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26 मार्च 2013

आत्मवान बनो: वेद

आत्मवान बनो: वेद  
सत्, चित्त और आनंद
 
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'


शरीर, इंद्रियाँ, मन, अहंकार, अंत:करण ये सब अविद्या के कार्य हैं अर्थात भौतिक हैं और ये सब जीवात्मा को घेरे रहते हैं तथा उसे सीमित या व्यक्तिनिष्ठ जीव बनाते हैं। साक्षित्व से आत्मा शरीर और मन से उपजने वाली वस्तु और विचार से मुक्त हो जाता है। साक्षित्व ही वेदांत का मार्ग है। इसीलिए वेद और वेदांत कहते हैं कि आत्मवान बनो।

श्लोक : ''यदाप्नोति यदादते यच्चात्ति विषयानिह।
यच्चास्य संततो भावस्तस्मादात्मेति कीर्त्यते।।-कठ उप. (शंकर भाष्य)
भावार्थ : आत्मा जगत के सरे पदार्थों में व्याप्त है (आप्नोति), सारे पदार्थों को अपने में ग्रहण कर लेता है (आदत्ते), सारे पदार्थों का अनुभव करता है (अत्ति) और इसकी सत्ता निरंतर बनी रहती है, इसलिए इसे आत्मा कहा जाता है।

आत्मा को चेतन, जीवात्मा, पुरुष, ब्रह्म स्वरूप, साक्षित्व आदि अनेक नामों से जाना जाता जाता है। आत्म तत्व स्वत: सिद्ध और स्वप्रकाश है। प्रत्येक मनुष्‍य को अपनी आत्मा अर्थात खुद के होने का अनुभव होता है।

मैं हूँ' यह ज्ञान होना ही आत्मा के होने को स्वत: सिद्ध करता है। यह संशय या आलोचना का विषय नहीं है और न ही आप अपने 'होने' को 'नहीं होना' सिद्ध कर सकते हो क्योंकि जो सिद्ध करता है वह स्वयं आत्मा है। अर्थात स्वयं के होने का बोध ही आत्मा है और जैसे-जैसे यह बोध गहराता है वह ज्ञानी से बढ़कर आत्मवान हो जाता है।

साक्षीभाव : शरीर, इंद्रियाँ, मन, अहंकार, बुद्धि और अंत:करण यह सब प्रकृति के कार्य या हिस्से हैं और भौतिक हैं, नश्वर हैं। यह सब आत्मा को घेरे रहते हैं, इसी से आत्मा सीमित और व्यक्तिनिष्ठ है। इस प्रकृति तत्व के घेरे की वजह से ही द्वंद्व, दुविधा और कष्‍ट तथा भटकाव है। किंतु इसमें जो शुद्ध चैतन्य प्रकाशित हो रहा है वही आत्मा है। जो पुरुष साक्षीभाव में स्थित है तथा जिसे अपने होने का सघन बोध है, वह धीरे-धीरे आत्मज्ञान प्राप्त कर मुक्त होने लगता है।

प्राणवानों में श्रेष्ठ ‍बुद्धिमान होता है और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ आत्मवान होता है और जो ब्रह्म (ईश्वर) को जानने में उत्सुक है वह ब्राह्मण कहा जाता है, लेकिन जिसने ब्रह्म को जान ही लिया, उसे ब्रह्मज्ञानी कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है

आत्मा का स्वरूप : उपनिषदों में आत्मा के संबंध में विशद विवेचन दिया गया है। आत्मा के स्वरूप का विवेचन भी विशद है। वेदांत में आत्म चैतन्य के उत्तरोत्तर उत्कृष्ट चार स्तर निर्दिष्ट हैं- जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय या शुद्ध चैतन्य। आत्मा अपने मूल स्वरूप में शुद्ध चैतन्य है।

शुद्ध चैतन्य का अर्थ की उक्त स्थिति में वह न ो जाग्रत है, न स्वप्न में है और न ही सु‍षुप्ति में। तीनों ही स्थितियों से परे पूर्ण जागरण या शुद्ध चैतन्य हो जाता ही आत्मा का मूल स्वरूप है।

आत्मा का ज्ञान : आत्मा के संबंध में उपनिषदों में गहन गंभीर विवेचन दिया गया है। आत्मा के पदार्थ से बद्ध होने और मुक्ति होकर पुन: बद्ध होने का विवरण और उसकी पदार्थ से पूर्ण ‍मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है। आत्मवान बनने का अर्थ है कि पदार्थ के बगैर इस अस्तित्व में स्वयं के वजूद को कायम करना। यही सनातन धर्म का लक्ष्य है। यही मोक्ष ज्ञान है।

भक्त प्रहलाद की विष्णु-भक्ति


एक बार असुरराज हिरण्यकशिपु विजय प्राप्ति के लिए तपस्या में लीन था। मौका देखकर देवताओं ने उसके राज्य पर कब्जा कर लिया। उसकी गर्भवती पत्नी को ब्रह्मर्षि नारद अपने आश्रम में ले आए। वे उसे प्रतिदिन धर्म और विष्णु महिमा के बारे में बताते। यह ज्ञान गर्भ में पल रहे पुत्र प्रहलाद ने भी प्राप्त किया। बाद में असुरराज ने बह्मा के वरदान से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली तो रानी उसके पास आ गई। वहाँ प्रहलाद का जन्म हुआ।

बाल्यावस्था में पहुँचकर प्रहलाद ने विष्णु-भक्ति शुरू कर दी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह विष्णु का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया।

उसे विष दिया गया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन ईश कृपा से प्रहलाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। तब हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाकर कहा कि तुम प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ, जिससे वह जलकर भस्म हो जाए।


होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि तब तक कभी हानि नहीं पहुँचाएगी, जब तक कि वह किसी सद्वृत्ति वाले मानव का अहित करने की न सोचे। अपने भाई की बात को मानकर होलिका भतीजे प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई।

उसका अहित करने के प्रयास में होलिका तो स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद हँसते हुए अग्नि से बाहर आ गया। इसलिहोलपर्मनातसमवास्तविक भाव को ध्यान में रखकहोलदहकरें

इसके लिए फिचाहविगवर्षोबुरे अनुभवों और असफलताओं को एक कागज पर लिखकर अग्नि को समर्पित कर दें। अपनमेरहनकारात्मभावोहोलदहमेडादेंतभसकारात्मकतसोआगबढ़तहुप्रहलातरकृपपात्जाएँगे

सर्न में वैज्ञानिक ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजने में जुटे हैं


ईश्वर कण
सर्न में वैज्ञानिक ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजने में जुटे हैं
 प्रयोगशाला में लार्ज हैल्ड्रोन कोलाइडर परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि जुलाई 2012 में जिस कण की रुपरेखा पेश की गई, उसी के हिग्स बोसोन यानी  होने की संभावना बढ़ती जा रही है.
लंबे समय से हिग्स को ही वो माध्यम समझा जाता रहा है जिसके कारण कणों को भार मिलता है. हिग्स दशकों से उन वैज्ञानिकों की तवज्जो का केंद्र रहा है जो  को खोज रहे हैं.
हालांकि इस बात को लेकर अभी कुछ अनिश्चित्ता है कि क्या ये तत्व वास्तव में एक हिग्स है और अगर है तो कौन से किस्म का.
इटली में मैरिओंड बैठक के नतीजों से पता चलता है कि इस कण का 'घुमाव' हिग्स के अनुरूप ही दिखता है.

'हिग्स जैसा'

हिग्स को खोजने के लिए हो रहे दो प्रयोगों अटलस और सीएमएस की टीमों ने न सिर्फ इस कण के अस्तित्व बल्कि इसकी प्रकृति को समझने के लिए जुलाई में जो सामग्री उपलब्ध थी, उससे भी से ढाई गुना ज्यादा जानकारी का विश्लेषण किया.
इस दौरान ये निष्कर्ष निकला कि ये कण बोसोन परिवार का ही है, लेकिन वैज्ञानिकों ने जुलाई के बाद से बेहद सावधानी का परिचय देते हुए इसे “हिग्स जैसा” ही कहा है.
सूक्ष्माणुओं के इस समूह की पहचान कुछ खास गुण हैं जिनमें “घुमाव” और “एकरूपता” भी शामिल है. और नए कण के इन गुणों का स्पष्टता से निर्धारण ये तय करेगा कि क्या यही हिग्स है जिसकी लंबे समय से खोज की जा रही थी.
"ये भौतिकी में नई कहानी की शुरुआत है. 4 जुलाई के बाद से भौतिकी बदल गई है. हमारे सामने को जो अस्पष्ट सा सवाल है, वो क्या वहां कुछ और है."
टोनी वाइडबर्ग, ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी
इतना ही नहीं, सैद्धांतिक रूप से हिग्स के अलग अलग प्रकार अस्तित्व में हो सकते हैं.

'बदलती भौतिकी'

इसका सरलतम स्वरूप वैज्ञानिक सिद्धांतों को मजबूत करेगा और निश्चित तौर पर कण के अधिक 'आकर्षक' संस्करण विज्ञान में नए रास्ते खोलेंगे.
ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में भौतिकशास्त्री और एटलस प्रयोग से जुड़े टोनी वाइडबर्ग कहते हैं, “ये भौतिकी में नई कहानी की शुरुआत है. 4 जुलाई के बाद से भौतिकी बदल गई है. हमारे सामने को जो अस्पष्ट सा सवाल है, वो है क्या वहां कुछ और है.”
सीएमएस के प्रवक्ता जो इंसादेला का कहना है, “2012 के पूरे आंकड़ों के साथ शुरुआती नतीजे शानदार हैं और मेरे लिए ये स्पष्ट है कि हमारा वास्ता हिग्स बोसोन से पड़ रहा है, हालांकि ये सझमने के लिए हमें लंबा सफर तय करना होगा कि ये किस तरह का हिग्स बोसोन है.”
वैसे वैज्ञानिक मानते हैं कि इस बारे में पड़ताल करने के लिए अभी और जानकारी की जरूरत होगी.

आपके ख़ून का आँखों देखा हाल बताएगा आपका मोबाइल



इस उपकरण के जरिए पांच तरह के ब्लड टेस्ट का रिपोर्ट मिल पाएगा.
मोबाइल फोन के बिना मौजूदा जीवन शैली की कल्पना भी नहीं की जा सकती. लिहाजा शोध वैज्ञानिक भी ऐसी तकनीकों को ईज़ाद करने लगे हैं जिसका इस्तेमाल मोबाइल फोन से संभव हो.
अब वैज्ञानिकों ने ब्लड टेस्ट के लिए ऐसा उपकरण विकसित किया जिसे आपको साथ लेकर चलने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि ये आपकी त्वचा के अंदर हमेशा आपके साथ ही मौजूद होगा. और आपकी रिपोर्ट मोबाइल फोन पर देता रहेगा.
"इसके इस्तेमाल से आपको पल पल की जानकारी मिलेगी. यह आपके ब्लड टेस्ट पर लगातार नजर रखेगा. इसके इस्तेमाल से आपको रोजाना या साप्ताहिक जांच की जरूरत नहीं पड़ेगी."
प्रोफेसर गिओवेनी द मिचेली, इकोल पॉलिटेक्नीक, फ़ेडरल डी लुज़ाने
स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने वायरलेस प्रोटोटाइप नामक इस उपकरण को विकसित किया है. करीब आधे इंच (14 मिलीमीटर) लंबा और 2 मिली मीटर चौड़ा ये उपकरण एक साथ पांच तरह के ब्लड टेस्ट करने में सक्षम है.

पांच टेस्ट संभव

इसके जरिए कैलेस्ट्रोल, डायबिटीज की मात्रा का पता लगाया जा सकता है. इन मरीजों के लिए ये उपकरण काफी कारगर साबित हो सकता है.
इसके अलावा उपकरण कैंसर मरीजों के लिए बेहद उपयोगी है. इससे कीमियोथेरेपी जैसे इलाज के दौरान शरीर पर पड़ने वाले असर की जानकारी भी मिलेगी.
ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट ब्लूटूथ की तकनीक के माध्यम से डॉक्टर या मरीजों के मोबाइल फोन पर आ जाएगी.
इसे सहजता से त्वचा के भीतर स्थापित किया जा सकता है.
इस उपकरण को सुई के माध्यम से पेट, पांव या बांह की त्वचा के अंदर स्थापित किया जा सकता है. एक बार स्थापित किए जाने के बाद उपकरण वहां महीनों तक काम करता रहेगा. जरूरत पड़ने पर उसे निकाला भी जा सकता है या फिर दूसरी जगह स्थापित किया जा सकता है.
इस तरह के उपकरण को विकसित करने की कोशिश दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी लंबे समय से चल रही थी. लेकिन कामयाबी इटली के शोध वैज्ञानिकों को मिली है.
फेडरल डी लुज़ाने के इकोल पॉलिटेक्नीक के प्रोफेसर गिओवेनी द मिचेली और शोध वैज्ञानिक सांद्रो कारारा की टीम ने इस उपकरण को विकसित किया है. शोध वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि एक साथ इतने तरह के टेस्ट करने वाला उपकरण अपने आप में अनोखा है.

लेकिन करना होगा इंतज़ार

प्रोफेसर गिओवेनी द मिचेली ने कहा, “इसके इस्तेमाल से आपको पल पल की जानकारी मिलेगी. यह आपके ब्लड टेस्ट पर लगातार नजर रखेगा. इसके इस्तेमाल से आपको रोजाना या साप्ताहिक जांच की जरूरत नहीं पड़ेगी.”
शोध वैज्ञानिकों के मुताबिक इस उपकरण का सफल प्रयोग अभी तक प्रयोगशाला में जानवरों पर ही हुआ है. अब इसका इस्तेमाल उन मरीजों पर करने की कोशिश की जा रही है जिन्हें नियमित अंतराल पर ब्लड टेस्ट की कराना पड़ता है.
इंसानों पर होने वाले प्रयोग के बारे में रिपोर्ट आने वाले दिनों में यूरोपीय इलेक्ट्रानिक्स कांफ्रेंस में जारी होगी. हालांकि इस उपकरण को विकसित करने वालों को यकीन है कि चार साल के बाद यह आम लोगों के लिए भी उपलब्ध होगा.

क्या आप लिखेंगे किसी अजनबी को प्रेम पत्र?



अजनबियों को प्रेम पत्र लिखने वाली लड़की
“तुम मेरे लिए बहुत अहमियत रखते हो. मैं बता नहीं सकती हूं, लेकिन तुम मेरे लिए बहुत अहम हो. और तुम, तुम बहुत ही अच्छे हो.”
इस तरह की बातें आप अजनबियों के लिए नहीं लिखते हैं.
लेकिन जब हन्ना ब्रेंशनर स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद न्यूयॉर्क शहर जाकर वहां रहने लगीं तो वो चिंतित और परेशान रहने लगीं. उन्हें लगा कि आसपास के लोगों को उनकी कोई कद्र या जरूरत नहीं है.

अजनबी के लिए प्रेम पत्र

तुम और मैं एक दूसरे को नहीं जानते हैं. हम कभी ना मिल हों या एक साथ कभी हंसी मजाक न किया हो. हो सकता है कि हमने कभी एक साथ डांस न किया हो और न ही आधी रात को एक साथ उबासी ली हो. लेकिन इन सब बातों की मेरे लिए कोई अहमियत नहीं है. ये बहुत छोटी और बेमतलब बातें हैं. बल्कि मैं तुमसे ये कहना चाहती हूं कि तुम बहुत प्यारे हो. तुम बहुत कीमती हो. तुम्हारे हाथ बड़ी बड़ी चीजों के लिए बने हैं.

तुम शायद सोचोंगे कि मै पागल हूं. हो सकता है कि तुम ये खत हाथ में लिए बैठे हो और मेरे बारे में सोच रहे हो, लेकिन तुम नहीं जान सकते.. तुम मुझे नहीं जानते हो.. तुम मुझे रत्ती भर भी नहीं जानते हो. हां. तुम्हारी बात सही है. लेकिन मैं सब कुछ जानती हूं. मैं सोचती थी कि मैं इसके काबिल नहीं हूं. मैं जानती हूं कि कभी खुद को प्यार करना और अपनी कद्र करना मेरे लिए कितना मुश्किल था. मेरे लिए खुद को आइने में देख पाना भी मुश्किल हो जाता था. और मुझे पता है कि मैं अकेली नहीं हूं जिसे सहारे और समर्थन की जरूरत पड़ती है. मैं जानना चाहती हूं कि कहीं तो कोई होगा जिसे मेरी परवाह हो.

तुम मेरे लिए बहुत अहमियत रखते हो. मैं बता नहीं सकती हूं, लेकिन तुम मेरे लिए बहुत अहम हो. और तुम, तुम बहुत ही अच्छे हो. तुम और तुम्हारे सारे हिस्से.
लव,
एक लड़की जो अपना रास्ता तलाशने की कोशिश कर रही है
फिर उन्होंने अजनबी लोगों को प्रेम पत्र लिखने शुरू किए जिन्हें वो शहर के अलग अलग हिस्सों में छोड़ती थीं. पहला पत्र उन्होंने एक ट्रेन में छोड़ा जिस पर लिखा था, “अगर आपको ये मिलता है, तो ये आपके लिए ही है.”
इसके बाद उन्होंने लाइब्रेरी, कैफे जैसी कई जगहों पर ऐसे प्रेम पत्र छोड़े.

अकेलेपन से राहत

उन्होंने बीबीसी को बताया, “मैंने महसूस किया कि मेरी उदासी और अकेलापन दूर हो गया. मुझे कुछ ऐसा मिल गया था जिसने मेरा ध्यान अपने आप पर से हटा दिया था.”
हन्ना और उनकी 'मोर लव लेटर्स' मुहिम कुछ लोगों को बकवास लग सकती है लेकिन शोध बताते हैं कि दूसरों के प्रति दयालु होना या अच्छे ख्याल रखना दरअसल आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है.
'इमोशन' पत्रिका में छपा एक अध्ययन कहता है कि दयालुता सामाजिक तौर पर अलग थलग पड़े या तनावग्रस्त लोगों को सकारात्मक नजरिया देने में मदद कर सकती है.
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया की डॉ. लिन एल्डेन और डॉ. जेनिफर ट्रू ने चार हफ्तों तक उदासी और अकेलेपन के शिकार कुछ लोगों से हफ्ते में दो दिन दयालुता और भलाई के काम करने को कहा.

छोटे काम, बड़ा असर

डॉ. एल्डेन कहती हैं, “कभी कभी लोग किसी को एक छोटा का तोहफा देते हैं, किसी बीमार से मिलने जाते हैं या कभी कभी बस ड्राइवर को शुक्रिया बोलते हैं. कहने को तो ये सब छोटे काम हैं, लेकिन इनका असर बड़ा होता है.”
एल्डेन के अध्ययन में चार हफ्तों तक हिस्सा लेने के बाद उन लोगों ने न सिर्फ अपने आप में बेहतरी महसूस की, बल्कि उनमें संबंधों को लेकर संतोष भी पहले से ज्यादा पाया गया.
वैसे लंदन के सेंटर फॉर एंग्जाइटी डिसऑर्डर्स और ट्रोमा के निदेशक डॉ. निक ग्रे को शुरुआत में इस विचार पर संदेह था कि भलाई के काम करने से चिंता और तनाव से जूझ रहे इन लोगों पर कोई चिकित्सीय असर होगा.
वो कहते हैं, “मैंने शोधपत्र नहीं देखा था. इसलिए मुझे इसका शीर्षक देख कर कुछ शक हुआ था. लेकिन ये अच्छा शोधपत्र है और इसे एक सम्मानित टीम ने तैयार किया है.”
एल्डेन मानती हैं कि इस तरह की परेशानियों से जूझ रहे लोगों के लंबे इलाज में दयालुता एक शुरुआती कदम हो सकता है.

होर्डिंग जो हवा को पानी में बदल डालता है!



पेरु की राजधानी लीमा की दहलीज़ पर एक होर्डिंग लगा है जो लोगों की पानी की ज़रूरतों को पूरा कर रहा है.
अब आप ये सोच रहे होंगे कि होर्डिंग भला लोगों को पानी कैसे पिला सकता है?
वो ऐसे कि ये होर्डिंग वातावरण में मौजूद नमी का इस्तेमाल कर साफ पानी पैदा करता है.
लीमा में युनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी (यूटेक) के कुछ शोधकर्ता और विज्ञापन एजेंसी ‘मायो पेरु ड्राफ्ट एफसीबी’ ने मिल कर ये नायाब होर्डिंग तैयार किया है.
इस होर्डिंग पर लिखा है – “ये वो होर्डिंग है जो हवा से पानी पैदा करता है.”
इस होर्डिंग ने पेरु के लोगों को सकते में डाल दिया है और ये वाकई फायदेमंद भी साबित हो रहा है.
इस होर्डिंग के ज़रिए हर दिन 96 लीटर पानी पैदा किया जा रहा है. हवा में नमी को कैद कर ये होर्डिंग अब तक 9,000 लीटर साफ पानी बना चुका है.

मशहूर हुआ होर्डिंग

"यहां पानी की यूं तो कमी नहीं है. समुद्र में बहुत सा पानी है, लेकिन वो पीने लायक नहीं है. समुद्र के पानी को पीने लायक बनाने के लिए बड़ी धनराशि की भी ज़रूरत पड़ती है. लेकिन इस बिलबोर्ड में इतना खर्च नहीं आता और ये बड़ी आसानी से हवा की नमी को पानी में परिवर्तित कर देता है"
यूटेक की प्रवक्ता जेसिका रुआस
यूटेक का कहना है कि वो कल्पना को सच में तब्दील करना चाहते थे और इस होर्डिंग की सफलता से ये साबित होता है कि तकनीक की मदद से कुछ भी असंभव नहीं है.
पेरु में बहुत कम बारिश होती है, लेकिन यहा कि हवा में करीब 98 प्रतिशत नमी मौजूद होती है.
यूटेक की प्रवक्ता जेसिका रुआस का कहना है, “यहां पानी की यूं तो कमी नहीं है. समुद्र में बहुत सा पानी है, लेकिन वो पीने लायक नहीं है. समुद्र के पानी को पीने लायक बनाने के लिए बड़ी धनराशि की भी ज़रूरत पड़ती है. लेकिन इस होर्डिंग में इतना खर्च नहीं आता और ये बड़ी आसानी से हवा की नमी को पानी में परिवर्तित कर देता है.”
रुआस का मानना है कि ये होर्डिंग पानी की किल्लत की समस्या का सही समाधान साबित हो सकता है.
इस होर्डिंग के भीतर पांच ऐसे यंत्र होते हैं जो हवा की नमी को कन्डेंसर और फिल्टर की मदद से पानी में परिवर्तित कर देते हैं.
हवा से बना ये पानी होर्डिंग के ऊपर बनी टंकी में जमा हो जाता है. होर्डिंग के नीचे एक नल लगा है, जहां से आम आदमी पानी पी सकते हैं.
ज़ाहिर है कि ये होर्डिंग अब इतना मशहूर हो गया है कि आसपास के लोग खास इसे देखने और यहां का पानी पीने चले आते हैं.
इस पूरे सेट-अप को बनाने में करीब 1,200 डॉलर का खर्च आया है.

ड्रेन पाइप से कृत्रिम टांग बनाने वाला पाकिस्तानी डॉक्टर



डॉक्टर विकार कुरैशी
डॉक्टर विक़ार कुरैशी के बनाए कृत्रिम टांगों को सीरिया में तक़रीबन 100 लोगों को लगाया गया है.
पाकिस्तान और सीरिया के शरणार्थी कैंपों में ऐसे बहुत सारे शर्णार्थी हैं जो लड़ाई के दौरान अपने शरीर का कोई न कोई अंग गंवा चुके हैं. ऐसे लोगों के लिए पाकिस्तानी मूल के क्लिक करें प्रोस्थेटिक सर्जन डॉक्टर विकार कुरैशी भगवान का दर्जा रखते हैं.
दुनिया का सबसे सस्ता बनाने के लिए डॉक्टर कुरैशी को बहुत सराहा गया है.
डॉक्टर कुरैशी ड्रेन पाइप या निकास नली के सहारे लोगों के कटे हुए अंगों में लगाने के लिए  बनाते हैं.
वे इस ड्रेन पाइप से बनाकर कई लोगों की मदद कर चुके हैं.
साल 2005 में जब पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भूकंप आया था तब वहां कई लोग अपने शरीर का कोई न कोई अंग गंवा बैठे और परेशानी का सामना कर रहे थे.

कश्मीर में भूकंप

"वहां बेहद ख़राब हालात थे, संचार व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प हो चुकी थी, यातायात की कोई सुविधा नहीं थी, कोई सरकारी मदद नहीं थी ऐसे में हमने खुद अपने खर्चे पर टेंटों में चिकित्सा शिविर लगाया और धीरे-धीरे काम करने लगे"
डॉक्टर विकार कुरैशी
इस हादसे के बाद डॉक्टर कुरैशी ने वापिस पाकिस्तान जाने का फैसला किया. वहाँ पहुंच कर उन्होंने काफी कठिन हालात में पीड़ितों के लिए काम किया.
ख़ासकर मलबे में दबे हुए लोगों की मदद करना डॉक्टर कुरैशी के लिए बड़ी चुनौती थी.
इनमें से बहुत से लोग ऐसे थे जिनकी जान बचाने के लिए डॉक्टर कुरैशी को उनके पैर काटने पड़ गए, क्योंकि वे मलबे में दबकर बुरी तरह से कुचल गए थे.
लंदन में एक प्रोस्थेटिक सर्जन के तौर पर वे अक्सर अपने मरीज़ों को लगाया करते थे.
लेकिन पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के इस संकटग्रस्त इलाके में ख़राब मौसम की वजह से उनके पास जरूरी सुविधाओं की भारी कमी थी.

ड्रेन पाइप से कृत्रिम अंग

कृत्रिम अंग
दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जिन्हें कृत्रिम अंगों की जरूरत पड़ती है.
इन परिस्थितियों में डॉक्टर कुरैशी ने एक मु्फ्त अस्पताल बनाने की सोची जिससे ग़रीब और मजबूर मरीज़ो को सस्ते में इलाज मुहैया कराया जा सके.
इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन अपने मरीज़ों के लिए वे कृत्रिम अंगों का निर्माण प्लास्टिक की निकास नली या ड्रेन पाईप से करते हैं.
सबसे पहले उन्होंने ये सेवा पाकिस्तान के ज़रुरतमंदों को दी. बाद में श्रीलंका और अब सीरिया व तुर्की के सीमावर्ती इलाकों में रह रहे लोगों के लिए डॉक्टर कुरैशी ने काम किया.
बीबीसी से बातचीत करते हुए डॉ कुरैशी ने कश्मीर में पाए अपने अनुभव को बाँटा.
उन्होंने बताया, ''वहां बेहद ख़राब हालात थे, संचार व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प हो चुकी थी, यातायात की कोई सुविधा नहीं थी, कोई सरकारी मदद नहीं थी ऐसे में हमने खुद अपने खर्चे पर टेंटों में चिकित्सा शिविर लगाया और धीरे-धीरे काम करने लगे.''

जयपुर फुट से सहयोग

"उस भूकंप के दौरान एक 14-15 साल के बच्चे के उपर करीब एक टन की लकड़ी का तख्त़ा आ गिरा था, जो लाख कोशिश के बाद भी हटाया नहीं जा सका. जब ये बच्चा कोमा में जाने लगा तब उसके लकड़हारे पिता ने उसके बेटे के कहने पर उसके पाँव को काट दिया और बच्चे की जान बच गई"
डॉक्टर विकार कुरैशी
डॉक्टर कुरैशी कहते हैं, ''हमने पीड़ितों का कई तरह से इलाज किया. उनकी टूटी हड्डियां ठीक की. हड्डियों को जोड़ने के लिए प्लेट लगाई और दवा भी दी. लेकिन वहां सबसे ज़्यादा ज़रुरत उन्हें कृत्रिम अंग लगाने और उसे दोबारा स्थापित करने की थी.''
डॉ कुरैशी के अनुसार, “उस भूकंप के दौरान एक 14-15 साल के बच्चे के उपर करीब एक टन की लकड़ी का तख्त़ा आ गिरा था, जो लाख कोशिश के बाद भी हटाया नहीं जा सका. जब ये बच्चा कोमा में जाने लगा तब उसके लकड़हारे पिता ने उसके बेटे के कहने पर उसके पाँव को काट दिया और बच्चे की जान बच गई.”
उस भूकंप के बाद सिर्फ कश्मीर में ऐसे 740 लोग थे जिनके कोई ना कोई अंग पूरी तरह से ख़राब हो चुका था.
ये लोग हर उम्र के थे और इन्हें ज़ख्म के साथ छोड़ा नहीं जा सकता था.
ऐसे में डॉक्टर कुरैशी ने भारत के प्रसिद्ध जयपुर फुट से बातचीत की और दो साल के लंबे संघर्ष के बाद अंत में जयपुर फुट बनाने वाले डॉक्टर चिकित्सीय उपकरणों के साथ ट्रक से पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के इस हिस्से में पहुंचे.

सिलसिला जारी रखने की ख्वाहिश

कृत्रिम अंग
फाइल फोटो
डॉक्टर कुरैशी को जयपुर फुट तैयार करने की प्रणाली पर पूरी तरह से भरोसा नहीं था इसलिए उन्होंने एचडीपी या हाई जेनसिटी पॉलीएथलीन के प्रयोग वाली ड्रेन पाइप का इस्तेमाल किया.
ये ड्रेन पाइप दुनिया के हर कोने में हर रंग में आसानी से उपलब्ध हैं, जो त्वचा के रंग से मेल खाती है.
डॉ विकार कुरैशी ना सिर्फ अपने मरीज़ों को कृत्रिम अंग लगाते हैं और उन्हें ये बनाना भी सिखाते हैं ताकि आगे भी ज़रुरत पड़ने पर ये मरीज़ अपनी नाप के कृत्रिम अंग खुद बना लें.
विकार कुरैशी के अनुसार वे नहीं चाहते हैं कि कृत्रिम अंग बनाने का ये तरीका या हुनर उनके साथ ही खत्म हो जाए बल्कि हर ज़रुरतमंद को इसके बारे में इसे बनाना आना चाहिए.

यह मीठा इतना अच्छा क्यों लगता है?


मीठा ऊर्जा ही नहीं देता, ख़ुशी मनाने के काम भी आता है
मिठाइयां, कितने रंगों, आकारों, नामों की हों, वो किसी भी तरह की पैकिंग में आती हों- कैडबरी के चॉकलेट से लल्लू हलवाई की जलेबी तक- खाने के लिए मन ललचा ही जाता है.
अक्सर ये जानते हुए भी कि ठीक नहीं है, एक के बाद एक टुकड़ा मुंह के रास्ते पेट में पहुंच ही जाता है. लेकिन इस मीठे में ऐसा ख़ास है क्या?
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि मीठे की चाह हममें सहज रूप से होती है क्योंकि ये हमारे ज़िंदा रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
हमारे स्वाद तंतु जीवन के लिए महत्वपूर्ण नमक, वसा और शक्कर को पसंद करने लिए विकसित हो गए हैं.

शक्कर है तो है जीवन

जब हम खाना खाते हैं तो सामान्य शक्कर, ग्लूकोज़, आंतों द्वारा सोख कर रक्त में पहुंचा दी जाती है जो समान रूप से शरीर की सारी कोशिकाओं में बांट दी जाती है.
दिमाग के लिए ग्लूकोज़ ख़ासतौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि सौ अरब स्नायु कोशिकाओं, जिन्हें न्यूरॉन्स कहा जाता है, के लिए यही एकमात्र ऊर्जा स्रोत है.
क्योंकि न्यूरॉन्स के पास ग्लूकोज़ के संग्रहण की क्षमता नहीं होती इसलिए इन्हें रक्त द्वारा लगातार इसकी आपूर्ति की ज़रूरत होती है. इसीलिए मधुमेह के रोगी, जिनका रक्त में शक्कर की मात्रा कम होती है, उनके कोमा में जाने की आशंका अधिक होती है.

कितनी तरह की शक्कर

शक्कर के तत्वों का पता लगाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि खाद्य पदार्थों में इसके अलग-अलग नाम दिए जाते हैं. ज़्यादातर के अंत में 'ओज़' आता है.
  • ग्लूकोज़: सामान्य शक्कर, जो खून में घुल जाती है. टेबल शुगर या सकरोज़ का आधा भाग.
  • फ्रूक्टोज़: सामान्य शक्कर जो प्राकृतिक रूप से फलों में पाई जाती है. सकरोज़ का दूसरा आधा भाग.
  • सकरोज़: इसे सामान्यतः टेबल शुगर कहा जाता है. ये प्राकृतिक रूप से गन्ने और चुकंदर में पाई जाती है.
  • लैक्टोज़ः दूध की शक्कर, जो गाय के दूध में 5% से भी कम होती है.
  • मालटोज़ः ग्लूकोज़ के दो जुड़े हुए अणु
  • उच्च फ्रूक्टोज़ मकई शर्बत: जब आधे ग्लूकोज़ को फ्रूक्टोज़ में तब्दील कर दिया जाता है तो उसे मकई शरबत कहते हैं. रासायनिक रूप से ये सरकोज़ के बहुत करीब है.
हाल ही के शोधों से वैज्ञानिकों को पता चला है कि शक्कर का सिर्फ़ स्वाद ही हमारे दिमाग को उछाल दे सकता है.
परीक्षणों से पता चला है कि ऐसे प्रतिभागी जो शक्कर से मीठा किया गया पानी अपने मुंह में घुमाते रहे उन्होंने मानसिक परीक्षणों में उनसे बेहतर प्रदर्शन किया जो कृत्रिम रूप से मीठे किए गए पानी को मुंह में रखे थे.
वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के हालिया शोध से पता चला है कि नवजात मीठे को अन्य स्वादों के बजाय प्राथमिकता देते हैं.
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि मीठे के प्रति बच्चों की प्राथमिकता विकासमूलक है. क्योंकि बीते वक्त में जो बच्चे उच्च कैलोरी वाला ख़ाना पसंद करते थे उनके, खाने की कमी वाले समय में, बचने की संभावना ज़्यादा थीं.
लेकिन आज के वक्त की दिक्कत ये है कि परिष्कृत शक्कर बहुत आसानी से उपलब्ध है और बच्चों में मोटापे की समस्या को बढ़ा रही है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब सलाह देते हैं कि अभिभावक बच्चों को खाने या पीने की मीठी चीज़ें देने से बचें और मीठे को पहली पसंद बनाने से रोकें.

ज़्यादा मीठा बन सकता है ज़हर

शक्कर दरअसल मिजाज़ को ख़ुशनुमा बना सकती है क्योंकि ये शरीर को ‘ख़ुशी का हार्मोन’ सेरोटोनिन जारी करने के लिए प्रेरित करती है.
शक्कर से जो हमें जो त्वरित उछाल मिलता है, वो भी एक वजह है कि उत्सव या किसी उपलब्धि के अवसर पर हम मीठा खाने को तत्पर होते हैं.
लेकिन ज़्यादा मात्रा में खाए गए मीठे को संतुलित करने के लिए शरीर को ज़्यादा इंसुलिन भी छोड़ना पड़ता है. ये प्रक्रिया ‘शुगर-क्रैश’, ज़्यादा मीठा खाने से होने वाली थकान, की ओर धकेलती है जिससे और ज़्यादा मीठा खाने का मन करता है. ये अत्यधिक भोजन का एक चक्र बना सकती है.
सिर्फ़ यही नहीं हमारे शरीर को ये भी पता नहीं चलता कि क्या हमने ख़ास किस्म की शक्कर काफ़ी मात्रा में ले ली है.
शोधकर्ताओं के अनुसार सामान्य शक्कर फ्रूक्टोज़ से मीठे बनाए गए खाद्य और पेय पदार्थ उस तरह भरे होने का भाव पैदा नहीं करते जैसे कि उतनी ही कैलोरी वाले अन्य खाद्य पदार्थ करते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि इंसान प्राकृतिक रूप से मीठे के प्रति आकृष्ट होता है
येल विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि दिमाग़ का वो भाग जो हमें खाने को प्रेरित करता है, ग्लूकोज़ से तो दब जाता है लेकिन फ्रूक्टोज़ से नही.
संबंधित परीक्षण में भाग लेने वाले प्रतिभागियों ने ग्लूकोज़ लेने के बाद फ्रूक्टोज़ के मुकाबले ज़्यादा संतुष्ट महसूस किया.
इन निष्कर्षों को साथ देखें तो ज़्यादा खाने का खतरा बढ़ता हुआ दिखता है.

छुपा हुआ है ख़तरा

ज़्यादातर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में मीठे के लिए सरकोज़ का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें 50% फ्रूक्टोज़ होता है.
शरीर प्राकृतिक रूप से फलों, शहद, दूध में पाए जाने वाली शक्कर और गन्ने या चुकंदर से निकाली गई प्रसंस्कृत शक्कर में फ़र्क नहीं कर पाता है.
सभी किस्म की शक्कर को शरीर ग्लूकोज़ और फ्रूक्टोज़ में बदल देता है और यकृत में इन्हें परिवर्तित कर दिया जाता है. शक्कर को चर्बी या ग्लाइकोजेन में बदल दिया जाता है या फिर ग्लूकोज़ में बदलकर कोशिकाओं के लिए रक्त में शामिल कर दिया जाता है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के अनुसार आपके एक दिन में खाने-पीने से मिलने वाली ऊर्जा के बाद अतिरिक्त शक्कर 10% से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. चाहे ये शहद से मिले, फलों से जूस या जैम से या फिर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ या टेबल शुगर से.
इसका मतलब ये हुआ कि आदमी को 70 ग्राम और महिला को 50 ग्राम से शक्कर लेनी चाहिए, हालांकि ये आकार, उम्र और सक्रियता पर निर्भर करता है. 50 ग्राम शक्कर 13 चम्मच शक्कर या दो कैन कोल्ड ड्रिंक या आठ चॉकलेट बिस्किट के बराबर होती है.

अब ज़हर से नहीं डरते हैं खटमल



खटमल इंसान का ख़ून चूसकर जिंदा रहता है.
खटमल और इंसानों के बीच 'खून का रिश्ता' है. इंसान की लाख कोशिशों के बाद भी सदियों से उसके साथ हमबिस्तर हैं और लगता है कि यह नाता टूटने वाला नहीं.
खटमलों को मारने के लिए लोग कई तरीके अपनाते हैं, जहरीली दवाओं का छिड़काव भी इनमें शामिल है. लेकिन अब खटमलों ने इनसे बचने का तरीक़ा खोज लिया है.
अमरीका में हुए एक शोध में पता चला है कि खटमलों की चमड़ी मोटी हो गई है. इस वजह से कई ज़हरीली दवाएं रिसकर उनके शरीर में नहीं जा पाती हैं.
‘साइंसटिफ़िक जर्नल’ नाम की पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुताबिक़ वैज्ञानिकों ने इससे जुड़े जैविक बदलाव वाले 14 जीन का पता लगाया है.

बेअसर हैं दवाएं

शोध के मुताबिक़ इनमें खटमलों की चमड़ी का मोटा हो जाना भी शामिल है. मोटी चमड़ी ज़हर को रिस कर अंदर जाने से रोकती है. इस वजह से ज़हरीले पदार्थ खटमल के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित नहीं कर पाते हैं.
अध्ययन में यह भी पता चला है कि खटमल कुछ ऊंचे दर्जे का एंजाइम भी बना रहे हैं, जो कीटनाशकों के मेटाबॉलिजम की रफ़्तार को तेज़ कर देते हैं.
"खटमल कीटनाशकों के प्रभाव से बचने के लिए प्रतिरोध की एक से अधिक तकनीकों को अपनाते हैं"
प्रोफ़ेसर सुब्बा पिल्लई, केंटकि विश्वविद्यालय
अमरीका के केंटकि विश्वविद्यालय में कीट विज्ञान के प्रोफ़ेसर और इस शोध के लेखकों में से एक सुब्बा पिल्लई कहते हैं कि ऐसे साहसी कीड़े आणविक तरक़ीबों का सहारा ले रहे हैं.
वे बताते हैं, ''खटमल कीटनाशकों के प्रभाव से बचने के लिए प्रतिरोध की एक से अधिक तकनीकों को अपनाते हैं.''
खटमल वैसे तो पूरी दुनिया में पाए जाते हैं. लेकिन हाल के वर्षों में ये यूरोप, अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में इनकी बाढ़ सी आ गई है.
खटमल सोए हुए इंसान का ख़ून चूसकर ही ज़िंदा रहते हैं. ख़ून चूसने के बाद वे खुजली और लाल चकत्ते छोड़ जाते हैं.
क्लिक करें खटमल से छुटकारा पाना आसान नहीं है. ये कई महीने तक बिना खाए-पिए रह सकते हैं. ये तबतक खु़द को छिपाए रखते हैं, जबतक कि उनका शिकार वापस नहीं आ जाता.
खटमलों को मारने के लिए दुनियाभर में कृत्रिम कार्बनिक यौगिक पायरथ्राइड का इस्तेमाल किया जाता है. एक समय तो यह खटमल मारने के लिए बहुत प्रभावशाली दवा थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है.
प्रोफ़ेसर पिल्लई बताते हैं कि ज़हर से होने वाली मौत से बचने के लिए विकसित कर लिए हैं.
अध्ययन के लिए विश्विवद्यालय के पास के अपार्टमेंट से कीटों की 21 प्रजातियां ली गई थीं.
इनके अध्ययन से पता चला कि खटमल में खोजे गए जीन, जो पायरथ्राइड से बचने की प्रतिरोधक क्षमता रखते थे, वे खटमल के चमड़ी में थे.
अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे वैज्ञानिकों अधिक प्रभावशाली रसायन विकसित करने में मदद मिलेगी.
प्रोफ़ेसर पिल्लई कहते हैं कि भारत जैसे देशों में जहाँ खटमल बहुत बड़ी समस्या नहीं हैं, लोग अपने फ़र्नीचर को धूप में रख देते हैं. धूप की वजह से खटमल नीचे गिरकर मर जाते हैं.
वे कहते हैं कि अमरीका में भी खटमल मारने के लिए कुछ इसी तरह की तरकीब अपनाई जा रही है.
इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि खटमल वाली जगह को 30-35 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म कर दिया जाए, इसके बाद खमटल गर्मी की वजह से खुद बाहर आएंगे और मर जाएंगे.

आपके बच्चे का बोर होना ज़रूरी है


बच्चों के लिए बोरियत कितनी जरूरी है
बच्चों को बोरियत से नए विचार मिल सकते हैं
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को बोर होने देना चाहिए ताकि वो सृजनशील होने की स्वाभाविक क्षमता को विकसित कर सकें.
शिक्षा विशेषज्ञ डॉक्टर टेरेसा बेल्टन ने बीबीसी को बताया कि बच्चों का लगातार सक्रिय रहना उनकी कल्पनाशीलता के विकास को बाधित कर सकता है.
उन्होंने लेखक मीरा सयाल और कलाकार गैरीसन पैरी से भी पूछा कि बचपन में बोरियत से कैसे उन्हें अपनी सृजनशीलता में मदद मिली.
सयाल का कहना है कि बोरियत ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया जबकि पैरी का कहना है कि ये बोरियत एक "सृजनशील अवस्था" होती है.
ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट अंगेलिका'ज स्कूल ऑफ एजुकेशन में वरिष्ठ शोधकर्ता डॉक्टर टेरेसा बेल्टन ने बोरियत के प्रभावों पर अपने अध्य्यन में कई लेखकों, कलाकारों और वैज्ञानिकों का इंटरव्यू किया.

बोरियत के फायदे

उन्होंने सयाल की यादों को बारे में सुना कि कैसे एक छोटे से खनन गांव में उनका बचपन बीता. डॉक्टर बेल्टन बताती हैं, “उनके पास करने को ज्यादा कुछ खास नहीं था. इसलिए वो लोगों से बातें करती थीं. अगर उनके पास करने को कुछ और चीजें होती तो ऐसा नहीं करतीं.”
"बोरियत अकसर अकेलेपन से जुड़ी होती है और सयाल को अपने बचपन में घंटों खिड़की पर खड़े होकर खेतों को देखकर बिताने पड़ते थे. वहीं से वो बदलते मौसम को देखती रहती थीं."
डॉ. बेल्टन, शिक्षा और व्यवहार विशेषज्ञ
वो कहती हैं, “बोरियत अकसर अकेलेपन से जुड़ी होती है और सयाल को अपने बचपन में घंटों खिड़की पर खड़े होकर खेतों को देखकर बिताने पड़ते थे. वहीं से वो बदलते मौसम को देखती रहती थीं.”
"लेकिन इस बोरियत ने आखिरकार उन्हें लेखक बना दिया. वो बचपन से डायरी लिखने लगीं. इसमें लघु कहानियां, कविताएं और वो सब कुछ होता था जो वो महसूस करती थीं. बाद में अपने लेखक बनने का श्रेय उन्होंने इन सब चीजों को ही दिया. "
वहीं हास्य अभिनेत्री से लेखक बनीं पैरी का कहना है कि “खाली पन्नों के साथ थोपा गया अकेलापन अद्भुत प्रेरक होता है.”
पैरी का मानना है कि बोरियत बड़ों के लिए भी बहुत फायदेमंद है. उनका कहना है, “बोरियत बहुत ही सृजनशील अवस्था है.”

'खाली न रहे खालीपन'

बच्चों के लिए बोरियत कितनी जरूरी है
बच्चों के हमेशा व्यस्त रहने को डॉ. बेल्टन ठीक नहीं मानती हैं
तंत्रिका विज्ञानी प्रोफेसर सुजन ग्रीनफ़ील्ड से भी डॉक्टर बेल्टन ने बात की. ग्रीनफ़ील्ड अपने बचपन को याद करते हुए बताती हैं कि कैसे उनके परिवार में पैसे की कमी थी और 13 साल की उम्र तक उनका कोई भाई बहन नहीं था.
बेल्टन बताती हैं, “उन्होंने खुशी खुशी अपना दिल बहलाया. इसके लिए वो कहानियां बनाती थीं. अपनी कहानियों के चित्र बनाती थीं और लाइब्रेरी जाती थीं.”
लेकिन डॉक्टर बेल्टन का कहना है कि सृजनशील होने के लिए आपके अंदर प्रेरणा जगनी जरूरी है. वो कहती हैं, “प्रकृति खालीपन को पसंद नहीं करती है और हम इसे भरने की कोशिश करते हैं. कुछ बच्चे बोरियत से पैदा होने वाली जगह को आंतरिक रूप से भरने में सक्षम नहीं होते हैं, उनके लिए स्थिति बदतर हो जाती है.”

एड्स और कैंसर पर जीत पाने वाला बर्लिन का मरीज़


टिमोथी रे ब्राउन को 1996 में पता चला कि उन्हें एचआईवी वायरस है. (तस्वीर गेटी)
आमतौर पर किसी मरीज़ के लिए मौत का फ़रमान होता है. लेकिन एक व्यक्ति ऐसा है जिसने इस गंभीर बीमारी पर जीत पाई और आज एक स्वस्थ जीवन जी रहा है.
टीमोथी रे ब्राउन को मेडिकल की दुनिया में ‘बर्लिन का मरीज़’ के नाम से जाना जाता है जो एड्स और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से उबर पाए. लेकिन उनका इलाज कैसे संभव हुआ ये भी एक रोचक किस्सा है. टिमोथी पहले मरीज है जो एचआईवी से पूरी तरह उबर चुके हैं.
एचआईवी एड्स से दुनिया के लगभग 3.4 करोड़ लोग प्रभावित हैं और इस बीमारी की गिनती दुनिया के सबसे खतरनाक बीमारियों में होती है.

एचआईवी

बीबीसी के मैथ्यू बैनिस्टर से बात करते हुए 47 साल के टिमोथी कहते हैं, “साल 1995 में मेरे पार्टनर ने कहा कि उसे एचआईवी और मुझे भी डॉक्टर से इसकी जांच करानी चाहिए. मेरे टेस्ट में भी एचआईवी पॉज़िटिव आया औऱ वो मेरे लिए मौत की सज़ा जैसा था. मुझे कहा गया कि मैं सिर्फ चंद साल और जी सकता हूं.”
"दूसरी कीमोथेरैपी के बाद डॉक्टरों ने कहा कि मेरी स्टेम सेल को बदलना होगा और मुझसे मिलान करने वाला स्टेम सेल दाता भी मिल गया. डॉक्टरों ने मेरी इम्यून सिस्टम को दाता के इम्यून सिस्टम से बदल दिया"
टिमोथी रे ब्राउन
डॉक्टरों ने उन्हें दवाईयां दी और उनका इलाज चलने लगा. फिर एक दिन वर्ष 2006 में साइकिल चलाते वक्त टिमोथी को चक्कर आने लगे और वो फिर डॉकटरों के पास गए. वहां जब दुबारा उनका टेस्ट हुआ तो पाया गया कि उन्हें रक्त का कैंसर ल्यूकीमिया है.
इस दूसरी बीमारी से निपटने के लिए उन्हें कीमोथेरैपी दी जाने लगी. टिमोथी कहते हैं, “दूसरी कीमोथेरैपी के बाद डॉक्टरों ने कहा कि मेरी स्टेम सेल को बदलना होगा और स्टेम सेल दाता भी मिल गया. डॉक्टरों ने मेरी इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षी तंत्र) को दाता के इम्यून सिस्टम से बदल दिया.”
टिमोथी कहते हैं कि इस इलाज का असर एक महीने में ही दिखने लगा. “मैं बेहतर महसूस करने लगा था. मेरी जांच हुई और मुझे स्वस्थ पाया गया. मेरे उपर एक शोध पेपर भी लिखा गया और क्योंकि मेरा इलाज बर्लिन में हो रहा था इसलिए मुझे बर्लिन का मरीज कहा गया.”

इलाज

टिमोथी कहते हैं उसके बाद उन्हें आज तक एचआईवी से संबंधित तकलीफ नहीं हुई. 2012 में उनपर एक लैब में परीक्षण हुआ जिसके बाद पाया गया कि उनके  की मृत कोषिकाएं हैं. लैब टेस्ट में पाया गया कि ये मृत एचआईवी सेल्स दोबारा पैदा नहीं हो सकते हैं और टिमोथी को एचआईवी मुक्त घोषित किया गया.
टिमोथी कहते हैं कि वो अब उस खतरनाक वायरस से मुक्त हो गए हैं लेकिन उनके इलाज को हर मरीज पर दोहराया नहीं जा सकता. वो कहते हैं कि स्टेम सेल को परिवर्तित करना बेहद जटिल प्रक्रिया है और क्योंकि उन्हें कैंसर भी था इसलिए उनके पास इस इलाज के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.
टिमोथी अब एक गैर सरकारी संस्था चला रहे हैं और वो एचआईवी के इलाज पर काम करना चाहते हैं.

125 बिछड़ो को मिलवाने के बाद भी


अमीना के पति आठ साल से गायब हैं.
आठ साल पहले पाकिस्तान में रावलपिंडी शहर के मसूद अपने घर से पेशावर के लिए निकले तो आज तक वापस नहीं लौटे हैं.
अधिकारियों का कहना है कि मसूद का कोई अता-पता नहीं है लेकिन उनकी पत्नी मानती हैं कि मसूद ज़िंदा हैं और खुफिया विभाग की कैद में हैं.
अमीना जंजुआ मसूद अपने पति की खोज में लगातार जुटी हुई हैं, उन्होंने कुछ सुबूत भी जुटाए हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पाई हैं.
उस दिन को याद कर अमीना कहती हैं, “मेरे पति सुबह नाश्ता करके जो घर से निकले तो आज तक वापस नहीं आए. वो एक आईटी कॉलेज चलाते थे और राजनीति से तो उनका दूर-दूर तक संबंध नहीं था.”
बीबीसी के मैथ्यू बैनिस्टर ने जब उनसे पूछा कि वो अपने पति के गायब होने की क्या वजह मानती हैं तो अमीना ने कहा, “मैं मानती हूं कि  अधिकारियों ने उन्हें किसी गलतफहमी में अगवा कर लिया. मैं उनसे पूछती हूं कि मेरे पति कहां हैं तो वो कोई जवाब नहीं देते हैं.”
"मुझे मेरे पति की कई खबरें मिलती हैं. मेरे पास सबूत है, गवाह हैं जिन्होंने उनसे मुलाकात की है. मैनें उनके बयानों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी दी है"
अमीना जंजुआ मसूद
अमीना आगे कहती हैं कि उनके पास अपने पति के जिंदा होने के सबूत है. उन्होंने कहा, “मुझे मेरे पति की कई खबरें मिलती हैं. मेरे पास सबूत है, गवाह हैं जिन्होंने उनसे मुलाकात की है. मैनें उनके बयानों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी दी है.”

मदद

लेकिन फिर भी अमीना अभी तक अपने पति की हालत जानने पर सफलता नहीं पा सकी हैं. वैसे इसी खोज में उन्होंने दूसरे ‘गायब’ लोगों की मदद की है.
वो कहती हैं, “मेरी संस्था ने 125 बिछड़े लोगों को उनके परिवारवालों से मिलवाया है. अभी तक यही मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है.”
अमीना कहती हैं कि दिन गुजरने के साथ उनकी तकलीफ भी बढ़ रही है लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है और उन्हें अभी भी उम्मीद है कि उनके पति वापस लौट आएंगे.
वो आज भी अपनी एक बेटी और दो बेटों को दिलासा देती है कि उनके पिता ज़िंदा हैं और जल्दी ही घर वापस आएंगे.

'भगवान दर्शन' की चाह में परिवार को 'मार डाला'


फाइल
धर्म के नाम पर अंधविश्वासी परंपराओं के कई उदाहरण देखने को मिलते रहे हैं.
राजस्थान में एक परिवार के मुखिया की साक्षात ‘प्रभु मिलन’ की चाह की सनक ने घर के पांच लोगो को मौत की नींद सुला दिया.
अभी घर के तीन लोग अस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहे है. पुलिस को मौके से घटना का वीडियो फुटेज मिला है जिसमे मामले का ब्यौरा दर्ज होने की बात कही जा रही है.
इस हादसे से सवाई माधोपुर जिले के गंगापुर सिटी कसबे में होली के रंग में भंग पड़ गया और शोक की लहर छा गई.
यह घटना सोमवार और मंगलवार के बीच की रात को गंगापुर कसबे के नसिया कोलोनी में हुई.
पुलिस के मुताबिक मरने वालो में घर के मुखिया कंचन सिंह राजपूत भी शामिल है. वे पेशे से फोटोग्राफर थे.
कंचन सिंह राजपूत ने इस पूरी घटना को अपने कैमरे में भी कैद किया ताकि कैमरा गवाह रहे कि प्रभु भक्त से मिलने आए थे.
मरने वालो में खुद कंचन सिंह (43 साल), पत्नी नीलम (40), पुत्र प्रद्युमन(12), पुत्री ड्रीमी (16) और भाई दीप सिंह 40 शामिल है.
मौके पर अचेत मिली कंचन की माँ भगवती (70 साल), भतीजा लव सिंह (11) और भांजी रश्मि (22 साल) को बेहद नाजुक हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

'भगवान दर्शन देंगे'

"कंचन ने कल रात घर वालों से कहा कि भगवान् के दर्शन के बिना जीवन व्यर्थ है. 'भगवान दर्शन देंगे', यह कहते हुए उसने सभी को प्रसाद बांटा और कहा अगर जीवन पर संकट आएगा तो प्रभु खुद बचाने आयेंगे, हमारा उनसे साक्षातकार होगा, कंचन सिंह ने इसकी विडियो क्लिप भी बनाई है"
परम ज्योति, सवाई माधोपुर की पुलिस अधीक्षक
इनमें भगवती और लव सिंह की हालत बहुत गंभीर बनी हुई है. उन्हें इलाज के लिए जयपुर भेज गया है.
पुलिस के मुताबिक कंचन ने कल रात घर में परिवार के साथ पूजा की और प्रसाद के मिष्ठान में ज़हर मिला दिया. इस प्रसाद का सेवन करने के बाद सभी एक एक कर बेहोश हो गए.
सवाई माधोपुर की पुलिस अधीक्षक परम ज्योति ने फोन पर बताया,"कंचन ने कल रात घर वालों से कहा कि भगवान् के दर्शन के बिना जीवन व्यर्थ है. 'भगवान दर्शन देंगे', यह कहते हुए उसने सभी को प्रसाद बांटा और कहा अगर जीवन पर संकट आएगा तो प्रभु खुद बचाने आयेंगे, हमारा उनसे साक्षातकार होगा, कंचन सिंह ने इसकी विडियो क्लिप भी बनाई है."
पुलिस ने मौके से कैमरा और कैमरा चलने में काम आने वाला ट्राई पोड भी बरामद किया है.
एक पुलिस अधिकारी ने बताया,"हम कैमरे में दर्ज घटना की विवेचना कर रहे हैं, इसके लिए कानून के जानकारों की मदद ले रहे है."

अंधविश्वास?

इस अजीबोगरीब घटना का पता तब लगा जब अचेत हुई रश्मि की चेतना आधी रात को वापस लौटी और उसे उलटियां होने लगीं.
रश्मि ने देखा घर में और लोग भी बेहोश थे और उन्हें मितली आ रही थी. इसके बाद उसने पहले एम्बुलेंस के लिए अस्पताल फोन करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी.
हिम्मत जुटा कर रश्मि ने पड़ोसियों के घर पर दस्तक दी. पड़ोसियों ने पुलिस को बुलाया और सभी को अस्पताल ले जाया गया.
लेकिन इस दौरान परिवार के तीन सदस्यों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया और चौथे सदस्य की भी मौत हो गई. बाद में अस्पताल में परिवार के पांचवें सदस्य की भी मृत्यु हो गई.
क्या यह अंधविश्वास की घटना है?
इस सवाल के जवाब में सवाई माधोपुर की पुलिस अधीक्षक ज्योति कहती है यह देखना पड़ेगा कि यह अंधविश्वास है या वह व्यक्ति मानसिक रोगी था.
बहरहाल होली के मौके पर इस घटना से पूरे इलाके में दुःख की लहर छा गई है.

जहां दहेज में मिलती है ट्रक की दो ट्यूब


आंध्र प्रदेश के एक गांव में जिंदगी पूरी तरह ट्रक की ट्यूब पर निर्भर है
मंगल थांडा आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले का एक ऐसा छोटा सा दूरदराज़ का गाँव है जहां शादी हो तो गरीब से गरीब परिवार को एक चीज़ अनिवार्य रूप से दहेज़ में देनी पड़ती है और वो है ट्रक की पुरानी टयूब.
इस अनूठे तोहफे का कारण ये है कि इस गांव का रास्ता एक नदी ने रोक रखा है. यहां के लोगों को अगर कोई चीज लेने बाहर जाना पड़ता है तो वो ट्यूब के सहारे ही नदी को पार करते हैं.
मंगल थांडा पहुंचने का रास्ता इतना खराब है कि वहां गाड़ी से पहुंचना संभव नहीं है. आप पैदल जाना चाहें तो पांच किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी.
इस गांव को दुनिया से जोड़ने का दूसरा रास्ता एक नदी "वाट्टे वागू" ने रोक रखा है. इसीलिए इस गांव के हर परिवार का जीवन ट्रक की ट्यूब पर टिका हुआ है जिसे ये लोग एक नाव के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.

ट्यूब का सहारा

"ट्यूब दिए बिना तो शादी की कल्पना भी नहीं हो सकती. पुराने ट्यूब की कीमत तीन सौ से पांच सौ रुपए होती है जबकि नई ट्यूब नौ सौ रुपए में मिलती है. मेरी शादी होगी तो मैं भी अपने ससुराल से एक ट्यूब मांगूंगा."
तेजावत नवीन, ग्रामीण
मंगल थांडा लम्बाडा आदिवासियों का एक ऐसा गांव है जो अपने राशन, स्कूल, अस्पताल, बैंक और सभी दूसरी बुनियादी सुविधाओं के लिए नदी के उस पार स्थित सुरिपल्ली गांव पर निर्भर है.
वहां तक पहुंचने का एक मात्र माध्यम है ट्यूब जिसे उतना ही महत्व प्राप्त है जितना की डूबते हुए इंसान के लिए एक लाइफ़ जैकेट का होता है.
शायद इसीलिए हर माता पिता को अपनी बेटी के दहेज़ में एक नहीं, बल्कि दो ट्यूब देने पड़ते हैं. एक बेटी के लिए और दूसरा दामाद के लिए ताकि वो सुरक्षित तरीके से नदी पार जा आ सकें.
जब मैं इस गांव में गया तो हर घर के बाहर एक ट्यूब ऐसे रखी थी जैसे कोई गाड़ी रखी हो, या कोई जानवर बंधा हो.
गांव के एक युवा तेजावत नवीन ने बताया, "ट्यूब दिए बिना तो शादी की कल्पना भी नहीं हो सकती. पुराने ट्यूब की कीमत तीन सौ से पांच सौ रुपए होती है जबकि नई ट्यूब नौ सौ रुपए में मिलती है. मेरी शादी होगी तो मैं भी अपनी ससुराल से एक ट्यूब मांगूंगा".
ट्यूब इन लोगों के जीवन पर इतना छाया हुआ है कि जब एक नई नवेली दुल्हन कविता अपने मायके आई तो लोग उनसे ज्यादा उनकी ट्यूब की खैर खबर ले रहे थे.
ट्यूब पर निर्भर जिंदगी
इस गांव में हर घर में ट्यूब मिलेगी
एक और महिला तुक्कू भी वो दिन याद करके हंस रही थीं जब उनके विवाह में उनके पिता ने दो ट्यूब दिए थे. उनका कहना है कि हर वर्ष एक नई ट्यूब लेनी पड़ती है क्योंकि पुरानी ख़राब हो जाती है.

जानलेवा सफर

गांव के एक और व्यक्ति गुग्लत रामुलु का कहना है कि इस गांव में कोई सुविधा न होने से उन्हें हर चीज़ के लिए नदी पार सुरिपल्ली जाना पडता है जिसमें महीने का राशन भी शामिल होता है.
कभी कभी टयूब की ये यात्रा जानलेवा भी सिद्ध होती है.
गुस्से से भड़की भूक्य कोम्टी ने कहा, "दो वर्षों में चार लोग इस नदी को पार करने की कोशिश में डूब चुके हैं, इनमें तीन महिलाएं थीं. कभी पानी का बहाव इतना तेज़ हो जाता है कि यह ट्यूब भी हमें नहीं बचा सकती. आखिर हम कैसे जिंदा रहें. अगर हम दूसरे रास्ते से जाना चाहें तो कई घंटे लग जाते हैं. सुविधाओं का ये हाल है कि गांव में शौचालय तक नहीं है."
रास्ता न होने के कारण कोई अधिकारी यहां नहीं आता है और न ही किसी कल्याण योजना का लाभ इन लोगों को मिल पाता है.
स्वाभाविक है कि सबसे ज्यादा परेशानी का सामना महिलाओं को करना पड़ता है वो भी गर्भवती महिलाओं को.
एक महिला जंबली ने बताया की बच्चे के जन्म के लिए अगर महिला को अस्पताल जाना पड़े तो कोई गाड़ी गांव तक नहीं आ सकती. अगर महिला को नरसमपेट अस्पताल जाना पड़े तो उसे पहले सुरिपल्ली गांव जाना होगा जबकि दूसरे रास्ते से आने वाला नेक्कुंदा का अस्पताल 12 किलोमीटर दूर है.
महिलाओं की तरह छात्रों को भी बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि गांव के स्कूल में केवल दो कक्षाएं हैं और आगे पढ़ने के लिए उन्हें नदी पार सुरिपल्ली के स्कूल जाना पड़ता है.

किसका दोष

महिलाओं को इस समस्या की वजह से खास तौर से दिक्कतों का सामना करना पड़ता है
इस गांव के सबसे शिक्षित व्यक्ति जूनियर कॉलेज पास राजिंदर का कहना है कि नदी पार करते हुए बच्चों के कपड़े गीले हो जाते हैं या कीचड़ में खराब हो जाते हैं. फिर स्कूल में अध्यापक उनकी पिटाई करते हैं कि ऐसी गन्दी हालत में क्यों आए.
ऐसा नहीं है कि गांव के लोगों ने अपनी दिक्कतों के लिए कहीं गुहार नहीं लगाई है. जब भी चुनाव आता है तो हर प्रत्याशी सड़क और पुल का वादा करता है लेकिन चुनाव के बाद उसे कुछ याद नहीं रहता.
एक महिला भनोट बुज्जी का मानना है कि दोष गांव के पुरूषों का भी है. "जो भी उमीदवार उन्हें शराब की एक बोतल दे देता है वो उसी को वोट दे देते हैं. उन्हें सड़क और पुल की परवाह नहीं होती. तकलीफ तो हम महिलाओं को उठानी पडती है."
लेकिन अब की बार गांव वाले काफी गंभीर हैं. जैसे जैसे चुनाव की आहट बढ़ रही है, गांव वालों का गुस्सा बढ़ रहा है और उन्होंने फैसला कर लिया है कि अगर उससे पहले पुल या सड़क का निर्माण नहीं हुआ तो वो चुनाव का बहिष्कार कर देंगे और गांव के 250 वोट किसी को भी नहीं मिलेंगे.
लेकिन तब तक हर शहनाई के साथ गाँव में ट्यूबों की संख्या में दो दो और बढ़ती रहेंगी.

चलती कार में युवती के साथ किया गैंगरेप, फिर स्कूल के पास फेंक गए


 

अमृतसर .  शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाके संगम चौक में कार सवार युवकों ने रास्ते में जा रही युवती का अपहरण कर उसके साथ गैंगरेप कर डाला। 
 
सोमवार शाम हुई घटना से पुलिस में हड़कंप है। पीड़िता के मुताबिक घटना में तीन युवक शामिल थे। वे उसे कार में बैठा वेरका और अन्य कई इलाकों में ले गए। आखिर में वे उसे सेंट फ्रांसिस स्कूल के पास फेंक गए। पीड़िता अस्पताल में भर्ती है। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है।
 
वहीं एसटीएससी आयोग ने पुलिस कमिश्नर को तलब किया। कांग्रेस प्रधान बाजवा ने घटना को शर्मनाक बतया। तरनतारन रोड स्थित एक गांव की रहने वाली पीड़िता (20) ने बताया कि वह जालंधर रोड स्थित एक मोबाइल रिचार्ज की दुकान में काम करती है।
 
वह और उसकी सहेली सोमवार शाम 7.30 बजे काम खत्म कर दुकान से निकले। उसकी सहेली संगम चौक से ऑटो पर सवार हो घर निकल गई और वह अपने घर के लिए ऑटो लेने के लिए महासिंह गेट की तरफ निकल पड़ी। 
 
इसी दौरान ग्रे रंग की सेंट्रो कार सवार युवक ने उसकी बाजू पकड़ उसे कार में बैठा लिया। कार में चालक सहित दो युवक थे। इसके बाद युवकों ने उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। कुछ समय बाद वह बेहोश हो गई। रास्ते में एक और युवक कार में बैठ गया। सभी चलती कार में उसके साथ रेप किया गया।
 
इस दौरान वे कार को वेरका और अन्य कई इलाकों में ले गए। एक घंटे बाद उसे युवक सेंट फ्रांसिस स्कूल के पास फेंक फरार हो गए। किसी राहगीर से मोबाइल ले उसने अपने घर घटना के बारे में बताया। पीड़िता की मां मौके पर पहुंची और पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने पीड़िता को सिविल अस्पताल दाखिल करवाने के बाद केस दर्ज कर लिया। 
 
आदित्य, अभी और रोकी थे आरोपी 
 
पीड़िता के मुताबिक तीनों आरोपियों के नाम रोकी, आदित्य और अभी हैं। तीनों कार में एक दूसरे को नाम के साथ बुला रहे थे। इस कारण उसे तीनों के नामों का पता चला, लेकिन तीनों कहां रहते हैं, इस बारे उसे कुछ इसका पता नहीं है। 
 
रेप की पुष्टि, लेकिन मामला संदिग्ध 
 
पुलिस इस मामले को संदिग्ध मान रही है। मामले में पुलिस ने पीड़िता, उसकी मां और पीड़िता की सहेली के बयान लिए तीनों के बयानों में फर्क पाया गया है। जांच महिला थाना प्रभारी कंवलदीप कौर कर रही हैं। हालांकि मेडिकल में रेप की पुष्टि हुई है, लेकिन सारे घटनाक्रम में कई सवाल ऐसे हैं, जिनसे पुलिस इसे संदिग्ध भी मान रही है। वहीं, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के वाइस डॉ. राजकुमार वेरका अमृतसर गैंगरेप मामले में पुलिस कमिश्नर राम सिंह को 28 मार्च को सर्किट हाउस में तलब किया है। आयोग पीड़ित लड़की का बयान भी कलमबद्ध करेगा।

पहले चाकू से गोदा फिर पत्थर से सिर कुचल कर उतार दिया मौत के घाट



इंदौर। कुम्हारखाड़ी में सोमवार रात हत्यारों ने एक युवक को चाकू से गोदा, फिर पत्थर से सिर कुचल दिया। परिजन व रहवासियों ने हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग करते हुए मंगलवार को रोड पर अर्थी रखकर जाम लगा दिया।
 
 26 वर्षीय शैलेंद्र उर्फ गोलू पिता चंगीराम बौरासी एक हाथ व पैर से विकलांग था। परिवार में मां नंदू बाई, छोटा भाई पिंटू व बहन कविता है। वह स्कीम 51 स्थित दिलावरी मेटल कंपनी में काम करता था। बाणगंगा पुलिस के अनुसार सोमवार रात वह खाना खाकर टहलने गया।
 
देर तक नहीं लौटा तो परिजन ने मोबाइल लगाया, जो बंद मिला। बाद में आसपास तलाशा। मंगलवार सुबह श्मशान घाट स्थित सुलभ कॉम्प्लेक्स के पास उसकी लाश मिली। शरीर पर चाकू के निशान थे और सिर कुचला हुआ था। 
हत्यारे मोबाइल ले गए : सूचना पर पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। तब तक गोलू के परिजन भी वहां पहुंच गए। गोलू के पास से मोबाइल नहीं मिला। इससे आशंका जताई जा रही है कि हत्यारे मोबाइल ले गए। 
 

बच्चों की बदसलूकी, स्कूल ने पैरेंट्स को सुनाया ऐसा फरमान कि जानकर हैरान रह जाएंगे आप!



जोधपुर.शहर की एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल ने कई अभिभावकों को उनके बच्चों का रिपोर्ट कार्ड इसलिए नहीं दिया कि उनके बच्चों ने स्कूल में बदसलूकी की थी। फिर स्कूल प्रबंधन ने अभिभावकों को एक पीली पर्ची पकड़ा कर कहा कि बच्चों का रिपोर्ट कार्ड चाहिए तो फलां बुक स्टॉल से अंग्रेजी के 20 नॉवेल लाकर दो। पर्ची देख अभिभावक हैरान रह गए और मजबूरी में बुक स्टॉल जाकर नॉवेल खरीदे।
 
डीबी स्टार को सूचना मिलने पर टीम ने मामले की पड़ताल की तो पता चला कि सरस्वती नगर स्थित सेंट एंस स्कूल के 7वीं से 11वीं क्लास के कुछ स्टूडेंट्स के रिपोर्ट कार्ड स्कूल ने रोक लिए। अभिभावकों को इसके पीछे कारण बच्चे का स्कूल में मिसबिहेव करना बताया। नॉवेल लाने के लिए पीली पर्ची पर सवरेदय बुक स्टॉल का नाम लिखा है।
 
टीम को सोमवार को कई अभिभावक इस बुक स्टॉल पर नॉवेल खरीदते नजर आए। स्कूल डायरेक्टर सेअभिभावक बनकर बात करने के बाद डीबी टीम ने अपना परिचय देते हुए दुबारा नॉवेल मंगवाने के बारे में बात की तो उनका जवाब था- स्कूल के कुछ स्टूडेंट्स ने मिसबिहेव किया था। बार-बार चेतावनी देने के बावजूद उनकी गलतियां थमी नहीं। गलती उनके निलंबन जैसी थी, लेकिन हमने नॉवेल मंगवाकर उन्हें मौका दिया। यह नॉवेल भी कोई खास महंगे नहीं हैं।
 
अरे, मेरे बच्चे को भी नॉवेल जमा कराने हैं
 
सेंट एंस स्कूल के 30 अभिभावक नॉवेल ले जा चुके हैं। मेरा बच्चा भी स्कूल में मिसबिहेव करने वालों की सूची में है। उसे भी स्कूल में नॉवेल जमा कराने हैं। यह तो स्कूल मैनेजमेंट का नजरिया है। नॉवेल की कीमत दो से तीन हजार के बीच है।
 
नवीन जालानी, संचालक, सवरेदय बुक स्टॉल
 
अभिभावकों ने उठाए सवाल 
 
एक साथ इतने बच्चों का बर्ताव बुरा कैसे हो सकता है?
 
नॉवेल लाकर देने से बच्चा सुधर जाएगा क्या?
 
बच्चों को सुधारने की जिम्मेदारी क्या स्कूल की नहीं?
 
कहीं पनिशमेंट की आड़ में स्कूल की लाइब्रेरी का स्टॉक  तो पूरा नहीं करना है?
 
क्या स्कूल की यह नीति सही है?
 
करना तो रेस्टिकेट था, नॉवेल ही मांग रहा हूं: डायरेक्टर
 
संवाददाता ने मामले की पुष्टि के लिए स्कूल के डायरेक्टर अब्राहम जॉन से अभिभावक बनकर बात की..
 
सर, पीली पर्ची पर यह क्या है?
 
आपको नॉवेल जमा कराने होंगे।
 
क्यों, ऐसा क्या हुआ?
 
आपका बच्चा बहुत बेईमानी करता है। उसे निलंबित करना था, लेकिन हमने एक मौका दिया है।
 
क्या मेरा बच्चा ही ऐसा है, और कितनों से नॉवेल मंगवाई?
 
कई बच्चों ने मिसबिहेव किया था, सभी नॉवेल ला रहे हैं। आपको क्यों आपत्ति हो रही है?
 
पर, यह कैसा फरमान है सर?
 
मैं, आपके बच्चे को स्कूल से बाहर कर दूंगा, नॉवेल लेकर आओ।
 

31 से पहले लें सब्सिडी वाला सिलेंडर, उसके बाद नहीं मिलेगा


पाली.अगर आपने वित्तीय वर्ष 2012-13 में मिलने वाले पांच सब्सिडी वाले सिलेंडर अब तक नहीं लिए हैं, तो जल्दी बुकिंग करा दें, क्योंकि 31 मार्च के बाद सब्सिडी वाले सिलेंडर लैप्स हो जाएंगे। एक अप्रैल से नया वित्त वर्ष 2013-14 लागू हो जाएगा, जिसके तहत आपको 9 सिलेंडर सब्सिडी पर दिए जाएंगे। 
 
मालूम हो, कि नियम के अनुसार उपभोक्ताओं को 31 मार्च तक केवल पांच सिलेंडर सब्सिडी पर दिए जा रहे हैं। अगर कोई उपभोक्ता 31 मार्च तक सब्सिडी वाले गैस सिलेंडरों का उपयोग नहीं करता है, तो उसके बाकी बचे सिलेंडर अपने आप ही लैप्स हो जाएंगे। इसके बाद अप्रैल 2013 से मार्च 2014 तक उपभोक्ताओं को 9 गैस सिलेंडर सब्सिडी 
पर मिलेंगे।  
 
 
बढ़ती जा रही है उपभोक्ताओं की भीड़ 
 
 
रुचिता गैस एजेंसी के प्रबंधक मीशा चौहान बताती हैं कि सिरोही में कोई भी अपना सब्सिडी वाला सिलेंडर छोड़ना नहीं चाहता। यही वजह है कि मार्च शुरू होते ही उनकी एजेंसी पर एक दम से उपभोक्ताओं की बुकिंग कराने के लिए भीड़ बढ़ गई है। उधर, आदित्य गैस एजेंसी के संचालक डीएल मीणा ने बताया कि उनके अभी कई ऐसे उपभोक्ता हैं, जिन्होंने सब्सिडी पर पांच सिलेंडर नहीं लिए। अब उनकी भीड़ बढ़ रही है।
 
कोई कर रहा इंतजार तो किसी को बुकिंग की जल्दी  
 
सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर को लेकर कुछ लोग इस इंतजार में हैं कि कब मार्च गुजरे और अप्रैल से वह दोबारा सब्सिडी पर गैस सिलेंडर ले सकें। वहीं शहर में कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिन्होंने अभी तक सब्सिडी वाले पांच सिलेंडर खर्च नहीं किए हैं। इस स्थिति में वह बुकिंग कराने की जल्दी कर रहे हैं। ऐसे में गैस एजेंसी पर इन दिनों भीड़ बढ़ गई हैं। 
 

कुरान का सन्देश

4 तरीके: इनसे बिना ऑपरेशन पथरी बाहर निकल जाएगी


4 तरीके: इनसे बिना ऑपरेशन पथरी बाहर निकल जाएगी
आजकल पथरी का रोग एक आम समस्या हो गई है। पथरी होने पर रोगी को असहनीय पेट दर्द होता है।ऐसे में
 दर्द कभी-कभी बर्दाश्त से बाहर हो जाता है।
पथरी होने पर पेशाब करने में बहुत दिक्कत होती है और कई बार पेशाब रूक जाता है। पथरी होने की कोई उम्र नहीं होती है, यह किसी भी उम्र में हो जाती है।ऐसे में कई बार पेशाब रुक जाता है।मूत्र मार्ग में इंफेक्शन हो जाता है। वर्तमान में पथरी के अधिकतर मरीज 25-45 उम्र के बीच के हैं।
 अगर आप भी पथरी से परेशान हैं तो  ये उपाय अपनाएं ....
4 तरीके इस प्रकार हैं
1. कुल्थी से
2. मिश्री व सौंफ से
3. आंवलें से
4. पानी से  


-250 ग्राम कुल्थी कंकड़-पत्थर निकाल कर साफ कर लें।
- रात में 3  लीटर पानी में भिगो दें। सवेरे भीगी हुई कुल्थी उसी पानी सहित धीमी आग पर चार घंटे पकाएं। जब 1लीटर पानी रह जाएतब नीचे उतार लें। फिर 30 ग्राम से 50 ग्राम (पाचन शक्ति के अनुसार) देशी घी का उसमें छोंक लगाएं। छोंक में थोड़ा-सा सेंधा नमक, काली मिर्च, जीरा, हल्दी डाल सकते हैं। पथरीनाशक औषधि तैयार है।
- दिन में कम-से-कम एक बार दोपहर के भोजन के स्थान पर यह  250 ग्राम पानी अवश्य पिएं।
-मूत्राशय की पथरी गल कर बिना ऑपरेशन के बाहर आ जाती है।
 - चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ, जिनमें कैफीन पाया जाता है, न पीएं। साथ ही कोल्डड्रिंक का सेवन न करें।
- नारियल पानी पीने से पथरी निकल जाती है। जौ का पानी पीने से भी पथरी निकल जाती है।
- मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया सभी को 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर को डेढ़ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दें। शाम को छानकर इन्हें पीसकर इसी पानी में घोलकर छान कर पीएं। एक बार में पूरा न पी पाएं तो कुछ समय बाद फिर पीएं।
- जीरे और चीनी को समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच ठंडे पानी से रोज तीन बार लेने से लाभ होता है15 दाने बड़ी इलायची के, एक चम्मच खरबूजे के बीज की गिरी और दो चम्मच मिश्री एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार रोज पीते रहें।
 - सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है। आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लें।
- पका हुआ जामुन खाने से पथरी रोग में आराम मिलता है।
- आंवले का चूर्ण मूली के साथ खाने से मूत्राशय की पथरी में लाभ होता है।}
- पथरी के रोगियों को टमाटर,पालक आदि के सेवन में संयम बरतना चाहिए।
  ज्यादा पानी पीएं। एक दिन में कम से कम दो से तीन लीटर पानी पीएं।
- शरीर में पानी की कमी होने से गुर्दे में पानी कम छनता है।
- पानी कम छनने से शरीर में मौजूद कैल्शियम, यूरिक एसिड और दूसरे पथरी बनाने वाले तत्व गुर्दे में फंस जाते हैं जो बाद में धीरे-धीरे पथरी बन जाते हैं।

तुझे इतने चुम्मे दूंगा..इतने चुम्मे दूंगा कि हीरा हमको ही मिलेगा,अनोखी प्रतियोगिता!


तुझे इतने चुम्मे दूंगा..इतने चुम्मे दूंगा कि हीरा हमको ही मिलेगा,अनोखी प्रतियोगिता!
प्यार की कोमल भावना को व्यक्त करने का माध्यम है चुंबन, जहां प्रेम और काम के आवेग में आकर युवा जोड़े या प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे के लबों को चूमते हैं। वाक ई पूरे तन-मन में आग लगा देने वाला होता है यह अहसास और जब तैयार हों दोनों युगल और मन के आवेग एक जैसे हों, तब चुंबन लेने का मजा वही जान सकता है, जो वाकई इस अनुभव से गुजरा हो।
लेकिन यदि यही चुंबन किसी प्रतियोगिता का हिस्सा बन जाए और इसलिए जरूरी हो जाए कि आपको प्रतियोगिता जीतनी है, तो यह सुनकर वाकई आपको आश्चर्य होगा, क्योंकि हमारे यहां तो प्रेमी-प्रेमिका खुले आम किसी को चुंबन नहीं लेते और यदि लें तो इसे अभद्र माना जाएगा।
  लेकिन चीन में तो बाकायदा ऐसी प्रतियोगिता  होती है, जहां चूमने की आजादी है क्योंकि आप प्रतियोगिता का हिस्सा हैं।

अनूठा मंदिर...घंटी बजते ही पुजारी लगा देता है भगवान के कान पर मोबाइल!


PIX : अनूठा मंदिर...घंटी बजते ही पुजारी लगा देता है भगवान के कान पर मोबाइल!
इंदौर। आज से लगभग 1200 साल पहले इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी। किसने और क्यों बनवाया इसके बारे में तो कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।इसके बनाए जाने की सटीक तारीख भी नहीं पता। लेकिन इस मंदिर के बारे में जो बात मालूम है, वो बहुत ही रोचक है। गणेश जी का यह मंदिर अपनेआप में बेहद अनूठा है। इस मंदिर में भक्त और भगवान के बीच संवाद की अनूठी व्यवस्था है। पहले जहां भक्तगण अपनी परेशानियों और मुरादों के लिए भगवान को पत्र लिखते थे, वहीं बदलते जमाने में संचार के साधनों में भी बदलाव आ गया है। भक्त अब चौबीसों घंटे भगवान के संपर्क में रहते हैं।यह संभव हुआ है मोबाइल फोन के कारण। अब मंदिर के पुजारी को एक-एक पत्र भगवान को पढ़कर नहीं सुनाना पड़ता। बस जैसे ही मोबाइल की घंटी घनघनाती है, पुजारी जी उसे भगवान के कान में लगा देते हैं।
 1200 वर्ष पुराने इस मंदिर में जहां भगवान गणेश हफ्ते के सातों दिन और चौबीसों घंटे मोबाइल फोन के जरिए अपने भक्तों के संपर्क में रहते हैं।इंदौर के जूना चिंतामण गणेश भक्तों की मुराद पूरी करने के लिए हर वक्त मोबाइल फोन पर उपलब्ध रहते हैं।
जूना चिंतामण गणेश मंदिर करीब 1200 वर्ष पुराना है। यहां के पुजारी ने बताया कि पिछले 22 वर्षों से जूना गणेश मंदिर में प्रतिदिन डाकिया डाक लेकर आता है, जिसमें कुछ में मुरादें तो कुछ में समस्या और किसी में समस्या हल हो जाने के धन्यवाद की बातें कही गई होती है।
यह सिलसिला अब भी जारी है। बस अब इस रुटीन में थोड़ा बदलाव आ गया है। मोबाइल फोन की बढ़ती लोकप्रियता के चलते अब पत्रों के साथ ही भक्तों के फोन भी भगवान के पास आने लगे हैं। जब भी किसी भक्त का फोन आता है तो मंदिर के पुजारी फोन भगवान के कान में लगा देते हैं और भक्त अपनी तमाम समस्या भगवान गणेश को सुना देते हैं।
 भगवान के दरबार में आने वाले भक्तों का भी यही मानना है कि जूना चिंतामण गणेश वाकई में मोबाइल फोन पर या पत्र के जरिए मांगी गई हर मुराद पूरी करते हैं।
भगवान गणेश के लिए फोन न सिर्फ भारत के हर कोने से बल्कि विदेशों से भी आते हैं। जिन भक्तों की फरियाद बड़ी होती है वे भक्त चिठ्ी के जरिए अपनी बात कहते हैं। भक्तों का विश्वास है कि इन माध्यमों से भी भगवान गणेश उनकी हर मुराद पूरी करते हैं।

आज छायावादी साहित्य जगत की स्तम्भ महादेवी वर्मा की 106 वीं जयंती है


आज छायावादी साहित्य जगत की स्तम्भ महादेवी वर्मा की 106 वीं जयंती है। महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन 26 मार्च, 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। संयोग की बात यह कि आज भी होली का दिन है।महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे औरमाता श्रीमती हेमरानी देवी थीं। महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे।[महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीराबाई कहा जाता है। महादेवी जी छायावाद रहस्यवाद के प्रमुख कवियों में से एक हैं। हिन्दुस्तानी स्त्री की उदारता, करुणा, सात्विकता, आधुनिक बौद्धिकता, गंभीरता और सरलता महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व में समाविष्ट थी। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विलक्षणता से अभिभूत रचनाकारों ने उन्हें 'साहित्य साम्राज्ञी, हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि', 'शारदा की प्रतिमा' आदि विशेषणों से अभिहित करके उनकी असाधारणता को लक्षित किया। महादेवी जी ने एक निश्चित दायित्व के साथभाषा, साहित्य, समाज, शिक्षा और संस्कृति को संस्कारित किया। कविता में रहस्यवाद, छायावाद की भूमि ग्रहण करने के बावज़ूद सामयिक समस्याओं के निवारण में महादेवी वर्मा ने सक्रिय भागीदारी निभाई।
महादेवी वर्मा ने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया, व्यष्टि मूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। महादेवी वर्मा के गीतों का नाद-सौंदर्य, पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है।महादेवी वर्मा अपने परिवार में कई पीढ़ियों के बाद उत्पन हुई। उनके परिवार में दौ सो सालों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी, यदि होती तो उसे मार दिया जाता था। दुर्गा पूजा के कारण आपका जन्म हुआ। आपके दादा फ़ारसी और उर्दू तथा पिताजी अंग्रेज़ी जानते थे। माताजी जबलपुर से हिन्दी सीख कर आई थी, महादेवी वर्मा ने पंचतंत्र और संस्कृत का अध्ययन किया। महादेवी वर्मा जी को काव्य प्रतियोगिता मे चांदी का कटोरा मिला था। जिसे इन्होंने गाँधीजी को दे दिया था। महादेवी वर्मा कवि सम्मेलन में भी जाने लगी थी, वो सत्याग्रह आंदोलन के दौरान कवि सम्मेलन में अपनी कवितायें सुनाती और उनको हमेशा प्रथम पुरस्कार मिला करता था।
महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुयी। शिक्षा और साहित्य प्रेम महादेवी जी को एक तरह से विरासत में मिला था। महादेवी जी में काव्य रचना के बीज बचपन से ही विद्यमान थे। छ: सात वर्ष की अवस्था में भगवान की पूजा करती हुयी माँ पर उनकी तुकबन्दी:
ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चन्दन उन्हें लगाती
उनका भोग हमें दे जाती
तब भी कभी न बोले हैं
मां के ठाकुर जी भोले हैं।
वे हिन्दी के भक्त कवियों की रचनाओं और भगवान बुद्ध के चरित्र से अत्यन्त प्रभावित थी। उनके गीतों में प्रवाहित करुणा के अनन्त स्रोत को इसी कोण से समझा जा सकता है। वेदना और करुणा महादेवी वर्मा के गीतों की मुख्य प्रवृत्ति है। असीम दु:ख के भाव में से ही महादेवी वर्मा के गीतों का उदय और अन्त दोनों होता है।महादेवी वर्मा अपने घर में सबसे बड़ी थी उनके दो भाई और एक बहन थी। उन दिनों के प्रचलन के अनुसार महादेवी वर्मा का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था परन्तु महादेवी जी को सांसारिकता से कोई लगाव नहीं था अपितु वे तो बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं और स्वयं भी एक बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं। विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। महादेवी वर्मा की शादी 1914 में डॉ. स्वरूप नरेन वर्मा के साथ इंदौर में 9 साल की उम्र में हुई, वो अपने माँ पिताजी के साथ रहती थीं क्योंकि उनके पति लखनऊ में पढ़ रहे थे। 1919 में इलाहाबाद में क्रास्थवेट कॉलेज से शिक्षा का प्रारंभ करते हुए महादेवी वर्मा ने 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। तब तक उनके दो काव्य संकलन 'नीहार' और 'रश्मि' प्रकाशित होकर चर्चा में आ चुके थे। महादेवी जी में काव्य प्रतिभा सात वर्ष की उम्र में ही मुखर हो उठी थी। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी कविताऐं देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने लगीं थीं।
महादेवी वर्मा ने अपने प्रयत्नों से इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। महादेवी वर्मा पाठशाला में हिन्दी-अध्यापक से प्रभावित होकर ब्रजभाषा में समस्या पूर्ति भी करने लगीं। फिर तत्कालीन खड़ी बोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ी बोली में रोला और हरिगीतिका छन्दों में काव्य लिखना प्रारम्भ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर सौ छन्दों में एक खण्डकाव्य भी लिख डाला। 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका 'चाँद' का कार्यभार सँभाला। प्रयाग में अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद हिन्दी के प्रति गहरा अनुराग रखने के कारण महादेवी वर्मा दिनों-दिन साहित्यिक क्रियाकलापों से जुड़ती चली गईं। उन्होंने न केवल 'चाँद' का सम्पादन किया वरन् हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयाग में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की। उन्होंने 'साहित्यकार' मासिक का संपादन किया और 'रंगवाणी' नाट्य संस्था की भी स्थापना की।
महादेवी वर्मा के 1934 में 'नीरजा', 1936 में 'सांध्यगीत' नामक संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में 'यामा' शीर्षक से प्रकाशित किया गया।'आधुनिक कवि-महादेवी' में उनके समस्त काव्य से उन्हीं द्वारा चुनी हुई कविताऐं संकलित हैं। महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ एक विशिष्ट गद्यकार थीं। 'यामा' में उनके प्रथम चार काव्य-संग्रहों की कविताओं का एक साथ संकलन हुआ है। कवि के अतिरिक्त वे गद्य लेखिका के रूप में भी पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। 'स्मृति की रेखाएं' (1943 ई.) और 'अतीत के चलचित्र' (1941 ई.) उनकी संस्मरणात्मक गद्य रचनाओं के संग्रह हैं। 'श्रृंखला की कड़ियाँ' (1942 ई.) में सामाजिक समस्याओं, विशेषकर अभिशप्त नारी जीवन के जलते प्रश्नों के सम्बन्ध में लिखे उनके विचारात्मक निबन्ध संकलित हैं। रचनात्मक गद्य के अतिरिक्त 'महादेवी का विवेचनात्मक गद्य' में तथा 'दीपशिखा', 'यामा' और 'आधुनिक कवि-महादेवी' की भूमिकाओं में उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा का भी पूर्ण प्रस्फुटन हुआ है। ऐसी अमर साहित्य साधिका को उनके पावन जन्मोत्सव पर शत शत नमन।

"हमेशा की तरह इस बार भी त्यौहार पर मुझे लोग पूछेंगे

"हमेशा की तरह इस बार भी त्यौहार पर मुझे लोग पूछेंगे
बता देना --वह अब यहाँ नहीं रहता
दर -ओ -दीवार में भी नहीं
दिल -ओ -दिमाग में भी नहीं
यहाँ तो मर गया था वह
जनाजा जिम्मेदारी से वह खुद ही ले गया अपना, जरूरत के लिफ़ाफ़े में
वह किश्तों में मर रहा है फिर भी ज़िंदा है
हमारे लिए तो वह मर चुका है
तुम्हारे लिए ज़िंदा हो तो तलाश लो
ज़िंदा होगा कहीं अपने वीराने में
वह मर तो गया था बहुत पहले
पर सुना है सांस लेता है अभी
लोगों का मन रखने को हंसता भी है
प्यार के अभिवादन में मुस्कुराता भी है
वह मिजाज से रंगीन नहीं ग़मगीन सा था
वह कभी भी दीपावली पर पटाके नहीं चलाता था
उसे शोर नहीं पसंद ...संगीत पर भी वह नहीं थिरकता
दैहिक सुन्दरता उसे मुग्ध नहीं करती
दार्शनिक सुन्दरता वह समझता है
मरा हुआ आदमी शांत होता है न
पर संवेदना से वह सहम सा जाता है
शायद इसीलिए लोग उसे ज़िंदा मानते हैं ...औरों से ज्यादा ज़िंदा
उसके वीराने में कोई दस्तक दे ...यह उसे पसंद नहीं था पहले
उसकी मौजूदगी ऐसी थी जैसे शवयात्रा में कोई खिलखिला कर हंस पड़े
पर वह मर चुका है
उसके मरने की खबर सुन कर कुछ लोग खुश हैं
वह मर कर भी उनको खुशी दे गया
जो दुखी हैं वह इसलिए कि अब वह और खुशी नहीं दे सकेगा
वह अन्दर से तिलमिलाता
और बाहर से खिलखिलाता
अपनी शवयात्रा में शामिल है
सुना है वह बहुत साहसी है ...मरने से नहीं डरता
मर चुका आदमी भला मरने से डरेगा भी क्यों ?
मैंने उसे छोड़ दिया तो कौन सी बड़ी बात है
शरीर को आत्मा भी तो छोड़ देती है एक रोज
वह डूब रहा है अपने ही सन्नाटे में
बाहर के सन्नाटे से शोकाकुल है वह
वह अजीब है
डूबता हुआ आदमी, तैरता है तुम्हारी यादों में
जैसे लाश तैरती हो नदी में
जैसे आस तैरती हो सदी में
शोकगीत में उगी हुई यह कविता तुम्हें कैसी लगी ?
मरने के पहले वह बहुत कुछ जानना चाहता था, ...यह भी." ---- राजीव चतुर्वेदी
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