दोस्तों आप से मिलियें ... आप है डोक्टर सुधीर गुप्ता .....जेसा नाम ऐसा
स्वभाव .. ऐसा काम .जी हाँ दोस्तों ,जेसा आप सभी जानते है ,सुधीर के हिंदी
मायने ,धेर्य और संयम से है, और आप ,डोक्टर सुधीर अपने चिकित्सकीय व्यवसाय
में लगातार जूझते रहने के बाद भी ,जरा भी कभी टेम्पर लूज़ नहीं करते ,,हमेशा
मुस्कराहट के साथ, चाहे मरीज़ हो ,चाहे दोस्त हो , सभी का स्वागत करते है
...कोटा के ही मूल निवासी डोक्टर सुधीर ने,आम जनता की सेवा का मुख्य
लक्ष्य, ध्यान में रखा और सरकारी नोकरी को त्याग कर पहले लोगों की आँखों को
रौशनी दी ,.मरते हुए मरीजों को जिंदगी दी ,प्यार दिया ,दुलार दिया ,अपनापं
दिया ,और फिर डोक्टर सुधीर कोटा के ही नही, हाडोती के ही नहीं, सारे
राजस्थान के चहेते और लाडले बन गए .....डोक्टर सुधीर नियमित कई गरीब लोगो
की आँखों के ओपरेशन बिना किसी प्रतिफल के करते है ,और उनकी सार सम्भाल भी
बढ़े प्यार से करते है ,यही वजह है के हर मरीज़ इन्हें और इनकी टीम के सेवा
भाव को सलाम करता है, याद करता है, इनके गुणगान करता है .,कहते है
,चिकित्सक यमराज हो गये है ,.कहते है चिकित्सक निष्टुर और लुटेरे है
,लेकिन इन्डियन मेडिकल कोंसिल का सदस्य बनते वक्त चिकित्सा को व्यवसाय नहीं
बनाने ,और मरीजों की खिदमत करने का जो संकल्प ,जो शपथ पत्र ,चिकित्सकों
द्वारा भरा जाता है, उस संकल्प ,उस शपथ का ,शत प्रतिशत उदाहरण पेश कर
डोक्टर सुधीर लोगों के दिलों के हीरो बन गये है चेहरे पर मुस्कुराहट
....विनम्रता का भाव और दिल में लोगों की खिदमत करने का जज्बा दिमाग में
जनता के हक की लड़ाई लड़ने का जूनून डोक्टर सुधीर के चरित्र में है इनकी बोडी
लेंग्वेज खुद पुकार कर कहती है के वोह वर्तमान लुट खसोट के हालत से जरा भी
खुश नहीं है और वोह इस हालात को बदलना चाहते है ....चिकित्सा क्षेत्र में
व्यस्तता के बाद भी पर्यावरण और वन्य जीव प्रेम के चलते आप कोटा में हर साल
कुछ ना कुछ संघर्ष करते रहते है कोटा में दरा मुकन्दरा हिल के लियें आपका
आन्दोलन कामयाब रहा और अब केंद्र व् राजस्थान सरकार वहां वन्य जीव सुरक्षित
अभ्यारण्य पार्क बना रही है .रोते हुए के आंसू पोंछना .गुमसुम परेशान बेठे
हुए को हंसाना उसकी परेशानिया दूर करने का जो स्वभाव डोक्टर सुधीर को
प्रक्रति ने दिया है उस स्वभाव से डोक्टर सुधीर कोटा में हर वर्ग हर समाज
के हर दिल अज़ीज़ है केवल रचनात्मक काम करना आलोचकों की आलोचनाओं पर ध्यान
दिए बगेर मुस्कुरा कर उनकी आलोचना का जवाब देना इनकी प्रवृत्ति है वोह
कहते है लोगों के जवाब देने में हम जितना वक्त खर्च करेंगे इतने वक्त में
तो हम दर्जन भर लोगों को आँखों की रौशनी देंगे उनके दुःख दर्द हरेंगे और
इसीलियें कहते है के डोक्टर सुधीर जेसा नाम वेसा काम धेर्य और संयम से
लोगों की सेवा समर्पण भाव से लोगों को अपना बनाने के लियें जो कुछ भी बन
पढ़े वोह करना इनका शोक है ऐसी शख्सियत को सलाम आदाब सेल्यूट .........
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
24 मई 2013
दोस्तों आप से मिलियें ... आप है डोक्टर सुधीर गुप्ता .....जेसा नाम ऐसा स्वभाव .. ऐसा काम .जी हाँ दोस्तों ,जेसा आप सभी जानते है ,सुधीर के हिंदी मायने ,धेर्य और संयम से है, और आप ,डोक्टर सुधीर अपने चिकित्सकीय व्यवसाय में लगातार जूझते रहने के बाद भी ,जरा भी कभी टेम्पर लूज़ नहीं करते
कविता लफंगों की बस्ती से गुजरती सहमी लडकी सी
"सुबोध और अबोध के सौन्दर्यबोध के बीच
कविता लफंगों की बस्ती से गुजरती सहमी लडकी सी
साहित्यिक सड़क पर चल रही है
कुछ के लिए श्रृंगार है
कुछ के लिए प्रतिकार है कुछ के लिए अंगार है
कुछ के लिए प्यार का इजहार है
कुछ के लिए साहित्य की मंडी या ये बाजार है
कुछ शब्द अभागन से
कुछ शब्द सुहागन से
कुछ सहमे से सपने
कुछ बिछड़े से अपने
कुछ दावानल से दया मांगते देवदार के बृक्ष काँखते कविता सा कुछ
कुछ की गुडिया
कुछ की चिड़िया
कुछ नदियाँ कलकल बहती सी
कुछ सदियाँ पलपल गुजर रहीं
वह हवा ...हवा में तितली सी इठलाती सी वह याद तुम्हारी
वह तुलसी का पौधा ...पौधे की पूजा करती माताएं
वह गोधूली में घर आती वह गाय रंभाती सी
वह बहनों का अंदाज़ निराला सा
वह भाभी का तिर्यक सा मुस्काना
वह दादी की भजनों में भींगी बेवस कराह
वह बाबा का प्यार में डांट रहा खूसट चेहरा
कविता में अब लुप्तप्राय सी माँ बहनों और याद पिता की
बेटी पर तो इक्का दुक्का दिखती हैं पर बेटों पर प्रायः नहीं दिखी कविता
कुछ काँटों से चुभते हैं
कुछ प्रश्न यहाँ हिलते हैं पत्तों से
कुछ पतझड़ में सूखे पेड़ यहाँ रोमांचित से
कुछ मुरझाये पौधे गमलों में सिंचित से
वह गौरैया के झुण्ड गिद्ध को देख रहे हैं चिंतित से
इन परिदृश्यों के बीच गुजरती एक परी सी शब्दों की
---वह कविता है ." ----राजीव चतुर्वेदी
"सुबोध और अबोध के सौन्दर्यबोध के बीच
कविता लफंगों की बस्ती से गुजरती सहमी लडकी सी
साहित्यिक सड़क पर चल रही है
कुछ के लिए श्रृंगार है
कुछ के लिए प्रतिकार है कुछ के लिए अंगार है
कुछ के लिए प्यार का इजहार है
कुछ के लिए साहित्य की मंडी या ये बाजार है
कुछ शब्द अभागन से
कुछ शब्द सुहागन से
कुछ सहमे से सपने
कुछ बिछड़े से अपने
कुछ दावानल से दया मांगते देवदार के बृक्ष काँखते कविता सा कुछ
कुछ की गुडिया
कुछ की चिड़िया
कुछ नदियाँ कलकल बहती सी
कुछ सदियाँ पलपल गुजर रहीं
वह हवा ...हवा में तितली सी इठलाती सी वह याद तुम्हारी
वह तुलसी का पौधा ...पौधे की पूजा करती माताएं
वह गोधूली में घर आती वह गाय रंभाती सी
वह बहनों का अंदाज़ निराला सा
वह भाभी का तिर्यक सा मुस्काना
वह दादी की भजनों में भींगी बेवस कराह
वह बाबा का प्यार में डांट रहा खूसट चेहरा
कविता में अब लुप्तप्राय सी माँ बहनों और याद पिता की
बेटी पर तो इक्का दुक्का दिखती हैं पर बेटों पर प्रायः नहीं दिखी कविता
कुछ काँटों से चुभते हैं
कुछ प्रश्न यहाँ हिलते हैं पत्तों से
कुछ पतझड़ में सूखे पेड़ यहाँ रोमांचित से
कुछ मुरझाये पौधे गमलों में सिंचित से
वह गौरैया के झुण्ड गिद्ध को देख रहे हैं चिंतित से
इन परिदृश्यों के बीच गुजरती एक परी सी शब्दों की
---वह कविता है ." ----राजीव चतुर्वेदी
कविता लफंगों की बस्ती से गुजरती सहमी लडकी सी
साहित्यिक सड़क पर चल रही है
कुछ के लिए श्रृंगार है
कुछ के लिए प्रतिकार है कुछ के लिए अंगार है
कुछ के लिए प्यार का इजहार है
कुछ के लिए साहित्य की मंडी या ये बाजार है
कुछ शब्द अभागन से
कुछ शब्द सुहागन से
कुछ सहमे से सपने
कुछ बिछड़े से अपने
कुछ दावानल से दया मांगते देवदार के बृक्ष काँखते कविता सा कुछ
कुछ की गुडिया
कुछ की चिड़िया
कुछ नदियाँ कलकल बहती सी
कुछ सदियाँ पलपल गुजर रहीं
वह हवा ...हवा में तितली सी इठलाती सी वह याद तुम्हारी
वह तुलसी का पौधा ...पौधे की पूजा करती माताएं
वह गोधूली में घर आती वह गाय रंभाती सी
वह बहनों का अंदाज़ निराला सा
वह भाभी का तिर्यक सा मुस्काना
वह दादी की भजनों में भींगी बेवस कराह
वह बाबा का प्यार में डांट रहा खूसट चेहरा
कविता में अब लुप्तप्राय सी माँ बहनों और याद पिता की
बेटी पर तो इक्का दुक्का दिखती हैं पर बेटों पर प्रायः नहीं दिखी कविता
कुछ काँटों से चुभते हैं
कुछ प्रश्न यहाँ हिलते हैं पत्तों से
कुछ पतझड़ में सूखे पेड़ यहाँ रोमांचित से
कुछ मुरझाये पौधे गमलों में सिंचित से
वह गौरैया के झुण्ड गिद्ध को देख रहे हैं चिंतित से
इन परिदृश्यों के बीच गुजरती एक परी सी शब्दों की
---वह कविता है ." ----राजीव चतुर्वेदी
देवर्षि नारद : पत्रकारिता के पितृ पुरुष - अजहर हाशमी
देवर्षि नारद नाम सुनते ही इधर-उधर विचरण करने वाले व्यक्तित्व की अनुभूति होती है। आम धारणा यही है कि देवर्षि नारद ऐसी 'विभूति' हैं जो 'इधर की उधर' करते रहते हैं। प्रायः नारद को चुगलखोर के रूप में जानते हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। मेरा मत है कि नारद इधर-उधर घूमते हुए संवाद-संकलन का कार्य करते हैं। इस प्रकार एक घुमक्कड़, किंतु सही और सक्रिय-सार्थक संवाददाता की भूमिका निभाते हैं और अधिक स्पष्ट शब्दों में कहूं तो यह कि देवर्षि ही नहीं दिव्य पत्रकार भी हैं नारद।
मेरा यह भी मत है कि महर्षि वेदव्यास विश्व के पहले संपादक हैं- क्योंकि उन्होंने वेदों का संपादन करके यह निश्चित किया कि कौन-सा मंत्र किस वेद में जाएगा अर्थात् ऋग्वेद में कौन-से मंत्र होंगे और यजुर्वेद में कौन से, सामवेद में कौन से मंत्र होंगे तथा अर्थर्ववेद में कौन से? वेदों के श्रेणीकरण और सूचीकरण का कार्य भी वेदव्यास ने किया और वेदों के संपादन का यह कार्य महाभारत के लेखन से भी अधिक कठिन और महत्वपूर्ण था।
देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता हैं, क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरुष/पुरोधा पुरुष/पितृ पुरुष हैं।
जो इधर से उधर घूमते हैं तो संवाद का सेतु ही बनाते हैं। जब सेतु बनाया जाता है तो दो बिंदुओं या दो सिरों को मिलाने का कार्य किया जाता है। दरअसल देवर्षि नारद भी इधर और उधर के दो बिंदुओं के बीच संवाद का सेतु स्थापित करने के लिए संवाददाता का कार्य करते हैं।
इस प्रकार नारद संवाद का सेतु जोड़ने का कार्य करते हैं तोड़ने का नहीं। परंतु चूंकि अपने ही पिता ब्रह्मा के शाप के वशीभूत (देवर्षि नारद को ब्रह्मा का मानस-पुत्र माना जाता है। ब्रह्मा के कार्य में पैदा होते ही नारद ने कुछ बाधा उपस्थित की। अतः उन्होंने नारद को एक स्थान पर स्थित न रहकर घूमते रहने का शाप दे दिया।)
सच तो यह है कि नारद घूमते हुए सीधे संवाद कर रहे हैं और सीधे संवाद भेज रहे हैं इसलिए नारद सतत सजग-सक्रिय हैं यानी नारद का संवाद 'टेबल-रिपोर्टिंग' नहीं 'स्पॉट-रिपोर्टिंग' है इसलिए उसमें जीवंतता है।
मेरे मत में पत्रकारिता, पाखंड की पीठ पर चुनौती का चाबुक है और देवर्षि नारद इधर-उधर घूमते हुए जो पाखंड देखते हैं उसे खंड-खंड करने के लिए ही तो लोकमंगल की दृष्टि से संवाद करते हैं।
रामावतार से लेकर कृष्णावतार तक नारद की पत्रकारिता लोकमंगल की ही पत्रकारिता और लोकहित का ही संवाद-संकलन है। उनके 'इधर-उधर' संवाद करने से जब राम का रावण से या कृष्ण का कंस से दंगल होता है तभी तो लोक का मंगल होता है। अतः मेरे मत में देवर्षि नारद दिव्य पत्रकार के रूप में लोकमंडल के संवाददाता हैं।
नारद जयंती आज, भगवान विष्णु के ही अवतार हैं देवर्षि
शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में देवर्षि नारद को भगवान का मन भी कहा गया है। ग्रंथों में देवर्षि नारद को भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। श्रीमद्भागवतगीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ,
नारद मुनि, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रो मे से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों मे से एक माने जाते है।
नारद मुनि, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रो मे से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों मे से एक माने जाते है।
देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है।
देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है।
मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण
ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - देवर्षीणाम्चनारद:।
देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में
भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और
सात्वततंत्र(जिसे <न्
द्धह्मद्गद्घ="द्वड्डद्बद्यह्लश्र:नारद-पाञ्चरात्र">नारद-पाञ्चरात्र भी
कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का
मार्ग दिखाया गया है।
{mosimage}वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन है- देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले ऋषिगण देवर्षिनाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी,स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात,गर्भावस्था में ही अज्ञान रूपी अंधकार के नष्ट हो जाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्तातथा अपने ऐश्वर्य (सिद्धियों) के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियोंसे घिरे हुए देवता, द्विज और नृपदेवर्षि कहे जाते हैं।
इसी पुराण में आगे लिखा है कि धर्म, पुलस्त्य,क्रतु, पुलह,प्रत्यूष,प्रभास और कश्यप - इनके पुत्रों को देवर्षिका पद प्राप्त हुआ। धर्म के पुत्र नर एवं नारायण, क्रतु के पुत्र बालखिल्यगण,पुलहके पुत्र कर्दम, पुलस्त्यके पुत्र कुबेर, प्रत्यूषके पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गए, किंतु जनसाधारण देवर्षिके रूप में केवल नारदजी को ही जानता है। उनकी जैसी प्रसिद्धि किसी और को नहीं मिली। वायुपुराण में बताए गए देवर्षि के सारे लक्षण नारदजी में पूर्णत:घटित होते हैं।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है - देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं। अट्ठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है। मत्स्यपुराण में वर्णित है कि श्री नारदजी ने बृहत्कल्प-प्रसंग में जिन अनेक धर्म-आख्यायिकाओं को कहा है, २५,००० श्लोकों का वह महाग्रंथ ही नारद महापुराण है। वर्तमान समय में उपलब्ध नारदपुराण २२,००० श्लोकों वाला है। ३,००० श्लोकों की न्यूनता प्राचीन पाण्डुलिपि का कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण हुई है। नारदपुराण में लगभग ७५० श्लोक ज्योतिषशास्त्र पर हैं। इनमें ज्योतिष के तीनों स्कन्ध-सिद्धांत, होरा और संहिता की सर्वागीण विवेचना की गई है। नारदसंहिता के नाम से उपलब्ध इनके एक अन्य ग्रंथ में भी ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि देवर्षिनारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी प्रधान आचार्य हैं। आजकल धार्मिक चलचित्रों और धारावाहिकों में नारदजी का जैसा चरित्र-चित्रण हो रहा है, वह देवर्षि की महानता के सामने एकदम बौना है। नारदजी के पात्र को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया जा रहा है, उससे आम आदमी में उनकी छवि लडा़ई-झगडा़ करवाने वाले व्यक्ति अथवा विदूषक की बन गई है। यह उनके प्रकाण्ड पांडित्य एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति सरासर अन्याय है। नारद जी का उपहास उडाने वाले श्रीहरि के इन अंशावतार की अवमानना के दोषी है। भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारदजी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता भी हैं। नारदजी वस्तुत: सही मायनों में देवर्षि हैं.
{mosimage}वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन है- देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले ऋषिगण देवर्षिनाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी,स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात,गर्भावस्था में ही अज्ञान रूपी अंधकार के नष्ट हो जाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्तातथा अपने ऐश्वर्य (सिद्धियों) के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियोंसे घिरे हुए देवता, द्विज और नृपदेवर्षि कहे जाते हैं।
इसी पुराण में आगे लिखा है कि धर्म, पुलस्त्य,क्रतु, पुलह,प्रत्यूष,प्रभास और कश्यप - इनके पुत्रों को देवर्षिका पद प्राप्त हुआ। धर्म के पुत्र नर एवं नारायण, क्रतु के पुत्र बालखिल्यगण,पुलहके पुत्र कर्दम, पुलस्त्यके पुत्र कुबेर, प्रत्यूषके पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गए, किंतु जनसाधारण देवर्षिके रूप में केवल नारदजी को ही जानता है। उनकी जैसी प्रसिद्धि किसी और को नहीं मिली। वायुपुराण में बताए गए देवर्षि के सारे लक्षण नारदजी में पूर्णत:घटित होते हैं।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है - देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं। अट्ठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है। मत्स्यपुराण में वर्णित है कि श्री नारदजी ने बृहत्कल्प-प्रसंग में जिन अनेक धर्म-आख्यायिकाओं को कहा है, २५,००० श्लोकों का वह महाग्रंथ ही नारद महापुराण है। वर्तमान समय में उपलब्ध नारदपुराण २२,००० श्लोकों वाला है। ३,००० श्लोकों की न्यूनता प्राचीन पाण्डुलिपि का कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण हुई है। नारदपुराण में लगभग ७५० श्लोक ज्योतिषशास्त्र पर हैं। इनमें ज्योतिष के तीनों स्कन्ध-सिद्धांत, होरा और संहिता की सर्वागीण विवेचना की गई है। नारदसंहिता के नाम से उपलब्ध इनके एक अन्य ग्रंथ में भी ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि देवर्षिनारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी प्रधान आचार्य हैं। आजकल धार्मिक चलचित्रों और धारावाहिकों में नारदजी का जैसा चरित्र-चित्रण हो रहा है, वह देवर्षि की महानता के सामने एकदम बौना है। नारदजी के पात्र को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया जा रहा है, उससे आम आदमी में उनकी छवि लडा़ई-झगडा़ करवाने वाले व्यक्ति अथवा विदूषक की बन गई है। यह उनके प्रकाण्ड पांडित्य एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति सरासर अन्याय है। नारद जी का उपहास उडाने वाले श्रीहरि के इन अंशावतार की अवमानना के दोषी है। भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारदजी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता भी हैं। नारदजी वस्तुत: सही मायनों में देवर्षि हैं.
महाराजा युधिष्ठिर की अद्वितीय सभा में देवर्षि नारद धरमराज की जय-जयकार करते हुए पधारे। उचित स्वागत व सम्मान करके धर्मराज युधिष्ठिर ने नारद को आसन ग्रहण करवाया।
महाराजा युधिष्ठिर की अद्वितीय सभा में देवर्षि नारद धरमराज की जय-जयकार
करते हुए पधारे। उचित स्वागत व सम्मान करके धर्मराज युधिष्ठिर ने नारद को
आसन ग्रहण करवाया। प्रसन्न मन से नारद ने युधिष्ठिर को धर्म-अर्थ-काम का
उपदेश दिया। यह उपदेश प्रश्नों के रूप में है और किसी भी राजा या शासक के
कर्तव्यों की एक विस्तृत सूची है। नारद ने कुल 123 प्रश्न किये, जो अपने आप
में एक पूर्ण व समृद्ध प्रशासनिक आचार संहिता है। यह प्रश्न जितने
प्रासांगिक महाभारत काल में थे उतने या उससे भी अधिक आज भी हैं। महात्मा
गाँधी ने जिस रामराज्य की कल्पना की थी उसका व्यवहारिक प्रारूप इन प्रश्नों
से स्पष्ट झलकता है। स्वभाविक है कि महाभारत और रामायणकाल की उत्कृष्ठ
भारतीय संस्कृति में हर व्यक्ति के कर्तव्यों का दिशा बोध हो। यह कर्तव्य
केवल ऐसे निर्देश नहीं थे जिनको करना नैतिक या वैधानिक रूप से अनिवार्य था
परन्तु यह ऐसा मार्गदर्शन था जिससे व्यक्ति भौतिक और सांसारिक विकास के साथ
आध्यात्मिक विकास की ओर भी अग्रसर होता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ‘गुड गवर्नेंस’ अर्थात सुशासन की चर्चाएं स्वाभाविक रूप से आवश्यक है। क्योंकि प्रशासन की जो भी व्यवस्थाएं प्रचलित हैं वे सब असुरी प्रवृत्तियों की द्योतक हैं। प्रजातंत्र को भी संख्याओं का ऐसा खेल बना दिया गया है जो श्रेष्ठवान और गुणवान के पक्ष में न होकर कुटिलता और चातुर्य के स्तंभों पर खड़ा है। नौबत यहाँ तक आ गई है कि व्यवहार की शुचिता लुप्त हो गई और शासन करना एक व्यापार हो गया। स्वाधीनता के 60 वर्ष के बाद देश में व्यापक समस्याओं के लिए विदेशी ताकतों को दोष देना उचित नहीं है। आज हम जैसे हैं, जो हैं उसके लिए हम स्वयं जिम्मेवार हैं।
वे क्या कारण हैं कि अंग्रेजी हुकूमत को हटाकर उनकी अधीनता समाप्त करके स्वाधीनता तो ली परंतु उनके तंत्रों को ही अपनाकर न तो हमने गणतंत्र बनाया और न ही हम स्व-तंत्र के निर्माता हो सके। प्रजातंत्र के नाम पर हमने अपने राजाओं के चुनाव की ऐसी प्रणाली बनाई जो श्रेष्ठता, गुणवत्ता, निष्ठा व श्रद्धा की अवहेलना करती है और अधर्म, भेद, छल, प्रपंच व असत्य पर आधारित है। एक बीमार राजनीतिक व्यवस्था तो हमने बना ली परंतु प्रशासनिक व्यवस्थाएं ज्यों-की-त्यों अपना ली। आईसीएस की जगह आईएएस हो गया परंतु भाव वही रहा। क्या कारण हैं कि जिले का वरिष्ठतम ‘पब्लिक सर्वेंट’ अधीक्षक कहलाता है। अंग्रेजी में तो इस पद का नाम और भी व्याधि का द्योतक है। जिले का सर्वोत्तम अधिकारी या तो कलेक्टर कहलाता है या फिर डिप्टी कमिश्नर। कलेक्टर अर्थात येन-प्रकेण धन और संपदा एकत्रित करना। कमिश्नर शब्द को यदि कमीशन से जोड़े तो भ्रष्टाचार तंत्र की आत्मा हो जाता है। इसका एक अर्थ दलाली और आढ़त भी है और दूसरा अर्थ अधिकृत अधिकारी है। कहीं भी शब्द में विकास, उत्थान, सेवा आदि की खुशबू नहीं है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ‘गुड गवर्नेंस’ अर्थात सुशासन की चर्चाएं स्वाभाविक रूप से आवश्यक है। क्योंकि प्रशासन की जो भी व्यवस्थाएं प्रचलित हैं वे सब असुरी प्रवृत्तियों की द्योतक हैं। प्रजातंत्र को भी संख्याओं का ऐसा खेल बना दिया गया है जो श्रेष्ठवान और गुणवान के पक्ष में न होकर कुटिलता और चातुर्य के स्तंभों पर खड़ा है। नौबत यहाँ तक आ गई है कि व्यवहार की शुचिता लुप्त हो गई और शासन करना एक व्यापार हो गया। स्वाधीनता के 60 वर्ष के बाद देश में व्यापक समस्याओं के लिए विदेशी ताकतों को दोष देना उचित नहीं है। आज हम जैसे हैं, जो हैं उसके लिए हम स्वयं जिम्मेवार हैं।
वे क्या कारण हैं कि अंग्रेजी हुकूमत को हटाकर उनकी अधीनता समाप्त करके स्वाधीनता तो ली परंतु उनके तंत्रों को ही अपनाकर न तो हमने गणतंत्र बनाया और न ही हम स्व-तंत्र के निर्माता हो सके। प्रजातंत्र के नाम पर हमने अपने राजाओं के चुनाव की ऐसी प्रणाली बनाई जो श्रेष्ठता, गुणवत्ता, निष्ठा व श्रद्धा की अवहेलना करती है और अधर्म, भेद, छल, प्रपंच व असत्य पर आधारित है। एक बीमार राजनीतिक व्यवस्था तो हमने बना ली परंतु प्रशासनिक व्यवस्थाएं ज्यों-की-त्यों अपना ली। आईसीएस की जगह आईएएस हो गया परंतु भाव वही रहा। क्या कारण हैं कि जिले का वरिष्ठतम ‘पब्लिक सर्वेंट’ अधीक्षक कहलाता है। अंग्रेजी में तो इस पद का नाम और भी व्याधि का द्योतक है। जिले का सर्वोत्तम अधिकारी या तो कलेक्टर कहलाता है या फिर डिप्टी कमिश्नर। कलेक्टर अर्थात येन-प्रकेण धन और संपदा एकत्रित करना। कमिश्नर शब्द को यदि कमीशन से जोड़े तो भ्रष्टाचार तंत्र की आत्मा हो जाता है। इसका एक अर्थ दलाली और आढ़त भी है और दूसरा अर्थ अधिकृत अधिकारी है। कहीं भी शब्द में विकास, उत्थान, सेवा आदि की खुशबू नहीं है।
शिक्षा की व्यवस्था देखने वाला व्यक्ति शिक्षा अधिकारी है। आचार्य या
प्राचार्य गुरू या गुरू नहीं है। इसी तरह से न्यायपालिका का पूरा तंत्र
वैसा ही है जैसा अंग्रेजों ने देश को गुलाम बनाये रखने के लिए बनाया। ऐसी
व्यवस्थाएं पूर्ण रूप से स्थापित हैं जो एक पूरे देश को पराधीन और दास के
रूप में रखने के लिए बनी थी। उन्हीं तंत्रों से सुशासन की अपेक्षा करना
शेखचिल्ली की सोच हो सकती है। समझदार और विवेकशील की नहीं। यदि यह सोचकर
चलेंगे कि अंग्रेजी और अंग्रेजियत ही उचित है तो भारत देश में सुशासन नहीं
हो सकता।
स्वाधीनता के बाद नयी व्यवस्थाओं के बनाने की अनिवार्यता तो सब ने मानी
परंतु नये का आधार तत्कालीन व्यवस्थाओं में ही स्तरीय परिवर्तन करके किया
गया। इस पूरी प्रक्रिया में भारतीय समाज के प्राचीन अनुभव और ज्ञान को
ध्यान में रखा गया होता तो शायद आज देश की यह स्थिति न होती। लगभग हर
प्राचीन भारतीय ग्रंथ में व्यक्ति, परिवार, समुदाय, समाज, प्रशासक, अधिकारी
आदि के कर्तव्यों की व्याख्याएं हैं। यह व्याख्याएं केवल सैद्धांतिक हों
ऐसा भी नहीं है। कृष्ण की द्वारका की व्यवस्थाएं, धर्मराज युधिष्ठिर का राज
हो या राम का प्रशासन सैद्धांतिक पक्ष का व्यवहारिक पक्ष भी इन ग्रंथों
में पर्याप्त मात्रा में प्रदर्शित है।
व्यास ने नारद के मुख से युधिष्ठिर से जो प्रश्न करवाये उनमें से हर एक अपने आप में सुशासन का एक व्यावहारिक सिद्धांत है। 123 से अधिक प्रश्नों को व्यास ने बिना किसी विराम के पूछवाया। कौतुहल का विषय यह भी है कि युधिष्ठिर ने इन प्रश्नों का उत्तर एक-एक करके नहीं दिया परंतु कुल मिलाकर यह कहा कि वे ऋषि नारद के उपदेशों के अनुसार ही कार्य करते आ रहे हैं और यह आश्वासन भी दिया कि वह इसी मार्गदर्शन के अनुसार भविष्य में भी कार्य करेंगे। देवर्षि नारद द्वारा पूछे गये प्रश्नों की कुछ व्याख्या प्रासांगिक होनी चाहिए।
हालांकि नारद द्वारा पूछा गया हर प्रश्न अपने आप में सुशासन का एक नियम है। परंतु समझने की सहजता के लिए उन्हें पांच वर्गों में बांटा जा सकता है। प्रश्नों का पहला वर्ग चार पुरूषार्थों अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से संबंधित है। पहले ही प्रश्न में नारद पूछते हैं ‘‘हे महाराज! अर्थ चिंतन के साथ आप धर्म चिंतन भी करते हैं? अर्थ चिंतन ने आपके धर्म चिंतन को दबा तो नहीं दिया? आगे के प्रश्नों में जहाँ नारद यह तो पूछते ही हैं कि धन वैभव का लोभ आपके धर्मोपार्जन की राह में रूकावट तो नहीं डालता परन्तु साथ में यह भी कहते हैं कि धर्म के ध्यान में लगे रहने से धन की आमदनी में बाधा तो नहीं पड़ती? साथ ही पूछते हैं कि कही काम की लालसा में लिप्त होकर धर्म और अर्थ के उपार्जन को आपने छोड तो नहीं दिया है? सभी प्रश्नों का मुख्य प्रश्न करते हुए पूछते हैं कि-आप ठीक समय पर धर्म, अर्थ और काम का सेवन करते रहते हैं न?
दूसरे वर्ग के प्रश्न राजा के सामाजिक विकास के कार्यों से संबंधित हैं। नारद ने आठ राज कार्य बताये और युधिष्ठिर से पूछा की क्या वह इन कार्यों को अच्छी तरह करते हैं? आठ राज कार्य-कृषि, वाणिज्य, किलों की मरम्मत, पुल बनवाना, पशुओं को चारे की सुविधा की दृष्टि से कई स्थानों में रखना, सोने तथा रत्नों की खानों से कर वसूल करना और नई बस्तियां बनाना था। नारद महाराज से यह भी पूछते हैं कि आपके राज्य के किसान तो सुखी और सम्पन्न हैं न? राज्य में स्थान-स्थान पर जल से भरे पडे तालाब व झीलें खुदी हुई हैं न? खेती तो केवल वर्षा के सहारे पर नहीं होती, किसानों को बीज और अन्न की कमी तो नहीं है? आवश्यकता होने पर आप किसानों को साधारण सूद पर ऋण देते रहते हैं न? इन प्रश्नों को सुनकर वर्तमान में किस भारतवासी के मन में घण्टियां नहीं बजेगी और ध्यान उन किसानों की तरफ नहीं जाएगा, जिन्होंने प्रशासनिक सहारा न मिलने के कारण से आत्महत्या की।
प्रश्नों का तीसरा वर्ग राजा के मंत्रियों और अधिकारियों के संबंध में है। नारद ने पूछा कि क्या शुद्ध स्वभाव वाले समझाने में समृद्ध और अच्छी परंपराओं में उत्पन्न और अनुगत व्यक्तियों को ही आप मंत्री बनाते हैं न? विश्वासी, अलोभी, प्रबंधकीय काम के जानने वाले कर्मचारियों से ही आप प्रबंध करवाते हों न? हजार मूर्खों के बदले एक पंडित को अपने यहाँ रखते हैं या नहीं? आप कार्य के स्तर के आधार पर व्यक्तियों को नियुक्त करते हैं न? शासन करने वाले मंत्री आपको हीन दृष्टि से तो नहीं देखते? कोई अच्छा काम या उपकार करता है तो आप उसे अच्छी तरह पुरस्कार और सम्मान देते हैं न? आपके भरोसे के और ईमानदार व्यक्ति ही कोष, भंडार, वाहन, द्वार, शस्त्रशाला और आमदानी की देखभाल और रक्षा करते हैं न? नारद एक कदम और आगे जाकर पूछते हैं कि कही आप कार्य करने में चतुर, आपके राज के हित को चाहने वाले प्रिय कर्मचारियों को बिना अपराध के पद से अलग तो नहीं कर देते? उत्तम, मध्ययम, अधम पुरूर्षो की जांच करके आप उन्हें वैसे ही कर्मों में लगाते हैं न?
इसी तरह से अनेक प्रश्न प्रजा की स्थिति से संबंधित हैं। प्रजा के कल्याण से संबंधित हैं। नारद पूछते हैं कि हे पृथ्वीनाथ! माता और पिता के समान राज की सब प्रजा को आप स्नेहपूर्ण एक दृष्टि से देखते हैं न? कोई आपसे शंकित तो नहीं रहता है न? क्या तुम स्त्रियों को ढांढस देकर तुम उनकी रक्षा करते हो न? हे धर्मराज! अंधे, गूंगे, लूले, देहफूटे, दीन बंधु और संन्नयासियों को उनके पिता की भांति बन कर पालते तो हो न? भ्रष्टाचार से ग्रसित आज की राजनेतिक व्यवस्था से प्रासंगिक एक प्रश्न नारद ने पूछा कि समझबूझ कर किसी सचमुच चोरी करने वाले दुष्ट चोर को चुराये माल सहित पकड़कर उस माल के लोभ में छोड़ तो नहीं देते? क्या तुम्हारे मंत्री लोभ में पड़कर धनी और दरिद्र के झगड़े में अनुचित विचार तो नहीं करते?
इसी प्रकार अनेक प्रश्न राजा के व्यक्तिगत आचार, विचार व व्यवहार के विषय में हैं जैसे-आप ठीक समय पर उठा करते हैं? पिछले पहर जागकर आप चिंतन करते हैं? आप अकेले या बहुत लोगों के साथ कभी सलाह तो नहीं करते? आपकी गुप्त मंत्रणा प्रकट होकर राज में फैल तो नहीं जाती? हे महाराज! आपके लिए मरने वाले और विपत्ति में पड़ने वाले लोगों के पुत्र, स्त्री आदि परिवार का भरण-पोषण आप करते रहते हैं न? शरण में आये शत्रु की रक्षा आप पुत्र की तरह करते हैं न? आगे नारद फिर पूछते हैं कि राजा तुम एकाग्र होकर धर्म-अर्थ का ठीक ज्ञान रखने वाले ज्ञानी पुरूषों के उपदेश सुनते रहते हो न? निंद्रा, आलस, भय, क्रोध, ढिलाई और दीर्घ शत्रुता करने वाले इन छः दोषों को तुमने दूर कर दिया है न?
नारद ने अनेकों प्रश्न राज्य की सुरक्षा, जासूसी और शत्रु पर आक्रमण की तैयारी व रणनीति से संबंधी भी किये। ऐसा लगता है कि व्यास ने इन प्रश्नों के माध्यम से न केवल राजाओं या प्रशासकों को उनके कर्तव्यों का बोध कराया परंतु उन्होंने आम प्रजा का भी जाग्रित किया कि उन्हें प्रशासकों से किस प्रकार की अपेक्षाएं करनी चाहिए। वर्तमान में यदि हम सुशासन के लिए कोई कार्य योजना बनाना चाहते हैं तो नारद के प्रश्नों के संदर्भ सुन्दर मार्गदर्शन की क्षमता रखते हैं। एक-एक प्रश्न की विस्तृत विवेचना की आवश्यकता है।
व्यास ने नारद के मुख से युधिष्ठिर से जो प्रश्न करवाये उनमें से हर एक अपने आप में सुशासन का एक व्यावहारिक सिद्धांत है। 123 से अधिक प्रश्नों को व्यास ने बिना किसी विराम के पूछवाया। कौतुहल का विषय यह भी है कि युधिष्ठिर ने इन प्रश्नों का उत्तर एक-एक करके नहीं दिया परंतु कुल मिलाकर यह कहा कि वे ऋषि नारद के उपदेशों के अनुसार ही कार्य करते आ रहे हैं और यह आश्वासन भी दिया कि वह इसी मार्गदर्शन के अनुसार भविष्य में भी कार्य करेंगे। देवर्षि नारद द्वारा पूछे गये प्रश्नों की कुछ व्याख्या प्रासांगिक होनी चाहिए।
हालांकि नारद द्वारा पूछा गया हर प्रश्न अपने आप में सुशासन का एक नियम है। परंतु समझने की सहजता के लिए उन्हें पांच वर्गों में बांटा जा सकता है। प्रश्नों का पहला वर्ग चार पुरूषार्थों अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से संबंधित है। पहले ही प्रश्न में नारद पूछते हैं ‘‘हे महाराज! अर्थ चिंतन के साथ आप धर्म चिंतन भी करते हैं? अर्थ चिंतन ने आपके धर्म चिंतन को दबा तो नहीं दिया? आगे के प्रश्नों में जहाँ नारद यह तो पूछते ही हैं कि धन वैभव का लोभ आपके धर्मोपार्जन की राह में रूकावट तो नहीं डालता परन्तु साथ में यह भी कहते हैं कि धर्म के ध्यान में लगे रहने से धन की आमदनी में बाधा तो नहीं पड़ती? साथ ही पूछते हैं कि कही काम की लालसा में लिप्त होकर धर्म और अर्थ के उपार्जन को आपने छोड तो नहीं दिया है? सभी प्रश्नों का मुख्य प्रश्न करते हुए पूछते हैं कि-आप ठीक समय पर धर्म, अर्थ और काम का सेवन करते रहते हैं न?
दूसरे वर्ग के प्रश्न राजा के सामाजिक विकास के कार्यों से संबंधित हैं। नारद ने आठ राज कार्य बताये और युधिष्ठिर से पूछा की क्या वह इन कार्यों को अच्छी तरह करते हैं? आठ राज कार्य-कृषि, वाणिज्य, किलों की मरम्मत, पुल बनवाना, पशुओं को चारे की सुविधा की दृष्टि से कई स्थानों में रखना, सोने तथा रत्नों की खानों से कर वसूल करना और नई बस्तियां बनाना था। नारद महाराज से यह भी पूछते हैं कि आपके राज्य के किसान तो सुखी और सम्पन्न हैं न? राज्य में स्थान-स्थान पर जल से भरे पडे तालाब व झीलें खुदी हुई हैं न? खेती तो केवल वर्षा के सहारे पर नहीं होती, किसानों को बीज और अन्न की कमी तो नहीं है? आवश्यकता होने पर आप किसानों को साधारण सूद पर ऋण देते रहते हैं न? इन प्रश्नों को सुनकर वर्तमान में किस भारतवासी के मन में घण्टियां नहीं बजेगी और ध्यान उन किसानों की तरफ नहीं जाएगा, जिन्होंने प्रशासनिक सहारा न मिलने के कारण से आत्महत्या की।
प्रश्नों का तीसरा वर्ग राजा के मंत्रियों और अधिकारियों के संबंध में है। नारद ने पूछा कि क्या शुद्ध स्वभाव वाले समझाने में समृद्ध और अच्छी परंपराओं में उत्पन्न और अनुगत व्यक्तियों को ही आप मंत्री बनाते हैं न? विश्वासी, अलोभी, प्रबंधकीय काम के जानने वाले कर्मचारियों से ही आप प्रबंध करवाते हों न? हजार मूर्खों के बदले एक पंडित को अपने यहाँ रखते हैं या नहीं? आप कार्य के स्तर के आधार पर व्यक्तियों को नियुक्त करते हैं न? शासन करने वाले मंत्री आपको हीन दृष्टि से तो नहीं देखते? कोई अच्छा काम या उपकार करता है तो आप उसे अच्छी तरह पुरस्कार और सम्मान देते हैं न? आपके भरोसे के और ईमानदार व्यक्ति ही कोष, भंडार, वाहन, द्वार, शस्त्रशाला और आमदानी की देखभाल और रक्षा करते हैं न? नारद एक कदम और आगे जाकर पूछते हैं कि कही आप कार्य करने में चतुर, आपके राज के हित को चाहने वाले प्रिय कर्मचारियों को बिना अपराध के पद से अलग तो नहीं कर देते? उत्तम, मध्ययम, अधम पुरूर्षो की जांच करके आप उन्हें वैसे ही कर्मों में लगाते हैं न?
इसी तरह से अनेक प्रश्न प्रजा की स्थिति से संबंधित हैं। प्रजा के कल्याण से संबंधित हैं। नारद पूछते हैं कि हे पृथ्वीनाथ! माता और पिता के समान राज की सब प्रजा को आप स्नेहपूर्ण एक दृष्टि से देखते हैं न? कोई आपसे शंकित तो नहीं रहता है न? क्या तुम स्त्रियों को ढांढस देकर तुम उनकी रक्षा करते हो न? हे धर्मराज! अंधे, गूंगे, लूले, देहफूटे, दीन बंधु और संन्नयासियों को उनके पिता की भांति बन कर पालते तो हो न? भ्रष्टाचार से ग्रसित आज की राजनेतिक व्यवस्था से प्रासंगिक एक प्रश्न नारद ने पूछा कि समझबूझ कर किसी सचमुच चोरी करने वाले दुष्ट चोर को चुराये माल सहित पकड़कर उस माल के लोभ में छोड़ तो नहीं देते? क्या तुम्हारे मंत्री लोभ में पड़कर धनी और दरिद्र के झगड़े में अनुचित विचार तो नहीं करते?
इसी प्रकार अनेक प्रश्न राजा के व्यक्तिगत आचार, विचार व व्यवहार के विषय में हैं जैसे-आप ठीक समय पर उठा करते हैं? पिछले पहर जागकर आप चिंतन करते हैं? आप अकेले या बहुत लोगों के साथ कभी सलाह तो नहीं करते? आपकी गुप्त मंत्रणा प्रकट होकर राज में फैल तो नहीं जाती? हे महाराज! आपके लिए मरने वाले और विपत्ति में पड़ने वाले लोगों के पुत्र, स्त्री आदि परिवार का भरण-पोषण आप करते रहते हैं न? शरण में आये शत्रु की रक्षा आप पुत्र की तरह करते हैं न? आगे नारद फिर पूछते हैं कि राजा तुम एकाग्र होकर धर्म-अर्थ का ठीक ज्ञान रखने वाले ज्ञानी पुरूषों के उपदेश सुनते रहते हो न? निंद्रा, आलस, भय, क्रोध, ढिलाई और दीर्घ शत्रुता करने वाले इन छः दोषों को तुमने दूर कर दिया है न?
नारद ने अनेकों प्रश्न राज्य की सुरक्षा, जासूसी और शत्रु पर आक्रमण की तैयारी व रणनीति से संबंधी भी किये। ऐसा लगता है कि व्यास ने इन प्रश्नों के माध्यम से न केवल राजाओं या प्रशासकों को उनके कर्तव्यों का बोध कराया परंतु उन्होंने आम प्रजा का भी जाग्रित किया कि उन्हें प्रशासकों से किस प्रकार की अपेक्षाएं करनी चाहिए। वर्तमान में यदि हम सुशासन के लिए कोई कार्य योजना बनाना चाहते हैं तो नारद के प्रश्नों के संदर्भ सुन्दर मार्गदर्शन की क्षमता रखते हैं। एक-एक प्रश्न की विस्तृत विवेचना की आवश्यकता है।
दुनिया का सबसे मोटा आदमी, झिझकता था डॉक्टर्स के पास जाने से
किसी भी इंसान का सबसे
बड़ा दुश्मन उसका शरीर होता है। इसलिए यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है कि
उसका ख्याल रखा जाए। अमेरिका पेसिफिक आईलैंड निवासी रिकी नापूटी का वजन 408
किग्रा है। वह दुनिया का सबसे मोटा आदमी है। अपनी विशाल कमर के कारण वह घर
के कमरे में बिस्तर पर पड़े रहने के लिए मजबूर है।
39 वर्षीय रिकी की पूरी कहानी टीएलसी चैनल ने अपने एक कार्यक्रम में
सुनाई है, तब से पूरी दुनिया में रिकी के प्रति लोगों की संवेदना व्यक्त कर
रही है। रिकी अब इस मोटापे से छुटकारा पाना चाहता है और आम इंसानों की
जिंदगी जीना चाहता है। कार्यक्रम के निर्माता की रिकी और उसकी पत्नी शेरिल
से तीन साल पहले इलाज के दौरान हुई थी।
उस दौरान रिकी अपनी मोटापे की सर्जरी की तैयारी कर रहा था। इस
कार्यक्रम में रिकी ने अपनी कहानी सुनाई कि वह किस तरह से लापरवाही बरतता
था। उसने कैमरे के सामने भी स्वीकार किया कि उसने कभी भी डॉक्टर्स के पास
जाने की कोशिश नहीं की।
परंपरा या पागलपन, कोई अपनों के साथ भी ऐसा करता है भला ?
इंदौर। पैरों में जंजीर, और उस पर लगा ताला, रिकॉर्ड तोड़ गर्मी
में धूप में दिनभर बैठने की सजा, गर्म अंगारों से दागे जाने पर उठती चीख और
छड़ी से पिटने के बाद कराह. . .यह सब थर्ड डिग्री टॉर्चर की कोई घटना नहीं
है बल्कि अंधविश्वास और भूतप्रेत के नाम पर 20 साल की लड़की से की जा रही
ज्यादती का मामला था। घटना शहर से सुदूर जगह की भी नहीं बल्कि कलेक्टोरेट
से चंद कदम दूर कर्बला मैदान की है। कोई कहता है एक हफ्ते से तो कोई कहता
है एक महीने से ज्यादा समय से लड़की यह सब झेल रही है, लेकिन उसकी चीख
सुनने वाला कोई नहीं था।
कई दिनों तक कड़ी धूप में बैठने, पैरों में जंजीर, छड़ी से पिटने का थर्ड डिग्री टॉर्चर सहने वाली युवती के लिए अंधविश्वास की बेडिय़ां आखिर टूटीं। खबर प्रकाशित होने के बाद जिला प्रशासन, महिला सशक्तीकरण विभाग, समाज कल्याण और पुलिस विभाग सक्रिय हुए। दो घंटे तक संयुक्त कार्रवाईकर प्रताडऩा झेल रही युवती को कर्बला मैदान से आजाद करवाया। अब युवती को बाणगंगा स्थित चिकित्सालय में रखा गया है। कर्बला इंतजामिया कमेटी ने अब ऐसा नहीं होने देने का आश्वासन दिया है।
कर्बला स्थित ताजियों के स्थान पर 20-21 को एक युवती कड़ी धूप में बाहर नंगे पैर बैठाया गया था। बदन पर सलवार और गुलाबी टी-शर्ट। गर्मी की तपन के कारण वह पैर तक जमीन पर नहीं रख पा रही है और न ही बदन को जमीन पर टिका पा रही थी। जानकारी के अनुसार इस युवती को पिछले एक महीने से यहीं पर जंजीरों से बांधकर रखा गया था। युवती के पैर में बंधी हुई जंजीर जाली पर बड़े ताले के साथ बंधी हुई है। हद तो तब हो गई है जबकि पिछले हफ्ते से उसके साथ मारपीट की जा रही है। उसे छड़ी से पीटा जा रहा है और गर्म अंगारों से भी दागा जा रहा था। मारपीट से जब वह युवती चिखती है तो लोगों के दिल दहल जाते हैं, लेकिन उसके साथ मारपीट करने वालों को असर तक नहीं होता था। युवती के साथ यह सब उसके शरीर में घुसी कथित आत्मा को निकालने के लिए किया जा रहा था। यह सब उसके परिजन के साथ ही मुजावर की स्वीकृति के बाद हो रहा था।
कई दिनों तक कड़ी धूप में बैठने, पैरों में जंजीर, छड़ी से पिटने का थर्ड डिग्री टॉर्चर सहने वाली युवती के लिए अंधविश्वास की बेडिय़ां आखिर टूटीं। खबर प्रकाशित होने के बाद जिला प्रशासन, महिला सशक्तीकरण विभाग, समाज कल्याण और पुलिस विभाग सक्रिय हुए। दो घंटे तक संयुक्त कार्रवाईकर प्रताडऩा झेल रही युवती को कर्बला मैदान से आजाद करवाया। अब युवती को बाणगंगा स्थित चिकित्सालय में रखा गया है। कर्बला इंतजामिया कमेटी ने अब ऐसा नहीं होने देने का आश्वासन दिया है।
कर्बला स्थित ताजियों के स्थान पर 20-21 को एक युवती कड़ी धूप में बाहर नंगे पैर बैठाया गया था। बदन पर सलवार और गुलाबी टी-शर्ट। गर्मी की तपन के कारण वह पैर तक जमीन पर नहीं रख पा रही है और न ही बदन को जमीन पर टिका पा रही थी। जानकारी के अनुसार इस युवती को पिछले एक महीने से यहीं पर जंजीरों से बांधकर रखा गया था। युवती के पैर में बंधी हुई जंजीर जाली पर बड़े ताले के साथ बंधी हुई है। हद तो तब हो गई है जबकि पिछले हफ्ते से उसके साथ मारपीट की जा रही है। उसे छड़ी से पीटा जा रहा है और गर्म अंगारों से भी दागा जा रहा था। मारपीट से जब वह युवती चिखती है तो लोगों के दिल दहल जाते हैं, लेकिन उसके साथ मारपीट करने वालों को असर तक नहीं होता था। युवती के साथ यह सब उसके शरीर में घुसी कथित आत्मा को निकालने के लिए किया जा रहा था। यह सब उसके परिजन के साथ ही मुजावर की स्वीकृति के बाद हो रहा था।
मिलने थे ब्रांडेड पकड़ा दिए चाइना मेड टैबलेट, अब गिरी गाज
उदयपुर /मावली। शिक्षा विभाग (प्रारंभिक) के मावली ब्लॉक में
26 प्रतिभावान छात्रों को ब्रांडेड के स्थान पर चाइनीज टैबलेट देने के
मामले में तीन शिक्षकों को निलंबित किया गया है, जबकि विद्यार्थी मित्र की
सेवा समाप्त कर दी गई। साथ ही ब्लॉक में टैबलेट देने की प्रक्रिया पर रोक
लगा दी गई।
भास्कर द्वारा मामले का खुलासा करने के बाद डीईओ, प्रारंभिक भरत मेहता
ने निर्देश जारी किए। उन्होंने बताया कि मावली में प्रकाशपुरा राउप्रावि
के कार्यवाहक प्रधानाध्यापक हरीश दाधीच, अध्यापक निरंजन मीणा, पलानाकला की
संस्था प्रधान दीपिका मंगरोला को निलंबित और जावदा राउप्रावि के विद्यार्थी
मित्र केशूलाल आमेटा की सेवा समाप्त कर दी है।
क्या है मामला
डिजिटल विद्यार्थी योजना में कक्षा आठवीं में दूसरे से ग्यारहवें
स्थान पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थी शामिल थे। जिन्हें 6-6
हजार के चेक दिए गए। इन चेक को एसएमसी में जमा करवाना था। मावली ब्लॉक के
तीन स्कूलों प्रकाशपुरा, पलाना कलां और जावदा स्कूल में फर्जीवाड़ा करते
हुए अभिभावकों से नकद राशि निकलवाई तथा चाइनीज टैबलेट थमाए। टैबलेट के
स्टार्ट नहीं होने, स्क्रीन नहीं चलने आदि परेशानियों पर जब अभिभावकों ने
इसे विशेषज्ञ को दिखाया तब मामले का खुलासा हुआ।
ऐसे की गई अनियमितता
जानकारी के अनुसार अध्यापकों ने चेक को स्कूल मैनेजमेंट कमेटी
(एसएमसी) में जमा करवाया तथा अभिभावकों पर दबाव बनाकर टैबलेट के नाम पर यह
राशि प्राप्त कर ली। अभिभावकों का आरोप है कि इन शिक्षकों ने फतहनगर के
श्रीजी कंप्यूटर से ये चाइनीज टैबलेट आधी कीमत में खरीदे हैं। इधर, राजसमंद
में डिप्टी का खेड़ा, रेलमगरा तथा कुरज में भी मामले सामने आए हैं। यहां
चेक के बदले सीधे पीसी टैबलेट बांटे। प्रतापगढ़ में भी 3300 रुपए में
चाइनीज टैबलेट के खरीद की पुष्टि हुई है।
बीईओ से मांगी हर छात्र की जानकारी
मावली ब्लॉक में 26 छात्रों के साथ में अध्यापक एवं विद्यार्थी मित्र
द्वारा अनियमितता करने के मामले मामले में तीन शिक्षकों को निलंबित किया
है। एक विद्यार्थी मित्र की सेवा समाप्त कर दी है। संयुक्त निदेशक ने भी
कहा कि इस तरह का मामला सामने आने के बाद सभी बीईओ को लाभांवित
विद्यार्थियों की सूची देने को कहा है। भरत आमेटा, डीईओ
अब कार्यकर्ताओं के पैसे से चुनाव लड़ेगे प्रत्याशी, अपनो से ही लिया जाएगा चन्दा
जयपुर। भाजपा अब पूरे इलेक्शन मोड में आ गई है। उसने बड़े
पैमाने पर नए और अच्छी छवि वाले निर्धन कार्यकर्ताओं को भी चुनाव लड़वाने
का मानस बना लिया। भाजपा ने तय किया कि विधानसभा चुनाव में उसके उम्मीदवार
कार्यकर्ताओं के पैसों से ही चुनाव लड़ेंगे।
बाहरी लोगों से पैसा नहीं लिया जाएगा। इसके लिए हर विधानसभा क्षेत्र
से 25-25 लाख रुपए कार्यकर्ताओं से जुटाने का निर्णय लिया गया। इस प्रकार
प्रदेशभर से 50 करोड़ रु. आएंगे। फंड एकत्र करने से लेकर चुनाव में खर्च
करने तक का सारा जिम्मा, पार्टी के विस क्षेत्रीय चुनाव प्रभारी का रहेगा।
बड़े नेताओं के अनुसार फंडा यह है कि जेब के पैसे खर्च होने से
कार्यकर्ता पूरी शिद्दत से प्रत्याशी के साथ जुटेंगे और अपनी भूमिका महसूस
करेंगे। विधायकों पर कार्यकर्ताओं का अंकुश रहेगा और भ्रष्टाचार का दबाव भी
नहीं रहेगा। चुनावी व्यवस्था की कमान पार्टी के राष्ट्रीय संगठन सहमंत्री
सौदान सिंह संभाल रहे हैं। उदयपुर संभाग में तो पार्टी ने यह काम भी शुरू
कर दिया। पार्टी गुजरात में भी ऐसा कर चुकी है। वहां विधानसभा चुनाव में
कार्यकर्ताओं से 98 करोड़ रुपए आए थे।
फंड जुटाएंगे विधानसभा प्रभारी
हर विधानसभा क्षेत्र में एक वरिष्ठ नेता प्रभारी होगा। चुनाव लड़वाने
की जिम्मेदारी इसी नेता की रहेगी। पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने
हर विधानसभा क्षेत्र से तीन नामों का पैनल मंगाया है। इन तीन में से एक
नाम फाइनल होगा। जो नेता प्रभारी बनेगा, चुनाव नहीं लड़ेगा। वह सिर्फ चुनाव
जिताने के लिए फोकस करेगा। चुनाव के बाद उसका महत्व विधायक या मंत्री से
किसी भी तरह कम नहीं रहेगा।
चंदा हैसियत के अनुसार
चुनावी चंदा सिर्फ कार्यकर्ताओं से ऑन रिकॉर्ड ही लिया जाएगा। इसकी
बाकायदा रसीद जारी की जाएगी। यह हैसियत के अनुसार 50 रुपए से लेकर 10 हजार
रुपए तक हो सकता है। यह पैसा पहले प्रदेश में एकत्र होगा, फिर उम्मीदवार
के लिए रिलीज होगा। चुनाव आयोग ने विस क्षेत्र के लिए खर्च की सीमा 16 लाख
रुपए तय कर रखी है। चुनावी फंड से जो राशि बचेगी, पार्टी के प्रदेश फंड में
जाएगी।
ये रहेगी रणनीति
विधानसभा में चुनाव प्रभारी के अधीन सात प्रकोष्ठों की टीम काम करेगी।
इसमें सीए, लीगल, चुनाव, मेडिकल प्रकोष्ठ, मीडिया, आईटी के विधानसभा
संयोजक बनाए जा रहे हैं। प्रत्याशी के चुनावी खर्च सीमा का ब्योरा सीए
प्रकोष्ठ का संयोजक, कैंपेनिंग के लिए सोशल मीडिया का काम आईटी प्रकोष्ठ,
फार्म भरवाने, शपथ पत्र आदि कानूनी बारीकियां विधि प्रकोष्ठ संयोजक देखेगा।
यह पूरी टीम प्रत्याशी के लिए काम करेगी। पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता
निर्मला सीतारामन जून में सबको प्रशिक्षण देंगी।
राजनीतिक मायने
जिताऊ के नाम पर खराब छवि वाले धन बली नेताओं से पार्टी पीछा छुड़ा
सकेगी और साफ-सुथरी छवि वाले पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ताओं को चुनाव
लड़ा सकेगी। भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगेंगे। जेब के पैसे खर्च होने से
कार्यकर्ता चुनाव में अपनेपन से काम करेगा। विधायक पर कार्यकर्ताओं का दबाव
रहेगा। कार्यकर्ता मजबूत रहेगा तो पार्टी की ताकत बढ़ेगी। फंड के लिए
प्रत्याशी को बड़े व्यापारी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
कार्यकर्ता लड़वाएंगे चुनाव : चतुर्वेदी
भाजपा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी के अनुसार भाजपा विचारधारा
आधारित कार्यकर्ताओं की पार्टी है। चुनाव भी उनकी ताकत से लड़ते हैं। इस
बार चुनाव का सारा खर्चा कार्यकर्ताओं के सहयोग से ही जुटाएंगे।
घड़ी में लगे कैमरे से लेडी पेशेंट के न्यूड वीडियो बनाने वाले भारतीय डॉक्टर को 12 साल की सजा
लंदन। अमेरिकी सेना में सेक्स स्कैंडल का खुलासा हुआ
है तो ब्रिटेन में भारतीय मूल के एक डॉक्टर को अपनी महिला मरीजों के न्यूड
वीडियो बनाने के ममले में 12 साल की सजा सुनाई गई है। 45 साल का डॉ. जीपी
देविंदरजीत बैंस हिडन कैमरे से महिला मरीजों के चेकअप और सर्जरी के दौरान
उनके प्राइवेट पार्ट्स की अश्लील तस्वीरें और वीडियो बनाता था। इसकी
रिस्टवॉच में भी स्पाई कैमरा लगा हुआ था। सजा मिलने के बाद बैंस को ब्रिटेन
की जनरल मेडिकल काउंसिल से भी सस्पेंड कर दिया गया है। बैंस को 12 साल की
कैद के साथ-साथ अनिश्चित समय के लिए यौन अपराधियों की कैटेगरी में भी डाल
दिया गया है। इसके साथ ही उसे डिजिटल रेकॉर्डिंग करने वाली कोई भी चीज
खरीदने और उसके रॉयल वुटन बैसेट में दाखिल होने पर भी रोक लगा दी है।
दोषी डॉ. बैंस रूटीन चेकअप कराने आई अपनी महिला मरीजों से भी कपड़े
उतरवा के चेकअप करता था। कई बार तो उसने मरीजों को शराब पिला कर उनकी न्यूड
तस्वीरें और वीडियो तैयार किए और उनका यौन शोषण भी किया। बैंस ने तीन साल
में 350 से ज्यादा हाई क्वॉलिटी फिल्मों की रिकॉर्डिंग की थी। उसने 14 साल
से लेकर 51 साल की उम्र की 30 से ज्यादा महिलाओं को अपना निशाना बनाया।
अध्यक्ष के दामाद गिरफ्तारः विंदू को सामने बिठाकर पूछताछ होगी
चेन्नई/नई दिल्ली/मुंबई. चेन्नई सुपर किंग्स के टीम प्रिसिंपल
गुरुनाथ मयप्पन को शुक्रवार देर रात मुंबई पुलिस के क्राइम ब्रांच ने
गिरफ्तार कर लिया। उनसे क्राइम ब्रांच के ऑफिस में देर रात तक पूछताछ होती
रही। पुलिस सूत्रों के मुताबिक वे सवालों के जवाब देने से इनकार करते रहे
लेकिन इस मामले में उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।
इससे पहले शाम को वे मुंबई पहुंचे तो हवाई अड्डे से ही पुलिस उन्हें ले गई। पुलिस के संयुक्त आयुक्त हिमांशु राय ने कहा कि विंदू से पूछताछ के दौरान मिले सुरागों के आधार पर मयप्पन से पूछताछ चल रही है। इस गिरफ्तारी से स्पॉट फिक्सिंग मामले में आईपीएल की टीम चेन्नई सुपरकिंग्स और बीसीसीआई अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन का पद खतरे में है। नियमों में स्पष्ट है कि यदि टीम का मालिक-सह मालिक सट्टेबाजी में दोषी पाया गया तो टीम को आईपीएल से बाहर कर दिया जाएगा।
मयप्पन से पल्ला झाड़ा
मयप्पन बीसीसीआई अध्यक्ष और इंडिया सीमेंट्स के प्रमुख एन. श्रीनिवासन के दामाद हैं। लेकिन कंपनी ने टीम को बचाने के लिए शुक्रवार शाम को मयप्पन से पल्ला झाड़ लिया। कंपनी ने कहा, 'मयप्पन न तो चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक हैं और न ही टीम प्रिंसिपल। वे सिर्फ टीम मैनेजमेंट के मानद सदस्य हैं। हालांकि, मयप्पन को आईपीएल मैचों का जो पास जारी किया गया था उस पर लिखा था 'टीम के मालिक।
ट्विटर में बदला प्रोफाइल
हिरासत में लिए जाने से पहले मयप्पन ने ट्विटर पर अपना प्रोफाइल बदल लिया। प्रोफाइल में पहले 'प्रिंसिपल, सीएसके भी लिखा था। मयप्पन ने इसे बदलकर ...एमडी एवीएम प्रोडक्शंस कर दिया है। विंदू 28 तक पुलिस हिरासत में मुंबई की एक अदालत ने विंदू दारा सिंह और दो अन्य आरोपियों की पुलिस हिरासत 28 मई तक बढ़ा दी है। उधर दिल्ली की एक अदालत ने दो पूर्व क्रिकेटर समेत पांच आरोपियों को चार जून तक हिरासत में भेज दिया है।
फिल्म में भी गिरफ्तार होना था मगर...
मनीष कुमार. जालंधर. स्पॉट फिक्सिंग मामले में विंदू दारा सिंह की गिरफ्तारी से पंजाबी फिल्म साडा जवाई एनआरआई की शूटिंग रुक गई है। फिल्म की शूटिंग तकरीबन पूरी हो चुकी है। बस गिरफ्तारी का दृश्य फिल्माना था। लेकिन रील से पहले रियल लाइफ में विंदू गिरफ्तार हो गए। विंदू पर संजय छाबड़ा और उसके भाई पवन छाबड़ा को देश से भागने में मदद करने का आरोप है। वह प्रेम तरनेजा को भी दुबई भेजने वाला था।
पंजाबी फिल्म में भी उसका किरदार एक एनआरआई का है, जो भोले-भाले लोगों को विदेश जाने के लिए उकसाता है। उनसे पैसे ऐंठकर भाग जाता है। फिल्म का अंत विंदू की गिरफ्तारी के साथ होना है। फिल्म में उनके साथ गैवी चाहल, मैंडी तक्खड़ व बिनू ढिल्लों भी हैं। फिल्म के को-प्रोड्यूसर मिंटू जुनेजा ने बताया कि फिल्म की शूटिंग दो महीने से रुकी हुई थी। अब फिर शूटिंग शुरू हुई तो विंदू गिरफ्तार हो गए।
अंडरवर्ल्ड और सटोरियों के बीच की कड़ी याह्या
इंद्र वशिष्ठ. नई दिल्ली. स्पॉट फिक्सिंग मामले में हैदराबाद एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया मोहम्मद याह्या सटोरियों और दुबई अंडरवल्र्ड के बीच की अहम कड़ी हो सकता है। स्पॉट बॉय से स्पॉट फिक्सर बने याह्या का दुबई आना-जाना लगा रहता है। पकड़े जाने के समय भी वह दुबई भाग रहा था। याह्या से दुबई में मौजूद माफिया सरगना यानी फिक्सिंग के मास्टरमाइंड के साथ मुंबई अंडरवल्र्ड और सटोरियों के नेटवर्क का खुलासा हो सकता है। फि क्सिंग के मामले में पकड़े गए बड़े सटोरियों जैसे मुंबई के चंद्रेश पटेल उर्फ चांद, दिल्ली के अश्वनी अग्रवाल उर्फ टिंकू मंडी और नागपुर के सुनील भाटिया आदि के बारे में भी यह मालूम किया जा रहा है कि इनमें से भी क्या कोई विदेश खास कर दुबई गया था।
स्पेशल सेल के अफसर के अनुसार याह्या के बारे में चंद्रेश से पूछताछ के दौरान पता चला कि ये दोनों मिलकर काम करते थे। वर्ष 1984 से लेकर 2010 तक मुंबई में स्पॉट बॉय का काम करने वाला हैदराबाद का मूल निवासी याह्या आईपीएल-६ से पहले चंदे्रश पटेल के संपर्क में आया था। पुलिस के अनुसार यूसुफ के नाम से जाना जाने वाला
याह्या राजस्थान रॉयल्स के अलावा दूसरी टीमों के भी काफी खिलाडिय़ों के संपर्क में था।
याहया से पूछताछ से ही पुलिस उन खिलाडिय़ों तक पहुंचेगी। स्पेशल सेल के स्पेशल पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने कहा कि इस मामले में हमारी तफ्तीश अंतत: क्रिकेटर तक ही जाएगी। सटोरियों और खिलाडिय़ों का मूवमेंट साथ-साथ- स्पॉट फिक्सिंग के इस मामले में पुलिस साजिश और ठगी के कोण से ही तफ्तीश कर रही है। पुलिस का कहना है खिलाडिय़ों और सटोरियों की बातचीत के टेप और मैच की फुटेज तो हैं ही, सटोरियों की मैच के दौरान उस शहर में मौजूदगी के अलावा उसी होटल में ठहरना जिस में टीम ठहरी थी, इस साजिश को साबित करने में अहम सबूत है। खिलाडिय़ों और सटोरियों के एक साथ मूवमेंट अहम है। इसे साबित करने के लिए होटलों के सीसीटीवी की फुटेज और एयरलाइनों का रिकॉर्ड काम आएगा ।
सट्टा नहीं, फिक्सिंग महत्वपूर्ण-पुलिस के अनुसार इस मामले में सट्टा लगाना अहम नहीं है इसलिए गैंबलिंग एक्ट यानी जुए का मामला दर्ज नहीं किया गया है। पुलिस की तफ्तीश फिक्सिंग की साजिश में शामिल अंडरवल्र्ड, सटोरियों और इसमें शामिल खिलाडिय़ों पर केंद्रित है।
इससे पहले शाम को वे मुंबई पहुंचे तो हवाई अड्डे से ही पुलिस उन्हें ले गई। पुलिस के संयुक्त आयुक्त हिमांशु राय ने कहा कि विंदू से पूछताछ के दौरान मिले सुरागों के आधार पर मयप्पन से पूछताछ चल रही है। इस गिरफ्तारी से स्पॉट फिक्सिंग मामले में आईपीएल की टीम चेन्नई सुपरकिंग्स और बीसीसीआई अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन का पद खतरे में है। नियमों में स्पष्ट है कि यदि टीम का मालिक-सह मालिक सट्टेबाजी में दोषी पाया गया तो टीम को आईपीएल से बाहर कर दिया जाएगा।
मयप्पन से पल्ला झाड़ा
मयप्पन बीसीसीआई अध्यक्ष और इंडिया सीमेंट्स के प्रमुख एन. श्रीनिवासन के दामाद हैं। लेकिन कंपनी ने टीम को बचाने के लिए शुक्रवार शाम को मयप्पन से पल्ला झाड़ लिया। कंपनी ने कहा, 'मयप्पन न तो चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक हैं और न ही टीम प्रिंसिपल। वे सिर्फ टीम मैनेजमेंट के मानद सदस्य हैं। हालांकि, मयप्पन को आईपीएल मैचों का जो पास जारी किया गया था उस पर लिखा था 'टीम के मालिक।
ट्विटर में बदला प्रोफाइल
हिरासत में लिए जाने से पहले मयप्पन ने ट्विटर पर अपना प्रोफाइल बदल लिया। प्रोफाइल में पहले 'प्रिंसिपल, सीएसके भी लिखा था। मयप्पन ने इसे बदलकर ...एमडी एवीएम प्रोडक्शंस कर दिया है। विंदू 28 तक पुलिस हिरासत में मुंबई की एक अदालत ने विंदू दारा सिंह और दो अन्य आरोपियों की पुलिस हिरासत 28 मई तक बढ़ा दी है। उधर दिल्ली की एक अदालत ने दो पूर्व क्रिकेटर समेत पांच आरोपियों को चार जून तक हिरासत में भेज दिया है।
फिल्म में भी गिरफ्तार होना था मगर...
मनीष कुमार. जालंधर. स्पॉट फिक्सिंग मामले में विंदू दारा सिंह की गिरफ्तारी से पंजाबी फिल्म साडा जवाई एनआरआई की शूटिंग रुक गई है। फिल्म की शूटिंग तकरीबन पूरी हो चुकी है। बस गिरफ्तारी का दृश्य फिल्माना था। लेकिन रील से पहले रियल लाइफ में विंदू गिरफ्तार हो गए। विंदू पर संजय छाबड़ा और उसके भाई पवन छाबड़ा को देश से भागने में मदद करने का आरोप है। वह प्रेम तरनेजा को भी दुबई भेजने वाला था।
पंजाबी फिल्म में भी उसका किरदार एक एनआरआई का है, जो भोले-भाले लोगों को विदेश जाने के लिए उकसाता है। उनसे पैसे ऐंठकर भाग जाता है। फिल्म का अंत विंदू की गिरफ्तारी के साथ होना है। फिल्म में उनके साथ गैवी चाहल, मैंडी तक्खड़ व बिनू ढिल्लों भी हैं। फिल्म के को-प्रोड्यूसर मिंटू जुनेजा ने बताया कि फिल्म की शूटिंग दो महीने से रुकी हुई थी। अब फिर शूटिंग शुरू हुई तो विंदू गिरफ्तार हो गए।
अंडरवर्ल्ड और सटोरियों के बीच की कड़ी याह्या
इंद्र वशिष्ठ. नई दिल्ली. स्पॉट फिक्सिंग मामले में हैदराबाद एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया मोहम्मद याह्या सटोरियों और दुबई अंडरवल्र्ड के बीच की अहम कड़ी हो सकता है। स्पॉट बॉय से स्पॉट फिक्सर बने याह्या का दुबई आना-जाना लगा रहता है। पकड़े जाने के समय भी वह दुबई भाग रहा था। याह्या से दुबई में मौजूद माफिया सरगना यानी फिक्सिंग के मास्टरमाइंड के साथ मुंबई अंडरवल्र्ड और सटोरियों के नेटवर्क का खुलासा हो सकता है। फि क्सिंग के मामले में पकड़े गए बड़े सटोरियों जैसे मुंबई के चंद्रेश पटेल उर्फ चांद, दिल्ली के अश्वनी अग्रवाल उर्फ टिंकू मंडी और नागपुर के सुनील भाटिया आदि के बारे में भी यह मालूम किया जा रहा है कि इनमें से भी क्या कोई विदेश खास कर दुबई गया था।
स्पेशल सेल के अफसर के अनुसार याह्या के बारे में चंद्रेश से पूछताछ के दौरान पता चला कि ये दोनों मिलकर काम करते थे। वर्ष 1984 से लेकर 2010 तक मुंबई में स्पॉट बॉय का काम करने वाला हैदराबाद का मूल निवासी याह्या आईपीएल-६ से पहले चंदे्रश पटेल के संपर्क में आया था। पुलिस के अनुसार यूसुफ के नाम से जाना जाने वाला
याह्या राजस्थान रॉयल्स के अलावा दूसरी टीमों के भी काफी खिलाडिय़ों के संपर्क में था।
याहया से पूछताछ से ही पुलिस उन खिलाडिय़ों तक पहुंचेगी। स्पेशल सेल के स्पेशल पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने कहा कि इस मामले में हमारी तफ्तीश अंतत: क्रिकेटर तक ही जाएगी। सटोरियों और खिलाडिय़ों का मूवमेंट साथ-साथ- स्पॉट फिक्सिंग के इस मामले में पुलिस साजिश और ठगी के कोण से ही तफ्तीश कर रही है। पुलिस का कहना है खिलाडिय़ों और सटोरियों की बातचीत के टेप और मैच की फुटेज तो हैं ही, सटोरियों की मैच के दौरान उस शहर में मौजूदगी के अलावा उसी होटल में ठहरना जिस में टीम ठहरी थी, इस साजिश को साबित करने में अहम सबूत है। खिलाडिय़ों और सटोरियों के एक साथ मूवमेंट अहम है। इसे साबित करने के लिए होटलों के सीसीटीवी की फुटेज और एयरलाइनों का रिकॉर्ड काम आएगा ।
सट्टा नहीं, फिक्सिंग महत्वपूर्ण-पुलिस के अनुसार इस मामले में सट्टा लगाना अहम नहीं है इसलिए गैंबलिंग एक्ट यानी जुए का मामला दर्ज नहीं किया गया है। पुलिस की तफ्तीश फिक्सिंग की साजिश में शामिल अंडरवल्र्ड, सटोरियों और इसमें शामिल खिलाडिय़ों पर केंद्रित है।
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