आपका-अख्तर खान

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03 मई 2013

हम क्या हैं ?


१- हम वो हैं जो अपनी बहन के छेड़े जाने पर मरने मारने पर आमादा हो जाते हैं मगर दूसरी लड़कियों को छेड़ने नियम से कन्या महाविद्यालय के सामने खड़े होते हैं!
२- हम वो हैं जो अपनी सास द्वारा जिंदगी भर सताए गए मगर जब हमारी बहू आई तो बजाय उसे सताने के लिए उससे भी रौद्र रूप धारण कर लेते हैं! क्योंकि हम बदला प्रेमी हैं!
३- हम वो हैं जो अपने बच्चों को झूठ बोलने पर मारते हैं ,सजा देते हैं मगर स्वयं अपने स्वार्थों की खातिर बिना संकोच हज़ारों झूठ बोलते हैं!
४- हम वो हैं जो वेलेंटाइन डे के विरोध में लड़के लड़कियों पर धावा बोलते हैं , ग्रीटिंग कार्ड्स की दुकानें तोड़ते हैं और शाम को नहा धोकर अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने जाते हैं!
५- हम वो हैं जो अपनी बच्चियों को ज़माने भर से महफूज़ रखते हैं मगर दूसरों की मासूस बच्चियों के सीने पर अनजाने ही हाथ फिरा देते हैं!
६- हम वो हैं जो किसी सेमीनार में करप्शन पर जोरदार भाषण देकर आते हैं और ऑफिस आते ही बिना संकोच लिफाफा स्वीकार करते हैं!
७- हम वो हैं जो अपने देश में चाहे जहां मूत्र विसर्जन के लिए खड़े हो जाते हैं , हर शासकीय दीवार या कोने को थूकने का स्थान समझते हैं , ट्रेन में अपनी बर्थ के नीचे केले के छिलके छोड़ कर आते हैं मगर विदेशों में जाकर सारा अनुशासन दो मिनिट में सीख जाते हैं फिर अपने देश की गंदगी पर लानत भेजते हैं !
८-हम वो हैं जो अंग्रेजी बोलते, ब्रांडेड कपडे पहने किसी भी व्यक्ति से फ़ौरन से पेशतर प्रभावित हो जाते हैं , बिना उसके आंतरिक चरित्र को जाने परखे जबकि हिन्दी की वर्णमाला या गिनती नहीं जानने पर हम गर्व से हँसते हैं!
९- हम वो हैं जो अपने बच्चों को सिर्फ स्टेटस मेंटेन करने के लिए उस स्कूल में डाल देते हैं जिसमे पढ़ाने की न हमारी औकात है और नहं उस स्कूल की पढ़ाई से संतुष्ट हैं!
१०- हम वो हैं जो सरकारी नौकरी इसलिए पाना चाहते हैं क्योंकि वहाँ मक्कारी ,भ्रष्टाचार और निकम्मेपन के बावजूद हमें जीवन भर कोई नौकरी से नहीं निकाल सकता!

हम और भी न जाने क्या क्या हैं! कुल मिलाकर हम दोहरे मापदंड और दिखावे का जीवन जीने वाले देशभक्त हैं और भारत के सच्चे नागरिक हैं! और हाँ ..हम भारतीय संस्कृति का ढोल बहुत अच्छा पीटते हैं, बिना जाने ये ढोल फटा हुआ है और इससे अब बहुत बेसुरी आवाज़ निकलती है!

स्वतंत्रता सेनानी बीएम बांठिया नहीं रहे

स्वतंत्रता सेनानी बीएम बांठिया नहीं रहे
कोटा
स्वतंत्रता सेनानी एवं वरिष्ठ पत्रकार बीएम बांठिया का शुक्रवार रात निधन हो गया। रामपुरा में रहने वाले 89 वर्षीय बांठिया कुछ दिनों से गंभीर बीमार थे और बसंत विहार स्थित पारीक हॉस्पिटल में भर्ती थे। गुरुवार सुबह ही उन्हें घर लाया गया था। जहां शुक्रवार रात 8.53 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार शनिवार सुबह 10.30 बजे रामपुरा में शवदाहघाट की गली मुक्तिधाम पर होगा।

वे अविवाहित थे और भतीजा संदीप बांठिया उनकी देखभाल करता था। कार्यवाहक कलेक्टर राकेश जायसवाल के मुताबिक शनिवार को बांठिया का राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया जाएगा। कलेक्ट्रेट पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। बांठिया के भाई कानमल बांठिया ने बताया कि बीएम बांठिया का जन्म 5 अक्टूबर 1924 को कोटा में कल्याणमल बांठिया के यहां हुआ था। छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे और प्रजामंडल के साथ रैलियों, प्रभातफेरियों, जुलूसों में सक्रियता से हिस्सा लिया। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एमकॉम और एलएलबी की डिग्री हासिल की। कोटा से मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे वर्धा चले गए थे। वहां भी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनका वर्धा से 7-8 किलोमीटर दूर सेवाग्राम जहां गांधीजी निवास करते थे, वहां आना-जाना रहा। इस दौरान दो बार उन्हें गांधीजी से मिलने का अवसर मिला।

साथ ही जमनालाल बजाज, श्रीकृष्णदास जाजू, किशोरलाल मशरूवाला, दादा धर्माधिकारी और राधाकृष्ण बजाज जैसी हस्तियों के संपर्क में रहे। अगस्त 1942 के मुंबई कांग्रेस अधिवेशन से पहले दो बार कांग्रेस की सभाएं हुई तो उनमें उन्होंने वॉलंटियर की हैसियत से काम किया था। वे कोटा में इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स और पीटीआई के कोटा से संवाददाता रहे। आपातकाल के विरोध में 1975 में उन्होंने प्रचार सामग्री प्रकाशित करने का प्रयास किया था। वे सही बात को बेबाक तरीके से कहते थे। राजनीतिक सामाजिक क्षेत्र के लोग उनसे मशविरा लेते थे। महापौर डॉ. रत्ना जैन और पति अशोक जैन जो पूर्व में उनके पड़ोसी थे, वे बीएम बांठिया के निधन की खबर सुनते ही रात को उनके रामपुरा निवास पर पहुंच गए। नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल जो पाली में हैं, उन्होंने भी सूचना मिलते ही शोक संवेदना व्यक्त की है। कांग्रेस महासचिव पंकज मेहता ने बांठिया के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।

दोस्तों राजस्थान में कोटा पुलिस का रवय्या बच्चीयों के साथ बलात्कार के मामले में पुलिस और अपराधी पक्ष का रहा है यहाँ बलात्कारियों को पुलिस बचाने का प्रयास करती है और आई जी कोटा को इस मामले में शिकायत करे तो वोह महिला संगठनों को धमकाते है

दोस्तों राजस्थान में कोटा पुलिस का रवय्या बच्चीयों के साथ बलात्कार के मामले में पुलिस और अपराधी पक्ष का रहा है यहाँ बलात्कारियों को पुलिस बचाने का प्रयास करती है और आई जी कोटा को इस मामले में शिकायत करे तो वोह महिला संगठनों को धमकाते है और उन्हें खरी खोटी भी सुनाते है लेकिन कहते है इश्वर के घर देर है अंधेर नहीं है इसी लियें महिला आयोग राजस्थान ने इस मामले में प्रसंज्ञान लेकर मुख्य सचीव को पत्र लिखने का मानस बनाया है अब देखते है के महिलाओं के प्रति संवेदनशील सरकार इस मामले में कोटा के पुलिस अधिकारीयों और कार्यवाही के प्रति उपेक्षा रखने वाले आई जी का क्या हश्र करती है ...कोटा आई जी और दादाबाड़ी पुलिस अनुसन्धान अधिकारी प्रथ्विराज सहित दादाबाड़ी थानाधिकारी के खिलाफ अभी हाल ही में कोटा प्रवास पर आये राजस्थान वक्फ विकास परिषद के चेयरमेन हाजी अब्दुल गफ्फार से भी महिला संगठनों ने शिकायत की थी अब देखते है सरकार पुलिस अधिकारीयों और पुलिस अनुसन्धान अधिकारियों को बचाने के लियें क्या जुगत करती है ........................कोटा की इस गम्भीर घटना के मामले में सोशल साईट पर भी कुछ लोगों ने साथ दिया मिडिया ने भी उपेक्षा की थी लेकिन कुछ मीडियाकर्मियों ने संवेदनाये दिखाई थी उन्हें धन्यवाद और उनसे अपेक्षा है के एक तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कारी को सज़ा दिलवाने और ऐसे बलात्कारी को बचाने की कोशिशों में जुटे पुलिस अधिकारी और अनुसन्धान अधिकारी को सज़ा दिलवाने में पीड़ित की मदद करे ...अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

३ साल की बच्ची से दुष्कर्म के मामले में आईजी और डीएसपी को फटकारा

३ साल की बच्ची से दुष्कर्म के मामले में आईजी और डीएसपी को फटकारा
कोटा।।।।।राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष लाड़कुमारी जैन ने शुक्रवार को आईजी अमृत कलश को तीन साल की दुष्कर्म पीडि़ता के केस में पुलिस के लापरवाहीपूर्वक रवैये को लेकर फटकार लगाई हैं। उन्होंने कहा कि पीडि़ता के मां-बाप बार-बार पुलिस से मिले, लेकिन उनकी सुनवाई करने और रिपोर्ट दर्ज करने में भी बहुत देर लगाई। अभी तक पुलिस ने ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की? जैन ने कहा कि ऐसे संवेदनशील मामले में भी पुलिस का ऐसा रवैया रहा तो न्याय कैसे मिलेगा।

आयोग की ओर से तलब किए जाने पर शुक्रवार को आईजी अमृत कलश, डिप्टी पारस जैन और पुलिसकर्मी राज्य महिला आयोग कार्यालय में जयपुर गए थे, जहां जैन ने इस केस में पुलिस के रवैये को लेकर आईजी से गहरी नाराजगी जताई। दादाबाड़ी क्षेत्र में आरएएसी के सिपाही की तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना में भी बार-बार चक्कर काटने के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। चालान पेश करने की बात पर भी आयोग अध्यक्ष ने कहा कि अभी तो चालान पेश करना है, जबकि पुलिस वाले बोल रहे हैं कि चालान पेश कर दिया है।

दुबारा मेडिकल, कोटा की रिपोर्ट झूठी

कोटा पुलिस ने तब मेडिकल कराया था। अब महिला आयोग ने एसएमएस में बच्ची का गुरुवार को दुबारा मेडिकल कराया। इन दोनों मेडिकल रिपोर्ट में अंतर आया है। आयोग ने इसे गंभीर मानते हुए चिकित्सा विभाग के प्रमुख सचिव को शिकायत करने का निर्णय लिया है। आयोग कोटा में मेडिकल बोर्ड में शामिल डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रमुख सचिव को पत्र लिखेगा।

शोषण के 3 साल: सूरत से आता, होटल में रुकता और छात्रा को बुलाकर करता था रेप!



कोटा.एक छात्रा को शादी का झांसा देकर युवक तीन साल तक देह शोषण करता रहा। छात्रा ने युवक व उसकी बहन के खिलाफ इस्तगासे के जरिए ज्यादती का मामला दर्ज कराया है। आरोपी युवक बीटेक करने के बाद सूरत में नौकरी कर रहा है।
 
महावीर नगर थानाप्रभारी विजयशंकर ने बताया कि एक युवती ने कोर्ट में इस्तगासा पेश किया है। उसमें उसने बताया है कि संजय गांधी नगर निवासी नितेश राठौर से उसकी तीन साल पहले पहचान हुई थी। नितेश ने उसे शादी का झांसा दिया और उससे महावीर नगर में मामा के यहां पहली बार संबंध बनाए।

अब तिहाड़ जेल में की कैदियों ने मारपीट, एक की मौत



नई दिल्ली. जम्‍मू की जेल में बंद एक पाकिस्‍तानी कैदी पर हुए हमले के बाद अब दिल्‍ली स्थित तिहाड़ जेल में भी कैदियों के बीच झड़प की खबर है। इस मारपीट में एक भारतीय कैदी की मौत हो गई है जबकि दो अन्‍य जख्‍मी हुए हैं। इन्‍हें दीन दयाल उपाध्‍याय अस्‍पताल में भर्ती कराया गया है। एक कैदी की हालत गंभीर है जिसे आईसीयू में भर्ती कराया गया है। ताजा घटना के बाद तिहाड़ जेल की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
 
जम्‍मू में पाकिस्‍तानी कैदी के सिर पर आपसी झड़प में ईंट और हथौड़े से हमला किया गया है। कैदी का नाम सनाउल्‍लाह हक (54) है और उस पर मर्डर के दोषी एक पूर्व फौजी ने हमला किया (जानिए कौन है, सनाउल्ला का हमलावर) है। उसे जम्‍मू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था लेकिन गंभीर हालत होने की वजह से उसे चंडीगढ़ रेफर कर दिया गया। हालांकि केंद्रीय मंत्री फारुख अबदुल्ला ने दावा किया है कि घायल पाकिस्तानी कैदी की मौत नहीं होगी, लेकिन सरबजीत मारा गया। जम्‍मू कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला ने ट्वीट किया कि कम से कम भारत में हमले की जांच होती है और इसके कारण का पता चल जाएगा, पाकिस्तान में तो जांच भी नहीं होती है। 
 
सनाउल्‍लाह जम्मू की कोट बलवाल जेल में 17 साल से बंद है। घटना को सरबजीत पर पाकिस्‍तानी जेल में हुए हमले का बदला माना जा रहा है। सनाउल्लाह हक पाकिस्तान के सियालकोट के पास दालोवाली का रहने वाला है। वह 1994 में जम्मू के पास एक बस को विस्फोट से उड़ाने का दोषी है। इस विस्फोट में 10 लोग मारे गए थे। उसे आजीवन कारावस की सजा मिली है। सूत्रों के मुताबिक सुबह ब्रेक के समय दोनों कैदी एक साथ बीड़ी पी रहे थे। दोनों के बीच विवाद होने पर विनोद ने उस पर गैंती से हमला कर दिया। 
 
सनाउल्लाह पर हमले के तत्‍काल बाद पाकिस्‍तान ने तेवर दिखाए हैं। उसने मामले की जांच की मांग करते हुए यह भी मांग उठाई कि उसके राजनयिकों को कैदी से मिलने की इजाजत दी जाए। पाकिस्‍तान ने सनाउल्‍लाह को वापस भेजने की मांग भी की है।) केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि पाक नागरिक पर हमले की जांच की जा रही है। उसी के बाद कुछ कहा जा सकेगा। पाकिस्तान ने घटना की निंदा की है तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस घटना पर खेद जाहिर किया है और कहा है कि इंलाज का इंतजाम पूरा हो जाने पर पाक अधिकारियों को घायल कैदी से मिलने की इजाजत दी जाएगी। 
 
सनाउल्लाह पर हमले के मामले में जम्मू-कश्मीर सरकार ने कोट बलवाल जेल अधीक्षक रजनी सहगल और उनके स्टाफ को सस्पेंड कर मामले की जांच के आदेश दिए हैं। वहीं पाकिस्तानी उच्चायोग ने विदेश मंत्रालय स्तर पर मामले को उठाया है औऱ अपने अधिकारियों की जम्मू में घायल कैदी से मुलाकात की इजाजत मांगी है। इस हमले के बाद कोट बलवाल जेल में बंद सभी पाकिस्तानी कैदियों को अलग सेल में रखने की तैयारी की जा रही है

पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव का एक्सीडेंट, चार टांके लगे


पटना. राघवपुर से पटना आ रहे लालू प्रसाद यादव की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया। उनकी गाड़ी डिवाइडर से टक्करा गई थी, जहां गाड़ी के कांच के टुकड़े लगने से लालू यादव घायल हो गए।
 
नजदीकी अस्पताल में उनका इलाज कराया गया जहां उन्हें चार टांके लगे हैं। मिली जानकारी के अनुसार वो परिवर्तन रैली से लौट रहे थें।

मरा नहीं, मारा गया सरबजीत? जख्‍मों पर टांके तक नहीं लगाए थे पाकिस्‍तानी डॉक्‍टरों ने



अमृतसर. सरबजीत सिंह की दूसरी पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट आ गई है । इसके मुताबिक सरबजीत के सिर पर जख्‍म के गहरे निशान थे। सिर की हड्डियां कई जगह से टूटी हुई थीं। सिर के ऊपरी हिस्‍से में पांच सेंटीमीटर चौड़ी चोट के निशान मिले। पसलियों में भी फ्रैक्‍चर था। जबड़े की हड्डियां टूटी हुई थीं। पीठ, कंधे और सिर के बाईं ओर चोट के निशान हैं। सीने की पांच हड्डियां टूटी थी। ऐसा लगता है कि दो से अधिक लोगों ने सरबजीत पर हमला किया हो। 
 
अमृतसर में सरबजीत के शव का पोस्‍टमॉर्टम करने वाले डॉ गुरजीत सिंह मान ने रिपोर्ट की जानकारी देते हुए कहा कि सिर पर लगे चोटों के निशान 7-8 दिन पुराने हैं। कुछ जख्‍मों पर टांके भी नहीं लगाए गए थे। उन्‍होंने यह भी कहा, 'हम सरबजीत के शरीर से विसरा नहीं ले सके।' पाकिस्‍तान से सिर्फ एक पन्‍ने की पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट मिली है, फाइनल रिपोर्ट का इंतजार है।
 
डॉ मान ने कहा कि विसरा टेस्‍ट होने तक मौत की वजह नहीं बताई जा सकती है। हालांकि ऐसा लगता है कि सिर पर लगी चोटों की वजह से मौत हुई होगी। ऐसा लगता है कि सरबजीत की मौत 24 घंटे पहले हुई थी। गौरतलब है कि गुरुवार देर शाम सरबजीत का शव पाकिस्‍तान से भारत आया। लेकिन यहां पोस्‍टमार्टम हुआ तो पता चला कि उनके शरीर से किडनी और दिल निकाल लिए गए हैं। 
 
इससे पहले, शहीद सरबजीत सिंह का अंति‍म संस्‍कार राजकीय सम्‍मान के साथ उनके पैतृक गांव तरनतारन जिले के भिखीविंड में कर दिया गया। बहन दलबीर कौर ने भाई की चिता को मुखाग्नि दी। इस दौरान वहां मौजूद लोगों ने 'पाकिस्‍तान मुर्दाबाद...', 'सरबजीत अमर रहें...' के नारे लगाए। इससे पहले, सरबजीत को 21 बंदूकों की आखिरी सलामी दी गई। नेताओं और परिवारवालों की मौजूदगी में अरदास हुई। ताबूत के ऊपर शॉल चढ़ाने की रस्‍म पूरी की गई। सरबजीत की बहन दलबीर कौर, सरबजीत की विधवा सुखप्रीत कौर और दोनों बेटियां - स्‍वपनदीप कौर और पूनम  आखिरी विदाई देते समय फूट-फूट कर रोने लगीं। सरबजीत को अंतिम विदाई देने के लिए भारी भीड़ जुटी।

जिस घर में दहेज के लिए सही यातनाएं,मां-बाप ने उसी आंगन में किया बेटी का दाह संस्कार



धर्मशाला। नूरपुर की रहने वाली नीलमा देवी की शादी नगरोटा सूरियां ब्लाक के वनतुंगली गांव निवासी लेखराज के साथ हुई थी। कुछ दिन पहले नीलमा देवी के साथ उसके पति लेखराज ने मारपीट की थी। मारपीट में गंभीर रूप से घायल नीलमा देवी को पहले नगरोटा सूरियां अस्पताल में उपचार के लिए ले जाया गया। लेकिन स्थिति में सुधार न होने पर उसे मेडिकल कालेज टांडा रेफर कर दिया गया था। जहां वीरवार को उसकी मौत हो गई। टांडा में शुक्रवार को पोस्टमार्टम के उपरांत चिकित्सकों  ने मायके व ससुराल वालों की आपसी सहमति के बाद शव ससुराल वालों को सौंप दिया तथा शुक्रवार को वनतुंगली में दाह संस्कार करने का निर्णय लिया।
लकड़ियां साथ लाए थे मायके वाले
शुक्रवार को  नूरपुर से आए मृतक के मायके वालों के साथ आए 300 लगभग लोगों ने मृतका का अंतिम संस्कार  उसके  ससुराल के आंगन में ही कर दिया। मायके वाले लकडिय़ां सहित अन्य ज्वलनशील सामग्री भी साथ लेकर आए थे।ऐसे में इससे पहले कि ससुराल वाले कुछ समझ पाते मायके वालों ने ससुराल के आंगन में ही मृतक की चिता जला दी। वनतुंगली गांव के ग्रामीणों ने भी मायके वालों द्वारा लगाए गए आरोपों को सही करार देते हुए उनका साथ दिया।  गांव वालों का कहना था कि मृतका के पति व सास की हरकतों की वजह से  इस परिवार का हुक्का पानी पहले से ही बंद कर चुके थे।
गुस्साई भीड़ ने पुलिस से भी की धक्कामुक्की
मौका पर मौजूद पुलिस ने जब मायके वालों व ग्रामीणों को चिता को अग्रि देने से रोका तो पुलिस वालों के साथ भी गुस्साए भीड़ ने धक्कामुक्की की। पुलिस ने हस्तक्षेप कर मृतका के तीन छोटे-छोटे बच्चों को भीड़ से सुरक्षित बाहर निकाला। मृतका के पिता दुर्गादास का आरोप है कि ससुराल वालों की प्रताडऩा से परेशान मृतका नीलमा देवी से आए दिन मारपीट की जाती थी। उनका आरोप है कि मारपीट की वजह से नीलमा देवी की मौत हुई है। जिसके चलते नगरोटा सूरियां पुलिस ने आईपीसी की धारा 498ए, 306 व 34 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर के  पति लेखराज को गिरफ्तार करर लिया है, जबकि मृतका की सास सैना देवी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। वहीं ससुराल वालों के खिलाफ आंगन में मृतका की  चिता जलाने व पुलिस के साथ धक्कामुक्की करने के चलते मायके  वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 143, 147, 149, 451, 268, 297 व पुलिस एक्ट 186 का मामला दर्ज किया है।

नगरोटा सूरियां के वनतुंगली में विवाहिता की मौत। गुस्साए मायके वालों ने पुलिस की मौजूदगी में ही ससुराल के आंगन में किया मृतका का दाह संस्कार।  विवाहिता की मौत के बाद वनतुंगली व नूरपुर में स्थिति तनावपूर्ण, पुलिस बल तैनात। विवाहिता की मौत मामले में पति गिरफ्तार, सास के खिलाफ मामला दर्ज।

रेल मंत्री का भांजा 90 लाख रु. रिश्वत लेते गिरफ्तार, सीबीआई की तलाशी जारी




चंडीगढ़/मुंबई.  रेलमंत्री पवन कुमार बंसल के भांजे विजय सिंगला को सीबीआई ने रिश्वतखोरी के आरोप में शुक्रवार देर शाम चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया। उस पर रेलवे बोर्ड के सदस्य (स्टाफ) महेश कुमार से 90 लाख रुपए घूस लेने का आरोप है। 
 
महेश कुमार पश्चिम रेलवे में जीएम थे। वे प्रमोट कर रेलवे बोर्ड में मेंबर (स्टाफ) बनाए गए हैं। वीरवार को ही उन्होंने पदभार संभाला था। अब वे मेंबर (इलेक्ट्रिकल) की पोस्ट चाहते थे। इसके लिए सिंगला से डील हुई थी। 90 लाख रुपए की पहली किस्त इसी के एवज में दी गई थी। उन्हें मुंबई एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया। 
 
इस मामले में चंडीगढ़ के ही संदीप गोयल को भी नामजद किया गया है। गोयल सिंगला का सहयोगी है। सीबीआई महेश पर कई दिनों से नजर रख रही थी।

कुरान का सन्देश

  

चुप थे साहिब आप तो

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चुप थे साहिब आप तो,जब हम रोये रोज,
भूख बिलखते लाल थे,आप घरो थी मौज,

तन बेचे उदरा भरे,सन्तानो का माय,
अपने ही इस देश मे,रोये माता गाय,

बाबुल बूढ़ा बैल है,निरिह गाय सम माय,
बहु बेटो के राज में,सिमट सिमट मर जाय,

चौकस रह कर चौकसी, हर तरफ़ है चोर,
निज मन ही धोखा करे,काहे चूके और,
-गोविन्द हाँकला

मेरे प्यारे भारतवासियों ..मेरे दोस्तों ..मेरे बुजुर्गों ..कहते है आज विश्व प्रेस स्वतन्त्रता दिवस था जो निकल सा गया है ...

मेरे प्यारे भारतवासियों ..मेरे दोस्तों ..मेरे बुजुर्गों ..कहते है आज विश्व प्रेस स्वतन्त्रता दिवस था जो निकल सा गया है ......लेकिन प्रिंट मिडिया ..इलेक्ट्रोनिक मिडिया ..वेब मिडिया ..सोशल साईट मिडिया के लियें एक सवाल छोड़ गया है ...यह दिन चीख चीख कर कहता है के सभी पत्रकार बन्धुओं ..सम्पादकों ..मालिकों ..प्रकाशकों जरा अपने अपने सीने पर हाथ रखे और बताये क्या वोह निष्पक्ष है क्या वोह स्वतंत्र है ..सभी अखबारों ..टीवी चेनलों पर विज्ञापन का प्रभाव है ..गुलामी का प्रभाव है .देश के बढ़े जाने मने पत्रकार भी मालिकों के आगे गुलामों की तरह हाथ बांधे खड़े रहते है और अगर वोह खुद मालिक बन जाते है तो सरकार या उद्द्योगपतियों के आगे हाठ बंधे खड़े रहते है .......हाँ सोशल मिडिया जिसमे हिंदी ब्लोगिंग हो या फिर फेसबुक साईट हो खुल कर धड़ल्ले से अपने विचारों की स्वतन्त्रता बाहर निकलती है और फेसबुक सोशल मिडिया के कारन ही अभिषेक मनु सिंघवी कोंग्रेसी नेता की विस्फोटक खबर पत्रकारों से सोदेबाज़ी के बाद भी बहर आ गयी थी और उन्हें मजबूरी में स्तीफा देना पढ़ा था ऐसी ना जाने कितनी खबरे है जिन्हें अख़बार और इलेक्ट्रोनिक मिडिया रोकना चाहते है लेकिन सोशल मिडिया उसे बाहर निकाल कर साड़ी सोदेबजी की प्लानिंग खत्म क्र देते है दोस्तों .....पत्रकारों ..सम्पादकों ..सोशल मिडिया से जुड़े लोगों सोदेबजों अकह्बरों को खरीदने वाले उद्द्योगपतियों ....पत्रकारों को गुलाम बनाने वाले सियासी लोगों जरा अपने अपने सीने पर हाथ रखे अपने बेजान इ धडकते दिल से पूंछे क्या वाकई प्रेस स्वतंत्र है क्या वाकई इलेक्ट्रोनिक मिडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष है अगर में गलत हूँ तो मेरा विरोध खुलकर करे और अगर सही हूँ तो मेरा खुल कर समर्थन कर मेरी होसला अफजाई करें ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस- एम. वी. एस. प्रसाद


विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस की स्‍थापना 1991 में यूनेस्‍को और संयुक्‍त राष्‍ट्र के जन सूचना विभाग ने मिलकर की थी। इससे पहले नामीबिया में विन्‍डहॉक में हुए सम्‍मेलन में इस बात पर जोर दिया गया था, कि प्रेस की आजादी को मुख्‍य रूप से बहुवाद और जनसंचार की आजादी की जरूरत के रूप में देखा जाना चाहिए। तब से हर साल 3 मई को विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने भी 3 मई को विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता की घोषणा की थी। यूनेस्‍को महा-सम्‍मेलन के 26वें सत्र में 1993 में इससे संबंधित प्रस्‍ताव को स्‍वीकार किया गया था।….

इस दिन के मनाने का उद्देश्‍य प्रेस की स्‍वतंत्रता के विभिन्‍न प्रकार के उल्‍लंघनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है, जैसे प्रकाशनों की कांट-छांट, उन पर जुर्माना लगाना, प्रकाशन को निलंबित कर‍ देना और बंद कर‍देना आदि । इनके अलावा पत्रकारों, संपादकों और प्रकाशकों को परेशान किया जाता है और उन पर हमले भी किये जाते हैं। यह दिन प्रेस की आजादी को बढ़ावा देने और इसके लिए सार्थक पहल करने तथा दुनिया भर में प्रेस की आजादी की स्थिति का आकलन करने का भी दिन है।
और अधिक व्‍यावहारिक तरीके से कहा जाए, तो प्रेस की आजादी या मीडिया की आजादी, विभिन्‍न इलैक्‍ट्रोनिक माध्‍यमों और प्रकाशित सामग्री तथा फोटोग्राफ वीडियो आदि के जरिए संचार और अभिव्‍यक्ति की आजादी है। प्रेस की आजादी का मुख्‍य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दखलंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्‍य कानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आजादी की रक्षा जरूरी है।
प्रेस की आजादी का मतलब
    मीडिया की आजादी का मतलब है कि किसी भी व्‍यक्ति को अपनी राय कायम करने और सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर करने का अधिकार है। इस आजादी में बिना किसी दखलंदाजी के अपनी राय कायम करने तथा किसी भी मीडिया के जरिए, चाहे वह देश की सीमाओं से बाहर का मीडिया हो, सूचना और विचार हासिल करने और सूचना  देने की आजादी शामिल है। इसका उल्‍लेख मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुछेद 19 में किया गया है। सूचना संचार प्रौद्योगिकी (विषय-वस्‍तु प्रसारण आदि) तथा सोशल मीडिया के जरिए थोड़े समय के अंदर ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों तक सभी तरह की महत्‍वपूर्ण ख़बरें पहुंच जाती हैं। यह समझना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया की सक्रियता से इसका विरोध करने वालों को भी स्‍वयं को संगठित करने के लिए बढ़ावा मिला है और दुनिया भर के युवा लोग अपनी अभिव्‍यक्ति के लिए और व्‍यापक रूप से अपने समुदायों की आकांक्षाओं की अभिव्‍यक्ति के लिए संघर्ष करने लगे हैं।
इसके साथ ही यह समझना भी जरूरी है कि मीडिया की आजादी बहुत कमजोर है। यह भी जानना जरूरी है कि अभी यह सभी की पहुंच से बाहर है। हालांकि मीडिया की सच्‍ची आजादी के लिए माहौल बन रहा है, लेकिन यह भी ठोस वास्तविकता है कि दुनिया में कई लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुंच बुनियादी संचार प्रौद्योगिकी तक नहीं है। जैसे-जैसे ऑनलाइन पर ख़बरों और रिपोर्टिंग का सिलसिला बढ़ रहा है, ब्‍लॉग लेखकों सहित और ज्‍यादा ऑनलाइन पत्रकारों को परेशान किया जा रहा है और हमले किये जा रहे हैं। यूनेस्‍को ने यहां तक कि एक वेबपेज  – यूनेस्‍को रिमेम्‍बर्स एसेसिनेटड जर्नलिस्‍ट्स, इसके लिए शुरू किया है।
राज्‍यों और सरकारों की भी यह जिम्‍मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि अभिव्‍यक्ति की आजादी के राष्‍ट्रीय कानून अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मान्‍य सिद्धांतों के अनुरूप हों, जिनका उल्‍लेख विन्‍डहॉक घोषणा और यूनेस्‍को के मीडिया विकास सूचकों में किया गया है। दोनों दस्‍तावेजों को स्‍वीकृति दी जा चुकी है।
प्रेस आजादी में दो कारणों से रुकावटें आ रही हैं। एक कारण है, कोई सं‍गठित सूचना प्रणाली न होना और दूसरा कारण है, सूचना तक पहुंचने, समझने और उसका मूल्‍यांकन करने के लिए बुनियादी कौशल और साक्षरता में कमी। समाज के कई वर्गों को न केवल सार्वजनिक तौर पर अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिलता, बल्कि वे सूचना प्राप्‍त करने के साधनों से भी वंचित हैं, जो उन्‍हें शिक्षित कर सकते हैं और सशक्‍त बना सकते हैं। एक ओर तो विश्‍वव्‍यापी वेबसाइटों का प्रसारण बढ़ रहा है और सूचना प्राप्‍त करने में आसानी होती जा रही है और दूसरी ओर सूचना के साधनों तक पहुंच में दूरी बनी हुई है, जो एक विरोधाभास जैसा लगता है।
अंतर्राष्‍ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) के अनुसार दुनिया भर में 60 प्रतिशत से अधिक घरों में अभी भी कम्‍प्‍यूटर नहीं है और दुनिया की आबादी के 35 प्रतिशत लोग ही अपने आपको इन्‍टरनेट उपभोक्‍ता समझते हैं। इस सर्वेक्षण में जिनको शामिल किया गया, उनमें अधिक संख्‍या विकासशील देशों के लोगों की थी। (ये आंकड़े यूनेस्‍को द्वारा आयोजित वैश्विक अध्‍ययन से लिये गए हें।)
यह मानते हुए कि अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के अधिकार का और प्रेस की स्‍वतंत्रता का सूचना प्राप्‍त करने के अधिकार से गहरा संबंध है, यह जरूरी हो जाता है कि देशों के बीच और देशों के अंदर कम्‍प्‍यूटर आदि की उपलब्‍धता की कमी (डिजीटल डिवाइड) को दूर किया जाए। वास्‍तव में हाल में हुए 7वें यूनेस्‍को यूथ फोरम के सम्‍मेलन में भाग लेने वालों ने इस बात पर जोर दिया था कि सूचना संचार और प्रौद्योगिकी तक पहुंच को सुलभ बनाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। सभी की सूचना तक पहुंच हो, इसके लिए प्रयास किये जाने चाहिएं, विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में और उन इलाकों में, जो अलग-थलग हैं।
भारतीय परिवेश  भारत में स‍ंविधान के अनुच्‍छेद 19(1)ए) में ‘’भाषण और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के अधिकार’’ का उल्‍लेख है, लेकिन उसमें शब्‍द ‘’प्रेस’’ का जिक्र नहीं है, लेकिन उप-खंड (2) के अंतर्गत इस अधिकार पर पाबंदियां लगाई गई हैं। इसके अनुसार भारत की प्रभुसत्ता और अखंडता, राष्‍ट्र की सुरक्षा, विदेशों के साथ मैत्री संबंधों, सार्वजनिक व्‍यवस्‍था, शालीनता और नैतिकता के संरक्षण, न्‍यायालय की अवमानना, बदनामी या अपराध के लिए उकसाने जैसे मामलों में अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता पर पाबंदियां लगाई जा सकती हैं।
लोकतंत्र के सही तरीके से काम करने के लिए यह जरूरी है कि नागरिकों को देश के विभिन्‍न भागों की ख़बरों और यहां तक कि विदेशों की ख़बरों की जानकारी हो, क्‍योंकि तभी वे तर्क संगत राय कायम कर सकते हैं। यह निश्चित बात है कि किसी भी नागरिक से यह उम्‍मीद नहीं की जा सकती, कि वह अपनी राय तय करने के लिए स्‍वयं ख़बरें इक्‍ट्ठी करे । इस लिए लोकतंत्र में मीडिया की यह महत्‍वपूर्ण भूमिका है और वह लोगों के लिए खबरें इकट्ठी करने के लिए उनकी एक एजेंसी के रूप में काम करता है। यही कारण है कि सभी लोकतांत्रिक देशों में प्रेस की आजादी पर जोर दिया गया है, जबकि सामन्‍तवादी शासन व्‍यवस्‍था में इसकी अनुमति नहीं होती थी।
भारत जैसे विकासशील देशों में मीडिया पर जातिवाद और सम्‍प्रदायवाद जैसे संकुचित विचारों के खिलाफ संघर्ष करने और ग़रीबी तथा अन्‍य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई में लोगों की सहायता करने की बहुत बड़ी जिम्‍मेदारी है, क्‍योंकि लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा और अनभिज्ञ है, इसलिये यह और भी जरूरी है कि आधुनिक विचार उन तक पहुंचाए जाएं और उनका पिछड़ापन दूर किया जाए, ताकि वे सजग भारत का हिस्‍सा बन सकें। इस दृष्टि से मीडिया की बहुत बड़ी जिम्‍मेदारी है (उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश, न्यायमूर्ति श्री मार्कन्‍डेय काटजू)
सूचना का अधिकार कानून
    विश्‍व भर में सूचना तक सुलभ पहुंच के बारे में बढ़ती चिंता को देखते हुए भारतीय संसद द्वारा 2005 में पास किया गया सूचना का अधिकार कानून बहुत महत्‍वपूर्ण हो गया है। इस कानून में सरकारी सूचना के लिए नागरिक के अनुरोध का निश्चित समय के अंदर जवाब देना बहुत जरूरी है।
इस कानून के प्रावधानों के अंतर्गत कोई भी नागरिक सार्वजनिक अधिकरण (सरकारी विभाग या राज्‍य की व्‍यवस्‍था) से सूचना के लिए अनुरोध कर सकता है और उसे 30 दिन के अंदर इसका जवाब देना होता है। कानून में यह भी कहा गया है कि सरकारी विभाग व्‍यापक प्रसारण के लिए अपना रिकॉर्डों का कम्‍प्‍यूटरीकरण करेंगे और कुछ विशेष प्रकार की सूचनाओं को प्रकाशित करेंगे, ताकि नागरिकों को औपचारिक रूप से सूचना न मांगनी पड़े। संसद में 15 जून, 2005 को यह कानून पास कर दिया था, जो 13 अक्‍तूबर, 2005 से पूरी तरह लागू हो गया।
संक्षेप में, यह कानून प्रत्‍येक नागरिक को सरकार से सवाल पूछने, या सूचना हासिल करने, किसी सरकारी दस्‍तावेज की प्रति मांगने, किसी सरकारी दस्‍तावेज का निरीक्षण करने, सरकार द्वारा किये गए किसी काम का निरीक्षण करने और सरकारी कार्य में इस्‍तेमाल सामग्री के नमूने लेने का अधिकार देता है।
सूचना का अधिकार कानून एक मौलिक मानवाधिकार है, जो मानव विकास के लिए महत्वपूर्ण‍है तथा अन्‍य मानवाधिकारों को समझने के लिए पहली जरूरत है। पिछले 7 वर्षों के अनुभव से, जबसे यह कानून लागू हुआ है, पता चलता है कि सूचना का अधिकार कानून आवश्‍यकता के समय एक मित्र जैसा है, जो आम आदमी के जीवन को आसान और सम्‍मानजनक बनाता है तथा उसे सफलतापूर्वक जन सेवाओं के लिए अनुरोध करने और इनका उपयोग करने का अधिकार देता है।  
एम. वी. एस. प्रसाद

स्वतंत्र प्रेस के पहले नायक हिक


पटना [विनय मिश्र]। जेम्स अगस्टस हिकी भारत के प्रथम पत्रकार थे, जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया। उनके बाद यह सूची लंबी है। हजारों पत्रकारों ने विदेशी और देसी शासन के खिलाफ संघर्ष जारी रखा, ताकि कलम स्वतंत्र रहे। आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारत में स्वतंत्र प्रेस के अगुआ हिकी के बहाने महान कलमवीरों को हमारी श्रद्धाजलि..।
प्रेस की स्वतंत्रता पर बहस बड़ी पुरानी है। शायद इस बहस की उम्र उतनी है, जितनी प्रेस की है। भारत में समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष आज से लगभग 232 साल पहले कोलकाता में समाचार पत्र के प्रकाश के साथ ही शुरू हुआ था। उस संघर्ष के नायक थे बंगाल गजट के संस्थापक-संपादक जेम्स अगस्टस हिकी। वो थे तो ब्रिटिश नागरिक, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के दमनकारी उपायों के खिलाफ उन्होंने डटकर संघर्ष किया।
भारत का पहला समाचार पत्र
बंगाल गजट दो पन्नों का साप्ताहिक था, जो पहली बार कोलकता में शनिवार 29 जनवरी 1780 को प्रकाशित हुआ। इसके संस्थापक-संपादक-प्रकाशक हिकी का डिक्शनरी आफ नेशनल बायोग्राफी में जिक्र नहीं है। यह भी नहीं पता कि वे कहा पैदा हुए। बंगाल आबीचुअरी में भी उनका जिक्र नहीं है। हा, एचई ए काटन की पुस्तक कलकत्ता ओल्ड एंड न्यू [1907] में इतना जरूर उल्लेख है कि भारत में उनका कार्यकाल लालबाजार की जेल में समाप्त हो गया।
उनके साहस के चर्चे अवश्य कई किताबों में मिलते हैं। बस्तीड ने पहले भारतीय समाचार पत्र का जीवन और मृत्यु शीर्षक पुस्तक का एक अध्याय हिकी के बारे में लिखा है और उन्हें भारतीय प्रेस का अगुआ बताया है। मार्गरेट बर्न्स ने अपनी पुस्तक भारतीय प्रेस - भारत में जनमत के विकास का इतिहास [1940] में इस व्यक्ति के बारे में लिखा है कि उसने बड़ा साहस दिखाया और बहुत कुछ खोया। लेकिन उनका नाम अमर रहेगा। आज हिकी अमर हैं, लेकिन उनका चित्र धूमिल रह गया।
दरअसल हिकी के चार पृष्ठों के 12 स्तंभ कंपनी सरकार के सिरदर्द थे। प्रत्येक पृष्ठ पर तीन स्तंभ होते थे। उसमें कंपनी के सर्वोच्च अधिकारी तक के खिलाफ तीखे व्यंग्य प्रकाशित किए जाते थे। तीखे व्यंग्य कभी-कभी अश्लील भी हो गए। हेस्टिंग्स और इंपे जैसे अधिकारियों के खिलाफ गाली-गलौज वाली आलोचना के पक्ष में हिकी ने सफाई दी थी कि - पत्र का संपादक यह मानकर चलता है कि एक-एक नागरिक और स्वतंत्र सरकार के लिए समाचार पत्र की आजादी आवश्यक है।
प्रजा को अपने सिद्धात और मत व्यक्त करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए और उस आजादी पर अंकुश लगानेवाला प्रत्येक कार्य दमनकारी और समाज के लिए घातक कहलाएगा।
जून 1781 में हेस्टिंग्स ने इंपे को आदेश दिया कि हिकी को गिरफ्तार कर लिया जाये। तुरंत हिकी को सशस्त्र बल ने घेर लिया, हालाकि वे डरे नहीं। उन्होंने साहसपूर्वक कहा कि आप मुझे इस तरह घसीटकर नहीं ले जा सकते। उन्होंने गिरफ्तारी का वारंट भी दिखाने को कहा, लेकिन अदालत उठ चुकी थी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
अगले दिन उच्चतम न्यायालय ने गवर्नर जनरल द्वारा उस पर लगाए गए आरोप को लेकर जवाब-तलब किया। जब वह अपनी जमानत के लिए 80 हजार रुपये नहीं दे सके, तो जेल भेज दिया गया। अगले वर्ष हिकी को एक वर्ष जेल की सजा दी गई और 2 हजार रुपये का जुर्माना किया गया।
संपादक के जेल जाने के बाद कुछ समय तक तो गजट निकलता रहा। लेकिन मार्च 1782 में एक आदेश द्वारा प्रेस को जब्त कर लिया गया। और इस प्रकार भारत का पहला समाचार पत्र और स्वतंत्र प्रेस का अगुआ बंद हो गया। हिकी ने साहस के साथ लोहा लिया और उनका प्रेस तभी बंद हुआ, जब उसे जब्त कर लिया गया।
उस समय भी उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता की बात कही थी, जबकि वह जेल में थे और अपने बीवी बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ थे।
-क्यों मनाया जाता है प्रेस स्वतंत्रता दिवस :-
प्रत्येक वर्ष 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार इस दिन प्रेस की स्वतंत्रता के सिद्धात, प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्याकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धाजलि देने का दिन है।

३ मई-अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस क्या औपचारिकता भर है ?


३ मई को अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में सारी दुनिया में मनाया जाता है. लेकिन आज ये दिवस एक औपचारिकता भर मालूम होता है. स्वयं मीडिया ही इस दिवस के प्रति धीर-गंभीर नहीं दिखाई दे रहा है. हमारे देश में प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत दी गई वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में अंतर्निहित है. हमारे यहाँ जिस प्रकार से मीडिया के सभी अंगों का विकास हो रहा है, उसे देखते हुए मीडिया के कार्यों का विश्लेषण करने की जरुरत है. मीडिया के सभी अंग अपनी दिशा से भटके हुए हैं, और ये बात बहुत गलत नहीं है. आज युवा वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा मीडिया को अंगीकार कर रहा है लेकिन वह दायित्वों के पसीने से बचकर चकाचौंध भरी दुनिया की अपनी तमाम ख्वाहिशों को पूरा करने में जुटा हुआ है. ग्रामीण भारत की आखिर कितनी सुध ले रहा है हमारा मीडिया ? जबकि ये देश गाँव का ही है. क़त्ल, बलात्कार और डकैती ही मीडिया को गाँव की ओर आकर्षित करती है. प्रेस समाज का आइना होता है जो समाज में घट रही हर अच्छी बुरी चीज को जनता के सामने लाता है. लेकिन कल तक जो प्रेस जनता को समाज का आइना दिखाता था वह आज कई प्रकार के दवाब तथा अधिक बलवान और धनवान बनने की चाह में अपने आदर्शों के साथ समझौता करता नजर आ रहा है. आज प्रेस और मीडिया लोगों के लिए एक पेशा बन कर रह गया है. खबरें आज समाज से निकाली कम जाती हैं और उन्हें बनाई ज्यादा जाती हैं. यह भी कहा जा सकता है की खबरें मीडिया में शोषण का शिकार हो रही हैं तो कुछ गलत नहीं होगा. संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी. संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, इस दिन प्रेस की स्वतंत्रता के सिद्धांत, प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है. लेकिन इस दिन आज हमारा मीडिया कितना इस दायित्व को निभा रहा है ? इक्का-दुक्का को छोड़कर श्रद्धांजलि देने का काम भी हमारा मीडिया शायद ही ठीक से कर रहा है. जबकि होना तो ये चाहिए की कम से कम इस दिन तो सारे देश का मीडिया एकजुट होकर इस दिन की सार्थकता को अंजाम देता. कम से कम आज के दिन तो ख़बरों में तड़का लगाने से परहेज करता. लेकिन नहीं. ऐसा होने पर टी आर पी पर असर पड़ सकता है. जो की हरगिज बर्दास्त नहीं है. प्रेस की आजादी को छीनना भी देश की आजादी को छीनने की तरह ही होता है. चीन, जापान, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णत: आजादी नहीं है. यहां की प्रेस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है. इस लिहाज से हमारा देश उनसे ठीक है. आज मीडिया के किसी भी अंग की बात कर लीजिये- हर जगह दाव-पेंच का असर है. खबर से ज्यादा आज खबर देने वाले का महत्त्व हो चला है. लेख से ज्यादा लेख लिखने वाले का महत्तव हो गया है. पक्षपात होना मीडिया में भी कोई बड़ी बात नहीं है. जो लोग मीडिया से जुड़ते हैं, अधिकांश का उद्देश्य जन जागरूकता फैलाना न होकर अपनी धाक जमाना ही अधिक होता हैं. कुछ लोग खुद को स्थापित करने लिए भी मीडिया का रास्ता चुनते हैं. कुछ लोग चंद पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर अपने समाज के प्रति अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं. छदम नाम से भी मीडिया में लोगों के आने का प्रचलन बढ़ा है. सत्य को स्वीकारना इतना आसान नहीं होता है और इसीलिए कुछ लोग सत्य उद्घाटित करने वाले से बैर रखते हैं. लेकिन फिर कुछ लोग मीडिया में अपना सब कुछ दाव पर लगाकर भी इस रास्ते को ही चुनते हैं. और अफ़सोस की फिर भी उनकी वह पूछ नहीं होती, जिसके की वे हक़दार हैं. आइये इस दिन की सार्थकता को बनाने और बढ़ाने में हम मिलकर योगदान करें.

कफस की बुलबुल''



है घर उसका कफस जैसा
जहाँ वो तड़फड़ाती है
है मायूसी उस बुलबुल सी
जो बाहर उड़ना चाहती है l

कतर कर पर परिंदे के
किस्मत जब जुल्म ढाती है
तसव्वुर के फलक पे उड़
हर बुलबुल लौट आती है l

अगर खोलो कफस को तो
हिम्मत ना कर पाती है
परों के बिन रही बरसों
अब यूँ ही लड़खड़ाती है l

-शन्नो अग्रवाल

मजहब तुम्हारे आँगन के


मजहब
तुम्हारे आँगन के
गुलमोहर की शरारती डाल
मेरी छत तक पहुँचकर
इठलाया करती थी साधिकार
जाड़े की धूप में
उसकी चटख हरी पत्तियों को देखकर
मेरा मन भी हो जाता था हरा
हम दोनों के बीच था
अनाम मह-मह करता रिश्ता
नहीं थी भाषा और मजहब की दीवार
आज तुमने निर्ममता से
खींच ली है वह डाल
जो अब धूल-धूसरित
छिन्न-भिन्न पड़ी है
तुम्हारे आँगन में
खो चुका है उसका हरापन
पर तुम खुश हो
कि मजहब को कैद कर लिया है
अपनी चारदीवारी में |

सभी कहते हैं - मैं

सभी कहते हैं - मैं
कविता लिखता हूँ - पर
क्या जज्बात शब्द ओढ़ लें तो -
कविता बन जाती है - या भाव
निर्लज होकर सरेराह बिखर जाएँ -
तो कविता होती है - ये तमाशा है
जनाब - मनोभावों का दिखावा -
इसे सच मे कविता नहीं कहते .

कविता कलम से - नहीं
बन्दूक से निकलती है .
दिलों की आग दीये सी नहीं
मशाल सी जलती है - हवा साथ दे
तो फिर देख - कैसे
क्रांति की पुरवाई - तूफानी
जोर शोर से चलती है .

अमेरि‍का पर परमाणु हमला कर सकता है नॉर्थ कोरिया- पेंटागन ने कांग्रेस को चेताया



भारत-चीन के बीच बढ रही तनातनी और पाकिस्‍तान में भारतीय नागरिक के कत्‍ल से दक्षिण एशिया में तनावपूर्ण स्थिति बन रही है। इस बीच, नॉर्थ कोरिया की बढ़ती ताकत से अमेरिका परेशान हो रहा है।
 
जि‍स तरह से नॉर्थ कोरि‍या अपने यहां परमाणु मि‍साइल तकनीक पर काम कर रहा है, वह दि‍न दूर नहीं जब वह अमेरि‍का पर परमाणु मि‍साइल से हमला कर देगा। पेंटागन ने अमेरि‍की कांग्रेस को यह रि‍पोर्ट दी है। रि‍पोर्ट में कहा गया है कि नॉर्थ कोरि‍या लगातार अपनी मि‍साइलों का टेस्‍ट कर रहा है और नई खोजें कर रहा है। हालांकि अभी इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि नॉर्थ कोरि‍या इस तकनीक में पूरी तरह से कब तक सक्षम होगा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसने इस काम में कि‍तने रि‍सोर्सेस लगा रखे हैं।  
 
पेंटागन की यह रि‍पोर्ट अमेरिकी खुफि‍या एजेंसि‍यों की उस सूचना को भी पुख्‍ता करती है जि‍समें उन्‍होंने कहा था कि नॉर्थ कोरि‍या परमाणु शक्‍ति बनने की पुरजोर कोशि‍श कर रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर और गरीब देश माना जाने वाला यह देश अपनी ज्‍यादातर संपत्‍ति सेना में ही लगा रहा है। हालांकि नॉर्थ कोरि‍या पश्‍चि‍मी देशों की खुफि‍या एजेंसि‍यों के लि‍ए अब तक एक रहस्‍य ही रहा है। फि‍र चाहे वह नॉर्थ कोरि‍या के प्रमुख कि‍म जोंग उन हों या उनके पि‍ता कि‍म जोंग द्वि‍तीय रहे हों जि‍नकी मौत दि‍संबर 2011 में हो गई थी।

पूर्व फौजी ने ईंटों से कुचला पाकिस्‍तानी कैदी का सिर, पाकिस्‍तान ने दिखाए तेवर



नई दिल्ली. जम्‍मू की जेल में बंद एक पाकिस्‍तानी कैदी के सिर पर आपसी झड़प में ईंट और हथौड़े से हमला किया गया है। कैदी का नाम सनाउल्‍लाह हक (54) है और उस पर मर्डर के दोषी एक पूर्व फौजी ने हमला किया  है। उसे जम्‍मू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था लेकिन गंभीर हालत होने की वजह से उसे चंडीगढ़ रेफर कर दिया गया है। हालांकि केंद्रीय मंत्री फारुख अबदुल्ला ने दावा किया है कि घायल पाकिस्तानी कैदी की मौत नहीं होगी, लेकिन सरबजीत मारा गया। जम्‍मू कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला ने ट्वीट किया कि कम से कम भारत में हमले की जांच होती है और इसके कारण का पता चल जाएगा, पाकिस्तान में तो जांच भी नहीं होती है। 
 
सनाउल्‍लाह जम्मू की कोट बलवाल जेल में 17 साल से बंद है। घटना को सरबजीत पर पाकिस्‍तानी जेल में हुए हमले का बदला माना जा रहा है। सनाउल्लाह हक पाकिस्तान के सियालकोट के पास दालोवाली का रहने वाला है। वह 1994 में जम्मू के पास एक बस को विस्फोट से उड़ाने का दोषी है। इस विस्फोट में 10 लोग मारे गए थे। उसे आजीवन कारावस की सजा मिली है। सूत्रों के मुताबिक सुबह ब्रेक के समय दोनों कैदी एक साथ बीड़ी पी रहे थे। दोनों के बीच विवाद होने पर विनोद ने उस पर गैंती से हमला कर दिया। 
 
सनाउल्लाह पर हमले के तत्‍काल बाद पाकिस्‍तान ने तेवर दिखाए हैं। उसने मामले की जांच की मांग करते हुए यह भी मांग उठाई कि उसके राजनयिकों को कैदी से मिलने की इजाजत दी जाए। पाकिस्‍तान ने सनाउल्‍लाह को वापस भेजने की मांग भी की है।) केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि पाक नागरिक पर हमले की जांच की जा रही है। उसी के बाद कुछ कहा जा सकेगा। पाकिस्तान ने घटना की निंदा की है तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस घटना पर खेद जाहिर किया है और कहा है कि इंलाज का इंतजाम पूरा हो जाने पर पाक अधिकारियों को घायल कैदी से मिलने की इजाजत दी जाएगी। 
 
सनाउल्लाह पर हमले के मामले में जम्मू-कश्मीर सरकार ने कोट बलवाल जेल अधीक्षक रजनी सहगल और उनके स्टाफ को सस्पेंड कर मामले की जांच के आदेश दिए हैं। वहीं पाकिस्तानी उच्चायोग ने विदेश मंत्रालय स्तर पर मामले को उठाया है औऱ अपने अधिकारियों की जम्मू में घायल कैदी से मुलाकात की इजाजत मांगी है। इस हमले के बाद कोट बलवाल जेल में बंद सभी पाकिस्तानी कैदियों को अलग सेल में रखने की तैयारी की जा रही है

सरबजीत की बहन दलबीर ने दी मुखाग्नि:



भिखीविंड।। पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बर्बर हमले में मारे गए सरबजीत सिंह शुक्रवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। पंजाब के भिखीविंड में पूरे राजकीय सम्मान के साथ सरबजीत को अंतिम विदाई की गई। इस मौके पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री परनीत कौर के अलावा बड़ी संख्या में वीवीआईपी मौजूद थे। भिखीविंड और आसपास के इलाकों से हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। भिखीविंड में गम और गुस्से का माहौल था। सरबजीत की बहन दलबीर ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनको मुखाग्नि दने में पंजाब के उप मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने मदद की। उस वक्त वहां मौजूद सबकी आंखें नम हो गईं।
ब्लॉग: सरबजीत शहीद है तो भगत सिंह को निकालो
शुक्रवार की दोपहर गम और गुस्से में डूबे हजारों लोगों की मौजूदगी में सरबीजत की भिखीविंड में अंतिम यात्रा शुरू हुई। भीड़ इतनी थी कि सुरक्षा के तमाम उपाय कम पड़ गए। शव यात्रा को सरबजीत के घर से श्मशान घाट तक पहुंचने तय समय से ज्यादा का वक्त लगा। यात्रा में शामिल लोग पाकिस्तान विरोधी नारे लगा रहे थे। पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारों से भिखीविंड गूंज उठा। साथ ही लोग सरबजीत अमर रहें के भी नारे लग रहे थे।
सरबजीत का शव जब श्मशान घाट पहुंचा तो वहां गमगीन माहौल था। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने सबसे पहले उन्हें श्रद्धांजलि दी। इसके बाद विदेश मंत्री परनीत कौर के अलावा पंजाब के कई मंत्रियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। कुछ देर इंतजार के बाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पहुंचे। उन्होंने भी सरबजीत को अंतिम श्रद्धांजलि दी। इस प्रक्रिया के बाद सरबजीत के लिए अंतिम अरदास की प्रक्रिया पूरी की गई।
मुगाग्नि के ठीक पहले सरबजीत को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। उनके सम्मान में फायरिंग की गई। इस प्रक्रिया के खत्म होते ही सरबजीत की बहन दलबीर ने उन्हें मुखाग्नि दी। और देखते ही देखते ही सरबजीत का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।
गौरतलब है कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने सरबजीत सिंह को शहीद का दर्जा दिए जाने के साथ ही उनके परिवार को 1 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। पंजाब सरकार ने सरबजीत की मौत पर 3 दिवसीय राजकीय शोक घोषित किया है।
इसके पहले गुरुवार की रात सरबजीत का शव जब तिरंगे से ढके ताबूत में उनके पैतृक गांव लाया गया, तो परिवार वालों के साथ वहां मौजूद सबकी आंखें नम हो गईं। सरबजीत की रिहाई की कोशिशों के दौरान मजबूती की मिसाल बनी रहीं उनकी बहन दलबीर कौर भी बिखरी हुई नजर आईं। शुक्रवार को भिखीविंड में दुकानें, स्कूल-कॉलेज एवं अन्य संस्थान गुरुवार की तरह शुक्रवार को भी बंद रहे।

आओ सब कुछ साझा कर लें.........

आओ सब कुछ साझा कर लें.........
गम अपने तुम मुझको दे दो सारे...
खुशियॉ अपनी मैं तुमको दे दूं....
जीवन के रस्ते बहुत कठिन हैं....
आऒ सब कुछ आधा कर लें..........

मत कहना ये समय कठिन है......
जीने के भी हुनर बहुत हैं........
हॅसते हॅसते सब सह लेंगे............
इक दूजे से वादा कर लें.............

बॉट लें सारे एहसासों को.......
जीवन भी अपना बॉट लें आओ..........
सपर तो पथरीला है जीवन का......
आओ सब कुछ साझा कर लें.........!!!!!!!

चंद रुपयों में बिक जाती है अब ज़िन्दगी यहाँ

चंद रुपयों में बिक जाती है अब ज़िन्दगी यहाँ
कभी मुआवज़ों के नाम पर,
कभी सियासतों के दाम पर,
कभी इसे बेचकर भी, पेट की आग बुझ पाती है कहाँ
चंद रुपयों में बिक जाती है अब ज़िन्दगी यहाँ ....!!

आये दिन गिरती इमारतों में दबकर,
बड़ी आसन मौत नसीब होती हैं इसे,
गलती कभी ठेकेदार की, तो कभी सरकार की कहकर,
असल कारणों की किसको पड़ी है यहाँ,
चंद रुपयों में बिक जाती है अब ज़िन्दगी यहाँ ....!!

दिख रहे थे कुछ हाथ, अखबारी सुर्ख़ियों में कहीं
मलबे में दबकर, अपनी अस्थियों की जर्जरता कहते थे,
दर्द, उनकी कराह, चीखें भी तो नहीं छपती कहीं,
इसलिए उनका दर्द हमें महसूस हो पाता है कहाँ,
चंद रुपयों में बिक जाती है अब ज़िन्दगी यहाँ ....!!

कीमत वसूलने वालों से कोई पूछे,
मेरे बेटे, मेरी माँ, मेरी बीवी, मेरी बहिन की ज़िन्दगी का मोल,
मगर जो अपने-तेरे की जेबें भरने में ज़िन्दगी भुला बैठे
उन्हें इस "मेरे" का मतलब भी पता होगा कहाँ,
चंद रुपयों में बिक जाती है अब ज़िन्दगी यहाँ

------------------------------{अंकिता जैन}

उबरना है अगर इस बेक़ली से

उबरना है अगर इस बेक़ली से
तलाशे कुछ ख़ुशी इस जिंदगी से

दिखावे की है जिनकी गर्मजोशी
मिले उनसे बताओ क्या ख़ुशी से

चमक यूहीं नहीं चेहरे पे मेरे
मुसलसल जंग की है मुफ़लिसी से

लगी जो चोट दिल पे क्या बताये
ये दिल उकता गया है दोस्ती से

असर होगा तुम्हारे दिल पे इनका
कहे हैं शेर ये संजीदगी से

खुली जब आँख तो देखा है मैंने
उजाला लड़ रहा है तीरगी से

सिया ये ठोकरे खा कर है जाना
नहीं मिलता है कुछ भी सादगी से

मुझे पसंद है ब्रांडेड सामान

मुझे पसंद है ब्रांडेड सामान
किन्तु हमेशा ही पहुँच से दूर
पसंद है तो है
क्यों ना विंडो शोपिंग के जरिये मज़ा लिया जाए भरपूर
तो चल दिए हम
पैरों में पहन अपने
एक मात्र एडिडास के जूते
विंडो शापिंग को
सच असीम आनंद है
आधी हसरत
चीज देख हो जाती पूरी
और कुछ छूने के बाद भी रह जाती अधूरी
गुच्ची के पर्स
हमेशा ही मेरी पहुँच से दूर
क्यूँ ना लूँ छूकर इसका मज़ा भरपूर
महीने भर की तनख्वाह
कैसे एक बटुए पर उड़ा दूँ
ना बाबा ना
किन्तु देखने में है कौन हर्ज़
खुद की एक इच्छा शांत करना भी तो है मेरा ही फ़र्ज़
बड़े आत्म विश्वास के साथ
दाखिल हुए और और उठा लिया वही पर्स
जो खिड़की में से देखते ही लुभा गया मुझे
प्राइस टेग सबसे पहले नज़र आया जो डरा गया मुझे
१४५९९९ मात्र वाह क्या कहने
अपनी जेब जबाब दे जायेगी
यह इच्छा तो सेल के सीजन में भी अधूरी रह जायेगी
कोई बात नहीं जी मन है समझा लिया
कंधे पर डाला शीशे में नज़र डाल देखा
और लो जी हो गयी हसरत पूरी
अब आ गयी सत्यपाल साड़ियों की बारी
साड़ी जिनके आगे हर नारी हारी
बुत पर लगी हर साड़ी लुभाती है
खरीदने को मजबूर कर जाती है मुझे ...........पर
हो गयी मुझपर भारतीय नारी फिर एक बार हावी
ना मत ललचा अंजना तेरे पास नहीं है किसी धन कुबेर के ताले की चाभी
एक दो बार पहनी फिर किस काम की ...सोचा ...और बढ़ गए आगे
बीबा की कुर्तियाँ हाँ बहुत पसंद हैं मुझे
और जेब पर ज्यादा भारी भी नहीं पड़तीं
तो लो जी कुछ तो खरीद ही लिया
ज्वेलरी शाप .....कितनी ही ले लो कम है
खूबसूरती में चार चाँद लगाने को जितनी भी लो कम है
अब आ गया शो रूम वुडलेंड का
और जूते चप्पल मेरी कमजोरी
यहाँ आते ही तो जाती है मेरी हसरत पूरी
कोई समझौता नहीं इस पसंद से
कुछ लिया कुछ पसंद किया और छोड़ दिया
४०% सेल में भी तो कुछ लेना है
सेल का भी खेल क्या खूब निराला है
इसने भी जम कर हमारी जेब पर डाका डाला है
कुछ हसरत की पूरी कर और कुछ छोड़ दीं अधूरी
और चल दिए हम
हाथ में कुछ पेकेट थामे ........सेल के मौसम के इंतज़ार में ......अंजना

बुजुर्गों की अनदेखी ......


******************
जिंदगी का ये कैसा चलन हो चला है
जुल्म औलाद का बुजुर्गों पर प्रचलन हो चला है

रुकते न आंसू और ये तन रो चला है
इतना ढाया सितम अब ये मन रो चला है

फितरत बुजुर्गों पर जुल्मों - सितम हो चला है
बचे प्राण औलाद के रहमों - करम हो चला है

पीढ़ी दर पीढ़ी अनुवांशिक लक्षण हो चला है
यूँ ही रोते रोते बूढा अपना वजन ढो चला है

घर के कोने में बूढा एंटीक सामान हो चला है
अब यही जीवन उस पर मेहरबान हो चला है

मैले कपड़ों सा मैला मन हो चला है
बूढ़े को जल्दी से निबटाने का जतन हो चला है

झुंकी सी कमर ढीला बदन हो चला है
बुजुर्ग घडी दो घडी का महमान हो चला है ???

जो जुल्म किये अपनों ने वो बुजुर्ग खेता चला है
सह जुल्मों सितम फिर भी उन्हीं को दुआएं देता चला है.....अंजना

~~~~हिचकी ~~~



बेतार का तार है यह हिचकी ,
कोर्डलेस फोन है यह हिचकी,
दिल से दिल का प्यार है यह हिचकी ,
अपनों का विश्वास है यह हिचकी !

हिचकी आज माँ को आई
आंगन में उदासी छाई
चिठ्ठी होती तो बांच लेती
फोन होता तो बतिया लेती
हिचकी ने बड़ा दी माँ की सिसकी
याद तो किया है बेटी ही ने
कोई दुःख न हो भारी
घर में फैली न हो कोई महामारी
सास देती न हो कभी ताने
जिगर के टुकड़े को कैसे दूंगी सताने
छोटे से घर में कैसे रहते होंगे सुकडे
पाहुने वकील होकर अकड़े
दहेज तो मैंने भी दिया था तगड़ा
फिर काहे का है झगड़ा
तलाक दिलाकर मिटा देती हूँ सारा रगडा
सिसकियों में फिर आई एक हिचकी
माँ की आँखें भर -भर आयीं
बच्चे आँगन में डाल रहे थे भंगड़ा !
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