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07 मार्च 2013

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस











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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्वभर में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं।[1]
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।“

इतिहास

इतिहास के अनुसार आम महिलाओं द्वारा समानाधिकार की यह लड़ाई शुरू की गई थी। लीसिसट्राटा नामक महिला ने प्राचीन ग्रीस में फ्रेंच क्रांति के दौरान युद्ध समाप्ति की मांग रखते हुए आंदोलन की शुरुआत की, फ़ारसी महिलाओं के समूह ने वरसेल्स में इस दिन एक मोर्चा निकाला, इसका उद्देश्य युद्ध के कारण महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार को रोकना था।
पहली बार सन् 1909 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ अमेरिका द्वारा पूरे अमेरिका में 28 फ़रवरी को महिला दिवस मनाया गया था। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल द्वारा कोपेनहेगन में महिला दिवस की स्थापना हुई। 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। इस रैली में मताधिकार, सरकारी नौकरी में भेदभाव खत्म करने जैसे मुद्दों की मांग उठी।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, रूसी महिलाओं द्वारा पहली बार शांति की स्थापना के लिए फ़रवरी माह के अंतिम रविवार को महिला दिवस मनाया गया। यूरोप भर में भी युद्ध विरोधी प्रदर्शन हुए। 1917 तक रूस के दो लाख से ज़्यादा सैनिक मारे गए, रूसी महिलाओं ने फिर रोटी और शांति के लिए इस दिन हड़ताल की। हालांकि राजनेता इसके ख़िलाफ़ थे, फिर भी महिलाओं ने आंदोलन जारी रखा और तब रूस के जार को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी और सरकार को महिलाओं को वोट के अधिकार की घोषणा करनी पड़ी।
'महिला दिवस' अब लगभग सभी विकसित, विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।[2]
'संयुक्त राष्ट्र संघ' ने भी महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियाँ, कार्यक्रम और मापदंड निर्धारित किए हैं। भारत में भी 'महिला दिवस' व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है।[3]

प्रगति, दुर्गति में परिणत

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
Women-Day-2.jpgसमाज में यह विषमता चारों तरफ है और महिलाओं को लेकर भी यह सहज स्वाभाविक है। महिलाओं की प्रगति बदलाव की बयार में दुर्गति में अधिक परिणीत हुई है। हम बार-बार आगे बढ़कर पीछे खिसके हैं। बात चाहे अलग-अलग तरीके से किए गए बलात्कार या हत्या की हो, खौफनाक फरमानों की या महिला अस्मिता से जुड़े किसी विलंबित अदालती फैसले की। कहीं ना कहीं महिला कहलाए जाने वाला वर्ग हैरान और हतप्रभ ही नज़र आया है।[2]

सृष्टि सृजन में योगदान

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के बाद सृष्टि सृजन में यदि किसी का योगदान है तो वो नारी का है। अपने जीवन को दांव पर लगा कर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल महिला को प्रदान किया है। हालाँकि तथा-कथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की ये शक्ति उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी मानी जाती है। आज समाज के दोहरे मापदंड नारी को एक तरफ पूज्यनीय बताते है तो दूसरी ओर उसका शोषण करते हैं। यह नारी जाति का अपमान है। औरत समाज से वही सम्मान पाने की अधिकारिणी है जो समाज पुरुषों को उसकी अनेकों ग़लतियों के बाद भी पुन: एक अच्छा आदमी बनने का अधिकार प्रदान करता है।

शक्ति प्रधान समाज का अंग

नारी को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है। उन्हें उचित सुविधाओं की आवश्यकता है, उनकी प्रतिभाओं और महत्त्वकांक्षाओं के सम्मान की और सबसे बढ़ कर तो ये है की समाज में नारी ही नारी को सम्मान देने लगे तो ये समस्या काफ़ी हद तक कम हो सकती है।
महिला अपनी शक्ति को पहचाने और पुरुषों की झूठी प्रशंसा से बचे और सोच बदले कि वे पुरुष प्रधान समाज की नहीं बल्कि शक्ति प्रधान समाज का अंग है और शक्ति प्राप्त करना ही उनका लक्ष्य है और वो केवल एक दिन की सहानुभूति नहीं अपितु हर दिन अपना हक एवं सम्मान चाहती है.[4]

पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़

'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' लगभग सौ वर्ष पूर्व, पहली बार मनाया गया था, जब पूंजीवाद और साम्राज्यवाद तेज़ी से विकसित हो रहे थे और लाखों महिलायें मज़दूरी करने निकल पड़ी थीं। महिलाओं को पूंजीवाद ने मुक्त कराने के बजाय, कारख़ानों में ग़ुलाम बनाया, उनके परिवारों को अस्त-व्यस्त कर दिया, उन पर महिला, मज़दूर और गृहस्थी होने के बहुतरफा बोझ डाले तथा उन्हें अपने अधिकारों से वंचित किया। महिला मज़दूर एकजुट हुईं और बड़ी बहादुरी व संकल्प के साथ, सड़कों पर उतर कर संघर्ष करने लगीं। अपने दिलेर संघर्षों के ज़रिये, वे शासक वर्गों व शोषकों के ख़िलाफ़ संघर्ष में कुछ जीतें हासिल कर पायीं। इसी संघर्ष और कुरबानी की परंपरा 'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' पर मनायी जाती है।
'अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस' पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़ और शोषण-दमन से मुक्त नये समाज के लिये संघर्ष, यानि समाजवाद के लिये संघर्ष के साथ नज़दीकी से जुड़ा रहा। समाजवादी व कम्युनिस्ट आन्दोलन ने सबसे पहले संघर्षरत महिलाओं की मांगों को अपने व्यापक कार्यक्रम में शामिल किया। जिन देशों में बीसवीं सदी में समाजवाद की स्थापना हुई, वहाँ महिलाओं को मुक्त कराने के सबसे सफल प्रयास किये गये थे।

अपराधीकरण और असुरक्षा का शिकार

आज 'प्रथम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' के मनाये जाने के लगभग सौ वर्ष बाद हमें नज़र आता है, कि एक तरफ, दुनिया की लगभग हर सरकार और सरमायदारों के कई अन्य संस्थान अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ख़ूब धूम मचाते हैं। वे महिलाओं के लिये कुछ करने के बड़े-बड़े वादे करते हैं।
दूसरी ओर, सारी दुनिया में लाखों महिलायें आज भी हर प्रकार के शोषण और दमन का शिकार बनती रहती हैं। वर्तमान उदारीकरण और भूमंडलीकरण के युग में पूंजी पहले से कहीं ज़्यादा आज़ादी के साथ, मज़दूरी, बाज़ार और संसाधनों की तलाश में, दुनिया के कोने-कोने में पहुँच रही है। विश्व में पूरे देश, इलाके और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र विकास के नाम पर तबाह हो रहे हैं और करोड़ों मेहनतकशों की ज़िन्दगी बरबाद हो रही हैं। जहाँ हिन्दुस्तान में हज़ारों की संख्या में विकास कृषि क्षेत्र में तबाही की वजह से खुदकुशी कर रहे हैं, मिल-कारख़ाने बंद किये जा रहे हैं, लोगों को रोज़गार की तलाश में घर-बार छोड़कर शहरों को जाना पड़ता है, शहरों में उन्हें न तो नौकरी मिलती है न सुरक्षा और बेहद गंदी हालतों में जीना पड़ता है। महिलायें, जो दुगुने व तिगुने शोषण का सामना करती हैं, जिन्हें घर-परिवार में भी ख़ास ज़िम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं, जो बढ़ते अपराधीकरण और असुरक्षा का शिकार बनती हैं, इन परिस्थितियों में महिलायें बहुत ही उत्पीड़ित हैं।

न्याय

विश्व में बीते सौ वर्षों में महिलाओं के अनुभवों से हम यह अहम सबक लेते हैं कि महिलाओं का उद्धार पूंजीवादी विकास से नहीं हो सकता। बल्कि, महिलाओं का और ज़्यादा शोषण करने के लिये, महिलाओं को दबाकर रखने के लिये, पूंजीवाद समाज के सबसे प्रतिक्रियावादी ताकतों और तत्वों के साथ गठजोड़ बना लेता है। जो भी महिलाओं की उन्नति और उद्धार चाहते हैं, उन्हें इस सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। जो व्यवस्था मानव श्रम के शोषण के आधार पर पनपती है, वह महिलाओं को कभी न्याय नहीं दिला सकती।

महिला आन्दोलन

हिन्दुस्तान में महिला आन्दोलन पर यह दबाव और भी बढ़ गया है क्योंकि कम्युनिस्ट आन्दोलन की सबसे बड़ी पार्टियाँ और उनके महिला संगठन भी इसी रास्ते पर चलते हैं। इन संगठनों ने एक नयी सामाजिक व्यवस्था के लिये संघर्ष तो छोड़ ही दिया है। महिला आन्दोलन को विचारधारा से न बंधे हुए होने के नाम पर बहुत ही तंग या तत्कालीन मुद्दों तक सीमित रखा गया है। महिला आन्दोलन पर कई लोगों ने ऐसा विचार थोप रखा है कि महिलाओं की चिंता के विषय इतने महिला-विशिष्ट हैं, कि महिलाओं के उद्धार के संघर्ष का सभी मेहनतकशों के उद्धार के संघर्ष से कोई संबंध ही नहीं है। इस तरह से यह नकारा जाता है कि निजी सम्पत्ति ही परिवार और समाज में महिलाओं के शोषण-दमन का आधार है। ऐसी ताकतों ने इस प्रकार से महिला आन्दोलन को राजनीतिक जागरुकता से दूर रखने का पूरा प्रयास किया है, ताकि महिला आन्दोलन पंगू रहे और महिलाओं के उद्धार के संघर्ष को अगुवाई देने के काबिल ही न रहे।
हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर देश की सभी संघर्षरत महिलाओं से आह्वान करती है कि आपका भविष्य समाजवाद में है, वर्तमान व्यवस्था के विकल्प के लिये संघर्ष में है! सिर्फ़ वही समाज जो परजीवियों व शोषकों के दबदबे से मुक्त है, वही महिलाओं को समानता, इज्ज़त, सुरक्षा व खुशहाली का जीवन दिला सकती है। पर ऐसी व्यवस्था की रचना तभी हो पायेगी जब महिलायें, जो समाज का आधा हिस्सा हैं, खुद एकजुट होकर इसके लिये संघर्ष में आगे आयेंगी। जैसे-जैसे महिलायें अपने उद्धार के लिये संघर्ष को और तेज़ करेंगी, अधिक से अधिक संख्या में इस संघर्ष में जुड़ने के लिये आगे आयेंगी, वैसे-वैसे वह दिन नजदीक आता जायेगा जब अपने व अपने परिजनों के लिये बेहतर जीवन सुनिश्चित करने का महिलाओं का सपना साकार होगा!
भारत की प्रसिद्ध महिला

इंदिरा गाँधी प्रतिभा पाटिल मदर टेरेसा link=  लता मंगेशकर एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी किरण बेदी सरोजिनी नायडू अमृता प्रीतम मीरा कुमार सुचेता कृपलानी बछेन्द्री पाल कर्णम मल्लेश्वरी कल्पना चावला ऐश्वर्या राय सुष्मिता सेन




जब जींस-टी शर्ट पहन अमेरिका पहुंची यह 'सरपंच' तो देखते रह गए लोग!

8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। राजस्थान में ऐसी कई महिलाएं हुई हैं, जिनका कुछ रोचक इतिहास रहा है या फिर जिन्होंने देश-दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर www.bhaskar.com अपने पाठकों के लिए लाया है ऐसी ही कुछ महिलाओं के जीवन के दिलचस्प पहलू, जिन्होंने राजनीति, खेल, बॉलीवुड आदि क्षेत्रों में राजस्थान का नाम रोशन किया है। आज हम आपको बता रहे हैं राजस्थान की उस बेटी की कहानी संभवतः भारत की पहली महिला MBA सरपंच है।
 
 
पढ़िए भारत की एक होनहार बेटी की कहानी...
 
जयपुर से 60 किमी की दूरी पर टोंक जिले में एक गांव जिसका नाम है सोड़ा, जहां की सरपंच हैं छवि राजावत।31 वर्षीय छवि राजावत भारत की शायद पहली महिला सरपंच हैं जो एमबीए किए हुए हैं।जहां एक ओर उच्च योग्यताधारी युवक/युवतियां कार्पोरेट जगत की ओर भाग रहे हैं वहीं विकास का सपना लिए हुए छवि ने गांव की बागडोर संभाली।
 
ऐसा नहीं है कि छवि ने कार्पोरेट जगत में काम नहीं किया हो, सरपंच बनने से पहले वे कार्लसन ग्रुप ऑफ़ होटल्स और कम्युनिकेशन कंपनी एयरटेल में काम कर चुकी हैं लेकिन अपने उस गांव की मिट्टी जहां वे पैदा हुईं उन्हें अपने करीब खींच लाया।

महिला दिवस विशेषः इस हरियाणवी छोरी के आगे सोनिया, सुषमा भी भरती हैं पानी!

अम्बाला। हरियाणा में लंबे समय से चलती आ रही जाटों की राजनीति में ऐसा मौका पहली बार आया जब सबसे कम उम्र में एक महिला नेत्री ने अपने पहले ही चुनाव में किसी चुनावी क्षेत्र में अपनी जीत का डंका बजा दिया। इस महिला ने वहां के सबसे लोकप्रिय नेता व पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे एक बड़े अंतर से पटखनी दी।
 
बात 2009 के लोकसभी चुनावों की है। कांग्रेस आलाकमान ने भिवानी-महेन्द्रगढ़ सीट से एक नए चेहरे को टिकट दिया। उस सीट पर उस वक्त ओमप्रकाश चौटाले के बेटे अजय सिंह चौटाला का राज चलता था और इस चुनाव में भी वे फेवरेट थे। ऐसे में छोटी उम्र की इस महिला नेत्री को टिकट दिए जाने पर कांग्रेस में काफी घमासान हुआ। लेकिन आलाकमान ने अपना फैसला नहीं बदला।
 
चुनाव के बाद नतीजों की घोषणा हुई और इस महिला नेत्री ने उन सभी के मुंह पर ताला लगा दिया जो टिकट देने पर एतराज जता रहे थे। महिला नेत्री ने न सिर्फ सीट पर कब्जा जमाया बल्कि रिकॉर्ड मतों से अजय सिंह चौटाला को पटखनी दी। इस सीट से जीतने वाली वह सबसे कम उम्र की एकमात्र महिला नेता थीं।
 
 
विशेष: मार्च का महीना शुरू हो चुका है। इस महीने की आठ तारीख को पूरी दुनिया वुमंस डे (woman's day) के  तौर पर सेलिब्रेट करती है। इस विशेष अवसर पर और आधी दुनिया के जज्बे को सलाम करने के लिए भास्कर डॉट कॉम आगामी एक हफ्ते तक आपको देश की कुछ ऐसी चुनिंदा महिलाओं से मिलाएगा, जिन्होंने उस पेशे को अपनाया जिन्हें 
उनसे पहले सिर्फ पुरुषों से ही जोड़कर देखा जाता था।

कुरान का सन्देश

कुरान का सन्देश 

जयपुर में हिंसाः वकीलों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा पुलिसवालों को पीटा

जयपुर में हिंसाः वकीलों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा पुलिसवालों को पीटा
जयपुर। सस्ते मकान सहित कई मांगों को लेकर चल रहा वकीलों का प्रदर्शन गुरुवार को हिंसक हो गया। वकीलों ने पुलिस की एक वैन और एक कार को आग लगा दी औऱ सौ से ज्यादा वाहनों के शीशे तोड़ दिए। इधर, पुलिस ने भी वकीलों को हटाने के लिए आंसू गैस के गोले दागे। वकील कोर्ट के अंदर थे और पुलिस कोर्ट के बाहर खुले में, ऐसे में वकीलों ने जमकर पुलिसकर्मियों पर पथराव किया जिसमें 50 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हो गए। इसके बाद पुलिस ने एक के बाद एक आंसू गैस के गोले दागने शुरू कर दिए। जिसके बाद कलेक्ट्रेट सर्किल पर जंग जैसा माहौल हो गया।
वकीलों ने की आगजनी

वकीलों ने कलेक्ट्रेट सर्किल पर प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर जमकर पथराव किया। जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने भी आंसू गैस के गोले दागे। वकीलों ने वहां खड़ी एक पीसीआर वैन में आग लगा दी। वहां मौजूद बसों व कारों के शीशे तोड़ दिए। इससे पहले वकीलों ने बेरिकेडिंग तोड़कर आग भी लगा दी थी।

गुरुवार दोपहर तक पुलिस और वकीलों के बीच रुक-रुक झड़प होती रही। वहीं वकीलों ने अब लाठीचार्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने की मांग भी शुरू कर दी है। साथ ही अतिरिक्त महाधिवक्ता, गवर्नमेंट काउंसिल और कांग्रेस में पदाधिकारी वकीलों से पदों से त्यागपत्र देकर लड़ाई में साथ देने का आह्वान किया है।

क्या था मामला

गौरतलब है कि बुधवार को बजट सत्र के दौरान वकील अपने लिए सस्ते आवास की मांग को लेकर विधानसभा के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचे थे, जो उग्र हो गया था। जिसके बाद पुलिस और वकीलों में लाठी भाटा जंग हुई थी। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में वकील व पुलिसवाले घायल हुए थे। इसके बाद बार काउंसिल के आह्वान पर राजस्थान के वकील गुरूवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। हड़ताल से प्रदेशभर की अदालतों में हजारों मुकदमों की सुनवाई बाधित हुई है।

एफआईआर दर्ज नहीं की तो जाएंगे जेल

नई दिल्ली. एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिसवाले को अब जेल की हवा खानी पड़ेगी। केंद्र सरकार ने अपराध दर्ज न करने को भी अब भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत दंडनीय अपराध घोषित कर दिया है। यही नहीं, तफ्तीश के नाम पर दूर-दराज रहने वाले व्यक्ति को थाने में हाजिर होने का नोटिस भेजकर परेशान करना और सीआरपीसी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करना भी अब दंडनीय अपराध हो गया है। ऐसा अपराध करने वाले पुलिसवाले को अब एक साल तक की कैद की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। सरकार ने आइपीसी में संशोधन कर एक नई धारा 166 ए जोड़ी है। इसमें तीन उप धाराएं ए,बी,सी हैं।
 
उपधारा ए के अनुसार दूर-दराज रहने वाले किसी व्यक्ति को तफ्तीश के नाम पर सीआरपीसी की धारा 160 का नोटिस देकर बुलाना अपराध है। उपधारा बी के अनुसार तफ्तीश के दौरान पूर्वाग्रह ग्रस्त होकर सीआरपीसी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन भी अपराध है। उपधारा सी के अनुसार किसी संज्ञेय अपराध की सूचना को दर्ज न करना और खासकर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को दर्ज न करना अपराध है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा 3 फरवरी को जारी किए गए एक अध्यादेश से यह कानून लागू हो गया है। दिल्ली गैंगरेप की वारदात के बाद कानूनों को सख्त बनाने के सिलसिले में सरकार ने आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में अनेक संशोधन किए हैं। इनमें उपरोक्त संशोधन को सबसे अहम माना जा रहा है। इस संशोधन से अपराध पीड़ित को बड़ी राहत मिलेगी। अभी हालत यह है कि देश की राजधानी तक में अपराध के शिकार व्यक्ति की रिपोर्ट आसानी से दर्ज नहीं की जाती है। देश भर में अपराध को आंकड़ों को कम दिखाने के लिए अपराध की सभी वारदात को दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा रही है। यह पुलिस और सत्ता पक्ष दोनों के अनुकूल होता है।
 
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