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21 मार्च 2013

27 तक हर शाम बोलें दुर्गासप्तशती का यह जादुई मंत्र, दूर होंगे शनि व भद्रा दोष


27 तक हर शाम बोलें दुर्गासप्तशती का यह जादुई मंत्र, दूर होंगे शनि व भद्रा दोष
हिन्दू धर्म परंपराओं में शुक्रवार देवी पूजा का विशेष दिन है। खासतौर पर 20 से शुरू होली तक चलने वाले होलाष्टक के दौरान 22 मार्च को शुक्रवार का योग बना है। होलिकोत्सव के इस विशेष काल में देवी की उपासना खासतौर पर शनि दोष के अलावा शास्त्रों के मुताबिक शनि की बहन मानी गई भद्रा के अशुभ प्रभावों को दूर करने का अचूक उपाय माना गया है। 
 
देवी उपासना में नवदुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि का स्वरूप विकराल होने पर भी मंगलकारी माना जाता है। देवी काल की नियंत्रक मानी जाती है। इसलिए काल की विषमताओं से पार पाने में देवी की उपासना प्रभावी मानी गई है। खासतौर पर ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ प्रभाव देवी उपासना से शांत हो जाते हैं। 
 
इसी कड़ी में कालरात्रि की उपासना शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से रक्षा करती है। माना जाता है कि शनि ग्रह के अशुभ योग या दशा जीवन में आर्थिक, शारीरिक व मानसिक पीड़ा देते हैं। इनसे कई बाधाएं पैदा होती है। इसी तरह होलिकोत्सव के दौरान भद्रा के अशुभ प्रभावों से पैदा होने वाली अशांति व कलह को दूर करने के लिए भी देवी का स्मरण बड़ा ही सुखद होता है। ज्योतिष शास्त्रों में भद्रा 'करण' माना जाता है, जो पंचांग का अहम अंग है और विशेष स्थितियों में अशुभ फल देता है।
 
शनि व उनकी बहन भद्रा की ऐसी ही बाधाओं से बचाव के लिए देवी उपासना के आसान उपायो में कालरात्रि के स्वरूप का ध्यान करते हुए दुर्गासप्तशती का विशेष देवी मंत्र बोलना हितकारी माना गया है।
  होली तक हर शाम स्नान के बाद देवी की पंचोपचार पूजा गंध, अक्षत, लाल फूल व लाल फल का भोग अर्पित कर करें। धूप व दीप जलाकर लाल आसन पर बैठ नीचे लिखे देवी मंत्र या कालरात्रि के बीज मंत्र का स्मरण कम से कम 108  बार स्फटिक की माला से करें - 
 
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी 
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।। 
 
कालरात्रि बीजमंत्र - लीं
 
- मंत्र जप व पूजा के बाद माता की आरती कर क्षमाप्रार्थना कर उसी आसन पर बैठकर प्रसाद ग्रहण करें।

खाटूश्याम: जानिए कैसे दस हजार की आबादी में इकठ्ठा हो जाते हैं 25 लाख लोग!

खाटूश्यामजी से.खाटू नगरी। आबादी महज दस हजार। मेले के वक्त यहां इकट्ठा होते हैं लाखों श्रद्धालु। मेले के समापन तक इनकी संख्या 25 लाख के पार हो जाती है। फिर भी किसी भी भक्त को शिकायत नहीं और पांच सैकंड के लिए बाबा के दर्शन होने पर मन में बड़ी खुशी।
 
दस हजार आबादी की सुविधाओं पर 25 लाख की संतुष्टि ऐसे ही नहीं होती। इसके पीछे पूरा मैनेजमेंट फंडा अपनाया जाता है। चार महीने पहले ही मेले की तैयारियां शुरू कर दी जाती है। इस मैनेजमेंट को समझने के लिए दैनिक भास्कर ने मंदिर कमेटी, श्याम भक्त, स्थानीय लोग व प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत की। पढ़िए पूरी रिपोर्ट।
 
> सात घंटे तक लाइन में फिर भी थकावट क्यों नहीं?
 
मंदिर तक पहुंचने में छह लाइनें व सात घंटे का वक्त लगता है। और एक मिनट में ग्यारस पर 400 श्रद्धालु बाबा के दर्शन करते हैं। थकावट नहीं होने व जोश बने की रहने की बड़ी वजह बाबा के दर्शनों की अभिलाषा है। यह मैनेजमेंट की भाषा में लक्ष्य है। वहीं श्याम सेवक भजनों व जयकारों के बीच हौसला बढ़ाते हैं।
 
> रींगस से खाटू सिंहद्वार क्यों?
 
यहां एक मिनट में एक हजार से अधिक श्रद्धालु प्रवेश करते हैं। जयपुर या फिर देश के अन्य कोनों से आने वाले श्रद्धालु यहां आकर एक ही परिवार की तरह जुट जाते हैं। श्रद्धालुओं के अपने मैनेजमेंट में वे लाइन को कभी नहीं तोड़ते। रींगस से खाटू तक का मार्ग 16 किमी का है।
 
> समय प्रबंधन भी इस बार अपनाया क्यों?
 
इस बार भीड़ बढ़ती देख मेला पांच दिन का किया गया है। मंदिर 24 घंटे खुला रखा जा रहा है। यह सबकुछ समय प्रबंधन का हिस्सा है ताकि भीड़ रुके नहीं सिर्फ चलती जाए।
 
>कैसे मुहैया होता है लाखों को पानी?
 
इस बार 50 लाख पाउच व छह-सात ट्रक पानी की बोतल मंगवाई गई है। पाउच पैकिंग के लिए मंदिर परिसर में मशीन है। आठ-दस जगह से सप्लाई की लाइन से कनेक्शन लेकर 3-3 हजार लीटर की टंकियां रखी गई है। करीब 20 टैंकर हैं। सप्लाई बिजली गुल होने से बाधित न हो, इसके लिए जलदाय महकमे को कमेटी की तरफ से जनरेटर दिए हैं।
 
> लाइनों में कैसे बनी रहती है व्यवस्था?
 
लाइनों में श्रद्धालुओं को पानी के पाउच से लेकर ज्यूस, नाश्ता आदि तक मुहैया करवाया जाता है। चार किमी दूर तक स्क्रीन लगाई गई है ताकि पता रहे कि अभी मंदिर में कितनी भीड़ है।
 
> श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण
 
मंदिर में पहले से ही प्रसाद थैलियों में पैक कर रख दिया जाता है। प्रसाद बनाने से लेकर पैकिंग करने व भक्तों को देने में ही 600 लोग लगे हैं।
 
> मंदिर के पास कैसे तेज हो जाते हैं कदम?
 
मंदिर के द्वार पर आधा दर्जन से ज्यादा कमेटी के लोग खड़े रहते हैं। ये बाबा के जयघोष के साथ जल्द अंदर घुसने के लिए कहते हैं। भीड़ कंट्रोल करने के लिए हर कदम पर पांच स्वयंसेवक है।
 
> अनुमानित श्रद्धालुओं की संख्या भी पहले क्यों होती है तय?
 
कमेटी मेले से कुछ महीनों पहले ही एकादशी पर आने वाले श्रद्धालुओं से उनके मंडलों की तैयारी के बारे जानती है। सर्वे कर लेते हैं कि कितने श्रद्धालु आने की उम्मीद है।
 
> घर-घर में मेहमान, फिर भी सबको सुविधा
 
मेले के दौरान चार-पांच दिन हर घर में मेहमान आते हैं। इसलिए इन्हें पूरी व्यवस्था पहले करनी पड़ती है। यहां रहने वाले मुरारी सोनी बताते हैं कि पांच दिन में औसत हर घर में 30 से 70 मेहमान आ रहे हैं।
 
भास्कर टीम : अरविन्द शर्मा, मनोज कुमार, बाबूलाल चौधरी, फोटो : मनोज राठौड़
 
ढाई लाख ने नवाया ‘शीशदानी’ के शीश
 
 
खाटू बाबा का फाल्गुन मेला गुरुवार को परवान पर चढ़ा। श्रद्धा में डूबे हाथों में निशान लिए बाबा के धाम की तरफ कदम बढ़ाते भक्त। कदम-कदम पर डीजे पर बजते बाबा के भजन और फाल्गुन की मस्ती में गुलाल उड़ाकर झूमते श्रद्धालु। मेले के पहले ही दिन कुछ इसी प्रकार ढाई लाख श्रद्धालुओं ने बाबा के धाम पहुंच मत्था टेका। पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले से खाटू नगरी की हर गली ही नहीं बल्कि दूर तक हाथों में ध्वजा लिए केवल श्रद्धालु ही नजर आ रहे हैं। 
 
हर कोई जल्द ही बाबा के दर्शन करना चाहता है। पैरों में छाले और थकान बाबा के द्वार के नजदीक पहुंचते-पहुंचते दूर हो रही है। क्योंकि जैसे-जैसे कदम आगे बढ़ रहे हैं श्रद्धालुओं का उत्साह बढ़ता जा रहा है। अनवरत भीड़ लगातार दर्शन कर रही है। घंटों लाइन में लगने के बाद भी बजाए धक्का मुक्की के एक-दूसरे को आगे बढ़ा रहे हैं। दूर दराज से आने वाले पदयात्रियों की सेवा करने वालों की भी कमी नहीं है। हर दस कदम पर भंडारे लगे हैं तो सेवादार सेवा में लगे हैं।
 
 
76 हजार श्रद्घालु आ रहे है रेल से
 
बाबा श्याम के लक्खी मेले में आने वाले करीब 76 हजार श्रद्घालु यात्री रेलगाड़ियों से पहुंच रहे है। रेलवे स्टेशन अधीक्षक गौरीशंकर मीणा ने बताया कि ब्रॉडगेज पर 6 मेला स्पेशल सहित 18 यात्री रेलगाड़ियां चल रही है। इसी तरह मीटर गेज पर दो मेला स्पेशल सहित 20 यात्री रेलगाड़ियां चल रही है। दोनों ट्रेक पर कुल 38 गाड़ियां चल रही है। एक गाड़ी में करीब 2 हजार श्रद्घालु पहुंच रहे हैं। खाटूश्यामजी जाने वाले श्रद्घालु खाटूश्यामजी मोड़ पर बने तोरण द्घार पर धोक लगाकर आगे बढ़ रहे है।
 
स्वास्थ्य कैंप शुरू
 
मेले में श्रद्धालुओं के लिए स्वास्थ्य कैंप भी शुरू कर दिए गए हैं। इन कैंपों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवा उपलब्ध कराई गई है।
 
21 किलो चांदी की ध्वजा, सोने का हार व लड्डू गोपाल
 
बाबा के भक्त भी निराले हैं। कोई सोने का हार लेकर आ रहा है तो कोई चांदी की ध्वजा। हाथों में सोने के लड्डू गोपाल लिए पदयात्रा करने वाले श्रद्धालुओं की भी कोई कमी नहीं है। गुरुवार को छत्तीसगढ़ से आए श्रद्धालुओं ने बाबा को 21 किलो चांदी से बना ध्वजा चढ़ाई। छत्तीसगढ़ के श्याम चेरिटेबल ट्रस्ट के 500 श्रद्धालु पहुंचे हैं। यह जत्था यहां आने वाले अन्य श्रद्धालुओं के भोजन की व्यवस्था भी करेगा। शुक्रवार को कोलकाता से आए श्रद्धालु सुबह नौ बजे सोने से बना हार चढ़ाएंगे। मेले में ऐसे श्रद्धालुओं की भी कमी नहीं है जो हाथों में लड्डू गोपाल लिए बाबा के दरबार की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसे ही जयपुर से आए सुधांशु गौतम हाथ में लड्डू गोपाल लेकर आए हैं।
 

मौत बनी मक्के की रोटी, बेटी के दम तोड़ने पर सुध खो बैठी मां



कोटा. कुन्हाड़ी क्षेत्र स्थित पत्थर मंडी की मीणा बस्ती में गुरुवार को विषाक्त भोजन खाने से एक परिवार के 8 सदस्य बेहोश हो गए। इनमें से एक बालिका की मौत हो गई। बेसुध परिजनों को एमबीएस एवं जेके लोन में भर्ती करवाया गया हैं। आशंका जताई जा रही है कि परिवार के लोगों ने जो मक्के की रोटी खाई थी, उसमें कीटनाशक मिला था।
 
सूचना पर कलेक्टर, सीएमएचओ और पुलिस अधिकारी एमबीएस अस्पताल पहुंचे। पुलिस ने कारणों का पता लगाने के लिए मक्के के आटे का सैंपल भी ले लिया है। डीएसपी सीताराम महीच के मुताबिक मीणा बस्ती का रहने वाला परिवार का मुखिया जगना (50) मजदूरी करता है।
 
वह एक महीने पहले जहाजपुर से किसी से मक्का मांगकर लाया था। इसमें से 10 किलो मक्का उसने बुधवार को पिसवाया और रात के भोजन के लिए मूंग की दाल और उसी मक्के की रोटी बनाई। खाने के थोड़ी देर बाद ही जगना और उसकी पुत्री रानी और किरण बेहोश हो गए। इसके बाद आनन-फानन में पड़ोसियों ने उन्हें रात को बूंदी रोड स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया।  
 
तुरंत उपचार मिलने पर वे सुबह तक ठीक हो गए, लेकिन उन्हें यह पता नहीं चला कि तबीयत किस वजह से खराब हुई थी। इधर, सुबह जब परिवार के दूसरे सदस्यों को भूख लगी तो उन्होंने रात की वही बासी रोटी चाय के साथ खा ली। खाने के थोड़ी देर बाद उन्हें उल्टी शुरू हो गई। इसके बाद उन्हें भी बूंदी रोड स्थित निजी अस्पताल पहुंचाया गया।
 
वहां से उन्हें एमबीएस एवं जेकेलोन के लिए रैफर किया गया। इस दौरान जगना की सबसे छोटी बेटी पायल(6) की मौत हो गई। वहीं बेटा बादल (8), संतोष (9), बहन मंगली (20), बहू पूजा (19) बेहोश हैं। बेटी किरण (10) और रानी (18) होश में आने के बाद घर चलीं गई थीं, लेकिन कलेक्टर के कहने पर उन्हें दुबारा भर्ती करवाया गया है।
 
मां ने बेटी को सीने से चिपकाए रखा 
 
जगना की सबसे छोटी बेटी पायल ने जेकेलॉन में दोपहर को दम तोड़ दिया। उसकी मौत की सूचना जैसे मां तारा बाई को लगी वो भी बेहोश हो गई। जैसे-तैसे उन्हें होश आया तो वह अपनी बच्ची को सीने से चिपका कर अस्पताल से भागने लगी। जिसे जेकेलोन के मुख्य गेट पर जैसे-तैसे पुलिस ने समझाईश करके रोका।
 
सड़क पर तड़पता रहा परिवार
 
सुबह एक के बाद एक परिवारजन बूंदी रोड स्थित निजी अस्पताल में पहुंचने लगे। सूचना फैलने पर आसपास के इलाके के लोगों की भीड़ जमा हो गई। काफी देर तक पीड़ित परिवार सड़क पर बैठे-बैठे तड़पता रहा। लोगों ने 108 एंबुलेंस को भी सूचना दी, लेकिन वो भी समय पर नहीं पहुंची। बाद में एंबुलेंस से उन्हें एमबीएस और जेकेलोन पहुंचाया गया।

अनाथालाय की आड़ में मासूम लड़कियों का शोषण, संस्थापक को फांसी


अनाथालाय की आड़ में मासूम लड़कियों का शोषण, संस्थापक को फांसी
मुंबई.  सत्र न्यायाधीश पी.वी. गनेडीवाला ने कल्याणी महिला व बाल कल्याण सेवा संस्था के निदेशक रामचंद्र करंजुले को फांसी की सजा सुनाई है। अदालत ने करंजुले को यह सजा एक लड़की की हत्या और तीन नाबालिग सहित पांच लड़कियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म किये जाने के आरोप में सुनाई है।
 
न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने इस बहुचर्चित मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि करंजुले ने जो जघन्य अपराध किया है। उसके मद्देनजर उसे समाज में जीने का कोई अधिकार नहीं है। वह समाज के लिए बुराई है और आजीवन कारावास की सजा उसके लिए अपर्याप्त है।
 
बता दें कि सत्र न्यायालय ने मुख्य अभियुक्त करंजुले सहित पांच अन्य लोगों को इस मामले में बुधवार को ही दोषी करार दिया था। इन सभी अभियुक्तों को गुरुवार को सजा सुनाई गई।
 
अदालत ने इस मामले में करंजुले के अलावा शिर्डी में इसी तरह का अनाथालय चलाने वाले खंडू कस्बे और अनाथालय के शिक्षक प्रकाश खडके को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
 
इसके साथ ही कल्याणी महिला व बाल कल्याण सेवा संस्था की अधीक्षक सोनाली बडदे और कार्यवाहक पार्वतीबाई मावे को अदालत ने १क् वर्ष की कैद की सजा सुनाई है। एक अन्य आरोपी नानाभाऊ करंजुले को अदालत ने छेड़छाड़ का दोषी ठहराते हुए दो साल की कारावास की सजा सुनाई है।
 
क्या है सामूहिक दुष्मर्क का यह पूरा मामला :
 
आरोपी रामचंद्र करंजुले नवी मुंबई के कलंबोली इलाके में कल्याणी महिला व बाल कल्याण सेवा संस्था नाम से अनाथालय चलाता था। एक मामले की सुनवाई के दौरान मुंबई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के सभी अनाथालयों के बच्चों के कल्याण व सुरक्षा के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की प्रोफेसर आशा वाजपेयी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी।
 
इस समिति के पदाधिकारियों ने कल्याणी महिला व बाल कल्याण सेवा संस्था का जब 15 और 22 फरवरी 2011  को दौरा किया, तो यहां की 19 में से कई मंदबुद्धि की लड़कियों के शरीर पर चोट के निशान पाये गये थे। जिसके बाद इस समिति की मांग पर संस्था में रहने वाली सभी लड़कियों का जब मेडिकल जांच किया गया, तो उनमें से 5 के यौन शोषण की पुष्टि हुई। ध्यान रहे कि क्षयरोग पीड़ित एक युवती की सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद मौत हो गई थी।

कुरान का सन्देश


जानिए, इस किले को क्यों कहा जाता है रेगिस्तान का गुलाब

जैसलमेर। थार मरूस्थल में चारों ओर रेत ही रेत।...सूर्य की किरणों की स्वर्णिम आभा से सोने से दिखाई देते रेत के धोरे।...रेत के धोरों के पास कहीं कहीं पीले रंग के बलुए पत्थर। यह जैसलमेर है। रेत का समुद्र। कहा जाता है कि महाभारत काल में जब युद्ध समाप्त हो गया और भगवान कृष्ण ने अर्जुन को साथ लेकर द्वारिका की ओर प्रस्थान किया तब इसी नगर से कभी उनका रथ गुजरा था। रेगिस्तान के बीचों -बीच यहां की त्रिकुट पहाड़ी पर कभी महर्षि उत्तुंग ने तपस्या की थी। इसी त्रिकुट पहाड़ी पर पिछले साढ़े आठ सौ सालों से अपना सीना ताने खड़ा है सोनार किला। सूर्य की पहली किरण पड़ते ही सोने की तरह चमकने वाला सोनार किला।
 सांझ का समय....रेत के टीलों के बीच त्रिकुट पहाड़ी पर दूर से दुर्ग... ऐसा जैसे पहाड़ पर लंगर डाले खड़ा हो कोई जहाज। घाघरानुमा परकोटे किले की दीवारों पर सांझ के सूरज की ढलती किरणें सब कुछ जैसे सुनहरा कर रही थी। लगने लगा, जैसे जादू सा कुछ हो रहा है। किला हो गया सच में सोनगढ़। माने सोने से बना हुआ। पीत पाषाणों से निर्मित किले की कल्पना नहीं आंखों का सच था। मजे की बात यह है कि कल्पनालोक से नजर आने वाले इस किले में लोग रहते हैं, काम करते हैं और हां, ये इस किले का उनका जीवन्त इतिहास है।

स्थानीय गाइड बताने लगता है, "यही वह दुर्ग है जिसने 11 वीं सदी से 18 वीं सदी तक अनेकानेक उतार-चढ़ाव देखते गौरी, खिलजी, फिरोजशाह तुगलक और ऐसे ही दूसरे मुगलों के भीषण हमलों को लगातार झेला है। कभी सिंधु, मिस्र, इराक, कांधार और मुलतान आदि देशों का व्यापारिक कारवां देश के अन्य भागों को यहीं से जाता था। कहते हैं 1661 से 1708 ई. के बीच यह दुर्ग नगर समृद्धि के चरम शिखर पर पहुंच गया। व्यापारियों ने यहां स्थापत्य कला में बेजोड़ हवेलियों का निर्माण किया तो हिन्दू, जैन धर्म के मंदिरों की आस्था का भी यह प्रमुख केन्द्र बना।"

सीएस की कार्यशैली पर सवाल उठाने वाली बात पर अब भी कायम : धारीवाल


 

जयपुर। यूडीएच और विधि मंत्री शांति धारीवाल की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मुख्य सचिव के खिलाफ पत्र लिखकर सर्वोच्च नौकरशाह की कार्यशैली से प्रदेश में स्थापित शासकीय नियम और संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन होने संबंधी प्रकरण गुरुवार को विधानसभा में भी गूंजा। इस विवाद का भास्कर खुलासा किए जाने के बाद गुरुवार को भाजपा सदस्य राजेंद्र राठौड़ ने सदन में मामला उठाया। उन्होंने भास्कर में छपे गोपनीय पत्र को भी सदन में पढ़ा।

विपक्ष के आरोपों पर विधानसभा में जवाब में शांति धारीवाल ने कहा कि मुख्य सचिव के खिलाफ उन्होंने जो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा था, उन सब बातों पर वे आज भी कायम है। धारीवाल ने कहा कि पत्र के माध्यम से उन्होंने भावनाएं व्यक्त की थी, उन विचारों पर अब भी कायम हूं। उन्होंने कहा कि यूडीएच के तत्कालीन उप सचिव आरएएस एस.ए फारुखी के खिलाफ अभियोजना स्वीकृति देना मुख्यमंत्री का अधिकार था।

धारीवाल ने विपक्ष की तरफ इशारा करते हुए कि उन्होंने पत्र के जरिए जो भावनाएं थीं वो व्यक्त कर दी, हम आपकी तरफ बंधुआ मजदूर नहीं हैं, जो बात ही नहीं रख सकते। इससे पहले भाजपा सदस्य हबीबुर्रहमान ने सबसे पहले धारीवाल की ओर से मुख्य सचिव के खिलाफ गहलोत को लिखे गए पत्र को सदन में पढ़ते हुए कि आर.ए.एस अफसर एस.ए फारुखी जांच में निर्दोष है, तो फिर उन्हें बहाल क्यों नहीं किया जाता। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि फारुखी को तुरंत बहाल किया जाए।

मुंबई सीरियल ब्लास्टः याकूब को फांसी, दस को माफी



 

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले की सुनवाई से पहले कहा कि सजा पर चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी और सबूतों के आधार पर चुनौती देने वाली याचिकाओं को ही सुना गया। टाडा कोर्ट ने प्रक्रिया का पालन किया है। कोर्ट ने फैसले की शुरुआत फांसी पाए दोषियों से की। याकूब मेमन को फरार आरोपियों के बाद सबसे बड़ा दोषी बताते हुए उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी है। कोर्ट ने याकूब बम धमाकों का षडयंत्र रचने हथियार और धन मुहैया कराने का दोषी पाया।
 
इस मामले में कुल 12 लोगों को फांसी की सजा मिली थी। एक दोषी की जेल में ही मौत हो गई थी और अदालत ने बाकी दस दोषियों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इनकी सजा को तबदील करते हुए माना कि इन लोगों ने मुंबई में जगह-जगह बम प्लांट किए थे। लेकिन कोर्ट ने यह भी माना कि हमले के मास्टरमाइंड ने इन लोगों की मजबूरी और गरीबी का फायदा उठाकर यह सब काम करवाया था। अदालत ने इन्हें गरीब और अशिक्षित बताते हुए मोहरा बनाए जाने की बात कही। 
 
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संजय दत्त को जेल जाना होगा। उम्रकैद पाए 20 में से 17 लोगों की सजा बरकरार रखी गई है। एचआईवी पीड़ित एक महिला को बरी किया गया है और एक की सजा 10 साल में बदली है, उम्रकैद पाए एक कैदी की मौत हो चुकी है। इस तरह कुल 27 लोगों को उम्रकैद की सजा मिली है। जस्टिस पी. सदाशिवम और जस्टिस बी. एस. चौहान की बेंच ने फैसला सुनाने से पहले कहा था कि टाडा कोर्ट ने कानून सम्मत प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन किया है, इसलिए प्रक्रिया के आधार पर सजा को चुनौती दी गईं याचिकाएं स्वीकार नहीं होंगी। बेंच ने उन्हीं याचिकाओं पर फैसला दिया जिनमें सबूत के आधार पर चुनौती दी गई थी।
 

मस्जिदें नहीं बिकती

भाई  गुड गवर्नेंस अगर मुस्लिम अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रमों में भी होती तो वक्फ सम्पत्तियों का रख रखाव सही हो जाता ...वक्फ के कब्जेदारों को हटा दिया जाता ..........मस्जिदें नहीं बिकती ...वक्फ बोर्ड कार्यालय में तुरंत काम होते ....वक्फ सम्पत्तियों के सर्वे की अधिसूचना जारी हो जाती ..जिलेवार वक्फ सम्पत्तियों का रजिस्टर और विवादित सम्पत्तियों का रजिस्टर जिला कमेटियों का तय्यार हो जाता ...मदरसा बोर्ड में वर्ष 2012 में स्वीक्रत बजट के दो हजार पेराटीचर्स नियुक्त हो जाते ....इनके वेतन वक्त पर मिलते सभी मदरसों में पढाई होती .....पेराटीचर्स नियुक्ति में खुला भ्रष्टाचार नहीं होता ...मदरसों का हाल बहतरीन होता ....अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के कायाल्यों में जिलेवार दुर्दशा नहीं होती स्वीक्रत बजट के तहत सम्भाग स्तर पर उप निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण की नियुक्ति होती लेकिन भाई गुड गवर्नेंस हमारे नियुक्त नेताओं में नहीं है इसलियें तो यह कोम  बेड गवर्नेंस का अज़ाब झेल रही है .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

आज 21 मार्च को ब्रज बरसाना की मशहूर लट्ठमार होली है, आइये भारतकोश के सौजन्य से इसके बारे में जानते हैं।

आज 21 मार्च को ब्रज बरसाना की मशहूर लट्ठमार होली है, आइये भारतकोश के सौजन्य से इसके बारे में जानते हैं।
लट्ठमार होली ब्रज क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध त्योहार है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। मथुरा (उत्तर प्रदेश) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुषों (गोप) जो राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके उन्‍हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की गोपियाँ, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।उत्तर प्रदेश में वृन्दावन और मथुरा की होली का अपना ही महत्त्व है। इस त्योहार को किसानों द्वारा फसल काटने के उत्सव एक रूप में भी मनाया जाता है। गेहूँ की बालियों को आग में रख कर भूना जाता है और फिर उसे खाते है। होली की अग्नि जलने के पश्चात बची राख को रोग प्रतिरोधक भी माना जाता है। इन सब के अलावा उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृन्दावन क्षेत्रों की होली तो विश्वप्रसिद्ध है। मथुरा में बरसाने की होली प्रसिद्ध है। बरसाना राधा जी का गाँव है जो मथुरा शहर से क़रीब 42 किमी अन्दर है। यहाँ एक अनोखी होली खेली जाती है जिसका नाम है लट्ठमार होली। बरसाने में ऐसी परंपरा हैं कि श्री कृष्ण के गाँव नंदगाँव के पुरुष बरसाने में घुसने और राधा जी के मंदिर में ध्वज फहराने की कोशिश करते है और बरसाने की महिलाएं उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं और डंडों से पीटती हैं और अगर कोई मर्द पकड़ जाये तो उसे महिलाओं की तरह श्रृंगार करना होता है और सब के सम्मुख नृत्य करना पड़ता है, फिर इसके अगले दिन बरसाने के पुरुष नंदगाँव जा कर वहाँ की महिलाओं पर रंग डालने की कोशिश करते हैं। यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वो है वृन्दावन की होली यहाँ बाँके बिहारी मंदिर की होली और 'गुलाल कुंद की होली' बहुत महत्त्वपूर्ण है। वृन्दावन की होली में पूरा समां प्यार की ख़ुशी से सुगन्धित हो उठता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि होली पर रंग खेलने की परंपरा राधाजी व कृष्ण जी द्वारा ही शुरू की गई थी
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