। भगवान श्रीहरि पुष्प, गन्ध, धूप, दीप और नैवेद्य के समर्पण से ही प्रसन्न हो जाते हैं। पूजन में मालती पुष्प उत्तम है। तमाल पुष्प भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला है। मल्लिका यानि मोतिया समस्त पापों का नाश करती है तथा यूथिका यानि जूही विष्णुलोक प्रदान करने वाली है। अतिमुक्तक यानि मोंगरी और लोध्रपुष्प विष्णुलोक की प्राप्ति कराने वाले हैं। करवीर-कुसुमों से पूजन करने वाला बैकुण्ठ को प्राप्त होता है तथा जपा पुष्पों से मनुष्य पुण्य उपलब्ध कराता है।
पावन्ती, कुब्जक और तगर पुष्पों से पूजन करने वाला विष्णुलोक का अधिकारी होता है। कर्णिकार यानि कनेर द्वारा पूजन करने से बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है एवं कुरुण्ट यानि पीली कटसरैया के पुष्पों से किया हुआ पूजन पापों का नाश करने वाला होता है। कमल, कुन्द एवं केतकी के पुष्पों से परमगति की प्राप्ति होती है। बाणपुष्प, बर्बर पुष्प और कृष्ण तुलसी के पत्तों से पूजन करने वाला श्रीहरि के लोक में जाता है। अशोक, तिलक तथा आटरूष के फूलों का पूजन में उपयोग करने से मनुष्य मोक्ष का भागी होता है। तमालदल तथा भृगराज कुसुमों से पूजन करने वाला विष्णुलोक में निवास करता है। कृष्ण तुलसी, शुक्ल तुलसी, कल्हार, उत्पल, पद्म एवं कोकनद- ये पुष्प पुण्यप्रद माने गये हैं।
भगवान श्रीहरि सौ कमलों की माला समर्पण करने से परम प्रसन्न होते हैं। नीप, अजफ्रन, कदम्ब, सुगन्धित बकुल यानि मौलसिरी, किंशुक यानि पलाश, मुनि यानि अगस्त्यपुष्प, गोकर्ण, नागकर्ण यानि रक्त एरण्ड, संभ्यापुष्पी यानि चमेली, बिल्वातक, रंजनी एवं केतकी तथा कूष्माण्ड, ग्रामकक्रटी, कुश, कास, सरपत, विभीतक, मरुआ तथा अन्य सुगन्धित पत्रों द्वारा भक्तिपूर्वक पूजन करने से भगवान श्रीहरि प्रसन्न हो जाते हैं। इनसे पूजन करने वाले के पाप नाश होकर उसको भोग मोक्ष की प्राप्ति होती है। लक्ष स्वर्णभार से पुष्प उत्तम है, पुष्पमाला उससे भी करोड़गुनी श्रेष्ठ है, अपने तथा दूसरों के उद्यान के पुष्पों की अपेक्षा वन्य पुष्पों का तिगुना फल माना गया है।
झड़कर गिरे एवं मसले हुए पुष्पों से श्रीहरि का पूजन न करें। इसी प्रकार कचनार, धत्तूर, गिरिकर्णिका यानि सफेद किणही, कुटज, शाल्मलि यानि सेमर एवं शिरीष यानि सिरस वृक्ष के पुष्पों से भी श्रीविष्णु की अर्चना ना करें। इससे पूजा करने वाले का नरक आदि में पतन होता है। विष्णु भगवान का सुगन्धित रक्तकमल तथा नीलकमल कुसुमों से पूजन होता है। भगवान शिव का आक, मदार, धत्तूर पुष्पों से पूजन किया जाता है। किंतु कटज, कक्रटी एवं केतकी यानि केवड़े के फूल भगवान शिव पर नहीं चढ़ाने चाहिएं। कूष्माण्ड एवं निम्ब के पुष्प तथा अन्य गन्धहीन पुष्प पैशाच माने गये हैं।
अहिंसा, इन्द्रियसंयम, क्षमा, ज्ञान, दया एवं स्वाध्याय आदि आठ भावपुष्पों से देवताओं का यजन करके मनुष्य भोग मोक्ष का भागी होता है। इनमें अहिंसा प्रथम पुष्प है, इन्द्रिय निग्रह द्वितीय पुष्प है, सम्पूर्ण भूत प्राणियों पर दा तृतीय पुष्प है, क्षमा चौथा विशिष्ट पुष्प है। इसी प्रकार क्रमशः शम, तम एवं ध्यान पांचवें, छठे और सातवें पुष्प हैं।
सत्य आठवां पुष्प है। इनसे पूजित होने पर भगवान केशव प्रसन्न हो जाते हैं। इन आठ भावपुष्पों से पूजा करने पर ही भगवान केशव संतुष्ट होते हैं। अन्य पुष्प तो पूजा के बाह्य उपकरण हैं, श्रीविष्णु तो भक्ति एवं दया से समन्वित भाव पुष्पों द्वारा पूजित होने पर परितुष्ट होते हैं। जल वारुण पुष्प है। घृत, दुग्ध, दधि सौम्य पुष्प हैं। अन्नादि प्राजापत्य पुष्प हैं, धूप-दीप आग्नेय पुष्प हैं, फल पुष्पादि पंचम वानस्पत्य पुष्प हैं, कुशमूल आदि पार्थिव पुष्प हैं, गंध चंदन वायव्य कुसुम हैं, श्रद्धादि भाव वैष्णव प्रसून हैं। ये आठ पुष्पिकाएं हैं, जो सब कुछ देने वाली हैं। आसन, मूर्ति निर्माण, पंचांगन्यास तथा अष्टपुष्पिकाएं- ये विष्णुरूप हैं। भगवान श्रीहरि पूर्वोक्त अष्टपुष्पिका द्वारा पूजन करने से प्रसन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त भगवान श्रीविष्णु का ‘वासुदेव’ आदि नामों से एवं श्री शिव का ‘ईशान’ आदि नाम पुष्पों से भी पूजन किया जाता है।