कुंभ कैंपस. हिन्दू आध्यात्म की असली पहचान है तिलक से होती
है। यह मान्यता है कि तिलक लगाने से समाज में मस्तिष्क हमेशा गर्व से ऊंचा
होता है। हिंदू परिवारों में किसी भी शुभ कार्य में "तिलक या टीका" लगाने
का विधान हैं। यह तिलक कई वस्तुओ और पदार्थों से लगाया जाता हैं। इनमें
हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि प्रमुख हैं। परन्तु क्या आप जानते
हैं कि इस तिलक लगाने के प्रति भावना क्या छिपी हैं?
संगम तटमाथे पर तिलक लगाने के पीछे आध्यात्मिक महत्व है। दरअसल, हमारे शरीर में
सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें
चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र
होता है। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की
प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं। इसलिए इसे
त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे
शरीर का संचालन होता है। पर लगे आस्था के कुंभ में इन दिनों पहुंचे हज़ारों संतो के एक
से एक अनोखे तिलक उन को लुभाने का काम कर रहे हैं। संत पूजन-अर्चन के अलवा
माथे पर तिलक लगाने का विशेष विधान करते हैं। यह वर्णन मिलता है कि संगम तट
पर गंगा स्नान के बाद तिलक लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण
है की स्नान करने के बाद पंडों द्वारा विशेष तिलक अपने भक्तों को लगाया
जाता है।
यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है।
इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। योग में ध्यान के समय
इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है। तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में
सुधार आता हैं व देखने वाले पर सात्विक प्रभाव पड़ता हैं।