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03 जुलाई 2013

दरा से बनेगा 87 किमी लंबा स्टेट हाईवे, मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी



कोटा। राज्य सरकार ने दरा से कनवास-खानपुर होते हुए अरनिया तक 87 किलोमीटर लंबे मार्ग को स्टेट हाईवे घोषित कर दिया है। बुधवार को जयपुर में मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी मिलने के बाद इसके आदेश जारी कर दिए।
टू लेन वाली इस नई सड़क का निर्माण पीडब्ल्यूडी कराएगा। विभागीय सूत्रों के अनुसार, फिलहाल यह जिला सड़क एमडीआर-55 है, जिसे राज्य मार्ग घोषित होने के बाद चौड़ा करके टू-लेन बनाया जाएगा। इसके निर्माण की टेंडर प्रक्रिया पूरी कर बरसात के बाद इसका काम शुरू कर दिया जाएगा।


अब ऐसे पहुंच सकेंगे झालावाड़
नए वैकल्पिक स्टेट हाईवे के लिए दरा से कनवास, धुलेट, खानपुर होते हुए तारज अरनिया तक 87 किमी लंबी सिंगल सड़क को नए सिरे से टू-लेन बनाया जाएगा। दरा से कनवास-धुलेट-खानपुर की दूरी 35 किमी है, वहां से मेगा हाइवे से झालावाड़ की दूरी 30 किमी है। अभी दरा से झालावाड़ का सीधा सड़क मार्ग 42 किमी है, जबकि नए वैकल्पिक स्टेट हाईवे से यह दूरी 65 किमी होगी।

टाइगर रिजर्व से आ रही थी अड़चन
मुकंदरा टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाद दरा से झालावाड़ तक एनएच-12 की क्षतिग्रस्त सड़क की मरम्मत के लिए एनएचएआई को अनुमति नहीं मिल पा रही है, जिससे इस मार्ग पर आवागमन बाधित हो रहा है। पीडब्ल्यूडी मंत्री भरतसिंह ने पिछले दिनों दरा-खानपुर-अरनिया वैकल्पिक स्टेट हाईवे का प्रस्ताव बनाकर मुख्यमंत्री को भेजा था, जिसे बुधवार को हरी झंडी दे दी गई।

कुरान का सन्देश

25 साल बाद भी इंसाफ नहीं: 8 से 80 साल तक की महिलाओं से फौजियों ने किया था बलात्‍कार



23 फरवरी 1991 की रात, कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में हिमाच्छादित गांव कुनन पोशपारा में लोग घरों के भीतर, कांगडिय़ों से खुद को गर्म रख रहे थे या रजाइयों में दुबके थे। शांत रात का सन्नाटा अचानक दरवाजे पर दस्तक से टूटता है। सेना आई थी एक और ‘कड़ी कार्रवाई’ के लिए उन आतंकियों को निकालने जो उसे लगता था उनके गांव में छिपे हैं। 
 
घाटी में उग्रवाद अपने चरम पर था और यह सुरक्षा बलों का रूटीन था कि गांवों के इर्द-गिर्द रहें और लोगों को उनके घरों से निकालकर पूछताछ करें। उस रात सुरक्षाबल दो घरों में गए, जो पूछताछ यातना केन्द्रों में तब्दील हो गए। पुरुषों को औंधे मुंह लिटाया गया, उनके चेहरे मिर्ची भरे बर्तन में थे और उन्हें बिजली के झटके दिए गए। 
 
पुरुषों को पता नहीं था, फौजियों की टोली उनके हरेक घर में घुस चुकी थी, जहां उन्होंने 8 से 80 साल तक की लड़कियों और महिलाओं से बारी-बारी दुष्कर्म किया, यहां तक कि बच्चे उन्हें देखकर दहशत से चीखते रहे। अगली सुबह पुरुषों को निर्देश मिले, जब तक सेना गांव से चली न जाए, वे अपने घर न लौटें। जब वे घर पहुंचे तो पाया कि उनके घर लुट चुके थे, औरतें अपने घरों में बेहोश पड़ी थीं, खून बह रहा था, सहमे से बच्चे उन्हें घेरे थे।

आतंकवादी नहीं, अपहरण की चश्मदीद थी इशरत? सीबीआई ने कहा फर्जी था एनकाउंटर



अहमदाबाद. जून 2004 को एनकाउंटर में मारी गई इशरत जहां आतंकवादी नहीं सिर्फ इंटेलीजेंस के अधिकारियों के किए गए एक अपहरण की चश्मदीद थी? सीबीआई सूत्रों के मुताबिक इशरत जहां को को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि उसने इंटेलिजेंस ब्यूरो के लोगों को अमजद अली राणा का अपहरण करते देख लिया था।
 
सीबीआई ने बुधवार शाम को सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दायर की। सूत्रों के मुताबिक इसमें आईबी अधिकारी राजेंद्र कुमार और मोदी के खासमखास और बीजेपी महासचिव अमित शाह समेत किसी भी नेता का नाम नहीं है। चार्जशीट में पूर्व आईपीएस जीएल सिंघल और इशरत एनकाउंटर का नेतृत्व करने वाले डीजी बंजारा, एनके अमीन, पीपी पांडेय, तरुण बरोट, अनाजु चौधरी, जेजी परमार का नाम शामिल है। 
 
चार्जशीट में कहा गया है कि बंजारा समेत दूसरे आरोपियों ने इंटेलीजेंस ब्यूरो के ऑफिस से हथियार लेकर इशरत और दूसरे लोगों के शव के पास रखे थे। उन्हें मारने से पहले बेहोश किया गया था। गुजरात पुलिस ने एनकाउंटर को मैनेज करने का काम किया था। सीबीआई ने अदालत से सबूत जुटाने के लिए और समय की मांग की है। चार्जशीट में आईबी और गुजरात पुलिस की मिलीभगत होने की बात भी कही गई है। 
 
इशरत के आतंकी न होने की वजह से क्राइम ब्रांच के चार अधिकारियों ने उसके (इशरत) एनकाउंटर का विरोध भी किया था। इशरत के अलावा एनकाउंटर में मारे गए तीनों पुरुष आतंकवादी थे। ये लोग मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाने नहीं, बल्कि अहमदाबाद में आतंकवादी हमले का मंसूबा पाले हुए थे

नक्‍सली हमले में शहीद जवानों के शव के साथ ये कैसा सलूक! देखें विचलित कर देने वाली तस्‍वीर


पाकुड़/दुमका/रांची. नक्‍सली हमले में शहीद हुए पांच बॉडीगार्ड सहित शहीद हुए पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार ( की मौत पर भले ही मातम मनाया जा रहा है लेकिन शहीद हुए इन लोगों के साथ जैसा सलूक हुआ वह बेहद शर्मनाक है। वारदात के बाद मौके से शहीद जवानों के शव घसीट कर ले जाए गए और ट्रकों में लादे गए(तस्‍वीर में)। दूसरी तरफ, अमरजीत के शहीद होने की सूचना के बावजूद रांची स्थित पुलिस मुख्यालय का कोई अफसर उनके आवास ढांढस बंधाने नहीं पहुंचा। जबकि शहीद का आवास रांची में है। पूर्व डीजीपी को छोड़ किसी सीनियर अफसर ने शहीद के परिवार की सुध नहीं ली। शाम में एसपी विजिलेंस राजकुमार लकड़ा, एसपी वायरलेस चंद्रशेखर प्रसाद, डीआईजी रांची जोन शीतल उरांव, एसएसपी साकेत कुमार सिंह पथलकुदवा स्थित आवास पहुंचे। (पढें, अब जूतों के चलते नक्सलियों से मात नहीं खाएंगे जवान)
 
इधर, भाकपा माओवादी के सिद्धांतकार वारवरा राव ने कहा है कि क्रांति के रास्ते में ऐसी कार्रवाई जायज है। हमले के पीछे माओवादी जोनल कमांडर प्रवीर दा उर्फ हिरेंद्र के दस्ते का हाथ बताया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल से भी माओवादी दस्ता आया था। हालांकि किसी संगठन ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। प्रवीर दा का क्षेत्र में अच्छा-खासा आतंक है। उनके दस्ते में जोनल कमांडर रामलाल राय (जेल में) का भाई भी शामिल है। 
 
संदेह के घेरे में ड्राइवर?

एसपी जिस स्कॉर्पियो पर सवार थे, वह निजी था। इसलिए ड्राइवर भी निजी था। एक पुलिस अफसर का कहना है कि अगर ड्राइवर के मोबाइल कॉल डिटेल निकाले जाएं, तो कई राज सामने आएंगे।
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