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07 मई 2013

चीन ने लद्दाख से पीछे हटने की बड़ी कीमत वसूली है ..जिसे मीडिया और सरकार जाहिर नही कर रहे है



मित्रों, सलमान खुर्शीद ने चीन से तीन समझौते किये ..तब जाकर चीन पीछे हटा ..और इसे भारत की बड़ी हार कहा जा सकता है

१- भारत भी इस एरिया में अपनी सेना पीछे हटा लेगा और इस एरिया में सड़क, बंकर, हेलीपैड या दूसरे कोई भी निर्माण कार्य नही करेगा | जबकि चीन इस एरिया में सडको और बंकरो का जाल बिछा चूका है और आठ हेलीपैड और एक हवाई पट्टी भी बना चूका है |

२- भारत किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच और यूएन में तिब्बत की आज़ादी के हक में नही बोलेगा और भारत को तिब्बत चीन का अभिन्न अंग है ये मानना पडेगा ..तथा भारत अपनी भूमि पर तिब्बती लिबरेशन में लगे लोगो को नही रहने देगा |

३- अंडमान निकोबार के आगे नए उभरे द्वीप जिन्हें न्यू मूर द्वीप कहा जाता है उन द्वीपों को भारत बंगला देश के हवाले करेगा जिससे उन द्वीपों पर चीन अपना नौसैनिक अड्डा बना सके |

सोचिये मित्रों, सरकार के प्रवक्ता और मीडिया कल से ऐसे कह रहे है जैसे चीन को भारत ने पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है ..जबकि सच्चाई ये है की भारत पीछे हटा है और भारत ने इस डील की भारी कीमत चुकाई है
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आइये हम सब मिलकर हमारे नेताओं का आभार व्यक्त करें


आइये हम सब मिलकर हमारे नेताओं का आभार व्यक्त करें! हम अज्ञानी यही सोचते आए थे कि चारा पशुओं को खिलाते हैं, कोयला ईंधन होता है, कफन शव ढंकने के काम आता है, स्पेक्ट्रम से संदेश भेजे जाते हैं, CWG स्टेडियम खेलों के लिए बनाया गए हैं, हेलिकॉप्टर और रेल, यात्रा के काम आते हैं।
लेकिन कोटिशः धन्यवाद है हमारे नेताओं को जिन्होने खाद्यान्न संकट के इस दौर मे हमे सिखाया कि चारा, कोयला, कफन, हेलिकॉप्टर, स्टेडियम और यहाँ तक कि स्पेक्ट्रम भी खाये जा सकते हैं!

यह केसा कोचिंग व्यवसाय है जिसने कोटा को जंगल और इंसानियत को जानवर बना दिया है

राजस्थान की शिक्षा नगरी कोटा पत्थर की हो गयी है यहाँ एक कोचिंग करियर पॉइंट की बेशर्मी बेहयाई देखिये के कल एक नाकाम लड़की की लाश आत्महत्या के बाद कमरे में पढ़ी रही और यह कोचिंग संस्था के लोग जे इ इ का परीक्षा परिणाम आने के बाद खुद की सफलता पर लाश पर जश्न मनाते रहे सोचता हूँ हजारों हजार को डोक्टर ..... इंजिनियर और कई सफल पदों पर पहुँचने वाला यह कोटा जहां संवेदनाएं थी ..शर्म थी  हया ही वफादारी थी इन कोचिंग लुटेरों के कारण  कितना असंवेदनशील हो गया है ...यहाँ कामयाब लोगों के लियें तो जश्न हैलेकिन नाकामयाबी के बाद खुद को मोत के घाट उतार देने वाले शिक्षार्थियों के लियें कोई संवेदना नहीं है ..एक परिवार ने पढाई के बोझ तले दबी कोचिंग प्रणाली असफल होने के बाद अपनी होनहार बच्ची खो दी और कोचिंग संस्था के चेहरे पर सिलवटे नहीं सहानुभूति नहीं सिर्फ कामयाब लोगों का जश्न ही उनका भाव कामयाब लोगों से खुद की कमाई की चिंता उनका प्रमुख जश्न रहा कल जे ई इ के परिणाम के बाद कोटा की कोचिंग की छात्रा आयुषी तिवारी डिप्रेशन में आ गयी और उसने फांसी लगा ली लेकिन कोटा शहर कोटा के कोचिंग संचालकों को इस नाकाम लडकी और उसके पीड़ित परिजनों से कोई संवेदना नहीं कामयाबी है तो हमारी और नाकामयाबी है तो बच्चे की यह केसा कोचिंग व्यवसाय है जिसने कोटा को जंगल और इंसानियत को जानवर बना दिया है ....अख्तर खान अकेला कोटा रजस्थान 

कृष्ण ने पढ़ा था महाकालेश्वर का सहस्त्रनाम स्तोत्र



आश्रम छोड़ने से पूर्व श्रीकृष्ण ने महाकालेश्वर का माहात्म्य जानने की उत्सुकता प्रकट की थी, समस्त शिष्यों को साथ लेकर गुरु सांदीपनि महाकालेश्वर पहुंचे और वहां महाकालेश्वर के सहस्त्रनाम लेकर बिल्वपत्र द्वारा अर्चना की थी। ये सहस्त्रनाम सांदीपनि वंश में विद्यमान है। इसमें 177 श्लोक हैं। पुस्तक के प्रारंभ में यह श्लोक हैं।

महाकालेश्वर



संदीपस्यांतिकेवंत्यां गतौतौ पठनार्थिनी।
चतुः षष्टिकलाः सर्वाः कृतविद्याश्चतुर्दश (3)
अथकैदाहं श्रीकृष्णः सुदामोः द्विजस्रतमः।
महाकालेश्वरं विल्वकेन मंत्रेण चार्पणम,
करोमि वद में कृष्ण कृपया सात्वतां पते

इस प्रकार सुदामा के प्रश्न पर श्रीकृष्ण ने महाकालेश्वर बिल्वपत्र अर्पण करने का विधान बताया है और कहा है कि महाकाल के जो सहस्त्रनाम हैं, उनका महर्षि स्वयं मैं हूं। अनुष्टुप छंद है, और देव महाकाल है। यह सहस्त्रनाम शक्तियों से प्रचलित हैं। महर्षि सांदीपनि इसी अवंति के निवासी थे, यह अनेक प्रमाणों से स्पष्ट है।

श्रीमद्भ्‌भागवतः

काश्य सांदीपनिर्नाम अवंतीपुरवासिनम्‌।
अथो गुरुकुले वासमिच्छंतां वुप जग्मतुः॥
- स्कंद पुराण अवं. ख. 33

गच्छेतामुज्जयिन्यां वै कृत विवौभविष्यथा।
ततः सांदीपनि विप्रं जग्मतू राम केशवी॥
- हरिवंश पुराण (194-18-21)

कस्य चित्वथ कालस्य सहितौ राम केशवौ।
गुरुं सांदीपनिं काश्यमवंतीपुरवासिनम्‌॥
- ब्रह्म ब्रह्म पुराण (194-18-21)

ततः सांदीपनिं काश्यमवंतीपुरवासिनम।
अस्त्रार्थे जग्मतुर्वीरौ बलदेव जनार्दनी॥
- विष्णु पुराण (5-21-18-22)

ततः सांदीपनि काश्यमवंतीपुरवासिनम!।
विद्यार्थे जग्मतुर्वालौ कृतोपनयन कृतौ॥
- ब्रह्म वैवैवर्त (102-103)

कृष्णः सांदीपनेगेंहं गत्वा च सवलो मुदा।
नमश्चकार स्वगुरुं गुरुपत्नीं पतिप्रताम्‌॥
- देवी भागवत (4-24-15-16)

उपनीतौ तदा तौ तु गतौ सांदीपनालयम्‌।
विद्याः सर्वाः समभ्यस्य मथुरामागतौ पुनः

- इनके अतिरिक्त 'स्कंद पुराण' के अवंती खंड के पूरे दो अध्याय, 'ब्रह्म वैवर्त' के तीन अध्याय और 'ब्रह्म पुराण' अ. 86-104 'पद्म पुराण' उत्तर-अ. 247-274। 'विष्णु पुराण' अ. 21। 'भागवत-दशम' अ. 45 अ. 80। 'ब्रह्म वैवर्त' अ. 101-102-99। 'हरिवंश' अ. 33-35। 'गर्ग संहिता' 5-1-151 आदि ग्रंथों में इस बात का विस्तार सहित वर्णन है।

भगवद्गीता संसार का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है। इस ज्ञान का विकास श्रीकृष्ण के हृदय में अवंती उज्जयिनी नगरी में हुआ है। महर्षि सांदीपनि का पवित्र आश्रम 5000 वर्ष से ऊपर समय हुआ यहां अद्यावधि अपनी अतीत स्मृति को जागृत कर रहा है। यह अवश्य ही समय गतिवश जीर्ण-शीर्ण अवस्था में 'तेहिनो दिवसा गताः' का सूचक बना हुआ है।

यहां महर्षि की एक पुरातन प्रतिमा भी प्रतिष्ठित है। हां अब वैसे शिष्य नहीं रहे तो ऐसे गुरु भी कहां होंगे?

मुहर्रम : तैमूर लंग ने की थी ताजियों की शुरुआत तैमूर को खुश करने के लिए शुरू हुई ताजियों की परंपरा


मुहर्रम


मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है, यह सिर्फ इस्लामी हिजरी सन्‌ का पहला महीना है। पूरी इस्लामी दुनिया में मुहर्रम की नौ और दस तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। रहा सवाल भारत में ताजियादारी का तो यह एक शुद्ध भारतीय परंपरा है, जिसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है।

इसकी शुरुआत बरसों पहले तैमूर लंग बादशाह ने की थी, जिसका ताल्लुक शीआ संप्रदाय से था। तब से भारत के शीआ-सुन्नी और कुछ क्षेत्रों में हिन्दू भी ताजियों (इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृति, जो इराक के कर्बला नामक स्थान पर है) की परंपरा को मानते या मनाते आ रहे हैं।

भारत में ताजिए के इतिहास और बादशाह तैमूर लंग का गहरा रिश्ता है। तैमूर बरला वंश का तुर्की योद्धा था और विश्व विजय उसका सपना था। सन्‌ 1336 को समरकंद के नजदीक केश गांव ट्रांस ऑक्सानिया (अब उज्बेकिस्तान) में जन्मे तैमूर को चंगेज खां के पुत्र चुगताई ने प्रशिक्षण दिया। सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में ही वह चुगताई तुर्कों का सरदार बन गया।



फारस, अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया और रूस के कुछ भागों को जीतते हुए तैमूर भारत (1398) पहुंचा। उसके साथ 98000 सैनिक भी भारत आए। दिल्ली में मेहमूद तुगलक से युद्ध कर अपना ठिकाना बनाया और यहीं उसने स्वयं को सम्राट घोषित किया। तैमूर लंग तुर्की शब्द है, जिसका अर्थ तैमूर लंगड़ा होता है। वह दाएं हाथ और दाए पांव से पंगु था।

तैमूर लंग शीआ संप्रदाय से था और मुहर्रम माह में हर साल इराक जरूर जाता था, लेकिन बीमारी के कारण एक साल नहीं जा पाया। वह हृदय रोगी था, इसलिए हकीमों, वैद्यों ने उसे सफर के लिए मना किया था।

बादशाह सलामत को खुश करने के लिए दरबारियों ने ऐसा करना चाहा, जिससे तैमूर खुश हो जाए। उस जमाने के कलाकारों को इकट्ठा कर उन्हें इराक के कर्बला में बने इमाम हुसैन के रोजे (कब्र) की प्रतिकृति बनाने का आदेश दिया।

मुहर्रम


कुछ कलाकारों ने बांस की किमचियों की मदद से 'कब्र' या इमाम हुसैन की यादगार का ढांचा तैयार किया। इसे तरह-तरह के फूलों से सजाया गया। इसी को ताजिया नाम दिया गया। इस ताजिए को पहली बार 801 हिजरी में तैमूर लंग के महल परिसर में रखा गया।

तैमूर के ताजिए की धूम बहुत जल्द पूरे देश में मच गई। देशभर से राजे-रजवाड़े और श्रद्धालु जनता इन ताजियों की जियारत (दर्शन) के लिए पहुंचने लगे। तैमूर लंग को खुश करने के लिए देश की अन्य रियासतों में भी इस परंपरा की सख्ती के साथ शुरुआत हो गई।

खासतौर पर दिल्ली के आसपास के जो शीआ संप्रदाय के नवाब थे, उन्होंने तुरंत इस परंपरा पर अमल शुरू कर दिया। तब से लेकर आज तक इस अनूठी परंपरा को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा (म्यांमार) में मनाया जा रहा है। जबकि खुद तैमूर लंग के देश उज्बेकिस्तान या कजाकिस्तान में या शीआ बहुल देश ईरान में ताजियों की परंपरा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

68 वर्षीय तैमूर अपनी शुरू की गई ताजियों की परंपरा को ज्यादा देख नहीं पाया और गंभीर बीमारी में मुब्तिला होने के कारण 1404 में समरकंद लौट गया। बीमारी के बावजूद उसने चीन अभियान की तैयारियां शुरू कीं, लेकिन 19 फरवरी 1405 को ओटरार चिमकेंट के पास (अब शिमकेंट, कजाकिस्तान) में तैमूर का इंतकाल (निधन) हो गया। लेकिन तैमूर के जाने के बाद भी भारत में यह परंपरा जारी रही।

तुगलक-तैमूर वंश के बाद मुगलों ने भी इस परंपरा को जारी रखा। मुगल बादशाह हुमायूं ने सन्‌ नौ हिजरी 962 में बैरम खां से 46 तौला के जमुर्रद (पन्ना/ हरित मणि) का बना ताजिया मंगवाया था।

पेंडुलम डाउजिंग : एक रहस्यमय विद्या का राज




pendulum Dowsing


हमारे अवचेतन मन में वह शक्ति होती है कि हम एक ही पल में इस ब्रह्मांड में कहीं भी मौजूद किसी भी तरंगों से संपर्क कर सकते हैं, सारा ब्रह्मांड तरंगों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है।

उन तरंगों के माध्यम से हम जो जानना चाहते हैं या हमारे जो भी सवाल होते हैं - जैसे जमीन के अंदर पानी खोजना या कोई खोई हुई चीजों को तलाशना उसे हम डाउजिंग कहते हैं।

डाउजिंग किसी भी छुपी हुई बात को खोजने वाली विद्या है। इसके लिए हम पेंडुलम या डाउजिंग रॉड का उपयोग करते हैं। इसमें से कोई यंत्र को हाथों से पकड़ कर जब हम कोई सवाल करते हैं तो यह पेंडुलम अपने आप गति करने लगता है।

जिसे हम निर्देश दे सकते हैं कि यदि जवाब सकारात्मक है तो सीधे हाथ की और गति करना है और जवाब यदि नकारात्मक है तो उलटे हाथ की और गति करना है।
pendulum


कुछ अलग तरह के प्रश्नों के लिए हम चार्ट का भी उपयोग कर सकते हैं। आप देखेंगे कि ये गति हम नहीं करते बल्कि हमारे हाथों में लगा यंत्र अपने आप अलग-अलग तरह से गति करने लगता है।

जैसे ही हम यंत्र को हाथ में लेकर कोई सवाल करते हैं तो हमारा अवचेतन मन उन तरंगों को आकर्षित कर लेता है और उन्हीं तरंगों के माध्यम से वो यंत्र हमारे हाथों में गति करने लगता है। इसे सिखने के लिए जो जरूरी बात है वह है ध्यान।

ध्यान क्यों? क्योंकि जब हम यंत्र से सवाल करते हैं तो हमारा चेतन मन सवाल करता है और जवाब पाने के लिए जरूरी है कि सवाल करने के बाद चेतन मन शांत हो जाए और ऐसा करते ही हमारा अवचेतन मन सक्रिय होकर उन तरंगों को अपनी और आकर्षित करने लगेगा और पेंडुलम यंत्र किसी भी छुपी हुई बात का जवाब देने में सफल हो जाएगा

जैन धर्म - इतिहास की नजर में जैन धर्म इतिहास



jain dharma history


दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे। मनुस्मृति में लिच्छवि, नाथ, मल्ल आदि क्षत्रियों को व्रात्यों में गिना है।

जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे।

जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैसष्ठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।

ईपू आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए, जिनका जन्म काशी में हुआ था। काशी के पास ही 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म भी हुआ था। इन्हीं के नाम पर सारनाथ का नाम प्रचलित है।

भगवान पार्श्वनाथ तक यह परंपरा कभी संगठित रूप में अस्तित्व में नहीं आई। पार्श्वनाथ से पार्श्वनाथ संप्रदाय की शुरुआत हुई और इस परंपरा को एक संगठित रूप मिला। भगवान महावीर पार्श्वनाथ संप्रदाय से ही थे।

jain dharma history

जैन धर्म में श्रमण संप्रदाय का पहला संप्रदाय पार्श्वनाथ ने ही खड़ा किया था। ये श्रमण वैदिक परंपरा के विरुद्ध थे। यही से जैन धर्म ने अपना अगल अस्तित्व गढ़ना शुरू कर दिया था। महावीर तथा बुद्ध के काल में ये श्रमण कुछ बौद्ध तथा कुछ जैन हो गए। इन दोनों ने अलग-अलग अपनी शाखाएं बना ली।

ईपू 599 में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने तीर्थंकरों के धर्म और परंपरा को सुव्यवस्थित रूप दिया। कैवल्य का राजपथ निर्मित किया। संघ-व्यवस्था का निर्माण किया:- मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। यही उनका चतुर्विघ संघ कहलाया। भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में देह त्याग किया।

भगवान महावीर के काल में ही विदेहियों और श्रमणों की इस परंपरा का नाम जिन (जैन) पड़ा, अर्थात जो अपनी इंद्रियों को जीत लें।

धर्म पर मतभेद : अशोक के अभिलेखों से यह पता चलता है कि उनके समय में मगध में जैन धर्म का प्रचार था। लगभग इसी समय, मठों में बसने वाले जैन मुनियों में यह मतभेद शुरू हुआ कि तीर्थंकरों की मूर्तियां कपड़े पहनाकर रखी जाए या नग्न अवस्था में। इस बात पर भी मतभेद था कि जैन मुनियों को वस्त्र पहनना चाहिए या नहीं।

आगे चलकर यह मतभेद और भी बढ़ गया। ईसा की पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए। एक दल श्वेतांबर कहलाया, जिनके साधु सफेद वस्त्र (कपड़े) पहनते थे, और दूसरा दल दिगंबर कहलाया जिसके साधु नग्न (बिना कपड़े के) ही रहते थे।

श्वेतांबर और दिगंबर का परिचय : भगवान महावीर ने जैन धर्म की धारा को व्यवस्थित करने का कार्य किया, लेकिन उनके बाद जैन धर्म मूलत: दो संप्रदायों में विभक्त हो गया: श्वेतांबर और दिगंबर।

दोनों संप्रदायों में मतभेद दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर है। दिगंबर आचरण पालन में अधिक कठोर हैं जबकि श्वेतांबर कुछ उदार हैं। श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि श्वेत वस्त्र पहनते हैं जबकि दिगंबर मुनि निर्वस्त्र रहकर साधना करते हैं। यह नियम केवल मुनियों पर लागू होता है।

दिगंबर संप्रदाय मानता है कि मूल आगम ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं, कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने पर सिद्ध को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती और स्त्री शरीर से कैवल्य ज्ञान संभव नहीं; किंतु श्वेतांबर संप्रदाय ऐसा नहीं मानते हैं।

दिगंबरों की तीन शाखा हैं मंदिरमार्गी, मूर्तिपूजक और तेरापंथी, और श्वेतांबरों की मंदिरमार्गी तथा स्थानकवासी दो शाखाएं हैं।

दिगंबर संप्रदाय के मुनि वस्त्र नहीं पहनते। 'दिग्‌' माने दिशा। दिशा ही अंबर है, जिसका वह 'दिगंबर'। वेदों में भी इन्हें 'वातरशना' कहा है। जबकि श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि सफेद वस्त्र धारण करते हैं। कोई 300 साल पहले श्वेतांबरों में ही एक शाखा और निकली 'स्थानकवासी'। ये लोग मूर्तियों को नहीं पूजते।

जैनियों की तेरहपंथी, बीसपंथी, तारणपंथी, यापनीय आदि कुछ और भी उपशाखाएं हैं। जैन धर्म की सभी शाखाओं में थोड़ा-बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर तथा अहिंसा, संयम और अनेकांतवाद में सबका समान विश्वास है।

गुप्त काल : ईसा की पहली शताब्दी में कलिंग के राजा खारावेल ने जैन धर्म स्वीकार किया। ईसा के प्रारंभिक काल में उत्तर भारत में मथुरा और दक्षिण भारत में मैसूर जैन धर्म के बहुत बड़े केंद्र थे।

पांचवीं से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण के गंग, कदम्बु, चालुक्य और राष्ट्रकूट राजवंशों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन राजाओं के यहां अनेक जैन मुनियों, कवियों को आश्रय एवं सहायता प्राप्त होती थी।

ग्याहरवीं सदी के आसपास चालुक्य वंश के राजा सिद्धराज और उनके पुत्र कुमारपाल ने जैन धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया तथा गुजरात में उसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया।

मुगल काल : मुगल शासन काल में हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को आक्रमणकारी मुस्लिमों ने निशाना बनाकर लगभग 70 फीसदी मंदिरों का नामोनिशान मिटा दिया। दहशत के माहौल में धीरे-धीरे जैनियों के मठ टूटने एवं बिखरने लगे लेकिन फिर भी जै‍न धर्म को समाज के लोगों ने संगठित होकर बचाए रखा। जैन धर्म के लोगों का भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है

सुखद संसार के सृजन का आधार हैं धर्म-ग्रंथ जीवन मंत्रों से भरे पड़े हैं धर्म-ग्रंथ





हमारे जीवन निर्माण की सही शुरुआत कहां से करें? एक उभरता सवाल है आज के परिवेश में, इसके लिए धर्म-ग्रंथ जीवन मंत्रों से भरे पड़े हैं। प्रत्येक मंत्र दिशा दर्शक है।

उसे पढ़कर ऐसा अनुभव होता है, मानो जीवन का राज मार्ग प्रशस्त हो गया। उस मार्ग पर चलना कठिन होता है, पर जो चलते हैं वे बड़े मधुर फल पाते हैं।

कठोपनिषद् का एक मंत्र है

'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत'

- यानी उठो, जागो और ऐसे श्रेष्ठजनों के पास जाओ, जो तुम्हारा परिचय परब्रह्म परमात्मा से करा सकें।


इस अर्थ में तीन बातें निहित हैं। पहली, तुम जो निद्रा में बेसुध पड़े हो, उसका त्याग करो और उठकर बैठ जाओ। दूसरी, आंखें खोल दो अर्थात्‌ अपने विवेक को जाग्रत करो। तीसरी, चलो और उन उत्तम कोटि के पुरुषों के पास जाओ, जो ईश्वर यानी जीवन के चरम लक्ष्य का बोध करा सकें।

जीवन विकास के राजपथ पर स्वर्ग का प्रलोभन और नर्क का भय काम नहीं करता। यहां तो सत्य की तलाश में आस्था, निष्ठा, संकल्प और पुरुषार्थ ही जीवन को नई दिशा दे सकते हैं।

'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत' यह मंत्र हमारा ध्यान अच्छाइयों की ओर आकृष्ट करता है और उन अच्छाइयों को प्राप्त करने के लिए उद्योग करने को प्रोत्साहित करता है, किंतु इसे जीवन की किसी भी दिशा में प्रयुक्त किया जा सकता है।

भविष्य की वाणी जानवरों के पास?

 

आखिरकार पॉल बाबा की भविष्यवाणी सही निकली। स्पेनिश टीम के खिलाड़ी विश्व कप ट्रॉफी जीतने में सफल रहे। साउथ अफ्रीका में हुए इस पूरे विश्व कप में पॉल नाम के इस ऑक्टोपास बाबा की खूब चर्चा रही। आखिरी दिनों में मणि नाम का तोता और एक मगरमच्छ भी पॉल से टक्कर लेते नजर आए। वैसे तो भविष्यवाणी कोई भी कर सकता है। आप भी। हर भविष्यवाणी में होने या नहोने की बराबर संभावना रहती है यानी कि 50-50। खास बात यह रही कि पॉल नाम के इस ऑक्टोपस की आठ मैचों की भविष्यवाणियाँ सही निकलीं।

पॉल की भविष्यवाणियों के बारे में तो पता नहीं कि वह किस आधार पर भविष्यवाणियाँ करता था, पर विज्ञान कहता है कि जानवरों में इस तरह की भविष्यवाणियाँ करने की क्षमता पाई जाती है। पुराने समय में बेबीलोन, ग्रीक और रोम सभ्यताओं में भविष्य को जानने के लिए जानवरों की मदद ली जाती थी।

जीव-विज्ञानी बताते हैं कि भविष्य में होने वाली घटना के संकेत पाने के लिए या भविष्य में होने वाली घटनाओं को सूँघ लने के लिए बहुत से जानवरों में संवेदी अंग पाए जाते हैं। इन अंगों की वजह से उन्हें किसी भी बड़ी घटना की सूचना पहले ही मिल जाती है, जैसे साँपों में किसी भी भूकंप और सुनामी जैसे विनाशकारी तूफान के बारे में जानकारी देने की क्षमता होती है।

साँप अपने जबड़े के निचले हिस्से को जमीन से लगाकर धरती से उठने वाली तरंगों और सूक्ष्म हलचल को महसूस कर लेता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादातर जानवर पृथ्‍वी से आने वाली तरंगों के आधार पर और हलचल की आवाज को सुनकर ही भविष्य के प्रति सतर्क हो जाने को आगाह करते हैं।

अमेरिका में तो इस तरह की कहावतें कही जाती हैं कि मौसम की सबसे सटीक भविष्यवाणी मौसम विभाग नहीं हेजहॉग करता है।


इसी तरह 2004 में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह बात सामने रखी थी कि कुत्ते इस बात को बहुत पहले जान लेते हैं कि भविष्य में फलाँ बच्चे में मिरगी की बीमारी होगी। कुत्ते सूँघकर बम का भी पता लगा लेते हैं। कुत्तों की नाक में पाई जाने वाली ऑलफैक्टरी कोशिकाएँ इसके लिए मदद करती हैं। कुत्तों की सूँघने की शक्ति ही नहीं, बल्कि उनकी सुनने की क्षमता भी बहुत तेज होती है। इन दोनों मामलों में वे मनुष्य से दस गुना तेज होते हैं। इन्हीं के आधार पर पता लगा लेते हैं कि अगले पल में क्या होने वाला है?
भूकंप या समुद्री तूफान से पहले कुत्तों का दौड़ लगाना या जोर-जोर से भौंकना आने वाले संकट की सूचना होती है।

जानवर लंबे समय से भविष्यवाणी करते आ रहे हैं। अभी कुछ महीनों पहले टेलीविजन न्यूज चैनल पर ऑस्कर नाम की बिल्ली के बारे में विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया था। ब्रिटेन में ऑस्कर नाम की एक बिल्ली ने एक पूरे नर्सिंग होम की नींद उड़ा दी थी, क्योंकि यह बिल्ली जिस मरीज के बिस्तर के पास बैठी मिलती थी, समझो उसे अल्लाह का बुलावा आने वाला है। बाद में इस अस्पताल के डॉक्टर ने रीडर्स डाइजेस्ट में बिल्ली की भविष्यवाणी के कारण ढूँढते हुए एक लेख लिखा था। इसमें उन्होंने बताया ‍‍कि मरने से पहले व्यक्ति के शरीर के आसपास एक खास किस्म की रासायनिक गंध आने लगती है और शायद यह बिल्ली उसी को सूँघ लेती थी।

तो बात यह है कि जानवरों के पास वे क्षमताएँ हैं कि वे भविष्यवाणी कर सकते हैं। हालाँकि बहुत से मौकों पर जानवरों से भी चूक हुई है, जैसे अरमानी नाम के बंदर ने यह भविष्यवाणी की थी कि पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में हिलेरी क्लिंटन जीतेंगी। जर्मनी और अर्जेंटीना के बीच के फुटबॉल मैच में पॉल बाबा के विरुद्ध अर्जेंटीना डॉल्फिन सायको का कहना था ‍कि अर्जेंटीना जीतेगी।

निष्कर्ष यह है कि अगर जानवरी की भविष्यवाणी के पीछे कोई आधार हो तब तो उसकी भविष्यवाणी पर विश्वास किया जा सकता है, पर पॉल बाबा ने जिस तरह से भविष्यवाणी की उसका अभी तक कोई आधार पता नहीं चला है। जानवरों की भविष्यवाणी तर्कसंगत हो तो बात मानी जा सकती है वरना ऑक्टोपस और तोतों के भरोसे भविष्य को छोड़ देना ठीक नहीं।

कहां से आए गांधीजी के तीन बंदर.

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गांधीजी के तीन बंदरों के बारे में आप सभी ने कुछ न कुछ सुनकर रखा होगा लेकिन क्या आप जानते है कि यह तीन बंदर कहां से आए थे। आइए हम आपको बताते है उनके बारें में महत्वपूर्ण जानकारी :-

गांधीजी के यह तीन बंदर मूलत: जापानी संस्कृति से लिए गए हैं।

वर्ष 1617 में जापान के निक्को स्थि‍त तोगोशु की बनाई गई इस समाधि पर यह तीनों बंदर उत्कीर्ण हैं।

हालांकि ऐसा भी माना जाता है कि यह बंदर जिन सिद्धांतों की ओर इशारा करते हैं, वे बुरा न देखो, बुरा न सुनो, बुरा न बोलो को दर्शाते हैं।

वे मूलत: चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के थे और आठवीं शताब्दी में ये चीन से जापान में आए। उस समय जापान में शिंटो संप्रदाय का बोलबाला था। शिंटो संप्रदाय में बंदरों को काफी सम्मान दिया जाता है। शायद इसीलिए इस विचारधारा को बंदरों का प्रतीक दे दिया गया। यह यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है।

फेसबुक, ट्‍विटर जैसी साइट्‍स कहीं मनोरोगी न बना दें





येरुशलम। फेसबुक और दूसरी सोशल साइट्‍स की लत आपको मनोरोगी या पागल भी बना सकती है। इस पर रिसर्च कर रहे जानकारों के इसके लिए लोगों को चेताया है।

लगातार बढ़ रही इंटरनेट की पहुंच और उसके असर पर किए गए अध्ययन से यह बात सामने आई है कि इस पर बनने वाले वर्चुअल रिश्ते तकनीक के मोहताज होते हैं और मानसिक दिक्कतों को बढ़ावा देने वाले होते हैं।

तेल अवीव यूनिवर्सिटी के मा‍नसिक स्वास्थ्य विभाग प्रमुख डॉ. यूरी निटजैन ने शलवटा मेंटल हेल्थकेयर सेंटर के लिए किए गए अध्ययन में पाया कि लोगों के साथ लगातार फेसबुक पर चैट करने व एक्टिव रहने से आपके मन में हमेशा सामने वाले की नाराजगी का डर बना रहेगा।

वो अगर नाराज होता है तो आप उसे मनाने लगेत हैं। दूसरी ओर आपके लिए अलग-अलग तरह के कमेंट आते हैं, जिन्हें आप कई बार दिल पर ले लेते हैं। फिर कमेंट का सिलसिला चल निकलता है। इस तरह से विचारों का एक जाल आपके दिमाग में बनने लगता है। अध्ययन के अनुसार जब आप फेसबुक से बाहर आते हैं तो अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं

अमेरिकी विमान ने ध्वनि से पांच गुना अधिक गति से भरी उड़ान




वॉशिंगटन।
अमेरिकी वायु सेना की घोषणा के अनुसार अमेरिकी 'एक्स-51ए वेवराइडर' विमान ने ध्वनि की गति से तेज रफ्तार में सर्वाधिक दूरी तक उड़ान भरने का इतिहास रचा है। अमेरिकी वायुसेना के अनुसार 'स्क्रैमजेट इंजन' से लैस यह विमान साढ़े तीन मिनट तक ध्वनि की गति से पांच गुना अधिक रफ्तार से उड़ता रहा।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, एक मई को प्रशांत महासागर के ऊपर उड़ते हुए बोइंग द्वारा निर्मित इस मानव रहित विमान की गति निर्णायक उड़ान के दौरान 5.1 मैक की रफ्तार पर पहुंच गई। इसने मात्र छह मिनट में 230 नॉटिकल मील से अधिक का फासला तय किया।

वायु सेना अंतरिक्ष प्रणाली अनुसंधान प्रयोगशाला निदेशालय में एक्स-51ए के लिए कार्यक्रम प्रबंधक चार्ली ब्रिंक ने कहा, "यह अभियान पूरी तरह सफल रहा।"

उन्होंने कहा, "हमने एक्स-51ए से जो जानकारियां हासिल की हैं वह भविष्य में ध्वनि की गति से तेज उड़ने वाले विमानों पर शोध के लिए आधार बनेगी।"

अमेरिकी वायु सेना ने इस परीक्षण के जरिए ध्वनि की गति से तेज विमानों पर करीब एक दशक से चल रहे परीक्षण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह कार्यक्रम 30 करोड़ डॉलर का था।

रपट के मुताबिक इस हाईपरसोनिक विमान से चंद मिनटों के भीतर दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रहार किया जा सकता है।

यह इस हाईपरसोनिक विमान की चौथी उड़ान थी। इसने पहली उड़ान मई 2010 में लगाई थी। पहली उड़ान भी सफल रही थी। इसमें विमान ने करीब मैक पांच के रफ्तार को छू लिया था। हालांकि इसकी अगली दो उड़ानें ( जून 2011 और अगस्त 2012 में) असफल रही थीं।

नया सिंथेटिक तेल देगी गठिया दर्द से राहत




बोस्टन। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सिंथेटिक पॉलिमर तैयार किया है जिसका इस्तेमाल जोड़ों के लिए लुब्रिकेंट के रूप से किया जा सकेगा। इससे गठिया के रोगियों को दर्द में बड़ी राहत मिलेगी। यह जानकारी एक अध्ययन में दी गई है।

'बोस्टन यूनिवर्सिटी बायोमेडिकल इंजीनियरिंग' के शोधकर्ताओं ने हड्डियों के जोड़ों के लिए एक नए लुब्रिकेंट का विकास किया है। इससे अस्थिसंधिशोध (आस्टीयोआर्थराइटिस) के लाखों पीड़ितों को लंबे समय तक राहत मिल सकेगी।

नया सिंथेटिक पॉलिमर हड्डियों के जोड़ों में प्राकृतिक रूप से मौजूद 'साइनोवायल द्रव' का पूरक होगा। इस रोग के लिए जो अभी इलाज उपलब्ध है, उससे यह कहीं बेहतर काम करेगा।

प्रोफेसर मार्क डब्ल्यू. ग्रीननस्टाफ (बीएमई, एमएसई, रसायन) के मुताबिक, हड्डियों के लिए मौजूदा पूरक द्रव से पीड़ितों को तो मामूली राहत मिलती है, लेकिन यह हड्डियों की उपास्थि की सतह का क्षरण रोकने के लिए वाजिब मात्रा में लुब्रिकेंट मुहैया नहीं करा पाता।

'सायंस डेली' के मुताबिक, इन दोनों उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ग्रीनस्टाफ (बेथ इजरायल डिकानेस मेडिकल सेंटर), आर्थोपेडिक सर्जन ब्रायन स्नाइडर (हावर्ड मेडिकल स्कूल) और बोस्टन यूनिवर्सिटी के रसायन और इंजीनियरिंग के छात्रों की टीम ने प्रथम सिंथेटिक साइनोवायल द्रव का विकास किया।

उन्होंने इस अनोखे पॉलिमर और उसके कार्य निष्पादन को 'जर्नल ऑफ द अमेरिकन केमिकल सोसायटी' में प्रकाशित किया है।

ग्रीनस्टाफ ने कहा, "जब हमने इस नए पॉलिमर का इस्तेमाल किया, तो दो उपास्थि के बीच घर्षण कम हो गया। इससे इनका क्षरण कम हुआ। यह एक तरह से हड्डियों के जोड़ों के लिए तेल है।"

लाल नदी का पानी आहिस्ता-आहिस्ता हो रहा है दुधिया



रायपुर। ढोलकाल के शिखर पर गणपति मुस्कुरा रहे हैं। बादलों से लिपटी बैलाडीला की पहाड़ियां उचक-उचक कर देख रही हैं। शंखनी-डंकनी मचल रही हैं। एक बार फिर इतिहास करवट ले रहा है। साल-सागौन के जंगलों में पहाड़ी मैंना नया ककहरा सीख रही है। बीत गए वे दिन जब मुट्ठीभर अनाज के लिए मुंदहरे में आयती को कोसों दूर बचेली-दंतेवाड़ा आना पड़ता था। मंगीबाई को बादलों की बाट जोहनी पड़ती थी कि वे कब आएं और खेतों में बरसें। सोमली अब बैगा-गुनिया के ही भरोसे नहीं रहती। बुदरू को अब बड़े अस्पताल जाते हुए अपनी जेब नहीं टटोलनी पड़ती। रामलाल जानता है कि अपने बच्चे को पढ़ा-लिखा बड़ा आदमी बनाने का उसका ख्वाब अब कैसे सच हो सकता है। दंतेवाड़ा बदल रहा है।

सहमे-सहमे लोगों के चेहरों पर तैरती मुस्कुराहटें, दहशतजदा आंखों में जिंदगी की चमक, बारुद की बदबू में पसीने की खुशबू..। हरी-हरी पत्तियों के पीछे झरने खिलखिला रहे हैं। किसने सोचा था कि जिस इलाके में नक्सलवादी स्कूलों को धमाकों से उड़ा रहे हों, वहां के बच्चे किताब-कापियां थामें आसमान छूने निकल पड़ेंगे। बड़े-बड़े शहरों के महंगे स्कूलों को पछाड़ते हुए कवासी जोगी, कविता माड़वी जैसी बच्चियां सफलता के नए किस्से गढ़ेंगी। किसने सोचा था कि अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में इस इलाके के 12 बच्चे एक साथ चयनित हो सकते हैं। लेकिन यह हुआ, यह सफलता की पहली किस्त है। दूसरी किस्त की प्रतिभाएं पोटा केबिनों में वर्जिश कर रही हैं। स्कूलों को बारुदों से उड़ा देने की नक्सली नीति का जवाब पोटा-केबिन दे रहे हैं। पक्की छत न सही, बांस-चटाई टीन-टप्पर ही सही। बारह पोटा केबिनों में किल्लोल गूंज रहा है, 44 और कतार में हैं। एराबोर-बांगापाल-पाकेला का हाथ थामे गादीरास-पालनार-तालनार नई राह चल पड़े हैं। एक हाथ में कुदाल और दूसरे में किताबे थामे समझ रहे हैं कि कंप्यूटर के भीतर भी उनके लिए कितना सारा स्पेस है।

लोहा-टीन-कोरंडम से भरी-पूरी धरती में विकास का पहिया तेजी से घूम रहा है। रोजगार ने नए साधन दरवाजे खोल रहे हैं। फैक्ट्रियां, परियोजनाएं दरवाजे खटखटा रही हैं और दंतेवाड़ा स्वागत के लिए तैयार खड़ा है। एजुकेशन सिटी का फूल हाथों में लिए। यहां पढ़कर बच्चे अपना कौशल तेज करेंगे। यहां पालिटेक्निक कालेज भी होगा, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान भी बालिकाओं के लिए कस्तूरबा गांधी विद्यालय, छू लो आसमान योजना का कन्या परिसर, आदिमजाति कल्याण विभाग का आश्रम, नक्सल हिंसा में अनाथ हुए बच्चों के लिए आस्था गुरुकुल, दो आवासीय विद्यालय, राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत बालिका छात्रावास, आदर्श विद्यालय और क्रीड़ा परिसर.....यानी कालेजों-स्कूलों-आश्रमों का शहर और करीब चार हजार विद्यार्थी इस शहर के नागरिक होंगे। दंतेवाड़ा-जिले के प्रवेश द्वार गीदम में यह अनोखा शहर आकार ले रहा है।

दुनिया देख रही है कि दंतेवाड़ा में शिक्षा की सड़कों का जाल किस तरह बिछता चला जा रहा है। डामर की सड़कों की धज्जियां उड़ाने वाले नक्सलवादी इन सड़कों के आगे बेबस हैं। वे घने जंगलों में हथियारों और गोले बारूद की फैक्टरियां लगा रहे हैं तो दूसरी ओर शोषण और अत्याचार को कुचलने सरकार अक्षर बांट रही है। शोषकों-अत्याचारियों से निपटने के सही तरीके सिखा रही है।

सिंचाई सुविधाओं के मामले में भी दंतेवाड़ा में अच्छी प्रगति हुई है। यहां कई सिंचाई परियोजनाएं स्थापित हुई हैं और कई पर काम चल रहा है। पिछले आठ सालों में खेती के रकबे में भी खासा इजाफा हुआ है। यह 90.691 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख एक हजार हेक्टेयर हो चुका है। यानी माई दंतेश्वरी का आशीष बरस रहा है। लाल नदी का पानी आहिस्ता-आहिस्ता दुधिया हो रहा है।

जब बाबर ने लिया तेनालीराम का इम्तिहान






(1520 ई. में दक्षिण भारत के विजयनगर राज्य में राजा कृष्णदेव राय हुआ करते थे। तेनाली राम उनके दरबार में अपने हास-परिहास से लोगों का मनोरंजन किया करते थे। उनकी खासियत थी कि गम्भीर से गम्भीर विषय को भी वह हंसते-हंसते हल कर देते थे।

उनका जन्म गुंटूर जिले के गलीपाडु नामक कस्बे में हुआ था। तेनाली राम के पिता बचपन में ही गुजर गए थे। बचपन में उनका नाम ‘राम लिंग’ था, चूंकि उनकी परवरिश अपने ननिहाल ‘तेनाली’ में हुई थी, इसलिए बाद में लोग उन्हें तेनाली राम के नाम से पुकारने लगे।

विजयनगर के राजा के पास नौकरी पाने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। कई बार उन्हें और उनके परिवार को भूखा भी रहना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी और कृष्णदेव राय के पास नौकरी पा ही ली। तेनाली राम की गिनती राजा कृष्णदेव राय के आठ दिग्गजों में होती है।)

तेनालीराम का इम्तिहान


मुगल बादशाह बाबर ने अपने दरबारियों से तेनाली राम की बहुत प्रशंसा सुनी थी। एक दरबारी ने कहा, "आलमपनाह, तेनाली राम की हाजिर-जवाबी और अक्लमंदी बेमिसाल है।" बाबर इस बात की सत्यता परखना चाहता था।

उसने राजा कृष्णदेव राय को एक पत्र भेजा, जिसमें उसने प्रार्थना की कि तेनाली राम को एक मास के लिए दिल्ली भेज दिया जाए, जिससे उसकी सूझबूझ का नमूना बादशाह खुद देख सकें। कृष्णदेव राय ने तेनाली राम को विदा करते समय कहा, "तुम्हारी सूझबूझ और बुद्धिमानी की परीक्षा का समय आ गया है। जाओ और अपना कमाल दिखाओ। अगर तुम पुरस्कार ले आए तो मैं भी तुम्हें एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दूंगा। और अगर तुम पुरस्कार न प्राप्त कर सके तो मैं तुम्हारा सिर मुंडवाकर दरबार से बाहर निकाल दूंगा।"

तेनाली राम के दिल्ली पहुंचने की सूचना जब बाबर को मिली तो उसने अपने दरबारियों से कहा, "हम इस आदमी का इम्तिहान लेना चाहते हैं। मेरी ताकीद है कि आप लोग इसके मजाकों पर न हंसें। यह आदमी यहां से आसानी से इनाम हासिल करके न जाने पाए।"

दरबार में पहुंचकर तेनाली राम ने अपनी बातों से बादशाह और दरबारियों को हंसाने का प्रयत्न किया। यह क्रम पंद्रह दिन तक चलता रहा, लेकिन कोई न हंसा। सोलहवें दिन से तेनालीराम ने दरबार जाना छोड़ दिया।

एक दिन बाबर रोज की तरह सैर को निकला। साथ में एक नौकर था, जिसके हाथ में अशर्फियों की थैलियां थीं। बादशाह ने देखा कि सड़क के किनारे एक बहुत बूढ़ा व्यक्ति गड्डा खोदकर उसमें आम का पौधा लगा रहा है। उस व्यक्ति की कमर झुकी हुई थी। बाबर ने उसके पास जाकर कहा, "बूढ़े मियां, यह क्या कर रहे हो?"

"आम का पेड़ लगा रहा हूं। इस इलाके में यह पेड़ कम पाया जाता है। इसलिए अच्छी बिक्री होगी।" बूढ़े ने कहा। "लेकिन आपकी उमर तो काफी अधिक है। इस पेड़ के फल खाने के लिए आप तो होंगे नहीं। फिर इस मेहनत से क्या फायदा?" बाबर ने कहा।

"आलमपनाह, मेरे अब्बाजान ने जो पेड़ लगाए थे, उनके फल मुझे खाने को मिले। इसी तरह मेरे लगाए हुए पेड़ के आम कोई और खाएगा। जब मेरे लिए अब्बाजान ने पेड़ लगाए, तो मैं दूसरों की खुशी के लिए ऐसा क्यों न करूं?" बूढ़ा बोला।

"हमें आपकी बात पसंद आई।" बाबर के कहते ही नौकर ने सौ अशर्फियों की थैली बूढ़े को दे दी। "बादशाह सलामत बहुत मेहरबान हैं।" बूढ़े ने कहा, "सब लोग पेड़ के बड़े होने पर फल खाते हैं पर मुझे इसे लगाने से पहले ही फल मिल गया है। दूसरों की भलाई करने के विचार का नतीजा ही कितना अच्छा होता है।"

"बहुत खूब!" बाबर के इशारा करते ही नौकर ने एक और थैली उसे भेंट कर दी। बूढ़ा फिर बोला, "बादशाह सलामत की मुझ पर बड़ी मेहरबानी है। यह पेड़ जब जवान होगा तो साल में एक बार फल देगा पर, आलमपनाह ने तो इसे लगाने के दिन ही दो बार मेरी झोली भर दी।"

बाबर ने इस बार भी खुश होकर उसे एक थैली देने का आदेश दिया और हंसते हुए अपने नौकर से कहा कि चलो यहां से नहीं तो यह बूढ़ा हमारा खजाना खाली कर देगा। "एक पल इंतजार कीजिए आलमपनाह," कहते हुए बूढ़े ने अपने कपड़े उतार दिए।

तेनालीराम को अपने सामने देखकर बाबर बहुत हैरान हुआ। तेनालीराम ने फिर कहा, "बादशाह सलामत बहुत मेहरबान हैं। तेनालीराम ने कुछ ही देर में आलमपनाह से तीन बार ईनाम पा लिया है।"

बाबर ने कहा, "तेनालीराम तुम्हें ईनाम देकर मुझे जरा भी अफसोस नहीं है। तुमने इसे हासिल करने के लिए बहुत समझदारी से काम लिया है।" तेनालीराम वापस विजय नगर आया। राजा ने सारी कहानी सुनकर उसे एक हजार स्वर्ण मुद्राएं ईनाम में दिए।

अस्सी की उम्र का एक अजूबा


फौजा सिंह किसी अजूबे से कम नहीं हैं। सौ साल की उम्र में मैराथन दौड़ में हिस्सा लेकर उन्होंने एक रिकॉर्ड बनाया है हालांकि तकनीकी कारणों से उनका यह कीर्तिमान गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज नहीं हो पाया है।

मेरी जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही है। सबसे भयावह दौर वह था, जब अपनी बीवी और बेटे को खोने के बाद मैं डिप्रेशन का शिकार हो गया। असल में, मेरे तीन बेटे और तीन बेटियां थीं। एक-एक करके उन्होंने भारत छोड़ दिया। सिर्फ एक बेटा कुलदीप मेरे साथ रहा। एक दिन उसके साथ मैं खेत में काम कर रहा था। तभी तूफान आया और तेज हवा के झोंके के साथ मेटल का कोई टुकड़ा आया, जो बेटे को लगा और उसका देहांत हो गया। उस पल मैंने भारत छोड़ने का फैसला कर लिया। इंग्लैंड जाकर मैं अपने सबसे छोटे बेटे के साथ रहने लगा।

इसके बाद जब भारत वापसी हुई, तब रनिंग के लिए ही हुई। लंदन में मैंने 89 साल की उम्र में पहली बार मैराथन दौड़ में हिस्सा लिया। फिर साल 2010 में लग्जमबर्ग इंटरफेथ मैराथन कंप्लीट किया। तब मेरी उम्र 99 थी और तब मैं दुनिया का ओल्डेस्ट हाफ मैराथन रनर बना। इसके बाद 100 साल की उम्र में फुल मैराथन में हिस्सा लेने वाला ओल्डेस्ट मैन बना। यह फुल मैराथन 2011 में टोरंटो वाटरफ्रंट इवेंट में आयोजित हुई थी। दुख की बात यह है कि अब तक मेरे ये रिकॉर्ड गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपनी जगह नहीं बना सके हैं। क्योंकि अपनी उम्र को साबित करने के लिए मेरे पास बर्थ सर्टिफिकेट नहीं है। हालांकि मुझे इस बात से खुशी मिली कि 2012 के लंदन ओलिंपिक में मैं टॉर्च-बीयरर था। इसके अलावा, यूके के कई रेसेज में मैंने रिकॉर्ड्स बनाए हैं।
ऐसा नहीं है कि दौड़-भाग करने में मैं बचपन से ही निपुण था। जब जालंधर में 1911 में पैदा हुआ था, तब खासा कमजोर था। पांच साल की उम्र तक ठीक से चल नहीं पाता था। मेरे पैर बेहद कमजोर थे और इसके लिए मेरी खिल्ली भी उड़ती थी। दस साल की उम्र तक भी मुझे चलने-फिरने में दिक्कत होती थी। इसके बावजूद मुझमें दौड़ के प्रति खूब उत्साह था। हालांकि उन दिनों मुझे रनिंग के लिए समय नहीं मिलता, क्योंकि मुझे खेतों में काम करना पड़ता था। लेकिन जब मैंने 80 वें साल में कदम रखा, तब रनिंग को फिर से अपनी जिंदगी में शामिल किया। यह वह उम्र होती है, जब ज्यादातर लोग बिस्तर में पड़ जाते हैं। इस उम्र में स्पोर्ट्स पर्सन बनने के लिए मैंने हर तरह की चुनौती का सामना किया। तब लोगों को बड़ी हैरानी भी होती थी कि मैंने मैराथन रनिंग को चुना है, जिसमें बहुत ताकत की जरूरत है। दौड़ने से मुझे अपने जीवन के उदासी भरे लम्हों को भूलने में मदद मिलती है।

मम्मी-पापा! बंद करो हम पर यह अत्याचार

फिर आ गईं गर्मी की छुट्टियां। साल भर की पढ़ाई और परीक्षाओं के बाद आखिर ये कुछ दिन ही तो मौज-मस्ती के होते हैं... जून से फिर अगले साल की पढ़ाई में लग जाना है। बच्चों को इन छुट्टियों का इंतजार पूरे साल रहता है। अमूमन यह भी सोच लिया जाता है कि इस बार इन छुट्टियों में क्या करना है। ज्यादातर बच्चे और उनके परिवार घूमने का कार्यक्रम पहले से तय करके रखते हैं। कोई अपने नेटिव प्लेस जाता है, तो कोई किसी पर्यटन स्थल। किसी को कहीं जाने का मौका नहीं मिलता, तो वह अपने शहर की ही ऐसी जगहें घूम लेना चाहता है, जहां जीवन की आपाधापी में जाना न हो सका हो। इसके बाद भी छुट्टियां बची रहती हैं, तो बच्चे खेल-कूद में लग जाते हैं।

यही समय होता है जब बच्चों को अपने मन से कुछ करने का मौका मिलना चाहिए, लेकिन आजकल ऐसा होता नहीं। मैंने अपने पास-पड़ोस के बच्चों पर ध्यान दिया कि वे गर्मियों की छुट्टियों में क्या कर रहे हैं। मैं हैरान रह गया... वे छुट्टियों में भी स्कूली दिनों की तरह ही विभिन्न क्लासों में जूझते दिखे। दस साल का करण सुबह को स्केटिंग क्लास करता है, फिर फुटबॉल क्लास। शाम को स्विमिंग सीखने जाता है। दोपहर को उसका ग्रामर का ट्यूशन लगा है। रात को उसे अगले साल की किताबों में में से एक चैप्टर पढ़कर सोना होता है। मैंने उससे पूछा कि इतनी सारी ऐक्टिविटी करके उसे बहुत मजा आता होगा। वह रुआंसा हो गया। बोला, 'क्या मजा आएगा...? पापा को फुटबॉल में डालना था और ममी को स्केटिंग में। उन्होंने डाल दिया। पढ़ाई छुट्टियों में भी करनी पड़ रही है। हां, स्विमिंग में जरूर अच्छा लगता है। पर वह भी मेरी चॉइस नहीं है।' मैंने पूछा, 'तो बेटा, तुम क्या करना चाहते थे?' जवाब मिला, 'मुझे ड्राइंग पसंद है। ममी-पापा को नहीं। मैं स्टोरी बुक्स पढ़ना चाहता हूं। पर मुझे पढ़नी पड़ रही हैं कोर्स की बुक्स...।'

ऐसा ही हाल 12 साल की तन्वी का है। उसका मन था ऐक्टिंग कोर्स करने का। पर माता-पिता की इच्छा के अनुसार उसे पेंटिंग, डांस और सिंगिंग क्लास करनी पड़ रही हैं। टेबल टेनिस खेलने की उसकी इच्छा जरूर पूरी हो रही है। वह स्टोरी लिखना चाहती है, लेकिन उसे स्टोरी पढ़ने भी नहीं दी जातीं।
बहुत से बच्चों के ऐसे ही अनुभव होते हैं। एक तो हमारी शिक्षा प्रणाली बच्चों को हुनरमंद नहीं बनाती, दूसरे परिवार का दबाव पारंपरिक करियर चुनने का होता है। ज्यादातर घरों में बच्चों को बनी-बनाई लीक पर चलने को विवश किया जाता है। उनके मन की खुशी को अपेक्षाओं तले रौंद दिया जाता है। हालांकि अगर बच्चों को कुछ नए काम सिखाने की कोशिश की जाए, तो वे बहुत खुशी से करते हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है और नया हुनर सीखने का मौका भी मिलता है।
मेरे एक परिचित गर्मियों में बच्चों के लिए समर कैंप चलाते हैं। हर साल गर्मियों की छुट्टियों में वे गरीब बच्चों को इकट्ठा करके उन्हें कई काम सिखाते हैं। यह काम वे अपने खर्चे से करते हैं। इस बार उन्होंने अपने कैंप में बच्चों को कहानी कहने की कला सिखाने के लिए मुझे बुलाया। मैंने परंपरागत कहानियों के बजाय अपने आसपास होने वाली घटनाओं की कहानियां बनाकर उन्हें सुनाना शुरू किया। ऐसी घटनाएं, जो खबरों के रूप में आमने चुकी हों। मेरे अचरज का ठिकाना नहीं रहा, जब 12-13 साल के बच्चों ने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की कहानियां सुनाईं। ये झोपड़पट्टी, गलियों, बाजारों, स्कूल, ठेले वालों, सब्जी बेचने वालों और उन बच्चों के घरों की कहानियां थीं। इनमें मुर्गियां, साइकिल, किताबें, गटर और गंदगी भी पात्र थे। ऐसा नहीं है कि इन बच्चों को जीवन के नकारात्मक पक्ष ही दिखते हों, ये अपनी कल्पना से कीचड़ में कमल भी खिलाकर दिखाते हैं। उन बच्चों के बीच अपनी छुट्टी के चार घंटे बिताकर मुझे बहुत सुकून मिला। लौटते हुए मन में यही आया कि हमें बच्चों को खिलने-खुलने का मौका देना चाहिए। इसी से उनका नैसर्गिक विकास होता है।

खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर हो रही खींचतान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण


खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर हो रही खींचतान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। ठीक है कि सरकार के भ्रष्टाचार का मुद्दा भी अहम है। उसके खिलाफ लड़ाई लड़ी जानी चाहिए, मगर उस संघर्ष में इतने महत्वपूर्ण विधेयक को अटका दिया जाए, यह ठीक नहीं है। यह हाशिए के उस वर्ग के हित से जुड़ा है, जो हमेशा से उपेक्षित ही रहा है, लेकिन वह अपने लिए आवाज तक नहीं उठा पाता। आज समाज का प्रबुद्ध वर्ग भी मान रहा है कि राजनीतिक तबके को अपने सियासी मतभेद भुलाकर सबसे कमजोर लोगों के लिए नीतियां बनानी चाहिए।

नोबेल पुरस्कार विजेता विख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा है कि भूख की समस्या को सुलझाए बगैर सामाजिक-आर्थिक विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए इस विधेयक को जल्द से जल्द पास किया जाए नहीं तो भूख और कुपोषण से मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है। बीजेपी और कुछ अन्य दलों का आरोप है कि सरकार ने इसे अब तक टालने की कोशिश की और अब ऐसे समय में पेश किया है, जब वह कई तरह के आरोपों से घिरी हुई है। उसका मकसद आरोपों से लोगों का ध्यान हटाना है। फिर ऐन चुनाव के मौके पर इसे पेश करके वह इसका लोकसभा चुनाव में फायदा उठाना चाहती है।

यह बात सही हो सकती है। यह भी मुमकिन है कि विलंब के लिए सरकार कुछ तकनीकी कारण गिना दे। पर इस बहस का कोई अंत नहीं है। मूल बात यह है कि कुछ बुनियादी सवालों को राजनीतिक रस्साकशी से दूर रखने में ही देश का भला है। जिस तरह विपक्ष ने तमाम मतभेदों के बावजूद बजट पास कराया, उसी तरह खाद्य सुरक्षा बिल को भी पास कराया जाना चाहिए। इस मामले में विपक्षी दलों को विकसित देशों से सीखना चाहिए, जहां देश के डिवेलपमेंट और सुरक्षा के नाम पर अपोजीशन आम तौर पर सरकार से नहीं टकराता।

खाद्य सुरक्षा को लेकर कुछ विपक्षी पार्टियों की अपनी आपत्तियां या सुझाव हो सकते हैं। पर ये तभी सामने आएंगे जब बिल पर चर्चा हो। इस पर बहस कराकर इसे पास कराना विपक्ष की भी जवाबदेही है। उसे समझना चाहिए कि किसी मंत्री के रहने या इस्तीफा देने से भूख की समस्या का कोई संबंध नहीं है। क्या नागरिकों के एक बड़े हिस्से का भूखे रहना अपोजीशन के लिए शर्म का विषय नहीं है? चाहे वह अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई) का ग्लोबल हंगर इंडेक्स हो या अन्य कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की रिपोर्टें, सबने बार-बार चेतावनी दी है कि भारत में भूख की समस्या खतरनाकस्थिति में पहुंच गई है।

एक अनुमान है कि देश में बीस करोड़ लोग ऐसे हैं, जो सुबह में इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं रहते कि उन्हें दिन में खाना नसीब होगा कि नहीं। ऐसे बदतर हालात में अगर निर्धनों को भोजन पाने का अधिकार दिया जा रहा है तो इस व्यवस्था को रोकने का कोई अर्थ नहीं है। उम्मीद है कि खाद्य सुरक्षा बिल का विरोध कर रही पार्टियां अपने रुख पर फिर से विचार करेंगी।

पानी नहीं, हवा से बना था मंगल पर टीला!

वॉशिंगटन।। मंगल ग्रह पर जीवन के सबूत तलाशते वैज्ञानिकों को बड़ा झटका लग सकता है। दरअसल, हाल में ही इस लाल ग्रह पर खोज के दौरान पत्थरों का बना एक 5.6 किमी. ऊंचा टीला मिला था। साइंटिस्ट्स इस टीले में कभी पानी की बड़ी झील होने के साक्ष्य तलाश रहे थे। नई जांच में शंका जताई गई है कि टीला मंगल पर मौजूद धूल भरे वातावरण की वजह से बना होगा, पानी की मौजूदगी से नहीं। गौरतलब है कि वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं की तलाश में यहां पानी की मौजूदगी की थिअरी पर काम कर रहे हैं।

मंगल पर 154 किमी. चौड़े ज्वालामुखी के क्रेटर में माउंट शार्प नाम का टीला मौजूद है। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी का मानना है कि यह टीला यहां चलने वाली तेज हवाओं की वजह से बन गया होगा। बता दें कि अगस्त में अमेरिकी मानव रहित विमान मार्स रोवर क्यूरियोसिटी माउंट शार्प के करीब ही उतरा था। दिसंबर में क्यूरियोसिटी को मिटी, वॉटर मॉलेक्यूल और ऑर्गेनिक कंपाउंड के साक्ष्य मिले थे। इन कंपाउंड्स के माउंट शार्प से किसी किस्म के संबंध होने की संभावना पर काम चल रहा है।

भारत को चाहिए एक स्वतंत्र संवैधानिक पुलिस आयोग



सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोयला घोटाले में चल रही सीबीआई जांच में हस्तक्षेप करके सरकार ने समूची प्रक्रिया को झकझोर दिया है। उसके मुताबिक अदालत की पहली कोशिश सीबीआई को राजनीतिक दखलंदाजी से आजाद करने की होगी। हममें से कई लोग इस संभावना पर खुशी जाहिर करेंगे। लेकिन सीबीआई प्रमुख ने बिल्कुल सही कहा है कि यह संस्था सरकार का हिस्सा है, उससे स्वतंत्र नहीं है। इससे सरकार को सीबीआई का दुरुपयोग करने की क्षमता हासिल हो जाती है और इसका इस्तेमाल वह अपने दोस्तों को बचाने तथा दुश्मनों को तंग करने में किया करती है। इस स्थिति को बदलने के लिए अदालत के आदेशों से ज्यादा हमें ऐसे संवैधानिक बदलाव की जरूरत पड़ेगी, जिसके जरिये देश का समूचा पुलिस ढांचा बदला जा सके।

राजनीतिक खेल के मोहरे
राजनीतिक हस्तक्षेप सिर्फ कोयला घोटाले तक सीमित नहीं है। एक ढर्रे के तौर पर सरकारें पुलिस और अभियोजन कर्ताओं (प्रॉसिक्यूटर्स) का इस्तेमाल राजनीतिक खेल के मोहरों की तरह करती हैं। मायावती के खिलाफ चले ताज कॉरिडोर मामले को लीजिए। सरकार जब मायावती को खुश रखना चाहती है तो इस पर अपनी रफ्तार घटा देती है, और जब भी वह जोड़तोड़ का हिस्सा बनने से बेरुखी दिखाती हैं, सरकार इस मामले में सख्त तेवर अपनाने का संकेत देती है। लगभग यही हाल मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति वाले मामले में जारी सीबीआई जांच का है। यह कोई संयोग नहीं है कि मायावती और मुलायम संसार की हर चीज पर असहमत हैं, लेकिन मनमोहन सिंह सरकार को (जो ममता बनर्जी की विदाई के बाद अपना संसदीय बहुमत खो चुकी है) बचाने पर दोनों के बीच पूर्ण सहमति है।

गृह मंत्रालय की सुरक्षा में सेंध लगाने वाला शख्स गिरफ्तार



 
 दिल्ल।। गृह मंत्रालय की सुरक्षा में सेंध लगने का गंभीर मामला सामने आया है। दिल्ली पुलिस ने इसका खुलासा करते हुए कहा है कि एक शख्स ने फर्जी तरीके से होम मिनिस्ट्री का आई कार्ड हासिल कर लिया। जांच में पता लगा कि आई कार्ड तो असली था , मगर जिन दस्तावेजों के आधार पर उसे बनवाया गया , वे सब फर्जी थे। आरोपी का दावा है कि वह कई कैबिनेट मंत्रियों का अडिशनल प्राइवेट सेक्रेटरी ( एपीएस ) रह चुका है।

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा के जॉइंट कमिश्नर संदीप गोयल ने बताया कि आरोपी का नाम शंभू प्रसाद सिंह (49) है। उन्होंने पुष्टि की कि शंभू ने फर्जी दस्तावेजों पर होम मिनिस्ट्री का दो बार फर्जी आई कार्ड बनवाया था। एक बार 2006 में और दूसरी बार 2011 में। पुलिस सूत्रों के अनुसार , पूछताछ में शंभू ने दावा किया है कि वह चंद्रशेखर सिंह सरकार में एचआरडी राज्यमंत्री बी . गोवर्धन और कम्यूनिकेशन राज्यमंत्री संजय सिंह का अडिशनल प्राइवेट सेक्रेटरी रहा।

पी . वी . नरसिम्हा राव की सरकार में वह हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर राज्यमंत्री डॉ . सी . सिलवेरा , अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कम्यूनिकेशन राज्यमंत्री कबींद्र पुरकायस्थ का और बाद में उन्हीं की सरकार में रसायन एवं उर्वरक राज्यमंत्री तपन सिकदर का एपीएस रहा था। वह अन्य लोगों को अपना परिचय एक आईएएस के तौर पर देता था। 2002 में शंभू प्रसाद के यहां सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति मामले में छापा भी मारा था।

शाहरुख विवादः पुलिस ने पल्ला झाड़ा, राज ठाकरे बोले, 'बैन बेतुका'


Shah-Rukh-Khan
शाहरुख खान
मंबई।। वानखेड़े स्टेडियम में शाहरुख खान के प्रवेश के सवाल पर मुंबई क्रिकेट असोसिएशन के अड़ियल रुख को देखते हुए शाहरुख खान ने फैसला कर लिया है कि वह मंगलवार शाम को मैच के दौरान स्टेडियम से दूर ही रहेंगे। मगर, इसी बीच एमएनएस चीफ राज ठाकरे इस मामले में खुलकर शाहरुख के पक्ष में आ गए हैं। उन्होंने सवाल किया है कि क्या शाहरुख खान आतंकवादी हैं?

मुंबई पुलिस ने पल्ला झाड़ा
इससे पहले मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में शाहरुख खान को नहीं घुसने देने की मुंबई क्रिकेट असोसिएशन (एमसीए) की मांग पर मुंबई पुलिस ने दो-टूक जवाब दिया। मुंबई पुलिस ने मंगलवार को कहा कि स्टेडियम में किसी को घुसने से रोकने का काम हमारा नहीं। हम शाहरुख को रोकने के लिए स्टेडियम में नहीं जाएंगे। अगर किसी प्रकार का कोई विवाद होता है तो हम दखल जरूर देंगे।

वानखेड़े में मंगलवार को कोलकाता नाइट राइडर्स और मुंबई इंडियंस का मैच होना है। गौरतलब है कि पिछले सीजन में वानखेड़े स्टेडियम में झगड़ा करने के कारण शाहरुख पर 5 साल का बैन लगा हुआ है। पहले भी सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों में बताया जा रहा था कि शाहरुख बैन के बावजूद वानखेड़े स्टेडियम जाकर कोई बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहेंगे। मगर, शाहरुख ने मजाक में कह दिया था कि अगर मैं गया तो क्या वहां मुझे गोली मार देंगे? उन्होंने मजाकिया अंदाज में ही यह भी कहा था कि शायद वहां जाने के लिए मुझे मुखौटा लगाना पड़े। या मैं मूंछें लगाकर वहां जाऊं।

इसके बाद अटकलें लग रही थीं कि क्या बैन के बावजूद शाहरुख स्टेडियम में घुसने की कोशिश करेंगे। मगर, अब जब शाहरुख की तरफ से औपचारिक तौर पर बता दिया गया कि वह वानखेड़े स्टेडियम नहीं जाएंगे, तो मामला खत्म माना जा रहा है।

इसके पहले एमसीए ने सोमवार को इस बाबत मरीन ड्राइव पुलिस को चिट्ठी लिखी थी। इसमें पुलिस से कहा गया है कि शाहरुख पर बैन जारी है, इसलिए उन्हें स्टेडियम के अंदर न घुसने दिया जाए। एमसीए की इस चिट्ठी पर मुंबई पुलिस ने मंगलवार को जवाब दिया। पुलिस ने कहा है कि शाहरुख को स्टेडियम में घुसने से रोकना हमारा काम नहीं है। हम उन्हें नहीं रोकेंगे। यह एमसीए का काम है। अगर वहां कानून-व्यवस्था की किसी प्रकार की दिक्कत होती है तो पुलिस हस्तक्षेप करेगी।

शाहरुख के पक्ष में उतरे राज ठाकरे
इस बीच दिलचस्प घटनाक्रम में एमएनएस चीफ राज ठाकरे शाहरुख खान पर बैन के खिलाफ सामने आ गए हैं। उन्होंने बैन को बेतुका बताते हुए सवाल किया कि क्या शाहरुख आतंकवादी हैं? उन्होंने कहा कि स्टेडियम में हुए जिस झगड़े का बार-बार हवाला दिया जा रहा है उसे काफी दिन हो गए हैं। एक पुरानी बात को बार-बार दोहराते रहने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि एमसीए को चाहिए कि वह शाहरुख पर लगाया गया बैन खत्म करे।

बन्दर पकड़ने वाले लोग


बन्दर पकड़ने वाले लोग किसी बर्तन में छोटा सा छेद के उसमे मिठाइयाँ भर देते हैं | जो भी बन्दर वह लेना चाहेगा वह उस बर्तन में हाथ डालेगा और मिठाई से मुट्ठी भर लेगा | इस प्रकार वह बन्दर उस बर्तन से हाथ निकालने में असमर्थ होगा | वह तभी हाथ बहार निकाल सकता है जब वह मुट्ठी खोल दे | भोजन के लालच से वह न मुट्ठी खोलता है न वह मुक्त होता है |भोजन के प्रति उसकी इच्छा ने ही उसे बांधा है |

यह विशाल विश्व पात्र है और हमारा 'संसार' अथवा परिवार उसका संकीर्ण मुख है | हमारी इच्छायें उस बर्तन में राखी मिठाइयाँ है | विश्व रूप बर्तन में इच्छा रुपी मिठाइयाँ होने के कारण मनुष्य बर्तन में अपना हाथ डालता है | जब वह अपनी इच्छायें त्याग देता है तो वह विश्व में मुक्त रूप से भ्रमण कर सकता है | मुक्ति को सर्वप्रथम बलिदान चाहिए | दार्शनिक शब्दों में हम इसे त्याग कहते हैं | हम सोचते हौं कि विश्व हमें बांध रखा है, किन्तु विश्व तो निर्जीव है | वास्तव में इच्छायें हमें बांधती हैं |

सात जून से शुरू होगी अमरनाथ यात्रा

सात जून से शुरू होगी अमरनाथ यात्रा
इस बार बाबा अमरनाथ की यात्रा सात जून से शुरू हो रही है। कश्‍मीर के द‍क्षिण में हिमालय की 3880 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस पवित्र गुफा के दर्शनों के लिए लोग देश-विदेश के कोने-कोने से आते हैं। हर साल लाखों लोग भगवान के शिव स्‍वनिर्मित चमत्‍कारी शिवलिंग के दर्शन करते हैं।
आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक तीर्थयात्रा को सही तरीके से संपन्न कराने के लिए सुरक्षा प्रबंधों के अलावा पहलगाम और बालटाल दोनो ही मार्गो पर सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। राज्य सरकार ने यात्रा के तमाम पडालों के लिए सात हजार क्विंटल जलावन, लकडी, दस हजार रसोई गैस के सिलेंडर और अन्य जरूरी चीजों के इंतजाम किए हैं। लोगों के इलाज के लिए यहां पर संपूर्ण सुविधा मुहैया कराई जाएगी। यात्रा मार्ग के आसपास रहने की सुविधा मुहैया कराने के लिए पर्यटन विभाग को निर्देश दिया गया है जबकि श्राइनबोर्ड प्रीफेब्रिकेटडहट लगाने का काम करेगा। माना जा रहा है कि इस बार बाबा का दर्शन करना अधिक सुविधाजनक दर्शनार्थियों के लिए साबित होगा। चलने में असमर्थ संपन्‍न लोग यहां पर हेलीकाप्‍टर की सुविधा का भी लाभ उठा पाएंगे। इसके साथ ही घोडों का भी इंतजाम होगा।

मुस्लिम समुदाय का मोदी को समर्थन का ऐलान


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अहमदाबाद []। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन समेत भाजपा में भी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी को लेकर भले घमासान मचा हो लेकिन गुजरात के मुस्लिम समुदाय ने एक बार फिर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में आकर उनको प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। मोदी के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान के आह्वान के साथ लोगों से अपील की गई है कि हम 2014 में मोदी की ताजपोशी के लिए तैयार हैं, क्या आप भी तैयार हैं?

अहमदाबाद के पालड़ी इलाके में लगे पोस्टरों में नमो मंत्र विकास मंत्र का नारा देते हुए लिखा गया है कि गुजरात ने महात्मा गांधी, सरदार पटेल दिया अब नरेंद्र मोदी दिया है। सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बना सके, हमारी आवाज दबा दी गई लेकिन अब जनता की आवाज दबाना नामुमकिन है। राजनीतिक दलों को जनता की आवाज सुननी होगी। इसमें कहा गया है कि देश की जनता अब गुमराह नहीं होगी, विकास पुरुष को रोक नहीं सकते। देश की जनता करे पुकार मोदी ही हमें स्वीकार, आइए जुडे़ राष्ट्र निमार्ण के अभियान से। हालांकि इन पोस्टरों में किसी संस्था या संगठन का नाम नहीं है लेकिन पोस्टरों में मोदी के सद्भावना उपवास कार्यक्रम में मुस्लिम नेताओं की हाजिरी वाले फोटो भी लगाए दिखाए गए हैं। पोस्टर में मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के लिए हस्ताक्षर अभियान से जुड़ने का भी आह्वान किया गया है।

एक छोटे से जीवन में कितना कुछ होता है


एक छोटे से जीवन में कितना कुछ होता है जानने के लिए, अपनाने के लिए.....लेकिन मैंने देखा है कि हमारा ज्यादातर समय ऐसे कामों में चला जाता है जिनका कोई अर्थ नहीं होता......हम थोडा सा किसी विषय को जानना जब शुरू करते हैं तो स्वाभाविक रूप से अहंकार से भर जाते हैं .....लेकिन
इस बात से .....अगर हम हर नयी जानकारी और अनुभव के विषय में ऐसा ही सोचेंगे तो हमेशा ही अहंकार से बचे रहेंगे और सबको एक नजर से देख पाएंगे .....लेकिन आज तक मुझे न तो कोई किसी विषय का पूर्ण विशेषज्ञ मिला न ही कोई अहंकार रहित व्यक्ति ......ज्ञानी होने का दंभ सबमें दिखा और यही पहला परिचय है उनके अज्ञानी होने का ......आपका क्या ख्याल है ......!!!

डुबो देगा दरिया किनारे किनारे


डुबो देगा दरिया किनारे किनारे
वही आदमी है जो हिम्मत न हारे
फलक पर चमकने का ज़र्रों को अरमां
तरसते है ख़ाक ए ज़मीं को सितारे
हमें क्या ग़रज़ दौलते आसमां से
ज़मीं पे जो चमकें वो मेरे हैं तारे
गदाई अमीरी नसीब अपना अपना
उसी के है ज़र्रे उसी के सितारे
वो कश्ती कि जिससे लरज़ते थे तूफां
चली जा रही है किनारे

अब बजे समर की रणभेरी


अब बजे समर की रणभेरी
रणचंडी का नर्तन होगा
होगा गीता का पाठ तभी
फिर महाभारत मंचन होगा .

कणकण फिरसे मणमण होगा
फिर एक नया जनगण होगा
पानी से प्यास ना बुझी पायी
तो शोलों से तर्पण होगा .

ना बचे कहीं राजाशाही
ये सारे शुक्नी दुर्योधन
फिर से - होंगे धराशाही .
ये आज होगा - के कल होगा
पर निश्चित बड़ा अटल होगा .

एक बार किसी गाँव में एक बुढ़िया रात के अँधेरे में

एक बार किसी गाँव में एक बुढ़िया रात के अँधेरे में अपनी झोपडी के बाहर कुछ खोज रही थी .तभी गाँव के ही एक व्यक्ति की नजर उस पर पड़ी , “अम्मा इतनी रात में रोड लाइट के नीचे क्या ढूंढ रही हो ?” , व्यक्ति ने पूछा.
” कुछ नहीं मेरी सुई गम हो गयी है बस वही खोज रही हूँ.”, बुढ़िया ने उत्तर दिया.
फिर क्या था, वो व्यक्ति भी महिला की मदद करने के लिए रुक गया और साथमें सुई खोजने लगा. कुछ देर में और भी लोग इस खोज अभियान में शामिल हो गए और देखते- देखते लगभग पूरा गाँव ही इकठ्ठा हो गया.
सभी बड़े ध्यान से सुई खोजने में लगे हुए थे कि तभी किसी ने बुढ़िया से पूछा ,” अरे अम्मा ! ज़रा ये तो बताओ कि सुई गिरी कहाँ थी?”
” बेटा , सुई तो झोपड़ी के अन्दर गिरी थी .”, बुढ़िया ने ज़वाब दिया.
ये सुनते ही सभी बड़े क्रोधित हो गए और भीड़ में से किसी ने ऊँची आवाज में कहा , ” कमाल करती हो अम्मा ,हम इतनी देर से सुई यहाँ ढूंढ रहे हैं जबकि सुई अन्दर झोपड़े में गिरी थी, आखिर सुई वहां खोजने की बजाये यहाँ बाहर क्यों खोज रही हो ?”
” क्योंकि रोड पर लाइट जल रही है…इसलिए .”, बुढ़िया बोली.
मित्रों, शायद ऐसा ही आज के युवा अपने भविष्य को लेकर सोचते हैं किलाइट कहाँ जल रही है वो ये नहीं सोचते कि हमारा दिल क्या कह रहा है ; हमारी सुई कहाँ गिरी है . हमेंचाहिए कि हम ये जानने की कोशिश करें कि हम किस फील्ड में अच्छा कर सकते हैं और उसी में अपना करीयर बनाएं ना कि भेड़ चाल चलते हुए किसी ऐसी फील्ड में घुस जाएं जिसमे बाकी लोग जा रहे हों या जिसमे हमें अधिक पैसा नज़र आ रहा हो .

गीली लकड़ी सा इश्क तुमने सुलगाया है !

गीली लकड़ी सा इश्क तुमने सुलगाया है !
ना पूरा जल पाया कभी , न बुझ पाया है !

मेरी निगाहों ने जब चूमा तेरी पलकों को ,
खार से आंसुओं का उनमें स्वाद आया है !

दरमियान हमारे दूरी बेहि‍साब, इस खाति‍र,
सुरमई सी सांझ का बादल पयाम लाया है !

कोरे काग़ज पर है फक़त दो महकती बूंदे,
ये उन्हीं का है ख़त, जो मेरे नाम आया है !

ग़ज़ल के बहाने तुम्हें हाले दिल सुनाना है,
मेरे हिस्से के प्यार का ये उन्वान आया है

अलसाई आंखों के दरीचों से देखा है “रश्मि” ,
आज दरि‍या-ऐ–सब्र में कैसे उफान आया है !

..........रश्‍मि शर्मा

कुछ भी अंतर नहीं

कुछ भी अंतर नहीं
मुझमें व घास में
पांवों तले दबती है
कुम्‍हलाती है
जिंदगी की मुराद पाती है

दो बूंद बारि‍श सा स्‍नेह पाकर
हरि‍याती है
खि‍लखि‍लाती है
तन के, सर उठाती है

इसे समतल बनाने को
फि‍र चला देते हो तुम
कांटों भरी मशीन
कट जाती है घास
मुरझा जाती है आस

चूमकर फि‍र पांवों को
लि‍पट-लि‍पट सी जाती है
अपने वजूद का
अहसास दि‍लाती है

कुछ भी अंतर नहीं
मुझमें व घास में
पांवों तले दबती है
कुम्‍हलाती है
जिंदगी की मुराद पाती है......

..........रश्‍मि शर्मा

जब भी में

जब भी में
सोने की कोशिश करता हूँ
मेरे इर्द गिर्द
बेठे लोग
चिल्लाते है ..
जागते रहो ..जागते रहो ..
और मुझे
सोने नहीं देते है ..
उन्हें डर है
कहीं
मेरे ख्वाबों में आकर
तुम मुझ से
इजहारे मोहब्बत
ना कर बेठो ...
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान  

एक खुशी की कविता लिखने का मन है ...

एक खुशी की कविता लिखने का मन है ...

एक छोटी सी बच्ची से उधार ली उसकी आँखें
उसकी उमंग भी ...
नंगे पाँव भी लिए उधार उसके
जिनमे बज़ रही थी पतली पायल
छम-छम
पार्क के कोने में फूलों की क्यारी तक गया मैं
उसी के नन्हें हाथों से जमीन में ढूँढा
और पाया एक बीज
ले आया हूँ उसे घर अब मैं
रोंप दिया एक गमले में
रोज उसमे पानी दूंगा
और उन्ही आँखों में अंकुर फूटने की प्रतीक्षा
उसी का विश्वास भी ले लिया मैंने
और अब विश्वास है यह बीज बनेगा पौधा
खुशी का ......खूब हरा ...खूब भरा ,खूब सुन्दर

राघव ,
अभी-अभी
७/५/१३

हमने उस बोसा-ए-दिल से

हमने उस बोसा-ए-दिल से
कैसे था रूह को भिगो डाला
तुमने सजाई मांग में बूंदे
फूल का रंग भी चटख आया

ख्वाइश की राह पर चले कब थे
हमने रिश्ते को, पोसा, न पाला
स्याह रात को जगे अक्सर
कि हिचकी को पास आना था।

माँ-सी आरज़ू को मुठ्ठी में
लिये नींद से ना जागा था
ऐसे ख़्वाबों के कैसे सज्दे में
कौन सहीफ़े लिए आया था।
कि अल्फाज़ ने तपिश बन कर
पीर पयंबरी को पाया था।

आओ ! इस शादमाँ पल में
चाँद को फिर-फिर बुला लाएँ
कैसे दहकाँ के खेत पसीने में
रह-रह फसल को उगा आएँ।

यही ज़िन्दगी का हासिल है
यही मोहब्बतों का हामिल है!

बहुत देर से

बहुत देर से आया तू मेरी जिंदगी में मेरे खुदा
अब न इबादत का वक्त रहा ना नमाज का.

"आग दरख्तों में सोई हुई

"आग
दरख्तों में सोई हुई
आग, पत्थरों में खोई हुई

सिसकती हुई अलावों में
सुबकती हुई चूल्हों में

आँखों में जगी हुई या
डरी हुई आग

आग, तुझे लौ बनना है
भीगी हुई, सुर्ख, निडर
एक लौ तुझे बनना है

लौ, तुझे जाना है चिरागों तक
न जाने कब से बुझे हुए अनगिन
चिरागों तक तुझे जाना है

चिराग, तुझे जाना है
गरजते और बरसते अंधेरों में
हाथों की ओट
तुझे जाना है

गलियों के झुरमुट से
गुजरना है
हर बंद दरवाजे पर
बरसना है तुझे..."

आग / मनमोहन

ये है हमारे देश की कहानी का सारांश...!!!



गाँव के एक घर में चोरी हुई,
चोरो ने कुछ भी नहीं छोड़ा,
चोरी के तुरंत बाद गाँव वाले मशाले लेकर चोरो की तलाश में लग गए,
हर तरफ से शोर आने लगी चोर चोर पकड़ो पकड़ो,
धरती खा गयी या आसमान निगल गया,
सारी रात ढूँढने के बाद भी चोरो का कोई सुराग नहीं मिला।
थक हार कर गाँव वाले बैठ गए।
कहा गए चोर ??

चोर भी मशाल लेकर गाँव वालो के बीच
"पकड़ो-पकड़ो, चोर-चोर,"
का शोर मचा रहे थे।
----------------------------{खुशबु शर्मा}

"बाजार के लिए वेदना भी बिकाऊ माल है

"बाजार के लिए वेदना भी बिकाऊ माल है ...यह व्यवस्था वेदना का केवल अनुवाद कर के उसे बेचती है , समाधान नहीं करती . फिल्मकार अपनी भाषा और समझ से उसका सेल्यूलोइड पर अनुवाद करता है और कोई सत्यजित रे "पाथेर पांचाली" जैसा बिकाऊ माल तैयार कर देता है ....कवि आपकी वेदना का अनुवाद कविता में करता है ...पत्रकार आपकी वेदना का पत्रकारीय अनुवाद कर उसे बिकाऊ बनाता है ...अर्थशास्त्री वेदना का अर्थशास्त्र में अनुवाद करता है और कोई मालदार अमर्त्य सेन गरीबी की वेदना की बिकाऊ व्याख्या देता है ...वकील आपकी वेदना का अनुवाद कर यह कि ,यह कि, यह कि या That...That...That...लिख कर पिटीशन /हलफनामा बनाता है ...जज आपकी वेदना का अनुवाद फैसले में करता है ...पेशकार घूस देने वाले वादकारी की वेदना का अनुवाद "डेट" दे कर करता है ...डॉक्टर आपकी वेदना का अनुवाद सीटी स्कैन/कार्डियोग्राम /पैथोलोजी रिपोर्ट आदि में करता है ...समाधान कोई नहीं करता ." ----राजीव चतुर्वेदी

"अजीब हैं देश के जज

"अजीब हैं देश के जज ...जिलों के जज जूते खाने से भयभीत हैं ...आप राष्ट्रपति के यहाँ जाओ जूते नहीं उतारने पड़ते ...प्रधानमंत्री /मंत्री /अधिकारी के यहाँ जाओ जूते नहीं उतारने पड़ते ...अदालत में मुलजिम जूते उतार कर खडा होता है क्यों ? ---जज साहब को डर है क़ि कहीं मुलजिम उनके जूते न मारे ...गज़ब आत्म विश्वास है ." ----राजीव चतुर्वेदी

सुरों में ढालने की कोशिश ........


सुरों में ढालने की कोशिश ........

तेरी मलमल कुर्ती , कमाल कर गई |
मेरे दिल पे ये फिर से , धमाल कर गई |

ओ सुन हमजोली , न कर तू ठिठोली |
की तेरे मेरे रिश्तों की , बोली लग गई |

चली जो पिचकारी , तो भीगी तोरी सारी |
जमाने की नज़र में , तमाशा बन गई |

अब न कर सीनाजोरी , सुन गन्ने दी ये बोरी |
हाँ होले - होले हर अदा , तेरी कमाल कर गई |
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