मार की रिवायत में) ईन बातों का
ज़िक्र है जो हो चुकी हैं और हो रही हैं! बस यह ता'अज्जुब की बात है की ईस
वाज़े ख़बर के बा'वजूद ईन लोगों ने अपने वहम व गुमान की बिना पर क़रार दी
हुई झूटी बातों के मुताबिक़ दुआएं बना लीं हैं जो कुछ बे'ख़बर लोगों की
किताबों में दर्ज हैं और इनको इनकी असलियत का कुछ भी ईल्म न था! ईन किताबों
के ज़रिये से यह दुआएं अवाम (जनता) के हाथों पहुँच गयीं हैं लेकिन ईन दुआओं का
पढ़ना बिद'अत होने के अलावा हराम भी है, ईन बिद'अत व हराम दुआओं में से एक
यह है :
खुदा के नाम से जो
रहमान और रहीम है, पाक है,....फिर
दो तीन लाइन के बाद लिखा है की दस मर्तबा सलवात पढ़ें और कहें ऐ रोज़े
आशूर आदम की तौबा क़बूल करने वाले ऐ आशूओर के दिन इदरीस क़ो आसमान पर ले
जाने वाले ऐ रोज़े आशूर नूह की किश्ती क़ो पहाड़ के किनारे ठहराने वाले ऐ यौमे
आशूर इब्राहीम क़ो आग से निजात देने वाले ....वगैरा
इसमें शक
नहीं की यह दुआ मदीने के किसी नासिबी[5]
या मस'क़त के किसी खारीजी ने या इनके किसी हम'अक़ीदा ने गढ़ी है, ईस तरह इसने वो
ज़ुल्म किया है जो बनी उमैय्या के ज़ुल्म क़ो इन्तेहा तक पहुंचा देता है! यह
ब्यान किताब शिफ़ा-उस-सूद'दूर के ऊपर लिखे हुए बात का खुलासा है, जो यहाँ खत्म हो
गया है!
ज़्यारत ता'ज़ीयह - ताज़ीयत/मातमपुर्सी की ज़्यारत
आशूरा के दिन असर के वक़्त पढ़ी जाने वाली ज़्यारत -मफ़ातीह-उल-जिनान से ली
गयी
बहरहाल
यौमे आशूरा के आख़िरी वक़्त में ईमाम हुसैन (अ:स) के अहले हरम इनकी बेटियाँ और
बच्चे के हालात और वाकेयात क़ो नज़र में लाना चाहिए की ईस वक़्त मैदाने कर्बला
में इनपर क्या बीत रही है जबकि वो दुश्मनों के हाथों क़ैद में हैं और अपनी
मुसीबतों में आह-व-ज़ारी कर रहे हैं! सच तो यह है की अहलेबैत व अतहार (अ:स) पर
वो दुख़ और मुसीबतें आयीं हैं, जो किसी इंसान के तसव्वुर में नहीं आ सकती और
लिखने वालों का यारा नहीं, किसी शायर ने ईस सानेहा क़ो क्या खूब ब्यान किया है
فَاجِعَةٌ إِنْ اَرَدْتُ اَكْتُبُهَا
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यह वो मुसीबत है अगर इसे
लिखूं.
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مُجْمَلَةً ذِكْرَةً لِمُدِّكِرِ
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मुख़'तसरण इसे दुसरे से
ब्यान करूँ ,
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جَرَتْ دُمُوعِي فَحَالَ حَامِلُهَا
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तो मेरे आंसू निकल पड़े और
हायेल हों.
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مَا بَيْنَ لَحْظِ الْجُفُونِ وَالزُّبُرِ
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मेरी आँखों और औराक़ के
दरम्यान
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وَقَالَ قَلْبِي بُقْيا عَلَيَّ فَلاَ
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मेरा दिल कहेगा रहम कर मुझ
पर नहीं मै..
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وَاللهِ مَا قَدْ طُبِعْتُ مِنْ حَجَرِ
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बा'ख़ुदा कोई पत्थर के मेरी
तो जान चली
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بَكَتْ لَهَا الاَرْضُ وَالسَّماءُ وَمَا
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इसपर रोये हैं ज़मीन व
आसमान और
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بَيْنَهُما فِي مِدَامِعٍ حُمُرِ
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जो कुछ इनके दरम्यान है
खून के आंसू
|
यौमे आशूर
के आख़िर वक़्त खडा हो जाए और हज़रत रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) अमीरुल मोमिनीन
आली-ए-मुर्तज़ा (अ:स) जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) ईमाम हसन मुजतबा (अ:स) और बाक़ी
अ'ईम्मा अलैहिस सलाम जो औलाद-ए-हुसैन (अ:स) में से हैं, ईन सब पर सलाम भेजे और
गिरया की हालत में इनको पुरसा दे और यह ज़्यारत पढ़े : :
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ آدَمَ صِفْوَةِ
ٱللَّهِ
|
अल्स्सलामु `अलयका या वारिस आदमा सिफ्वाती अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ आदम (अ:स) के वारिस जो
बर'गज़ीदा'ए'ख़ुदा
हैं
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ نُوحٍ
نَبِيِّ
ٱللَّهِ
|
अल्स्सलामु `अलयका या वारिसा नूहीन नबिय्यी अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ
नूह (अ:स) वारिस जो अल्लाह के नबी हैं!
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ إِبْرَاهيمَ خَليلِ
ٱللَّهِ
|
अल्स्सलामु `अलयका या
वारिसा
इब्राहीमा
खलीली
अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ
ईब्राहीम (अ:स) के वारिस जो अल्लाह के दोस्त हैं!
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ مُوسَىٰ كَلِيمِ
ٱللَّهِ
|
अल्स्सलामु `अलयका या वारिसा मूसा कालीमि अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ
मूसा (अ:स)
के वारिस जो ख़ुदा के कलीम हैं!
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ عِيسَىٰ رُوحِ
ٱللَّهِ
|
अल्स्सलामु `अलयका या वारिसा `ईसा रूही अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ
ईसा (अ:स) के वारिस जो
ख़ुदा की
रूह हैं,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ مُحَمَّدٍ حَبِيبِ
ٱللَّهِ
|
अल्स्सलामु `अलयका या वारिसा मुहम्मदीन हबीबी अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ
मोहम्मद (स:अ:व:व) के वारिस जो ख़ुदा के हबीब
हैं,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ عَلِيٍّ
امِيرِ
ٱلْمُؤْمِنينَ
وَلِيِّ اللّهِ
|
अल्स्सलामु `अलयका
या वारिसा
`अलिय्यिन
अमीरल
मु'मिनीना
वलिय्यी
अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ
अली (अ:स) के वारिस जो मोमिनों के अमीर और दोस्त-ए-ख़ुदा
हैं,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ
ٱلْحَسَنِ
ٱلشَّهيدِ
سِبْطِ رَسُولِ
ٱللَّهِ
|
अल्स्सलामु
’अलयका
या
वारिसा
अल्हसनी
अल’शहीदी
सिब्ती
रसूली
अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ
हसन (अ:स) के वारिस जो शहीद हैं अल्लाह के रसूल (स:अ:व:व) के नवासे
हैं,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ رَسُولِ
ٱللَّهِ
|
अल्स'सलामु `अलयका यबना रसूली अल्लाहि
|
सलाम हो आप पर ऐ
ख़ुदा के रसूल के फ़र्ज़न्द,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ
ٱلْبَشِيرِ
ٱلنَّذِيرِ
|
अल्स्सलामु `अलयका यबना अल'बशीरी अलं'नज़ीरी
|
सलाम हो आप पर ऐ
बशीर व नज़ीर
|
وَٱبْنَ
سَيِّدِ
ٱلْوَصِيِّينَ
|
वाब्ना सय्यीदी अल'वसिय्यीना
|
और
वसीयों
के सरदार के फ़र्ज़न्द,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ فَاطِمَةَ سَيِّدَةِ نِسَاءِ
ٱلْعَالَمِينَ
|
अल'सलामु
`अलयका
यबना
फातिमता
सय्यिदती
निसा‘ई
अल
आलामीना
|
सलाम हो आप पर ऐ
फ़रज़न्दे फ़ातिमा जो जहानों की औरतों
की सरदार
हैं,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا
ابَا
عَبْدِ
ٱللَّهِ
|
अल'सलामु `अलयका या अबा `अब्दिल'लाही
|
सलाम हो आप पर ऐ
अबू अब्दुल्लाह,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يا خِيَرَةَ
ٱللَّهِ
وَٱبْنَ
خِيَرَتِهِ
|
अल'सलामु `अलयका या खियारता अल्लाहि वब्ना खियारती'ही
|
सलाम हो आप पर ऐ
ख़ुदा के पसंद किये
हुए और
पसंदीदा के फ़र्ज़न्द
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يا ثَارَ
ٱللَّهِ
وَٱبْنَ
ثَارِهِ
|
अल'सलामु `अलयका या सारा अल्लाहि वब्ना सारिही
|
सलाम हो आप पर ऐ
शहीदे राहे ख़ुदा और शहीद के
फ़र्ज़न्द,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ
ايُّهَا
ٱلْوِتْرُ
ٱلْمَوْتُورُ
|
अल'सलामु `अलयका अय्युहा अल'वितरु अल'मव्तूरू
|
सलाम हो आप पर ऐ
वो मक़तूल जिस के क़ातिल क़त्ल हो गए
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ
ايُّهَا
ٱلإِمَامُ
ٱلْهَادِي
ٱلزَّكِيُّ
|
अल'सलामु `अलयका अय्युहा अल-इमामु
अल'हादी
अल'ज़किय्यु
|
सलाम हो आप पर ऐ
हिदायत व
पाकीज़गी वाले ईमाम,
|
وَعَلىٰ
ارْوَاحٍ
حَلَّتْ بِفِنَائِكَ وَاقَامَتْ
فِي جِوَارِكَ
|
वा
`अला
अर्वाहीन हालात बी'फ़िना'ईका
वा अक़ामत फ़ी जिवारिका
|
और सलाम हो ईन
रूहों पर जो आपके आस्तां पर सो गयीं और
आप की
कुर्बत में रह रही हैं,
|
وَوَفَدَتْ مَعَ زُوَّارِكَ
|
वा वाफ़दत मा अ ज़ुव्वा'रिका
|
और सलाम इनपर जो
आप के ज़ायेरों के हमराह आयीं,
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ مِنِّي مَا بَقيتُ وَبَقِيَ
ٱللَّيْلُ
وَٱلنَّهَارُ
|
अल'सलामु
`अलयका
मिन्नी मा बकीतु वा बक़ी'या
अल'लयलू
वल'नहारु
|
मेरा
सलाम हो
आप पर जबतक मै ज़िंदा हूँ और रात दिन का सिलसिला क़ायेम है,
|
فَلَقَدْ عَظُمَتْ بِكَ
ٱلرَّزِيَّةُ
|
फ़ला'क़द
`अज़ुमत
बिका अल'रज़ी'यतु
|
यक़ीनन आप पर
बहुत बड़ी
मुसीबत गुज़री है,
|
وَجَلَّ
ٱلْمُصَابُ
فِي
ٱلْمُؤْمِنِينَ
وَٱلْمُسْلِمِينَ
|
वा जल्ला अल'मुसाबू
फ़ी अल'मुमिनीना
वल'मुसलिमीना
|
और इससे बहुत
ज़्यादा सोगवारी है मोमिनों और मुसलमानों
में,
|
وَفِي
اهْلِ
ٱلسَّمَاوَاتِ
اجْمَعِينَ
|
वा फ़ी अहली अल'समावाती
अजमा’ईना
|
आसमानों पर रहने
वाली सारी मख्लूक़ में,
|
وَفِي
سُكَّانِ
ٱلارَضِينَ
|
वा फ़ी सुक'कानी
अल-अराज़ीना
|
और ज़मीन में
रहने वाली खिल्क़त में,
|
فَإِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ
|
फ़'इन्ना
लील'लाही
वा इन्ना इलय्ही राजी’ऊना
|
बस अल्लाह ही के
हैं,
और हम इसी
की तरफ़ लौट जायेंगे!
|
وَصَلَوَاتُ
ٱللَّهِ
وَبَرَكَاتُهُ وَتَحِيَّاتُهُ عَلَيْكَ
|
वा सलावातु अल्लाहि वा बरकातु'हू
वा तही'यातु'हू
अलयका
|
ख़ुदा की रहमतें
हों,
और ईस की
बरकतें,
और सलाम
आप पर
|
وَعَلَىٰ
آبَائِكَ
ٱلطَّاهِرِينَ
ٱلطَّيِّبِينَ
ٱلْمُنْتَجَبِينَ
|
वा अला आब़ा'ईका
अल'ताहिरीना
अल'तय्यी'बीना
अल'मुन्ताजा'बीना
|
और आप के
आब़ा-ओ-अजदाद पर जो पाक निहाद,
नेक्सीरत
व बर'गज़ीदा
हैं!
|
وَعَلىٰ ذَرَارِيهِمُ
ٱلْهُدَاةِ
ٱلْمَهْدِيِّينَ
|
वा अला ज़रा'रीहिमु
अल'हुदाती
अल'महदी'ईना
|
और इनकी औलाद पर
की जो हिदायत-याफ़्ता पेशवा हैं!
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مَوْلايَ وَعَلَيْهِمْ
|
अल'सलामु `अलयका
या मौलाया वा अलय्हीम
|
सलाम हो आप पर ऐ
मेरे आक़ा, और
ईन सब पर
|
وَعَلَىٰ رُوحِكَ وَعَلَىٰ
ارْوَاحِهِمْ
|
वा अला रूहिका वा अला अर'वाही'हिम
|
सलाम हो आप की
रूह पर और इनकी रूहों पर
|
وَعَلَىٰ تُرْبَتِكَ وَعَلَىٰ تُرْبَتِهِمْ
|
वा अला तुर्बतिका वा अला तुर्बती'हिम
|
और सलाम हो आप
के मज़ार पर और इनके
मज़ारों
पर,
|
اَللَّهُمَّ لَقِّهِمْ رَحْمَةً وَرِضْوَاناً
|
अल्लाहुम्मा लक़'किहिम
रहमतन वा रिज़वा'नन
|
ऐ अल्लाह! इन्से
पेश आ मेहरबानी,
खुशनूदी
|
وَرَوْحاً وَرَيْحَاناً
|
वा रौ'हन
वा रेहा'नन
|
मुसर्रत और ख़ुश'रूई
के साथ
!
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مَوْلاَيَ يَا
ابَا
عَبْدِ
ٱللَّهِ
|
अल'सलामु `अलयका
या मौलाया
या अबा'अब्दिल'लाही
|
सलाम हो आप पर!
ऐ मेरे सरदार! ऐ अबू अब्दुल्लाह!
|
يَا
بْنَ خَاتَمِ
ٱلنَّبِيِّينَ
|
यबना
ख़ा'तमि
अल'नबी'ईना
|
ऐ नबियों के
खातिम के फ़र्ज़न्द!
|
وَيَا
بْنَ سَيِّدِ
ٱلْوَصِيِّينَ
|
वा
यबना
सय्यीदी
अल'वसी'ईना
|
ऐ
औसिया के
सरदार के फ़र्ज़न्द!
|
وَيَا
بْنَ سَيِّدَةِ نِسَاءِ
ٱلْعَالَمينَ
|
वा
यबना
सय्यी'दती
निसा'ईल
आलामीना
|
और ऐ जहानों की
औरतों के सरदार के फ़र्ज़न्द!
|
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا شَهِيدُ يَا بْنَ
ٱلشَّهِيدِ
|
अल'सलामु `अलयका
या
शहीदु यबना अल'शहीदी
|
सलाम हो
आप पर ऐ
शहीद,
ऐ
फ़रज़न्दे शहीद,
|
يَا
اخَا
ٱلشَّهيدِ
يَا
ابَا
ٱلشُّهَدَاءِ
|
या
अखा अल'शहीदी
या
अबा
अल'शुहदा'ई
|
ऐ बरादर-ए-शहीद,
ऐ
पेदर-ए-शहीदान,
|
اَللَّهُمَّ بَلِّغْهُ عَنِّي فِي هٰذِهِ
ٱلسَّاعَةِ
|
अल्लाहुम्मा बल्लिग़'हु
अन'नी
फ़ी हाज़ि'ही
अस'सा
अति
|
ऐ अल्लाह! पहुंचा
इनको मेरी
तरफ़ से ईस घड़ी में,
|
وَفِي
هٰذَا
ٱلْيَوْمِ
|
वा फ़ी हाज़ा
अल'यौमी
|
आज के दिन में,
|
وَفِي
هٰذَا
ٱلْوَقْتِ
|
वा फ़ी हाज़ा
अल'वक्ति
|
और मौजूदा वक़्त
में ,
|
وَفِي
كُلِّ وَقْتٍ
|
वा फ़ी कुल्ली वक़'तिन
|
और हर हर वक़्त
में
|
تَحِيَّةً كَثيرَةً وَسَلاماً
|
तही'यतन
कसी'रतन
वा सलामन
|
बहुत बहुत दरूद
और सलाम!
|
سَلاَمُ
ٱللَّهِ
عَلَيْكِ وَرَحْمَةُ
ٱللَّهِ
وَبَرَكَاتُهُ
|
सलामु अल्लाहि अलयका वा रहमतु अल्लाहि वा बरकातुहू
|
अल्लाह का सलाम
हो आप पर अलाह की रहमत और इसकी बरकात!
|
يَا
بْنَ سَيِّدِ
ٱلْعَالَمِينَ
|
यबना सय्यीदी अल आलामीना
|
ऐ
जहानों
के सरदार के फ़र्ज़न्द!
|
وَعَلَىٰ
ٱلْمُسْتَشْهَدِينَ
مَعَكَ سَلاَماً مُتَّصِلاً
|
वा अला
अल'मुस्तश-हदीना
मा अका सलामन मूत'तसिलन
|
और इनपर जो आप
के साथ शहीद हुए! सलाम हो लगातार सलाम
|
مَا
ٱتَّصَلَ
ٱللَّيْلُ
وَٱلنَّهارُ
|
मा
ईत'तसला
अल'लयलू
वल'नहारु
|
जब तक रात दिन
बाहम मिलते रहें
|
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ
ٱلْحُسَيْنِ
بْنِ عَلِيٍّ
ٱلشَّهِيدِ
|
अल'सलामु `अला
अल'हुसैन
इब्ने अली'ईन
अल'शहीदी
|
सलाम हो हुसैन
इब्ने अली शहीद पर,
|
السَّلامُ عَلَىٰ عَلِيِّ بْنِ
ٱلْحُسَيْنِ
ٱلشَّهِيدِ
|
अल'सलामु `अला `अली'इब्नी अल'हुसय्नी अल'शहीदी
|
सलाम हो अली
इब्ने
हुसैन
शहीद पर
|
اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ
ٱلْعَبَّاسِ
بْنِ
امِيرِ
ٱلْمُؤْمِنِينَ
ٱلشَّهِيدِ
|
अल'सलामु
`अला अल'
अब्बास'इब्नी
अमीरल
मुमिनीना
अल'शहीदी
|
सलाम हो अब्बास
इब्ने अमीरल मोमिनीन शहीद पर
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السَّلاَمُ عَلَىٰ
ٱلشُّهَداءِ
مِنْ وُلْدِ
امِيرِ
ٱلْمُؤْمِنِينَ
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अल'सलामु`अला अल'शुहदा'ई
मिन
वुल्दी
अमीर'अल
मुमिनीना
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सलाम हो ईन शहीदों
पर जो
औलादे
अमीरल मोमिनीन से हैं! .
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اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ
ٱلشُّهَداءِ
مِنْ وُلْدِ
ٱلْحَسَنِ
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अल'सलामु `अला अल'शुहदा'ई मिन वुल्दी-अल'
हसनी
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सलाम हो ईन शहीदों
पर जो औलादे हसन से हैं!
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اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ
ٱلشُّهَداءِ
مِنْ وُلْدِ
ٱلْحُسَيْنِ
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अल'सलामु अला अल'शुहदा'ई मिन वुल्दी'अल
हुसय्नी
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सलाम हो ईन शहीदों
पर जो हुसैन की औलाद से हैं!
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السَّلامُ عَلَىٰ
ٱلشُّهَداءِ
مِنْ وُلْدِ جَعْفَرٍ وَعَقِيلٍ
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अल'सलामु`अला अल'शुहदा'ई
मिन
वुल्दी
जा'फ़रीन
वा
अक़ील'ईन
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सलाम हो ईन शहीदों
पर जो जाफ़र और अक़ील की औलाद से हैं!
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اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ كُلِّ مُسْتَشْهَدٍ مَعَهُمْ مِنَ
ٱلْمُؤْمِنِينَ
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अल'सलामु `अला कुल्ली
मुस्तश-हदिन मा अहुम मिन'अल
मुमिनीना
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सलाम
हो मोमिनों
में से ईन सब शहीदों पर जो इनके साथ शहीद हुए!
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اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
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अल्लाहुम्मा सल्ली अला
मुहम्मदीन वा आली मुहम्मदीन
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ऐ अल्लाह! रहमत
नाज़िल कर
मुहम्मद
व आले मोहम्मद पर
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وَبَلِّغْهُمْ عَنِّي تَحِيَّةً كَثِيرَةً وَسَلاَماً
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वा बल्लिग़'हुम
अन्नी तही'यतन
कसी'रतन
वा सलामन
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और पहुंचा इनको
मेरी तरफ़ से बहुत बहुत दरूद और सलाम!
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اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يا رَسُولَ
ٱللَّهِ
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अल'सलामु
अलैयका या रसूल अल्लाहि
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सलाम
हो आप पर
ऐ ख़ुदा के रसूल
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احْسَنَ
ٱللَّهُ
لَكَ
ٱلْعَزَاءَ
فِي وَلَدِكَ
ٱلْحُسَيْنِ
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अह्सना
अल'लाहू
लका अल'अज़ा-अ फ़ी वलादिकल हुसय्नी
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खुदाए त'आला
आप के फ़र्ज़न्द हुसैन के बारे में आप के साथ
बेहतरीन
ताज़ीयत करे!
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اَلسَّلاَمُ عَلَيْكِ يَا فَاطِمَةُ
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अल'सलामु `
अलयका या फ़ाति'मतु
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सलाम हो आप पर ऐ
फ़ातिमा,
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احْسَنَ
ٱللَّهُ
لَكِ
ٱلْعَزَاءَ
فِي وَلَدِكَ
ٱلْحُسَيْنِ
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अह्सना
अल'लाहू
लका अल'अज़ा-अ फ़ी वलादिकल हुसय्नी
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खुदाए त'आला
आप के फ़र्ज़न्द हुसैन
के बारे
में आप के साथ बेहतरीन ताज़ीयत करे,
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اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا
امِيرَ
ٱلْمُؤْمِنِينَ
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अल'सलामु `अलयका
या अमीर'अल
मुमिनीना
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सलाम हो आप पर ऐ
अमीरल मोमिनीन!
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احْسَنَ
ٱللَّهُ
لَكَ
ٱلْعَزَاءَ
فِي وَلَدِكَ
ٱلْحُسَيْنِ
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अह्सना अल्लाहू लका अल अज़ा'अ
फ़ी वला'दिका'अल
हुसय्नी
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खुदाए
त'आला
आप के फ़र्ज़न्द हुसैन के बारे में आप के साथ बेहतरीन ताज़ीयत करे!
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اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا
ابَا
مُحَمَّدٍ
ٱلْحَسَنُ
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अल'सलामु `अलयका
या
अबा
मुहम्मदीन अल'हसनू
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सलाम हो आप
पर ऐ अबू
मोहम्मद हसन!
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احْسَنَ
ٱللَّهُ
لَكَ
ٱلْعَزَاءَ
فِي
اخِيكَ
ٱلْحُسَيْنِ
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अह्सना'अल-लाहू
लका अल अज़ा'अ
फ़ी अखी'का
अल'हुसय्नी
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अल्लाह त'आला
आप के भाई हुसैन के बारे में आप के साथ बेहतरीन
ताज़ीयत
करे!
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يَا
مَوْلاَيَ يَا
ابَا
عَبْدِ
ٱللَّهِ
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या
मौलाया या
अबा
अब्दिल'लाही
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ऐ मेरे सरदार! ऐ
अबू'अब्दुल्लाह!
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انَا
َضَيْفُ
ٱللَّهِ
َوضَيْفُكَ
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अना ज़य्फु अल'लाही
वा ज़य्फु'का
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मै अल्लाह का
मेहमान और आप का मेहमान
हूँ,
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وَجَارُ
ٱللَّهِ
وَجَارُكَ
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वा जारू अल्लाहि वा जारुका
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और ख़ुदा की
पनाह और आप की पनाह में हूँ,
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وَلِكُلِّ ضَيْفٍ وَجَارٍ قِرَىً
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वा ली'कुल्ली
ज़ायफिन वा जार'ईन
क़ी'रन
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यहाँ हर मेहमान
और पनाहगीर की पज़ीराई
होती है,
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وَقِرَايَ فِي هٰذَا
ٱلْوَقْتِ
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वा क़ी'राया
फ़ी हाज़ा
अल'वक़ती
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और ईस वक़्त मेरी
पज़ीराई यही है की
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انْ
تَسْالَ
ٱللَّهَ
سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ
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अन तस'अला
अल्लाह सुब'हानाहू
वा ता'आला
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आप सवाल करें
अल्लाह से जो पाकतर और आली
क़दर है
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انْ
يَرْزُقَنِي فَكَاكَ رَقَبَتِي مِنَ
ٱلنَّارِ
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अन यर'ज़ुक'अनी
फ़का'का
रक़'बती
मिन'अल
नारी
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यह की वो मेरी
गर्दन क़ो अज़ाबे जहन्नुम से आज़ाद कर दे
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إِنَّهُ سَمِيعُ
ٱلدُّعَاءِ
قَرِيبٌ مُجِيبٌ
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इन्नाहू समी'उ
दुआ'ई
क़री'बुन
मुजीबुन
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बेशक वो दुआओं
का
सुनने
वाला है,
नज़दीक तर
क़बूल
करने
वाला!
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मुहर्रम की पचीस्वीं (25) तारीख़
बहुत से
उलमा के नज़दीक 25 मुहर्रम 94 हिजरी क़ो ईमाम ज़ैनुल'आबेदीन (अ:स) की शहादत वाक़े हुई
थी! कुछ उल्माओं ने आप की शहादत 12 मुहर्रम 95 हिजरी क़ो होना ब्यान किया है,
की जिस साल क़ो "सुन्नत'उल'फ़िक़्हा" का नाम दिया गया है!.