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05 दिसंबर 2012

भैरवाष्टमी पर इस विधि से करें भगवान भैरव का पूजन



 

इस बार 6 दिसंबर, गुरुवार को काल भैरवाष्टमी है, शास्त्रों के अनुसार इस दिन शिवजी ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। महादेव का यह रूप सभी पापों से मुक्त करने वाला है। कालभैरवाष्टमी के दिन इनकी विधि-विधान से पूजा करने पर भक्तों को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस पर्व की व्रत की विधि इस प्रकार है-
- काल भैरवाष्टमी (इस बार 6 दिसंबर, गुरुवार) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
- स्नान आदि कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें।
- किसी भैरव मंदिर जाएं।
- मंदिर जाकर भैरव महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना करें।
- साथ ही उनके वाहन की भी पूजा करें।
- साथ ही ऊँ भैरवाय नम: मंत्र से षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए।
- भैरवजी का वाहन कुत्ता है, अत: इस दिन कुत्तों को मिठाई खिलाएं।
- दिन में एक समय फलाहार करें।
इस प्रकार भगवान कालभैरव का पूजन करने से हर मनोकामना पूरी होती है।

लाइफ में सक्सेस पाने का ये है असरदार टोटका




 

सफलता प्राप्त करने के लिए इंसान क्या नहीं करता लेकिन सफलता केवल कुछ ही लोगों को मिल पाती है। ऐसे में जो लोग असफल होते हैं उन्हें निराश होने की कोई जरुरत नहीं। सामान्य तांत्रिक टोटका कर आप हर क्षेत्र व कार्य में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
टोटका                                  
किसी भी महीने को पंचमी अथवा एकादशी को सुबह उठकर स्नान करें तथा साफ वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात लघु नारियल (यह नारियल तांत्रिक कार्य में उपयोग किया जाता है। इसका स्वरूप छोटा होता है।) का पूजन करें व उस कार्य को बोलें जिसमें सफलता प्राप्त करनी है, फिर 51 बार निम्न मंत्र का जप करें-
    ।। ऊँ ह्लीं सर्वं वै पूर्णत्वाय फट्।।

प्रयोग समाप्ति के बाद लघु नारियल को नदी में प्रवाहित कर दें। यह एक अचूक प्रयोग है। इस उपाय से आपको हर कार्य में सफलता मिलेगी।

काल भैरवाष्टमी कल: जानिए, कौन हैं कालभैरव, कैसा है इनका स्वरूप



 

कल यानी 6 दिसंबर, गुरुवार को काल भैरवाष्टमी का पर्व है। भैरव शब्द का अर्थ ही होता है- भीषण, भयानक, डरावना। भैरव को शिव के द्वारा उत्पन्न हुआ या शिवपुत्र माना जाता है। भगवान शिव के आठ विभिन्न रूपों में से भैरव एक है। वह भगवान शिव का प्रमुख योद्धा है। भैरव के आठ स्वरूप पाए जाते हैं। जिनमे प्रमुखत: काला और गोरा भैरव अतिप्रसिद्ध हैं।
रुद्रमाला से सुशोभित, जिनकी आंखों में से आग की लपटें निकलती हैं, जिनके हाथ में कपाल है, जो अति उग्र हैं, ऐसे कालभैरव को मैं वंदन करता हूं।- भगवान कालभैरव की इस वंदनात्मक प्रार्थना से ही उनके भयंकर एवं उग्ररूप का परिचय हमें मिलता है। कालभैरव की उत्पत्ति की कथा शिवपुराण में इस तरह प्राप्त होती है-
एक बार मेरु पर्वत के सुदूर शिखर पर ब्रह्मा विराजमान थे, तब सब देव और ऋषिगण उत्तम तत्व के बारे में जानने के लिए उनके पास गए। तब ब्रह्मा ने कहा वे स्वयं ही उत्तम तत्व हैं यानि कि सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च हैं। किंतु भगवान विष्णु इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि वे ही समस्त सृष्टि से सर्जक और परमपुरुष परमात्मा हैं। तभी उनके बीच एक महान ज्योति प्रकट हुई। उस ज्योति के मंडल में उन्होंने पुरुष का एक आकार देखा।
तब तीन नेत्र वाले महान पुरुष शिवस्वरूप में दिखाई दिए। उनके हाथ में त्रिशूल था, सर्प और चंद्र के अलंकार धारण किए हुए थे। तब ब्रह्मा ने अहंकार से कहा कि आप पहले मेरे ही ललाट से रुद्ररूप में प्रकट हुए हैं। उनके इस अनावश्यक अहंकार को देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उस क्रोध से भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया। यह भैरव बड़े तेज से प्रज्जवलित हो उठा और साक्षात काल की भांति दिखने लगा।
इसलिए वह कालराज से प्रसिद्ध हुआ और भयंकर होने से भैरव कहलाने लगा। काल भी उनसे भयभीत होगा इसलिए वह कालभैरव कहलाने लगे। दुष्ट आत्माओं का नाश करने वाला यह आमर्दक भी कहा गया। काशी नगरी का अधिपति भी उन्हें बनाया गया। उनके इस भयंकर रूप को देखकर बह्मा और विष्णु शिव की आराधना करने लगे और गर्वरहित हो गए।

155 सालों बाद मिलेगी 'आजादी के दीवानों' को 'मुक्ति'



अजनाला/अमृतसर। 1857 की जंग-ए-आजादी के दौरान कलियांवाला खूह में दफन किए गए शहीदों की अस्थियां निकालने के लिए खुदाई शुरू कर दी गई है। सभी शहीदों की अस्थियां हिंदू रीति-रिवाज के साथ हरिद्वार में 
प्रवाहित किया जाएंगी।पहले दिन की खुदाई में ही अस्थियां मिलने लगी हैं। 
 
मंगलवार तड़के ही इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ के नेतृत्व में गुरुद्वारा कमेटी के प्रधान अमरजीत सिंह सरकारिया और महासचिव काबुल सिंह और अन्यों ने अरदास कर खुदाई शुरू कर दी।
 
इन शहीदों के नमित श्री अखंड साहिब का पाठ भी रखा गया है। पहले दिन दस फुट तक कुएं की खुदाई की गई है। कमेटी के लोगों और कोछड़ ने बताया कि इस जगह पर शहीदी स्मारक बनाने की भी योजना है।
 

अपने बालों से जब खींची भारी भरकम बस तो लोगों ने दबाई दांतों तले उंगलियां!


फिरोज खान मेमोरियल गर्ल्स सीसै विद्यालय, मदरसा क्रिसेंट पब्लिक स्कूल एवं मदरसा मौलाना आजाद अपर प्राइमरी स्कूल के खेल मैदान में बुधवार को योग शक्ति प्रदर्शन किया गया। 
 
प्रदर्शन में गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में चार बार नाम दर्ज करा चुके सुरेश कुमार चौधरी ने दांतों से बीस किलो का वजन उठाया, आंखों की पलकों से सुई उठाने, सीने पर पचास किलो का पत्थर तुड़वाया  तथा पांच टन की बस को 150 फीट तक अपने बालों से खींचकर सबको हैरत में डाल दिया। 
 
प्रशासनिक अधिकारी मनीष माथुर ने बताया कि चौधरी का यह 16221वां प्रदर्शन था। इनका लक्ष्य 20000 प्रदर्शन कर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड कायम करके 2 करोड़ रुपए की राशि जीतकर त्रिपुरा के अनाथ आश्रम के 500 बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने का है।
 

देश में आखिर सांसदों की यह लुट ..यह झूंठ संसद से वोट के वक्त भागने का भगोड़ापन कब तक चलेगी ..क्या ऐसे दोहरे किरदार वाले सांसदों को फांसी नहीं मिलना चाहिए क्या ऐसे सांसदों की सदस्यता और राजनितिक पार्टियों की मान्यता खत्म नहीं होना चाहिए


मुलायम सिंह ....मायावती सहित देश के सत्तर सांसदों ने देश की इज्ज़त और संसद की गरिमा को तार तार कर दिया .. अफ़सोस की बात है के हमारे देश में किसी  भी राष्ट्रपति ...सुप्रीम कोर्ट के मुख्यन्यायाधीश ..समाज सेवी संस्था या आदेश भक्त संथान सहित राजनितिक संगठनों ने देश में सांसदों के इस भ्रष्टाचार और गरिमाविहीं कारवाही को रोकने के लियें कोई पहल नहीं की है ..............हमारे देश में कल जो हुआ वोह देश ने देखा है विश्व ने देखा है बसपा और सपा के सुप्रीमो संसद में कुछ कहते है एफ दी आई का विरोध करते है और इसी मुद्दे पर वोट डालते वक्त सरकार से रिश्वत लेकर संसद से भाग जाते है ऐसे सांसद कुल सत्तर है अगर संसद का कानून हो के किसी भी मुद्दे पर अपनी राय हाँ या ना में देना आवश्यक है और वोट के वक्त जो कोई भी इस खुली सोदेबाज़ी की प्रक्रिया के तहत भगोड़ा होता है तो ऐसे सांसदों की सदस्यता तो ख़त्म होना  ही चाहिए और ऐसे सांसदों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर इन्हें कठोर सजा देने का प्रावधान होना चाहिए बलके इसे देश द्रोह का अपराध मानकर ऐसे सांसदों को तो म्रत्यु दंड यानि फंसी की सज़ा दी जाना चाहिए ...देश की लोकसभा देश का मंदिर है यहाँ जनता और देश का भविष्य तय होता है लेकिन इस संसद की गरिमा को आघात इस तरह से पहुंचाया जाता रहा तो देश का भविष्य गर्क में चला जाएगा ..कसाब ..अफज़ल गुरु तो देश के दुश्मन है ही सही लेकिन इन सांसदों का क्या जो कहते कुछ और है करते कुछ और फिर संसद का कर्तव्य है के किसी  भी मुद्दे पर अपनी राय हाँ या ना में दे और उसके तर्क दे वोटिंग के वक्त संसद से भागने वाले भगोड़े सोदेबाज़ लोगों को अगर दण्डित करने का प्रावधान नहीं रखा तो यह देश को बेचने में देरी नहीं करेंगे तो भाई ऐसे सत्तर सांसद जिन्हें फंसी की सजा मिलना चाहिए उनकी बेनामी सम्पत्तियों की आज से ही जांच शुरू हो तो बात बन जाए ...............
 विदेशी किराना ( पर सरकार लोकसभा में जीत गई है। अब गुरुवार को राज्‍यसभा में इस पर बहस होगी। फिर शुक्रवार को वोटिंग होगी। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्‍वराज द्वारा लाए गए प्रस्‍ताव पर बहस के बाद हुए बुधवार शाम हुए मतविभाजन के तहत सरकार के पक्ष में 253 वोट जबकि सरकार के खिलाफ 218  वोट पड़े। इसके अलावा फेमा पर तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय द्वारा लाया गया प्रस्‍ताव भी गिर गया। इस प्रस्‍ताव पर हुए मतविभाजन में सरकार के पक्ष में 254 जबकि सरकार के खिलाफ 224 वोट पड़े। 
 
एफडीआई पर वोटिंग से पहले बीएसपी और सपा के सांसदों ने वॉकआउट कर सरकार को बड़ी राहत दे दी। सदन में बीएसपी संसदीय दल के नेता दारा सिंह चौहान की अगुवाई में पार्टी 21 सांसद सदन से बाहर चले गए। इनका आरोप है कि केंद्रीय वाणिज्‍य मंत्री ने एफडीआई पर जवाब देते हुए बीएसपी की चिंताओं का कोई जिक्र नहीं किया। बाद में सपा के 22 सांसदों ने भी वॉकआउट कर दिया। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि उनकी पार्टी के सांसदों ने इसलिए वॉकआउट किया क्‍योंकि सरकार ने किसानों और किराना दुकानदारों का अपमान किया है। सदन से बाहर निकलने के बाद पीएम ने कहा, 'वोटिंग के नतीजे से साफ हो गया कि एफडीआई को लोकसभा की मंजूरी मिल गई है।' सुषमा ने कहा कि एसपी और बीएसपी की कथनी-करनी का पता चल गया है। मुलायम सिंह यादव अगर सदन में होते तो एफडीआई नहीं आ सकती थी।।।
देश में आखिर सांसदों की यह लुट ..यह झूंठ संसद से वोट के वक्त भागने का भगोड़ापन कब तक चलेगी ..क्या ऐसे दोहरे किरदार वाले सांसदों को फांसी नहीं मिलना चाहिए क्या ऐसे सांसदों की सदस्यता और राजनितिक पार्टियों की मान्यता खत्म नहीं होना चाहिए 

बच्ची से ज्यादती, हत्या : 35 दिन में फैसला, दी फांसी की सजा


बच्ची से ज्यादती, हत्या : 35 दिन में फैसला, दी फांसी की सजा
मनावर (धार)। मौसेरे भाई की चार वर्षीय बेटी से ज्यादती के बाद गला घोंटकर उसकी हत्या करने वाले चाचा सुनील भूरिया (24) को मनावर कोर्ट ने बुधवार को फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने घटना के महज 35 दिन बाद यह फैसला सुनाया। 
 
कोर्ट ने घटना की निंदा की और कहा- आरोपी की हिम्मत इतनी बर्बरतापूर्ण कृत्य करने की कैसे हो गई। उसकी आत्मा क्यों नहीं कांपी? फैसले के बाद लड़की के परिजन की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने कहा- इतनी जल्दी फैसला आने की उम्मीद नहीं थी।
 
फैसला अपर सत्र न्यायाधीश अविनाश खरे ने सुनाया। आरोपी को धारा 363, 367, 376 (2)(च) के तहत भी दोषी पाया गया।  रानू की मां पारो बाई, पिता लक्ष्मण और चाचा कमल की आंखों से आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे।

कुरान का सन्देश

विश्व मानवाधिकार दिवस दस दिसम्बर को काला दिवस मनाने की घोषणा


मानवाधिकार क्षेत्र में कार्यरत राजस्थान में कोटा की संस्था ह्युमन रिलीफ सोसाइटी ने आज आयोजित बैठक में आगामी दस दिसम्बर विश्व मानवाधिकार दिवस को काला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की ...आज कोटा में आयोजित बैठक में सोसाइटी के महासचीव एडवोकेट अख्तर खान अकेला अध्यक्ष एडवोकेट आबिद हुसेन अब्बासी ने कहा के वर्ष उन्नीस सो तिरानवे से मानवधिका अधिनियम बनाया गया है और आयोग के सभी चेयरमेन सेवानिवृत्त  मुख्य न्यायधीश नियुक्त किये जाते है फिर भी मानवाधिकार अधिनियम की सरकार पूर्ण रूप से पालना नहीं कर सकी है सरकार ने अधिनियम की धरा 30 के प्रावधानों के तहत बीस साल के लगभग गुज़र जाने के बाद भी आज तक मानवाधिकार न्यायलयों का गठन नहीं किया है इतना ही नहीं अधिनियम की धारा इकत्तीस के प्रावधान के तहत मानवाधिकार हनन मामलों की सुनवाई के लियें विशेष लोक अभियोजक नियुक्त नहीं किये है जबकि लगभग दस वर्षों से लगातार इस मामले में सोसाइटी की तरफ से ज्ञापन दिए जा रहे है .............अदेवोकेट अख्तर खान अकेला और आबिद हुसेन अब्बासी ने कहा के राजस्थान में पुलिस अधिनियम 2007 में पारित हो गया था लेकिन दुखद बात है के अधनियम के प्रावधानों के तहत अब तक पुल;इस कल्याण समिति ..पुलिस आयोग ..पुलिस जवाबदेही समिति ..और पुलिस के तबादले वगेरा के लियें स्थापना समिति का गठन नहीं किया है जबकि यह सभी आवश्यक प्रावधान है ..बुजुर्गों के उत्पीडन मामलों की सुनवाई का मामला हो चाहे महिलाओं पर अत्याचार घरेलू हिंसा के मामले हो ..ज्वेनाइल पुलिस यूनिट के घटन का मामला हो बल मजदूरी रोकने और कल्याण का मामला हो सभी में सरकारे नाकामयाब रही है ऐसे प्रतिकार के रोप में विश्व मानवाधिकार दिवस के दिन काला दिवस मनाने के आलावा कोई दूसरा आरास्ता नहीं बचा है क्योंकि जिस शीर्ष संस्था के चेयरमेन सेवानिव्रत न्यायधीश हों और उस संस्था को संचालित करने वाले अधिनियम के प्रावधान भी बीस  में लागु नहीं किये जा सकें तो यह जनता के साथ मजाक नहीं और नहीं तो क्या है कागज़ी कानून बनाने का मतलब भी कुछ नहीं रह जाता है ..बैठक में एडवोकेट राम्स्व्रोप शर्मा ..मुकेश गुप्ता ..नवीन अग्रवाल एडवोकेट नईमुद्दीन काजी ..डोक्टर एजाज़ ..सुश्री आशा मल्लाह ..संजीव जेन ...प्रदीप पांचाल सहित कई लोग शामिल थे .........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान ..प्लीज़ साथियों हो सके तो इसे अधिकतम शेयर कर निजी उपकार करें शुक्रिया ...........

क्या आप जानते हैं जयपुर का नाम कैसे पड़ा गुलाबी नगरी



जयपुर। दैनिक भास्कर डॉट कॉम आज आपके लिए लाए हैं एक ऐसी स्टोरी। जो न सिर्फ जयपुर का इतिहास बयां कर रही है। बल्कि पूरी रियासत की हकीकत से आपको वाकिफ कराएगा और बताएगा कैसे जयपुर शहर बना पिंक सिटी। आज दुनिया भर में कुछ ही शहर है जो रंग के नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं में से एक है गुलाबी नगर। कहानी की शुरुआत जयपुर का जन्म से करते है। इतिहासकारों के अनुसार नगर की नींव1727 में रखी गई। ये महाराजा सवाई जयसिंह का दौर था। नगर बसने से पहले जयपुर (ढूंढाड़) राज्य की राजधानी थी। प्राचीनकाल में यह अम्बावती एवं अंबिकापुर के नाम से जाना जाता था।

यह शहर शुरू से ही 'गुलाबी' नगर नहीं था बल्कि अन्य सामान्य नगरों की ही तरह था। लेकिन 1853 में जब वेल्स के राजकुमार आए तो महाराजा रामसिंह के आदेश से पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंग जादुई आकर्षण प्रदान करने की कोशिश की गई थी। इसी के बाद से यह शहर 'गुलाबी नगरीÓ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। हालांकि इससे पहले जयपुर सफेद और पीले रंग का हुआ करता था। ऐसा कहा जाता है कि रामसिंह के शासन काल के दौरान जयपुर प्रगतिशील रियासतों में रहा। जल प्रदाय व्यवस्था, गैस की रोशनी, पक्की सड़कें, मेयो अस्पताल, रामनिवास जैसा विशाल सार्वजनिक उद्यान, रामप्रकाश थियेटर और अल्बर्ट हॉल की शानदार इमारत सवाई रामसिंह की देन हैं।

उस दौरान कितनी रियासतें थी: राजस्थान में कुल 22 छोटी बड़ी रियासतें थी। जिसमें कोटा और अजमेर सबसे बड़ी रियासत मानी जाती थी। मुगल साम्राज्य पतन के बाद अंग्रेजों की हुकूमत शुरू हुई। अंग्रेजों के लिए यह टेड़ी खीर था कि यहां के रियासतों पर अपना सिक्का जमाना। ऐसे में अंग्रेजों ने बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ और शाहपुरा जैसे छोटे रियासतों पर कब्जा करने की सोची। हालांकि राजाओं के तेवरों को देखते हुए अंग्रेजों ने उनके सामने एक अलग ही प्रस्ताव रख दिया।
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