80 साल की महिला से रेप: बलात्कार के वक्त और बाद में क्या चलता रहता है पीड़ित के दिमाग में, जानिए
नई दिल्ली. हाल के कुछ महीनों में देश भर में रेप की अनगिनत दिल दहलाने वाली वारदातें सामने
आई हैं। इसके बावजूद महिलाओं की सुरक्षा की हालत बदतर होती जा रही है। आलम
यह है कि देश में कुछ महीनों की बच्चियों से लेकर 80 साल की महिला भी
सुरक्षित नहीं है। तमिलनाडु में एक 80 साल की महिला के साथ बलात्कार का
अजीब-ओ-गरीब मामला सामने आया है। बलात्कार का आरोपी 41 साल शख्स है। गंभीर
हालत में महिला को सरकारी अस्पताल में दाखिल करागा गया है। राज्य के सलेम
जिले के मल्लियाकरी इलाके में अकेले रहने वाली महिला के साथ सब्जी बेचने
वाले पलानीवेल नाम के शख्स ने रेप किया। घटना के तुरंत बाद आसपास के लोगों
ने पलानीवेल को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के मुताबिक आधी रात के करीब दो
पत्नियों और चार बच्चों के साथ रहने वाला पलानीवेल रेप की शिकार महिला के
घर गया और पानी मांगने लगा। लेकिन महिला ने मना कर दिया। इसी दौरान
पलानीवेल जबर्दस्ती घर में घुस गया और महिला के साथ रेप करने के बाद उसके
निजी अंगों को काट भी लिया।
कई लड़ाइयां लड़ती है रेप पीड़ित
रेप पीड़ित के लिए जिंदगी किसी जंग से कम नहीं होती है। उसे कई स्तरों
पर लड़ना होता है। यह लड़ाई व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तरों पर
लड़ी जाती है। लेकिन रेप पीड़ित के
लिए खुद को मानसिक तौर पर सामान्य करना सबसे बड़ी चुनौती साबित होता है।
रेप का किसी भी पीड़ित के दिमाग पर लंबे समय तक असर रहता है।
रेप पीड़ित की इच्छा के खिलाफ जोर जबर्दस्ती से किया गया कृत्य होता है जिसमें पीड़ित को हमलावर के यौन अत्याचार
का सामना करना पड़ता है। ऐसे मामलों में हमलावर हालात को अपने काबू में
रखता है। इसके लिए वह शारीरिक ताकत, नुकसान पहुंचाने की धमकी को अपना
हथियार बनाता है। ऐसी स्थिति में रेप की शिकार
(ज्यादातर मामलों में लड़कियां या महिलाएं) को लगता है कि या तो उसे मार
दिया जाएगा या बुरी तरह से चोट पहुंचाई जाएगी। रेप पीड़ितों के दिमाग का
अध्ययन करने वाले मनोविज्ञानियों का मानना है कि ज्यादातर रेप पीड़ितों को वारदात के समय यह लगता है कि उनका जिंदा रहना इसी बात पर निर्भर करता है कि वह हमलावर की मांग को मानती हैं या नहीं।
रेप पीड़ित को लगता है कि उसके शरीर पर किसी और कब्जा है
रेप पीड़ित की जिंदगी में रेप की वारदात अचानक, अनपेक्षित और बेकाबू
ढंग से घटती है। कई मामलों में पीड़ित को जान खतरा रहता है, लेकिन वह ऐसे खतरे से
निपट नहीं पाती है। ऐसे मामलों में रेप पीड़ित के वे उपाय भी काम नहीं आते
जिनका सामान्य तौर पर वह अपने डर पर काबू पाने के लिए इस्तेमाल करती है।
रेप की वजह से पीड़ित को लगता है कि उसके शरीर पर किसी और कब्जा है और
लोगों और रिश्तों को लेकर उसके नजरिए पर भी रेप का बहुत बुरा असर पड़ता है।
रेप की वजह से पीड़ित का मनोविज्ञान पूरी तरह से प्रभावित होता है। रेप की
घटना से पीड़ित किस तरह से निपटती है, यह कई कारकों पर निर्भर करता है।
इनमें पीड़ित की स्वाभिमान की भावना उसका सामाजिक और आर्थिक परिवेश, सोशल
नेटवर्क सपोर्ट सिस्टम, उसकी बची हुई जिंदगी का चक्र और पीड़ित के तौर पर
उसके साथ किया गया बर्ताव। अमेरिका के बोस्टन सिटी अस्पताल में रेप की
शिकार या रेप की कोशिश की शिकार करीब 109 महिलाओं पर की गई स्टडी में यह
बात सामने आ चुकी है कि रेप की शिकार महिला की बुनियादी भावना डर होती है।