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12 अप्रैल 2013

इनामी डकैत छविराम का बेटा बना दरोगा

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करीब तीस साल पहले दहशत का पर्याय बने इनामी डाकू छविराम का बेटा अजय पाल सिंह अब दरोगा बन गया है। ट्रेनिंग खत्म होने पर उसे मेरठ में तैनाती भी मिल गई है। इससे अजय की मां धन देवी खुश हैं। कभी उसके पिता पर एक लाख रुपये का इनाम पुलिस ने घोषित किया था।

धन देवी के तीन बेटे हैं-श्याम सिंह, सर्वेश कुमार और अजय पाल सिंह। विषम परिस्थितियों में उन्होंने अपने मायके ग्राम नगला जिला कन्नौज में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई कराई। दो बड़े बेटे खेतीबाड़ी करते हैं, छोटे बेटे अजय ने आगरा जीआरपी में तैनाती के दौरान 2011 में विभागीय परीक्षा पास की। मेरठ के ट्रेनिंग कॉलेज में शुक्रवार को हुई पासिंग आउट परेड के बाद धन देवी की खुशी देखने लायक ली, आखिर उसका बेटा अब दरोगा जो बन गया था।

धन देवी का कहना है कि पुरानी बातों से कोई फायदा नहीं। अजय के पिता छविराम का नाम सुनकर अच्छे-अच्छे थर्रा जाते थे। उसकी कहानी 1980 के आसपास की है। छविराम गैंग का करीब बीस जिलों में आतंक था। तीन मार्च,1982 को तत्कालीन एसएसपी कर्मवीर सिंह ने डाकू छविराम तथा उसके गिरोह के 13 डकैतों को मार गिराया था। उस समय अजय की उम्र महज पांच साल थी।

एडीजी पीटीएस, एके जैन ने कहा कि छविराम का बेटा ने दरोगा की ट्रेनिंग पूरी कर ली है। मुझे उम्मीद है कि अपने कर्तव्य से वह कभी विचलित नहीं होगा। जैन वही पुलिस अफसर हैं, जिन्होंने कभी डाकू छविराम के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चलाया था।

मिलाकर बेईमानी ईमानदारी को

मिलाकर बेईमानी ईमानदारी को
आओ हम अनोखा ये संघ बनायें

मुमकिन कहाँ भ्रष्टाचार से लड़ना
अब उसको जीवन का अंग बनायें

सत्ता के वस्ल की रात के ख़ातिर
भ्रष्टाचार की ऐसी ---पलंग बनायें

जिस पर सो सो कर देश के नेता
वोटर मूक बघिर व अपंग बनायें

खुलापन देख नारी के मच्छर बोले
वाह प्रभु इतने कोमल अंग बनायें

सोने से बनी थी भारत के नवाब की शाही 'ट्रेन', करोड़ों के हाथीदांत से सजवाया था कोच


सोने से बनी थी भारत के नवाब की शाही 'ट्रेन', करोड़ों के हाथीदांत से सजवाया था कोच
भारत में अंग्रेजों ने मुंबई से ठाणे की बीच पहली ट्रेन आज से160 साल पहले चलवाई थी। अंग्रेजों की यह ट्रेन भारत के कई राजा-महाराजाओं ने इतनी भा गई की कई ने अपनी खुद की ट्रेनें भी चलावाई। बड़ोदा राजघराने ने देश की पहली नैरोगेज लाइन बनवाकर खुद की ट्रेन शुरू की थी। इसके बाद देश के बेहद धनी हैदराबाद के नवाब खानदान ने भी अपनी खुद की रेल कंपनी बनाई और सैकड़ों कि.मी. लंबी रेल लाइन डाली।

इतना ही नहीं इस शाही खानदान की ट्रेन में उनके चलने का कोच जोड़ा गया तो वह सोने से मढ़ा था और हाथीदांत से सजाया गया था। हैदाराबाद राज्य का  भारत में विलय हुआ तब तक इस शाही घराने का रेल नेटवर्क काफी बड़ा हो चुका था। भारत में अपनी खुद की रेल के मालिक हैदाराबाद के नवाब मीर उस्मान की पास उस समय जो संपत्ति थी, आज उसकी कीमत 230 बिलियन डॉलर है।

इस देवी को चढती है बलि, चांदी के थाल में लगता है कटे सिर का भोग



जयपुर। नवरात्रा में शक्तिपीठों का विशेष महत्व है। नौ दिन तक भक्त माता की अराधना करते हैं। आठवें और नौंवें दिन मां की विशेष पूजा की जाती है। खासतौर पर अंतिम दो दिनों में माता की तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना की जाती है। इन दिनों शक्तिपीठ पर श्रद्धालु की लंबी कतारें लगी रहती हैं। माता के हर शक्तिपीठों के पीछे कई रहस्य और चमत्कार की कहानियां छुपी है। दैनिक भास्कर डॉट कॉम का प्रयास है कि नवरात्रा पर आपको ऐसी शक्तिपीठ के बारे बताए जिसका चमत्कार और रहस्य आज भी एक पहेली बना हुआ। हम बात कर रहे हैं जयपुर की आमेर शिलामाता की। कहा जाता है कि जयपुर के महाराजा मानसिंह लगातार युद्ध में पराजित हो रहे थे। काली मां महाराजा के सपने में आकर बोली, अगर युद्ध पर विजय पाना चाहते हो तो रोज नरबलि देनी होगी। राजा ने माता की बात का अनुसरण किया और युद्ध में जीत हासिल की।

आज ही के दिन खेली गई 'खून की होली', बहा था देश के सपूतों का खून



ये एक दिल दहला देने वाली दास्तां है। एक ऐसी घटना जिसने भारतीय आवाम पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला। क्या अमीर क्या गरीब...क्या बड़ा क्या छोटा सबका खून खौल उठा था उस बर्बर शासन के खिलाफ जिसने इस तरह की घृणित घटना को अंजाम दिया था। अहिंसा के पुजारी  महात्मा गांधी का भी खून खौल उठा था इस घटना के बाद और ये वही घटना है जिसने भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी को शहीद ए आजम बनने की ताकत दी वहीं इस उधम सिंह जैसे महान सपूत को जागृत किया जिन्होंने इस घृणित काम का बदला गोरों से उन्ही की धरती पर अंजाम दिया।  जी हां, बात हो रही है जलियांवाला बाग कांड की जो आज के ही दिन सन 1919 में घटित हुई थी। 
 
आज ही के दिन रॉलेट एक्ट की खिलाफत के लिए जलियांवाला बाग में जुटी शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही आवाम का जालिम गोरी हुकूमत ने बड़ी बेदर्दी से कत्ल-ए-आम कर दिया था। रौंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की 94वीं बरसी पर इस घटना में मारे गए भारत के महान सपूतों को शत-शत नमन

एक बयान से आए थे सुर्खियों में, अब देनी होगी करोड़ो रुपए की रिकवरी



अजमेर। देश की हाई रिस्क पर्सनालिटी के तौर पर पिछले 18 सालों से हथियारबंद पुलिस सुरक्षा के घेरे में ख्वाजा साहब की दरगाह के सज्जादानशीन दीवान जेनुअल आबेदीन पर पुलिस ने करीब 11 करोड़ रुपए की रिकवरी निकाली है। दरगाह दीवान से यह वसूली निर्धारित कैटेगरी की सुरक्षा व्यवस्था के अतिरिक्त पुलिस जवानों की सेवा के एवज में की जानी है। 
 
चौकाने वाला तथ्य यह है कि केन्द्र सरकार ने 1998 में दरगाह दीवान की सुरक्षा कैटेगरी जेड श्रेणी से घटा कर वाए श्रेणी कर दी थी, लेकिन पुलिस महकमे ने इस आदेश की पालना नहीं की, नतीजतन दीवान की सुरक्षा में पिछले सोलह साल से पांच पुलिस जवानों के बजाए 12 हथियारबंद जवान ड्यूटी बजाते रहे।  
 
 
निर्धारित कैटेगरी वाए श्रेणी से ज्यादा पुलिस जवानों की तैनाती की गड़बड़ी  पर  किसी भी पुलिस अधिकारी ने नजरे इनायत नहीं की। पुलिस के एक अफसर ने दीवान से ज्यादा जवानों की सेवाएं लेने के एवज में करीब 11 करोड़ रूपए वसूलने की अनुसंशा पुलिस प्रशासन से की है। दो महीने पहले पुलिस ने अपनी गलती सुधारते हुए दीवान की सुरक्षा में लगे पुलिस जवानों की संख्या कम की है। 
 
 
मौजूदा एसपी गौरव श्रीवास्तव ने भी इस अनियमितता की पुष्टि की है, लेकिन उन्होंने बताया कि उनके कार्यकाल में नियमानुसार ही कार्य होगा। गौरतलब है कि देशभर में कानून व्यवस्था के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में सख्त टिप्पणी कर राज्य सरकारों से वीआईपी ड्यूटी के नाम पर बड़ी तादात में खपाए जा रहे पुलिस जवानों के बारे में ब्यौरा मांगा है।
 
 
दरगाह दीवान को पिछले 18 साल से दी जा रही सुरक्षा व्यवस्था भी इसलिए प्रासंगिक है। सवाल यह भी खड़ा हुआ है कि 18 साल पहले दरगाह दीवान की कथित असुरक्षा की परिस्थिति क्या आज भी बरकरार है? या फिर वे दूसरे वीआईपी की तरह सुरक्षा कवच को अपनी शान और रौब दाब के लिए उपयोग कर रहे हैं?
 
 
पुलिस लाइन के तत्कालीन प्रभारी अधिकारी ने दीवान की सुरक्षा में नियमों के खिलाफ तैनात किए जा रहे पुलिस जवानों की संख्या और इसके एवल में दीवान से वसूली किए जाने के बारे में कई बार आला अधिकारियों को शासकीय पत्र के माध्यम से अवगत कराया, लेकिन पिछले तीन साल से पुलिस महकमे के किसी भी अफसर इस तरफ आंखों मूंदे बैठे हैं। किसी ने दीवान से वसूली करने या फिर अतिरिक्त तैनात पुलिस कर्मियों को हटाने की हिम्मत तक नहीं जुटाई।

होना था खिलाड़ियों का सम्मान लेकिन एक शर्त ने पैदा कर दिए कुछ ऐसे हालात!



जयपुर.राज्य खेल परिषद ने सवा दो करोड़ रुपए की पुरस्कार राशि बांटने के लिए शुक्रवार को खिलाड़ी तो बुला लिए, लेकिन शपथ पत्र की एक शर्त के कारण वहां काफी देर हंगामा हुआ। खिलाड़ियों से एक शपथ पत्र भरवाया जा रहा था, जिसमें उनके आरएसएस या जमायते इस्लामी से नहीं जुड़े होने की जानकारी मांगी गई थी। खिलाड़ियों ने तो इस पर ज्यादा आपत्ति नहीं की, लेकिन जब एबीवीपी और युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं को इसकी भनक लगी, तो वे विरोध के लिए स्टेडियम पहुंच गए। 
 
इस बीच जयपुर जिला बास्केटबॉल संघ के पदाधिकारियों ने अपने खिलाड़ियों को पुरस्कार राशि नहीं देने का विरोध किया। परिषद के पदाधिकारियों का इस बारे में कहना था कि जब उनकी ओर से आवेदन ही नहीं किया गया, तो राशि देने का सवाल ही नहीं उठता।
 
पुलिस ने कार्यकर्ताओं को मेन बिल्डिंग में प्रवेश करने से रोका गया। इस पर कार्यकर्ताओं ने विरोध तेज किया, तो उनकी पुलिसकर्मियों से भिड़ंत हो गई। कार्यकर्ताओं ने स्टेडियम की सीढ़ियों पर बैठकर नारेबाजी भी की।
 

अखिलेश के गढ़ में बदमाशों की दबंगई, सिपाही को पीट-पीट कर किया अधमरा



इटावा। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के कुंडा में डीएसपी की हत्या की धधक रही आग को प्रदेश सरकार एक तरफ बुझाने की हर सम्भव कोशिश कर रही है। वहीं लगता है कि प्रदेश के माफियाओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

आज प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पैत्रिक जनपद इटावा में बदमाशों ने जमकर तांडव मचाया और एक सिपाही को इतना पीटा की वो मरणासन स्थिति में पंहुच गया।

इटावा शहर के बीचो-बीच स्थित बस स्टैंड पर बदमाश सुनील यादव नामक सिपाही को करीब आधे घंटे तक पीटते रहे और लोग तमाशबीन बन तमाशा देखते रहे। प्रत्यक्षदर्शियों में से किसी ने भी सिपाही को बचाने की हिम्मत नहीं की, जब वह लहुलुहान होकर जमीन पर गिर पड़ा तो आरोपी उसे मरा समझ छोड़कर चलते बने।

थप्पड़कांड में नया मोड़, ललित मोदी जारी कर सकते हैं वीडियो

नई दिल्‍ली.   आईपीएल का बहुचर्चित थप्पड़कांड इस सीजन में भी गरमाता जा रहा है। हरभजन द्वारा थप्पड़ मारे जाने से इंकार करने के श्रीसंथ के बयान के बाद तत्कालीन आईपीएल चैयरमैन ललित मोदी ने इस घटना का वीडियो सार्वजनिक करने की बात कही है। दूसरी ओर इस पूरे मामले की जांच करने वाले जस्टिस सुधीर नानावटी ने भी श्रीसंथ के इस बयान को गलत बताया है कि भज्जी ने उन्हें कोहनी मारी थी।
ललित मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि मेरे पास इस घटना का एकमात्र वीडियो है जिसे सार्वजनिक करने पर मैं अगले कुछ दिनों में विचार करुंगा। 
 
मोदी ने यह भी कहा कि मैं उस समय ग्रांउड में मौजूद था और इसका फुटेज भी देखा था। इसमें कुछ भी अस्पष्ट नहीं है  व उस समय अरुण जेटली के कहने पर वीडियो को सार्वजनिक नहीं किया गया था।
 
वहीं जस्टिस नानावटी ने कहा है कि श्रीसंथ को भज्जी ने थप्पड़ मारा था और भज्जी ने दूसरी बार भी उसे थप्पड़ जड़ने की कोशिश की थी। वीडियो में यह घटना पूरी तरह से स्पष्ट है और मेरे सामने हरभजन ने इसे स्वीकार करते हुए कहा था कि हां मैंने थप्पड़ मारा है।
इससे पहले टीम इंडिया के दो स्‍टार बल्‍लेबाजों विराट कोहली और गौतम गंभीर आईपीएल-6 के एक मैच दौरान एक दूसरे से उलझ गए थे। इस घटना का परिणाम भले ही गंभीर नहीं हुआ लेकिन इस तरह की घटना का शिकार हुए एस श्रीसंथ भड़क गए हैं। उनका कहना है कि हरभजन सिंह ने उन्‍हें कभी थप्‍पड़ नहीं मारा था। श्रीसंथ ने इस घटना के बाद पहली बार चुप्‍पी तोड़ी है और उस घटना से जुड़े कई राज खोले हैं। (
कोहली और गंभीर के झगड़े पर प्रकाशित एक अंग्रेजी अखबार की खबर से श्रीसंथ को आपत्ति है। इस खबर में लिखा गया है कि कोहली-गंभीर के विवाद से वर्षों पहले मोहाली के मैदान पर हुए 'थप्‍पड़ कांड (SLAPGATE)' की यादें ताजा हो गई हैं। श्रीसंथ ने अखबार पर इस एंगल पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि विराट और गंभीर के बीच हुए विवाद को उनके साथ हुई घटना से जोड़े जाने पर उन्‍हें बेहद निराशा हुई है।

9 मौतों के जिम्मेदार भुल्लर को नहीं मिलेगी माफी, होगी फांसी



नई दिल्ली.  ‘सरकार पर कई राजनीतिक दलों, संस्थाओं और विदेशी व्यक्तियों का दबाव था। लगता है इसी वजह से राष्ट्रपति सचिवालय में फाइल पर इतने वर्षों तक फैसला नहीं लिया जा सका।’ -सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 66 वें पेज पर
 
फैसले से 16 अन्य दोषियों को फांसी देने का रास्ता साफ हुआ
 
26 मई 1965 को जालंधर में जन्मे और लुधियाना के गुरु नानक इंजीनियरिंग  कॉलेज से बीई का कोर्स करने वाले खालिस्तानी आतंकी दविंदरपाल सिंह की याचिका शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। याचिका में फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की मांग की गई थी।
 
भुल्लर पर 1993 में कार बम धमाकों का आरोप है। इस धमाके में 9 लोगों की मौत हुई थी। अब भुल्लर के अलावा १६ और लोगों को भी फांसी दिए जाने का रास्ता साफ हो गया है। इनकी याचिका राष्ट्रपति नामंजूर कर चुके हैं।
 
फैसले का असर
 
कानूनी- याचिका में देरी को आधार बना राजीव गांधी के 3 हत्यारों सहित 17 ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का आग्रह कर रखा है। अब इनकी फांसी का रास्ता साफ हो गया है। 
 
राजनीतिक- अकाली दल फांसी की माफी के पक्ष में है। जबकि भाजपा विरोध में है। पंजाब में दोनों की मिलीजुली सरकार है। एनडीए और पंजाब में दोनों के रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं।
 
कब क्या हुआ?
 
1993 में दिल्ली में भुल्लर पर ब्लास्ट का आरोप। 9 की मौत। धमाकों के बाद जर्मनी भाग गया। 
 
94 में भारत लाया गया। 2001 में फांसी की सजा। सुप्रीम कोर्ट ने सजा बरकरार रखी। पुनर्विचार याचिका और भूल-सुधार याचिका भी खारिज कर दी। 2003 में दया याचिका लगाई जो 2011 में खारिज हो गई।

कुरान का सन्देश

हजारों साल पहले ऋषियों के आविष्कार, पढ़कर रह जाएंगे हैरान


भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है। 
 
कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा। 
 
अगली तस्वीरों के साथ जानिए ऐसे ही असाधारण या यूं कहें कि प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों द्वारा किए आविष्कार व उनके द्वारा उजागर रहस्यों को जिनसे आप भी अब तक अनजान होंगे –
BIG STORY : हजारों साल पहले ऋषियों के आविष्कार, पढ़कर रह जाएंगे हैरान
महर्षि दधीचि -
महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि 
एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए। 
 
आचार्य कणाद - 
कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।

भास्कराचार्य -
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय  पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
आचार्य चरक -
‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी। 
ऋषि भरद्वाज -
आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भरद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भरद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।

कण्व -
प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।

कपिल मुनि -
भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया। 
पतंजलि -
आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।

शौनक ऋषि:  
वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी। 
 
महर्षि सुश्रुत - ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। 
 
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी,  हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे। 
 
वशिष्ठ ऋषि :
वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।

विश्वामित्र : ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। 
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
 
महर्षि अगस्त्य -
वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ। 
गर्गमुनि -
गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।  कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे। 
बौद्धयन -
भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।

गंदी आदत पड़ी भारी, युवक के पेट से निकली ऐसी चीज़ डॉक्टर भी हुए हैरान!



रांची। गलत आदतों के शिकार हमारे युवा भटक रहे हैं। पढऩे-लिखने की उम्र में पाश्चात्य देशों की तर्ज पर अपनी जिंदगी को खुद जोखिम में डाल रहे हैं। स्मोकिंग, ड्रिंकिंग, बाइक राइडिंग, स्टंट और फैशन का दीवाने यूथ सेक्शुअल प्रवर्जन के भी शिकार हो रहे हैं।

ऐसे ही मामले में एक अप्रैल को 20 साल का युवक असलम परवेज (बदला हुआ नाम) गंभीर हालत में रिम्स पहुंचा। उसकी जान जोखिम में थी। इसके लिए वह खुद जिम्मेवार था।

PICS : गंदी आदत पड़ी भारी, युवक के पेट से निकली ऐसी चीज़ डॉक्टर भी हुए हैरान!
हालांकि, रिम्स के सर्जनों ने मामले की गंभीरता को समझा और इमरजेंसी ऑपरेशन कर उसे जिंदगी दी। युवक के पेट  से जिस चीज को डॉक्टरों ने कड़ी मशक्कत के बाद निकाला, वह था करीब दस इंच का डियोड्रेंट का बोतल। यह देखकर डॉक्टरों की टीम हैरान रह गयी। बहरहाल, युवक को अपनी गलती पर पछतावा हुआ और डॉक्टरों के समक्ष उसने इसे फिर से नहीं दोहराने की कसम खायी। युवक हजारीबाग का रहनेवाला है। फिलहाल, उसका इलाज सर्जरी विभाग में डॉ शीतल मलुवा की यूनिट में चल रहा है।
PICS : गंदी आदत पड़ी भारी, युवक के पेट से निकली ऐसी चीज़ डॉक्टर भी हुए हैरान!
एनल और रैक्टम को पार करके बड़ी आंत में फंसा था बोतल
 
युवक की जान बचाने वाले डॉक्टरों ने कहा कि इस तरह का यह केस अकेला नहीं है। हम चिंतित हैं और शर्मसार भी। असलम की एक गलती ने हमें झकझोर दिया है। वह कुछ भी बताने में झेंप रहा था। क्लीनिकल जांच में  पता चला कि पेट के अंदर कुछ है। एक्स-रे कराया गया तो पुष्टि हो गयी। हालांकि, इस दौरान मरीज ने भी पेट में क्या है, यह  इशारा कर दिया था। वह पेट दर्द, पेट में सूजन और बेचैनी से परेशान था। पेट खुला तो बड़ी आंत में लंबा-सा बोतल फंसा मिला। डॉक्टरों ने बड़ी ही सावधानी से उसे रेक्टम, एनल के रास्ते बाहर निकाला, लेकिन ढक्कन अंदर ही छूट गया। फिर दुबारा मेहनत करनी पड़ी और ढक्कन निकाला गया। बोतल करीब दो इंच मोटा और 9 से 10 इंच लंबा था। बोतल छह इंच के एनल और रेक्टम को पार करते हुए बड़ी आंत में चला गया था।

पोर्न फिल्‍म देखकर मछली पर किया जुल्‍म, अब चलेगा मुकदमा



पोर्न साइट्स सिर्फ वायरस ही नहीं फैलाती हैं, बल्कि लोगों को कुंठित भी करती हैं। पिछले दिनों चीन में एक युवक को पोर्न फिल्मों की दीवानगी बहुत महंगी पड़ी। हुआ कुछ यूं कि दक्षिणी चीन के एक युवक ने पोर्न फिल्‍म की तर्ज पर एक जिंदा मछली को अपने गुप्‍तांग के जरिए शरीर में घुसा लिया। बस यहीं से मुसीबत मोल ले ली उसने। इस मछली को निकालने के लिए डॉक्‍टरों को उसका एक लंबा ऑपरेशन करना पड़ा।
 
ब्रिटिश मीडिया के अनुसार, युवक ने एक जिंदा ईल को अपने शरीर के अंदर घुसा लिया। युवक ने इससे पहले पोर्न फिल्‍म देखा था। इसके बाद उसने यह अनोखा कारनामा किया था। पेट में जाने के बाद जब मछली उत्‍पात मचाने लगी तो युवक डॉक्‍टर की मदद के लिए अस्‍पताल की तरफ भागा। उसने डॉक्टरों से मदद की गुहार लगाई।
 
एक्स-रे में युवक के पेट में करीब 20 इंच लंबी सांपनुमा एक मछली बाहर‌ निकलने का रास्ता ढूंढ रही थी। डॉक्टरों की टीम ने तुरंत युवक का ऑपरेशन शुरू किया। सबसे आश्‍चर्य की बात यह है कि जब मछली को बाहर निकाला गया तो वह जिंदा थी। मछली का वजन करीब आधा किलो था। पेट से निकलने के कुछ देर बाद ही मछली मर गई।
 
मछली भले ही मर गई हो, लेकिन युवक की जान बच गई। लेकिन अब चीन की पुलिस उसके ठीक होने के बाद उसके खिलाफ पशु क्रूरता के तहत मामला दर्ज करेगी।

वो जज्बों की तिजारत थी ये दिल कुछ और समझा था

वो जज्बों की तिजारत थी ये दिल कुछ और समझा था
उसे हंसने की आदत थी ये दिल कुछ और समझा था....
मुझे उसने कहा आओ नयी दुनिया बसाते हैं
उसे सूझी शरारत थी ये दिल कुछ और समझा था....
हमेशा उसकी आँखों में बहुत से रंग रहते थे
ये उसकी आम हालत थी ये दिल कुछ और समझा था....
वो मेरे पास बैठकर देर तक ग़ज़ल मेरी सुनता था
उसे खुद से मोहब्बत थी ये दिल और कुछ समझा था....
मेरे कंधे पे सर रखकर कहीं खो गए थे वो
ये वक़्त की इनायत थी ये दिल और कुछ समझा था....
मुझे वो देखकर अक्सर निगाहें फेर लेता था
ये दर पर्दा हकीकत थी ये दिल और कुछ समझा था....

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।....!!!

हेलो ..हाँ जी ....तुम्हीं से कह रही हूँ

हेलो ..हाँ जी ....तुम्हीं से कह रही हूँ
कुछ सुना क्या तुमने ....जो अभी अभी तुमने खुद कहा
नहीं सुना ना ...
सुनते भी कैसे
सुन लेते तो बोलते ही नहीं
जुबाँ बंद रखते मुंह खोलते ही नहीं
सोच रही थी आज कुछ ना कहूँगी
चुप ही रहूंगी ......पर आदत से मजबूर हूँ ना
चुप रहा ही नहीं जाता
देखो टोक दिया ना
कितने तिगडमबाज हो तुम भी ना
मुंह खोलने का कोई मौक़ा नहीं चूकते
खैर ....बोल लिए जो बोलना था
कर ली पूरी अपने दिल की भड़ास
सुना लिया ना जब जब भी मैं दिखी तुम्हें आसपास
और कुछ कहना है तो वो भी कह डालो
इंतज़ार है मुझे ....
कुछ भी कह लो ...सह जाती हूँ ..
क्योंकि तुमसे प्यार है मुझे ....
तुम्हारी तो फटकार की कुछ आदात सी हो आई है
अजी सुनते हो ...मुन्ने के पापा ...
तुम बोलते हुए ही अच्छे लगते हो ....
तुम्हारी चुप्पी से कुछ घबराहट सी होने लगती है मुझे
................बोलते रहा करो ...........अंजना

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर पुण्यतिथि पर विशेष


Baba Saheb Bhim Rao Ambedkarभारतीय संविधान की रचना में महान योगदान देने वाले डाक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था. डाक्टर भीमराव एक भारतीय विधिवेत्ता होने के साथ ही बहुजन राजनीतिक नेता और एक बौद्ध पुनरुत्थानवादी भी थे. उन्हें बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है. इनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य परिवार मे हुआ था. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपना सारा जीवन हिंदू धर्म की चतुवर्ण प्रणाली, और भारतीय समाज में सर्वव्यापित जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया. हिंदू धर्म में मानव समाज को चार वर्णों में वर्गीकृत किया है. उन्हें बौद्ध महाशक्तियों के दलित आंदोलन को प्रारंभ करने का श्रेय भी जाता है. मुंबई में उनके स्मारक पर हर साल लगभग पांच लाख लोग उनकी वर्षगांठ (14 अप्रैल) और पुण्यतिथि (6 दिसम्बर) पर उन्हे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इकट्ठे होते हैं.

भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म ब्रिटिशों द्वारा केन्द्रीय प्रांत ( अब मध्य प्रदेश में ) में स्थापित नगर व सैन्य छावनी मऊ में हुआ था. वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई मुरबादकर की 14वीं व अंतिम संतान थे. उनका परिवार मराठी था और वो अंबावडे नगर जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है, से संबंधित था. वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था. अम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे, और उनके पिता,भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे और यहां काम करते हुये वो सूबेदार के पद तक पहुँचे थे.

1908 में, उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये एक पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया. 1912 में उन्होंने राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये.

अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और उनके धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर की मृत्यु में दिल्ली में हुई. 7 दिसंबर को चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली मे अंतिम संस्कार किया गया जिसमें सैकड़ों हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया.

भीमराव अंबेडकरकई सामाजिक और आर्थिक बाधाएं पार कर, आंबेडकर उन कुछ पहले अछूतों मे से एक बन गए जिन्होने भारत में कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की. अंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही विधि, अर्थशास्त्र व राजनीति विज्ञान में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से कई डॉक्टरेट डिग्रियां भी अर्जित कीं. अंबेडकर वापस अपने देश एक प्रसिद्ध विद्वान के रूप में लौट आए और इसके बाद कुछ साल तक उन्होंने वकालत का अभ्यास किया. इसके बाद उन्होंने कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन किया, जिनके द्वारा उन्होंने भारतीय अस्पृश्यों के राजनैतिक अधिकारों और सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की. डॉ. अंबेडकर को भारतीय बौद्ध भिक्षु ने बोधिसत्व की उपाधि प्रदान की है.

अंबेडकर की सामाजिक और राजनैतिक सुधारक की विरासत का आधुनिक भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा है. स्वतंत्रता के बाद के भारत मे उनकी सामाजिक और राजनीतिक सोच को सारे राजनीतिक हलके का सम्मान हासिल हुआ. उनकी इस पहल ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे आज के भारत की सोच को प्रभावित किया. उनकी यह सोच आज की सामाजिक, आर्थिक नीतियों, शिक्षा, कानून और सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से प्रदर्शित होती है. एक विद्वान के रूप में उनकी ख्याति उनकी नियुक्ति स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में कराने मे सहायक सिद्ध हुयी. उन्हें व्यक्ति की स्वतंत्रता में अटूट विश्वास था और उन्होने समान रूप से रूढ़िवादी और जातिवादी हिंदू समाज और इस्लाम की संकीर्ण और कट्टर नीतियों की आलोचना की है. बाबासाहेब अंबेडकर को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है.

कोटा के नए कलेक्टर आई ऐ एस जोगाराम ने आज विधिवत अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया

कोटा के नए कलेक्टर आई ऐ एस जोगाराम ने आज विधिवत अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया ..जोगाराम जांगिड इसके पहले झुंझुनू कलेक्टर के पद अपर सफलता पूर्वक कार्य करते रहे है ...........जोगाराम आज देर रात्रि अपने परिवार के साथ कोटा पहुंचे और सुबह सवेरे उन्होंने कुछ लगों से कोटा के भूगोल और कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी प्राप्त की करीब बारह बजे उन्होंने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंच कर कार्यवाहक कलेक्टर राकेश जायसवाल  नगर दंडनायक से कार्यभार ग्रहण किया इसके पूर्व कोटा सर्किट हाउस में वोह पत्रकारों से मिले ..अधिकारीयों से परिचय प्राप्त  किया ..कोटा कलेक्ट्रेट में उन्होंने सभी अधिकारियों  से कोटा की कानून व्यवस्था और कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी प्राप्त की ...........कोटा कलेक्ट्रेट का पद चुनाव के पूर्व जोगाराम कलेक्टर साहब के लियें चुनोती भरा है क्योंकि चुनाव सर पर है यहाँ धरने प्रदर्शन के कार्यक्रम लगातार जरी रहेंगे सबसे बढ़ी चुनोती वकीलों के आन्दोलन की है जिससे निपटने के लियें जोगाराम को अपनी कुशल प्रशासनिक सुझबुझ का परिचय देना होगा ..कोटा के कस्बे सांगोद में माहोल बिगड़ा हुआ है जनता आक्रोशित है ...कई प्रशासनिक मामले उलझे पढ़े है ..सेम्कोर फेक्ट्री का मामला उलझा पढ़ा है ...प्रशासन शहरों और गाँव की तरफ के कई काम अधूरे है ...अभी गर्मी सर पर है यहाँ बिमारियों का दोर शुरू होगा तो फिर बिजली कटोती की मुसीबत शुरू होगी इतना ही नहीं पानी की समस्या को लेकर मारा मरी शुरू होगी जबकि कानून व्यवस्था और आंतरिक  ट्राफिक व्यवस्था के मामले में भी कलेक्टर जोगाराम को अपना हुनर दिखाना है ..समाजों की अपनी अलग अलग मांगे है उनके भी धरने प्रदर्शन होंगे जबकि कई संवेदनशील मुद्दे है जिनका समाधान इन्हें करना है ,,वेसे झुंझुनू की सियासी समझ और प्रशानिक कुशलता की कार्यप्रणाली कोटा में इन्हें सफल कलेक्टर साबित करने के लियें काफी है लेकिन इसके लियें इन्हें फूंक फूंक कर सावधानी से कदम रखना होगा अपने कान ..अपनी आँखों को  चोकस रखना होंगी और सुचना प्रणाली को निजी स्तर पर विकसित करना होगी क्योंकि सरकारी सुचना तन्त्र तो यहाँ पंगु साबित हुआ है वरना कोटा का माँहोल तो सावधानी हटी के दुर्घटना घटी के नारे के समान है ...यहाँ की सियासत मेंडक तोलने के समान है इसको भी अपने चातुर्य कोशल और प्रशासनिक क्षमता से बेलेंस करना होगा जबकि फ्लेगशिप योजनाओं की क्रियान्विति उनका टार्गेट ..पन्द्राह सूत्रीय प्रधानमन्त्री कार्यक्रम की क्रियान्विति उनका टारगेट भी इन्हें देखना है ..अभी निजी स्कूलों में लूट का दोर है जिससे भी इन्हें निपटना होगा ...............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

सच यही है अगर अख़बार ,,,मिडिया और ऐसे चेनल सरकार घोषणाएं के लियें होती है

सच यही है अगर  अख़बार ,,,मिडिया और ऐसे चेनल सरकार   घोषणाएं  के लियें होती है उन्हें छापते है या  फिर दिखाते है उन्ही घोषणाओं की क्रियान्विति के बारे में अगर पीछे पढ़ जाये तो यकीनन सरकारें चाहे कोई भी हो नंगी हो जाएँगी क्योंकि मुसलमानों को जो भी दिया जाता है वोह सिर्फ घोषणाओं में या फिर कागजों में दिया जाता है हकीक़त तो यह है के घोषणाओं का दस प्रतिशत भी फायदा मुसलमानों को नहीं मिलता है एक तरफ तो इन अखबारी घोषणाओं से दुसरे समाज के लोग मुसलमानों को सरकार बहुत कुछ दे रही है समझ कर मुसलमानों से नफरत करने लगता है और दूसरी तरफ मुसलमानों को घोषणाओं की क्रियान्विति के नाम पर ठेंगे के आलावा कुछ नहीं मिलता है यकीन न हो तो हर बार का केंद्र या राज्यों की सरकारों का बजट उठाकर देख लोग और उनकी क्रियान्विति में सरकार की ढील पीएलओ बजट लेप्स के किस्से देख लो ..तो जनाब यह सही है के मीडिया जो घोषणा की उसकी कितनी क्रियान्विति हुई और मुसलमानों के लियें सही मायनों में क्या जरूरते है जो होना चाहिए सरकार नहीं कर रही है वोह बताये तो सरकार की पोल क्खुल कर रह जायेगी और जो दुसरे समाज के लोग मुसलमानों से इसीलियें नफरत करने लगे है के वॊह मिडिया और अख़बार की घोशनाएँ सही समझ कर यह मान लेते है के मुसलमानों की तो बल्ले बल्ले है वोह भी मुसलमानों के हाजरा हालात पर तरस खाने लगेंगे ..तो क्या मिडिया सर ऐसा कर सकेंगे आप पूरा सच नहीं सिर्फ दस फीसदी सच और कडवा सच दिखादे इंशा अल्लाह बहुत  सारे मसले हल हो जायेंगे ....मुसलमान जब कब्रिस्तान की बात करता है तो उसे कहा जाता है पढ़ी पढो पढ़ कर  बन गया हर घर में ओसत ग्रेजुएट ..बी एड ..इंजीनियर डॉक्टर बेरोजगार है तब भी तालीम से मुसलमानों को जोड़ो का बेवकूफी भरा नारा नेता लोग लगते है जबकि पढ़े लिखे मुसलमानों को नोकरी और रोज़गार का नर लगाना चाहिए लेकिन क्या करें जो मुसलमानों की मुखबिरी करता है जो मुसलमानों के ज़ुल्म सितम को सरकर की मजबूरी बता कर सरकार का बचाव करता है उसी मोलवी ..मोलाना और नेता को मुसलमानों की कयादत का सरकार ताज पहना देती है और फिर शोषण उत्पीडन का दोर शुरू होता है सरकारी सुविधाएँ लेकर यह त्नख्य्ये मुसलमान जो केवल नाम के ही मुस्लमान  होते है झूंठ बोलकर सरकार के गुणगान करते है फर्जी आंकड़े पेश कर गुमराह करते है और मुसलमानों की तरक्की के रोड़ा बन जाते है मिडिया भी ऐसे ही सरकारी तन्खाय्ये पुपाडियों से बाजे बजवा आकर दुल्हा बनजाते है ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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