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11 मई 2013

80 साल की महिला से रेप: बलात्‍कार के वक्‍त और बाद में क्‍या चलता रहता है पीड़ित के दिमाग में, जानिए


नई दिल्ली. हाल के कुछ महीनों में देश भर में रेप की अनगिनत दिल दहलाने वाली वारदातें सामने आई हैं। इसके बावजूद महिलाओं की सुरक्षा की हालत बदतर होती जा रही है। आलम यह है कि देश में कुछ महीनों की बच्चियों से लेकर 80 साल की महिला भी सुरक्षित नहीं है। तमिलनाडु में एक 80 साल की महिला के साथ बलात्कार का अजीब-ओ-गरीब मामला सामने आया है। बलात्कार का आरोपी 41 साल शख्स है। गंभीर हालत में महिला को सरकारी अस्पताल में दाखिल करागा गया है। राज्य के सलेम जिले के मल्लियाकरी इलाके में अकेले रहने वाली महिला के साथ सब्जी बेचने वाले पलानीवेल नाम के शख्स ने रेप किया। घटना के तुरंत बाद आसपास के लोगों ने पलानीवेल को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के मुताबिक आधी रात के करीब दो पत्नियों और चार बच्चों के साथ रहने वाला पलानीवेल रेप की शिकार महिला के घर गया और पानी मांगने लगा। लेकिन महिला ने मना कर दिया। इसी दौरान पलानीवेल जबर्दस्ती घर में घुस गया और महिला के साथ रेप करने के बाद उसके निजी अंगों को काट भी लिया।  
 
 
कई लड़ाइयां लड़ती है रेप पीड़ित 
 
रेप पीड़ित के लिए जिंदगी किसी जंग से कम नहीं होती है। उसे कई स्तरों पर लड़ना होता है। यह लड़ाई व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तरों पर लड़ी जाती है। लेकिन रेप पीड़ित के लिए खुद को मानसिक तौर पर सामान्य करना सबसे बड़ी चुनौती साबित होता है। रेप का किसी भी पीड़ित के दिमाग पर लंबे समय तक असर रहता है।
 
रेप पीड़ित की इच्छा के खिलाफ जोर जबर्दस्ती से किया गया कृत्य होता है जिसमें पीड़ित को हमलावर के यौन अत्याचार का सामना करना पड़ता है। ऐसे मामलों में हमलावर हालात को अपने काबू में रखता है। इसके लिए वह शारीरिक ताकत, नुकसान पहुंचाने की धमकी को अपना हथियार बनाता है। ऐसी स्थिति में रेप की शिकार (ज्यादातर मामलों में लड़कियां या महिलाएं) को लगता है कि या तो उसे मार दिया जाएगा या बुरी तरह से चोट पहुंचाई जाएगी। रेप पीड़ितों के दिमाग का अध्ययन करने वाले मनोविज्ञानियों का मानना है कि ज्यादातर रेप पीड़ितों को वारदात के समय यह लगता है कि उनका जिंदा रहना इसी बात पर निर्भर करता है कि वह हमलावर की मांग को मानती हैं या नहीं।
रेप पीड़ित को लगता है कि उसके शरीर पर किसी और कब्जा है 
 
रेप पीड़ित की जिंदगी में रेप की वारदात अचानक, अनपेक्षित और बेकाबू ढंग से घटती है। कई मामलों में पीड़ित को जान खतरा रहता है, लेकिन वह ऐसे खतरे से निपट नहीं पाती है। ऐसे मामलों में रेप पीड़ित के वे उपाय भी काम नहीं आते जिनका सामान्य तौर पर वह अपने डर पर काबू पाने के लिए इस्तेमाल करती है। रेप की वजह से पीड़ित को लगता है कि उसके शरीर पर किसी और कब्जा है और लोगों और रिश्तों को लेकर उसके नजरिए पर भी रेप का बहुत बुरा असर पड़ता है। रेप की वजह से पीड़ित का मनोविज्ञान पूरी तरह से प्रभावित होता है। रेप की घटना से पीड़ित किस तरह से निपटती है, यह कई कारकों पर निर्भर करता है। इनमें पीड़ित की स्वाभिमान की भावना उसका सामाजिक और आर्थिक परिवेश, सोशल नेटवर्क सपोर्ट सिस्टम, उसकी बची हुई जिंदगी का चक्र और पीड़ित के तौर पर उसके साथ किया गया बर्ताव। अमेरिका के बोस्टन सिटी अस्पताल में रेप की शिकार या रेप की कोशिश की शिकार करीब 109 महिलाओं पर की गई स्टडी में यह बात सामने आ चुकी है कि रेप की शिकार महिला की बुनियादी भावना डर होती है। 

राजा ने खाया धोखा, लिखीं स्त्री के सौंदर्य से जुड़ी


प्रेम को जानने-समझने के कई पहलू हो सकते हैं। अगर धर्म के नजरिए से गौर करें तो सत्य, प्रेम की भावना और प्रेम, क्षमा भाव को बढ़ाता है। वहीं प्रेम की गहराई को इस आसान तरीके से भी समझाया गया है कि प्रेम जब शरीर तक रहे तो वासना बन जाता है। मन तक पहुंचे तो भावना बन जाता है और आत्मा को छू ले तो साधना बन जाता है।
आज के दौर में जबकि आए दिन स्त्री पर अपराध या प्रेम में असफलता से उपजी निराशा और बदले की भावना से घात या आत्मघात के प्रसंग सामने आते रहते हैं। ऐसे में हिन्दू धर्म संस्कृति और इतिहास से स्त्री प्रेम से जुड़े कई प्रसंग न केवल ज़िंदगी से जुड़ी बातों और सच्चाइयों को नजदीक से समझने और जानने का नजरिया देते हैं, बल्कि उनमें समाया गूढ़ ज्ञान कई उलझनों से बचने और निपटने का तरीका भी उजागर करता हैं।
इसी कड़ी में सदियों पहले उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन ) के न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य (जिनके नाम से ही हिन्दू वर्ष विक्रम संवत पुकारा जाता है) के बड़े भाई का स्त्री के मोह और प्रेम में जकड़कर धोखा खाना और फिर राजा होकर भी प्रतिशोध के बजाए क्षमा भाव के साथ स्त्री प्रेम को आत्मज्ञान के रूप में जीवन में उतार, स्त्री और उसके सौदर्य से जुड़ी कई आंखे खोल देने वाली बातें उजागर करना रोचक होने के साथ ही केवल स्त्री मोह व आकर्षण में उलझकर पतन के रास्ते पर न जाने की नसीहत भी है।
सदियों पुरानी उनकी प्रसिद्ध किताब में समाई ये बातें हिन्दू धर्म और साहित्य का अहम अंग है। जानिए कौन थे राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई? और सदियों पुरानी उनकी किताब में समाई स्त्री व उसके सौदर्य से जुड़ी वे बातें, जिनको केवल ऊपरी तौर पर विचार करने वाले कई लोग भोग-विलासी बातें मानते हैं, वहीं विद्वानों के मुताबिक ये बातें इंसानी मन व जीवन की बुनियादी सच्चाई हैं –

राजा विक्रमादित्य के ये बड़े भाई थे – राजा भर्तृहरि। राजा भर्तृहरि न्याय, नीति, धर्मशास्त्र, भाषा, व्याकरण के विद्वान होने के साथ प्रजा और प्रकृति को भी चाहने वाले थे। वे धर्म विरोधियों को कड़ी सजा देने से नही चूकते थे। वे धर्मनिष्ठ, दार्शनिक व अमरयोगी भी माने जाते हैं। लेकिन वैरागी होने के पीछे उनके जीवन का यह अहम प्रसंग जुड़ा है –
राजा भर्तृहरी ज्ञानी और 2 पत्नियां होने के बावजूद भी पिंगला नाम की अति सुंदर राजकुमारी पर मोहित हुए। राजा ने पिंगला को तीसरी पत्नी बनाया। पिंगला के रूप-रंग पर आसक्त राजा विलासी हो गए। यहां तक कि वे पिंगला में मोह में उसकी हर बात को मानते और उसके इशारों पर काम करने लगे। किंतु इसका फायदा उठाकर पिंगला भी व्यभिचारी हो गई और घुड़साल के रखवाले से ही प्रेम करने लगी। आसक्त राजा इस बात और पिंगला के बनावटी प्रेम को जान ही नहीं पाए।
जब छोटे भाई विक्रमादित्य को यह बात मालूम हुई और उन्होंने बड़े भाई के सामने इसे जाहिर किया। तब भी राजा ने पिंगला की चालाकी से रची बातों पर भरोसा कर विक्रमादित्य के चरित्र को ही गलत मान राज्य से निकाल दिया।
इस बात के बरसों बाद पिंगला की चरित्रहीनता तब उजागर हुई जब एक तपस्वी ब्राह्मण ने घोर तपस्या से देवताओं से वरदान में मिला अमर फल (जिसे खाने वाला अमर हो जाता है) राजा को अमर करने की इच्छा से भेंट किया। आसक्त राजा ने इसे पिंगला को दे दिया, ताकि वह लंबे वक्त तक रूप व सौंदर्य का सुख भोग सके। किंतु पिंगला ने उसे घुडसाल के रखवाले को दे दिया। उस रखवाले ने उस वैश्या को दे दिया, जिससे वह प्रेम करता था।
वैश्या यह सोचकर कि इस अमर फल को खाने से ज़िंदगीभर वह पाप कर्म में डूबी रहेगी, वह राजा को यह कहकर भेंट करने लगी कि आप के अमर होने से प्रजा भी लंबे वक्त तक सुखी रहेगी।

लिव इन में रह रही जासूस प्रेमिका ने किया एनकाउंटर स्‍पेशलिस्‍ट का मर्डर, फिर की खुदकुशी



नई दिल्‍ली। देश की राजधानी दिल्‍ली से सटे गुड़गांव में जहां शुक्रवार को एक स्‍टार की शादी टूटने की औपचारिक पहल शुरू हुई थी, वहीं शनिवार को दो जिंदगियां खत्‍म हो गईं। दिल्‍ली पुलिस के एक जांबाज इंस्‍पेक्‍टर और एक महिला की लाश एक मकान में मिली। यह महिला इंस्‍पेक्‍टर की मित्र बताई जाती है।
सूत्र बता रहे हैं कि गीता ने पहले बद्रीश को गोली मारी, इसके बाद उसने खुद को गोली मार ली। इस तरह बद्रीश की हत्‍या का शक जताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि गीता बद्रीश से इस बात से नाराज थी कि वह उसके जेल में बंद रहने के दौरान मिलने क्‍यों नहीं आया था।
इंस्‍पेक्‍टर बद्रीश दत्‍त और डिटेक्टिव एजेंसी चलाने वाली महिला गीता की लाश सुशांत लोक थानांतर्गत आरडी स्थित एक मकान में मिली। दोनों की मौत गोली लगने की वजह से हुई है। गुड़गांव पुलिस दोनों के आत्‍महत्‍या किए जाने का शक जता रही है। मौके से बद्रीश दत्‍त की सर्विस रिवाल्‍वर भी बरामद हुई है।

बद्रीश दत्‍त दिल्‍ली पुलिस के 1991 बैच के अफसर थे। जिस टीम के वह सदस्‍य थे, उसने कई खूंखार आतंकवादियों और गैंगस्‍टर्स को एनकांउटर में मारा। बद्रीश दिल्‍ली पुलिस के तेजतर्रार एसीपी राजबीर सिंह और बाटला हाउस एनकाउंटर में शहीद हुए इंस्‍पेक्‍टर मोहन चंद शर्मा की दमदार टीम के सदस्‍य रहे। उन्‍हें फोन इंटरसेप्‍शन का मास्‍टर माना जाता था। वे सेल के एक ऐसे तेजतर्रार अधिकारी थे, जो फोन इंटरसेप्‍ट कर बड़े-बड़े आतंकियों और गैंगस्‍टर्स को खोज निकालते थे। माना जाता है कि इसी काम के सिलसिले में जासूसी की एजेंसी चलाने वाली गीता उनके संपर्क में आई होगी और बाद में दोनों की करीबी बढ़ गई होगी।
बद्रीश ज्‍यादातर दिल्‍ली पुलिस की नई दिल्‍ली और दक्षिणी रेंज में काम करते रहे। उनकी बहादुरी के चलते दिल्‍ली पुलिस ने उन्‍हें बारी से पहले पदोन्‍न्‍ति भी दे दी थी।
अपनी महारत चलते उनकी टीम ने कई बड़े आतंकियों और अपराधियों को उन्‍होनें जिंदा पकड़ने में भी सफलता हासिल की थी। इससे पहले एसीपी राजबीर सिंह की भी गुड़गांव के एक प्रॉपर्टी डीलर ने गोली मारकर हत्‍या कर दी थी। पहले राजबीर सिंह, फिर मोहन चंद शर्मा और अब बद्रीश दत्‍त की मौत हो जाने से दिल्‍ली पुलिस में बड़े और तेजतर्रार नेटवर्क रखने वाले बहादुर अफसरों की भारी कमी हो गई है। बद्रीश को वर्ष 2007 में वीरता के लिए पुलिस मेडल से भी नवाजा गया।

कुरान का सन्देश

 

जिन्दगी ---


जिन्दगी ---
जिन्दगी एक पड़ाव - न शहर न कोई गाँव...
जिन्दगी एक बहाव -जिसमें डगमगाती नाव...
जिन्दगी एक बिछाव -जिसपे लगता हर दाँव...
जिन्दगी एक झुकाव -संभलकर रखो अपने पाँव...
जिन्दगी है तो अनमोल -पर हर वक्त बे-भाव...
जिन्दगी एक दरख़्त - ढूँढता हर कोई यहाँ ठांव...

एक लड़के को दोस्त बनाया हमने

एक लड़के को दोस्त बनाया हमने
किन्तु कभी ना उसे आजमाया हमने
हम ज़माने के चलन से थे बेखबर
उसकी दरियादिली का हम पर कभी हुआ ना असर
वो हम पर खुद का हक जमाता रहा
कदम कदम पर ऊँगली पकड़ चलना सिखाता रहा
नादानियां समझ हम हर बार नज़रंदाज़ करते रहे
और वो हम पर पुरजोर बिफरते रहे
टोका टाकी जब अपनी हदें पार करने लगी
नजदीकियां बेमानी सी बढ़ने लगीं
तब हमारी अंतरात्मा ने हमें चेताया
रोको अब बस पानी सर से गुज़र आया
हमने अब उनसे दूरियां बनाने की ठानी
वो थे अड़ियल हमारी एक ना मानी
घुटन जिन रिश्तों में महसूस होने लगे
ऐसे रिश्ते भला हम क्यूँ ढोने लगे
धीरे धीरे हमने भी कर लिया किनारा
काश !!हमारी इस बेरुखी से पहले ही
वो समझ जाते हमारा इशारा
तो राम रहीम का रिश्ता तो कायम रह जाता
फिर से किसी को दोस्त बनाने से पहले ही
हमारा भरोसा तो ना उठ जाता
पर क्या करें यही जिंदगी का चलन है
दुनियाँ में दुनियादारी निभाना भी एक भरम है
सीखने लगे हैं हम भी जिंदगी के फलसफे
किसी के सीमा लांघने से पहले ही हम किनारा करने लगे
जिन रिश्तों में होने लगे घुटन वो बेमानी हैं
की है गर दोस्ती तो दोस्ती खुद की सीमाओं में ही निभानी है .....अंजना

कौरवों की सभा में द्रोपदी का रोना


कौरवों की सभा में द्रोपदी का रोना- कलपना ही तो कृष्ण को व्याकुल कर गया था। उस दिन द्रोपदी के चीर की मर्यादा रखने के खातिर ही मानो वो जवानी के शुरूआती दिनों में यमुना के किनारे गोपियों के चीर एकत्र करता रहता था। एक औरत के सत और सम्मान की रक्षा के लिये सारी उम्र के पुण्य भी खर्च कर देने पड़ें तो कैसा संकोच? गोंधारी ने उलाहना दिया कि कृष्ण चाहता तो सारी समस्या का सुहाना समाधान हो सकता था। लेकिन कृष्ण ने युद्व को टालने के लिये क्या कम कोशिश की थी? गांधारी जब श्राप देने लगी तो कृष्ण कहना तो चाहता था कि कोई न कोई महाभारत हम सब के हृदय में चल रहा है, लेकिन जिन्होंने युद्व के मैदान में उतरने के बावजूद हथियार हाथों में नहीं उठाने का प्रण लिया हो, उन्हें भी जब युद्व की भयावहता से जन्में श्राप भुगतने पड़ें तो फिर युद्वों से किसी के भी कल्याण की उम्मीद की ही कहाँ जा सकती है? युद्व कभी जीवन का सगा साबित नहीं हुआ। न हुआ है, न होगा।

(कृष्ण के जीवन पर आधारित राजस्थानी उपन्यास का अनुवादित अंश)

सभी राजस्थान सरकार के मुस्लिम गुलामों और तन्खय्यों ..चमचों और कोम के सोदागारों सहित मुस्लिम सांसदों ..मंत्रियों ..विधायकों को सूचित किया जाता है के राजस्थान में उर्दू विषय के प्रथम ग्रेड टीचर्स की नई नियुक्तियों और पदोन्नतियों में सरकारी अधिकारीयों का घोटाला चल रहा है

सभी राजस्थान सरकार के मुस्लिम गुलामों और तन्खय्यों ..चमचों और कोम के सोदागारों सहित मुस्लिम सांसदों ..मंत्रियों ..विधायकों को सूचित किया जाता है के राजस्थान में उर्दू विषय के प्रथम ग्रेड टीचर्स की नई नियुक्तियों और पदोन्नतियों में सरकारी अधिकारीयों का घोटाला चल रहा है यह तो तय है के राजस्थान से मुस्लिम तहजीब को खत्म करने के लियें स्कूलों में उर्दू खत्म करने की मुहीम सरकार और दुसरे लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से चला रही है अव्वल तो प्राथमिक स्तर पर उर्दू बंद की जा रही है उर्दू पढाई नहीं जा रही .......यही हाल मिडिल और सेकेंडरी स्तर पर है और हायर सेकेंडरी स्तर पर भी उर्दू को दफन करने की यही योजना है पूर्व मुख्यमंत्री भेरोसिंह शेखावत ने एक परिपत्र जारी कर सभी स्कूल के प्रिंसिपलों को निर्देश दिए थे के जिस भी स्कूल में दस या अधिक छात्र उर्दू पढने के इच्छुक हो तो स्कूल का प्रधान अपने स्तर पर उस स्कूल में उर्दू खोल सकता है लेकिन ऐसा एक भी जगह नहीं हुआ है अभी राजस्थान में सेकण्ड ग्रेड उर्दू टीचर्स को प्रमोशन देना है लेकिन निदेशक शिक्षा विभाग ने रिक्त पदों की फर्जी सुचना तहरीर बनाई है जबकि राजस्थान के सभी स्कूलों में उर्दू प्रथम श्रेणी के टीचर्स के पद रिक्त है अकेले कोटा में आठ पद रिक्त है तो सभी सम्भागों में पचास से भी अधिक पद रिक्त है लेकिन सुचना केवल तीन चार पदोन्नति की है ऐसा इसलियें किया जा रहा है के उर्दू विषय के बारे में सही सूचनाये नहीं एकत्रित की गयी है कई स्थानों पर उर्दू प्रथम श्रेंदी का पद रिक्त है लेकिन द्वितीय श्रेंदी से उर्दू पढवा आकर उस पद को खाली नहीं बताया गया है जबकि कुछ स्थानों पर दुसरे विषय के अध्यापकों को उर्दू विषय के बदले लगाकर उर्दू बजट का वेतन दिलवाया जा रहा है इसलियें रिक्त पद नहीं बताये गए है और वर्षों से उर्दू द्वितीय श्रेणी के अध्यापकों की पदोन्नतियाँ खटाई में पढ़ गयी है ....कोटा में तो उर्दू माध्यम के दो स्कूलों को बंद कर दिया गया था कई मुस्लिम नेताओं से कहा लेकिन सभी ने चक्करबाजी के अलावा कुछ नहीं किया वोह तो भला हो राजस्थान सरकार के मंत्री और कोटा विधायक शान्तिकुमार धारीवाल का जिन्हें मेने लिखित में सुचना दी और उन्होंने तुरंत कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र की मुस्लिम बस्तियों के दो बंद कर दिए गए उर्दू माध्यम के स्कूलों को यथावत चलाने बाबत शिक्षा मंत्री को पत्रक लिख कर निर्देश दिए और उर्दू के स्कूलों को बंद करने से रुकवाया इसके लियें वोह धन्यवाद के पात्र है ..लेकिन उर्दू और मुसलमानों के नाम पर पद लेने वालों ..इस नाम पर सियासत करने वालों जरा अपने जमीर को टटोलो और चमचागिरी सोदेबाज़ी खत्म कर कम से कम उर्दू को तो राजस्थान में बचालो यारों नहीं तो न तुम्हारी जुबा होगी न तुम होगे और न तुम्हारी संस्क्रती ही बाक़ी रह जायेगी समझ लेना भाइयों ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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