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18 मई 2013

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का अंतिम दिवस...


राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का अंतिम दिवस...

            "आज नई दिल्ली में शाम के पांच बजकर सत्रह मिनिट पर , राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या हो गई " उनका हत्यारा एक हिन्दू है ' वह एक ब्राम्हण  है ' उसका नाम नाथूराम गोडसे है ' स्थान बिरला हॉउस ..........ये आल इंडिया रेडिओ है ........{पार्श्व में शोक धुन }......
           उस वैश्विक शोक काल में तत्कालीन सूचना और संचार माध्यमों ने जिस नेकनीयती और मानवीयता के साथ सच्चे राष्ट्रवाद का परिचय दिया वह भारत के परिवर्ती-सूचना और संचार माध्यमों  का दिक्दर्शन करने  का प्रश्थान बिंदु है. यदि गाँधी जी का हत्यारा कोई अंग्रेज या मुस्लिम होता तो भारतीय उपमहादीप की धरती रक्तरंजित हो चुकी होती. तमाम आशंकाओं के बरक्स आल इण्डिया  रेडिओ और अखवारों की तात्कालिक  भूमिका के परिणाम स्वरूप देश एक और महाविभीशिका  से बच गया .........
               लेरी कार्लिस और डोमनिक लेपियर द्वारा १९७५मे  लिखी पुस्तक 'फ्रीडम एट मिडनाइट'  में भारतीय स्वाधीनता संग्राम  की आद्योपांत कहानी का वर्णन है ...इसमें गांधी जी की हत्या का विषद और प्रमाणिक वर्णन भी है .....
   मोहनदास करमचंद गाँधी के जीवन का अंतिम दिन -की दिन चर्या में सूर्योदय से पहले लगभग ०३.३० बजे उनका जागना और ईश्वर आराधना .दोपहर के आराम के बाद वे १०-१२ प्रतीक्षारत आगंतुको से मिले ,बातचीत की .अंतिम मुलाकाती के साथ चर्चा उनके लिए घोर मानसिक वेदना दायक रही .वे अंतिम मुलाकाती थे सरदार वल्लव भाई पटेल . उन दिनों पंडित जी और पटेल के बीच नीतिगत मतभेद चरम पर थे . पटेल तो संभवत: नेहरु  मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के मूड में थे ; लेकिन गांधीजी उन्हें समझा रहे थे कि यह देश हित में नहीं होगा .
          गांधीजी ने समझाया कि नवोदित स्वाधीन भारत के लिए यह उचित होगा कि तमाम मसलों पर हम तीनो -याने गांधीजी .नेहरूजी और पटेल सर्वसम्मत राय बनाए जाने कि अनवरत कोशिश करेंगे .आपसी मतभेदों में वैयक्तिक अहम् को परे रखते हुए देश को विश्व मानचित्र पर पहचान दिलाएंगे .पटेल से बातचीत करते समय गांधीजी कि निगाह अपने चरखे और सूत पर ही टिकी थी .जब बातचीत में तल्खी आने लगी तो मनु और आभा जो श्रोता द्वय थीं ,वे नर्वस होने लगीं ,लगभग ग़मगीन वातावरण में उन दोनों ने गांधीजी को इस गंभीर वार्ता से न चाहते हुए भी टोकते हुए याद दिलाया कि प्रार्थना का समय याने पांच बजकर दस मिनिट हो चुके हैं .
       पटेल से बातचीत स्थगित  करते हुए गांधीजी बोले 'अभी मुझे जाने दो. ईश्वर कि प्रार्थना-सभा में जाने का वक्त हो चला है ' आभा और मनु के कन्धों पर हाथ रखकर गाँधी जी अपने जीवन कि अंतिम पद यात्रा पर चल पड़े ,जो बिरला हॉउस  के उनके कमरे से प्रारंभ हुई और उसी बिरला हॉउस  के बगीचे में समाप्त होने को थी .....
    अपनी मण्डली सहित गांधीजी उस प्रार्थना सभा में पहुंचे जो लॉन  के मध्य थी और जहाँ .नियमित श्रद्धालुओं कि भीड़ उनका इंतज़ार कर रही थी और उन्हीं  के बीच हत्यारे भी खड़े थे .गांधीजी ने सभी उपस्थित जनों के अभिवादानार्थ  नमस्कार कि मुद्रा में हाथ जोड़े ..... करकरे कि आँखें नाथूराम गोडसे पर टिकी थीं ...जिसने जेब से पिस्तौल निकालकर दोनों हथेलियों के दरम्यान छिपा लिया .....जब गांधीजी ३-४ कदम फासले पर रह गए तो नाथूराम दो कदम आगे आकर बीच रास्ते में  खड़ा हो गया ...उसने नमस्कार कि मुद्रा में हाथ जोड़े ,वह धीमें -धीमें अपनी कमर मोड़कर झुका और बोला "नमस्ते गाँधी 'देखने वालों ने समझा कि कोई भल-मानुष है जो गांधीजी के चरणों में नमन करना चाहता है ...मनु ने कहा भाई बापू को देर हो रही है प्रार्थना में ..जरा रास्ता दो ...उसी क्षण नाथूराम ने अपने बाएं हाथ से मनु को धक्का दिया ...उसके दायें हाथ में पिस्तौल चमक उठी .उसने तीन बार घोडा दवाया ...प्रार्थना  स्थल पर तीन धमाके सुने गए ...महात्मा जी कि मृत देह को बिरला भवन के अंदर ले जाया गया,  आनन् -फानन लार्ड  माउन्ट बेटन, सरदार पटेल, पंडित नेहरु और अन्य हस्तियाँ उस शोक संतृप्त माहोल के बीच पहुंचे ...जहां श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए अंतिम ब्रिटिश प्रतिनिधि ने ये उदगार व्यक्त किये .....'महात्मा गाँधी को ...इतिहास में वो सम्मान मिले जो बुद्ध ,ईसा को प्राप्त हुआ ....
    श्रीराम तिवारी

महोब्बत का कभी इजहार कर दे


महोब्बत का कभी इजहार कर दे
उजड़ा हूँ मुझे आबाद कर दे

हमें तौफीक दे अच्छे हाल की
हमें फिर साहिबे किरदार कर दे

तड़प ऐसी बुलंदी की नहीं है
जो अपनो से मुझे बेज़ार कर दे

शिकारी जाल फैलाये हुए हैं
परिंदों को कोई होशियार कर दे

ना देखे जायेंगे अश्के-निदामत
किसी की जीत मेरी हार कर दे

कोई नगमा कहो ऐसा भी जाना
जो सोई कॉम को होशियार कर दे......

रवाजे थोड़ा तो खोलो, दिल चौखट पर पड़ा वहाँ...


रवाजे थोड़ा तो खोलो, दिल चौखट पर पड़ा वहाँ...
उसपर भी कहती हो मुझसे क्या मुश्किल है जीने मे...

बंद हुई खिड़की पर अब भी बारिश देती है दस्तक...
क्यूँ खोलूं बूँदों से उसकी, आग लगेगी सीने मे....

पीने को तब तक पीते हैं जब तक तुम न आ जाओ...
नशे मे भी ना दिखो अगर, तो मज़ा कहाँ है पीने मे...

मेरी मुश्किल और मुफ़लिसी, क्या समझेंगे लोग यहाँ...
ख़ुदग़रजी की इस दुनिया मे, प्यार कहाँ है सीने मे...

अपनी यादों से कह दो, हो और मेहेरबाँ शेरों पर...
चुभते हैं पर अब भी थोड़ा, कम चुभते हैं सीने मे...

बाहर चाहे कितना ही तन्हा दिखता हूँ मैं तुमको...
सजी हुई है महफ़िल' यादें नाच रही हैं सीने मे

तेरा गम जब भी चखता हूँ, कड़वा सा हो जाता हूँ...

तेरा गम जब भी चखता हूँ, कड़वा सा हो जाता हूँ....
धीरे से अम्मा कहता हूँ, मैं मीठा हो जाता हूँ...

अँधा एक पपीहा देखो, रोज़ तरसता सावन को...
न मर जायें वो उम्मीदें , रोज़ वहाँ रो आता हूँ...

ग़ज़ल बगल मे बाँध के अपने, तेरी राह गुज़रता हूँ...
जाता हूँ बाजार, बेचने, रोज़ वहीं खो आता हूँ...

वहाँ जहाँ पर एक भिखारी, मरा पड़ा था दो दिन से...
चिल्लर थोड़े फेंक के अपने, पाप ज़रा धो आता हूँ...

जब लगता है फसल तुम्हारी, यादों की हो गयी खराब...
दिल को आँखों से नम करके, बीज ज़रा बो आता हूँ...

एक कटोरी याद से तेरी, खाकर फिर दो ग़ज़ल 'करिश'...
और आँख का पानी पीकर, मैं भूखा सो जाता हूँ....

भरतपुर का भारत-संघ में विलय



भारत सरकार भरतपुर राज्य की भारत विरोधी तथा पक्षपातपूर्ण नीतियों से खुश नहीं थी।
भरतपुर के महाराजा ने १५ अगस्त को स्वत्रता दिवस नहीं मनाया।
अपने राज्य के समाचार पत्रों को राष्ट्रीय नेताओं की आलोचना की अनुमति दी।
जानबुझकर मुसलमानों को सताने की नीति अपनाई।
राज्य में अस्र-शस्र निर्माण का कारखाना स्थापित किया। यह समझौते के विरुद्ध था। ये अस्र-शस्र जाटों और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्त्ताओं बीच बाँटे गये तथा इस तरह राज्य ने साम्प्रदायिक गतिविधियों में भाग लिया।
जाटों का पक्ष लेते हुए कई अन्य जातियों के प्रति अच्छा रवैया नहीं अपनाया।
सैनिको को नियंत्रित व अनुशासित करने में असफल रहे।
राजनैतिक अस्थिरता तथा तनाव के कारण भरतपुर के महाराजा को फरवरी १०, १९४८ को दिल्ली बुलाया गया तथा सुझाव दिया गया कि वे भरतपुर राज्य का प्रशासन भारत सरकार के अधीन कर दे। १४ फरवरी १९४८ को रायबहादुर सूरजमल के नेतृत्व में राज्य के मंत्रीमंडल ने त्यागपत्र दे दिया तथा एस. एन. सप्रू को भरतपुर राज्य का प्रशासक नियुक्त किया गया। बाद में भरतपुर के शासक को आरोप मुक्त कर दिया गया।

मिल रही शिक्षा उदर पोषण का बस इक माध्यम है...

मिल रही शिक्षा उदर पोषण का बस इक माध्यम है...
कर्म से भी पूर्व फल की राह अब तकते नयन हैं...
"स्व" का ही पर्याय बन जीवन बिताया जा रहा है...
क्या प्रयोजन मातृभूमि के सजल चाहे नयन हैं...

गर्व है किस बात का परभूमि मे सम्मान भी हो...
पूजते हैं वो तुम्हे सस्ते मे उनको मिल रहे हो...
कल बढ़ाकर मूल्य अपना सत्य को भी जान लेना...
आज जो सम्मान के आभास मे ही खिल रहे हो...

सिंह के दांतो को गिनते थे कभी अब स्वान हैं हम...
दुम हिलाते भागते हैं पश्चिमी हड्डी के पीछे...
सभ्यता, परिवार, शिक्षा सब कहीं बिखरे पड़े हैं...
हम स्वयं आदर्श की खिल्ली उड़ाते, आँख मीचे...

जो खड़े सीमा पे अपने राष्ट्र के हित मर रहे हैं...
अब ज़रा आँखों पे पट्टी बाँध दो उनकी भी बढ़ के...
न दिखे उनको कहीं की सत्य का संसार क्या है...
पा रहे हैं क्या वो बंजर सी धरा हित प्राण तज के...

व्यवसाय की ही आड़ मे परतंत्रता बेची गयी थी...
आज क्यूँ हालात वो फिर से बनाए जा रहे हैं...
वीरता जनती कभी थी बांझ वो धरती हुई है...
अब नपुंसक भीरू ही बल से उगाए जा रहे हैं....

आज अपना राष्ट्र ही एक हाट बन कर रह गया है...
और हमारा ही यहाँ सम्मान बेचा जा रहा है...
मूढ़ सी कठपुतलियाँ क्यूँ बन गये हैं आज सारे...
खोल आँखें देख हिन्दुस्तान बेचा जा रहा है...

बंजर जमीं में अब कोयल की कूहू-



हरा-भरा 43 एकड़ के बगीचे की देखभाल में उम्र के 74 वसंत देख चुके बजरंग केडिया को उनकी ऊर्जा और लगन से करते देख हैरत होती है. इस बगीचे में 17 सौ आम के पेड़ों के अलावा चीकू,मुनगा अमरूद,खम्हार और बांस,नीलगिरी के पेड़ है. मई माह के इनदिनों आम के पेड़ों से ‘मीठा मेवा’ टूट रहा है. बंजर भूमि पर जो सपना उन्होंने 18 साल पहले देखा था वो साकार हो चुका है.
मेरा और केडियाजी का नाता करीब पैंतीस साल पुराना है. मैं अपने पिताजी श्री चमनलाल चड्ढा के साथ दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित कृषि प्रदर्शनी में शिरकत करने गया था. वहां केडियाजी मिले वे तब लोकस्वर से जुड़े थे. बाद नव-भारत बिलासपुर में हमने साथ करीब नौ बरस काम किया.कालान्तर वो ‘नव-भारत’ के सम्पादक बने और मैं ‘दैनिक-भास्कर’ का संपादक. दोनों को निष्ठा अपने-अपने संस्थान के साथ थी पर हमारी मैत्री बनी रही. सही अर्थों में केडियाजी और मैं रेल की दो पांतो के समान हैं,जो साथ-साथ चलती हैं पर मिलती कभी नहीं, विचारों के मामले में ये दशा आज भी बरकार है.पर मैं आम उत्पादन में उनकी मेहनत, लगन और दूरदर्शिता का लोहा मानता हूं.
प्रख्यात कृषि विज्ञानी डा.रामलाल कश्यप ने सबसे पहले ये जाना कि, छतीसगढ़ के बिलासपुर की आबो-हवा आम उत्पादन के माकूल है. उन्होंने केडियाजी को प्रेरित किया.और अपनी फिर चुन-चुन के इस भूमि में दशहरी,लंगड़ा,हाफुजा [अलफांसो] आम्रपाली जैसे आम के पौधे गाँव भरारी के इस बगीचे में लगाये. बगीचे की फेंसिंग कर बंदरों से बचाव के लिए कुत्ते पाले गए. आज इस बगीचे को केडियाजी के माता स्वर्गीय ‘जड़िया’ के नाम से जाना जाता है. एक साल में तेरह लाख की रिकार्ड आय ये बगीचा दे चुका है.
यहाँ के आबो-हवा में आम की फसल यूपी से एक माह पहले मीठी रसली हो जाती है. इसलिए मुनाफा भी चौखा होता है. उलटे बांस बरेली को की भांति इन दिनों बिलासपुर का आम बनारस भी निर्यात होता है. इतनी पैदावार लेनी है, तो पेड़ों की सेवा भी बच्चों के समान करनी होती है .इसके लिए केंचुआ खाद का बड़े पैमाने में बगीचे में ही उत्पादन होता है. अवधारणा है कि संगीत का असर पेड़ों पर होता है, इसलिए फार्म हॉउस में इसका इंतजाम किया गया है. पेड़ों पर कीटनाशक का छिड़काव,के अलावा सिंचाई के लिए तीन पंप और पाईप का पूरा जाल हर तरह बिछा है. इन सब कामों में दो दर्जन मजदूरों को रोजगार मिला है.
बिलासपुर से चौबीस किलोमीटर दूर इस बगीचे की सफलता के बाद इस किसानों ने प्रेरित हो कर आम के बगीचे लगा लिए हैं. दिसम्बर माह में आम के बौर आने लगते हैं और जून के पहले सप्ताह तक आम की फसल पैक कर मिनी ट्रक से खेप में बाज़ार पहुँच जाती है. बौर और आम तोड़ाई के बीच वसंत में तीन-चार बार आंधी-बारिश से अमियाँ टूट कर बिखर जाती है. केडिया जी कहते है,आम के पेड़ को ये भी कुदरत की देन है,अगर ये न हो तो फल के भार से नमन करती डालियाँ ही बाद में टूट कर बिखर जाएगी.
आम को फलों का राजा माना जाता है. पर अलफांसो तो आमों में राजा है. बिलासपुर का अल्फ़ान्सो रत्नागिरी के अल्फ़ान्सो से कम नहीं ,मेरे समधिन आशा महाडिक मेरे लिए मुम्बई से अल्फ़ान्सो की पेटी लाईं तो हमने या मिलन कर देखा-परखा..ये बिलासपुर की आबोहवा में हर साल फलने वाला आम के रूप में चिन्हित किया गया है. कृषि विभाग को इन पेड़ों से और पेड़ तैयार करना चाहिए. इन्सान की मेहनत बंजरभूमि में फल खिला सकती है ये आम्र-वाटिका इसकी मिसाल है.कभी जहाँ वीरना था. आज वहां कोयल की कूहू-कुहू सुनाई देती है.

जामिया का नया दर्जा मुसलमानों के लिए नुकसानदेह



आजकल मुस्लिम वर्ग में जामिया मिल्लिया इस्लामिया को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग ( एनसीएमईआई ) द्वारा आरक्षण दिए जाने पर जश्न का माहौल है। एनसीएमईआई ने जामिया को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने की मांग ली और हाल ही में इस आयोग द्वारा इसकी घोषणा भी कर दी गई। लेकिन इस घोषणा के बाद जश्न में डूबे मुस्लिम वर्ग को इस बात का पता नहीं कि इस प्रकार के आरक्षण से लाभ के बजाय हानि होगी। धर्म के आधार पर दिए गए आरक्षण का सबसे अधिक नुकसान मुस्लिम कौम को होने वाला है। वह कैसे ?

बंद होंगे दरवाजे
वह ऐसे कि अब जब मुस्लिम बच्चे किसी स्कूल , कॉलेज में दाखिला लेने जाएंगे या किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू में बैठेंगे तो सामने बैठे गैर - मुस्लिम अफसर के मन में अवश्य यह विचार आएगा कि मैं इसको क्यों लूं। इसे तो जामिया , अलीगढ़ , उस्मानिया आदि मुस्लिम संस्थानों में जाना चाहिए। मेरी जनरल कैटेगरी के ब्राह्मण को सहारा देने वाला तो कोई नहीं। इस प्रकार जो चंद गैर - मुस्लिम दरवाजे अल्पसंख्यकों पर खुल जाते थे , जामिया के आरक्षण के बाद वे भी बंद हो जाएंगे। जामिया आरक्षण के संबंध में छोटे - बड़े मुस्लिम नेता पोस्टरबाजी में , प्रेस विज्ञप्तियों में और अपने फोटो छपाने में एक दूसरे पर होड़ लेने में जुटे हैं। उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं कि धर्म पर आधारित आरक्षण गैरकानूनी है।

प्रेशर कुकर एग्जिस्टेंस
आज भी मुस्लिम समाज की स्थिति ' प्रेशर कुकर एग्जिस्टेंस ', अर्थात एक दम फट पड़ने जैसी है। मुस्लिम नेताओं ने मुसलमानों को नाना प्रकार के मकड़जालों में फांस रखा है , जिनमें से कुछ हैं - अलीगढ़ और जामिया विश्वविद्यालयों का धर्म के आधार पर आरक्षण , सच्चर कमेटी , शाहबानो केस , रंगनाथ मिश्रा आयोग , लिब्राहन आयोग , उर्दू भाषा आदि। ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिनका एक आम मुसलमान की रोजाना की जिंदगी से कोई सीधा संबंध नहीं है। इनका महत्व प्रतीकात्मक है। भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा के तहत सदियों से हिंदुओं और मुसलमानों ने एक साथ मिलकर कई कारनामे अंजाम दिए हैं। बहुत सी बस्तियों में वे मिल - जुलकर रहते चले आए हैं। एक ही माहौल में मंदिर के घंटों को मुसलमानों ने और मुअज्जिन की अजान को हिंदुओं ने मान - सम्मान दिया है। आरक्षण जैसी दीवारें इस मान - सम्मान को ठेस पहुचाती हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि मुस्लिम वर्ग आज की तारीख में सबसे अधिक पिछड़ा हुआ माना जाता है। लेकिन पिछड़े मुसलमानों की शैक्षिक , आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए आरक्षण कोई हल नहीं है। आरक्षण न तो धर्म के आधार देना चाहिए और न ही जाति - बिरादरी के आधार पर। यदि धर्म एवं जाति के आधार पर आरक्षण का झुनझुना बंटने लगा तो दलित मुस्लिम जैसे अंसारी , राजपूत , सलमानी , मलिक , राईनी , मंसूरी , कुरैशी , इदरीसी ( दर्जी ), अलवी , अब्बासी , कस्सार ( धोबी ), मुस्लिम त्यागी , चौधरी , गद्दी , भटियारा , रंगरेज , सक्का , नाई , कलाल , जाट , मीरासी , मिर्जा , मनिहार , शम्सी , गाढ़ा , झोझा , मस्लिम गूजर ( पोल्हा ), बकरवाल , नज्जाफ , तेली , मुस्लिम कुम्हार , सिद्दीकी , माहीगीर , कयामखानी , सुनार , जडि़या , सिपाही , बंजारा , घोसी , हलवाई , तुर्क ( पाशा ), नक्काल आदि भी कोटे की मांग करने लगेंगे।

आज जो हम विभिन्न क्षेत्रों में कुछ मुस्लिम नौजवानों को देखते हैं , उसका कारण यही है कि ये वहां मेहनत से अपना स्थान बना पाए हैं। आरक्षण का सबसे बड़ा नुकसान मुसलमानों को यह होगा कि वे कर्मठ न रहकर आराम तलब बन जाएंगे। इससे वे जो थोड़ी - बहुत प्रतियोगिताओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करा लेते हैं , उससे भी जाते रहेंगे। कुरान ( अध्याय 49: सूरत -13) में बड़ी सफाई के साथ लिखा है कि इस्लाम में ज़ातिवाद का कोई महत्व नहीं है क्योंकि , खुदा की निगाह में सब बराबर हैं और इस्लाम जाितयों में बंटे समाज को स्वीकार नहीं करता।

सचाई यह है कि जिनको आरक्षण मिलना चाहिए , उनको मिलता नहीं। अब इतने अधिक आरक्षण हो चुके हैं कि बेचारा जनरल कैटेगरी वाला उनके बीच पिस चुका है और अस्ल में उसे आरक्षण की आवश्यकता है। आरक्षण की यह हालत हो गई है कि अब मुस्लिम दलित , ईसाई दलित , रामगढि़या सिख आदि भी आरक्षण की मांग कर रहे हैं। राजस्थान में गुर्जर आरक्षित हो गए हैं। यह कोई अच्छा ट्रेंड नहीं है। इससे भारत भले ही भौगोलिक आधार पर न बंटे , मगर भारतवासियों के मन - मस्तिष्क में दीवारें अवश्य खड़ी होने लगी हैं। 1947 में धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हो चुका है। अब हम आरक्षण के आधार पर और कितने बंटवारे चाहते हैं ?

आरक्षित सीटों का इतिहास देखते समय , हमें पता चलता है कि इसके होते समाज में हर किसी को समान रूप से विकसित करने का उद्देश्य समाप्त हो चुका है। नौकरियों के लिए अब योग्य उमीदवार नहीं मिलते हैं। आरक्षित सीटें सालों - साल से रिक्त रहती चली आ रही हैं जिससे न केवल सामान्य जातियों वाले भारतवासियों का नुकसान हुआ है , बल्कि सरकारी क्षेत्रों में काम की हानि भी हुई है। 1993 में आईआईटी मद्रास के निदेशक पी . वी . इंदिरेशन और आईआईची दिल्ली के निदेशक एन . सी . निगम ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि अनुसूचित जाति और जनजाति की पचास प्रतिशत सीटें आईआईटी में खाली रह जाती हैं।

गैर - इस्लामी बाड़ेबंदी
यह ठीक है कि समाज को धर्म या जातियों के आधार पर बांटकर कोटा नहीं देना चाहिए। लेकिन जहां तक दलितों या मुसलमानों की पिछड़ी जातियों का संबंध है , उनके लिए मदद इसलिए आवश्यक हो जाती है क्योंकि सदियों से ये लोग सामाजिक , आर्थिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं। निर्धन वर्गों के उत्थान के लिए सरकार को अवश्य ही कुछ न कुछ करना चाहिए मगर उसे धर्म और जाति से अलग रखना चाहिए। वहीं दूसरी ओर मुसलमानों को भी चाहिए कि वे जातिवाद से बचकर रहें , जो कि गैर - इस्लामी है। अच्छी शिक्षा ग्रहण कर वे अपनी आर्थिक व सामाजिक स्थिति को सुधारें , न कि सामुदायिक आरक्षण के आधार

ख़्वाजा हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया




बाबा फ़रीद के अनेक शिष्यों में से हज़रत जमाल हंसवी, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, हज़रत अली अहमद साबिर, शेख़ बदरुद्दीन इशाक और शेख़ आरिफ़ बहुत प्रसिद्ध सूफ़ी संत हुए। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (1238-1325 ई.) तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के महान और चिश्ती सिलसिले के चौथे सूफ़ी संत थे। उनके पूर्वज बुख़ारा से आकर उत्तर प्रदेश के बदायूं बदायूं ज़िले में बस गए थे। बदायूं में ही उनका जन्म हुआ था। उनका बचपन काफ़ी ग़रीबी में बीता। पांच वर्ष की अवस्था में उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पिता अहमद बदायनी के स्वर्गवास के बाद उनकी माता बीबी जुलेख़ा ने उनका लालन-पालन किया। जब वे बीस वर्ष के थे तो अजोधन में, जिसे आजकल पाकपट्टन शरीफ़ (पाकिस्तान) कहा जाता है, उनकी भेंट बाबा फ़रीद से हुई। बाबा फ़रीद ने उन्हें काफ़ी प्रोत्साहित किया और उन्हें अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ने की दीक्षा दी। ख़्वाजा औलिया 1258 ई. में दिल्ली आए और ग़्यासपुर में रहने लगे। वहां उन्होंने अपनी ख़ानक़ाह बनाई। इसी बस्ती को आजकल निज़ामुद्दीन कहा जाता है। वहीं से लगभग साठ साल तक उन्होंने अपनी आध्यात्मिक गतिविधियां ज़ारी रखी। उनकी ख़नक़ाह में सभी वर्ग के लोगों की भीड़ लगी रहती थी।

ख़्वाजा औलिया के नेतृत्व में चिश्ती सिलसिले का भारत भर में विकास हुआ। उन्होंने अलाउदीन ख़िलजी समेत आठ सुल्तानों के शासन देखे लेकिन कभी भी उनके राज-दरबार में कदम नहीं धरा। सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी (1296-1316 ई.) ख़्वाजा औलिया के श्रद्धालु थे। उन्होंने उन्हें एक जागीर देनी चाही, परन्तु ख़्वाजा ने अस्वीकार कर दिया। किसी सुल्तान के दरबार में जाना उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा के ख़िलाफ़ समझा। यहां तक कि वे ना ही किसी सुल्तान को अपने यहाँ आने देते थे, यदि आ ही जाता तो वे दूसरे रास्ते से घर से निकल जाते थे। उनके द्वारा यह कहा गया काफ़ी प्रसिद्ध है, “मेरे घर के दो दरवाज़े हैं, अगर सुल्तान एक से अंदर आता है तो मैं दूसरे से बाहर चला जाता हूं।” यहां तक कि सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने जब उन्हें बातचीत का निमंत्रण दिया तो उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया।

यह भी कहा जाता है कि ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (1320-25 ई.) ने बंगाल-विजय से लौटते समय ख़्वाजा औलिया को संदेश भेजा था कि वह दिल्ली छोड़े दें। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने इस पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा था, “हुनूज दिल्ली दूर अस्त” यानी अभी दिल्ली दूर है। किसी घटना के कारण सुल्तान दिल्ली लौटने से पहले ही मर गया था। राजदरबार से उनके दूर रहने का एक प्रमुख कारण यह था कि वे उलेमा के साथ किसी तरह का विवाद उत्पन्न करना नहीं चाहते थे। उन दिनों सुल्तान के दरबार में उलेमाओं की तूती बोलती थी। ख़्वाजा की अत्यंत लोकप्रियता से कुछ उलेमा ईर्ष्या करते थे। उलेमाओं ने सुल्तान की नाराज़गी का लाभ उठाकर एक महज़र (न्यायसभा) आयोजित किया। इसमें समाअ को विवादित घोषित करते हुए ख़्वाजा के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाही। सुल्तान ख़ुद न्यायाधीश बना। लेकिन ख़्वाजा लोगों में इतने लोकप्रिय थे कि इसके डर से उनके खिलाफ़ कोई निर्णय न ले सके।

दिल्ली के शासकों के तौर तरीक़ों से दूर रहकर वे जनसेवा में प्रवृत्त रहे। किसी का दिया स्वीकार करना उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था। कई-कई दिन भूखे रह लेते थे, लेकिन किसी से कुछ मांगते नहीं थे। उन दिनों वे कहा करते मैं तो ईश्वर का मेहमान हूं। मुझे क्या किसी से लेना-देना। अत्यंत पावन और पवित्र जीवन जीकर उन्होंने वैराग्य और सहनशीलता की अद्भुत मिसाल क़ायम की। वे सभी धर्मों के लोगों के बीच लोकप्रिय थे। उनके उपदेशों ने लोगों के दिलों को शांति प्रदान की। उन्होंने सामाजिक तनाव को कम करने के लिए लोगों को न सिर्फ़ प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया बल्कि अपने शिष्यों को निरंतर अन्य सामाजिक उत्तरदायित्व की भी याद दिलाते रहे।

तत्कालीन समाज में हिंदू-मुसलमानों की एकता और समाज-सुधार में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। विभिन्न वर्गों और धर्मों के लोगों के बीच वे किसी प्रकार का भेद भाव नहीं समझते थे। उनकी ख़ानक़ाह, जमातख़ाना और लंगर सभी लोगों के लिए समान रूप से खुला रहता था। मनुष्य मात्र की एकता के वे सच्चे प्रतीक थे। समाज-सेवा और मानव विकास उनका एक मात्र ध्येय था। आत्म-निंदा पर ध्यान न देना और अपराधी को क्षमा कर देना उनके विशेष गुण थे। समाज में आर्थिक बंधनों द्वारा ठुकराए हुए लोगों के लिए वे परम हितैषी थे। उनके इन अद्वितीय गुणों के कारण दिल्ली के सभी वर्गों के लोग उनपर अत्यंत श्रद्धा और विश्वास रखते थे।

ख़्वाजा निज़ामउद्दीन औलिया प्रकांड विद्वान थे। उन्हें क़ुरआन के भाष्याकार के रूप में भी याद किया जाता है। वे हदीस के संकलनकर्ता भी थे। धर्मशास्त्री और दार्शनिक होने के साथ-साथ वे कवि और साहित्यकार भी थे। उनके लिखे होली और फाग आम लोगों में आज भी लोकप्रिय हैं। संगीत में उनकी काफ़ी रुचि थी। सिद्ध और नाथ योगियों की बड़ी संख्या में बाबा की ख़ानक़ाह में गोष्ठी होती और विभिन्न विषयों पर चर्चा होती थी।

साईं सेवत गल गई, मास न रहिया देह

तब लग साईं सेवसाँ, जब लग हौं सो गेह

उन्हें महबूब-ए-इलाही और सुल्तान जी के नाम से भी पुकारा जाता था। वे दिल्ली में ही रहते थे और वहीं उनका देहान्त 3 अप्रैल 1325 को हुआ। उनके स्वर्गवास पर उनके शिष्य और सुप्रसिद्ध कवि हज़रत अमीर खुसरो ने कहा था :

गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस।

चल ‘खुसरौ’ घर आपने, रैन भई चहुँ देस॥

उनकी अपनी बनाई हुई मस्जिद के आंगन में उनका भव्य मज़ार है। दक्षिण दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का मक़बरा सूफ़ियों के लिए ही नहीं अन्य मतावलंबियों के लिए भी एक पवित्र दरग़ाह है। इस्लामी कैलेण्डर के अनुसार प्रति वर्ष चौथे महीने की सतरहवीं तारीख़ को उनकी याद में उनकी दरगाह पर एक मेला लगता है जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों भाग लेते हैं।

सूफ़ी शब्द का अर्थ सूफ़ियों ने विश्व-प्रेम का पाठ पढ़ाया



धार्मिक सहिष्णुता और उदारता आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता रही है। मध्यकालीन भारत में मुसलमानों के आगमन से और खासकर दिल्ली सलतनत की स्थापना के साथ-साथ हिन्दू और इसलाम धर्म के बीच गहन संपर्क हुआ। इस दीर्घकालीन संपर्क ने दोनों धर्मों के अनुयाइयों को न सिर्फ़ परस्पर प्रभावित किया, बल्कि उनके बीच धारणाओं, धार्मिक विचारों और प्रथाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान भी हुआ। भक्ति और प्रेम की भावना पर आधारित जिस पंथ ने इसलाम धर्म में लोकप्रियता प्राप्त की उसे सूफ़ी पंथ कहते हैं। सूफ़ी संप्रदाय का उदय इसलाम के उदय के साथ ही हुआ, किन्तु एक आन्दोलन के रूप में इसलाम की नीतिगत ढांचे के तहत इसे मध्य काल में बहुत लोकप्रियता मिली। सूफ़ी फ़क़ीरों ने अपने प्रेमाख्यानों द्वारा हिन्दू-मुस्लिम हृदय के अजनबीपन को मनोवैज्ञानिक ढंग से दूर किया और साथ-साथ खण्डनात्मकता के स्थान पर दोनों संस्कृतियों का सुन्दर सामंजस्य प्रस्तुत किया। सूफी चिंतन वस्तुतः उस सत्य का उदघाटन है जिसमें जीवात्मा और परमात्मा की अंतरंगता के अनेक रहस्य गुम्फित हैं।
सूफ़ी शब्द का अर्थ
सूफ़ी शब्द का प्रयोग संतों के उस विशेष वर्ग के लिए किया गया, जिन्होंने स्वेच्छापूर्वक सांसारिक सुख-सुविधाओं से मुंह मोड़कर अपने लिए अध्यात्म-साधना का दुर्गम पथ निर्धारित किया। सूफ़ी सहायक को ब्रह्मज्ञानी और अध्यात्मवादी माना जाता रहा है। वैसे भी “सूफ़ी” वही कहलाता है जो तसव्वुफ़ का अनुयायी और सारे धर्मों से प्रेम करने वाला होता है। उन्होंने सादे जीवन और निश्छल ईश्वरीय प्रेम पर ज़ोर दिया। फिर भी सूफ़ी शब्द की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में काफ़ी मतभेद रहा है।
विद्वानों ने अनेक दृष्टिकोणों से सूफ़ी शब्द को व्युत्पन्न करने का प्रयास किया है। आठवीं-नौवीं शताब्दी में जब इस विचारधारा का पंथ अस्तित्व में आया तब सूफ़ी लोग अरब में रहते थे और काफ़ी समय तक उनकी पहचान उनके ऊनी लिबासों से की जाती रही। “सूफ़” शब्द का अर्थ है ऊनी और इसीलिए वे संत जो ऊनी वस्त्र पहनते थे, सूफ़ी कहलाए। सादा जीवन व्यतीत करने वाले सूफ़ी ऊनी चोंगा पहना करते थे।
कुछ विद्वानों का मत है कि यह शब्द “सफ़” से निकला है, जिसका अर्थ सबसे आगे की पंक्ति या प्रथम पंक्ति है। सूफ़ी अपने साहस, धैर्य और अपने उच्च चरित्र के कारण ख़ुदा के सामने प्रथम पंक्ति में होता है, इसलिए वह सूफ़ी कहलाया। आगे की पंक्ति या प्रथम श्रेणी में रखने से अभिप्राय है कि उसे क़यामत के दिन ईश्वर के समक्ष प्रथम पंक्ति में खड़ा किया जाएगा क्योंकि उसने जीवन भर ईश्वर स्मरण ही किया है।
कुछ दूसरे लोग इस शब्द को “सुफ़्फा” से बना हुआ मानते हैं, जिसका अर्थ होता है “चबूतरा”। इस मत के मानने वालों का कहना है कि साऊदी अरब के एक पवित्र नगर मदीना में मुहम्मद साहब द्वारा बनवाई मस्जिद के सामने के के चबूतरे पर एकत्र होकर भक्ति करते, चिन्तन-मनन करते, ईश्वर के गुणगान करते और ज्ञानोपार्जन में लगे रहते लोग सूफ़ी कहलाए। उन्हें “अहले-सुफ़्फ़ा” अर्थात “चबूतरे पर बैठे लोग” कहा जाने लगा।
एक अन्य मत के अनुसार अरबी भाषा में चटाई को सूफ़ी कहते हैं। सूफ़ी संत चटाई पर कतार में बैठ कर ईश्वर की उपासना किया करते थे, और इसलिए वे सूफ़ी कहलाए।
इस शब्द की एक अन्य व्युत्पत्ति “सोफ़िया” से भी कही गई है जिसका अर्थ है - ज्ञान। इस ज्ञान का वैशिष्ट्य उसकी निर्मलता में निहित है। निर्मल प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति ही सूफ़ी कहलाए।
एक और व्युत्पत्ति “सूफ़ाह” शब्द है जिसका अभिप्राय सांसारिकता से विरत हो ख़ुदा की सेवा में निरत रहने वालों से है। इसी तरह “बनू सूफ़ा” एक घुमक्कड़ जाति विशेष है।
कुछ विद्वानों का मत है कि सूफ़ी शब्द की उत्पत्ति “सफ़ा” से हुई है जिसका अर्थ होता है विशुद्धता, पवित्रता या चित्त की शुद्धता। इस मत के अनुसार सूफ़ी वह होता है जो सात्विक आचरण द्वारा धार्मिक या आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करता है। वह सांसारिकता से दूर रहता है। जिसका हृदय सांसारिक वासनाओं से पवित्र होता है। वह ईश्वर के प्रति प्रेम भाव से समर्पित होकर ईश्वर की प्रेमोपासना करता है। इन विभिन्न मतों में सच चाहे जो भी हो सूफ़ी सम्प्रदाय की प्रवृत्तियों को देखने से लगता है कि अंतिम व्याख्या इसके नाम के लिए अधिक उपयुक्त है। वह व्यक्ति जो प्रेम के वास्ते मुसफ़्फ़ा होता है साफ़ी है और जो व्यक्ति ईश्वर के प्रेम में डूबा हो, वही सूफ़ी होता है। ऐसे व्यक्ति वैभवशाली जीवन के विरोधी थे। सूफ़ियों के मतानुसार मुहम्मद साहब को ईश्वर से दो प्रकार की वाणियां प्राप्त हुई थीं – “इल्म-ए-सकीनां” (ग्रन्थ ग्रंथित ज्ञान), जो क़ुरान शरीफ़ में संगृहीत है। दूसरी “इल्म-ए-सिना”, जो हृदय में निहित थी। जहां आम लोगों ने ज्ञान का केवल बाह्य पक्ष ही लिया , वहीं सूफ़ियों ने दोनों प्रकार के ज्ञान को अपनाया। ज्ञान का वह प्रकार भी जिसे तर्क से जाना जा सकता है और ज्ञान का वह आंतरिक प्रकार भी जो बुद्धि की सीमा से बाहर है और जिसके लिए एकाग्रता और संयम के साथ साधना करनी पड़ती है। वे बाह्य आडंबरों के स्थान पर भीतरी तत्वों पर बल देते हैं। वे व्यक्तिगत साधनारत होते हुए भी लोक की अनदेखी नहीं करते। उसके मन में परमात्मा के साथ-साथ प्राणीमात्र के प्रति उत्कट अनुराग भरा होता है। उनके अन्दर गहरा मानवीय मूल्य-बोध होता है, जो संप्रदाय और साधना की सीमाओं में नहीं अटता। वैचारिक उदारता उनके चरित्र का वैशिष्ट्य है। वे प्रेम को जीवन के मूल तत्व के रूप में पहचानते हैं, पर ज्ञान के प्रति द्वन्द्वात्मक भाव नहीं रखते। यह सच है कि “साधक” के लिए सूफ़ी शब्द का प्रयोग ईसा की नवीं शताब्दी से प्रचलित होने का प्रमाण मिलता है। ये सूफ़िया सूफ़ीमनिश होते थे अर्थात किसी भी धर्म या व्यक्ति से बैर न रखने वाले होते थे।

ये शहर ...


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क्या हुआ सुनने को खरी-खोटी देता है
ये शहर ही है,जो पेट को रोटी देता है !

जाकर मिल में तुम लाख बुनो कपड़े
ढकने को जिस्म, सिर्फ लंगोटी देता है !

मेहनतकश को यहाँ नहीं कुछ हासिल
गर बेचो ईमान,तो रक़म मोटी देता है !

चौकाचौंध देख, ज्यादा हसरतें न पाल
पसारने को पाँव, चादर छोटी देता है !

यहाँ गरीबों को रोटी,मयस्सर हो न हो
अमीरों के कुत्तों को,चांप-बोटी देता है !

आसां नहीं पुर-सकूं जीना यहाँ "Roz"
ज़िंदा रहने को,रोज़ नई कसौटी देता है !
~S-roz~

"शब्द किस तरह

"शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो!
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज है या
मिट्टी में गिरे हुए खून
का रंग"

लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुँह में लगाम है.
------- धूमिल

लखनऊ की विभिन्न बार के चुनाव वकीलों के बहुत बड़े वर्ग को आपस में विभाजित कर देते हैं

लखनऊ की विभिन्न बार के चुनाव वकीलों के बहुत बड़े वर्ग को आपस में विभाजित कर देते हैं .. भीषण जातिवाद , इलाका वाद , शराब , पार्टी घर घर जाकर वोट की चिरौरी - सब होता है , लेकिन माननीय और विद्वान् होने की सच्ची कम्पटीशन गायब हो जाती है .. मेरा मानना है कि सिर्फ पुलिस और वकील समाज के प्रति गंभीर हो जाएँ तो सारा भ्रस्टाचार गायब हो जायेगा .. होता ये है - कोई बड़ा अपराध हुआ और पुलिस ने मुकदमा कमजोर किया फिर माननीय विद्वान ने भी अपराधी को फिर अपराध करने के लिए जमानत दिला दी .. 19 9 2 में जब मै वकील बना , तो बड़े अरमान लेकर कोर्ट गया .. जाकर देखा जज साहेब के सामने खुलेआम पेशकार रिश्वत ले रहा है , गरीब आदमी परेशां है .. अपराधी को बचाने का - बार बार बचाने का काम , सत्य को झूठ बनाने का काम .. अरे बाप रे - मुझसे ना हो सकेगा और तब साधारण सी दूकान किराए पर लेकर और काम करने लगा .. अब आज जब सुप्रीम कोर्ट - हाई कोर्ट प्रबल हो रहीं हैं , तो क्या सेशन व् लोअर कोर्ट को प्रबल करने का काम इन चुनावों में गंभीर मुद्दे उठा कर नहीं किया जाना चाहिए , लेकिन नहीं .. माननीयों के - विद्वानों के चुनाव में भी अगर दारु - जाति - व्यक्तिगत प्रलोभन से चुनाव जीता हारा जाता है तो देश के उन अशिक्षित गंवार वोटरों ( जो दारु पैसा लेकर किसी बलात्कारी को वोट देते हैं ) और इन पढ़े लिखे विद्वान् माननीयओ में कोई फर्क नहीं बचता . वो पूरे देश का भट्ठा बैठाते हैं , और ये कानून का .. मेरी आपसे विनती है कि माननीय और विद्वान् होना साबित करिए .. सच्चे वकीलों को आगे लाईये प्लीज .. शराब पीकर ही दिल्ली का बस रेप कांड हुआ .. शराब पीकर दिए गए वोट का मतलब सत्य का बलात्कार ..कम पैसे वाला सच्चा वकील भी आपका साथी ही है .. कोई बात बुरी लगी हो तो क्षमा चाहता हूँ .. सुप्रभात

भारतीय सेना की गुप्त सूचनाएं पाकिस्तान तक पहुंचा रहा था ये क्लर्क!



जयपुर। भारतीय सेना की गुप्त सूचनाएं पाकिस्तान को देने के आरोप में सेना की सप्लाई कोर की टीपीटी कंपनी में तैनात वरिष्ठ लिपिक बी.के. सिन्हा को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस की इंटेलीजेंस विंग ने उसके घर से मोबाइल, इंटरनेट उपकरण, महत्वपूर्ण दस्तावेज आदि बरामद किए हैं। आरोपी मूलत: करीमगंज (असम) का रहने वाला है। वह अभी परिवार के साथ जयपुर के झोटवाड़ा में रहता है।
 
 
पुलिस ने उसे सात दिन के रिमांड पर लिया गया है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (इंटेलीजेंस) दलपत सिंह दिनकर ने बताया कि वह सामरिक महत्व की गुप्त सूचनाएं पाक की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के एजेंट को भेजता था।
पुलिस की विशेष शाखा को सूचना मिली थी कि साउथ वेस्ट कमांड, जयपुर में आर्मी सप्लाई कोर में वरिष्ठ लिपिक सिन्हा आर्मी की सूचनाएं काठमांडू (नेपाल) में मौजूद पाक के आईएसआई एजेंट को भेजता है।
 
इसके लिए वह चार बार प्लेन से नेपाल जा चुका है। काठमांडू आने-जाने, होटल में ठहरने का खर्चा पाक एजेंट उठाता था और इसका भुगतान नेपाली व भारतीय मुद्रा में करता था। आरोपी सिन्हा के खिलाफ ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट की धारा 3 और 3/9 के तहत केस दर्ज किया है। वह आर्मी में परिवहन विभाग से संबंधित रिकार्ड देखने का काम करता था। 
 
सेना के रिटायर्ड अफसर ने मिलवाया था पाक एजेंट से
आईजी (इंटेलीजेंस) जनार्दन शर्मा ने बताया कि आरोपी सिन्हा वर्ष 1995 में आर्मी की सप्लाई कोर में एलडीसी के पद पर भर्ती हुआ था। वर्ष 2000 से 2011 तक सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल में तैनात रहा। इसके बाद 2011 में वह पदोन्नत होकर जयपुर में वरिष्ठ लिपिक (यूडीसी) के पद पर स्थानांतरित होकर आ गया।

कंबल फाड़कर रस्सी बनाई और देश की सबसे सुरक्षित जेल से भाग निकला कैदी!



जोधपुर.देश की सबसे सुरक्षित जेल मानी जाने वाली जोधपुर सेंट्रल जेल की सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बताते हुए एक शातिर चोर गुरुवार देर रात बाद दीवार फांदकर फरार हो गया। जेल प्रशासन को इसका पता तब चला, जब शुक्रवार सुबह बंदियों की गिनती हुई और एक बदमाश उनमें नहीं था। उसे ढूंढने की कवायद के दौरान जेल की ऊंची दीवार पर लटकती कंबल फाड़कर बनाई गई रस्सी दिखाई दी, तो पता लगा कि शातिर चोर इसी रास्ते से फरार हुआ है। जोधपुर जेल में यह अपनी तरह की पहली घटना है। 
 
रातानाडा थानाधिकारी सुगनसिंह के अनुसार जेल प्रशासन की रिपोर्ट पर पुलिस ने जेल से फरार होने वाले जयपुर के नरैना थानांतर्गत ममाणा निवासी मंगलाराम उर्फ मंगलिया के खिलाफ मामला दर्ज कर तलाश शुरू की है। बताया जाता है कि वह पूर्व में भी कई बार जेल और हिरासत से भाग चुका है। इधर, जेल प्रशासन ने सुरक्षाकर्मी भगतराम, मानाराम व श्रवणराम को सस्पेंड कर दिया।हालांकि जेल प्रशासन के अधिकारी शुक्रवार को दिनभर इस संबंध में कोई भी बात करने से भी कतराते रहे।

दर्द से कराहती रही गैंगरेप पीडि़ता, हाथ ठेले पर ले जाना पड़ा अस्पताल



भीलवाड़ा.सवाईपुर में मंगलवार रात एक दलित महिला से तीन अज्ञात युवकों ने गैंग रेप किया और काफी मारा पीटा। जिससे महिला बुरी तरह घायल हो गई। अत्यधिक रक्तस्राव से महिला की हालत काफी बिगड़ गई। पीडि़ता को जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। इन युवकों ने काफी शराब पी रखी थी। पुलिस ने इस मामले में आठ संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछशुरू कर दी है।

कोटड़ी थाना प्रभारी भूपेंद्रसिंह चारण ने बताया कि कानिया गांव का एक व्यक्ति सवाईपुर में एक मोबाइल कंपनी के टावर पर चौकीदारी करता है। उसकी पत्नी व तीन बच्चे भी साथ रहते हैं। मंगलवार रात चौकीदार घर से बाहर था। पत्नी व बच्चे टावर परिसर में बने एक कमरे में सो रहे थे। रात आठ बजे किसी व्यक्ति ने महिला को आवाज दी कि उसके पति के सिर में चोट लगी है। यह सुनकर घबराई महिला ने दरवाजा खोल दिया। इसके साथ ही तीन युवक कमरे में घुस आए, जिनके चेहरों पर नकाब था। वे शराब के नशे में थे।

तीनों ने महिला से मारपीट की। बाद में तीनों ने उसके साथ सामूहिक ज्यादती की। तीनों युवकों ने महिला को धमकी दी कि चिल्लाने पर वे उसके बच्चों को मार देंगे। ज्यादती के बाद तीनों युवक बाइक से भाग गए।

हाथ ठेले पर अस्पताल ले गए

लहूलुहान पीडि़ता को उसका पति हाथ ठेले में डालकर सवाईपुर ले गया। वहां से 108 एंबुलेंस से उसे जिला अस्पताल ले जाया गया।

सड़क पर चिल्लाते रहे बच्चे

दुष्कर्मियों के भागने के बाद पीडि़ता के बच्चे रोते-बिलखते सड़क पर गए और मदद के लिए चिल्लाने लगे, लेकिन कोई मदद करने नहीं आया। ऐसे में पीडि़ता खुद ही घर से बाहर गई और पति को तलाश करने लगी। तभी वह वहां आ गया। महिला ने उसे घटना की जानकारी दी। महिला को काफी चोटें लगी थीं,

उसे जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।
घटना की सूचना मिलते ही एसपी डॉ. नितिनदीप बल्लगन सहित अन्य पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और जानकारी ली। पीडि़ता का उपचार करने वाली डॉ. सुमन शर्मा ने बताया कि ज्यादती से पीडि़ता के वेजाइना में चोट लगी है और उसे काफी रक्तस्राव हो रहा है।

भीलवाड़ा एसपी डॉ. नितिनदीप ने बताया कि सामूहिक ज्यादती के मामले में संदिग्ध आठ लोगों को थाने लाया गया है। उनसे पूछताछ चल रही है। अभी कोई सफलता नहीं मिल पाई है।



हल्दी-मेहंदी लगाकर पहुंचे दूल्हे राजा, पर अधूरा रह गया प्यार से देखा एक सपना


इंदौर। दूल्हे राजा हल्दी-मेहंदी लगाकर तैयार थे। आर्य समाज मंदिर (भागीरथपुरा) में लव मैरिज करने जा रहे थे। बुकिंग भी पहले से कर ली थी। शुक्रवार को दोस्तों के साथ सूट-बूट में मंदिर पहुंचे तो मंदिर प्रबंधन ने पूछा- दुल्हन कहां है? जवाब दिया- आ ही रही है। ..और दुल्हन के परिजन? वो तो राजी नहीं हैं, दुल्हन अकेली आएगी। मंदिर से जवाब मिला- शादी नहीं हो पाएगी। आप जा सकते हैं।
हल्दी और मेहंदी लगे आलोक कुमार (निवासी नयापुरा) के लव मैरिज का सपना इसलिए अधूरा रह गया क्योंकि उनकी लव मैरिज से ठीक दो दिन पहले हाई कोर्ट का आदेश गया है कि आर्य समाज मंदिर परिवार वालों की सहमति के बिना शादी नहीं करवाएं।आलोक के मामले में दुल्हन के परिजन की असहमति थी लिहाजा उन्हें मंदिर के मुहाने से लौटना पड़ा। उलझी कहानी को सुलझाने के लिए आलोक अब दुल्हन के परिजन को मनाने की तैयारी में हैं। भास्कर से उन्होंने कहा-अब शादी तब ही करूंगा, जब दुल्हन के परिजन तैयार हो जाएं।
मंदिर के प्रधान प्रतापसिंह आर्य ने कहा- दूल्हे को लौटाना हमें भी अच्छा नहीं लगा लेकिन क्या करते हाईकोर्ट का आदेश है कि बिना परिजनों के शादी नहीं हो। यहां तो अधिकांश लव मैरिज (अंतरजातीय विवाह) के ही मामले आते हैं।

दो साल पहले बंद की थी लव मैरिज
छावनी आर्य समाज मंदिर में दो साल पहले ही बंद कर दीं लव मैरिज - आर्य समाज मंदिर, छावनी के प्रधान वेदरत्न आर्य और आर्य वीरदल के अध्यक्ष संकेत शर्मा ने बताया में दो साल से लव मैरिज बंद ही कर रखी है।
किसी तरह की कोई परेशानी या झंझट नहीं हो इसलिए लव मैरिज नहीं करवा रहे हैं। यहां शादियां तभी करते है जब वर-वधु के माता-पिता भी साथ हों। उधर, मल्हारगंज के आर्य समाज मंदिर में अब सिर्फ अरेंज मैरिज ही होंगी। मंदिर प्रधान डॉ. दक्षदेव गौड़ के अनुसार वर-वधु और दोनों के परिजन यदि राजी हैं तो शादियां करवाएंगे।.

जो बच्ची करती थी दुष्कर्म का विरोध उसे जंजीरों से बांध रखते थे भूखा,


जयपुर। जयपुर में गांधीनगर स्थित बालिका गृह की मूक-बधिर बालिकाओं से कानोता स्थित आवाज फाउंडेशन संस्था के कर्मचारी पिछले 10 माह से दुष्कर्म कर रहे थे। 17 साल की एक बच्ची से 8 बार दुष्कर्म किया गया। अगर बच्चियां विरोध करती थी तो आरोपी उन्हें जंजीरों से बांध देते थे।
 
मारपीट करते थे और दो-दो दिन तक भूखा रखा जाता था। बच्चियों ने छह माह पहले ही फाउंडेशन की संचालिका अल्पना शर्मा को जानकारी दे दी थी, लेकिन उसने भी बच्चियों से मारपीट की। इस बीच 16 साल की एक नाबालिग गर्भवती हो गई, लेकिन आरोपियों ने उसका गुपचुप गर्भपात करा दिया। शनिवार को बाल कल्याण समिति की ओर से बालिकाओं से की गई काउंसलिंग में ये चौंकाने वाले खुलासे हुए। 
 
बच्चियों ने शरीर पर चोट के निशान भी दिखाए। काउंसलिंग के दौरान एक अन्य बच्ची के भी गर्भवती होने की बात सामने आई। जब इसकी जांच कराई तो रिपोर्ट नेगेटिव आई। आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद आवाज फाउंडेशन में अध्ययनरत अन्य बच्चों की काउंसलिंग भी कराई गई तो उन्होंने भी बालिकाओं से छेड़छाड़ और उनके साथ गलत काम करने की बात कही। पुलिस ने बच्चों के बयान लिए हैं। पुलिस ने बालिकाओं का मेडिकल मुआयना कराया है। इसकी रिपोर्ट रविवार को आएगी।

चीनी मैनेजर ने उठाई कुरान-ए-पाक, आव देखा ना ताव और फेंक दी जमीन पर


मुजफ्फराबाद. पाकि‍स्‍तान में राजनीति‍क हालात बदलने के बाद चीनी प्रधानमंत्री ली केक्‍वि‍यांग पहली बार पाकि‍स्‍तान की यात्रा पर जाने वाले हैं तो पाक अधि‍कृत कश्‍मीर में एक चीनी मैनेजर ने कुरान का अपमान करके माहौल में तल्‍खी पैदा कर दी है। शुक्रवार को पाक अधि‍कृत कश्‍मीर में एनर्जी प्रोजेक्‍ट से जुड़े चीन के मैनेजर ली पिंग ने कुरान को उठाकर जमीन पर फेंक दि‍या। यह मामला नीलम झेलम हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्‍ट पर हुआ। इसके बाद उसके साथ काम करने वाले पाकि‍स्‍तानी नागरि‍कों ने उसे पकड़ लि‍या और पुलि‍स के हवाले कर दि‍या। 
वहां के वरि‍ष्‍ठ पुलि‍स अधि‍कारी सरदार गुलफराज ने बताया कि ली पिंग को गि‍रफ्तार कर लि‍या गया है। उसके खि‍लाफ पाकि‍स्‍तानी मजदूरों ने जमकर नारेबाजी भी की। कुरान के अपमान पर लोग उसे कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहे थे। पुलि‍स के मुताबि‍क ली को उसकी सुरक्षा के लि‍ए गि‍रफ्तार कि‍या गया है। लोगों में उसके खि‍लाफ इतना आक्रोश है कि वह उसकी हत्‍या कर सकते हैं। 
एक दूसरे पुलि‍स अधि‍कारी राजा अंसेर शहजाद ने बताया कि ली पिंग ने जो कि‍या, वह गुस्‍से में आकर कि‍या। दरअसल ली पिंग का अपने रहने वाले और वहीं पर काम करने वाले एक पाकि‍स्‍तानी डा.साजि‍द से वि‍वाद चल रहा था। उन्‍होंने डॉ.साजि‍द को कमरा खाली करने को कहा था। डॉ.साजि‍द का भी मैनेजमेंट से वि‍वाद चल रहा था जि‍सके चलते उसने कमरा खाली करने से मना कर दि‍या। इसी बात पर तैश में आकर ली पिंग ने कमरे में मौजूद डॉ.साजि‍द के सामान फेंकने शुरू कर दि‍ए। इनमें कुरान भी थी। 
वहां काम करने वाले मजदूरों ने जब ली पिंग को कुरान फेंकते देखा तो सैकड़ों की संख्‍या में इकठ्ठा हो गए। उन लोगों ने कंपनी के कार्यालय पर भी हमला कि‍या। यह लोग जुमे की नमाज के बाद काफी संख्‍या में इकठ्ठा हो गए थे। इन लोगों ने वहां मौजूद वाहनों में तोड़फोड़ की और कंपनी की इमारत के शीशे और गेट तोड़ डाले। बताते चलें कि पाकि‍स्‍तान में ईशनिंदा को अक्षम्‍य अपराध समझा जाता है और इसके चलते वहां पहले भी कई लोगों की हत्‍या हो चुकी है।

नॉर्थ कोरि‍या ने अचानक दाग दीं तीन मि‍साइलें, अमेरि‍का को आया पसीना



सि‍योल. नॉर्थ कोरि‍या ने शनि‍वार को कम दूरी तक मार करने वाली तीन मि‍साइल फायर की हैं। बताया  जा रहा है कि टेस्‍टिंग के लि‍ए इन्‍हें जापानी समुद्री सीमा की तरफ फायर कि‍या गया। साउथ कोरि‍या के रक्षा मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। रक्षा मंत्रालय के मुताबि‍क नॉर्थ कोरि‍या ने शनि‍वार की सुबह दो मि‍साइलें दागीं और तीसरी मि‍साइल दोपहर में दागी गई। साउथ कोरि‍या नॉर्थ कोरि‍या की लगभग सभी हरकतों पर नजर रखे हुए है। (पढ़ें- दो सौ मि‍साइलें एक साथ दाग सकता है नॉर्थ कोरि‍या
 
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि नॉर्थ कोरि‍या ने यह मि‍साइल युद्धाभ्‍यास के तहत दागी हैं। इससे पहले इसी हफ्ते साउथ कोरि‍या और अमेरि‍का की सेना संयुक्‍त युद्धाभ्‍यास कर चुकी हैं। इस युद्धाभ्‍यास को नॉर्थ कोरि‍या ने युद्ध की तैयारी कहा था। बता दें कि नॉर्थ कोरि‍या के न्‍यूक्‍लि‍यर टेस्‍ट के बाद से उसकी अमेरि‍का और साउथ कोरि‍या के साथ तनातनी चल रही है और नॉर्थ कोरि‍या ने अपनी धमकि‍यों से अमेरि‍का की नाक में दम कर रखा है। इस वजह से अमेरि‍का ने भी अपनी सेना वहां तैनात कर दी है। वहां तैनात अमेरि‍की सेना के पास परमाणु क्षमता से लैस लड़ाकू वि‍मान भी हैं। पि‍छले हफ्ते हुए युद्धाभ्‍यास में इन्‍हें भी टेस्‍ट करके देखा जा चुका है। 
 
अमेरि‍की रक्षा वि‍भाग के एक अधि‍कारी ने पि‍छले हफ्ते बताया था कि नॉर्थ कोरि‍या ने अपने राष्‍ट्रि‍य दि‍न 15 अप्रैल को अपने दो मि‍साइल लांचर मौके से हटा लि‍ए थे। साउथ कोरि‍या और अमेरि‍का के रक्षा वि‍भाग के अधि‍कारि‍यों को इस बात की चिंता है कि अगर नॉर्थ कोरि‍या ने अपनी मुसुडान मि‍साइल का टेस्‍ट किया तो कोरि‍यन प्रायद्वीप में तनाव बढ़ जाएगा। 
प्‍योंगयांग. नॉर्थ कोरि‍या के नेता कि‍म जोंग उन अपने मि‍साइल और परमाणु बम प्रेम के साथ ही हमेशा तलवार लेकर धमकाने के लि‍ए मशहूर हैं। लेकि‍न कि‍म जोंग उन को महि‍लाओं से भी बड़ा लगाव है। मि‍साइल प्रेमी कि‍म की जिंदगी में कुछ महि‍लाएं भी रही हैं जि‍नको उन्‍होंने दुनि‍या से हमेशा छुपाकर रखा। हाल ही में सामने आया है कि कि‍सी दूसरी महि‍ला से उन्‍हें एक बेटी भी है। बताते चलें कि कि‍म जोंग की शादी 2009 में री सॉल जू से हुई थी जि‍सके बाद पि‍छले साल री सॉल जू ने एक बेटी को जन्‍म दि‍या था। दूसरी बेटी की बात सामने आने के बाद यह साफ हो गया है कि कि‍म जोंग उन दो बेटि‍यों के पि‍ता तो हैं ही, पत्‍नी के अलावा दूसरी महि‍ला भी उनकी जिंदगी में है। 
 
बीजिंग के एक सूत्र ने साउथ कोरि‍या से नि‍कलने वाले अखबार को बताया कि कि री सॉल ने पि‍छले साल एक बच्‍ची को जन्‍म दि‍या। इस बच्‍ची के अलावा उनके कि‍म के एक बेटी भी है जो 2010 में पैदा हुई। अपने इस कथन को सि‍द्ध करने के लि‍ए उक्‍त सूत्र ने तर्क दि‍या कि री सॉल ने 2010 में उन्‍हासु ऑर्केस्‍ट्रा में परफॉरमेंस दी थी। यानि कि वह 2010 में गर्भवती नहीं थीं क्‍योंकि नॉर्थ कोरि‍या में गर्भवती स्‍त्री का स्‍टेज पर जाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। अगर वह गर्भवती होतीं तो स्‍टेज पर अपना कार्यक्रम न प्रस्‍तुत करतीं।

रिसर्च से खुला राज, गर्मियों में ही क्‍यों सेक्‍स पसंद करते थे मिस्रवाले



प्राचीन मिस्र के लोग गर्मियों के दिनों में सेक्‍स करना क्‍यों पसंद करते थे। एक नई रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब तलाशा है। रिसर्च में बताया गया है कि प्राचीन मिस्र में लोग सेक्‍स संबंध बनाने का सबसे उपयुक्त समय जुलाई और अगस्त का महीना मानते थे। यही वजह है कि वहां ज्यादातर बच्चों का जन्म मार्च और अप्रैल में होता था। इन दो महीने में बच्‍चे पैदा होने की दर अन्य महीने की तुलना में 20 फीसदी अधिक था।
 
शोधकर्ताओं ने प्रसव के दौरान महिलाओं की मौत का कारण नील नदी में आने वाली बाढ़ को बताया है। पुरातत्‍वविद  मिस्र में 765 कब्रों की खुदाई के दौरान इस निष्कर्ष पर पहुंचे है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, प्रत्येक मृत व्यक्ति की कब्र में उसकी मौत के महीने का राज भी छुपा रहता है। सैकड़ों कब्रें उगते हुए सूरज की ओर इशारा कर रही थीं

शोधकर्ताओं के मुताबिक, गर्मी के महीने में नील नदी में बाढ़ आती थी। इस वजह से जमीन उपजाऊ हो जाती थी। प्राचीन मिस्रवासियों का नील नदी से बेहद लगाव रहा है। नील में बाढ़ के दौरान वे जश्न मनाते थे। उनका मानना था कि इस दौरान सेक्‍स करने से नील नदी का आशीर्वाद भी उनके साथ होता है।
शोधकर्ताओं ने 124 बच्चों की कब्र की जांच में पाया है कि ज्यादातार बच्चे 18 से 45 सप्ताह के होकर ही मर जाते थे।

कुरान का सन्देश

 

संगीत और योगा के माध्यम से इलाज


अगर हम किसी भी बीमारी के इलाज की बात करें तो मौजूदा समय में विज्ञान सिर्फ अपने आधार को ही सही मानता है। हो सकता है वह संगीत और योगा के माध्यम से किसी भी बीमारी के इलाज की बात को नहीं माने लेकिन भारत के लोगों का मानना है कि दवाओं के अलावा योगा और संगीत भी किसी भी बीमारी के इलाज में अहम भूमिका निभाता है। यहां पर दवाओं के साथ.साथ योगा और संगीत को भी अहम स्थानन दिया गया है। साथ ही लोग इलाज के लिए प्रार्थना पर भी विश्वास रखते हैं। यही नहीं डॉक्टर भी आज कल इलाज के लिए एलोपैथी के साथ.साथ आध्यात्मिक या संगीत थिरेपी की सलाह देते हैं।
फोर्टिस हॉस्पिटल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉण्अशोक सेठ कहते हैं कि संगीत थेरेपी हृदय रोग में काफी प्रभावशाली पाया गया है। उनके मुताबिक तनाव में संगीत से काफी राहत मिलती है। लेकिन यह रोजाना कि दिनचर्या मे संभव नहीं हो पाता है। साथ ही डॉक्टर सेठ कहते हैं कि अपने व्यस्त समय के बावजूद भी वो संगीत के लिए कुछ वक्त निकालते हैं जो कि उनकी आदत मे शामिल है।
डॉक्टरों की भी ऐसी मान्यता है कि अध्यात्म और प्रार्थना से सुधार संभव है और वो इलाज के दौरान लोगों को प्रार्थना करने के लिए भी कहते हैं। जब ऐसा लगता है कि आशाएं धूमिल हो रही हैंए जब डर लगने लगता हैए जब सब कुछ अचानक अप्रत्याशित लगने लगता है तब हम भगवान की ओर रुख करते हैं। डॉक्टबरों का मानना है कि प्रार्थना करने से तनाव से मुक्ति मिलती है और लोगों में विश्वा स का संचार होता है और इससे मरीजों में मजबूती आती है और यही कारण है कि इन दिनों कई ऐसे बड़े अस्पताल हैं जहां प्रार्थना के लिए अलग कमरे बनाए गए हैं।

हैवान डॉक्‍टर: गर्भ से निकाल कर मरोड़ देता था बच्‍चे की गर्दन या औजार घोंप कर लेता था जान



टेक्‍सास सिटी। दुनिया में सबसे सभ्‍य होने का दावा करने और माना जाने वाला अमेरिका एक बार फिर शर्मसार हुआ है। इस बार इसकी वजह वहां का एक डॉक्‍टर बना है। डॉक्‍टर डगलस कॉर्पेन के कारण न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरी मानवता का सिर शर्म से झुक गया है। पैसों के लालच में ह्यूस्‍टन का यह डॉक्‍टर अपने क्लिनिक में बच्‍चों का कत्‍लगाह चलाता था। ()
 
डॉक्‍टर डगलस कॉर्पेन अपने क्लिनिक में अजन्‍मे बच्‍चों को बड़ी बेरहमी से कत्‍ल करता था। यह खुलासा खुद उसके पूर्व कर्मचारियों ने किया है। वह गर्भ से तीन महीने तक के बच्‍चे को जिंदा निकालता था और उसके बाद गर्दन मरोड़ कर, स्‍पाइनल कॉर्ड दबा कर या औजार घोंप कर भ्रूण की हत्‍या कर देता था )। इस तरह गैरकानूनी गर्भपात और कत्‍ल करने वाले डॉक्‍टर डगलस की करतूत का खुलासा एक स्टिंग के जरिए हुआ।
 
डॉक्‍टर डगलस कॉर्पेन की पूर्व कर्मचारी ने बताया कि कई बार महिलाओं का भ्रूण क्लिनिक के बाथरूम में ही गिर जाया करता था। एक बार तो क्लिनिक के वेटिंग रूम में एक महिला का भ्रूण गिर गया तो डॉक्‍टर ने उसे उठाया और कूड़ेदान में डाल दिया। पैसे के आगे डॉक्‍टर को कुछ भी नजर नहीं आता था। क्लिनिक में गर्भपात करवाने की कीमत चार से पांच हजार डॉलर के बीच पड़ती थी। 
 
इस घटना से पहले टेक्‍सास के डॉक्‍टर केरमिट गास्‍नेल्‍लस को सजा मिल चुकी है। डॉक्‍टर केरमिट अपने अस्‍पताल में भी ऐसे ही नये जन्‍मे बच्‍चों को मौत की नींद सुलाया करता था। 
 
यह पहली बार नहीं हुआ है जब डगलस कार्पेन का नाम गर्भपात केस में आया हो। इससे पहले भी वह ऐसे ही एक केस में फंस चुके हैं। वर्ष 2004 में कम उम्र की महिला का गर्भपात करने के कारण उन्‍हें नोटिस भी मिला और सजा भी हुई थी। तब उन्‍होंने जिस महिला का गर्भपात कराया था, उसने फर्जी आईडी के जरिए अपनी उम्र अधिक बताई थी। उस केस में कोर्ट ने 90 फीसदी महिला को जिम्‍मेदार माना था तो दस फीसदी गलती डॉक्‍टर की मानी थी।

आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले की गिरफ़्तारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की अनुमति के बिना नहीं


jailसुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में पुलिस को निर्देश देते हुए कहा है कि वह सोशल साइट्स पर आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने वाले व्यक्ति को बगैर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या पुलिस महानिरीक्षक की मंजूरी के गिरफ्तार नहीं करे।
गौरतलब है विभिन्न सोशल साइट पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने के कारण पुलिस द्वारा लोगों को परेशान करने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने 16 मई को उक्त निर्देश दिया।
सुप्रीम के निर्देशानुसार जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या पुलिस महानिरीक्षक की मंजूरी के बगैर अब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने वेबसाइट पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने वाले व्यक्तियों की गिरफ्तारी पर पूरी तरह रोक लगाने का अंतरिम आदेश देने से इंकार करते हुये कहा कि राज्य सरकारों को केन्द्र सरकार के परामर्श पर सख्ती से अमल करना चाहिए।
केन्द्र सरकार के इस परामर्श में कहा गया था कि पुलिस महानिरीक्षक या पुलिस उपायुक्त या पुलिस अधीक्षक स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की अनुमति के बगैर ऐसे मामले में व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय के आदेश के साथ ही 9 जनवरी को जारी केन्द्र सरकार के परामर्श पर अमल करना राज्य सरकारों के लिए अब अनिवार्य हो गया है।
न्यायाधीशों ने अपने आदेश में कहा, हम राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले इन दिशानिर्देशों (केन्द्र के) पर अमल सुनिश्चित किया जाये। न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायालय किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से राज्य सरकारों को रोक नहीं सकता है क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए पर शीर्ष अदालत ने कोई रोक नहीं लगायी है और यह प्रावधान अभी भी सांविधानिक दृष्टि से वैध है।
फेसबुक पर टिप्पणियां लिखने वाले लोगों की गिरफ्तारी को लेकर उपजे जनाक्रोश के मद्देनजर नौ जनवरी को केन्द्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लिये परामर्श जारी किया था। इसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की पूर्वानुमति के बगैर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाये।
Posted: 16 May 2013 09:41 AM PDT
jailसुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में पुलिस को निर्देश देते हुए कहा है कि वह सोशल साइट्स पर आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने वाले व्यक्ति को बगैर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या पुलिस महानिरीक्षक की मंजूरी के गिरफ्तार नहीं करे।
गौरतलब है विभिन्न सोशल साइट पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने के कारण पुलिस द्वारा लोगों को परेशान करने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने 16 मई को उक्त निर्देश दिया।
सुप्रीम के निर्देशानुसार जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या पुलिस महानिरीक्षक की मंजूरी के बगैर अब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने वेबसाइट पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने वाले व्यक्तियों की गिरफ्तारी पर पूरी तरह रोक लगाने का अंतरिम आदेश देने से इंकार करते हुये कहा कि राज्य सरकारों को केन्द्र सरकार के परामर्श पर सख्ती से अमल करना चाहिए।
केन्द्र सरकार के इस परामर्श में कहा गया था कि पुलिस महानिरीक्षक या पुलिस उपायुक्त या पुलिस अधीक्षक स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की अनुमति के बगैर ऐसे मामले में व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय के आदेश के साथ ही 9 जनवरी को जारी केन्द्र सरकार के परामर्श पर अमल करना राज्य सरकारों के लिए अब अनिवार्य हो गया है।
न्यायाधीशों ने अपने आदेश में कहा, हम राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले इन दिशानिर्देशों (केन्द्र के) पर अमल सुनिश्चित किया जाये। न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायालय किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से राज्य सरकारों को रोक नहीं सकता है क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए पर शीर्ष अदालत ने कोई रोक नहीं लगायी है और यह प्रावधान अभी भी सांविधानिक दृष्टि से वैध है।
फेसबुक पर टिप्पणियां लिखने वाले लोगों की गिरफ्तारी को लेकर उपजे जनाक्रोश के मद्देनजर नौ जनवरी को केन्द्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लिये परामर्श जारी किया था। इसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की पूर्वानुमति के बगैर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाये।
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