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14 मई 2013

1992 में नागुर बार एसोसिएसन के समारोह में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन. वेंकटचलैया बिफर पड़े थे. उन्होंने कहा था --- "मैं 90 जजों को जानता हूँ जो दारू और दावत के लिए वकीलों के घर शाम को आ धमकते हैं


"1992 में नागुर बार एसोसिएसन के समारोह में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन. वेंकटचलैया बिफर पड़े थे. उन्होंने कहा था --- "मैं 90 जजों को जानता हूँ जो दारू और दावत के लिए वकीलों के घर शाम को आ धमकते हैं. मैं ऐसे जजों को भी जानता हूँ जो लालच और अवैध लाभ के लिए विदेशी दूतावासों के दरवाजों पर दस्तक देते घूमते हैं." यह नहीं कि न्याय पालिका के शीर्ष से संताप का यह स्वर पहली बार फूटा हो, पहले भी लोग यही कहते रहे हैं और आज भी यह क्रम जारी है. "न्यायपालिका में कुछ सड़े अंडे सडांध पैदा कर रहे हैं. न्यायिक विलम्ब और भ्रष्टाचार का परष्पर रिश्ता है. ---सोली सोराबजी (तत्कालीन ) एटोर्नी जनरल ऑफ इंडिया. "भ्रष्ट जजों पर मुकदमा चलाने के लिए ट्रिब्यूनल होना चाहिए . कोई जज तब तक सफल भ्रष्ट नहीं हो सकता जब तक उसके भ्रष्टाचार को वकीलों का सक्रीय सहयोग न हो." --जे.एस.वर्मा (तत्कालीन ) मुख्य न्याधीश सुप्रीम कोर्ट. "मुंबई के न्यायाधीश ने माफिया डोन छोटा शकील से 40 लाख रुपये लिए और वह अब फरार है. पुलिस को अब इस जे.डब्लू.सिंह नामक जज की तलाश है. हम उसकी गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगायेंगे."---मुंबई उच्चन्यायालय की खंड पीठ. आज की न्यायिक व्यवस्था पर इन तमाम "ख़ास लोगों" की टिप्पणीयाँ भी उतनी प्रमाणिक और सटीक नहीं हो सकतीं, जितनी देश के "आम आदमी" की राय. क्यों नहीं देश के जन -गण -मन से पूछा जाता है कि देश की न्याय व्यवस्था कैसी है ? अदालतों के गलियारों में फूलती दम और पिचकी जेब लिए वादकारी से पूछो कि वह कैसा न्याय किस कीमत पर भोगता है ? गाँव की सिकुडती झोपडी और शहर में वकील की बड़ी होती कोठी का परस्पर समानुपातिक रिश्ता है. सुना है न्याय की देवी की आँखें बंद हैं और यह भी सुना है कि वह देखने के लिए "कोंटेक्ट लेंस" लगाती है. है कोई कोंटेक्ट ?
जो मुंसिफी की परीक्षा में असफल हुआ वह भी वकालत करने लगता है. फिर चालू होता है चतुरता , चापलूसी और चालाकी का अद्भुत समीकरण. इस समीकरण का एक उपकरण है राजनीति. सभी का योग बना दो तो उच्च न्यायालय का जज बनने का संयोग विकसित होता है. इस संयोग में अभिषेक मनु सिंघवी का जज बनाने का नुस्खा भी शामिल है और एस.सी.माहेश्वरी जैसी जज बनाने की कई आढतें भी हैं. बहरहाल नारायण दत्त तिवारी और अभिषेक मनु सिंघवी जैसी प्रतिभाओं की "ख़ास" सेवा कर हाई कोर्ट का जज बनेवालों की फेहरिश्त शोध का विषय है. उच्च न्यायालय में न्याय के नाम पर जो हो रहा है जगजाहिर है. किस प्रक्रिया से स्थानीय वकील उसी उच्च न्यायालय में जज नियुक्त किये जा रहे हैं जहा वह दसियों साल वकालत कर रहे थे और वकीलों की गुटबाजी का हिस्सा थे. फिर उच्च न्यायालय के अधिकाँश जजों के बेटे -बेटी, भाई-भतीजे उसी उच्च न्यायालय में वकालत करते हैं और चालू होता है तेरा लड़का मेरी अदालत में और मेरा लड़का तेरी अदालत में का गारंटी फार्मूला. दूसरी ओर न्याय के इन गलियारों में कोई न्याय पाने नहीं आता यहाँ लोग मुकदमा जीतने आते हैं.
गुजरे साल "ओ.आर.जी. मार्ग" ने एक सर्वेक्षण किया था. देश के नागरिकों ने न्यायपालिका को भी भ्रष्ट माना और अंक तालिका में भ्रष्टाचार के लिए 5.4 अंक दिए.बेहमई की विधवाएं न्याय की गुहार आज तक कर ही रहीं है और फूलन देवी इस बीच दो बार सांसद हो कर ससम्मान संसदीय भाषा में स्वर्गवासी भी हो गयी. दस्यु सरगना मलखान सिंह सौ से अधिक मुकदमों में "बाइज्जत बारी" हो गया. मुकदमा चलाते-चलाते लाखू भाई पाठक मर गए और नरसिम्हा राव दोष मुक्त हो गए. भोपाल गैस काण्ड का क्या हश्र हुआ ? मुंबई के एक जज जे.डब्लू. सिंह के छोटा शकील से रिश्ते, उन्हें 40 लाख का लाभ दे देते हैं, बदले में जज साहब उस गिरोह के कुछ सदस्यों को जमानत दे देते हैं.
अदालतों की शब्दावली में "पैरोकार" बड़ा रहस्यमय शब्द है. जज साहब के सामने उनका पेशकार जब हाथ नीचे बढ़ा कर मुन्सीयों /वकीलों /वादकारियों से हाथ में जो लेता है उसे "पैरोकारी" और "कार्यवाही" कहा जाता है. यह "संज्ञेय अपराध" जज साहब की निगाहों के सामने जब हो रहा होता है तब वह रंगमंच के किसी मजे पात्र के जैसे जज साहब किसी फाइल को पढने का कार्यक्रम करने लगते हैं. दरअसल पैरोकारी से ही पेशकार शाम को मेंम साहब के पास तरकारी पहुंचाता है. 26 जनवरी 1997 को हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) में वहां के विधायक अशोक चंदेल ने सरेबाजार दो अबोध बच्चों सहित पांच लोगों को सरे बाज़ार गोलियों से भून दिया. हामीरपुर का अधिकार क्षेत्र इलाहाबाद उच्चन्यायालय को है जहाँ अशोक चंदेल की गिरफ्तारी रोकने की याचिका जब खारिज कर दी गयी तो उसने लखनऊ में "पैरोकारी" की और इसी पैरोकारी के प्रताप से उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के पीठासीन एक जज ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. इन जज साहब ने 5 बार अशोक चंदेल की गिरफ्तारी पर रोक लगाई. जब पाप का घड़ा भर गया तो मुख्य न्यायाधीश को अपने इस साथी जज के आचरण पर संदेह हुआ और अशोक चंदेल की गिरफ्तारी के आदेश हुए. 23 अक्टूबर 98 को अशोक चंदेल ने हमीरपुर के अतिरिक्त जिला जज आर.बी.लाल की अदालत में समर्पण किया. "पैरोकारी" का प्रताप यहाँ भी काम आया. जज आर.बी लाल ने बिना दूसरे पक्ष को सुने, बिना अभियुक्तों को जेल भेजे तत्काल जमानत देदी. आर.बी.लाल नामक इस जज को इसी हरकत के कारण 30 अक्टूबर 1998 को उच्चन्यायालय ने निलंबित कर दियाc

दुल्हन ने पति को पीटकर बचा तो लिया पिता का सम्मान, पर नहीं बचा सकी जान

दुल्हन ने पति को पीटकर बचा तो लिया पिता का सम्मान, पर नहीं बचा सकी जान
विदिशा। बाबूल के घर से विदाई लेकर सुसराल में अपनी नई जिन्दगी शुरू करने वाली बेटी आज कैसा महसूस कर रही होगी। जिस पिता के सम्मान को ठेस पहुंचने पर उसने अपने जीवन की नई पारी को शुरू होने से पहले ही खत्म कर दिया हो, वो ही पिता अब उसे विदा नहीं कर पाएगा। बेटी की डोली उठने से पहले ही पिता दुनिया से

रुखसत हो गया। बेटी ने अपने पिता के सम्मान को तो बचा लिया, लेकिन उसकी जान नहीं बचा पाई।
पिता के अपमान से नाराज होकर दूल्हे को तमाचे जडऩे वाली दुल्हन के पिता बाबूलाल विश्वकर्मा का जिला अस्पताल में सोमवार देर रात निधन हो गया। बताया जा रहा है कि ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई मारपीट से दुखी दुल्हन के पिता की मौत दिल का दौरा पडऩे से हुई।

मदद मांगने पर की थी पिटाई
रामलीला मैदान में सोमवार को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के समारोह में शहर के टीलाखेड़ी निवासी बाबूलाल की पुत्री प्रियंका की शादी भोपाल के बलवीर विश्वकर्मा के साथ हो रही थी। इस बीच वर पक्ष से सामान उठाने में मदद मांगने पर बाबूलाल की वर पक्ष ने पिटाई कर दी

कुरान का सन्देश

       

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का राजस्थान अल्पसंख्यक विभाग की मनमानी और उपेक्षा .... सरकार की विफलता और अल्पसंख्यकों के शोषण का सुबूत बन गया है और इस विभाग की असफलता के चलते राजस्थान के अल्पसंख्यकों को रिझाने की कोशिशें नाकाम हो गयी है .

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का राजस्थान अल्पसंख्यक विभाग  की मनमानी और उपेक्षा .... सरकार की विफलता और अल्पसंख्यकों के शोषण का सुबूत बन गया है और इस विभाग की असफलता के चलते राजस्थान के अल्पसंख्यकों को रिझाने की कोशिशें नाकाम हो  गयी है .........अशोक गहलोत ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिविजय सिंह की तर्ज़ पर राजस्थान में अल्पसंख्यक विभाग का गठन किया था और इस बार अमीन  जेसे नासमझ व्यक्ति को इस विभाग का मंत्री बना कर राजस्थान के अल्पसंख्यकों के लियें विफलता का एक इतिहास रच दिया केवल कागज़ी घोशनाए ..टी वी और अखबारी विज्ञापन और धरातल पर अंगूठे के आलावा कुछ नहीं मिला है ..अल्पसंख्यक विभाग में बंदरबाट ..भ्रष्टाचार .मनमानी और निकम्मेपन से ज्यादा कुछ नहीं है ...अल्पसंख्यक विभाग में कहने को तो एक प्रिसिपल सेक्रेट्री है लेकिन उनका होना नहीं होना बराबर है कभी उन्होंने जिलों में सम्भागों में जाकर अल्पसंख्यकों की सुनवाई नहीं की प्रतिनिधियों से नहीं मिले विभागों की कार्यप्रणाली का ओचक निरिक्षण नहीं किया बस ऐसी में बेठे कुछ मीटिंगे की और विदियोकोंफ्रेसिंग की मामला खत्म ..अमीन खान मंत्री जी का तो कहना ही क्या उन्हें तो अल्पसंख्यक की परिभाषा भी पता नहीं है वोह अल्पसंख्यकों के कल्याण की जगह बर्बादी का मंत्रालय चला रहे है इस सरकार के कार्यकाल में चाहे मदरसा बोर्ड हो ..चाहे वक्फ बोर्ड हो चाहे हज कमेटी हो सभी भ्रष्टाचार के घेरे में रहे है अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम और मेवात बोर्ड तो बने ही नहीं एक झुनझुना वक्फ विकास परिषद बनाया है जिसने कम करना ही शुरू नहीं किया केंद्र सरकार का अरबो रूपये का बजट प्रतिवर्ष बिना उपयोग के वापस जा रहा है .मदरसों के कम्प्यूटर कहा है पता नहीं ..मदरसों की नियुक्तियों में भ्रष्टाचार जाँच का क्या हुआ पता नहीं वर्ष दो हजार बारह की स्वीकृत पोस्टों का क्या हुआ पता नहीं .वक्फ बोर्ड के घोटालों का क्या हुआ पता नहीं ...वक्फ बोर्ड के अतिक्र्म्नकरियोन का क्या हुआ पता नहीं वक्फ बोर्ड के सर्वेक्षण की अधिसूचना अब तक जारी नहीं की गयी ...जिलों में अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ..प्रोग्राम अधिकारी पर या तो सेवानिव्रत्त लोग है या फिर नाकारा मास्टरों को भर्ती किया गया है जिनका की विजन नहीं ...विभागों में रिटायर्ड गेर्ज़िम्मेदार क्र्म्चैयों को लगाया गया है ......जयपुर निदेशालय का तो बुरा हल है जो निदेशक लगता है उसके पाँव में घुँघरू बन जाते है और वोह किसी भी जिले में कलेक्टर बनने की जुगत में लग जाता है मक्खन बाज़ भ्रस्ताचार के सिरमोर आरोपियों से विभाग भरा पढ़ा है हर कथित अधिकारी कर्मचारी पर भ्रष्टाचार के प्रमाणित अपराध है कोई नियुक्तियों में घोटाला करता है कोई बजट में गडबडी करता है जिलेवार कोई निगरानी नहीं है विभाग में कोई ज़िम्मेदारी नहीं है छात्रवृत्ति कब आई कब तक छात्रों तक पहुंचाना है ....ऋण सुविधा का क्या करना है किसी को कोई खबर नहीं सिर्फ ल्फाज़ी और बाते ही बाते है झूंठे फर्जी आंकड़े देकर खुद भी खुश हो रहे है और सरकार को भी गुमराह कर रहे है ...कोटा अल्पसंख्यक विभाग तो सियासी अखाडा बन गया है एक काम करते हुए प्रोग्रामम अधिकारी कोई विधि विरुद्ध तरीके से हटाया कोई सुनवाई नहीं सियासी सिफारिश इन विभागों को नचा रही है और गरीब लोग आज भी प्रेषण है योजनाओं का प्रचार प्रसार नहीं हो रहा है मस्जिदों मदरसों में पार्षदों पंचों और मुस्लिम सिक्ख इसाई जनप्रतिनिधियों के जरिये योजनाओं का प्रचार नीं किया जा रहा है केंद्र की योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुँच रहा है ......प्रधानमन्त्री पन्द्राह सूत्रीय कल्याणकारी कार्यक्रम योजना का तो इन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारीयों ने सत्यानास ही नहीं सवा सत्यानास कर दिया है अव्वल तो वक्त पर बैठकें नहीं होती है और बैठकें होती है तो अल्पसंख्यक अधिकारी जो बैठक का सचीव होता है उसे बैठक की कार्यवाही लिखना नहीं आता मीटिंग के मिनिट्स सही तरह से नहीं लिखे जाते जो निर्णय होते है उनकी क्रियान्वित नहीं होती कलेक्टर भी इस मामले में उपेक्षित व्यवहार रखते है क्योंकि मंत्री और प्रिसिस्पल सेक्रेटरी इस विभाग को  बोझ समझते है जिलों में तो अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारीयों की हालत बुरी है मास्टर है तो वहां  भी मास्टरी झाड़ते है दफ्तरों से गायब रहने के उनके पास सेकड़ों बहाने है कुल मिलाकर निरंकुश इस विभाग का निचे से ऊपर तक मेजर ओपरेशन कर इस विभाग के हालात नहीं सुधारे गए तो समझो गहलोत सरकार की इस विभाग की विफलता के चलते उलटी गिनती शुरू है और इसके लियें मूल रूप से अल्पसंख्यक विभाग में मंत्री ...प्रिसिस्पल सेक्रेट्री ..निदेशक अल्पसंख्यक विभाग अधीनस्थ कर्मचारी भ्रष्ट कामचोर अधिकारी फर्जी बयानबाजी ज़िम्मेदार है अभी भी वक्त है के सरकार इस विभाग के सादे गले अंगों को निकल कर इसे स्वस्थ करे ताकि सरकार की बदनामी बच सके वरना नतीजे भुगतने को तो तय्यार रहना ही होगा .................................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 

नहीं रहे बोहरा समाज के सामाजिक अभियंता असगर अली इंजीनियर



सुधारवादी बोहरा समुदाय के नेता, समाजकर्मी और चिंतक डॉ. असगर अली इंजीनियर का आज मुंबई में सुबह 8 बजे इंतकाल हो गया. 10 मार्च 1939 को जन्मे असगर अली इंजीनियर उदयपुर (राजस्थान) के सलुंबर तहसील के रहने वाले थे और उनका परिवार दाउदी बोहरा संप्रदाय का अनुयायी था. सत्तर के दशक में दाउदी बोहरा की कट्टरता और दकियानुसी परंपराओं के खिलाफ जो सुधारवादी आंदोलन शुरू हुआ इंजीनियर उसके एक प्रमुख स्तंभ थे. इस वैचारिक और खूनी संघर्ष के बाद ही बोहरा संप्रदाय दो भागों में विभाजित हुआ. सुधारवादी गुट ने खुद को प्रगतिशील बोहरा समुदाय कहा.

इस संघर्ष और विभाजन के बाद ही उदयपुर और मुंबई में बोहरा समुदाय, जहां कि उनकी सबसे ज्यादा आबादी है, ने खुल कर सांस ली, स्कूल-कॉलेज व अस्पताल खुले, लड़कियां स्कूल गई और कई सुधारवादी कार्यक्रम शुरू हुए.

असगर अली इंजीनियर भारत के उन प्रमुख लोगों में से थे जो देश में धार्मिक कट्टरता के खिलाफ थे और एक धर्मनिरपेक्ष देश का सपना रखते थे.

हर गली की जान अब जाने लगी

रफ ...
हर गली की जान अब जाने लगी
जात पहले नाम के आने लगी/

जब नक़ाब-ए-दोस्ती बिकने लगी
साँस घुटती सिसकियाँ भरने लगी/

शक्ल असली सामने आ ही गयी
चुस्त बखिया थी मगर खुलने लगी/

कम नहीं थे गम यहाँ पहले भी कुछ
लो अटकती साँस भी रुकने लगी/

दूरियों के छुप ना पाये तब निशाँ
जब ज़रा सी बात भी बढ़ने लगी/

इश्क भी ना बच सका माहौल से
चाल शतरंजी यहाँ बिछने लगी/

बात से बातें न निकलें इसलिये
अब पुरानी ये रविश मिटने लगी/

बादशाहत जब खिलौना बन गयी
चाभियों से सल्तनत चलने लगी/

बारहा बदली जुबां उसने मगर
महफ़िलों में भीड़ फ़िर जुटने लगी/

तोड़ बस्ती जो बनीं ईमारतें
अब वहीँ अस्मत खुली लुटने लगी

सड़क पर अस्मतें बिकने लगी/

कठघरे में डाल तहज़ीब-ए-जवां
खुद बुज़ुर्गों की नज़र डँसने लगी/

देख लो लोगो बदल लो सोच को
रूह तक अब झूठ से मरने लगी/

दिन निकलना जब शहर में कम हुआ
जुर्म की काली फसल उगने लगी

खाक इंसाँ हो ‘भरत’ कुछ तो करो
फ़िर कलम बाज़ार में बिकने लगी/
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