आनी। प्रदेश के ऊपरी क्षेत्रों में भी शिवरात्रि पर्व धूमधाम
से मनाया गया। जिला कुल्लू के आनी और बाहरी सिराज क्षेत्र में यह पर्व आज
भी प्राचीन परंपराओं के अनुसार ही शवात्र के रूप में मनाया जाता है।
इस पर्व पर ग्रामीण महिलाएं सुबह अपने घरों के बाहर अपने ईष्ट देवता
के सम्मान में चौका (रंगोली) देती हैं और इसकी पूजा-अर्चना कर जल सूर्यदेव
को अर्पित करती हैं।
इस दिन कई तरह के व्यंजन जिन्हें स्थानीय बोली में पोलड़ू, पकैन और
लूची कहा जाता है। इनके अलावा बड़े, रोट, बकरू और सनसे (शाकवी) आदि भी बनाए
जाते हैं।
घर का मुखिया दोपहर बाद शिव स्वरूप सैंई, जिसे नींबू प्रजाति के कैमटू
नामक फल से तैयार किया जाता है। शिव मंडप के पास चौका (रंगोली) देकर अनाज
के ढेर, दीपक, कलश, गणपति और अन्य आभूषण आदि के साथ-साथ तेल में बने पकवान
सजाए जाते हैं।
शाम को परिवार के सभी मंडप के पास शिव स्वरूप सैंई की पूजा करते हैं
और महादेव से परिवार की सुख शांति के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। सुबह पांच
बजे सैंई स्वरूप शिव-पार्वती को मंडप से विदाई दी जाती है।
इसे घर का मुखिया धोती पहन कर अपने गले में डालकर विदाई गीत के साथ
बाहर निकालता है। मान्यता के अनुसार लोगों के घर मेहमान आए शिव परिवार को
विदाई दी जाती है।
शिवरात्रि पर गांवों में पकवानों की महक
ठियोग। शिवरात्रि का त्योहार ठियोग के गांवों में भी रविवार को
धूमधाम से मनाया गया। लोगों ने दिनभर रसोईघरों में कई तरह के पकवान बनाए
और भगवान शिव-पार्वती के विवाह की तैयारियां कीं। मिट्टी से भगवान शिव और
पार्वती की मूर्तियां बनाई और गोबर के गणेश की पूजा-अर्चना हुई। कई लोगों
ने व्रत रखा और शिव मंदिरों में हाजिरी लगाई।
दूसरे दिन सोमवार को ग्रामीणों की ओर से शिवरात्रि के दिन तैयार
पकवानों को अपनी बेटियों को पहुंचाए जाने की परंपरा है। इसकी तैयारी भी कर
ली गई।
पार्वती को हिमाचल की बेटी मानने के कारण शिवरात्रि के दिन ठियोग के
हर घर में शिव-पार्वती का विवाह रचाया जाता है। ठियोग क्षेत्र में
शिवरात्रि पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और सुख शांति की दुआ मांगी
जाती है।