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25 मई 2013

हिन्दू पंचांग


हिन्दू पंचांग हिन्दू समाज द्वारा माने जाने वाला कैलेंडर है। इसके भिन्न-भिन्न रूप मे यह लगभग पूरे भारत मे माना जाता है। पंचांग नाम पांच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है: पक्ष, तिथी, वार, योग और कर्ण। एक साल मे १२ महीने होते है। हर महिने मे १५ दिन के दो पक्ष होते है, शुक्ल और कृष्ण।पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को कहते हैं। पंचांग नाम पाँच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है।
एक साल में १२ महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में १५ दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में २७ नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।१२ मास का एक वर्ष और ७ दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्यचंद्रमा की गति पैर रखा जाता है। यह १२ राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि मे प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से ११ दिन ३ घड़ी ४८ पल छोटा है। इसीलिए हर ३ वर्ष मे इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं।

तिथि

एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में ३० तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।
तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)।

वार

एक सप्ताह में सात दिन होते हैं:- रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार। may 2012

नक्षत्र

आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। मूलत: नक्षत्र 27 माने गए हैं। ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है। चंद्रमा उक्त सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है। नक्षत्रों के नाम नीचे चंद्रमास में दिए गए हैं-

योग

योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।
27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति

करण

एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

पक्ष

प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।

महीनों के नाम

इन बारह मासों के नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से १२ नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्राय: रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है। चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून), आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर), अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्तूबर), कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्तूबर-नवम्बर), मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर), पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी), मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।
महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा इस नक्षत्र होता है
चैत्र चित्रा , स्वाति
वैशाख विशाखा , अनुराधा
ज्येष्ठ ज्येष्ठा , मूल
आषाढ़ पूर्वाषाढ़ , उत्तराषाढ़
श्रावण श्रवण , धनिष्ठा, शतभिषा
भाद्रपद पूर्वभाद्र , उत्तरभाद्र
आश्विन रेवती , अश्विन , भरणी
कार्तिक कृतिका , रोहणी
मार्गशीर्ष मृगशिरा , आर्द्रा
पौष पुनवर्सु ,पुष्य
माघ अश्लेशा, मघा
फाल्गुन पूर्व फाल्गुन , उत्तर फाल्गुन , हस्त

सौरमास

सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है। कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है।
12 राशियों को बारह सौरमास माना जाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना ‍शुरू माना गया है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब हिंदू धर्म अनुसार यह तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है। पुराणों अनुसार अश्विन, कार्तिक मास में तीर्थ का महत्व बताया गया है। उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चल रहा होता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है जबकि सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब सूर्य दक्षिणायन होता है। दक्षिणायन व्रतों का और उपवास का समय होता है जबकि चंद्रमास अनुसार अषाढ़ या श्रावण मास चल रहा होता है। व्रत से रोग और शोक मिटते हैं।दक्षिणायन में विवाह और उपनयन आदि संस्कार वर्जित है,जब कि अग्रहायण मास में ये सब किया जा सकता है अगर सूर्य वृश्चिक राशि में हो।और उत्तरायण सौर मासों में मीन मास मै विवाह वर्जित है।
सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, कुंभ, मकर, मीन।

चंद्रमास

चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्‍ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला 'अमांत' मास मुख्‍य चंद्रमास है। कृष्‍ण प्रतिपदा से 'पूर्णिमात' पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है।
पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चंद्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।
सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बड़े हुए दिनों को 'मलमास' या 'अधिमास' कहते हैं।
चंद्रमास के नाम : चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन।

नक्षत्रमास

आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं।
चंद्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है।
महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है:
  1. चैत्र : चित्रा, स्वाति।
  2. वैशाख : विशाखा, अनुराधा।
  3. ज्येष्ठ : ज्येष्ठा, मूल।
  4. आषाढ़ : पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा।
  5. श्रावण : श्रवण, धनिष्ठा।
  6. भाद्रपद : पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र।
  7. आश्विन : अश्विन, रेवती, भरणी।
  8. कार्तिक : कृतिका, रोहणी।
  9. मार्गशीर्ष : मृगशिरा, उत्तरा।
  10. पौष : पुनर्वसु, पुष्य।
  11. माघ : मघा, अश्लेशा।
  12. फाल्गुन : पूर्वाफाल्गुन, उत्तराफाल्गुन, हस्त।
नक्षत्रों के गृह स्वामी 
  1. केतु : अश्विन, मघा, मूल।
  2. शुक्र : भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़।
  3. रवि : कार्तिक, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़।
  4. चंद्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण।
  5. मंगल : मॄगशिरा, चित्रा, श्रविष्ठा।
  6. राहु : आद्रा, स्वाति, शतभिषा ।
  7. बृहस्पति : पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वभाद्रपदा।
  8. शनि . पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपदा।
  9. बुध : अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती।

हिजरी

हिजरी या इस्लामी पंचांग को (अरबी: التقويم الهجري; अत-तक्वीम-हिज़री; फारसी: تقویم هجری قمری ‎'तकवीम-ए-हिज़री-ये-कमारी) जिसे हिजरी कालदर्शक भी कहते हैं, एक चंद्र कालदर्शक है, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में प्रयोग होता है बल्कि इसे पूरे विश्व के मुस्लिम भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए प्रयोग करते हैं। यह चंद्र-कालदर्शक है, जिसमें वर्ष में बारह मास, एवं 354 या 355 दिवस होते हैं। क्योंकि यह सौर कालदर्शक से 11 दिवस छोटा है इसलिए इस्लामी धार्मिक तिथियाँ, जो कि इस कालदर्शक के अनुसार स्थिर तिथियों पर होतीं हैं, परंतु हर वर्ष पिछले सौर कालदर्शक से 11 दिन पीछे हो जाती हैं। इसे हिज्रा या हिज्री भी कहते हैं, क्योंकि इसका पहला वर्ष वह वर्ष है जिसमें कि हजरत मुहम्मद की मक्का शहर से मदीना की ओर हिज्ऱ या वापसी हुई थी। हर वर्ष के साथ वर्ष संख्या के बाद में H जो हिज्र को संदर्भित करता है या AH (लैटिनः अन्नो हेजिरी ( हिज्र के वर्ष में) लगाया जाता है।[1]हिज्र से पहले के कुछ वर्ष (BH) का प्रयोग इस्लामिक इतिहास से संबंधित घटनाओं के संदर्भ मे किया जाता है, जैसे मुहम्म्द साहिब का जन्म लिए 53 BH।
वर्तमान हिज्री़ वर्ष है 1430 AH.
इस्लामी कैलेण्डर
  1. मुहरम
  2. सफर
  3. रबी अल-अव्वल
  4. रबी अल-थनी
  5. जुमाद अल-उला
  6. जुमाद अल-थनी
  7. रज्जब
  8. शआबान
  9. रमजा़न
  10. शआबान
  11. धू अल-किदाह
  12. धू अल-हिज्जाह



महीने

इस्लामी महीने या मास नाम हैं:[
  1. मुहरम محرّم (पूर्ण नाम: मुहरम उल-हरम)
  2. सफर صفر (पूर्ण नाम: सफर उल-मुज़फ्फर)
  3. रबी अल-अव्वल (रबी उणन्नुर्)इदे मीलअद् ربيع الأول[
  4. रबी अल-थनी (या रबी अल-थानी, रबी अल-आखीर) (Rabī' II) ربيع الآخر أو ربيع الثاني
  5. जुमाद अल-उला (जुमादा I) جمادى الاولى
  6. जुमाद अल-थनी (या जुमादा अल-आखीर) (जुमादा II) جمادى الآخر أو جمادى الثاني
  7. रज्जब رجب (पूर्ण नाम: रज्जब अल-मुराजब)
  8. शआबान شعبان (पूर्ण नाम: शाअबान अल-मुआज़म)
  9. रमजा़न رمضان (या रमदान, पूर्ण नाम: रमदान अल-मुबारक)
  10. शव्वल شوّال (पूर्ण नाम: शव्वाल उल-मुकरर्म)
  11. जिल-क्दाह ذو القعدة
  12. जिल्-हिज्जाह ذو الحجة
इन सभी महीनों में, रमजान का महीना, सबसे आदरणीय माना जाता है। मुस्लिम लोगों को इस महीने में पूर्ण सादगी से रहना होता है दिन के समय।
ओर सबसे अफ्ज्ल रबी अल-अव्वल क महिना माना जाता है। इस्मे प्यारे नबी सल्ल्ल््लाहु अल््य्ही व्स्ल्ल्म कि पयदाइस हुइ ।

सप्ताह के दिवस

इस्लामी सप्ताह, यहूदी सप्ताह के समान ही होता है, जो कि मध्य युगीय ईसाई सप्ताह समान होता है। इसका प्रथम दिवस भी रविवार के दिन ही होता है। इस्लामी एवं यहूदी दिवस सूर्यास्त के समय आरंभ होते हैं, जबकि ईसाई एवं ग्रहीय दिवस अर्धरात्रि में आरम्भ होते हैं। [ मुस्लिम साप्ताहिक नमाज़ हेतु मस्जिदों में छठे दिवस की दोपहर को एकत्रित होते हैं, जो कि ईसाई एवं ग्रहीय शुक्रवास को होता है। ("यौम जो संस्कृत मूल "याम" से निकला है,يوم" अर्थात दिवस)
अरबी नाम हिन्दी नाम उर्दू नाम फारसी नाम फारसी में
यौम अल-अहद يوم الأحد रविवार इतवार اتوار येक-शानबेह
यौम अल-इथनायन يوم الإثنين सोमवार पीर پير दो-शानबेह دوشنبه
यौम अथ-थुलाथा' يوم الثُّلَاثاء मंगलवार मंगल منگل सेह-शानबेह سه شنبه
यौम अल-अरबिया يوم الأَرْبِعاء बुद्धवार बुद्ध بدھ चाहर-शानबेह چهارشنبه
यौम अल-खमीस يوم الخَمِيس बृहस्पतिवार जुम्महरत جمعرات पन्ज-शानबेह پنجشنبه
यौम अल-जुमुआ`a يوم الجُمُعَة शुक्रवार जुम्मा جمعہ जोमएह, या अदिनेह جمعه या آدينه
यौम अस-सब्त يوم السَّبْت शनिवार हफ्ता ہفتہ शानबेह شنبه

मुख्य तिथियाँ

इस्लामी कालदर्शक की कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ हैं:
रजब-उल-मुरज्जब का महीना        
ईस महीने के अज़्मत व फ़ज़ीलत        |      |  रजब अमाल
ईमाम मूसा अल काज़िम (अ:स), " रजब बहिश्त में एक नहर है जिस का पानी दूध से ज़्यादा सफ़ेद और और शहद से ज़्यादा शीरीं है, और जो शख्स ईस माह में एक दिन का भी रोज़ा रखेगा, वो ईस नहर से सैराब होगा".

 ईसतीग़फ़ार. पवित्र पैग़म्बर (स:अ:व:व) फ़रमाते हैं, "रजब मेरी उम्मत के लिये ईसतीग़फ़ार का महीना है, ईस महीने में ज़्यादा से ज़्यादा ईसतीग़फ़ार करो".
सदक़ा :  सदक़ा देने या दान देने की बहुत अहमियत है
 
पहली जुमारात - रजब की पहली रात (लैलातुल रग़ा'इब)
 ईमाम सज्जाद (अ:स) और ईमाम जाफ़र सादीक़ (अ:स) की दुआ
3 रजब -शहादत ईमाम अली नक़ी (अ:स)   |  ज़्यारत  |Mp3
न०1 /न०2 / न०3 :-सहीफ़ा ईमाम मेहदी (अ:त:फ़) की दुआ
10  रजब -विलादत ईमाम मोहम्मद तक़ी (अ:स) ज्यारत  | Mp3
रजब के महीने का मख्सूस अमाल | वो आमाल जो मरने के बाद के लिये  बहुत महत्वपूर्ण हैं
13  रजब - विलादत ईमाम अली (अ:स) | ज़्यारत  (अ:स)
15 रजब - शहादत बीबी ज़ैनब (स:अ) - ज़्यारत   |      Mp3
अमाल - उम्मे दावूद  
25 रजब - शहादत ईमाम मूसा काज़िम (अ:स) - ज़्यारत   |Mp3
रजब के दुआओं की PDF फाइल
26 रजब - वफ़ात हज़रत अबू तालिब (अ:स) - ज़्यारत   
27 रजब - बेसत / मेराज अमाल और दुआएं  | ज़्यारत
माहे रजब की मख्सूस दुआएं
 
अपना मुहासबा (आत्म मूल्यांकन) करें
आखरी दिन का अमाल
सहीफ़ा हज़रत ईमाम मेहदी (अ:त:फ़) से ख़ानदाने अहलेबैत (अ:स) के फ़र्द की रजब में मुशर्रफ़ होने की मख्सूस ज़्यारत
ईमाम   अली इब्न मूसा रज़ा (अ:स) की रजब की मख्सूस ज़्यारत

सभी प्रदेशों में कम से कम न्याय के मामले में तो यह निति बनना ही चाहिए के जिस राज्य का जज हो उस राज्य में उसकी नियुक्ति नहीं की जाए .

दोस्तों भारतीय न्याय सिद्धांत में अजीब दासता है एक व्यक्ति अगर मजिस्ट्रेट बनता है तो उसे उसके गृह जिले में नियुक्ति इसलियें नहीं देते के उस जिले में नियुक्त मजिस्ट्रेट की कर्म भूमि होने से मिलने जुलने वाले और रिश्तेदार रहते है ..लेकिन हाईकोर्ट खासकर राजस्थान हाईकोर्ट में जब कोई वकील जज नियुक्त होता है तो जिस अदालत में वोह पेरवी करता है उसी अदालत में उसे जज बनाकर बिठा दिया जाता है क्या यह अंकल जज और अंकल जजों का सिंड्रोम नहीं क्या यह वाजिब बात है के जो वकील जिस अदालत में जिस शहर में वकालत कर रहा है उसी शहर में वोह हाईकोर्ट का जज बन कर बढ़े फेसले करता है क्या यह न्याय के सिद्धांत के विपरीत नहीं है .....कहने को तो अंकल जज और अंकल सिंड्रोम को ठीक करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट निति बना रही है ......राजस्थान के एक मुख्य न्यायधीश ने तो अंकल जजों के भतीजों पर पुत्रों के वकालत नामे जहां जिस अदालत में लगते थे उसकी पूरी फहरिस्त ..मुकदमों की गुणवत्ता और निर्णयों के बारे में रिपोर्ट भी तय्यार की थी लेकिन उनके ट्रांसफर के बाद सब रिपोर्टें धरी रह गयीं .हमारा राजस्थान भी इस आग में तप रहा है झुलस रहा है सभी प्रदेशों में कम से कम न्याय के मामले में तो यह निति बनना ही चाहिए के जिस राज्य का जज हो उस राज्य में उसकी नियुक्ति नहीं की जाए ..........

यूँ ना घबरा चंद दिनों की ही बात है

तेरी धड़कन
तेरी साँसों
तेरे ख्यालों में
हर वक्त क्यूँ में
शामिल हूँ
यह सोच सोच कर
अब तू
यूँ ना घबरा
चंद दिनों की ही बात है
तेरे लियें
में और मेरा वुजूद
मिट जायेगा
मिटटी से बना था में
तेरे लियें
मेरा जिस्म
फिर से जल्द ही
मिटटी में मिल जाएगा
न रहेगा मेरा वुजुद
न रहेंगी मेरी यादे
इसलियें कहता हूँ
थोडा वक्त है बस
बर्दाश्त कर
फिर तेरी साँसें
तेरे दिल की धड़कन
तेरे ख्यालात
आज़ाद है
आज़ाद है
आज़ाद है .............
 अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

सुप्रीम कोर्ट ने देश में 62 वर्षों से जारी जातिवादी आरक्षण पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका को स्वीकार कर लिया है

सुप्रीम कोर्ट ने देश में 62 वर्षों से जारी जातिवादी आरक्षण पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका को स्वीकार कर लिया है। इस मामले पर 1 जुलाई को सुनवाई होनी है। याचिकाकर्ता रामदुलार झा ने बताया कि देश की 543 संसदीय सीटों में से 126 संसदीय और 4920 विधानसभा सीटों में से 1155 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इसका उद्देश्य उन लोगों को लाभ पहुंचाना है जो वास्तव में दलित हैं, लेकिन धरातल पर अनुसूचित जाति व जनजाति के संभ्रांत लोग ही इसका फायदा उठाते रहे हैं और चुनाव में सफल होते रहे हैं। इस कारण जो दलित आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े हैं उनकी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। उन्होंने बताया कि जिन दलितों को फायदा नहीं मिल रहा है और जो इसके हकदार हैं, उनकी संख्या 95 प्रतिशत से भी अधिक है। दलितों के प्रति यह एक तरह का अन्याय और कानून का दुरुपयोग है। झा के अनुसार, दलितों पर हो रहे अन्याय और कानून के दुरुपयोग के लिए जातिवादी आरक्षण पर प्रतिबंध जरूरी है तभी दलितों को उनका समुचित अधिकार मिल पाएगा।
शिछा के बाद एक दलित को कोई भी नोकरी,राजनीत में सुरक्छित सीट से चुनाव, प्रमोशन,व्यापार को बिना व्याज ऋण आदि में आरक्छन पूरे जीवन में एक बारI बार-बार एक ही व्यक्ति लाभ लेकर दूसरे गरीब दलित का हक़ न खाता रहे I,दलित नेताओ की चालो को समझो ?दलितों के नाम पर अपना ही उत्थान कर रहे दलित नेताओ के उत्थान को, अपना उत्थान न मानो ? तुम्हारा बोट बेच कर केवल अपना उत्थान कर रहे ये दलित नेता और अधिकारी ? एक बार एक दलित को लाभ तब होगा सभी दलितों का उत्थान,I
एडवोकेट, झाँसी, मोबा.09415509233

हमें तीन प्रमुख संस्थागत सुधारों की जरूरत है।


१. हमें ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है,जो अपराधियों को राजनीति में प्रवेश से रोकने को वाध्य कर सके।अगर गबन, आय से अधिक संपत्ति आदि सहित आपराधिक मुकद्दमा विचाराधीन हें तो कोर्ट से निर्दोष हुए बिना चुनाव नहीं लड़ सकते,फिर मुक्कदमे लम्वित नहीं होगे तुरंत फेश्ला होगा I
२. हमें न्यायिक प्रोत्साहन की जरूरत है, जिससे न्याय में तेजी आ सके।स्वीकृत पदों पर पूरे जजों की नियुक्ति कोई कोर्ट खाली नहीं, न्यायालय का समय अधिक और अवकाश बहुत कम, अधिकतम 6 माह में फेश्ला, एक माह में अपील पर फेश्ला, जबाब देही सहित, बिधिक भूल या विधि बिरुद्ध ? साथ ही जिस प्रदेश के वकील को जज बनाया जाये उसकी न्युक्ति उसही प्रदेश में कदापि और कभी नहींI उम्र 65 के बाद कोई सरकारी या जनता का पेशा खाने का कोई पद नहीं I
२.कम से कम हमें चुनाव आयोग की तर्ज पर एक स्वतंत्र पुलिस आयोग की आवश्यकता है,
जो नेताओं और भिरस्ट अधिकारियो ( जिसके लिए शासन की अनुमति लिए बिना) के खिलाफ उनके प्रभाव की परवाह किये बिना जांच कर सके और उन पर मुकदमा चला सके I
जिससे नेताओ और अधिकारियो दुआरा किया गया अपराध और भ्रष्टाचार लाभदायक नहीं बल्कि अत्यधिक जोखिम भरा काम बन जाए।
सबसे पहले हमें उस अराजक स्थिति को खत्म करना चाहिए, जिसमें अपराधी राजनीति में शामिल हो जाते हैं,और कई बार वे केबिनेट मंत्री भी बन जाते हैं।
इससे उनका प्रभाव बढ़ जाता है और यह भी तय हो जाता है कि उन पर कोई मामला नहीं चलाया जाएगा।
साल 2004 के आम चुनाव में 543 विजेताओं में से 128 पर अपराधिक आरोप थे। इनमें 84 हत्या के आरोपी थे, 17 डकैती के और 28 चोरी और जबरन वसूली के आरोपी थे। एक सांसद पर 17 हत्या करने का आरोप था।
कोई भी पार्टी बेदाग नहीं थी। हर पार्टी में अपराधियों की संख्या काफी थी, क्योंकि इन सज्जनों नें पार्टी और नेता को धन उपलब्ध कराया, बाहुबल और संरक्षण नेटवर्क उपलब्ध कराया, जिसे हर पार्टी के नेता ने उपयोगी समझा।।
अशोक सक्सेना एडवोकेट झाँसी मोबा.09415509233

क्या होता है नवतपा और क्यों चढ़ता है पारा? कई लोगों को नहीं पता यह विज्ञान


वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। व्यावहारिक तौर पर भी सूर्य से कई तरह से मिलने वाली जीवन शक्ति इस बात को साबित भी करती है। हिन्दू धर्म में सूर्य प्रमुख देवताओं में एक है। यही नहीं, पूरी कालगणना सूर्य की गति पर आधारित है। ज्योतिष शास्त्रों में भी सूर्य की चाल से इंसानी जीवन पर होने वाले शुभ-अशुभ प्रभा 
 
आमतौर पर कई लोग नवतपा के बारे में इससे ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं कि इस दौरान भीषण गर्मी पड़ती है। किंतु नवतपा क्या है और क्या है इसकी जिंदगी के लिए अहमियत, इस पर गौर नहीं करते। असल में, नवतपा यानी नौतपा से जीवन और जगत में होने बदलावों से जुड़ा रोचक धर्म ज्ञान और विज्ञान है

क्या है  नवतपा - हिन्दू पंचांग के तीसरे माह ज्येष्ठ में वृष संक्राति यानी वृषभ राशि में रहते हुए सूर्य जब रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है, तो वह  नौतपा की शुरुआत मानी जाती है। इस दौरान 15 दिन की अवधि में से पहले 9 दिनों को  नौतपा पुकारा जाता है। इस दौरान सूर्य का तापमान व चमक चरम पर होते हैं।
वों को उजागर किया गया है। इसी कड़ी में 25 मई से शुरू व 3 जून को खत्म होने वाले नवतपा या नौतपा का नाता भी सूर्य की गति से है।

रोहिणी नक्षत्र - रोहिणी नक्षत्र आकाश मण्डल का चौथा नक्षत्र है, जो वृषभ राशि के चारों चरणों में रहता है। इस राशि के स्वामी शुक्र हैं, वहीं नक्षत्र के स्वामी चंद्रदेव है। रोहिणी के नियंत्रक देवता ब्रह्मदेव भी माने जाते हैं। 
 
ज्येष्ठ माह -  सनातन धर्म में सूर्य को प्रत्यक्ष देव माना जाता हैं। सूर्य की यात्रा बारह माह में बारह राशियों से होकर पूरी होती है। सूर्य की इस यात्रा के दो भाग होते हैं - पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। सूर्य मकर, कुंभ, मीन, मेष, वृषभ और मिथुन से गुजरने पर उत्तरायण होता है यानी आकाश में सूर्य उत्तर की ओर झुका होता है, सूर्य की उत्तर की यात्रा शुभ मानी जाती है। 
इसी कड़ी में हिन्दू पंचांग के ज्येष्ठ माह में सूर्य, उत्तरायन की यात्रा के दौरान जब मकर, कुंभ, मीन राशि, मेष राशि से गुजरकर वृष राशि में संक्रमण करता है, जो वृष संक्रांति कहलाती है। ज्येष्ठ माह ग्रीष्म ऋतु का काल होता है। 
 
क्या कहता है विज्ञान? - वृष संक्रांति में नौतपा के दौरान पड़ने वाली अधिक गर्मी बारिश के लिहाज से सुखद मानी जाती है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यही है कि इस दौरान सूर्य की किरणें धरती पर सीधी गिरती हैं, जिससे तापमान बढ़ता है। अधिक गर्मी से जमीन पर कम दबाव का क्षेत्र बनता है, जो समुद्र की लहरों को अपनी ओर खींचता है, जिससे शीतल वायु जमीन की ओर बढ़ती है। इससे समुद्र में उच्च दबाव का क्षेत्र बन जाता है। नतीजतन अच्छी बारिश होती है।

जीवन सूत्र- उत्तरायन में  नौतपा से जुड़ी सूर्य की गति व ताप से मानव के लिए भी ताप व संताप से राहत पाने के संदेश भी छिपे हैं। इसके मुताबिक सूर्य की तरह ही जीवन में अनुशासन को अपनाकर हम अपने व्यक्तित्व व चरित्र को  उजला व ऊर्जावान बना लें, जो सूर्य की चाल व गति की तरह ही बिना अपनी राह से विचलित हुए आगे बढ़ते रहने से संभव हो सकता है।  
 
इससे हम न केवल अपने लक्ष्य को पाने के लिए ऊर्जावान बने रहेंगे, बल्कि भीषण गर्मी की तरह असहनीय लगने वाले दु:ख, संकट व संताप से भी आसानी से पार पा लेंगे। ठीक उसी तरह जैसे सूर्य के लिए ज्येष्ठ माह ऐसा काल होता है, जिसमें वह अपनी नियत गति व चाल के साथ उत्तरायन की आधी यात्रा पूरी कर चुका होता है और दक्षिणायण की पूरी यात्रा के लिए ऊर्जा प्राप्त करता है।

जिस बीमारी पर होता है लाखों खर्च, उसका यह शिव मंत्र भी है इलाज



आज के दौर में मिल रही भौतिक सुख-सुविधाओं ने दूरियां कम करने के साथ वक्त तो बचाया है किंतु साथ ही कई परेशानियां भी पैदा की है। खासतौर पर मेहनत की कमी ने मन के साथ शरीर पर भी तरह-तरह से बुरा असर डाला है। 
शरीर पर आलस्य या परिश्रम की कमी से हावी होने वाला दोष दिल की बीमारी के रूप में देखा जा सकता है। बच्चे हो या बूढ़े किसी की भी जीवन के सफर को थामने वाली इस बीमारी में खोया मनोबल और इच्छाशक्ति को पाने के लिए इलाज के साथ धार्मिक उपाय भी कारगर साबित होते हैं। 
 
माना जाता है कि दिल की बीमारी, जिस पर लाखों खर्च हो सकते हैं, सिर्फ एक 4 अक्षरी शिव मंत्र को बोलने से ही काबू में रहती है और राहत भी देती है। जानिए कौन सा है यह जादुई शिव मंत्र - 
 शास्त्रों में हृदय रोग में दिमागी शक्ति देने वाला और मानसिक अशांति दूर करने वाला एक अद्भुत मंत्र बताया गया है। यह मंत्र भगवान शिव के महामृत्युंजय रूप की उपासना का अंग है। शिव का यह रूप काल, रोग और भय से रक्षा करने वाला माना जाता है। यह महामृत्युंजय मंत्र का ही एक  रूप है, जो चार अक्षरी महामृत्युंजय मंत्र कहलाता है
 
यह मंत्र है - ऊँ वं जू़ स: ।।
 
हृदय रोग से पीडि़त व्यक्ति इस मंत्र का जप हर रोज या सोमवार को स्नान के बाद देवालय में शिव की पंचोपचार पूजा के साथ करे। जिसमें शिव का बिल्वपत्र, रोली, चंदन, सफेद फूल, धूप, दीप अर्पित कर इस मंत्र का कम से 108 बार उच्चारण करें। संभव न होने पर शयन या आराम की मुद्रा में मन ही मन गहरी आस्था और श्रद्धा के साथ जप करें। 
ऐसा भी संभव न होने पर पीडि़त का कोई भी परिजन देवालय में इस मंत्र का जप करे। कहा भी जाता है कि दवा के साथ दुआओं का भी असर होता है। यह मंत्र इसी बात को व्यावहारिक रूप से सिद्ध करता है। 

आंखों के सामने हुआ दोस्त से गैंगरेप, इंजीनियरिंग स्टूडेंट ने शादी कर अपनाया



पटना. एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट के सामने उसकी दोस्त का गैंगरेप भी उसके प्यार के आड़े नहीं आया। बिहार के बांका में इस युवक ने शनिवार को गैंग रेप पीड़ित अपनी दोस्त (22) से शादी कर ली। लड़की और लड़का चार दिन पहले ही मंदर पर्वत की यात्रा पर गए थे। यहां लड़का-लड़की को पीट कर तीन लोगों ने लड़की के साथ तीन घंटों तक गैंगरेप किया था। इसके बाद आरोपी युवक को घायल कर और दोनों को लूट कर फरार हो गए थे। दोनों ने इस मामले की शिकायत पुलिस से भी की थी। चार दिन बाद ही युवक ने कोर्ट मैरिज करने के बाद युवती से एक मंदिर में भी शादी कर ली। 
 
दोनों की शादी के दौरान दर्जनों लोग मौके पर मौजूद थे। इस शादी में समाज के सभी वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता और पुलिस के कई अधिकारी भी शामिल हुए। लोगों का कहना है कि इन दोनों की शादी कराने में रिश्तेदारों और गांव वालों की भी अहम भूमिका रही। शादी के बाद युवक ने कहा कि उसे शादी का फैसला करने में कोई परेशानी नहीं हुई। शादी में दोनों के परिजन भी मौजूद रहे। 
 
इस हफ्ते की शुरुआत में पीड़िता अपने दोस्त के साथ बांका जिले में एक पहाड़ की यात्रा पर गई थी। इन्होंने चरवाहों के एक दल से रास्ते के बारे में पूछा था। इसके बादे चरवाहों ने इन्हें गलत रास्ता बता कर बंधक बना लिया था। इसके बाद तीन लोगों ने लड़की के साथ गैंग रेप किया। जिला पुलिस के अधिकारी धीरेंद्र कुमार ने कहा कि दो लोग बंधक बनाए हुए थे और तीन चरवाहे रेप कर रहे थे।

मुंह बंद रखने के लिए पुलिस ने दी 5.50 लाख की ‘घूस’



 
बांसवाड़ा। पाटन थाने में पुलिस कस्टडी में दुष्कर्म के आरोपी भोराज गांव निवासी टिटिया की मौत को दबाने के लिए पुलिस द्वारा मृतक टिटिया के परिवार को 5.50 लाख रुपए देने का खुलासा हुआ हैं। इस राशि में से पीड़ित परिवार तक केवल 4 लाख रुपए पहुंचे हैं तथा शेष 1.50 लाख रुपए की राशि बिचौलियों ने हड़प लिए हैं।
जानकारी मिली है कि यह राशि देकर पुलिस ने मृतक के परिवार पर यह दबाव बनाया कि वे इस मामले को आगे नहीं बढ़ाएंगे। यह भी पता चला है कि इस राशि के लेन-देन के मौके पर बिचौलियों के माध्यम से पुलिस ने खाली कागजों पर टिटिया के पिता व पत्नी से अंगूठे भी लगवा लिए हैं।
टिटिया की मौत पाटन थाने में 5 मई कोपुलिस कस्टडी में उस समय हुई थी, जब एसपी स्वयं थाने में मौजूद थे। ऐसी स्थिति में पुलिस ने चारों ओर से अपने आपको घिरते देख स्वयं को बचाने के लिए यह राशि दी। यह पता नहीं चल पाया कि इस राशि का इंतजाम कहां से और किसने किया। 
बिचौलियों ने पहुंचाई राशि
यह राशि मृतक के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस द्वारा बिचौलियों के माध्यम से परिवार तक नकद पहुंचाई गई। पुलिस को इस बात का डर था कि टिटिया का परिवार आगे कार्रवाई करेगा तो पूरे थाने का स्टाफ फंस जाएगा। इसी वजह से गांव के लक्ष्मण लाल तथा जिथिंग  भाई (पूर्व सरपंच पति), भीमा भाई पूर्व प्रधान आदि के माध्यम से पुलिस ने यह राशि मृतक की पत्नी तक पहुंचाई। पुलिस द्वारा मामले को दबाने के लिए की गई सौदेबाजी का पूरा खुलासा शनिवार को मृतक टिटिया के पिता भीला, पत्नी व उसके परिवार ने किया। 
पुलिस नहीं तो और कौन देगा पैसा
बिचौलिये की भूमिका अदा करने में शामिल जिथिंग भाई ने बताया कि पुलिस कस्टडी में मौत हुई थी, तो राशि भी पुलिस ही देगी। इसके अलावा कौन देगा। भास्कर से बातचीत में जिथिंग भाई ने यह भी भरोसा जताया कि मृतक का परिवार अब कोई कार्रवाई नहीं करेगा। पुलिस द्वारा 5.50 लाख रुपए देने की पुष्टि करते हुए बताया कि अभी मजिस्ट्रेट जांच चल रही हैं। दूसरी ओर मृतक का मामा भूरिया सिंघाड़ा ने भी इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि यह राशि मृतक की पत्नी के नाम से बैंक में रखी हुई हैं। अब यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर रुपए आए कहां से? (भास्कर के पास सारी बातचीत की रिकॉर्डिग है।)
20 हजार में ही निपटाना चाहती थी मामला
टिटिया के पिता भीला ने बताया कि पुलिस तो इस पूरे मामले को बिचौलियों के द्वारा केवल 20 हजार रुपए में ही निपटाना चाहती थी, लेकिन एमपी के एक रिश्तेदार की वजह से बात नहीं बनी। परिवार चाहता था कि शव को पाटन थाने में ही जलाया जाए, लेकिन कुछ लोगों के दबाव तथा बिना बताए ही शव को गांव में लाया गया। इससे पहले पुलिस की ओर से यह कहलाया गया कि 20 से 25 हजार रुपए ले लो तथा रीति रिवाज के अनुसार कार्यक्रम कर लो। इस बीच मृतक का मामा भूरिया सिंघाड़ा (एमपी की ग्राम पंचायत मकोड़िया के सरपंच) ने हस्तक्षेप किया तथा आगे सीएम तक बात पहुंचाने का दबाव बनाया। तब पुलिस ने स्वयं को फंसता देख आखिर 5.50 लाख रुपए में मामले को दबाने का सौदा कर लिया।
स्वयं को फंसता देख पुलिस ने ही दिया मौताणा
जब पुलिस पर आ पड़ी तो पुलिस ने मृतक के परिवार पर दबाव बनाकर सौदा किया। मौताणा को सामाजिक अपराध मानने वाली पुलिस ने ही इस मौत को दबाने के लिए यह राशि दी। इस बात की पुष्टि सौदा करने में शामिल जिथिंग भाई एवं राशि को लेने वाले परिवार के लोग तथा मृतक के मामा स्वयं ने की है।
मुझे कोई जानकारी नहीं 
॥टिटिया के परिवार को ना तो मैंने कोई राशि दी है, ना ही मुझे इसके बारे में जानकारी है। जिसने राशि दी है उससे ही आपको बात करनी होगी। मैं अभी छुट्टी पर हूं। 
डीएस चुंडावत, एसपी

पीसीसी सचिव विवेक वाजपेयी ने मौके का हाल सुनाया



हम लोग सुकमा से केशलूर की सभा में जा रहे थे। दरभा से करीब 7-8 किलोमीटर पहले ही घाटी की टर्निग में काफिला अचानक रुक गया। कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ। इतने में ही अचानक फायरिंग की आवाज सुनाई देने लगी। किसी को संभलने का मौका ही नहीं मिला। करीब 4.15 या 4.30 बजे थे। मैं अपनी इनोवा सीजी 10-9001 में बैठा था। नौवें या दसवें नंबर पर मेरी गाड़ी लगी थी। कुल मिलाकर करीब 20 गाड़ियां थीं।

सभी नक्सलियों के मुंह पर कपड़े बंधे हुए थे। एके 47 असाल्ट राइफल थी सबके हाथों में। मेरा ड्राइवर राजू था। वह हड़बड़ा गया। उसने गाड़ी की गति तेज कर दी और बच निकलने की जुगत लगाने लगा, लेकिन सामने गाड़ियों के जाम होने के कारण गाड़ी रुक गई।  सभी घबराए हुए थे। किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। कर्मा जी की गाड़ी मेरे आगे ही थी। सबकुछ मेरी आंखों के सामने ही हुआ।
मैं देख रहा था। लेकिन सभी मजबूर थे। मैं भी। उनकी गाड़ी भी फंस चुकी थी। आगे बम ब्लास्ट के कारण रास्ता बंद हो चुका था और एक ट्रक को रास्ते में आड़ा खड़ा कर दिया गया था। जैसे ही सारी गाड़ियां नक्सलियों को फंसी हुई नज़र आई, न जाने कहां से और भी नक्सलियों वहां पहुंचे और ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। मेरी गाड़ी कर्मा जी की गाड़ी को कवर किए हुए ही थी। फायरिंग थमने तक सारे नेता सड़क पर आ चुके थे और लेट गए थे।

नक्सलियों की हरकत देखकर साफ जाहिर हो रहा था कि नक्सली महेन्द्र कर्मा को निशाना बनाना चाहते थे। वे बार बार पूछ रहे थे कि महेन्द्र कर्मा कौन हैं? जैसे ही उन्हें पता चला कि महेन्द्र कर्मा कौन हैं, उन्हें सामने लाकर नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी और उन्हें मार डाला। नक्सली इतने में ही शांत नहीं हुए। गोलियों से मारने के बाद कर्मा जी को बंदूकों की संगीनें भी घोंपी गईं। मारने के बाद भी वे लगातार उनकी शिनाख्त करने के लिए लोगों को बुला बुलाकर पूछते रहे। नक्सलियों के साथ काफी महिलाएं भी थीं। सभी चारों तरफ से घिरे हुए थे। महेन्द्र कर्मा के साथ फूलो देवी नेताम और मैं भी जमीन पर लेटा हुआ था। बाद में नक्सलियों ने सभी से हाथ उठाकर सामने आने को कहा। सभी ने सरेंडर कर दिया। मैंने भी किया। 

नक्सली हमले के विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन, राहुल गांधी पहुंचे रायपुर



रायपुर. नक्सली हमले के विरोध में बिफरे कांग्रेसियों ने राजभवन, जयस्तंभ चौक से लेकर मुख्यमंत्री निवास तक सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किया। पुलिस ने 100 से ज्यादा कांग्रेसियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। उन्होंने एयरपोर्ट की बिल्डिंग को भी काफी नुकसान पहुंचाया।
 
शाम को घटना की खबर मिलने के साथ ही कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और छोटे-बड़े सभी नेताओं का जमावड़ा कांग्रेस भवन में होने लगा। सारे लोग टीवी और फोन पर चिपके हुए थे। हर मौत से उनका आक्रोश लगातार बढ़ता गया। फिर वे वहां से सीधे जयस्तंभ चौक पहुंचे।
 
उनके साथ काफी संख्या में महिला कार्यकर्ताएं भी थीं। प्रदर्शन और नारेबाजी से जयस्तंभ चौक पर ट्रैफिक जाम हो गया। कांग्रेसी घटना के लिए इंटेलिजेंस की विफलता, पुलिस प्रशासन की लापरवाही और सरकार के लापरवाहीपूर्ण रवैये को जिम्मेदार बताते रहे। उन्होंने तत्काल रमन सरकार से इस्तीफा देने की मांग की।
 
यह समय राजनीति करने का नहीं : राहुल 
शनिवार रात तीन बजे कांग्रेस भवन पहुंचे राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग पर कहा कि यह समय राजनीति करने का नहीं है। संयम बरतने और संवेदना व्यक्त करने का है। 

घर को आग लगा कर जा रही थी उसमें कूदने,

भिवानी. बापोड़ा गांव में एक महिला ने पूरे मकान में तेल छिड़क कर आग लगा ली। महिला ने स्वयं पर भी तेल छिड़का और आग में कूदने का प्रयास किया मगर समय रहते पड़ोसियों ने उसे बचा लिया। महिला को दो छोटी- बच्ची हैं। आग से मकान और उसमें रखा सारा सामान जल गया।

मामला दोपहर करीब एक बजे का है। बजीणा की 24 वर्षीय राजल की शादी करीब छह साल पहले बापोड़ा के उमेद के साथ हुई थी। राजल को दो लड़की पांच साल की पायल और तीन साल की चाहत है। पति उमेद की मानसिक हालत ठीक नहीं होने के कारण परिजन उसे उपचार के लिए राजस्थान के किसी गांव में लेकर गए है। वह पिछले एक महीने से वही है।
राजल दोपहर करीब साढ़े 12 बजे अपनी बच्चियों के साथ मायके से अपने घर बापोड़ा लौटी। यहां उसने पड़ोस से पानी लिया और स्वयं पिया और दोनों बच्चियों को पिलाया। इसके बाद उसने पूरे घर में तेल छिड़क दिया और स्वयं पर भी तेल छिड़क लिया। दोनों बच्चियों को घर के आंगन में खड़ा कर घर में आग लगा दी। आग देख पड़ोसी आए। इसी दौरान महिला ने स्वयं भी आग में कूदने का प्रयास किया। मगर पड़ोसियों ने उसे बाहर खिंच लिया और मकान से ही बाहर निकाल दिया।

कुरान का सन्देश

 

जाफर अल सादिक



आज हम बात करते हैं एक ऐसे वैज्ञानिक, चिन्तक और फिलास्फर की
* जो आधुनिक केमिस्ट्री के पिता जाबिर इब्ने हय्यान (गेबर ) का उस्ताद था.
* जो अरबिक विज्ञान के स्वर्ण युग का आरंभकर्ता था.
* जिसने विज्ञान की बहुत सी शाखाओं की बुनियाद रखी.
20 अप्रैल 700 में अरबिक भूमि पर जन्मे उस वैज्ञानिक का नाम था जाफर अल सादिक. इस्लाम की एक शाखा इनके नाम पर जाफरी शाखा कहलाती है जो इन्हें इमाम मानती है. जबकि सूफी शाखा के अनुसार ये वली हैं. इस्लाम की अन्य शाखाएँ भी इनकी अहमियत से इनकार नहीं करतीं.
इमाम जाफर अल सादिक हज़रत अली की चौथी पीढी में थे. उनके पिता इमाम मोहम्मद बाक़र स्वयें एक वैज्ञानिक थे और मदीने में अपना कॉलेज चलाते हुए सैंकडों शिष्यों को ज्ञान अर्पण करते थे. अपने पिता के बाद जाफर अल सादिक ने यह कार्य संभाला और अपने शिष्यों को कुछ ऐसी बातें बताईं जो इससे पहले अन्य किसी ने नहीं बताई थीं.


उन्होंने अरस्तू की चार मूल तत्वों की थ्योरी से इनकार किया और कहा कि मुझे आश्चर्य है कि अरस्तू ने कहा कि विश्व में केवल चार तत्व हैं, मिटटी, पानी, आग और हवा. मिटटी स्वयें तत्व नहीं है बल्कि इसमें बहुत सारे तत्व हैं. इसी तरह जाफर अल सादिक ने पानी, आग और हवा को भी तत्व नहीं माना. हवा को भी तत्वों का मिश्रण माना और बताया कि इनमें से हर तत्व सांस के लिए ज़रूरी है. मेडिकल साइंस में इमाम सादिक ने बताया कि मिटटी में पाए जाने वाले सभी तत्व मानव शरीर में भी होते हैं. इनमें चार तत्व अधिक मात्रा में, आठ कम मात्रा में और आठ अन्य सूक्ष्म मात्रा में होते हैं. आधुनिक मेडिकल साइंस इसकी पुष्टि करती है.
एक शिष्य को बताया, "जो पत्थर तुम सामने गतिहीन देख रहे हो, उसके अन्दर बहुत तेज़ गतियाँ हो रही हैं." उसके बाद कहा, "यह पत्थर बहुत पहले द्रव अवस्था में था. आज भी अगर इस पत्थर को बहुत अधिक गर्म किया जाए तो यह द्रव अवस्था में आ जायेगा."

ऑप्टिक्स का बुनियादी सिद्धांत 'प्रकाश जब किसी वस्तु से परिवर्तित होकर आँख तक पहुँचता है तो वह वस्तु दिखाई देती है.' इमाम सादिक का ही बताया हुआ है. एक बार अपने लेक्चर में बताया कि शक्तिशाली प्रकाश भारी वस्तुओं को भी हिला सकता है. लेजर किरणों के आविष्कार के बाद इस कथन की पुष्टि हुई. इनका एक अन्य चमत्कारिक सिद्धांत है की हर पदार्थ का एक विपरीत पदार्थ भी ब्रह्माण्ड में मौजूद है. यह आज के Matter-Antimatter थ्योरी की झलक थी. एक थ्योरी इमाम ने बताई कि पृथ्वी अपने अक्ष के परितः चक्कर लगाती है. जिसकी पुष्टि बीसवीं शताब्दी में हो पाई. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि ब्रह्माण्ड में कुछ भी स्थिर नहीं है. सब कुछ गतिमान है.
ब्रह्माण्ड के बारे में एक रोचक थ्योरी उन्होंने बताई कि ब्रह्माण्ड हमेशा एक जैसी अवस्था में नहीं होता. एक समयांतराल में यह फैलता है और दूसरे समयांतराल में यह सिकुड़ता है.
कुछ सन्दर्भों के अनुसार इमाम के शिष्यों की संख्या चार हज़ार से अधिक थी. दूर दूर से लोग इनके पास ज्ञान हासिल करने के लिए आते थे. इनके प्रमुख शिष्यों में Father of Chemistry जाबिर इब्ने हय्यान (गेबर), इमाम अबू हनीफा(जिनके नाम पर इस्लाम की हनफी शाखा है) तथा मालिक इब्न अनस (मालिकी शाखा के प्रवर्तक) प्रमुख हैं.
यह विडंबना रही कि दुनिया ने इमाम जफ़र अल सादिक की खोजों को हमेशा दबाने की कोशिश की. इसके पीछे उस दौर के अरबी शासकों का काफी हाथ रहा जो अपनी ईर्ष्यालू प्रकृति के कारण इनकी खोजों को दुनिया से छुपाने की कोशिश करते रहे.
इसके पीछे उनका डर भी एक कारण था. इमाम की लोकप्रियता में उन्हें हमेशा अपना सिंहासन डोलता हुआ महसूस होता था. इन्हीं सब कारणों से अरबी शासक मंसूर ने 765 में इन्हें ज़हर देकर शहीद कर दिया. और दुनिया को अपने ज्ञान से रोशन करने वाला यह सितारा हमेशा के लिए धरती से दूर हो गया

इमाम मुहम्मद तक़ी अ. का जीवन परिचय



नवें इमाम और इस्मत (अल्लाह तआला की ओर से प्रमाणित निर्दोषिता) के ग्यारहवें चमकते सितारे हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम 29 ज़ीकादह सन 220 हिजरी क़मरी को उस समय की हुकूमत के ज़ुल्म व अत्याचार के नतीजे में शहीद हो गए और इमामत की गंभीर जिम्मेदारी आपके बेटे हज़रत इमाम अली नकी अलैहिस्सलाम के कंधों पर आ गई......


नवें इमाम और इस्मत (अल्लाह तआला की ओर से प्रमाणित निर्दोषिता) के ग्यारहवें चमकते सितारे हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम 29 ज़ीकादह सन 220 हिजरी क़मरी को उस समय की हुकूमत के ज़ुल्म व अत्याचार के नतीजे में शहीद हो गए और इमामत की गंभीर जिम्मेदारी आपके बेटे हज़रत इमाम अली नकी अलैहिस्सलाम के कंधों पर आ गई।आपका पाक नाम मोहम्मद, अबू जाफर कुन्नियत (उपाधि) और तक़ी अलैहिस्सलाम और जवाद अलैहिस्सलाम दोनों मशहूर उपनाम थे इसलिए आपको इमाम मुहम्मद तकी अलैहिस्सलाम के नाम से याद किया जाता है. चूंकि आप से पहले इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की कुन्नीयत अबू जाफर चुकी थी इसलिए किताबों में आपको अबू जाफर सानी (दूसरा) और दूसरे उपनामों को सामने रख कर हज़रत जवाद भी कहा जाता है। आपके वालिद (पिता) हज़रत इमाम रेज़ा (अ.) थे और मां का नाम जनाब सबीका या सकीना अलैहस्सलाम था।हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को बचपन ही में पीड़ा और परेशानियों का सामना करने के लिए तैयार हो जाना पड़ा। आपको बहुत कम ही कम समय के लिए संतुष्टि और आराम के क्षणों में बाप के प्यार, मोहब्बत और प्रशिक्षण के साए में जीने का अवसर मिला। आपका केवल पांचवां साल था, जब हज़रत इमाम रेज़ा (अ) मदीने से ख़ुरासान का सफ़र करने पर मजबूर हुए तो फिर आपको ज़िंदगी में मुलाकात का मौका नहीं मिला। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से अलग होने के तीसरे साल इमाम रेज़ा (अ) की शहादत हो गई। 
दुनिया समझती होगी कि इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के लिए इल्म की बुलंदियों तक पहुंचने का कोई साधन नहीं रहा इसलिए अब इमाम जाफर सादिक (अ) की इल्मी मसनद (सिंघहासन) शायद खाली नज़र आए मगर लोगों की हैरत व आश्चर्य की कोई हद नहीं रही जब बचपने में इस बच्चे को थोड़े दिन बाद मामून के बग़ल में बैठ कर बड़े बड़े उल्मा से फ़िक़्ह, हदीस तफसीर और इल्मे कलाम पर मुनाज़रे (वाद - विवाद) करते देखा और सबको उनकी बात से सहमत हो जाते भी देखा, उन सबका आश्चर्य तब तक दूर होना सम्भव नहीं था, जब तक वह भौतिक कारणों के आगे एक ख़ास इलाही शिक्षा को स्वीकार न करते, जिसको क़ुबूल किए बिना यह मुद्दा न हल हुआ और न कभी हल हो सकता है।
जब इमाम रज़ा (अ) को मामून ने अपना उत्तराधिकारी (वली अहेद) बनाया और सियासत की मांग यह हुई कि बनी अब्बास को छोड़कर बनी फ़ातिमी से संपर्क स्थापित किए जाएँ और इस तरह अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के शियों को अपनी ओर आकर्षित किया जाए तो उसने ज़रूरत महसूस की कि प्यार व एकता एंव गठबंधन के प्रदर्शन के लिए उस पुराने रिश्ते के अलावा जो हाशमी परिवार से होने की वजह से है, कुछ नये रिश्तों की बुनियाद भी डाल दी जाए इसलिए उस प्रोग्राम में जहां विलायत अहदी (उत्तराधिकार) की रस्म अदा की गई. उसने अपनी बहन उम्मे हबीबा का निकाह इमाम रेज़ा (अ) के साथ पढ़ दिया और अपनी बेटी उम्मे फ़ज़्ल से इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की मंगनी का ऐलान कर दिया।
शायद उसका ख्याल था कि इस तरह इमाम रेज़ा (अ) बिल्कुल अपने बनाए जा सकते हैं लेकिन जब उसने महसूस किया कि यह अपनी उन ज़िम्मेदारियों को छ़ोड़ने के लिए तैयार नहीं है जो रसूल के वारिस होने के आधार पर उनके लिए है, और वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो सकते इस लिए उसने सोचा कि अब्बासी हुकूमत के साथ उन सिद्धांतों पर कायम रहना, मदीने के बनी हाशिम मुहल्ले में अकेले में जिंदगी बिताने से कहीं अधिक ख़तरनाक है।
तो उसे अपने हित और हुकूमत की रक्षा लिए इसकी जरूरत महसूस हुई कि जहर देकर हज़रत इमाम रेज़ा अलैहिस्सलाम का ज़िंदगी को ख़त्म कर दे मगर वह सियासत जो उसने इमाम रेज़ा अलैहिस्सलाम को वली अहेद बनाने की थी यानी ईरानी क़ौम और शियों को अपने कब्जे में रखना वह अब भी बाकी थी इसलिए एक ओर तो इमाम रेज़ा (अ) के शहादत पर उसने बहुत ज़्यादा शोक और दुख व्यक्त किया ताकि वह अपने दामन को हज़रत (अ) के नाहक़ खून से अलग साबित कर सके और दूसरी ओर उसने अपने ऐलान को पूरा करना ज़रूरी समझा जिसमें उसने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के साथ अपनी लड़की की मंगनी की थी, उसने इस मक़सद से इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को मदीने से इराक़ की ओर बुलवाया, इसलिए कि इमाम रेज़ा (अ) की शहादत के बाद ख़ुरासान से अब अपने परिवार की पुरानी राजधानी बगदाद में आ चुका था और उसने संकल्प लिया कि वह उम्मे फ़ज़्ल का निकाह आपके साथ बहुत जल्दी कर दे।
बनी अब्बास को मामून की तरफ़ से इमाम रेज़ा (अ) को वली अहेद बनाया जाना ही असहनीय था इसलिए इमाम रेज़ा (अ) की शहादत से एक हद तक उन्हें संतोष मिला था और उन्होंने मामून से अपनी मर्ज़ी के अनुसार उसके भाई मोमिन की विलायत अहदी का ऐलाम भी करवा दिया जो बाद में मोतसिम बिल्लाह के नाम से खलीफा स्वीकार किया गया। इसके अलावा इमाम रेज़ा (अ) की विलायत अहदी के ज़माने में अब्बासियों का ख़ास लिबास यानी काला लिबास बदल कर हरा लिबास बन गया था उसे रद्द कर फिर काले लिबास को ज़रूरी कर दिया गया, ताकि बनी अब्बास की पुरानी परंपराओं और सुन्नतों को ज़िंदा रखा जाए।
यह बातें अब्बासियों को विश्वास दिला रही थी कि वह मामून पर पूरा कंट्रोल पा चुके हैं मगर अब मामून का यह इरादा कि इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को अपना दामाद बनाए उन लोगों के लिए फिर चिंता की बात बन गया। इस हद तक कि वह अपने दिल की बात को मन में नहीं रख सके और एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में मामून के पास आकर अपनी भावनाओं को ज़ाहिर कर दिया, उन्होंने साफ साफ कहा कि इमाम रेज़ा अ. के साथ जो सियासत आपने अपनाई वही हमें नापसंद थी। मगर खैर वह कम से कम अपनी उम्र और गुण और कमालात के लिहाज से सम्मान और इज़्ज़त के लाय़क़ समझे भी जा सकते थे, लेकिन उनके बेटे मुहम्मद तक़ी (अलैहिस्सलाम) अभी बिल्कुल छोटे हैं एक बच्चे को बड़े उल्मा और समझदारों पर प्राथमिकता देना और उसकी इतनी इज़्ज़त करना कभी खलीफा के लिए उचित नहीं है और उसे शोभा नहीं देता है फिर उम्मे हबीबः का निकाह जो इमाम रेज़ा (अ) के साथ किया गया था, उससे हमें क्या लाभ पहुंचा? जो अब उम्मे फ़ज़्ल का निकाह मोहम्मद इब्ने अली अलैहिस्सलाम के साथ किया जा रहा है?
मामून ने उन सभी बातों का जवाब यह दिया कि मोहम्मद अलैहिस्सलाम का बचपना जरूर हैं, लेकिन मैंने खूब अनुमान लगाया है, गुणों और कमालों में वह अपने पिता के सच्चे उत्तराधिकारी हैं और इस्लामी दुनिया के बड़े उल्मा जिनका आप हवाला दे रहे हैं, इल्म में उनका मुकाबला नहीं कर सकते। अगर तुम चाहो तो इम्तेहान लेकर देख लो। फिर तुम्हें भी मेरे फैसले से सहमत होना पड़ेगा। यह केवल उचित जवाब ही नहीं बल्कि एक तरह की चुनौती थी जिसपर न चाहते हुए भी उन्हें मुनाज़रे की दावत क़ुबूल करनी पड़ी हालांकि खुद मामून सभी बनी अब्बास बादशाहों में यह विशेषता रखता है कि इतिहासकार उसके लिए यह शब्द लिख देते हैं कि वह बड़े फ़ुक़्हा में से था। इसलिए उसका यह फैसला खुद अपनी जगह अहमियत रखता था लेकिन उन लोगों ने उस पर बस नहीं किया बल्कि बगदाद के सबसे बड़े आलिम यहया बिन अकसम को इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से मुनाज़रे (वाद-विवाद) के लिए चुना।
मामून ने विशाल सभा इस प्रोग्राम के लिए आयोजित की और आम ऐलान करा दिया, हर इंसान इस अजीब मुक़ाबले को देखना चाह रहा था जिसमें एक तरफ एक आठ साल का बच्चा था और दूसरी ओर एक अनुभवी और शहर का जज। इसी का नतीजा था कि हर तरफ से भीड़ एकट्ठा होनी शुरू हो गई। इतिहासकारों का बयान है कि सरकारी स्टाफ़ के अलावा इस मीटिंग में नौ सौ कुर्सियाँ केवल उल्मा के लिए लगाई गई थीं और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है इसलिए कि वह युग अब्बासी सरकार की इल्मी तरक़्क़ी और विकास का दौर था और बगदाद राजधानी थी जहां सभी ओर के विभिन्न ज्ञान और कलाओं के विशेषज्ञ जमा हो गए थे। इस तरह इस संख्या में किसी तरह का शक व संदेह मालूम नही देता।
मामून ने हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के लिए अपने बग़ल में सिंघहासन लगवाया था और हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के सामने यहया बिन अक़्सम के लिए बैठने की जगह थी। हर तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा था। लोग बातचीत शुरू होने के समय की प्रतीक्षा कर रहे थे कि चुप्पी को यहया के सवाल ने तोड़ा जो उसने मामून की ओर मुड़कर कियाः हुज़ूर क्या अनुमति है कि अबू जाफर अलैहिस्सलाम से एक सवाल पूछूँ?
मामून ने कहा, तुम्हें खुद उन्हीं से अनुमति मांगनी चाहिए।
यहया इमाम अलैहिस्सलाम की ओर मुड़ा और कहने लगाः क्या आप अनुमति देते हैं कि आपसे कुछ पूछूँ?
आपने जवाब में कहाः तुम जो पूछना चाहो पूछ सकते हो।
यहया ने पूछा कि एहराम की हालत में अगर कोई शिकार करे तो क्या हुक्म है? इस सवाल से अंदाज़ा यह होता है कि यहया हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अ. के इल्म की ऊंचाई से बिल्कुल भी परिचित नहीं था, वह अपने घमंड और जिहालत से यह समझता था कि यह तो बच्चे हैं, नमाज़ रोज़े के अहकाम से परिचित हों तो हों पर हज आदि के हुक्म और समले ख़ास कर एहराम में जिन चीजों को मना किया गया है उनके कफ़्फारों (जुर्माना) से भला कहां परिचित होंगे!
इमाम अलैहिस्सलाम ने उसके जवाब में इस तरह उसके सवाल से इस तरह अलग अलग कई सवाल निकाल दिए कि जिससे आपके इल्म की गहराई का यहया और सभी लोगों को अंदाज़ा हो गया, यहया खुद भी अपने को कम आंकने लगा और सारे लोग भी उसकी हार निश्चित होना महसूस करने लगा। आपने जवाब में फ़रमाया कि तुम्हारा सवाल बिल्कुल अस्पष्ट और कुल मिला कर दुविधा पूर्ण है। यह देखने की जरूरत है कि शिकार हिल में था या हरम में, शिकार करने वाला मसले से परिचित था या अनभिज्ञ और नावाक़िफ़, उसने जानबूझकर उस जानवर को मार डाला या धोखे से वह मर गया, वह इंसान आज़ाद था या गुलाम, बच्चा था या बालिग़ (वयस्क), पहली बार ऐसा किया था या पहले भी ऐसा कर चुका था? शिकार चिड़िया का था या कोई औऱ चीज़? छोटा था या बड़ा? अपने काम में लगा हुआ है या पछता रहा है? रात को या छुप कर उसने शिकार या दिन दहाड़े और खुल्लम खुल्ला? एहराम उमरे का था या हज का? जब तक यह सभी विवरण न बताए जाएं इस समस्या का एक निश्चित हुक्म नहीं बताया जा सकता है।
यहया कितना ही अयोग्य क्यों न होता बहेरहाल फ़िक़्ही समस्याओं और मसलों पर कुछ न कुछ उसकी भी नज़र थी, वह अच्छी तरह से समझ गया कि इनसे मुकाबला मेरे लिए आसान नहीं है उसके चेहरे पर हार का ऐसा असर दिखा जिसका सारे दर्शकों ने अंदाज़ा लगा लिया। उसकी ज़बान गुंग हो गई और वह कुछ जवाब नहीं दे रहा था। मामून ने हालात का सही आकलन कर उससे कुछ कहना बेकार समझा और हज़रत (अ.) से पूछा कि फिर आप ही इन सभी मसलों के हुक्म बयान फ़रमा दीजिए, ताकि सभी को फ़ायदा मिल सके। इमाम अलैहिस्सलाम ने विस्तार से सभी मामलों केजो हुक्म थे बयान कर दिएय़। यहया हक्का बक्का इमाम अलैहिस्सलाम का मुंह देख रहा था और बिल्कुल चुप था। मामून भी उसे हार के आख़री सिरे तक पहुंचा देना चा रहा था इसलिए उसने इमाम अलैहिस्सलाम से कहा कि अगर उचित समझे तो आप (अलैहिस्सलाम) भी यहया से सवाल कीजिए।
हज़रत अलैहिस्सलाम ने यहया से पूछा कि क्या मैं भी तुमसे कुछ पूछ सकता हूँ? यहया अब अपने बारे में किसी धोखे का शिकार नहीं था, अपना और इमाम अलैहिस्सलाम का दर्जा उसे खूब मालूम हो चुका था। इसलिए अब उसकी बातचीत का अंदाज़ भी बदल चुका था, उसने कहा कि हुज़ूर पूछें अगर मुझे पता होगा तो जवाब दूँगा और नहीं पता होगा तो खुद हुज़ूर से ही पता कर लूंगा। हज़रत (अ) ने सवाल कियाः जिसके जवाब में यहया ने खुले शब्दों में अपनी नाकामी को स्वीकार कर लिया और फिर इमाम ने खुद उस सवाल का जवाब दे दिया। मामून को अपनी बात के ऊपर रहने की खुशी थी, उसने लोगों की ओर मुड़ कर कहा:
देखो नहीं कहता था कि यह परिवार है जिसे अल्लाह तआला की तरफ़ से इल्म का मालिक बनाया गया है। यहां के बच्चों का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। भीड़ में उत्साह था, सब ने एक ज़बान होकर कहा कि बेशक जो आपकी राय है, वह बिल्कुल ठीक है और निश्चित रूप से अबू जाफर मोहम्मद इबने अली अलैहिस्सलाम के समान कोई नहीं है। मामून ने इसके बाद जरा भी देरी उचित नहीं समझी और इसी सभा में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के साथ उम्मे फ़ज़्ल का निकाह कर दिया। शादी के पहले जो ख़ुत्बा हमारे यहाँ आमतौर पढ़ा जाता है वही है जो इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने निकाह के अवसर पर अपनी मुबारक ज़बान पर जारी किया था। जिसे एक यादगार के रूप में शादी के अवसर पर बाकी रखा गया है मामून ने शादी की खुशी में बड़ी उदारता से काम लिया, लाखों रुपये खैर और दान में बांटे गए और सभी लोगों को इनाम और दान से मालामाल किया गया।
मदीने की तरफ़ वापसी
इमाम अ. शादी के बाद लगभग एक साल तक बगदाद में रहते रहे इसके बाद मामून ने बहुत अच्छे मैनेजमेंट के साथ उम्मे फ़ज़्ल को हज़रत (अ) के साथ विदा कर दिया और इमाम अलैहिस्सलाम मदीने में वापस चले गए।
आपका कैरेक्टर
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अख़लाक़, व्यवहार और नैतिकता में इंसानियत की उस ऊंचाई पर थे जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम की याद दिलाती थी कि हर एक से झुककर मिलना. जरूरत मंदों की ज़रूरत पूरा करना, बराबरी, समानता और सादगी को हर हालत में मद्देनज़र रखना. ग़रीबों की ख़बर लेना और दोस्तों के अलावा दुश्मनों तक से अच्छा व्यवहार रखना। व.......
शहादत
बगदाद में आने के बाद लगभग एक साल तक मोतसिम ने जाहिरी तौर पर आपके साथ कोई सख्ती नहीं लेकिन आपका यहाँ रहना ही जबरन था जिसे नजरबंदी के अलावा और क्या कहा जा सकता है इसके बाद उसी हरबे से जिसे अक्सर इस परिवार के बुजुर्गों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था, आपकी ज़िंदगी का खात्मा कर दिया गया और 29 ज़िल-कादः 220 हिजरी में ज़हर से आपकी शहादत हुई और दादा हज़रत इमाम मूसा काज़िम के पास दफन हुए।,

जब इमाम जाफर सादिक (अ-स-) ने एक हिन्दुस्तानी चिकित्सक को शिक्षा दी।


इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम के ज़माने में इस्लाम की खुशबू पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। और यह खुशबू थी इस्लाम के ज्ञान और सच्चाई की। ज्ञान की तलाश में भटकते दूर दराज़ के लोग इस्लामी विद्वानों से आकर मिलते थे और फायदा हासिल करके वापस जाते थे। इस बार मैं आपको ऐसा ही किस्सा सुनाने जा रहा हूं जब एक हिन्दुस्तानी चिकित्सक इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम से आकर मिला। वह इमाम को अपना ज्ञान देना चाहता था, लेकिन हुआ इसका उल्टा और वह खुद इमाम से ज्ञान हासिल करके वापस हुआ।

यह वाक़िया दर्ज है शेख सुद्दूक (अ.र.) की लिखी ग्यारह सौ साल पुरानी किताब एलालुश-शराये में। यह किताब उर्दू में आसानी से उपलब्ध् है और कोई भी इसे हासिल करके तस्दीक कर सकता है। क्योंकि हो सकता है कुछ लोग मेरे ऊपर ये इल्जाम लगा दें कि मैं ये किस्से अपनी तरफ से गढ़ रहा हूं।  किताब में लिखा पूरा वाकिया मैं हूबहू उतार रहा हूं।        

एक दिन हज़रत इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम दरबार में तशरीफ लाये। उस वक्त खलीफा मंसूर के पास एक मर्द हिन्दी (हिन्दुस्तानी) चिकित्सा की किताबें पढ़कर मंसूर को सुना रहा था। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम खामोश बैठे सुनते रहे। जब वह मर्द हिन्दी सुनाकर फारिग हुआ तो इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम से बोला जो कुछ मेरे पास है वह आपको चाहिए? तो इमाम ने फरमाया नहीं, इसलिये कि तुम्हारे पास जो कुछ है उससे बेहतर हमारे पास खुद मौजूद है। उसने कहा आपके पास क्या है? 

आपने फरमाया मैं सर्दी का इलाज गर्मी से करता हूं और गर्मी का सर्दी से। तरी का खुशकी से इलाज करता हूं और खुशकी का तरी से और तमाम फैसले खुदा के हवाले कर देता हूं। रसूल अल्लाह (स.) ने जो कुछ फरमाया है उसपर अमल करता हूं। चुनान्चे रसूल (स.) ने ये फरमाया कि वाजय रहे कि मेदा (पेट) बीमारियों का घर है और बुखार खुद एक दवा है और मैं बदन को उस तरफ पलटाता हूं जिस का वह आदी है। 

मर्द हिन्दी ने कहा कि यही तो तिब (चिकित्सा) है इस के अलावा और क्या है। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया क्या तुम्हारा ये ख्याल है कि मैंने किताबें पढ़कर ये सबक हासिल किया है? उस ने कहा जी हाँ। आपने फरमाया नहीं, खुदा की कसम मैंने जो कुछ लिया है सिर्फ अल्लाह से लिया है। अच्छा बताओ मैं इल्म तिब ज्यादा जानता हूं या तुम? मर्द हिन्दी ने कहा नहीं आप से ज्यादा मैं जानता हूं। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया अच्छा ये दावा है तो मैं तुम से कुछ सवाल करता हूं। 

ऐ हिन्दी ये बताओ कि सर में हड्डियों के जोड़ क्यों है? उसने कहा मैं नहीं जानता। आपने फरमाया और सर के ऊपर बाल क्यों बनाये गये हैं? उस ने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया और पेशानी (माथे) को बालों से खाली क्यों रखा गया है। उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया और पेशानी पर ये खुतूत और लकीरें क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने  फरमाया दोनों भवों को दोनों आँखों के ऊपर क्यों बनाया गया? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ आँखें बादाम की तरह क्यों बनाई गयीं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया ये नाक दोनों आँखों के दरमियान क्यों बनाई गयी? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया नाक के सुराख नीचे क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया होंठ और मूंछें मुंह के ऊपर क्यों बनाई गयीं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ सामने के दाँत तेज़ क्यों हैं? दाढ़ के दाँत चौड़े और साइड के लम्बे क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने  फरमाया मर्दों के दाढ़ी क्यों निकलती है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ नाखूनों और बालों में जान क्यों नहीं होती? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ इंसान का दिन सुनोबरी शक्ल में क्यों बनाया गया? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ फेफड़ों को दो टुकड़ों में क्यों बनाया गया? और उसकी हरकत अपनी जगह पर क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ जिगर उभरा हुआ कुबड़े की शक्ल में क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ गुरदा लोबिया की दाने की शक्ल में क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ घुटने पीछे की तरफ क्यों मुड़ते हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया तुझे नहीं मालूम ये दुरुस्त है लेकिन मुझे मालूम है। अब मर्द हिन्दी ने कहा आप बताईए।

इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि सर में हड्डियों के जोड़ इसलिए हैं कि ये अन्दर से खोखला है अगर ये बिला जोड़ और बिला फस्ल हों तो बहुत जल्द सर में दर्द होने लगेगा। जोड़ व फस्ल की वजह से सरदर्द दूर रहता है। सर पर बालों की पैदाइश इसलिए है ताकि उसकी जड़ों के जरिये तेल वगैरा दिमाग तक पहुंचे और उस के किनारों से नुकसानदायक बुखारात निकलते रहें और सर गर्मी व सरदी के असर को दूर रखे। पेशानी (माथे) को बालों से खाली इसलिए रखा गया कि वहाँ से आँखों की तरफ रोशनी की रेजिश होती है और पेशानी पर खुतूत (लकीरें) इसलिए हैं कि सर से जो पसीना बह कर आँखों की तरफ आये वह इस पर रुका रहे जिस तरह ज़मीन पर नहरें और दरिया जो पानी को फैलने से बचाते हैं। और आँखों पर दोनों भवें इसलिए पैदा की गयीं ताकि आँखों तक ज़रूरत से ज्यादा रोशनी न पहुंचे। ऐ हिन्दी क्या तुम नहीं देखते कि रोशनी तेज़ होती है तो लोग अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं ताकि हद से ज्यादा रोशनी आँखों तक न पहुंचे। इन दोनों आँखों के दरमियान नाक अल्लाह ने इसलिए रख दी ताकि दोनों के बीच रोशनी बराबर से तक़सीम (वितरित) हो जाये। आँखों को बादाम की शक्ल में इसलिए बनाया ताकि उसमें सुरमे की सलाई दवा के साथ मुनासिब तौर पर चल सके और आँखों का मर्ज दूर हो सके। नाक के सुराख इसलिए नीचे रखे ताकि दिमाग से जो खराब माद्दा निकले वह नीचे गिर जाये और नाक से खुशबू ऊपर जाये। अगर ये सुराख ऊपर होते तो न दिमाग का फासिद माद्दा नीचे गिरता और न किसी शय की खुशबू वगैरा मिलती। और मूंछें व होंठ मुंह के ऊपर इसलिए रखे गये ताकि वह दिमाग से बहते हुए फासिद माद्दे को रोके और मुंह तक न पहुंचे ताकि इंसान के खाने पीने की चीज़ों को गंदा न करे। और मरदों के चेहरे पर दाढ़ी इसलिए ताकि एक नज़र में औरत मर्द की पहचान हो सके। और पता चल जाये कि आँखों के सामने मर्द है या औरत। सामने के दाँतों को तेज़ इसलिए बनाया कि इससे चीज़ों को काटते हैं और दाढ़ के दाँत चौकोर इसलिए कि उससे गिज़ा को पीसना है और किनारे के दाँतों को लम्बा इसलिए रखा ताकि दाढें और सामने के दाँत मज़बूती से जमे रहें। जिस तरह किसी इमारत के सुतून (पिलर) होते हैं। 

हथेलियों को बालों से अल्लाह ने इसलिए खाली रखा कि इंसान इसी से छूता और मस करता है। अगर इनमें बाल हों तो इंसान को पता न चले कि क्या चीज़ छू रहा है और बाल व नाखून को जिंदगी से इसलिए खाली रखा कि उनका लम्बा होना गन्दगी का सबब है। उनका तराशना अच्छा है। अगर दोनों में जान होती तो इंसान को उन्हें काटने में तकलीफ होती। 

और दिल सुनोबर के फल की तरह इसलिए है कि वह सरंगूं रहे और उस का सर पतला रहे, इसलिए कि वह फेफड़ों में दाखिल होकर उससे ठंडक हासिल करे। ताकि उसकी गरमी से दिमाग भुन न जाये।
(यह जुमला निहायत गहराई लिये हुए है अत: इसपर मैं अपनी अगली पोस्ट में विस्तार से रोशनी डालूंगा।)

फेफड़ों को दो टुकड़ों में इसलिए बनाया ताकि उन दोनों के भिंचने और दबाव में वह अन्दर रहे और उन की हरकत से राहत हासिल करे। और जिगर को कुबड़े की शक्ल इसलिए दी ताकि वह मेदे पर वज़न डाले और पूरा उसपर गिर जाये और निचोड़ दे ताकि वह बुखारात वगैरा जो उसमें हैं निकल जायें। और गुरदे को लोबिया के दानों की शक्ल इसलिए दी क्योंकि मनी (वीर्य) का अनज़ाल इसी पर बूंद बूंद होता है। अगर ये चौकोर या गोल होता तो पहला कतरा दूसरे को रोक लेता और उस के निकलने से किसी जानदार को लज्ज़त न महसूस होती। क्योंकि मनी रीढ़ की गिरहों से गुर्दे पर गिरती है जो कपड़े की तरह सिकुड़ता और फैलता रहता है और मनी को एक एक क़तरा करके मसाने की तरफ फेंकता रहता है जैसे कमान से तीर। और घुटने को पीछे की तरफ इसलिए अल्लाह ने मोड़ा कि इंसान अपने आगे की तरफ चले तो उस की हरकत मातदिल (बैलेन्स्ड) रहे, अगर ऐसा न होता तो आदमी चलने में गिर पड़ता। 

उस मर्द हिन्दी ने कहा आपको ये इल्म कहाँ से मिला? फरमाया मैंने ये इल्म अपने आबाये कराम से और उन्होंने रसूल अल्लाह (स.) से और उन्होंने हज़रते जिब्रील (अ.) से और उन्होंने उस रब्बुलआलमीन से जिसने तमाम अजसाम व अरवाह को खल्क किया। उस मर्द हिन्दी ने कहा आप सच फरमाते हैं, मैं गवाही देता हूं कि नहीं है कोई अल्लाह सिवाय उसी अल्लाह के और मोहम्मद उसी अल्लाह के रसूल और बन्दे हैं। और आप अपने ज़माने के सबसे बड़े आलिम हैं।
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