आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

30 मार्च 2013

"मेरा मौन गिर कर टूटा था जमीन पर


"मेरा मौन
गिर कर टूटा था जमीन पर
एक खनक के साथ
मेरी उंगलीयाँ बटोरती हैं मौन के टुकड़े
खून मेरा है ...उंगलीयाँ मेरी हैं ...ख्वाब मेरे हैं ...ख्वाहिशें तेरी हैं
जो शब्द बिखरे हैं तेरे हमशक्ल से क्यों हैं ?
इन शब्दों की आहत सी आहट में संगीत सुनो तो सुन लेना
उसमें धड़कन मेरी भी शामिल है
वह शब्द रक्त से व्यक हुए हैं
सपने मेरे सिसकी तेरी भी शामिल है
आवारा अहसास हमारा लाबारिस है." ----राजीव चतुर्वेदी

"बुद्धिजीवी और बुद्धिखोर का अंतर ही अभिव्यक्ति की आज़ादी की अंतरकथा है

"बुद्धिजीवी और बुद्धिखोर का अंतर ही अभिव्यक्ति की आज़ादी की अंतरकथा है. इसके बीच से जाती है पत्रकारिता की पगडंडी. चूंकि पत्रकारिता बाजार है सो बाजार का आचरण और बाजार का व्याकरण लागू होना ही था, सो होगया. जब पत्रकारिता बाजार में है तो बिकाऊ होगी ही. ऐसे में सच दो प्रकार का हो जाता है, एक --बिकाऊ सच और दूसरा टिकाऊ सच . टिकाऊ सच वाले बुद्धिजीवी कहे जाने के हकदार हैं और बिकाऊ सच गढ़ने और मढने वाले बुद्धिखोर. आज राजनीति और नौकरशाही में हरामखोर तथा पत्रकारिता में बुद्धिखोर प्रचुर मात्रा में हैं--एक खोजो हजार मिलते हैं. मांग से ज्यादा आपूर्ति है इसलिए इन हरामखोरों और बुद्धिखोरों का बाजार भाव गिर गया है. पत्रकारिता में किसी विचारधारा को चिन्हित कर प्रसार संख्या बढाने का हथकंडा उतना ही पुराना है जितनी हमारी आजादी. जैसे ही देश में समाजवादी विचारधारा का उदय हुआ याद करें पत्रकारिता के क्षेत्र में "दिनमान" नामक समाचार पत्रिका ने दस्तक दी. अनजाने में समाजवादी विचारधारा ने दिनमान के होकर का काम किया और दोनों ही खूब चलीं. फिर समाजवादी विचारधारा का लोहिया की मृत्यु के बाद पराभव हुआ तो दिनमान भी बंद हो गयी. १९७७ में कोंग्रेस विरोधी लहर पर सवार हो कर ई समाचार पत्रिका "माया" को याद करें. ग़ैर कोंग्रेसवाद के प्रथम दौर का खात्मा वीपी सिंह से मोहभंग के साथ ही हो गया सो माया भी बंद हो गयी. इस बीच अंग्रेजी में सन्डे और हिन्दी में रविवार आयीं किन्तु ग़ैर कोग्रेसवाद की नकारात्मक विचारधारा के पतन के साथ इनका भी प्रकाशन बंद हो गया किन्तु इस बीच इंडियन एक्सप्रेस प्रकाशन ने हिन्दी में जनसत्ता का प्रकाशन किया यह उस कालखंड की घटना थी जब इन्द्रा गांधी की ह्त्या हुई थी और फिर राजीव गांधी विराट बहुमत हासिल कर प्रधानमंत्री बने थे लेकिन दिल्ली की नाक के नीचे हरियाणा में देवीलाल ने ग़ैर कोंग्रेसवाद का झंडा फहरा कर सरकार बना ली. जब जनता दल की सरकार बनने जा रही थी तब वीपीसिंह और चन्द्र शेखर के बीच कौन प्रधानमंत्री बनेगा यह द्वंद्व हुआ. ऐसे में शक्ति संतुलन के पासंग देवी लाल थे और देवी लाल को रहस्यमय तरीके से चन्द्र शेखर से विश्वासघात करके वीपी सिंह की तरफ करने का मायाबी काम किसी राजनैतिक व्यक्ति ने नहीं किया था बल्कि जनसत्ता के प्रधान सम्पादक प्रभाष जोशी ने किया था. क्या यह राजनैतिक धड़ेबाजी पत्रकारिता का काम था या पत्रकारिता में लाइजनिंग जैसी विधाओं का घालमेल ? खैर ग़ैर कोंग्रेसवाद के अवसान के साथ ही जनसत्ता भी ख़त्म होगया और प्रभाष जोशी राज्य सभा में येन केन प्रकारेण पहुँचने की अभिलाषा लिए प्रखर और प्रतापी पत्रकार का संतापी स्वरूप लेकर दिवंगत हो गए. आपातकाल की प्रेस सेंसरशिप (१९७५-७७ ), फिर राजीव गांधी का मानहानि विधेयक (१९८४-८५) और अब मन मोहन सिंह का सोसल साईट सेंसर का प्रयास लोगों को यह दलील देता है कि प्रेस की स्वतंत्रता पर तीनो बार कोंग्रेस के समय ही हमला किया गया पर यह अर्ध सत्य है. क्या समाजवादी मुलायम सिंह की सरकार ने उत्तर प्रदेश में प्रेस पर हल्लाबोल नहीं किया था ? क्या कांसी राम ने लखनऊ में दैनिक जागरण पर हमला नहीं किया था ? क्या ममता बनर्जी प्अभिव्यक्ति की आजादी बर्दाश्त करती हैं ? क्या कारगिल युद्ध के बाद ताबूत घोटाले के आक्षेपों से क्षुब्ध अटल सरकार ने प्रेस पर दबाव नहीं बनाया था ? इस परिदृश्य में पत्रकारिता में बुद्धिजीवी लुप्तप्राय प्रजाति है और बुद्धिखोर उपलब्धप्राय प्रजाति. यह बुद्धिखोर पत्रकार ख्याति पाने के लिए विवाद का मवाद बनने की जुगत लगा ही लेते हैं. अन्ना आन्दोलन इसका ताजा उदाहरण है. कई बुद्धिखोर अपने बिलों से निलाल पड़े और देश में क्रान्ति के कुटीर उद्योग ही चल पड़े. प्यार की ईलू -ईलू कवितायें लिखने वाले कुमार विश्वास क्रान्ति के स्वयंभू प्रवक्ता हो गए और कवि सम्मलेन में उनकी दिहाड़ी बढ़ गयी इस प्रकार एक विचारधारा पर चढ़ कर वह बाजार के कीमती कवि और सफल बुद्धिखोर हो गए. असीम त्रिवेदी भी छः माह पहले तक देश में ढंग से नहीं जाने जाते थे पर आज वह चर्चा की गुलेल पर सवार हैं. पर सवाल है क्या बाजारू हथकंडे से राष्ट्रीय प्रतीकों से खेला जा सकता है ? क्या राष्ट्रीय प्रतीक हमारा खिलौना हैं या उनका सार्वभौमिक सम्मान हम सभी की संवैधानिक वाध्यता है ? क्या सपा नेता आज़म खान द्वारा भारत माता को डायन कहना जायज था ? ...क्या कश्मीर में तिरंगा झंडा अलगावबादीयों द्वारा सडक पर जूतों से कुचला जाना जायज था ? क्या कहीं भारतीय संविधान को जलाया जाना जायज है ? --अगर नहीं तो फिर किसी कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी द्वारा भारतीय सम्प्र्क़भुता के प्रतीक चिन्ह अशोक की लाट के शेरों के मुह को कुत्ते का मुह बना कर प्रस्तुत करना भला कैसे जायज है ? आप राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों को कुरूप भला कैसे कर सकते हैं ? यह सही है कि अन्ना के आन्दोलन को उकेरते हुए असीम अच्छे सम्प्र्षित करने वाले कार्टून बना रहे थे पर यह भी सही है कि इसी अतिरेक में उन्हें अपनी सीमाओं का ध्यान नहीं रहा और मर्यादा का उलंघन कर बैठे. स्वतन्त्रता और स्वच्छंदता में अंतर होता है. व्यंग व्यवस्था पर होना चाहिए अव्यवस्था का प्रतिपादक नहीं. यहाँ Facebook पर अभिषेक तिवारी (राजस्थान पत्रिका ) ,श्याम जगोटा और श्री कुरील बहुत ही पैनी अभिव्यक्ति के व्यंग चित्र बना रहे हैं. व्यंग व्यवस्था के स्वरुप को बरकरार रखने के लिए हो तो आग्रह है और व्यवस्था को कुरूप बनाता तो तो दुराग्रह .व्यंगों की भी एक आचार संहिता तो है ही." ----राजीव चतुर्वेदी

इस क़दर तुम तो अपने क़रीब आ गए,

Manish Satpal Verma
इस क़दर तुम तो अपने क़रीब आ गए,कि तुम से बिछड़ना गवारा नहीं
ऐसे बांधा मुझे अपने आगोश में,कि ख़ुद को अभी तक सँवारा नहीं
अपनी ख़ुश्बू से मदहोश करता मुझे,दूसरा कोई ऐसा नज़ारा नहीं
दिल की दुनिया में तुझको लिया है बसा,तुम जितना मुझे कोई प्यारा नहीं
दिल पे मरहम हमेशा लगाते रहे,आफ़तों में भी मुझको पुकारा नहीं
अपना सब कुछ तो तुमने है मुझको दिया,रहा दिल तक तो अब ये हमारा नहीं
हमसफ़र तुम हमारे हमेशा बने,इस ज़माने का कोई सहारा नहीं
साथ देते रहो तुम मेरा सदा,मिलता ऐसा जनम फिर दुबारा नहीं

हम ऐसा देश बनाएँ

Manish Satpal Verma
हम ऐसा देश बनाएँ

आओ इस जग को मिलकर हम अपनी गूँज सुनाएँ,
रहे देखता सारा जग हम ऐसा देश बनाएँ |

हर तिनके में एक किरण जहाँ चमके आज़ादी की,
आसमान को छूने की इच्छा हो हर वादी की |

सूर्य उगे तो उजियाला करदे कोने-कोने में,
सांज ढले तब रहे न कोई बैठा किसी कोने में |

एक हो हर मन और एक हो सारी मानवजाति,
एक जहाँ हर दिल की धड़कन, एक ही ताल मिलाती |

भाईचारा एक धर्म हो, न हो इसके हिस्से,
धर्म नाम पर शर्मनाक न कर्म रहे न किस्से |

राम, रहीम, गुरदीप, जोर्ज भी सब मिलजुलकर खेले,
नए क्षितिज पर लगते रहे, नए रंगों के मेले |

आँधी-तूफानों में हम, डटे रहे हिम्मत से,
धूल चटा दे दुश्मन को, मिलकर अपनी ताकत से |

अमर शहीदों की कुर्बानी, कोई कभी न भूले,
देशप्रेम के फूल हमेशा, डाल-डाल पर झूले |

एक हाथ में संस्कृतियों की आभा सुन्दर साजे,
हाथ में दूजे आधुनिक विज्ञान की वीणा बाजे |

टेक निभाए एक-एक जन नेक इरादा करके,
सेंक-सेंक फिर फूंक-फूंक, सब खाएँ रोटी करके |

गड्ढे में गिर जाएँ न हम, मूंदी आँखें खोलें,
मन को और वतन को कोई, रुपयों में न तोले |

झगड़े कोई अपनों से तो खुद ही उसे मनाले,
घर को मंदिर और बड़ों को अपना ईश बनाले |

कलम उठाए हर कोई, शिक्षा हो हर बच्चे की,
दुत्कारे झूठे को सब जन, कदर करें सच्चे की |

ऊंचनीच में भेद न हो, ना छेद हो दीवारों में,
रह ना जाए खेद कहीं पर मन की फूहारों में |

रुके नहीं हम, झुके नहीं हम, चूकें न मंजिल से,
सच्ची लगन, परिश्रम आए खिलखिलकर हर दिल से |

रंग-रूप-गुण अपने देश के दुनिया को हम गिनाएँ,
रहे देखता सारा जग हम ऐसा देश बनाएँ,
रहे देखता सारा जग हम ऐसा देश बनाएँ |

हम सब स्वर्गीय हो जाएँ ।

Manish Satpal Verma
आओ हम सब मिलकर इस धरती को स्वर्ग बनाएँ,
हम सब स्वर्गीय हो जाएँ ।

सुना है, वहाँ स्वर्ग में झगड़े नहीं होते,
छोटी-छोटी बातों में रगड़े नहीं होते ।
इस दुनिया से तो हम झगड़ों को मिटा ना सके,
खुद भी इस तरह उलझे, कि चाह कर भी सुलझा न सके ।
तो आओ हम सब मिलकर इस धरती को स्वर्ग बनाएँ,
हम सब स्वर्गीय हो जाएँ ।

सुना है, स्वर्ग में बोलते है सब मौन की भाषा,
सब समझते है, एक-दूसरे की मन की अभिलाषा ।
यहाँ आज़ चर्चा होती रहती है कि किसने क्या कहाँ ?
उसने क्यों कहाँ? उसने कैसे कहाँ? उसने कब कहाँ?
शब्द दिया प्रभु ने हमें, मन की खुशी को व्यक्त करने को,
हमने बना डाला शब्दों को तीर-तलवार, मनों को छलनी करने को ।
तो आओ हम सब मिलकर इस धरती को स्वर्ग बनाएँ,
हम सब स्वर्गीय हो जाएँ ।

समस्त जीवन भर, हम कहते-सुनते रहते है, कि
ये करोगें तो नरक में जाओगे, वो करोगें तो नरक में जाओगे,
पर बाद मरने के, कोई नहीं कहता है कि वो नरकवासी हो गया ।
चाहे हो धर्म या फ़िर हो ज्ञान, सब बता रहे है यही कि
इस समय, जीवन घोर नरक हो गया है इस युग में ।
तो आओ हम सब मिलकर इस धरती को स्वर्ग बनाएँ,
हम सब स्वर्गीय हो जाएँ ।

बीमारी, गरीबी, भूख-प्यास, हर तरफ़ बढ़ते हुए अत्याचार-अनाचार,
जीवन की दौड़ में खोता हुआ बाल-पन, भ्रमित यौवन,
बिसराया हुआ वृद्धापन, अपने को समझने की कोशिश में करता हुआ पौढ़ापन ।
ये उजड़ते हुए वन, सुकड़ती हुई नदियां, पिघलती हुई बर्फ़,
हर तरफ़ उमड़ता हुआ काल का कोलाहल, बदलती हुई धरती,
पिघलता हुआ आसमान, इन सब को तो शायद अब हम रोक ना पायेगें,
इस जीवन को, इस धरती को, इस आसमान को, इस मन को,
हम दिन-प्रतिदिन और नारकीय बनाते जायेगें ।
तो आओ हम सब मिलकर इस धरती को स्वर्ग बनाएँ,
हम सब स्वर्गीय हो जाएँ ।

यूँ बात और भी हैं

Satish Sharma
यूँ बात और भी हैं
जो आपसे करनी है -
वैसे अपनी अपनी करनी
यहाँ खुद ही को भरनी हैं .

एक बाबाजी -
योग पढ़ाते पढ़ाते
जनता को - जाने
क्या उल्टा पढ़ा बैठे .
डूबे पैसों का हिसाब
जनता को बता बैठे .
तबसे सरकार
उनसे दूध राशन भाजी का
हिसाब मांग रही है
सीबीआई जैसे - जाने कितने
आई जाँच पड़ताल में
लगवा दिए - गरीबी के
मुश्किल से भरे गढ्ढे -
माता सोनिया ने
फिर से खुदवा दिए .
.
एक अन्नाजी -
अनशनयोग की शिक्षा
आपके नाम कर गए - वैसे
आमरण अनशन करते करते
बिना रुके - सीधे
अपने घर गए .

कहने को - ये
आम आदमी है
पर जाने क्यों लगते ख़ास हैं
वर्तमान सत्ता की बहूत
भारी आस हैं -

आजकल अन्ना के
अनशन एपिसोड को
आगे बढ़ा रहे हैं - यूँ
ये पता नहीं चलता की
हम आगे बढ़ रहें हैं की
पीछे जा रहें हैं .

खिजां में खिलने लगे हैं गुल


खिजां में खिलने लगे हैं गुल
अब बहारों की बात जाने दो .
तेरे आने का कोई ठीक नहीं
जो आ रहाहै उसे तो आने दो .

निजी बस खाई में पलटी



city news
चेचट (कोटा)। भानपुरा से कोटा जा रही एक निजी बस गुरूवार सुबह दस बजे अमजार लिंक सड़क पर भटवाड़ा के पास असंतुलित होकर खाई में पलट गई। इससे तीन दर्जन से अघिक यात्री घायल हो गए। इनमें से गंभीर घायल आधा दर्जन यात्रियों को ग्रामीणों ने स्वयं के स्तर पर साधन की व्यवस्था कर कोटा एमबीएस अस्पताल में भेजा तथा कुछ का चेचट चिकित्सालय में उपचार कराया। इस दुर्घटना में कोई हताहत नहीं हुआ। बस में करीब 90 यात्री थे।

मूर्ख बनाने के लिए आखिर एक अप्रैल ही क्यों?

अप्रैल फूल का नाम जुबान पर आते ही सभी के दिमाग पर एक अप्रैल की तारीख छा जाती है। भले ही आप सभी अपने दोस्तों या करीबियों के साथ कोई मजाक कर उन्हें मूर्ख बनाने की कोशिश हर रोज करते होंगे, लेकिन एक अप्रैल को यह कुछ खास होता है। यूं समझिए कि यह दिन खास इसलिए ही रखा कि आप अपनों के साथ कुछ मजाक कर उन्हें मूर्ख बना सकें और उनके चेहरे पर कुछ समय के लिए हंसी ला सके। लेकिन ध्यान यह भी रखना चाहिए कि आपका मजाक किसी के लिए नुकसानदायक साबित न हो जाए। लेकिन यहां पर एक बात सोचने वाली यह है कि आखिर एक अप्रैल की ही तारीख मूर्ख दिवस के लिए क्यों रखी गई। आइए जानते हैं :-
दरअसल अप्रैल फूल का इतिहास का बहुत ही पुराना है। इस बारे में 1392 में चॉसर के कैंटबरी टेल्स में पाया जाता है। ब्रिटिश लेखक चॉसर की किताब द कैंटरबरी टेल्स में कैंटरबरी नाम के एक कस्बे का जिक्र किया गया है। इसमें इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च, 1381 को होने की घोषणा की गई थी जिसे वहां के लोग सही मान बैठे और मूर्ख बन गए, तभी से एक अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाया जाता है।
हालांकि ऐसे लोग भी कम नहीं हैं जो यह मानते हैं कि इसकी शुरुआत 17वीं सदी में हुई थी। इसके पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है। 1564 से पहले यूरोप के लगभग सभी देशों में एक जैसा कैलेंडर प्रचलित था, जिसमें हर नया वर्ष पहली अप्रैल से शुरू होता था। सन 1564 में वहां के राजा चा‌र्ल्स नवम ने एक बेहतर कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया। इस नए कैलेंडर में 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया था। अधिकतर लोगों ने इस नए कैलेंडर को अपना लिया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाने से इन्कार कर दिया था। वह पहली जनवरी को वर्ष का नया दिन न मानकर पहली अप्रैल को ही वर्ष का पहला दिन मानते थे। ऐसे लोगों को मूर्ख समझकर नया कैलेंडर अपनाने वालों ने पहली अप्रैल के दिन विचित्र प्रकार के मजाक करने और झूठे उपहार देने शुरू कर दिए और तभी से आज तक पहली अप्रैल को लोग फूल्स डे के रूप में मनाते हैं।
इस दिन को लेकर कई और कहानियां भी प्रचलित हैं, लेकिन हर कथा का मूल उद्देश्य है पूरे दिन को मनोरंजन के साथ व्यतीत करना है। बहुत पहले यूनान में मोक्सर नामक एक मजाकिया राजा था। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि किसी चींटी ने उसे जिंदा निगल लिया है। सुबह उसकी नींद टूटी तो स्वप्न की बात पर वह जोर-जोर से हंसने लगा। रानी ने हंसने का कारण पूछा तो उसने बताया कि रात मैंने सपने में देखा कि एक चींटी ने मुझे जिंदा निगल लिया है। सुन कर रानी भी हंसने लगी। तभी एक ज्योतिष ने आकर कहा, महाराज इस स्वप्न का अर्थ है, आज का दिन आप हंसी-मजाक व ठिठोली के साथ व्यतीत करें। उस दिन अप्रैल महीने की पहली तारीख थी। बस तब से लगातार एक हंसी-मजाक भरा दिन हर वर्ष मनाया जाने लगा।
एक अन्य लोक कथा के अनुसार एक अप्सरा ने किसान से दोस्ती की और कहा- यदि तुम एक मटकी भर पानी एक ही सांस में पी जाओगे तो मैं तुम्हें वरदान दूंगी। मेहनतकश किसान ने तुरंत पानी से भरा मटका उठाया और पी गया। जब उसने वरदान वाली बात दोहराई तो अप्सरा बोली- तुम बहुत भोले-भाले हो, आज से तुम्हें मैं यह वरदान देती हूं कि तुम अपनी चुटीली बातों द्वारा लोगों के बीच खूब हंसी-मजाक करोगे। अप्सरा का वरदान पाकर किसान ने लोगों को बहुत हंसाया। इसी कारण ही एक हंसी का पर्व जन्मा, जिसे हम अप्रैल फूल के नाम से पुकारते हैं।
बहुत पहले चीन में सनन्ती नामक एक संत थे, जिनकी दाढ़ी जमीन तक लम्बी थी। एक दिन उनकी दाढ़ी में अचानक आग लग गई तो वे बचाओ-बचाओ कह कर उछलने लगे। उन्हें इस तरह उछलते देख कर बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। तभी संत ने कहा, मैं तो मर रहा हूं, लेकिन तुम आज के ही दिन खूब हंसोगे, इतना कह कर उन्होंने प्राण त्याग दिए।

अप्रेल फूल या मूर्ख दिवस

﴿ كذبة إبريل ﴾
हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत दे दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद:
झूठ बोलना नैतिकता के विरूद्ध है, समस्त धर्म-शास्त्रों में इस के प्रति चेतावनी आई है, और इसी पर मानव प्रकृति की आम सहमति भी है और स्वस्थ बुद्धि के लोगों का भी यही मानना है।
इस्लाम धर्म के अन्दर क़ुर्आन व हदीस में झूठ से बचने का आदेश आया है, और उसके हराम होने पर सर्वसहमति है, तथा झूठ बोलने वाले का दुनिया व अखिरत में बुरा अंजाम है।
इस्लामी धर्म शास्त्र में झूठ बोलना क़तई वैध नहीं है सिवाय कुछ सुनिश्चित मामलों के जिन पर किसी के अधिकार को हड़प करना, या खून बहाना, या किसी की इज़्ज़त व आबरू (सतीत्व) पर आरोप लगाना निष्कर्षित नहीं होता है। बल्कि इन स्थितियों में (झूठ बोलने का उद्देश्य) किसी की जान बचाना, या दो आदमियों के बीच सुलह-सफाई कराना, या पति और पत्नी के बीच प्रेम पैदा कराना होता है।
तथा इस्लामी शास्त्र में कोई भी दिन या एक क्षण भी ऐसाा नही है जिसमें मनुष्य का झूठ बोलना, और जिस चीज़ का भी मन चाहे उसकी सूचना देना वैध हो, और न ही लोगों के बीच प्रचलित ‘अप्रेल फूल’ या मूर्ख दिवस’ में ही झूठ बोलना वैध है जिसके बारे में लोगों का यह भ्रम है कि अप्रेल के प्रथम दिन में बिना किसी नियम के झूठ बोलना जायज़ है।झूठ के हराम होने के प्रमाण:
1. अल्लाह तआला का फरमान है:  إِنَّمَا يَفْتَرِي الْكَذِبَ الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِ اللهِ وأُوْلـئِكَ هُمُ الْكَاذِبُونَ , النحلरू 105ख्ण्‘‘झूठ बात तो वही लोग गढ़ते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते, और यही लोग झूठे हैं।’’ (सूरतुन्नह्ल:105)
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह फरमाते हैं: ‘‘अल्लाह तआला ने सूचना दी है कि उसका पैग़म्बर झूठ बात गढ़ने वाला और झूठा नहीं है; क्योंकि अल्लाह तआला पर और उसके पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर झूठ बात वो लोग गढ़ते हैं जो सब से बुरे लोग हैं, जो अल्लाह तआला की आयतों पर ईमान नहीं रखते हैं जैसे नास्तिक और अधर्मी लोग जो लोगों के निकट झूठ बोलने में कुख्यात हैं, और पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तो लोगों में सब से सच्चे, सबसे नेक, तथा ज्ञान, अमल, ईमान और विश्वास में सब से संपूर्ण हैं, अपने समुदाय में सच्चाई से सुप्रसिद्ध हैं जिस में किसी को तनिक भी शंका नहीं है, उनके बीच वह विश्वस्त मुहम्मद के नाम से ही पुकारे जाते हैं।’’ (तफ्सीर इब्ने कसीर 2/588)
2. अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फरमाया: }آية المنافق ثلاث إذا حدث كذب وإذا وعد أخلف وإذا اؤتمن خان{ ;رواه البخاريरू33، ومسلمरू 59 द्धण्
‘‘मुनाफिक़ (पाखंडी ) की तीन निशानियाँ हैं: जब वह बात करे तो झूठ बोल, जब वादा करे तो उसके खिलाफ करे, और जब उसके पास अमानत रखी जाए तो खियानत करे।’’ (बुखारी:33, मुस्लिम:59)और सब से बुरा झूठ .. हँसी-मज़ाक में झूठ बोलना हैकुछ लोगों का मानना है कि उनके लिए हँसी-मज़ाक में झूठ बोलना वैध है, और यही बहाना बनाकर वो अप्रेल की पहली तारीख को या उसके अतिरिक्त अन्य दिनों में झूठ बोलते हैं, हालांकि यह एक गलती है, और पवित्र इस्लामी शरीअत में इसका कोई आधार नहीं है, बल्कि हर हालत में झूठ बोलना हराम और अवैध है चाहे आदमी मज़ाक कर रहा हो या वास्तव में झूठ बोल रहा हो।
इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: ‘‘मंै हँसी-मज़ाक करता हूँ, लेकिन सच्च के अलावा कुछ नहीं कहता।’’ (मोजमुल कबीर लित्तबरानी 12/391, शैख अल्बानी ने सहीहुल जामेअ में इसे सहीह कहा है: 1294)तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि: लोगांे ने कहा कि ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! आप तो हम से हँसी-मज़ाक करते हैं? आप ने उत्तर दिया: ‘‘मैं सच्च के सिवाय कुछ नहीं कहता।’’ (तिर्मिज़ी:1990)अप्रेल फूल:
अप्रेल फूल की वास्तविकता का निर्धारित रूप से कोई पता नहीं है, इसके के विषय में विभिन्न विचार हैं:कुछ लोगों ने उल्लेख किया है कि इसका आरम्भ बसन्त ऋत के उत्सवों के साथ हुवा जिस समय कि 21 मार्च को रात और दिन बराबर होते हैं ...
कुछ लोगों का विचार है कि यह बिद्अत प्राचीन काल और मूर्ति पूजा के उत्सवों और समारोहों तक फैला हुआ है, क्योंकि वह बसन्त ऋत के आरम्भ में एक निर्धारित तारीख से संबंधित है, इसलिए कि यह मूर्ति पूजा समारोहों का बचा हुआ भाग है, और कहा जाता है कि कुछ देशों में शिकार के प्रारंभिक दिनों में शिकार कम होता था, इसी कारण अप्रेल के पहले दिन में गढ़े जाने वाले झूट के लिए यह नियम बन गया था।
तथा कुछ लोगों ने इस अप्रेल फूल की वास्तविकता के विषय में इस प्रकार लिखा है कि:हम में से बहुत से लोग अप्रेल फूल (दूसरों को मूर्ख बनाने का दिवस) मनाते हैं जिसका शाब्दिक अर्थ ‘अप्रेल का धोखा’ है, किन्तु हम में से कितने लोग ऐसे हैं जो इसके पीछे छिपी हुई कड़वी सच्चाई को जानते हैं?
जब मुसलमान लगभग हज़ार वर्ष पूर्व स्पेन पर शासन करते थे तो वे उस समय एक ऐसी शक्ति थे जिसका तोड़ना असम्भव था, जबकि पश्चिमी ईसाई आशा करते थे कि इस्लाम को दुनिया से मिटा दें और कुछ हद तक वो सफल भी रहे।उन्हों ने स्पेन में मुसलमानों के विस्तार को रोकने और उनके उन्मूलन की कोशिशें कीं किन्तु वो सफल नहीं हुए, कई बार प्रयास किए पर असफल रहे।
इसके बाद नास्तिकों ने स्पेन में अपने जासूस भेजे ताकि वो अध्ययन करके मुसलमानों की अपराजित शक्ति के रहस्य की खोज करें, तो उन्हों ने पाया कि इसका कारण तक़्वा (ईश्भय, संयम, परहेज़गारी ) की प्रतिबद्धता है।
जब ईसाईयों को मुसलमानों की शक्ति के रहस्य का पता चल गया तो वो इस शक्ति को तोड़ने की रणनीति के बारे में सोचना लगे और इसके आधार पर उन्हों ने स्पेन में निःशुल्क शराब और सिगरेट भेजना शुरू कर दिया।
पश्चिम के लोगों का यह तरीक़ा (विधि) रंग लाया और अपना परिणाम दिया और स्पेन में मुसलमानों और खासकर युवा पीढ़ी का ईमान (अपने दीन के प्रति आस्था) कमज़ोर होने लगा। इसके परिणाम स्वरूप पश्चिमी केथोलिक ईसाईयों ने पूरे स्पेन को अपने नियंत्रण में कर लिया और उस देश मे मुसलमानों के सत्ता को समाप्त कर दिया जो अठ सौ वर्ष से भी अधिक समय तक स्थापित था। मुसलमानों का अन्तिम क़िला ग़र्नाता प्रथम अप्रेल को पराजित हुवा। इसी कारण उन्हों ने इसे अप्रेल के धोखा (अप्रेल फूल) का अर्थ दिया।
उसी वर्ष से आज तक वह इस दिन को मनाते चले आ रहे हैं और मुसलमानों को मूर्ख समझते हैं।वो मूर्खता और आसानी से धोखा देना केवल गरनाता की फौज के अन्दर सीमित नहीं समझते हैं बल्कि इसे समूचित मुस्लिम समुदाय की मूर्खता मानते हैं। और जब हम इन समारोहों में जाते हैं तो यह अज्ञानता (मूर्खता ) का एक प्रकार है, और जब हम इस घातक विचार को खेलने में उनकी अंधी नक़ल करते हैं तो यह एक प्रकार की नक़्क़ाली है जो हम में से कुछ लोगों की उनका अनुसरण करने में बेवक़ूफी और मूर्खता को स्पष्ट करती है। यदि हम इस आयोजन का कारण जानते तो हम अपनी पराजय का कभी भी जश्न न मनाते।
अब जबकि हम ने सच्चाई को जान लिया, आईये इस बात का दृढ़ संकल्प करें कि अब हम इस दिन (मूर्खत दिवस) को नहीं मनायें गे। केवल इतना ही नहीं बल्कि हमारे लिए अनिवार्य है कि हम स्पेन के लोगों से सबक़ सीखें, वास्तविक रूप से इस्लाम के आदेशों का पालन करने वाले बन जायें और अपने ईमान (आस्था ) को कभी भी कमज़ोर न होने दें।’’ हमारे लिए इस झूठ की वास्तविकता को जानना इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि इस दिन झूठ बोलने का हुक्म महत्वपूर्ण है, लेकिन यह बात सुनिश्चित है कि इस्लाम की उज्जवल प्राथमिक समय काल में इसका वजूद नहीं था, और न ही इस का प्रारंभिक स्रोत मुसलमान हैं, बल्कि यह उनके दुश्मनों की ओर से निकाली और पैदा की गई।
अप्रेल फूल के अवसर पर बहुत सारी दुर्घटनायें घटती हैं, चुनाँचि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें उन के बेटे य्ाा पत्नी य्ाा प्रिय्ाजन की मौत की सूचना दी गई और वह इस सदमे को सहन न कर सका और उसकी मृत्यु हो गई। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें उनकी नौकरी के समाप्त हो जाने, या आग लगने, या उसके किसी घर वाले के दुर्घटना-ग्रस्त हो जाने की सूचना दी जाती है और वह फालिज, या स्ट्रोक या इसके अतिरक्ति किसी अन्य घातक बीमारी का शिकार हो जाता है। तथा किसी से झूठमूट उसकी बीवी के बारे में बात की जाती है और यह कहा जाता है कि वह एक आदमी के साथ देखी गई है जिसके कारण उसे क़त्ल कर दिया जाता है या उसकी तलाक़ हो जाती है।
इसी प्रकार अंतहीन कहानियााँ और ऐसी दुर्घटनायें हैं जिनका कोई अन्त नहीं, और यह सब के सब उस झूठ के कारण जन्म लेती हैं जिसे धर्म और बुद्धि वर्जित ठहराते हैं, और सच्ची मुरूअत इसका विरोध करती है, और अल्लाह ही तआला तौफीक़ देने वाला है।( इस्लाम प्रष्न अ©र उŸार साइट के लेख ‘अप्रैल फूल’ का संछिप्त रूप)अनुवादक(अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह) सलीम

मुंह के छालों का ये है मीठा इलाज


 

 नारियल पूजा के प्रसाद में इसका प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग काड लिवर आइल के स्थान पर सेवन में किया जा सकता है। यह कच्चा और पका हुआ दो अवस्थाओं में मिलता है। नारियल का पानी पिया जाता है। इसका पानी मूत्र, प्यास व जलन शांत करने वाला होता है। नारियल में कई गुणों से भरपूर है इसलिए यह कुछ बीमारियों में दवा की तरह भी काम करता है आइए जाने नारियल के ऐसे ही कुछ मीठे प्रयोग....

 मुंह के छाले- मुंह के छाले होने पर नारियल की सफेद गिरी का टुकड़ा और एक चम्मच भर चिरोंजी मुंह में डालकर धीरे-धीरे चबाना व चूसना चाहिए।

आधा सीसी- आधा सीसी वाला दर्द हो तो नारियल का पानी ड्रापर से नाक के दोनों तरफ दो-दो बूंद टपकाने से आधा सीसी का दर्द दूर होता है।

 पेट के कीड़े- बड़ी उम्र के व्यक्ति को अगर पेट में कृमि की समस्या है तो सूखे गोले का ताजा बूरा 10 ग्राम मात्रा में लेकर खूब चबा-चबाकर खा लें। इसके तीन घंटे बार सोते समय दो चम्मच केस्टर आइल, आधा कप गुनगुने गर्म दूध में डालकर तीन दिन तक पीएं। पेट के कीड़े मल के साथ निकल जाएंगे।

जहां सुलझना था मुद्दा वहां उतरे कपड़े, फिर हुआ और भी बड़ा ड्रामा



नागपुर. सीनेट बैठक मे शनिवार को सदस्यों व विद्यार्थियों के दबाव के चलते 23 मार्च से 48 परीक्षाओं की आगे बढ़ी (दूसरा चरण) समय सारिणी 12 अप्रैल को घोषित करने का निर्णय लिया गया।
बोर्ड ऑफ एक्जामिनेशन (बीओई) की बैठक में चर्चा के बाद 2 या 3 अप्रैल को इसके बारे में सूचित किया जाएगा।  साथ ही 15 अप्रैल (तीसरे चरण) से शुरू होनेवाली परीक्षाओं की तारीख जस का तस रखने का निर्णय लिया गया है। सभा के दौरान विद्यार्थियों व प्राध्यापकों की मांगों को लेकर सदस्य दो गुटों में बंटे नजर आए।
12.35 को शुरू हुई बैठक
परीक्षाओं की बढ़ी तारीखों को दोबारा जल्द से जल्द घोषित करने के लिए विद्यार्थी संगठनों ने राष्टï्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय का घेराव किया था। इस वजह से नियमित सीनेट बैठक दोपहर 12 बजे शुरू होने की बजाए दोपहर 12:35 पर शुरू हुई और 1:45 तक चर्चा चली।
सीनेट सदस्य महेन्द्र निंबार्ते ने सभा शुरू होते ही ग्रीष्मकालीन लिखित परीक्षाओं की तारीख घोषित करने पर जोर दिया। सीनेट सदस्य अधिवक्ता मनमोहन बाजपेयी, अभिजीत वंजारी, डी. के. अग्रवाल, डा. प्रमोद येवले, गुरुदास कामड़ी, समीर केने, मृत्युंजय सिंह परीक्षाओं की तारीख की घोषणा सीनेट बैठक में किए जाने के पक्ष में दिखाई दिए। सभा के बाहर विद्यार्थी व भीतर सीनेट सदस्य इस मुद्ïदे पर जोरदार हंगामा मचाए हुए थे।
बीओई के निर्णय पर सवाल
सदस्यों ने बीओई की दो बैठकों में लिए गए निर्णयों पर सवाल उठाए। साथ ही परीक्षा नियंत्रक डा. विलास रामटेके से 19 मार्च को मुंबई की बैठक में हुई बातचीत का ब्यौरा भी मांगा। परीक्षाओं की बढ़ी तारीखों से अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं की परेशानियों की ओर सभापति  डा. विलास सपकाल का ध्यान आकर्षित किया गया। सीनेट सदस्य के. सी. देशमुख व बबन तायवाड़े तारीख बढ़ाए जाने की सफाई देते दिखाई दिए। उन्होंने परीक्षाओं के आयोजन के लिए जरूरी मानव संसाधनों व तकनीकी खामियों का हवाला दिया।
असमंजस बरकरार
खास बात है कि प्राध्यापकों के आंदोलन की वजह से नागपुर विवि ने 23 मार्च से शुरू होनेवाली परीक्षाओं की तारीखें आगे बढ़ाई थीं। अभी तक सरकार ने प्राध्यापकों की मांगों पर सकारात्मक रुख नहीं अपनाया है और प्राध्यापक भी परीक्षा से जुड़े कार्यांे का बहिष्कार किए हुए हंै। ऐसे में इन परीक्षाओं के लिए 12 अप्रैल से नई समय सारिणी बनेगी या नहीं,  असंमजस बरकरार है। जानकारों का मानना है कि यदि प्राध्यापकों के आंदोलन के दौरान विवि नए समय सारिणी के तहत परीक्षाएं आयोजित कर सकता है, तो इसे आगे ही क्यों बढ़ाया गया? उल्लेखनीय है कि बीओई में ज्यादातर सदस्य आंदोलन में शामिल प्राध्यापक हैं। ऐसे में फैसले पर संशय बरकरार है।
गले में काला दुपट्ïटा
गले में काला दुपट्ïटा डाले कुछ सीनेट सदस्यों ने रोष जताया। संबंधित घोषणा होने तक उन्होंने इसे पहने रखा।
उठा व्यक्तिगत मुद्ïदा
बैठक में सीनेट सदस्य डी. के. अग्रवाल कॉल अटेंशन मोशन लाये, जिसे सभा अध्यक्ष डा. विलास सपकाल ने अमान्य कर दिया। श्री अग्रवाल ने सवालों के 120 पत्रों के जवाब नहीं दिए जाने का मुद्ïदा इसमें उठाया था। इस दौरान कुछ समय के लिए अध्यक्ष व सदस्य के बीच आपसी बातचीत शुरू हो गई, जिसे अन्य सदस्य नहीं समझ पा रहे थे।
श्री सपकाल का कहना था कि श्री अग्रवाल हरबार व्यक्तिगत सवाल करते हैं। उनके पत्रों की भाषा कठोर होती है। यदि उन्हें कुलगुरु के चयन के बारे में कोई जानकारी चाहिए, तो वे स्वयं उसे उपलब्ध कराएंगे। इसे लेकर करीब 15 मिनट तक दोनों में बहस हुई। इस पर डा. बबन तायवड़े बीच में आए और इस मुद्ïदे को व्यक्तिगत मुद्ïदा बताकर रोकने की मांग की।
महाविद्यालयों की स्थिति
सीनेट सभा के 108 सदस्यों में से केवल 17 सदस्यों ने सवाल किए थें, जिनमें से केवल 11 सदस्यों के सवाल ही शामिल किए गए।सीनेट सदस्य डा. प्रमोद येवले द्वारा महाविद्यालयों की स्थिति पर पूछे गए सवाल पर बताया गया कि 786 महाविद्यालय हंै, जिसमें 1 लाख 61 हजार 926 विद्यार्थी हैं। 337 महाविद्यालय में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं है। 70 प्रतिशत महाविद्यालयों में स्थायी प्राचार्य नहीं व 40 प्रतिशत सीटें खाली हैं।

डॉक्टर ने 3 साल के बच्चे का लिंग काटा, इलाज के नाम पर किया था भर्ती



देवलापार. क्षेत्र के टुय्यापार ग्राम में रहने वाले सुरेन्द्रसिंग राठौर की विवाहित बेटी अंजु अमरसिंग भट्टेचोर निवासी अडेगांव त. मौदा ने यह आरोप लगाया है कि उसके तीन साल के बच्चे का लिंग कामठी के एक निजी अस्पताल के चिकित्सक ने ऑपरेश्न के दौरान काट डाला।
जानकारी के अनुसार कामठी (कन्हान) स्थित हायटेक हॉस्पिटल में अंजु ने अपने बच्चे अंशु को इलाज के लिए ले गई। अंशु शरीर व दिमाग से पूरी तरह स्वस्थ है।
केवल उसे हाल ही में पेशाब करने में परेशानी हो रही थी। इसलिए अंजु ने रामटेक के डॉ. आष्टनकर को अंशु को दिखाया। उन्होंने 8 दिन की दवा देकर 8 दिन बाद आने को कहा। 8 दिन बाद भी आराम नहीं लगने पर अंजु डॉ. आष्टनकर के पास पहुंची।

रिकवरी एजेंट बन दिखाते थे गिरफ्तारी का डर और करते थे वसूली, गिरफ्तार हुए


जयपुर. मोबाइल कंपनी का रिकवरी एजेंट बन वसूली करने वाले तीन युवकों को पुलिस ने शनिवार को गिरफ्तार कर लिया। आरोपियों ने गिरफ्तार करवाने की धमकी देकर वसूली करने की कई वारदातें कबूली हैं। डीसीपी (वेस्ट) डॉ. रवि ने बताया कि आरोपी अरुण भदोरिया (19), गोविंद सिंह भदोरिया (24) एवं गौरव सिंह (23) आगरा के रहने वाले है।
तीनों आरोपी जामडोली स्थित श्री राम विहार कॉलोनी में किराए से रह रहे हैं। इस संबंध में चांद बिहारी नगर खातीपुरा निवासी मोहम्मद अहमद ने वैशाली नगर थाने में शुक्रवार को मामला दर्ज कराया था कि उसके मोबाइल पर फोन आया। फोन करने वाले ने कहा कि दिल्ली पटियाला हाउस कोर्ट की वारंट सेल से बोल रहा है।
आइडिया कंपनी के पिछले साल का उनका बिल बकाया है, जो उनके बैंक अकाउंट में जमा करा दे। ऐसा नहीं करने पर कोर्ट से वारंट लेकर गिरफ्तार कर लिया जाएगा। मामला सामने आने पर थाना प्रभारी महमूद खान, सब इंस्पेक्टर लिखमाराम एवं रतन सिंह की टीम बनाई। बदमाशों की लोकेशन और मोबाइल रिचार्ज करने के आधार पर तीनों को गिरफ्तार कर लिया।
जामडोली में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे
जांच में सामने आया कि तीनों आरोपी जामडोली में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। तीन चार माह से आइडिया मोबाइल के बिलों की रिकवरी के लिए कॉलिंग का काम जामडोली में करते थे और फर्जी नाम से बात करते थे। इनमें एक खुद को अरुण बताकर दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट से बोलने की कहता और गिरफ्तार करने की धमकी देता।
पुलिस ने सिम के बारे में जानकारी की तो दिल्ली से जारी होना सामने आया, जिसकी लोकेशन आगरा रोड पर आई। मोबाइल के रिचार्ज की जानकारी की तो पता चला कि कलेक्शन कंपनी ने 21 मार्च को रिचार्ज कराया था।
कंपनी के अकाउंटेंट दिनेश जैन से पूछताछ की तो पता चला कि आरोपी उसके मकान में किराए से रहते हैं और रिकवरी का काम करते हैं। पुलिस ने तीनों आरोपियों को दबोच लिया। तीनों आरोपी फर्जी नाम-पते से दिनेश के मकान में रह रहे थे।

मां से मिलने की जिद की तो ब्लेड से 16 बार काटा



पटियाला। मां से मिलने की जिद करने पर पिता ने अपने 6 साल के बेटे के शरीर पर 16 बार ब्लेड से कट लगाए। उसके लिंग को भी काटा और शरीर को सिगरेट से दागा। बच्चे ने शनिवार को राजिंदरा अस्पताल में खुद पर हुए अत्याचार की बात बताई। बच्चे के मामा ने बताया कि उन्होंने अपनी बहन की शादी बहादुरगढ़ के बलजीत सिंह से की थी। दोनों में अनबन होने पर 6 माह पहले सर्वसम्मति से कोर्ट में तलाक का केस दायर किया गया। कोर्ट ने 6 साल के भांजे की देखरेख का जिम्मा पिता को दिया था। एक महीने बाद अदालत ने मां को बच्चे से मिलाने का भी आदेश दिया लेकिन पिता ने इसका पालन नहीं किया। बच्चा जब भी मां से मिलने की बात करता था तो पिता उसे यातनाएं देता था। 
 
शनिवार को इस मामले की पेशी थी। जब बच्चे को पेश किया गया तो उसकी हालत काफी खराब थी। कोर्ट में जज ने उसका मेडिकल करवाने का आदेश दिया। बच्चे को राजिंदरा अस्पताल में एडमिट कराया गया जहां उसने पुलिस को बताया कि पिता ने ही उसके शरीर पर छह माह में ब्लेड से 16 कट लगाए हैं। पीठ को सिगरेट से जलाया। इसके निशान शरीर पर जगह-जगह मौजूद हैं। सिर पर गंभीर चोटों के निशान हैं। बच्चे ने बताया कि उसे कई दिन तक सोने भी नहीं दिया गया। इस संबंध में बहादुरगढ़ थाना के एएसआई हरदीप सिंह ने बताया कि बच्चे का बयान लिया है। जल्द ही आरोपी के खिलाफ कार्रवाई होगी। 
 
मां से मिलने की जिद की तो ब्लेड से 16 बार काटा 
अपने ही बेटे पर की ज्यादती, जलती सिगरेट से दागा शरीर, बच्चे की हालत काफी खराब

भेड़-बकरियों की तरह वोट डालते हैं भारतीय : काटजू


 

नई दिल्ली. भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कहा कि 90 फीसदी लोग भेड़-बकरियों की तरह मतदान करते हैं। इसी कारण अपराधी संसद में पहुंच रहे हैं। काटजू ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में भारत को पूर्ण लोकतंत्र मानने से भी इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘लोग जानवरों के झुंड की तरह बिना सोचे-समझे जाति व धर्म के आधार पर वोट डालते हैं। भारतीय मतदाताओं के समर्थन के कारण ही कई अपराधी संसद में हैं।’ 
 
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज काटजू ने कहा कि वे मतदान नहीं करेंगे क्योंकि देश को कुछ ऐसे नेता चला रहे हैं जो जाति के कारण चुने जाते हैं। यह लोकतंत्र का असली रूप नहीं है। उन्होंने कहा, ‘मैं मतदान नहीं करता क्योंकि मेरा मत निरर्थक है। मतदान जाट, मुस्लिम, यादव या अनुसूचित जाति के नाम पर होता है।’ लोकतंत्र इस तरह से चलने का नाम नहीं है। मैं क्यों जानवरों की कतार में खड़ा होकर अपना समय गंवाऊं?’

कुरान का संदेश

गुजरात: मुसलमानों का कारोबार बंद करवाने के लिए कराए जा रहे दंगे, 30 दिन में 10 ने किया बिजनेस बंद



नई दि‍ल्‍ली. कुछ अरबपतियों के तेजी से 'गरीब' होने की ओर बढ़ने की खबरों के बीच गुजरात के मुसलमान कारोबारियों के लिए बुरी खबर है। एक तरफ अमेरि‍का के सांसद नरेंद्र मोदी से मि‍लने और गुजरात में बि‍जनेस की संभावनाओं को जांचने आ रहे हैं तो दूसरी तरफ गुजरात में पि‍छले एक महीने में दस मुस्‍लि‍म व्‍यापारी अपना बि‍जनेस बंद करने पर मजबूर हो गए हैं। ताजा मामला इसी हफ्ते के गुरुवार का है। अहमदाबाद से 90 मि‍नट की दूरी पर वीरमगम हाइवे पर होटल चलाने वाले मुस्‍तफा पटेल ने अपना होटल बंद कर दि‍या है। उनका कहना है कि वह रोजाना मि‍लने वाली धमकि‍यों के चलते होटल बंद करने पर मजबूर हुए हैं। 
 
मुस्‍तफा पटेल ने बताया कि स्‍थानीय नेताओं ने 9 फरवरी को जबरदस्‍ती उनका व्‍यवसाय बंद करा दि‍या। उनकी पेटीशन के मुताबि‍क अदालती आदेश होने के बावजूद पुलि‍स ने उन्‍हें सुरक्षा नहीं मुहैया कराई। माइनॉरि‍टी कमीशन के चेयरमैन वजाहत हबीबुल्‍लाह ने बताया कि कमीशन को ऐसी शि‍कायतें मि‍ली हैं कि मुसलमानों को व्‍यवसाय नहीं करने दि‍या जा रहा है। इस बारे में गुजरात सरकार से रि‍पोर्ट मांगी गई है। 
 
इससे पहले कमीशन को छोटा उदेपुर के नौ मुस्‍लि‍म व्‍यापारि‍यों का बि‍जनेस चौपट कि‍ए जाने की शि‍कायतें मि‍ल चुकी हैं। शि‍कायत करने वाले व्‍यापारि‍यों का कहना है कि बरोज गांव के सरपंच जयंती रथवा बि‍जनेस में अपने कंपटीटर अब्‍दुल घानी का लग्‍जरी ट्रांसपोर्ट का धंधा हथि‍याने के लि‍ए दंगा कराया। 12 फरवरी को इलाके में मुस्‍लि‍म व आदि‍वासि‍यों के बीच झड़पें हुईं। एक शि‍कायतकर्ता का कहना है कि 12 फरवरी को अल्‍पसंख्‍यकों के कई प्रति‍ष्‍ठानों पर हमला हुआ और उन्‍हें आग के हवाले कर दि‍या गया। एसपी-डीआईजी सब लोग वहां गए, लेकि‍न अभी तक कोई भी नहीं पकड़ा गया है।
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...