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17 मार्च 2013

"कठिन है सत्य बोलना,

"कठिन है सत्य बोलना,
हनुमान जी की बातें करो
तो वेश्याओं के मोहल्ले में हाहाकार मच जाता है
कि यह व्यक्ति हमारी दूकान ही ठप्प कर देगा
वेश्याएं सेकुलर जो होती है,
कोलंबस की बात करो तो
गूलर के भुनगे भिनभिनाते हुए अपने ग्लोबलाईज़ेसन को बघारने लगे
हिन्दुओं की रूढ़ियाँ तोड़ोगे हिंदूवादीयो की आस्था को ठेस पहुंचेगी
इस्लाम का इहिलाम हुआ
तो कठमुल्ले इमाम का फतवा कामतमाम कर सकता है
ईसाईयों ने तो ह़र साल ईसामसीह को
सूली सजा कर उसपर उन्हें बार बार टांगने में परहेज नहीं किया
पर ईसा को आज भी सूले से उतारने की रस्म नदारद है
गेलीलियो के घर का बहुत पहले ही बुझा दिया था दिया
इसलिए खामोश !! --ईसाईयों की बात मत करना
सच बोलने से उनकी आस्था को भी ठेस पहुँचती है
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर पच्चीस प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि
उससे देश के अल्प संख्यकों के नाम पर खैरात खा रहे
दूसरे नंबर के बहुसंख्यक समुदाय मुसलमानों को ठेस पहुँचती
वैसे भी इस्लाम या तो खतने में रहता है या खतरे में
मैं पंद्रह प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि
उससे वास्तविक अल्पसंख्यकों जैसे
पारसी ,बौद्ध ,जैन और सिखों की आस्था को ठेस पहुँचती
पचास प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका कि
सनातन धर्मियों को ठेस न पहुँच जाय
दस प्रतिशत सच से
आर्य समाजी भी आहात हो सकते थे सो वह भी नहीं बोला
आखिर सभी की भावनाओं का ख्याल जो रखना था
इसलिए सौ प्रतिशत सच का एक प्रतिशत सच भी मैं नहीं बोल सका
अब क्या करूँ ? सच की शव यात्रा निकल रही है
फिर भी फेहरिश्त अभी बाकी है
संविधान पर कुछ बोलो तो आंबेडकरवादियों को ठेस पहुँच जायेगी
यों तो मैं तमाम घूसखोर जजों को जानता हूँ
जो अब पेशकार के जरिये नहीं सीधे ही घूस ले लेते हैं
कुछ पेशकार के जरिये भी लेते हैं
पर उनकी वीरगाथा गाने से न्याय की अवमानना जो होती है
सांसदों विधायकों की बात करो तो उनके विशेषाधिकार का हनन हो जाता है
मैं लिखना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर उससे तो अखबार के कारोबार को ठेस पहुँचती थी
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
इसीलिए अब सोचता हूँ
प्रकृति की बात करूँ ...प्रवृति की नहीं
और इसीलिए अब बाहर कोलाहल अन्दर सन्नाटा है
खामोश ! अदालत जारी है ---सुना है जज साहब ईमानदार हैं
इसलिए उनके पेशकार की पैरोकारी के उनके घर की तरकारी की चर्चा मत करना
न्याय की देवी की आँखे बंद हैं और कोंटेक्ट लेंस कारगर है कोई कोंटेक्ट ?
सुना है सभी कानूनी रूप से सामान हैं
पर चुप रहो, न्यायालय हो या संसद सभी के विशेषाधिकार हैं
कोंग्रेसीयों /भाजपाईयों /सपाईयों /बसपाईयों/चोरों /हरामजादों
शहजादों ,अमीरजादों ,दामादों के बारे में भी सच कभी नहीं बोलना
आखिर उनकी भी आस्था है उनको भी ठेस पहुँचती है
कविता या साहित्य की बात भी यहाँ नहीं करना
क्योंकि हराम की दारू पी कर
जो कवि रात को फुफकारता है ---"आसमान को शोलों से सुलगा दूंगा"
सुबह तक बीडी से आपकी रजाई सुलागा चुका होता है.
संपादकों/ पत्रकारों का समाचारों के अतिरिक्त जो बहिरउत्पाद है
वही तो उनकी समृद्धि का समाज शास्त्र है
वीर सिंघवी, बरखा दत्त, राजीव शुक्ला या दीपक चौरसिया जैसों की बात मत करना
क्योंकि सत्य से उनकी निष्ठा ने बहुत पहले ही अलविदा कह दिया था
दलाल शिरोमणि प्रभु चावला की बात भी मत करना
क्योंकि "सच के साथ उन्होंने गुजारे हैं चालीस साल"
जिससे सच तो गुजर गया और इनका गुजारा चल गया,
फेसबुक हो, ट्विटर,ऑरकुट या कोइ सोसल साईट चिरकुट
--इन पर भी सच मत बोलना
यहाँ एक स्वयम्भू सम्पादकनुमा एडमिन होता है खेत के बिजूके जैसा
उसे कविता की न भाषा ही पता है और न परिभाषा
यहाँ सच न बोलना इससे किसी न किसी की आस्था को ठेस पहुँचती ही है
आओ साहित्य लिखें बेतुकी बातों को तुक में पिरोयें पर प्रेमिका की बात मत करना
इससे उस प्रेमिका के परिजनों की आस्था को ठेस पहुँचती है
आओ हम सब मिलकर सच की आस्था को ठेस पहुंचाएं
और कविता गुनगुनाएं." -----राजीव चतुर्वेदी

एक उत्तरप्रदेश में उप अधीक्षक पुलिस के कातिल है जो जेल में है

एक उत्तरप्रदेश में उप अधीक्षक पुलिस के कातिल है जो जेल में है षड्यंत्रकरी मंत्री को इस्तीफा देना पढ़ा है ..मुआवजा नोकरी से शहीद के परिजनों के जख्मों पर मलहम लगाया है लेकिन हमारे राजस्थान के सवाईमाधोपुर में फुल मोहम्मद जिनका बेरहमी से कत्ल कर उन्हें आज के दिन ही दो साल पहले ज़िंदा जला दिया था जांच का नाटक तो हुआ लेकिन फुल मोहम्मद के कातिल और सियासी षड्यंत्रकरी आज भी सरकार में बेठे है खुले घूम रहे है जो सरकार अपने पुलिस अधिकारी के हत्यारों को नहीं पकडती शहीद पुलिस अधिकारी के परिजनों को उचित मुआवजा देकर उनका सम्मान नहीं करती ऐसी सरकार को हम क्या कहेंगे अभी भी वक्त है सरकार से जुड़े लोग सरकार को जगाएं ललकारे ताकि भूल सुधर जाए और सरकार दफन होने से बच जाए ............

मुझे एक सवाल का जवाब चाहिए

दोस्तों मुझे एक सवाल का जवाब चाहिए कथित धर्मनिरपेक्ष लोग मुसलमानों के वोटों से सरकार के मजे लेने वाले लोग और इस सरकार में बेठे हमारी ही कोम के सरकारी दलाल वर्षों से एक ही जूमला बोलते है मुसलमानों को पढ़ो ..तालीम दो ..लेकिन क्या आप जानते है आज हर घर में ग्रेजुएट बी एड ..इंजीनयर ..डोक्टर ..एम ऐ या दूसरी शिक्षा की डिग्री वाले बच्चे तो है लेकिन नोकरी नहीं है ..आप जानते है राजस्थान में राजस्थान मदरसा बोर्ड के भ्रष्टाचार के कारण छ हजार बी एड मुसलमान पेराटीचर लग सकते थे लेकिन वोह अभी भी बेरोजगार है ..दोस्तों मुसलमान पढ़ा लिखा अथो है लेकिन बेरोजगार है रोज़गार के लियें कोई सियासी पार्टी या सियासी दलाल नेता नहीं बोलता .....एक कडवा सच यह भी है के मुसलमानों के कल्याण के लियें खुदा की राह में समर्पित वक्फ संपत्तियों पर अधिकतम कोंग्रेसी कब्जेदार है कहीं कब्रिस्तानों पर कब्जे है तो कहीं मस्जिदों पर कब्जा है कहीं मदरसों पर कब्जे है तो कहीं वक्फ सम्पत्तियों को बेचा जा रहा है और यह सब कोंग्रेस का वोटर कोंग्रेस का कार्यकर्ता ही कर रहा है अब अगर कब्रिस्तानों से कब्जे छुडवाने की बात करते है तो कोंग्रेसी दलाल मुसलमान कहते है अरे हमेशा कब्रिस्तानों ही कब्रिस्तानों की बात करते हो बच्चों को पढाओ जब पढ़े लिखे बच्चों की सूचि देकर उनके लियें हम रोज़गार नोकरी की बात करते है तो फिर हमे वापस कब्रिस्तानों में उलझाने की बात करते है दोस्तों ऐसे सियासी नेताओं के साथ केसा सुलूक होना चाहिए जो दिल से जहन से मुसलमान तो नहीं है जिनके चेहरे पर दाड़ी है दिखावे के तोर पर हाजी का लक़ब है लेकिन वोह इस कोम के व्यापारी है और कोम को बेचकर खुद सियासी कुर्सी हांसिल करने की जुगत में है या फिर कुर्सी मिल गयी तो अल्लाह और नबी की जगह कोंग्रेस कोंग्रेस या फिर अपने आका नेता की तस्बीह पढ़ रहे है उनके लियें तो कोम और कोम के लोगजाएँ चाहे भाड़ में ..आप भी अपने इलाके या राज्य के ऐसे कोम के सोदेबाज़ गद्दार नेताओं के नाम जानते हो तो प्लीज़ शेयर करें और उनकी पोल खोलें कमेंट्स में उनकी पोल पट्टी और नाम बताएं हम और कोम के लोग आभारी रहेंगे गुमराही से बाख सकेंगे ...अख्तर खान अकेला कोटा

पूजा करते समय इन बातों का ध्यान रखें

पूजा करते समय इन बातों का ध्यान रखें ! धर्म प्रसार के मध्य कुछ घरों में पूजक द्वारा किए जा रहे अयोग्य कृतियों को मैंने अनुभव किए उसे हम एक एक कर देखेंगे, अंतर्मुख होकर विचार करें कहीं आपके द्वारा भी ऐसा तो नहीं हो रहा है !
पूजा करते समय पुष्प की पंखुरियों को तोड़ कर न चढ़ाएँ | पुष्प के रूप, रंग और गंध से देवता का तत्त्व आकृष्ट होता है | पुष्प के आकृति को तोड़ देने पर उसके रूप विकृत हो जाते हैं ऐसे में देवताके तत्त्व नाम मात्र ही आकृष्ट हो पाते हैं | अतः पुष्प कम हो और पुष्पांजलि अर्पित करनी हो तो मन से अर्थात सूक्ष्म से पुष्प अर्पित करें पुष्प की पंखुरियों को तोड़कर पुष्प न चढ़ाएं !

....महिला प्रताड़ना सहित ना जाने क्या क्या


भाई इस फार्मूले को गांठ बाँध कर रख लो वरना घरेलु हिंसा ......दहेज़ प्रताड़ना ......महिला प्रताड़ना सहित ना जाने क्या क्या मुसीबते है अगर बीवी सब्जी में नमक तेज़ कर दे तो खामोश रहो .माँ से बहनों से पिता से बदतमीजी करे तो खामोश रहो ....खाना बने या ना बने खामोश रहो ..कपड़े धुले या न धुले खामोश रहो ..किसी गेर मर्द से बात करे आप मना करे ना माने तो कोई बात नहीं कुछ मत कहो ....वेसे भी भारत में पतियों और पत्नी के ससुरावालों की आधी से अधिक ऐसी जनसंख्या है जिसने अपने घर में ओरत को झाड़ू देते हुए ...कपड़े धोते हुए ..कपड़े सीते हुए ..कपड़ों पर प्रेस करते हुए और गाँव में कुए से पानी लाते हुए ...चक्की पीसते हुए नहीं देखा होगा आधे से ज्यादा ऐसे पति है जिन्हें पत्नी के हाथ का मनपसन्द खाना न मिला होगा ....कई पति ऐसे है जिन्हें मजबूरी में सप्ताह या महीने में एक बार तो पत्नी को होटल पर सडा गला बिना पसंद का खाना खिलाने के लियें हजारों रूपये खर्च कर बेमन से जाना पढ़ता होगा इसलियें कहते है भाई खुश रहना है तो ................जोरू का गुलाम पति बनकर रहो वरना मुकदमे और आरोपों की तलवार पता है ना ............दूसरी बात संस्कारवान पत्नी जो सही मायनों में पति की प्रताड़ना भी सहती है सेवा भी करती है सास के पैर भी दाबती है घर के सरे काम नोकरों की तरह से करती है उनसे डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि वोह किसी भी सूरत में पति या ससुराल पक्ष को नुकसान नहीं पहुंचाएगी तो जनाब ओरत के दो रूप है एक मेरी पत्नी जिसका में गुलाम हूँ और चुप मूंह खिदमतगार बना हुआ हूँ इसीलिए तो भाई कई मुसीबतों से बचा हुआ हूँ क्यों क्या कहते हो भाई ............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

हत्या की आशंका, कब्र से निकलवाया शव

 

शहर काजी से अनुमति ले मेडिकल बोर्ड से कराया पोस्टमार्टम, रिपोर्ट के बाद स्पष्ट होगी स्थिति
दो दिन पहले एक युवक की मौत पर उसके पिता द्वारा हत्या की आशंका जताए जाने पर पुलिस ने शव को कब्र से निकलवाया और मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करवाया। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

अनंतपुरा सीआई राजेश कुमार ने बताया कि अजय आहूजा निवासी गुड्डू उर्फ रमजानी (38) पुत्र इस्लाम मोहम्मद की शुक्रवार देर रात तबीयत बिगड़ी। परिवार वाले उसे अस्पताल ले जा रहे थे, लेकिन रास्ते में उसकी मौत हो गई। शनिवार दोपहर उसको महावीर नगर स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया। उस दिन मृतक के पिता आगरा गए हुए थे, जो रविवार को लौटे। शव को नहलाने वाले ने उन्हें बताया कि मृतक के गले पर निशान थे। इस पर परिजनों को शक हुआ। पिता व अन्य लोग महावीर नगर थाने पहुंच गए। मामला अनंतपुरा क्षेत्र का होने के कारण वे अनंतपुरा थाने आ गए। पिता ने बेटे की मौत पर संदेह जताते हुए जांच का प्रार्थना पत्र दिया। पुलिस ने कब्र से शव निकालने के शहर काजी अनवार अहमद से सहमति ली। एसडीएम की मौजूदगी में कब्र से शव निकालकर मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करवाया। उसके बाद शव परिजनों को सौंप दिया। पुलिस मामले की जांच कर रही है। रिपोर्ट आने के बाद मौत के सही कारण पता चल सकेंगे। पिता ने अभी तक किसी पर भी हत्या का शक नहीं जताया है। पोस्टमार्टम के बाद रस्म के साथ शव को फिर से सुपुर्दे खाक किया गया। सीआई ने बताया कि शनिवार को अंतिम संस्कार में भाई-भाभी व मां के अलावा अन्य रिश्तेदार भी शामिल हुए थे। तब भी किसी ने इस तरह की बात नहीं कही थी।

हर पति-पत्नी के लिए मिसाल यह जोड़ा, जिसकी जिद के आगे हार गई हर मजबूरी!

जोधपुर.ये हैं इंद्रा कॉलोनी (प्रतापनगर) में रहने वाले दंपती मंजू-दौलतराज चौहान। मंजू निशक्त हैं, जबकि दौलत दृष्टिहीन। दोनों एक-दूजे की ताकत बने हुए हैं। मंजू बीए पास हैं और एमडीएम अस्पताल में कंप्यूटर ऑपरेटर हैं। जब वे ड्यूटी पर आती हैं तो दौलतराज साथ रहते हैं। घर से अस्पताल तक स्कूटर मंजू चलाती हैं। 
 
अस्पताल पहुंचने पर दौलतराज कंधे पर उठाकर उन्हें सहारा देकर अंदर ले जाते हैं। फिर शुरू होता है, संघर्ष का दौर। आठ घंटे तक दोनों साथ बैठते हैं। मंजू ही यहां बोलकर दौलत को अपने केबिन तक का रास्ता बताती हैं। अस्पताल का स्टाफ और अन्य लोग भी उनके हौसले को सलाम करते हैं। मंजू ने 5 जनवरी को ही यहां संविदा आधार पर नौकरी करनी शुरू की है।

सीएम ने भरी हुंकार, 'साबित हुए आरोप तो छोड़ दूंगा राजनीति और पद'



जैसलमेर/जयपुर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विपक्ष को चुनौती देते हुए कहा कि उन पर जो आरोप लगे हैं, यदि साबित हो जाते हैं, तो वे राजनीति और पद दोनों छोड़ देंगे। वे भाई-भतीजावाद में विश्वास नहीं करते। विपक्ष उनके खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है।
विपक्ष के लोग खुद बदनाम और भयभीत हैं। किरीट सोमैया का तो धंधा ही झूठ बोलना है। गहलोत रविवार को जैसलमेर के सर्किट हाउस में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक साल पहले भी उन पर झूठे आरोप लगाए गए थे। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल भी लगाई थी जो डिसमिस हो गई।
ध्यान रखूंगा कौन-कौन रिश्तेदार हैं
मुख्यमंत्री ने विपक्ष के आरोपों को लेकर चुटकी लेते हुए कहा कि अब मुझे यह ध्यान रखना होगा कि मेरे कौन-कौन रिश्तेदार हैं। यह ध्यान रखेंगे कि उन्हें किसी भी प्रकार का आवंटन नहीं होना चाहिए, चाहे वे उसके लिए योग्य ही क्यों न हो।
पाइपलाइन से गैस कनेक्शन का प्रयास
गहलोत ने कहा कि यहां गैस के भंडारों को देखते हुए बाड़मेर और जैसलमेर में पाइप लाइन से गैस कनेक्शन देने के प्रयास किए जा रहे हैं। बाड़मेर में गैल उत्पादन की प्रक्रिया शुरू हो गई है और जैसलमेर में गैस पहले ही मिल चुकी है। गेल व राजस्थान की आरपीसीएल के बीच एमओयू के प्रयास किए जा रहे हैं।
राहुल गांधी से आज मिलेंगे गहलोत और चंद्रभान
कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान सोमवार को दिल्ली में मुलाकात करेंगे। राहुल गांधी उनसे सरकार और संगठन की स्थिति, चुनावी तैयारियों, विधायकों की शिकायतों को दूर करने समेत विभिन्न मुद्दों पर बातचीत करेंगे।
राहुल गांधी के अप्रैल में राजस्थान के संभावित दौरे को लेकर भी अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। साथ ही कयास तो यहां तक लगाए जा रहे हैं कि डॉ. चंद्रभान को बदला जा सकता है।
पाली में कहा- बजट घोषणाएं जल्द लागू करेंगे
गहलोत ने दावा किया है कि उनकी सरकार की नीयत और नीति नेक है, इसी कारण प्रदेश का चहुमुंखी विकास हो रहा है। बजट में शामिल हर घोषणा को लागू किया जाएगा। वे रविवार को पाली के पिपलिया कलां गांव में पीजी फॉइल्स के नानेश पीजी मेमोरियल अस्पताल परिसर में डॉ. डी.आर. भंडारी के मूर्ति अनावरण समारोह में बोल रहे थे।
गहलोत ने कहा कि निशुल्क दवाओं की संख्या बढ़ाने के साथ ही निशुल्क जांच योजना लागू की है, जो अप्रैल से प्रभावी हो जाएगी। रोगियों के परिजनों की सुविधा के लिए हर जिला मुख्यालय पर एक करोड़ रुपए की लागत से धर्मशालाएं बनाई जाएंगी।

कुरान का सन्देश

होली



होली
होली
होली के अवसर पर गुलाल से रंगीन चेहरा।
आधिकारिक नाम होली
अन्य नाम फगुआ, धुलेंडी, दोल
अनुयायी हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी
प्रकार धार्मिक, सामाजिक
उद्देश्य धार्मिक निष्ठा, उत्सव, मनोरंजन
आरम्भ अत्यंत प्राचीन
तिथि फाल्गुन पूर्णिमा
अनुष्ठान होलिका दहनरंग खेलना
उत्सव रंग खेलना, गाना-बजाना, हुड़दंग
समान पर्व होला मोहल्ला, याओसांग इत्यादि
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।[1]
राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है।[2] राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।[3] होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है।[4]

इतिहास

होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका[5] नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है।
राधा-श्याम गोप और गोपियो की होली
इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है। संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।
सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते हैं। सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरें हैं मुगल काल की और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है।[6] शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुग़लिया अंदाज़ ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था।[7] अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे।[8] मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में दर्शित कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तृत वर्णन मिलता है।
इसके अतिरिक्त प्राचीन चित्रों, भित्तिचित्रों और मंदिरों की दीवारों पर इस उत्सव के चित्र मिलते हैं। विजयनगर की राजधानी हंपी के १६वी शताब्दी के एक चित्रफलक पर होली का आनंददायक चित्र उकेरा गया है। इस चित्र में राजकुमारों और राजकुमारियों को दासियों सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दम्पत्ति को होली के रंग में रंगते हुए दिखाया गया है। १६वी शताब्दी की अहमदनगर की एक चित्र आकृति का विषय वसंत रागिनी ही है। इस चित्र में राजपरिवार के एक दंपत्ति को बगीचे में झूला झूलते हुए दिखाया गया है। साथ में अनेक सेविकाएँ नृत्य-गीत व रंग खेलने में व्यस्त हैं। वे एक दूसरे पर पिचकारियों से रंग डाल रहे हैं। मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इसमें १७वी शताब्दी की मेवाड़ की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ चित्रित किया गया है। शासक कुछ लोगों को उपहार दे रहे हैं, नृत्यांगना नृत्य कर रही हैं और इस सबके मध्य रंग का एक कुंड रखा हुआ है। बूंदी से प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदाँत के सिंहासन पर बैठा दिखाया गया है जिसके गालों पर महिलाएँ गुलाल मल रही हैं।[9]

कहानियाँ

भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।[10] प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।[11]
प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है।[12] कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।[13]

परंपराएँ

होली के पर्व की तरह इसकी परंपराएँ भी अत्यंत प्राचीन हैं, और इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलता रहा है। प्राचीन काल में यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता था और पूर्ण चंद्र की पूजा करने की परंपरा थी। । वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं।[14]
होलिका दहन
होली का पहला काम झंडा या डंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास ही होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफ़ी दिन पहले से ही यह सब तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहाँ होली जलाई जाती है। इसमें लकड़ियाँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थलों पर होलिका में भरभोलिए[15] जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए।[15] लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। दिन ढलने पर ज्योतिषियों द्वारा निकाले मुहूर्त पर होली का दहन किया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। गाँवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं।
सार्वजनिक होली मिलन
होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
होली के दिन घरों में खीर, पूरी और पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन पकाए जाते हैं। इस अवसर पर अनेक मिठाइयाँ बनाई जाती हैं जिनमें गुझियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बेसन के सेव और दहीबड़े भी सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बनाए व खिलाए जाते हैं। कांजी, भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष पेय होते हैं। पर ये कुछ ही लोगों को भाते हैं। इस अवसर पर उत्तरी भारत के प्रायः सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों में अवकाश रहता है, पर दक्षिण भारत में उतना लोकप्रिय न होने की वज़ह से इस दिन सरकारी संस्थानों में अवकाश नहीं रहता ।

विशिष्ट उत्सव

भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली[16] काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी १५ दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊँ की गीत बैठकी[17] में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा[18] चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी[19] में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो[20] में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला[21] में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई[22] मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोतसव है जबकि मणिपुर के याओसांग[23] में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी[24] में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया[25], जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ[26] जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है और नेपाल की होली[27] में इस पर धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार विभिन्न देशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग प्रकार से होली के शृंगार व उत्सव मनाने की परंपरा है जिसमें अनेक समानताएँ और भिन्नताएँ हैं।

साहित्य में होली

प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों का विस्तृत वर्णन है। श्रीमद्भागवत महापुराण में रसों के समूह रास का वर्णन है। अन्य रचनाओं में 'रंग' नामक उत्सव का वर्णन है जिनमें हर्ष की प्रियदर्शिकारत्नावली[क] तथा कालिदास की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्निमित्रम् शामिल हैं। कालिदास रचित ऋतुसंहार में पूरा एक सर्ग ही 'वसन्तोत्सव' को अर्पित है। भारवि, माघ और अन्य कई संस्कृत कवियों ने वसन्त की खूब चर्चा की है। चंद बरदाई द्वारा रचित हिंदी के पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में होली का वर्णन है। भक्तिकाल और रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्व रहा है। आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर[ख] , जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि अनेक कवियों को यह विषय प्रिय रहा है। महाकवि सूरदास ने वसन्त एवं होली पर 78 पद लिखे हैं। पद्माकर ने भी होली विषयक प्रचुर रचनाएँ की हैं।[28] इस विषय के माध्यम से कवियों ने जहाँ एक ओर नितान्त लौकिक नायक नायिका के बीच खेली गई अनुराग और प्रीति की होली का वर्णन किया है, वहीं राधा कृष्ण के बीच खेली गई प्रेम और छेड़छाड़ से भरी होली के माध्यम से सगुण साकार भक्तिमय प्रेम और निर्गुण निराकार भक्तिमय प्रेम का निष्पादन कर डाला है।[29] सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे मुस्लिम संप्रदाय का पालन करने वाले कवियों ने भी होली पर सुंदर रचनाएँ लिखी हैं जो आज भी जन सामान्य में लोकप्रिय हैं।[7] आधुनिक हिंदी कहानियों प्रेमचंद की राजा हरदोल, प्रभु जोशी की अलग अलग तीलियाँ, तेजेंद्र शर्मा की एक बार फिर होली, ओम प्रकाश अवस्थी की होली मंगलमय हो तथा स्वदेश राणा की हो ली में होली के अलग अलग रूप देखने को मिलते हैं। भारतीय फ़िल्मों में भी होली के दृश्यों और गीतों को सुंदरता के साथ चित्रित किया गया है। इस दृष्टि से शशि कपूर की उत्सव, यश चोपड़ा की सिलसिला, वी शांताराम की झनक झनक पायल बाजे और नवरंग इत्यादि उल्लेखनीय हैं।[30]

संगीत में होली

वसंत रागिनी- कोटा शैली में रागमाला शृंखला का एक लघुचित्र
भारतीय शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक तथा फ़िल्मी संगीत की परम्पराओं में होली का विशेष महत्व है। शास्त्रीय संगीत में धमार का होली से गहरा संबंध है, हाँलाँकि ध्रुपद, धमार, छोटेबड़े ख्याल और ठुमरी में भी होली के गीतों का सौंदर्य देखते ही बनता है। कथक नृत्य के साथ होली, धमार और ठुमरी पर प्रस्तुत की जाने वाली अनेक सुंदर बंदिशें जैसे चलो गुंइयां आज खेलें होरी कन्हैया घर आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैं। ध्रुपद में गाये जाने वाली एक लोकप्रिय बंदिश है खेलत हरी संग सकल, रंग भरी होरी सखी। भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुछ राग ऐसे हैं जिनमें होली के गीत विशेष रूप से गाए जाते हैं। बसंत, बहार, हिंडोल और काफ़ी ऐसे ही राग हैं। होली पर गाने बजाने का अपने आप वातावरण बन जाता है और जन जन पर इसका रंग छाने लगता है। उपशास्त्रीय संगीत में चैती, दादरा और ठुमरी में अनेक प्रसिद्ध होलियाँ हैं। होली के अवसर पर संगीत की लोकप्रियता का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि संगीत की एक विशेष शैली का नाम ही होली हैं, जिसमें अलग अलग प्रांतों में होली के विभिन्न वर्णन सुनने को मिलते है जिसमें उस स्थान का इतिहास और धार्मिक महत्व छुपा होता है। जहां ब्रजधाम में राधा और कृष्ण के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं वहीं अवध में राम और सीता के जैसे होली खेलें रघुवीरा अवध में। राजस्थान के अजमेर शहर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गाई जाने वाली होली का विशेष रंग है। उनकी एक प्रसिद्ध होली है आज रंग है री मन रंग है,अपने महबूब के घर रंग है री।[31] इसी प्रकार शंकर जी से संबंधित एक होली में दिगंबर खेले मसाने में होली कह कर शिव द्वारा श्मशान में होली खेलने का वर्णन मिलता हैं।[32] भारतीय फिल्मों में भी अलग अलग रागों पर आधारित होली के गीत प्रस्तुत किये गए हैं जो काफी लोकप्रिय हुए हैं। 'सिलसिला' के गीत रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे और 'नवरंग' के आया होली का त्योहार, उड़े रंगों की बौछार, को आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं।

आधुनिकता का रंग

होली रंगों का त्योहार है, हँसी-खुशी का त्योहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते है। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, भांग-ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप हैं।[33] लेकिन इससे होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी की शान में कमी नहीं आती। अनेक लोग ऐसे हैं जो पारंपरिक संगीत की समझ रखते हैं और पर्यावरण के प्रति सचेत हैं। इस प्रकार के लोग और संस्थाएँ चंदन, गुलाबजल, टेसू के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए हैं, साथ ही इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रहे हैं।[34] रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं।[35] होली की लोकप्रियता का विकसित होता हुआ अंतर्राष्ट्रीय रूप भी आकार लेने लगा है। बाज़ार में इसकी उपयोगिता का अंदाज़ इस साल होली के अवसर पर एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठान केन्ज़ोआमूर द्वारा जारी किए गए नए इत्र होली है से लगाया जा सकता है।[36]

जान बचाने की खातिर चीरा पेट और अंदर ही छोड़ दी कैंची


बीकानेर. शहर के एक निजी अस्पताल की गलती से पवनपुरी निवासी पूनम (25) की जान आफत में आ गई। २५ फरवरी को सिजेरियन डिलीवरी के दौरान डॉक्टरों ने उसके पेट में आर्टरी फोरसेप (कैंची) छोड़ दी। पूनम को पेट फूलने, उल्टी और दर्द की शिकायत रहने लगी।
आखिरकार 19वें दिन शनिवार को वह पीबीएम अस्पताल पहुंची। जांच में पेट में कैंची का पता चला। डॉक्टरों ने तुरंत ऑपरेशन करते हुए कैंची को निकाला। अब महिला ठीक है। उसके पति नितिन सिंह ने पुलिस में मामला दर्ज कराया है। सीएमएचओ देवेंद्र चौधरी ने कार्रवाई का भरोसा दिया है। परिजनों ने अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं कराया गया है।
यह वाक्या पवनपुरी क्षेत्र में रहने वाली पूनम के साथ हुआ। निजी अस्पताल में 25 फरवरी को उसकी सिजेरियन डिलीवरी हुई थी। इसी दौरान डॉक्टरों ने यह गलती कर दी। पीबीएम अस्पताल में कराए गए एक्स-रे में स्थिति साफ हुई।
डॉ. माथुर ने छोड़ी थी, डॉ. मनोहर ने निकाली
रानी बाजार स्थित माथुर हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के डॉक्टर ईपी माथुर ने पूनम का ऑपरेशन किया था। पीएमबी के डॉ. मनोहर दवां और डॉ. अशोक परमार ने कैंची को निकाला।
फटने की स्थिति में पहुंच गई थी आंत
आर्टरी फोरसेप ऐसी कैंची है, जिससे ऑपरेशन के दौरान रक्तस्राव रोकने या आंतों को पकडऩे के काम में लिया जाता है। निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने सिजेरियन डिलीवरी के दौरान इससे छोटी आंत दबाकर प्रवाह बंद किया था। बाद में वे कैंची उसी स्थिति में भूल गए।
19 दिन में छोटी आंत फूलकर फटने के कगार पर पहुंच गई। डॉ. मनोहर दवां ने बताया कि ऑपरेशन जटिल था। छोटी आंत फूली हुई थी। आर्टरी फोरसेप हटाने के दौरान वह फट भी सकती थी। पेट के अन्य अंग भी कैंची के इर्द-गिर्द चिपक चुके थे। डॉ. दवां व डॉ.अशोक परमार ने इसे सुरक्षित तरीके से बाहर निकाल दिया।

शिव को कहते हैं "पशुपति", पर ऐसे नाम की यह वजह आप नहीं जानते होंगे


 
हिन्दू शैव (शिव की महिमा बताने वाले) ग्रंथों के मुताबिक शिव लीला ही सृष्टि, रक्षा और विनाश करने वाली है। शिव साकार भी है और निराकार भी।  वे  जन्म और मृत्यु से भी परे हैं यानी अनादि व अनन्त हैं  इसलिए भगवान शिव की भक्ति कल्याणकारी होती हैं।
 
भगवान शिव को ऐसे विलक्षण शक्तियों और स्वरूप के कारण पशुपति नाम से भी पुकारा जाता प्रमुख है। आखिर कौन सी अद्भुत शक्तियां शिव के इस नाम से जुड़ीं हैं, इनका रहस्य शिव पुराण में बताया गया है। डालिए एक नजर - 
 
शिव पुराण के मुताबिक भगवान ब्रह्मदेव से लेकर सभी सांसारिक जीव शिव के पशु हैं। इनके जीवन, पालन और नियंत्रण करने वाले भगवान शिव हैं। इन पशुओं के पति यानी स्वामी होने से ही शिव पशुपति हैं। 
 
भगवान शिव ही इन पशुओं को माया और विषयों द्वारा बंधन में बांधते हैं। इनके द्वारा शिव ब्रह्मा सहित सभी जीवों को कर्म से जोड़ते हैं। पशुपति द्वारा ही बुद्धि, अहंकार से इन्द्रियां व पंचभूत बनते हैं, जिससे देह बनती हैं। इसमें बुद्धि कर्तव्य और अहंकार अभिमान नियत करती है। साथ ही चित्त में चेतना, मन में संकल्प, ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अपने विषय और कर्मेन्दियों द्वारा अपने नियत कर्म पशुपति की आज्ञा से ही संभव है। 
 
पशुपति ही आराधना और भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्म से लेकर कीट आदि पशु सभी को जन्म-मरण और सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त करते हैं।
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