मकर संक्रांति
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अन्य नाम
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'तिल संक्रांति', 'खिचड़ी पर्व'
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अनुयायी
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हिन्दू धर्मावलम्बी
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उद्देश्य
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मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान और तिल दान करने का विशेष महात्मय होता है।
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प्रारम्भ
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पौराणिक
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तिथि
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14 जनवरी या 15 जनवरी
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उत्सव
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यह दिन सुन्दर पतंगों को उड़ाने का दिन भी माना जाता है। लोग बड़े
उत्साह से पतंगें उड़ाकर पतंगबाज़ी के दाँव–पेचों का आनन्द लेते हैं।
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अनुष्ठान
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इस दिन कहीं खिचड़ी तो कहीं 'चूड़ादही'[1] का भोजन किया जाता है तथा तिल के लड्डू बनाये जाते हैं। ये लड्डू मित्र व सगे सम्बन्धियों में बाँटें भी जाते हैं।
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धार्मिक मान्यता
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हिन्दू धर्म
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संबंधित लेख
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पोंगल, लोहड़ी
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अन्य जानकारी
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मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश कर जाता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को 'उत्तरायण' कहते हैं।
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अद्यतन
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13:08, 15 जनवरी 2012 (IST)
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मकर संक्रान्ति भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष
जनवरी महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से
सूर्य उत्तरायण
होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह
विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह
वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–
तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बाँटा जाता है। इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और
कृषि से है। ये तीनों चीजें ही जीवन का आधार हैं। प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को
पूजा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में भौतिक एवं अभौतिक तत्वों की
आत्मा कहा गया है। इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती अनाज उत्पन्न करती है, जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है।
सूर्य प्रार्थना
संस्कृत
प्रार्थना के अनुसार "हे सूर्य देव, आपका दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत की
आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी
आप ही हो।"
सूर्य का
प्रकाश जीवन का प्रतीक है।
चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है।
वैदिक युग में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी।
पितामह भीष्म
ने भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना प्राणत्याग किया था। हमारे मनीषी
इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं
तीर्थ स्थलों पर
स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
मान्यता
यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाले व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से पूर्णत: मुक्त हो जाते हैं।
महाभारत महाकाव्य में वयोवृद्ध योद्धा पितामह भीष्म
पांडवों और
कौरवों के बीच हुए
कुरुक्षेत्र युद्ध में सांघातिक रूप से घायल हो गये थे। उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पांडव वीर
अर्जुन
द्वारा रचित बाणशैया पर पड़े भीष्म उत्तरायण अवधि की प्रतीक्षा करते रहे।
उन्होंने सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही अंतिम सांस ली, जिससे
उनका
पुनर्जन्म न हो।
तिल संक्राति
देश भर में लोग मकर संक्रांति के पर्व पर अलग-अलग रूपों में
तिल,
चावल, उड़द की
दाल
एवं गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज़्यादा महत्व तिल
का दिया गया है। इस दिन कुछ अन्य चीज भले ही न खाई जाएँ, किन्तु किसी न
किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए। इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर
संक्रांति पर्व को "तिल संक्राति" के नाम से भी पुकारा जाता है। तिल के
गोल-गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति
भगवान
विष्णु
के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग सभी प्रकार के पापों से
मुक्त करता है; गर्मी देता है और शरीर को निरोग रखता है। मंकर संक्रांति
में जिन चीज़ों को खाने में शामिल किया जाता है, वह पौष्टिक होने के साथ ही
साथ शरीर को गर्म रखने वाले
पदार्थ भी हैं।
सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व
जितने समय में
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "
सौर वर्ष"
कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र"
कहलाता है। इस परिधि चक्र को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक
राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकर संक्रान्ति" कहते हैं।
सूर्य का
मकर रेखा से उत्तरी
कर्क रेखा की ओर जाना '
उत्तरायण'
तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना 'दक्षिणायन' है। उत्तरायण
में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक
इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण
देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है।
वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रान्ति के दिन
यज्ञ
में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी
मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं।
इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक
अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है।
मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः
14 जनवरी को पड़ती है।
आभार प्रकट करने का दिन
पंजाब,
बिहार व
तमिलनाडु में यह समय फ़सल काटने का होता है। कृषक मकर संक्रान्ति को 'आभार दिवस' के रूप में मनाते हैं। पके हुए
गेहूँ और
धान
को स्वर्णिम आभा उनके अथक मेहनत और प्रयास का ही फल होती है और यह सम्भव
होता है, भगवान व प्रकृति के आशीर्वाद से। विभिन्न परम्पराओं व
रीति–रिवाज़ों के अनुरूप पंजाब एवं
जम्मू–कश्मीर में "
लोहड़ी"
नाम से "मकर संक्रान्ति" पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज एक दिन पूर्व ही
मकर संक्रान्ति को "लाल लोही" के रूप में मनाता है। तमिलनाडु में मकर
संक्रान्ति '
पोंगल' के नाम से मनाया जाता है, तो
उत्तर प्रदेश और
बिहार में 'खिचड़ी' के नाम से मकर संक्रान्ति मनाया जाता है। इस दिन कहीं खिचड़ी तो कहीं चूड़ादही का भोजन किया जाता है तथा
तिल के लड्डु बनाये जाते हैं। ये लड्डू मित्र व सगे सम्बन्धियों में बाँटें भी जाते हैं।
खिचड़ी संक्रान्ति
चावल
व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का
प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व
ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है।
बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है। इस दिन
गंगा नदी में
स्नान व सूर्योपासना के बाद
ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है।
महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है