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18 मार्च 2013

" मिज़ाज अच्छे हैं "

जनाब राहत इंदौरी साहब का अशोक मिज़ाज की शायरी और शख्सियत पर आलेख जो कई उर्दू रिसालों मे साया हो चुका है दोस्तों की फरमाइश पर हिन्दी मे पेश है

" मिज़ाज अच्छे हैं "

इन दिनों मुशायरों में जिस तरह की आपसी खींचतान देखने को मिलती है
वो अफ़सोसनाक है,शायराना रक़ाबतें और चश्मकें गये वक़्तों मे भी थीं,
मगर अब ज़ियादा हैन.तब एक हद हुआ करती थीलकिन अब सारी हदें
ख़त्म हो चुकी हैं रवादारी जैसे दुनिया से उठ चुकी है,मिज़ाजों की कड़वाहट
ने सारे माहॉल को ज़हरीला बना दिया है.
इस तरह के माहौल में अशोक "मिज़ाज" का दम गनीमत मालूम होता है
उसके लहजे में ठहराव है,आवाज़ संभली हुई है और कलाम में किसी क़िस्म
का तााक़ूब(पीछा करना) नहीं मिलता और इसीलिए वो अहतराम के क़ाबिल है.
अशोक जैसे शायर हमारे तबाह होते हुए माअसरे के लिए एक मिसाली हैसियत
रखते हैं. ऐसा माहौल जहाँ आदमी सिर्फ़ अपनी कहना चाहता हो किसी को सुनने को
तैयार ना हो लोगों की तवज्जो हासिल करने के लिए अपनी आवज़ को उँची करना
ज़रूरी समझता हो,वहाँ ख़ामोश, अदबी और धीमा लहज़ा फनकार को नुकसान पहुँचाता है
और ऐसे मैं कई अच्छी सोचें दबकर रह जाती हैं एक नुकसान जो इस रवैये से पहुचता
है वो ये कि इससे कमज़ोर और साज़िशी ज़ह्नों को फलने फूलने का मौका मिल जाता है
अशोक मिज़ाज इस ख़राबे में इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम लेकर आए हैं इंसानी
हमदर्दी और इंसानी बराबरी उनका ख्वाब है
अशोक अपनी कलाम की सदाक़तें के सबब मौजूदा हालत में
ना सिर्फ़ क़ोमी बल्कि आलमी सतह पर ये बात साबित करने मे कामयाब है कि यही आवाज़ आलमी
भाईचारे को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है

"मोहब्बत, अम्न, खुशहाली, ये हर इंसान की चाहत
ये हिन्दुस्तान की चाहत, ये पाकिस्तान की चाहत
ये सारी सरहदें बन जाएँगी पुल देखना इक दिन
पुकारेगी कभी इंसान को, इंसान की चाहत ........." अशोक मिज़ाज

" सुनसान हैं फ़ज़ाएं तो मौसम उदास है
निकले कहीं धुआँ तो हवा का पता चले "
अशोक मिज़ाज

"मिट्टी भी उठा लेते है टूटे हुए घर की
गिरते हुए लोगों को उठाने नहीं आते "
अशोक मिज़ाज

अशोक की शायरी में मोहब्बत और मासूमियत की जो एक लहर मिलती है,
उससे मुतास्सिर हुए बग़ैर नहीं रहा जा सकता.
उसके यहाँ ज़ब्त और दूसरों के एहतराम की जो फ़ज़ा फैली होती है
वो इंसान और हैवान में फ़र्क करने के लिए मददगार साबित होती है

" नित नये शेर मोहब्बत के सुनाता है मुझे,
ग़म तेरा थपकीयाँ दे दे के सुलाता है मुझे " अशोक मिज़ाज

" तेरे सुलूक नें जीना सीखा दिया लेकिन
तेरे बग़ैर ये जीना सज़ा में शामिल है " अशोक मिज़ाज

इस तरह बहुत से अश्आर की कहकशां है जिससे अशोक की शायरी सजी धजी है
अशोक की शायरी रोशन इंकानात ( संभावनाएँ ) की शायरी है
अभी उनका शेरी सफ़र ज़ारी है और मुझे यक़ीन है की अपनी मश्क़ और
तजुरबों को खूबसूरत और बेहतर तरीकों से पेश करने की महारत जब अपना जादू दिखाएगी तो
अशोक मिज़ाज ज़ियादा हसीन ज़ियादा खूबसूरत और ज़ियादा मैयारी शायरी लेकर दुनिया के सामने आएँगे
मेरी ख्वाहिश है की इंसानी दोस्ती और हमदर्दी में अशोक मिज़ाज की आँखों से च्चालका हुआ आँसू
सब को मोहब्बत करना और दुखी दिलों को देख कर आआँखें नाम करने का अंदाज़ सिखाए...

शुक्रिया के साथ पेश ए खिदमत है.

"किसकी है यह लावारिश लाश ?

"किसकी है यह लावारिश लाश ?
'सच' की ...?
पंचायतनामा भरो इसका
पोस्टमार्टम को भेजो
सच के पोस्टमार्टम के बाद ही पता चलेगा
कि 'सच ' की ह्त्या की गयी थी
या 'सच ' ने आत्महत्या करली
बहरहाल 'सच ' ज़िंदा नहीं है यह सच है
और यह भी सच है कि हम ज़िंदा हैं ." -----राजीव चतुर्वेदी

..जिंदगी कहीं दूर

‎..जिंदगी कहीं दूर खो सी गयी थी
कहीं एक लहर जैसे थम सी गयी थी
कुछ स्वप्न पलकों में छिप से गए थे
दिन अजनबी से लगने लगने लगे थे
यूँ मिल गए कुछ ख़ुशी के खजाने
खुली वादियों में गूंजे कुछ तराने
अपनी ही धुन में अब उड़ने लगे हैं
ये दिन बड़े अपने से लगने लगे हैं.....सुप्रभात......!!

इलाही यह केसी विडम्बना है अंग्रेजियत की गुलामी के इस दोर में दिखावटी धार्मिक मुखोटों के इस माहोल में

इलाही यह केसी विडम्बना है अंग्रेजियत की गुलामी के इस दोर में दिखावटी धार्मिक मुखोटों के इस माहोल में आज हमे अपने चरम के बारे में लोगों को बताना पढ़ रहा है जो लोग जानते है के हिन्दू धर्म नहीं संस्क्रती है धर्म केवल और केवल सनातन है वोह भी हिन्दू संस्क्रती को धर्म मान कर प्रचार कर रहे है ...जो लोग जानते है मुसलमान इस्लाम को मानने वाले है धर्म नहीं है धर्म तो इस्लाम है लेकिन मुसलमान को धर्म मानकर इसका प्रचार कर रहे है .....इससे भी अफ़सोस की बात यह है के हम जब अंग्रेजी के डोर में है हमारे देश में कोंग्रेस की भी सरकार रही भाजपा की भी सरकार रही कई राज्यों में आज भी भाजपा और गुजरात में तो हिन्दू संस्क्रती के कथित रक्षक भाई नरेंद्र मोदी की सरकार है लेकिन अफ़सोस सभी जगह अंग्रेजी साल जनवरी से ही सरे कारोबार सारे केलेंडर शुरू होते है गुजरात का केलेंडर आज भी हिन्दू तिथि से शुरू नहीं किया गया है हाँ हमे बार बार समझाना पढ़ता है हमारा साल अप्रैल में शुरू हो रहा है हमे कहना पढ़ता है हिन्दू वर्ष अब शुरू हुआ है अरे भाई हमने कभी देश के केलेंडर कार्यक्रम इस साल से करने की आवाज़ नहीं उठाई ..केरल में कई साल मुस्लिम लीग सरकार में रही मोहर्रम के महीने से साल शुरू होता है वहन किसी ने भी मोहर्रम के महीने से ही नये साल के केलेंडर की मांग नहीं उठाई ..तो जनाब जब नरेंद्र जी मोदी गुजरात में अप्रैल से अपने केलेंडर का कार्य्रम शुरू नहीं कर सकते तो फिर देश बताओं कहाँ इस केलेंडर की शुरुआत होगी ......भाई हम हिन्दू है यह बताने के लियें अगर हम ढिंढोरा पीटें ...हम मुसलमान है यह बताने के लियें हम अगर चीखे चिल्लाएं तो अजीब सा लगता है ऐसा लगता है जेसे किसी की घडी गम जाए तो घडी तलाशते वक्त कुछ लोग चीखें चिल्लाएं के में चोर नहीं में चोर नहीं यह मानसिक रोग है हम हिन्दू भी है हम मुसलमान भी है हम इंसान भी है ..हमारे आचरण से हमारा धर्म हमारी मानवता हम छलकाएं हमारी संस्क्रती पर हम इतरायें क्योंके इस संस्क्रती को तलाशने चाहे अकबर हो ..चाहे गजनवी हो ..चाहे अशोक हो ..चाहे सिकन्दर हो ..चाहे अँगरेज़ हो और अब चाहे बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हों सभी आते रहे है और हम गोरवान्वित है के हम भारतीय है जो अगर एक दिन भी विदेशियों का हुक्का पानी बंद कर दे तो अमेरिका टूट जाए हमे गर्व है के हम परमाणु शक्ति है अगर एक बटन दबा दें तो विश्व में तबाही आ जाए ..हमे गर्व है के यहाँ राम की संस्क्रती है यहाँ कृष्ण की गीता का ज्ञान है ...हमे गर्व है यहाँ ख्वाजा साहब के यहाँ अजमेर में सर टेकने देश के दुश्मन गदार पाकिस्तानी हुकूमत के लोग भी आते है ..हमे गर्व है के हम एक दुसरे के दिलों की धड़कन है .....हमे गर्व है के हम विश्व को आई आई टी आई .....विश्व को डॉक्टर ...वैज्ञानिक और लीडर देते है ..............हमे गर्व है के हम भारतीय है यहाँ मन्दिर की घंटी की मिठास है तो इबादत के लियें मस्जिदों में अज़ान की आवाज़ है ..यहाँ गुरुवाणी है यहाँ प्यार ही प्यार है .................फिर हमे क्यूँ गर्व ना हो अपने भारतीय होने पर जरा आप ही बताइए जनाब ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

जानिए..भगवान शिव के प्रतीक और रहस्यमयी वृक्ष ‘रुद्राक्ष’ के बारे में



अहमदाबाद। भगवान शिव की आराधना का प्रतीक है रुद्राक्ष। शिवजी का प्रतीक होने के कारण इसे अनेकों स्वरूप में धारण किया जाता है। लेकिन क्या आप रुद्राक्ष के वृक्ष या रुद्राक्ष की उत्पत्ति के बारे में जानते हैं? आमतौर पर रुद्राक्ष के वृक्ष हिमालय की तलहटी में मौजूद हैं। इस दुर्लभ वृक्ष की संख्या गुजरात के अहमदाबाद शहर में मात्र एक है।

रुद्राक्ष शिव के नेत्रों से उत्पन्न हुआ फलदायिनी वृक्ष है, जो समस्त सुखों को देने वाला तथा समस्त दुखों से मुक्ति प्रदान करने वाला है। सभी मुखों के रुद्राक्ष का अलग-अलग प्रभाव होता है।

धार्मिक ग्रंथानुसार 21 मुख तक के रुद्राक्ष होने के प्रमाण हैं, परंतु वर्तमान में 14 मुखी के पश्चात सभी रुद्राक्ष
अप्राप्य हैं।
 रुद्राक्ष के वृक्ष आमतौर पर शीत प्रदेशों में ही उत्पन्न होते हैं। नेपाल और भारत के हिमाचल प्रदेश में रुद्राक्ष के ऊंचे ताड़ जैसे वृक्ष होते हैं। बड़े शहरों में प्रदूषण और गर्म वातावरण के चलते यह वृक्ष पनप नहीं सकते। इस वृक्ष की एक खासियत यह भी होती है कि इसकी मूल जड़ें धरती से बाहर निकली हुई दिखाई देती हैं। इस वृक्ष में जो फल होते हैं, उसके बीज को रुद्राक्ष कहा जाता है।

रुद्राक्ष की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सौ सालों तक खराब नहीं होता।

कटे सिर के साथ महाभारत का युद्ध देखा था इस वीर ने


 
 
कटे सिर के साथ महाभारत का युद्ध देखा था इस वीर ने1 of 7 Photos

जयपुर.सीकर। महाभारत के युद्ध का जिक्र आते ही कृष्ण और अर्जुन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। लेकिन इस युद्ध में ऐसे ऐसे नायक थे जो अपने एक बाण से तीनों लोकों को जीतने की क्षमता रखते थे। ऐसे ही एक वीर थे बर्बरीक, जिन्हें पूरी दुनिया खाटू श्याम या श्याम बाबा के नाम से जानती है। जिनके लिए ये भी कहा जाता है हारे का सहारा, खाटू श्याम हमारा। उनकी बहादुरी और बल से श्रीकृष्ण भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और उनका सिर काटने के बाद श्रीकृष्ण ने ही खाटू नगरी में रखा था। यहां पर एक पहाड़ी पर उनके सिर ने पूरा महाभारत का युद्ध देखा। इतना ही नहीं कृष्ण ने उन्हें अपना नाम अपनी पहचान दी। वे श्याम के नाम से जाने गए और खाटू में होने की वजह से उन्हें खाटू श्याम जी कहा जाता है।

शिव ने दिए तीन अभेद्य बाण
बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या अहिलावती के पुत्र थे। बाल बब्बर शेर की तरह होने के कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया। बचपन से ही इस वीर बालक ने अस्त्रों शस्त्रों से खेलना शुरू कर दिया। बर्बरीक ने अपनी मां से युद्ध कला सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेद्य बाण प्राप्त किये और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ था।
 मां ने कहा, हारने वाले का साथ देना

महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने पर वीर बर्बरीक ने अपनी माता के सामने युद्ध में भाग लेने की इच्छा प्रकट की और तब इनकी माता ने इन्हें युद्ध में भाग लेने की आज्ञा दे दी और यह वचन लिया की तुम युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ निभाओगे। जब बर्बरीक युद्ध में भाग लेने पहुंचे तब भगवान श्री कृष्ण ने इन्हें कहा कि तुम्हारे तूणीर में तो तीन ही तीर हैं, तुम यहां क्या करोगे। बर्बरीक ने कहा कि इन तीन तीरों से मैं तीन लोक जीत सकता हूं। आप चाहें तो मेरी परीक्षा ले लें। श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि वे एक तीर से यहां पर जितने पेड़ हैं, उनके पत्ते बींध दें। कृष्ण तो स्वभाव से ही चंचल हैं, उन्होंने एक पत्ता अपने पैर से दबा लिया। बर्बरीक ने तीर छोड़ा, युद्धभूमि तो क्या पूरी सृष्टि के पत्ते उन्होंने एक ही तीर से बींध दिए और कृष्ण जी से कहा कि प्रभु अपना पैर हटा लीजिए नहीं तो इस तीर से आपको कोई नहीं बचा पाएगा। अंतत: भगवन कृष्ण ने पैर हटाया और तीर ने उस अंतिम पत्ते को भी बींध दिया।

श्रीकृष्ण ने मांगा बलिदान

श्रीकृष्ण उनका युद्ध कौशल देखकर समझ गए कि यदि यह वीर बालक युद्ध में आ गया तो एक ही तीर से पूरे सेना को भी नष्ट कर सकता है। किसी समय कौरव हार रहे हो तो उनका भी साथ दे सकता है। अथवा युद्ध 18 दिन से पहले ही समाप्त हो जाएगा। उनकी बातचीत में काफी समय बीत चुका था और युद्ध शुरू नहीं हो रहा था तो बर्बरीक ने कृष्ण जी से पूछा कि युद्ध शुरू क्यों नहीं हो रहा।
कृष्ण ने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरंभ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिये एक वीर क्षत्रिय के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतैव उनका शीश दान में मांगा। श्री कृष्ण ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेते तो युद्ध काफी जल्दी समाप्त हो जाता। वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर खुशी-खुशी अपने सिर का दान दे दिया। लेकिन साथ ही पूरा युद्ध देखने की इच्छा भी प्रकट की।

कटे शीश को पर्वत पर रख दिया श्रीकृष्ण ने

बर्बरीक की युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूरी की। बर्बरीक के कटे सिर ने पूरा युद्ध इसी ऊंचे पर्वत से देखा। यही स्थान खाटू नगरी थी और बाद में यहीं पर खाटू श्याम जी का मंदिर बनाया गया। कृष्ण जी ने बर्बरीक के बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें अपना नाम और अपनी पहचान दी। तब से उन्हें श्याम या श्याम बाबा के नाम से जाना जाने लगा। खाटू में होने की वजह से खाटू श्याम के नाम से प्रचलित हुआ। भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचा और कलयुग का अवतारी बनने का आशीर्वाद प्रदान किया।

राजा खट्टवांग ने की स्थापना

खाटू की स्थापना राजा खट्टवांग ने की थी। खट्टवांग ने ही बभ्रुवाहन के देवरे में बर्बरीक के सिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। खाटू की स्थापना के विषय में अन्य मत प्रचलित है। कई विद्वान इसे महाभारत के पहले का मानते हैं तो कई इसे ईसा पूर्व के समय का मानते है लेकिन कुल मिलाकर विद्वानों की एकमत राय यह है कि बभ्रुवाहन के देवरे में सिर की प्रतिमा की स्थापना महाभारत के पश्चात हुई। श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से युद्ध समाप्ति के पश्चात उनका शीश खाटू में दफनाया गया था और बाद में वहीं पर खाटू श्यामजी मंदिर बनवाया गया था।

कैसे बना मंदिर

एक बार एक गाय उस स्थान पर आकर अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वत: ही बहा रही थी। उस जगह पर खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिये एक ब्राह्मण को सुपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिये और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। फिर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। खाटू के श्याम मंदिर में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि पास ही में स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है। खाटू श्याम जी का मुख्य मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के गांव खाटू में बना हुआ है। श्री खाटू श्याम मंदिर जयपुर से उत्तर दिशा में वाया रींगस होकर 80 किलोमीटर दूर पड़ता है।

खाटू श्यामजी मंदिर में प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में बड़े मेले का आयोजन होता है। हर साल इस मेले में काफी संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। यह मेला फागुन सुदी दशमी के आरंभ और द्वादशी के अंत में लगता है।
हज़ारों श्रद्धालु यहां पदयात्रा करके पहुंचते हैं, वहीं कई लोग दंडवत करते हुए खाटू नरेश के दरबार में हाजिरी देते हैं। इस मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं। प्रत्येक एकादशी और रविवार को भी यहां भक्तों की लंबी कतारें लगी होती हैं।

पुरुष बस ये अचूक तरीका अपना लें तो 50 की उम्र में भी 25 के दिखेंगे

पुरुष बस ये अचूक तरीका अपना लें तो 50 की उम्र में भी 25 के दिखेंगे
अक्सर जीवन के चार दशक पार कर चुके लोगों के शरीर, चेहरे और हावभाव में बढ़ती उम्र का असर दिखने लगता है। बढ़ती उम्र का असर कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन कई बार ये असर इतना ज्यादा गहरा होता है कि 45-50 साल का इंसान 55-60 का दिखने लगता है।
इसके कई कारण हैं। कई वैज्ञानिक इस पर निरंतर शोध भी कर रहे हैं। अमेरिका जैसे विकसित देश तो इस पर लगाम लगाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। बढ़ती उम्र के साथ इंसान की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है। आमतौर पर 45 की उम्र के बाद प्रजनन की क्षमता तो प्रभावित हो ही जाती है साथ ही इस उम्र के बाद होने वाली संतानों की सेहत पर भी खासा विपरित असर पड़ता है।
मध्य आयु को पार कर पचास वर्ष से ऊपर की उम्र के लोगों के लिए एक खुश कर देने वाली खबर है। अमेरिका में हाल में ही हुआ एक शोध अध्ययन यह साबित कर रहा है कि पचास की उम्र के बाद यदि आप भोजन में पर्याप्त एंटी-आक्सीडेंट  को नहीं ले पाते हैं तो ब्रोकली ,पत्तेदार -हरी सब्जियां और टमाटर आपके लिए अच्छा विकल्प है।

 

पुरुष बस ये अचूक तरीका अपना लें तो 50 की उम्र में भी 25 के दिखेंगे
शाकाहार एक बड़ा कारण...

इस शोध अध्ययन में यह देखा गया है कि पचास के पार के जो लोग भोजन में अधिक हरी पत्तेदार सब्जियां एवं शाकाहार को अपनाते हैं उनके शुक्राणु में स्थित डी.एन.ए की कड़ियों के टूटने की संभावना कम हो जाती है। ऐसा इन सब्जियों में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी, ई, जिंक व फोलेट के कारण होता है।
हालांकि इस शोध से यह साबित तो नहीं हो पाया है कि केवल मात्र भोजन में प्रचुर मात्रा में एंटी-आक्सीडेंट का सेवन मात्रा इन संभावनाओं को कम कर देता है और इस उम्र में स्वस्थ संतान की उत्पति कर सकता है।
 गली पीढ़ियों के लिए भी खतरा...
जर्नल फर्टीलिटी एवं स्टरलेटी में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक शुक्राणुओं में स्थित डी.एन.ए. कड़ियों का टूटना उम्र बढऩे के साथ होने वाली एक सामान्य घटना है और इससे शुक्राणुओं की आनुवांशिक क्षमता प्रभावित होती है ,जो इस उम्र में प्रजनन द्वारा उत्पन्न संतानों में आनुवांशिक विकृतियों की संभावना को बढ़ा देती है।

हरी सब्जियां सबसे बड़ी सहायक...

सीनियर शोधकर्ता एंड्रीयु वायरोबेक का मानना है कि हरी सब्जियों सहित दूसरे अन्य कई कारण इस उम्र में  शुक्राणुओं की गुणवत्ता में परिवर्तन लाकर स्वस्थ संतान की उत्पत्ति में सहायक हो सकते हैं।
इस अध्ययन में अस्सी धूम्रपान न करने वाले 22 से 80 वर्ष के लोगों को शामिल किया गया और उनसे उनके भोजन एवं फ़ूड सप्लीमेंट्स से सम्बंधित प्रश्नावली भरवाई गई और उनके स्पर्म के सेम्पल लिए गए ।

होलाष्टक 20 से: जानिए इससे जुड़ी खास बातें व ग्रहों की शांति के उपाय


 
 
होलाष्टक 20 से: जानिए इससे जुड़ी खास बातें व ग्रहों की शांति के उपाय
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक मनाया जाता है। यह इस बार 20 मार्च से है। होलिका दहन तक मलमास व तारा अस्त की मान्यता लिए होने से इस दौरान मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
इन दिनों में कई स्थानों पर अंतिम संस्कार करने से पहले शांति कार्य भी किए जाते हैं। इसका पौराणिक कारण यह है कि प्रहलाद को भस्म करने के लिए फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से तैयारी शुरू कर दी गई थी। उसके पिता हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रहलाद को जीवित जलाने का षडयंत्र रचा था।
प्रहलाद विष्णु भक्त था और हिरण्यकशिपु उसे विष्णु की बजाय खुद को भगवान मानने के लिए जोर डाल रहा था। प्रहलाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे जिंदा जलाने के लिए होलिका को कहा। होलिका को यह वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती। इससे जनमानस में आक्रोश के साथ ही भय व शोक की लहर भी छा गई थी। इसलिए सभी शुभ कार्यों पर रोक लगना स्वाभाविक था।

 

 

 
 
कैसे करें पूजन...
प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने और उससे छुटकारा पाने के लिए इन दिनों में  विष्णु के साथ- साथ नृसिंह स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
इसी प्रकार अपने आराध्य देवों के चरणों में निम्नानुसार रंग व पूजा सामग्री अर्पित करना चाहिए। जैसे यदि सूर्य के कारण कोई निर्बलता आ रही है तो सूर्य को कुमकुम अर्पित करें।
चंद्रमा के लिए अबीर, मंगल के लिए लाल चंदन या सिंदूर, बुध के लिए हरा रंग या मेहंदी, बृहस्पति के लिए केशर, हल्दी पावडर, शुक्र के लिए सफेद चंदन, मक्खन व मिश्री, शनि के लिए नीला रंग और राहू-केतु के लिए पंच गव्य अथवा गोबर गोमूत्र के साथ काले तिल अर्पण करने चाहिए।

क्या आप जानते हैं भगवान ने खर मास को क्यों दिया अपना नाम?


इस बार खर (मल) मास का प्रारंभ 14 मार्च, गुरुवार से हो चुका है, जो 14 अप्रैल, रविवार तक रहेगा। हिंदू धर्मशास्त्रों में खर मास को बहुत ही पूजनीय बताया गया है। खर मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। खर मास को पुरुषोत्तम मास क्यों कहा जाता है इसके संबंध में हमारे शास्त्रों में एक कथा का वर्णन है जो इस प्रकार है-
प्राचीन काल में जब सर्वप्रथम खर मास की उत्पत्ति हुई तो वह स्वामीरहित मलमास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कार्यों के लिए वर्जित माना गया। इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी। निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा और अपनी पीड़ा बताई। तब भगवान विष्णु मल मास को लेकर गोलोक गए।
वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजडि़त आसन पर बैठे थे। भगवान विष्णु ने मल मास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा कि यह मल मास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा क्योंकि अब से मैं इसे अपना नाम देता हूं।
यह जगत में पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात होगा। मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं। जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे। इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

कुरान का सन्देश

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