doston सियासत में लोग partiyon में बंट गए है .जाती और धर्म में ने लोगों को बाँट दिया है जनता को सिर्फ और सिर्फ वोटर बनाकर रख दिया है ..सियासत ने हिंदी को उर्दू का दुश्मन ..मराठी को बिहारी का दुश्र्मन ..हिन्दू को मुसलमाना का दुश्मन और दलित को स्वर्ण का स्वर्ण को दलित का दुश्मन बना दिया है कुल मिलाकर सियासी पार्टियों के सामने अर्जुन की आँख की तरह कुर्सी और सत्ता है फिर चाहे उनकी तरफ से देश या देश की जनता जाए भाड़ में इससे उन्हें कोई मतलब नहीं है ....आज देश में सियासी पार्टियों की वोट राजनीति के करना ही हिन्दू खुद को हिन्दू मुसलमान खुद को मुसलमान समझने लगा है यह दोनों कोमें खुद को हिन्दुस्तानी समझने में संकोच करने लगी है ..भाजपा हिन्दुओं की पार्टी कहलाती है तो कोंग्रेस मुस्लिमों और दलितों की पार्टी कही जाती है ..क्षेत्रीय पार्टियां तो नये मुद्दे रोज़ बनती है .....कोंग्रेस अगर मुसलमानों की पार्टी है तो जनाब बताइए आज़ादी के बाद आरक्षण देते वक्त काका केलकर की रिपोर्ट पर जब कहा गया के दस्तकारी के आधार पर सभी जुलाहों .सभी कसाइयों ..सभी बुनकरों ..सभी धोबियों वगेरा को आरक्षण देकर उनका उत्थान किया जाए तो कोंग्रेस ने ही संविधान विरोधी साम्प्रदायिक आदेश जारी कर इस आरक्षण को केवल हिन्दुओं के लियें लिख कर सिमित कर दिया और कोंग्रेस के इस साम्प्रदायिक आदेश से मुस्लिम समाज के लोग पिछड़ गए ..क्योंकि उस वक्त हिन्दू कोंग्रेस से नाराज़ थे उन्हें पटाने के लियें कोंग्रेस को यह सियासत जरूरी थी ..कोंग्रेस ने कभी किसी मुस्लिम को सियासत में आगे नहीं आने दिया ...कोंग्रेस ने जब बाबरी मस्जिद टूट रही थी तब सियासत खेलने के लियें ही कुछ नहीं किया और तो और इसके दोषियों को सजा देने के लियें कोई कार्यवाही नहीं की ..गुजरात में खुलेआम कत्ले आम और कोंग्रेस के सांसद जाफ्री की हत्या की कोंग्रेस गवाह है कोंग्रेस केंद्र में सी बी आई लेकर बेठी है लेकिन कोंग्रेस ने एक बार भी इस दंगे की जाँच सी बी आई से कराने की पहल नहीं की क्योंकि उसे मुसलमानों की मोत से कोई मतलब नहीं था उसे तो इस सियासत में हिदू वोटों की फ़िक्र थी ..अभी स्कूलों में कहीं गीता कही सूर्य नमस्कार कही भोजन मन्त्र का विवाद है धर्म के लियें नहीं केवल सियासत के लियें यह विवाद है ..ऐसे कई मुद्दे है जो कोंग्रेस ने मुसलमानों को नुकसान पहुचकर केवल सियासत के लिये हिन्दुओं को खुश करने के लियह किया है ...अब भाजपा की बात करें अगर भाजपा हिदू वादी पार्टी है तो इस पार्टी में मुख़्तार अब्बास नकवी .शाहनवाज़ हुसेन क्या कर रहे हैं ...इस पार्टी में अल्पसंख्यक मोर्चा क्यूँ बना हुआ है ..अगर यह पार्टी हिन्दुओं की है तो राममन्दिर का मुद्दा इस पार्टी ने सत्ता में आने के बाद दरकिनार क्यूँ कर दिया था ..क्यूँ कोमन सिविल कोड .क्यूँ धरा 370 का मुद्दा ताक में रख दिया था ..क्यूँ राम मन्दिर के नाम पर जमा अरबो रूपये के हिन्दुओं के धन का हिसाब हिन्दू भाइयों को पाई पाई का अब तक नहीं दिया है वोह पेस कहा किस बेंक में है हिन्दू भाइयों को क्यूँ नहीं बताया है ....नरेन्द्र मोदी ने हिन्दू भाइयों के लियें अलग से कोई रोज़गार या आरक्षण योजना लागु क्यूँ नहीं की है .गुजरात विकास के नाम पर मन्दिर क्यूँ तोड़े गए ..तो दोस्तों ऐसे कई सवाल है जो आप भी जानते है और हर भारतीय जानता है के कोई भी पार्टी हिंदूवादी ..मुस्लिम वादी नहीं है यह तो बस इनके चहेरे है इन्हें धर्म ..मजहब और राष्ट्र ..राष्ट्रीयता से कोई लेना देना नहीं है बस इन्हें तो सत्ता चाहिए और सत्ता प्राप्ति के लियें यह लोग साम्प्रदायिकता भी भड्कायेंगे ..लाठी गोली भी छाएंगे धर्म मजहब की राजनीति भी करेंगे भाई को भाई से लड़ायेंग इसलियें दोस्तों इस सियासत को नंगा करो इस सियासत के नाम पर देश को धर्म मजहब जाती भाषा क्षेत्रीयता में न बांटो हम एक थे एक है एक रहंगे का naara दो और जो नेता इसके खिलाफ भड़काए उसको सड़कों पर चोराहों पर काल मुंह कर उनका जुलुस निकाले और देश को बचाएं ...................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
19 फ़रवरी 2013
आंखों से लाचार मां को 27 हजार किमी चलकर कराए चारधाम के दर्शन
17 साल पहले शुरू हुई यात्रा समाप्त
उज्जैनत्न 87 साल की नेत्रहीन मां की इच्छा पूरी करने के लिए वह इस कलियुग में श्रवण कुमार बन गया। अपने कंधों पर कावड़ में मां को बैठाकर 17 साल और कुछ महीनों में 27 हजार किलोमीटर पैदल चलकर उसने चारधाम की तीर्थ यात्रा पूरी करा दी। बरगी (ग्वालियर) के 40 वर्षीय कैलाश गिरि ब्रह्मचारी कावड़ में बैठी मां कीर्ति देवी के साथ सोमवार को जब उज्जैन की सड़कों से गुजरे तो उन्हें देखने वालों की नजरें थम गईं और बूढ़े मां-बाप को कंधों पर यात्रा कराने वाले पौराणिक पात्र श्रवण कुमार की याद आ गई। कैलाश गिरि ने कहा कि 1995 में क्रम से रामेश्वर, जगन्नाथपुरी, बद्रीनाथ और द्वारिका धाम की यात्रा कर अब उज्जैन में महाकाल दर्शन के साथ यात्रा पूरी की है। हालांकि संकल्प के मुताबिक वह मां को गांव तक कावड़ से ही ले जाएगा। उज्जैन से वह देवास के रास्ते ग्वालियर के लिए रवाना हो गया।
जेब में एक रुपया नहीं, चल दिए यात्रा पर
कैलाश ने जब यात्रा शुरू की तो उसके पास जेब में एक रुपया नहीं था। भगवान भरोसे वह कावड़ लेकर निकल पड़ा और गर्मी, ठंड व बारिश के बीच यात्रा आगे बढ़ती चली गई। जहां भी गया, उस शहर में लोगों ने रहने, खाने की मदद की और कुछ रुपए भी दिए लेकिन पूरी यात्रा में कहीं कोई सरकारी मदद नहीं ली।
उज्जैनत्न 87 साल की नेत्रहीन मां की इच्छा पूरी करने के लिए वह इस कलियुग में श्रवण कुमार बन गया। अपने कंधों पर कावड़ में मां को बैठाकर 17 साल और कुछ महीनों में 27 हजार किलोमीटर पैदल चलकर उसने चारधाम की तीर्थ यात्रा पूरी करा दी। बरगी (ग्वालियर) के 40 वर्षीय कैलाश गिरि ब्रह्मचारी कावड़ में बैठी मां कीर्ति देवी के साथ सोमवार को जब उज्जैन की सड़कों से गुजरे तो उन्हें देखने वालों की नजरें थम गईं और बूढ़े मां-बाप को कंधों पर यात्रा कराने वाले पौराणिक पात्र श्रवण कुमार की याद आ गई। कैलाश गिरि ने कहा कि 1995 में क्रम से रामेश्वर, जगन्नाथपुरी, बद्रीनाथ और द्वारिका धाम की यात्रा कर अब उज्जैन में महाकाल दर्शन के साथ यात्रा पूरी की है। हालांकि संकल्प के मुताबिक वह मां को गांव तक कावड़ से ही ले जाएगा। उज्जैन से वह देवास के रास्ते ग्वालियर के लिए रवाना हो गया।
जेब में एक रुपया नहीं, चल दिए यात्रा पर
कैलाश ने जब यात्रा शुरू की तो उसके पास जेब में एक रुपया नहीं था। भगवान भरोसे वह कावड़ लेकर निकल पड़ा और गर्मी, ठंड व बारिश के बीच यात्रा आगे बढ़ती चली गई। जहां भी गया, उस शहर में लोगों ने रहने, खाने की मदद की और कुछ रुपए भी दिए लेकिन पूरी यात्रा में कहीं कोई सरकारी मदद नहीं ली।
एयर होस्टेस, मैनेजमेंट छात्राओं संग धर्मगुरु चला रहे थे देवता के घर से देह का व्यापार
नई दिल्ली। दिल्ली में एक हाई प्रोफाइल सेक्स रैकेट का
भंडाफोड़ हुआ है। चौंकाने वाली बात है कि इस रैकेट में एयर होस्टेस,
मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाली छात्राएं भी शामिल हैं। इस रैकेट को चलाने
वाला शख्स एक धर्मगुरु है।
दक्षिण दिल्ली के खानपुर इलाके में चल रहे इस धंधे को राजीव रंजन
द्विवेदी नामक एक शख्स चला रहा था जो खुद को एक मंदिर का पुरोहित बताता था।
गौरतलब है कि खानपुर इलाके में ही इसने एक मंदिर बना रखा है और इसी मंदिर
परिसर से वह इस सेक्स र्रैकेट का संचालन करता था।
पुलिस के छापे में छह लड़कियों सहित एक ग्राहक को गिरफ्तार किया गया
है। बाबा अभी फरार है। गिरफ्तार में से दो लड़कियां एयर होस्टेस हैं जबकि,
अन्य के नामी कॉलेज की मैनेजमेंट स्टूडेंट्स होने के दावा किया जा रहा है।
मंदिर परिसर से सेक्स रैकेट चलाए जाने की खबर के बाद दिल्ली पुलिस के
इंस्पेक्टर ने कस्टमर बन संपर्क किया जिसके बाद इस रैकेट का खुलासा हुआ।
सरकारी डिग्री फर्जी?
एम अफसर खान सागर
शिक्षा किसी भी समुदाय के विकास में
महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। आज मुसलमानों के पिछड़ेपन की प्रमुख वजह
शिक्षा की कमी है। मुसलमानों के शैक्षिक, सामाजिक व आर्थिक हालात को
सुधारने के लिए केन्द्र व प्रदेश सरकार द्वारा तरह-तरह के प्रयास किये जा
रहे हैं मगर सच्चाई है कि ये प्रयास इनके हालात सुधारने में नाकाफी साबित
हुए हैं। यही वजह है कि आजादी के साठ साल से ज्यादा का अरसा गुजर जाने के
बाद भी तकरीबन पच्चीस करोड़ की आबादी वाला यह तबका फटेहाली, जेहालत व
गुरबदत भरी जिन्दगी जीने पर मजबूर है।
मुस्लिम समुदाय के शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए केन्द्र सरकार ने मदरसों में आधुनिकीकरण योजना चलाया जिसके तहत मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक विषयों अंग्रेजी, गणित व विज्ञान की शिक्षा छात्रों को दिया जाने लगा ताकि मदरसे से निकलने वाले छात्र पिछड़ने न पावें। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों में तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था के लिए मिनी आई. टी. आई. का महत्वाकांक्षी योजना लाया गया ताकि बदलते हालात के साथ मदरसा छात्रों को भी तकनीकन शिक्षा मिले और वे समय के साथ कदम मिला कर चल सकें। लेकिन मदरसा मिनी आई. टी. आई. अपने मकसद में तो फेल हो ही रहा है साथ में यहां से पास हो कर भविष्य की तलाश में निकलने वाले छात्र भी अपने मकसद में नाकाम हो रहे हैं। मदरसा मिनी आई. टी. आई. द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र को न तो केन्द्र सरकार ही मान्य कर रही है, न ही प्राइवेट संस्थायें और न ही उत्तर प्रदेश सरकार जो इसे चला रही है। सिर्फ कागज का पुलिन्दा मात्र हैं मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र। या यूं कह लें कि सरकारी डिग्री फर्जी साबित हो रही है!
मुस्लिम समुदाय के शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए केन्द्र सरकार ने मदरसों में आधुनिकीकरण योजना चलाया जिसके तहत मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक विषयों अंग्रेजी, गणित व विज्ञान की शिक्षा छात्रों को दिया जाने लगा ताकि मदरसे से निकलने वाले छात्र पिछड़ने न पावें। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों में तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था के लिए मिनी आई. टी. आई. का महत्वाकांक्षी योजना लाया गया ताकि बदलते हालात के साथ मदरसा छात्रों को भी तकनीकन शिक्षा मिले और वे समय के साथ कदम मिला कर चल सकें। लेकिन मदरसा मिनी आई. टी. आई. अपने मकसद में तो फेल हो ही रहा है साथ में यहां से पास हो कर भविष्य की तलाश में निकलने वाले छात्र भी अपने मकसद में नाकाम हो रहे हैं। मदरसा मिनी आई. टी. आई. द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र को न तो केन्द्र सरकार ही मान्य कर रही है, न ही प्राइवेट संस्थायें और न ही उत्तर प्रदेश सरकार जो इसे चला रही है। सिर्फ कागज का पुलिन्दा मात्र हैं मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र। या यूं कह लें कि सरकारी डिग्री फर्जी साबित हो रही है!
सन्
2002-2003 में तत्कालीन बसपा सरकार ने उत्तर प्रदेश के 50 मदरसों में
मदरसा मिनी आई. टी. आई. खोलने का निर्णय लिया। जिसे सन् 2005 में समाजवादी
पार्टी की सरकार ने 140 मदरसों में लागू किया। मदरसा मिनी आई. टी. आई. के
संचालन की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण एंवं वक्फ
विभाग को मिला, जिसने इसके संचालन हेतु उत्तर प्रदेश मदरसा वोकेशनल
ट्रेनिंग (UPMVT) की स्थापना की। सरकारी गाइड लाइन के मुताबिक मदरसा मिनी
आई. टी. आई. के 45 ट्रेडों में से एक मदरसे को सिर्फ तीन ट्रेड चलाने की
अनुमति होगी। लगातार सफल संचालन के बाद मदरसों द्वारा रजिस्टार उत्तर
प्रदेश मदरसा वोकेशनल ट्रेनिंग के अनुमति से ट्रेड बढ़वाया जा सकता है। सन्
2005 में मदरसा मिनी आई. टी. आई. की स्थापना के लिए चन्दौली जनपद में
एकमात्र धानापुर स्थित मदरसा मिस्बाहुल उलूम को दो लाख चार हजार रूपये
क्रमशः कम्प्यूटर, वेल्डर, विधुत व गैस तथा सिलाई एवं कटाई ट्रेडों को
चलाने के लिए मिला। मदरसों को यह निर्देश दिया गया कि प्रति ट्रेड 16
छात्रों के हिसाब से कुल 48 छात्रों का एडमिशन हो तथा परीक्षा में 60
प्रतिशत से ज्यादा रिजल्ट आने पर पूरे अनुदान का 10 प्रतिशत मेंटनेंस खर्च
के रूप में मदरसों को प्रति वर्ष दिया जाएगा। मदरसे में मदरसा मिनी आई. टी.
आई. का अलग डिविजन स्थापित कर उसके संचालन के लिए तीन अनुदेशक/शिक्षक, एक
क्लर्क सह स्टोर कीपर व एक परिचर की नियुक्त हुए। तीनों अनुदेशकों में से
एक को मुख्य अनुदेशक बनाकर उसको मदरसा मिनी आई. टी. आई. का पूरा प्रभार
सौंपा गया। शैक्षणिक सत्र जुलाई-अगस्त में प्रारम्भ होकर सितम्बर-अक्तूबर
तक चलता है, परीक्षा व परिणाम नबम्बर तक घोषित किया जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित मदरसा मिनी आई. टी. आई. से पूरे प्रदेश में प्रतिवर्ष तकरीबन छः हजार छात्र उत्तीर्ण होकर निकलते हैं मगर दुभाग्य की उनकी डिगीयां सिर्फ उनके दिलों को तसल्ली देती हैं न की रोजगार। क्योंकि राज्य सरकार जो इसे स्वयं संचालित करता है वह खुद इसे अपने यहां नौकरी की खातिर मान्य नहीं करता, ऐसे में केन्द्र व अन्य सरकारों का क्या दोष? मदरसा मिनी आई. टी. आई. पास अलपसंख्यक युवक सरकारी तो दूर प्राइवेट कम्पनीयों में भी नौकरी के लायक नहीं। जबकि स्थापना के वक्त इसका मकसद अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मदरसों में पढ़ने वाले युवकों को रोजगार से जोड़ना था। गौर फरमाने लायक बात यह है कि सिलैबस व प्रक्षिण एन. सी. भी. टी. या एस. सी. भी. टी. के समान होने के बावजूद मदरसा मिनी आई. टी. आई. को इन संस्थानों से मान्यता दिलाने में सरकार नाकाम है या अल्पसंख्को के साथ सियासी साजिश किया जा रहा है!
मदरसा मिनी आई. टी. आई. की डिग्री लेकर धानापुर-चन्दौली निवासी बेरोजगार युवक मोहसीन खां 22 वर्ष जब गुडगांव में नौकरी बास्ते एक प्राइवेट कम्पनी में बेल्डर पद के लिए आवेदन करता है तो उसके मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र को फर्जी कह कर उसका मजाक उड़ाया जाता है। प्राइवेट कम्पनी का नियोक्ता हंसते हुए कहता है कि आई. टी. आई. तो सुना था मगर मदसरा मिनी आई. टी. आई. कहां से पैदा हो गया। मैं इसको कैसे सही मानूं इसपर तो एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. का मुहर है ही नहीं। उस डिग्री और पढ़ाई से क्या फायदा जो व्यक्ति को तमाशा बना दे। मु0 आरिफ खां 24 वर्ष बताता है कि जब मैं दिल्ली में कम्प्यूटर आपरेटर पद के लिए आवेदन किया तो मुझे मेरे प्रमाण पत्र के सही न होने के आधार पर रिजेक्ट कर दिया गया। शहीद अबरार 28 बताता है कि मैने कम्प्यूटर में मिनी आई टी. आई करने के बाद नौकरी के लिए प्रयास किसा मगर कामयाबी नहीं मिली। प्रमाण पत्र फर्जी कहकर हटा दिया जाता। अब साइबर कैफे चला रहा हूं, सरकार को चाहिए कि मदरसा से निकले वाले छात्रों को स्वरोजगार के लिए सरकारी अनुदान उपलब्ध कराये। मैंने कोशिश किया मगर कामयाब नहीं हो पाया सरकारी अनुदान पाने में। यह तो चन्द उदाहरण भर है।
अल्पसंख्यकों को रोजगार मुहैया कराने का कागजी फरमान मुसलमानों के कल्याण की खातिर है या सियासी दलों के खुद के कलयाण का शिगूफा? शायद यही सोच कर तसल्ली कर लेते हैं मदरसा मिनी आई. टी. आई. के छात्र कि सरकार ने दोयम दर्जे का ही सही आई. टी. आई. के लायक तो समझा। आखिर क्या वजह है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र व येाग्यता को अमान्य करार दे दिया जा रहा है? तौकीरअहमद, मुख्य अनुदेशक, मदरसा मिनी आई. टी. आई., मदरसा मिस्बाहुल उलूम, धानापुर-चन्दोली बताते हैं कि ‘‘आई. टी. आई. के वही प्रमाण पत्र मान्य होते हैं, जिनको एन. सी. वी. टी. ‘नेशनल काउंसिल फार वोकेशलन ट्रेनिंग’ या एस. सी. वी. टी. ‘स्टेट काउंसिल फार वोकेशलन ट्रेनिंग’ मान्यता देता है। लेकिन मदरसा मिनी आई. टी. आई. का इन दोनों संस्थाओं में से किसी की मान्यता नहीं है जबकि सिलैबस एन. सी. वी. टी. का पढ़ाया जाता है।’’ यह तो अल्पसंख्यकों को लालीपाप ही थमाया गया है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. नौकरी नहीं डिग्री देगा, जिसको लेकर ये छात्र खुशफहती में रहेंगे। इस बाबत उत्तर प्रदेश मदरसा वोकेशनल ट्रेनिंग के निदेशक जावेदअसलम टेलीफोनिक बातचीत में बताते हैं कि ‘‘मदरसा मिनी आई. टी. आई. की स्थापना सिर्फ मदरसा छात्रों को तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराकर स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षित करना है। रही बात एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. से मान्यता दिलाने की तो इसके लिए मदरसों को स्वयं पहल करना होगा है।’’ सरकार सवरोजगार का हवाला देकर अपने दायितवों से मुक्त हो जा रही है जबकि प्रत्येक वर्ष हजारों छात्र नौकरी के आस में यह प्रमाण पत्र हासिल कर रहे हैं। यह सरकार की दोहरी नीति नहीं तो क्या है कि एन. सी. वी. टी. का सिलैबस पढ़ कर भी मदरसा छात्र सरकारी नौकरी के काबिल नहीं है?
आखिर क्या वजह है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. का लेबल लगाकर मदरसों के छात्रों को सरकारी नौकरी से रोका जा रहा है? अगर इस प्रशिक्षण के बाद भी वे काबिल नही हो पा रहे हैं तो सरकार क्यों इस तरह के पाठ्यक्रम चला रही है? हर साल करोड़ों का सरकारी धन क्यों बेमकसद सरकार पानी में बहा रही है? क्यों नही मदरसा मिनी आई. टी. आई. को एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. से मानयता दिलाया जा रही है? अगर सरकार स्वरोजगार के लिए ही इसको संचालित किया है तो यहां से उत्तीर्ण होकर निकलने वाले छात्रों को सरकारी अनुदान की व्यवस्था करायी जाए। तमाम सवाल हैं जिसका जवाब सरकार देने में असमर्थ है। एक अच्छे मकसद का नतीजा भी अच्छा हो ताकि मदरसों व मदरसा के छात्रों को एक दिशा प्राप्त हो सके। राष्ट्र का विकास तभी होगा जब हर समुदाय, हर व्यक्ति विकास की धारा में समान रूप से चलेगा। अब देखना है कि अल्पसंख्यक हितों की बात करने वाली प्रदेश की सपा सरकार व केन्द्र की सरकार इस समुदाय के तकनीकि लातीम को बढ़ावा देने के लिए क्या कदम उठाती है। बस जरूरत है सार्थक पहल की। जिसके लिए इन सरकारों को सियासी मुलम्मेबाजी से उपर उठ कर सोचने की जरूरत है। वर्ना वोट की सियासत में फंस कर सरकार की एक बेहतर सोच परवान चढ़ने की बजाय सिर्फ ढकोचला भर रह जायेगी।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित मदरसा मिनी आई. टी. आई. से पूरे प्रदेश में प्रतिवर्ष तकरीबन छः हजार छात्र उत्तीर्ण होकर निकलते हैं मगर दुभाग्य की उनकी डिगीयां सिर्फ उनके दिलों को तसल्ली देती हैं न की रोजगार। क्योंकि राज्य सरकार जो इसे स्वयं संचालित करता है वह खुद इसे अपने यहां नौकरी की खातिर मान्य नहीं करता, ऐसे में केन्द्र व अन्य सरकारों का क्या दोष? मदरसा मिनी आई. टी. आई. पास अलपसंख्यक युवक सरकारी तो दूर प्राइवेट कम्पनीयों में भी नौकरी के लायक नहीं। जबकि स्थापना के वक्त इसका मकसद अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मदरसों में पढ़ने वाले युवकों को रोजगार से जोड़ना था। गौर फरमाने लायक बात यह है कि सिलैबस व प्रक्षिण एन. सी. भी. टी. या एस. सी. भी. टी. के समान होने के बावजूद मदरसा मिनी आई. टी. आई. को इन संस्थानों से मान्यता दिलाने में सरकार नाकाम है या अल्पसंख्को के साथ सियासी साजिश किया जा रहा है!
मदरसा मिनी आई. टी. आई. की डिग्री लेकर धानापुर-चन्दौली निवासी बेरोजगार युवक मोहसीन खां 22 वर्ष जब गुडगांव में नौकरी बास्ते एक प्राइवेट कम्पनी में बेल्डर पद के लिए आवेदन करता है तो उसके मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र को फर्जी कह कर उसका मजाक उड़ाया जाता है। प्राइवेट कम्पनी का नियोक्ता हंसते हुए कहता है कि आई. टी. आई. तो सुना था मगर मदसरा मिनी आई. टी. आई. कहां से पैदा हो गया। मैं इसको कैसे सही मानूं इसपर तो एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. का मुहर है ही नहीं। उस डिग्री और पढ़ाई से क्या फायदा जो व्यक्ति को तमाशा बना दे। मु0 आरिफ खां 24 वर्ष बताता है कि जब मैं दिल्ली में कम्प्यूटर आपरेटर पद के लिए आवेदन किया तो मुझे मेरे प्रमाण पत्र के सही न होने के आधार पर रिजेक्ट कर दिया गया। शहीद अबरार 28 बताता है कि मैने कम्प्यूटर में मिनी आई टी. आई करने के बाद नौकरी के लिए प्रयास किसा मगर कामयाबी नहीं मिली। प्रमाण पत्र फर्जी कहकर हटा दिया जाता। अब साइबर कैफे चला रहा हूं, सरकार को चाहिए कि मदरसा से निकले वाले छात्रों को स्वरोजगार के लिए सरकारी अनुदान उपलब्ध कराये। मैंने कोशिश किया मगर कामयाब नहीं हो पाया सरकारी अनुदान पाने में। यह तो चन्द उदाहरण भर है।
अल्पसंख्यकों को रोजगार मुहैया कराने का कागजी फरमान मुसलमानों के कल्याण की खातिर है या सियासी दलों के खुद के कलयाण का शिगूफा? शायद यही सोच कर तसल्ली कर लेते हैं मदरसा मिनी आई. टी. आई. के छात्र कि सरकार ने दोयम दर्जे का ही सही आई. टी. आई. के लायक तो समझा। आखिर क्या वजह है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र व येाग्यता को अमान्य करार दे दिया जा रहा है? तौकीरअहमद, मुख्य अनुदेशक, मदरसा मिनी आई. टी. आई., मदरसा मिस्बाहुल उलूम, धानापुर-चन्दोली बताते हैं कि ‘‘आई. टी. आई. के वही प्रमाण पत्र मान्य होते हैं, जिनको एन. सी. वी. टी. ‘नेशनल काउंसिल फार वोकेशलन ट्रेनिंग’ या एस. सी. वी. टी. ‘स्टेट काउंसिल फार वोकेशलन ट्रेनिंग’ मान्यता देता है। लेकिन मदरसा मिनी आई. टी. आई. का इन दोनों संस्थाओं में से किसी की मान्यता नहीं है जबकि सिलैबस एन. सी. वी. टी. का पढ़ाया जाता है।’’ यह तो अल्पसंख्यकों को लालीपाप ही थमाया गया है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. नौकरी नहीं डिग्री देगा, जिसको लेकर ये छात्र खुशफहती में रहेंगे। इस बाबत उत्तर प्रदेश मदरसा वोकेशनल ट्रेनिंग के निदेशक जावेदअसलम टेलीफोनिक बातचीत में बताते हैं कि ‘‘मदरसा मिनी आई. टी. आई. की स्थापना सिर्फ मदरसा छात्रों को तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराकर स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षित करना है। रही बात एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. से मान्यता दिलाने की तो इसके लिए मदरसों को स्वयं पहल करना होगा है।’’ सरकार सवरोजगार का हवाला देकर अपने दायितवों से मुक्त हो जा रही है जबकि प्रत्येक वर्ष हजारों छात्र नौकरी के आस में यह प्रमाण पत्र हासिल कर रहे हैं। यह सरकार की दोहरी नीति नहीं तो क्या है कि एन. सी. वी. टी. का सिलैबस पढ़ कर भी मदरसा छात्र सरकारी नौकरी के काबिल नहीं है?
आखिर क्या वजह है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. का लेबल लगाकर मदरसों के छात्रों को सरकारी नौकरी से रोका जा रहा है? अगर इस प्रशिक्षण के बाद भी वे काबिल नही हो पा रहे हैं तो सरकार क्यों इस तरह के पाठ्यक्रम चला रही है? हर साल करोड़ों का सरकारी धन क्यों बेमकसद सरकार पानी में बहा रही है? क्यों नही मदरसा मिनी आई. टी. आई. को एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. से मानयता दिलाया जा रही है? अगर सरकार स्वरोजगार के लिए ही इसको संचालित किया है तो यहां से उत्तीर्ण होकर निकलने वाले छात्रों को सरकारी अनुदान की व्यवस्था करायी जाए। तमाम सवाल हैं जिसका जवाब सरकार देने में असमर्थ है। एक अच्छे मकसद का नतीजा भी अच्छा हो ताकि मदरसों व मदरसा के छात्रों को एक दिशा प्राप्त हो सके। राष्ट्र का विकास तभी होगा जब हर समुदाय, हर व्यक्ति विकास की धारा में समान रूप से चलेगा। अब देखना है कि अल्पसंख्यक हितों की बात करने वाली प्रदेश की सपा सरकार व केन्द्र की सरकार इस समुदाय के तकनीकि लातीम को बढ़ावा देने के लिए क्या कदम उठाती है। बस जरूरत है सार्थक पहल की। जिसके लिए इन सरकारों को सियासी मुलम्मेबाजी से उपर उठ कर सोचने की जरूरत है। वर्ना वोट की सियासत में फंस कर सरकार की एक बेहतर सोच परवान चढ़ने की बजाय सिर्फ ढकोचला भर रह जायेगी।
एयरपोर्ट से दिनदहाड़े लूट लिए 25 अरब के हीरे
बेल्जियम के सरकारी टीवी चैनल ने खबर दी है कि लुटेरों ने एक ट्रक पर धावा बोला जिस पर रखा माल ज्यूरिख जाने वाले स्विटजरलैंड के विमान में लोड किया जा रहा था। पुलिस अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि एयरपोर्ट पर ही लुटेरों ने वारदात को अंजाम दिया है लेकिन उन्होंने इसका जिक्र नहीं किया कि लुटने वाली चीज क्या है? उम्मीद है कि पुलिस कुछ देर बाद घटना से जुड़ा पूरा ब्योरा देगी।
हालांकि एयरपोर्ट प्रबंधन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि लुटेरे रोड पर लगे बैरियर को पार करते हुए एयरपोर्ट के भीतर दाखिल हो गए। खबर है कि लुटरों ने कुछ ही मिनटों के दौरान पूरी वारदात को अंजाम दिया और हैरानी की बात है कि इस दौरान न तो कोई फायरिंग हुई और न ही कोई जख्मी हुआ। हालांकि स्थानीय पुलिस ने बताया कि घटना के बाद एयरपोर्ट के समीप एक वाहन जली हालत में मिला है।
हां, अन्ना की मौत चाहते थे केजरीवाल: अग्निवेश, हजारे पर सौ जीवन कुर्बान: अरविंद
नई दिल्ली। टीम अन्ना भले ही अपने विवादों के कारण बिखर गई हो,
लेकिन इसके पूर्व सदस्य अब भी विवादित बयान देने से बाज नहीं आ रहे हैं।
ताजा विवादित बयान अरविंद केजरीवाल के पूर्व सहयोगी स्वामी अग्निवेश ने
दिया है।
अग्निवेश के अनुसार, अरविंद केजरीवाल चाहते थे कि अनशन के दौरान अन्ना
हजारे की मौत हो जाए और इसका फायदा आंदोलन को पहुंचे। यह बात पहले
उन्होंने एक न्यूज चैनल पर कही। केजरीवाल ने इस पर सवाल उठाए और स्वामी
के बयान को संदेहास्पद बताया। लेकिन मंगलवार को बातचीत में स्वामी अग्निवेश ने दोहराया कि अरविंद चाहते थे कि अन्ना
का बलिदान हो जाए, ताकि आंदोलन को मजबूती मिले। स्वामी अग्निवेश का दावा
है कि अरविंद ने कहा था कि अन्ना का बलिदान आंदोलन के लिए अच्छा रहेगा।
अप्रैल 2011 में जब जंतर-मंतर पर जन लोकपाल आंदोलन शुरू हुआ तो
अग्निवेश अन्ना को आमरण अनशन पर बैठाने के खिलाफ थे। अग्निवेश के अनुसार,
'जब मुझे पता चला कि अन्ना आमरण अनशन करने वाले हैं, तो मैंने अरविंद से
सवाल किया था कि वह अन्ना जैसे बुजुर्ग को आमरण अनशन पर क्यों बैठा रहे
हैं? इस पर अरविंद ने कहा कि उनका बलिदान हो जाता है तो इससे क्रांति होगी।
वह मर जाएंगे तो कोई बात नहीं, यह आंदोलन के लिए अच्छा रहेगा।'
अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को ट्वीट कर सफार्इ दी। उनका कहना है कि
कुछ मीडिया हाउस यह चला रहे हैं कि स्वामी अग्निवेश ने कहा है कि मैं
अन्ना को मारना चाहता था। क्या स्वामी अग्निवेश ने कोई सबूत दिया
है? केजरीवाल का कहना है कि अन्ना पर एक नहीं, सौ जिंदगियां कुर्बान।
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