आपका-अख्तर खान

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10 जुलाई 2013

देश के हालातों पर जज्बात और अल्फाजों का हल चलाकर रामनारायण हलधर शिखरों के वास्तविक हकदार हो गए है

दोस्तों आप से मिलिए आप है ... ग्रामीण माटी में जन्मे , पले ,बढे ..आकाशवाणी के उद्घोषक स्टार और अपने अतुकांत दोहों में देश और समाज का दर्द और हालातों की अक्कासी करने वाले रामनारायण हलधर जिनकी माता श्रीमती केसरबाई ने इन्हें दुनिया के बारे में बताया तो पिता श्री रामगोपाल जी मीणा ने इन्हें ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया .......एक अप्रेल उन्नीस सो सत्तर में बार जिले की छिपाबडोद तहसील के गाँव तूमडा में जन्मे भाई रामनारायण मीणा स्नातक तक रामनारायण मीणा थे फिर जब किसान का दर्द और अल्फाजों की खेती कर यह साहित्य के मैदान मे कूदे तो रामनारायण मीणा हलधर भी बन गए और इनके हलधारण के बाद इन्होने लेखन कार्य में पीछे मुड़कर नहीं देखा इनकी कई पुस्तकों का प्रकाशन हुआ क्षेत्रीय .प्रादेशिक और राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक समाचार पत्र मैगजीन में इनकी रचनाओं का प्रकाशन इनका मनोबल और प्रसिद्धि बढ़ता रहा ...कोटा आकाशवाणी में विशेष मुकाम इनका होने से इन्होने कोटा आकाशवाणी को नए आयाम दिए और अपने इस शोक के साथ साथ कोटा आकाशवाणी पर देश विदेश की प्रसिद्ध विभूतियों के साक्षात्कार भी इन्होने प्रसारित किये ........इन्हें दलित साहित्य एकेडमी द्वारा डोक्टर अम्बेडकर फेलोशिप  पुरस्कार दिया गया ...डोक्टर रतनलाल साहित्य पुरस्कार और भारतेंदु सम्मान से इन्हें नवाज़ा गया .........लिखते लिखते गागर में सागर भरने का फन इन्होने हांसिल किया और फिर अब शिखरों के हकदार के नाम से जब इनकी पुस्तक का प्रकाशन हुआ जिसमे सिमीत अल्फाजों में दोहों के रूप में रामनारायण हलधर ने पुरे पांच सो अस्सी दोहों में दुनिया के हालत और लोगों के जज्बातों को समेट कर रख दिया .........वोह खुद लिखते है .........यह किताब समर्पित है ..गाँवो के उन अनलिखे गोदान के भोले भले चेहरों को जो अभावों के बोझ तले दबकर वक्त से पहले बूढ़े हो गए है .....खेतों को सपनों को ग्रामीण माहोल को उनकी यह पुस्तक समर्पित है ..गाँव की पगडंडियों को .बिवाई को मान को पिता को जीवन संगिनी गीत को दोस्तों को पिता को मत को यह पुस्तक जब वोह समर्पित करते है तो कहते नहीं लिखते नहीं बलके अल्फाजों में इस माहोल को ढालते भी है ......यूँ तो भाई अतुल कनक साहित्य के हस्ताक्षरकर्ता ने उनके परिचय के रूप में इतना कुछ लिख दाल है के मेरे पास उनेक लिए लिखने को कुछ शेष नहीं बचा है लेकिन फिर भी मेने उनकी पुस्तक को पढ़कर महसूस किया और हिम्मत कर इन चंद अल्फाजों में इस पुस्तक की समीक्षा  करने का दुस्साहस कर रहा हूँ ..दोस्तों जन्म से लेकर मरने तक ..गाँव से लेकर शहर तक ...पगडंडियों से लेकर सड़कों तक ...एक आम आदमी से लेकर नोकरशाह और नेताओं तक लेकर दफ्तर से संसद तक त्योहारों तक पिने के पानी से खाने की रोटी तक कोई भी तो ऐसा मोजु नहीं है जो रामनारायण मीणा ने अपना साहित्य का हल चलाकर अल्फाजों की फसल को नहीं रोंपा हो और फसल ऐसी लहलहाई के वोह खुद शिखरों के हकदार हो गए वोह खुद एक हस्ताक्षर हो गए और लोगों में एक नयी दोहा विधि के माध्यम से विचारों के चंद अल्फाजों में गागर में सागर भर देने के मानिंद आम हो गए मकबूल हो गए .....दोस्तों जब वोह लिखते है के .........नीवें खोदी बाप ने माँ ने फेंकी गार ..अब बेटों ने डाल दी आँगन में दीवार ..तो अचानक इस समाज में बंटवारे की बुराई का अहसास होता है जज्बात भड़कने लगते है और अलफ़ाज़ रोने लगते है ......जब वोह लिखते है ..तिनके लेकर बुलबुले बेठी थीं कमबख्त ...वरना कब के गिर गए होते कई दरख्त ..कुदरत के होने का अहसास दिलाते है ....वोह कहते है ....जब से हम सुनने लगे केवल दिल की बात ...तब से काबू में नहीं घर भर के हालात ...जब वोह लिखते है तो सच की राह कितनी कठिन और बेहाल होती है इसका अहसास होता है ........दोहरी बातें करने वालों के मुख पर तमाचा जड़ते हुए वोह लिखते है .केसे करता आपकी बातों का विश्वास ...मिलते ही तारीफ़ और मुड़ते ही उपहास ............वोह एक बेवफा से अंतिम जुदाई के अहसास को अल्फाजों में पिरोते हुए कहते है .....सारे खत लोटा गया नज़र झुका कर यार ......मिलने आया था हमे शायद अंतिम बार .........श्रंगार का नशा जब उनके अल्फाजों को झिंझोड़ते है तो वोह लिखते है .......पीलूं तो बहका फिरूं छोडू तो बेचेन ...मदिरा की दो प्यालिया गोरी तेरे नैन ..........ना पंछी न डाकिया , ना कागज़ न पेन ..प्रेम पत्र लिखते रहे गोरी तेरे नैन .............अंतरजातीय प्यार के बाद उपजे हालातों का बयान करते हुए हलधर लिखते है ......जात पात कुल भूल कर कर बेठे हम प्यार ....जान बूझ कर छू लिए लो बिजली के तार ........प्यार के अहसास को कोई छुपा नहीं सकता और वोह बेचें होकर बाहर आ जाता है इस राज़ को वोह अल्फाजों में ढालते हुए कहते है .......लाख छुपाये बावरी प्रेम बढ़ा वाचाल ...निखरा निखरा रूप है बहकी बहकी चाल .........................वोह लिखते है एक तो सूरत सांवली स्वर में गज़ब मिठास ..फूलों को होता नहीं भंवरों का विशवास ..दूसरों को रौशनी देकर खुद को लहूलुहान करने का दर्द वोह सूरज के रूप में यूँ बयां करते है ........सब को खुश करने सुबह यूँ निकला था नादाँ ..घर लोटा है शाम को सूरज लहुलुहान ..यानी दिन भर की रौशनी के बाद सूरज की रौशनी लालिमा को उन्होंने लहू से तशबीह दी है ................आज के पोतों की दादा के बारे में विचारों को वोह  लिखते है .....दादाजी के वास्ते घर में सब सामान ..खाने को फटकर है पीने को अपमान ........सड़कों पर हादसों का ज़िक्र वोह यूँ करते है ...जी भर कर मिलते चले घरवालों से भाव ...न जाने किस मोड़ पर दुर्घटना हो जाए ........गाँव की तबाही के बारे में वोह लिखते है ...तुलसी पीपल रोंपकर छोड़ा था जो गाँव ...जंगल हुआ बाबुल का केसे रखूं पाँव .......सड़क पर तड़पते इन्सान  को छोड़कर चले जाने वालों के जमीर को झकझोरते हुए वोह लिखे है .....आँखे चुरा कर भीड़ से यूँ ना जाओ यार ...इसमें लहूलुहान हो कोई रिश्तेदार ........झंडे बैनरों पर फिजूलखर्ची पर वोह तंज़ कसते हुए कहते है ...कोई चिथड़ों में कहीं आब छुपा न पाए ....बेनर झंडों में कहाँ लाखों थान कटाए ....अपने पिता के आदर सम्मान को ठुकरा कर नेताओं की चापलूसी करने वालों पर वोह फब्ती कसते हुए कहते है ..चरण सगे माँ बाप के छूने में शर्माए ..नेताजी की जूतियाँ हंस हंस खूब उठाये .............त्योहारों पर आतंकवाद के खोफ का वातावरण जब वोह देखते है तो कहते है .....सहमे सहमे लोग है सुने सुने द्वार ..शायद कल फिर शहर में है कोई त्यौहार .....आज कर स्कूलों में धुम्रपान के मामले में वोह चुटकी लेते है ..चेला गया दूकान पर गुरु जोहते बाँट ...जर्दा खाय पढ़ाएंगे अनुशासन का पाठ ...अमीरों की बीमारी और रातों को तड़पने के दर्द को वोह बयां करते हुए कहते है ....हाँ हमने भी देख ली महलों की ओकात ..फुटपाथों से नींद की भीख मांगते रात ....गरीबी का दर्द बयां करते हुए वोह लिखते है .............तेल नहीं बाति नहीं खाने को नहीं अन्न ...दिवाली पर लक्ष्मी को केसे करे प्रसन्न ......विकास के नाम पर गांवों के विनाश और भ्रष्टाचार पर फब्ती कसते हुए वोह कहते है ...अपना आधा खेत तो राजमार्ग गया खाय ..आधे पर भूमाफिया गिद्ध रोज़ मंडराए ...सरकार के विकास को केवल और केवल विज्ञापनों तक ही सिमटता देख वोह लिखते है ...बचपन से देखा किये विज्ञापनी उजास ....रही मोतियाबिंद तक केवल धुंधली आस ...........नेताओं की नंगी सियासत का बयां वोह कुछ इस तरह करते है .....जिनकी शाह पर बस्तिया जली हमारी रात ...वे ही कम्बल बांटने आये हमे प्रभात ..वोह वोटरों का दर्द लिखते है ..अमिट सियाही से उम्र भर रंगवाया नाख़ून ...इसके बदले आपने चूसा मेरा खून ..नए साल के जश्न का उपहास उधाते हुए वोह लिखते है .....फिर बदलेंगे डायरी केलेंडर पंचाग ...कसमों की नोटकियाँ संकल्पों के स्वांग ...भ्रष्टाचार के मामले में दोहरे चरित्र को उजागर करते हुए वोह कहते है ...अनशन और जुलुस में रिश्वत हाय हाय ..वहीं ब्याहते बेटियां जहां उपरी आय ...वोह बुरे वक्त के अहसास में लोगों की मदद के इम्तिहान के लियें कहते है ....विपदाओं कुछ दिन घर  में रहो तुम महमान .....हम भी तो करले जरा रिश्तों की पहचान ......केवल पांच साल में एक बार वोटों की भीख मांगने आने वालों के लियें वोह कहते है .....काना फुंसी भीड़ में आँखों में संवाद ...मरे भिखारी जी उठे पांच साल के बाद ..................यह वायदों की चाशनी भाषण की बरसात ,,,चार दिनों की चांदनी पांच बरस की रात ...सियासी गठबंधन पर वोह व्यंग्य कसते हुए कहते है ...चेहरों पर तो क्षत्रुता ह्रदय सखा सम्बन्ध ....सर्प नेवलों में हुए समझोते अनुबंध ...लाल किला रोता रहा सुन सुन कर एलान हर चेहरे पर लायेंगे एक दिन हम मुस्कान ....वोह कहते है के ...हमने सोंपे है जिन्हें सिंहासन अधिकार ..मिलने तक देता नहीं उनका चोकीदार ....रोज़ भरता पर्चिया रोज़ मिलन की आस ...रोज़ लंच और बैठके लोटा रोज़ निराश ...............नेताओं के वायदे भूलने की आदत पर वोह कहते है ...देख हमारी उँगलियाँ मिटी न इनकी छाप ..मतगणना के साथ ही भूल गए जी आप ...........इसके लियें वोह वोटर्स की लापरवाही और उदासीनता को दोषी मानते हुए लिखते है ...वे आये करते रहे सपनों का व्यापार ..हम सोये है सोंपकर राजपाठ बाज़ार ...........पानी बचाओ का नारा देते हुए वोह लिखते है ......सोच समझ कर आजकल नल की टोटी खोल ...जल की इक इक बूंद है अम्रत सी अनमोल .....अख़बारों के जरिये देश के हालत प्रकाशित होने पर वोह आहत होकर लिखते है ......प्रष्ठ प्रष्ठ है खून से लथपथ हाहाकार ..डरते डरते हाथ में लेता हूँ अख़बार ..बिलख रही है मासूमियत उजड रहे वंश ..आये दिन के हादसे जीवन भर के दंश ..घर से निकल कर हादसों के खतरों को वोह यूँ लिखते है ..घर से निकलू काम पर चिंतित रहता द्वार ...हर पल मेरी साँस पर लटकी है तलवार .......गाँवो के बदले हालातों का बयां करते हुए हलधर लिखते है ...चारागाह और रास्गते विध्वाहों के खेत ..लील रहे है गाँव को लालच और लठेत .......चोपालों में साजिशें गलियों गलियों घात .....बहुत  कठिन काटना गाँव में एक रात .............तो दोस्तों रामनारायण हलधर ने वेसे तो अपने विचारों को अल्फाजों की खेती कर अपने हाथ में हलधर कर बहतरीन हल चलाया है और उसकी फसल जज्बातों की अक्कासी और हालातों की मंज़र कशी करते हुए जमीर को जिन्झोड़ने के लियें काफी है और सच का आभास दिलाते हुए यही अल्फाज़ जेसे हमसे कहते है न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दुस्तान वालो तुम्हारा निशा भी न होगा दस्तानो तक में ................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान


मच्छरों और ठंड से नींद को तरसे राघव, रो-रोकर कैदियों को दिला रहे हैं निर्दोष होने का भरोसा



भोपाल. अपने नौकर राजकुमार से अप्राकृतिक कृत्य के आरोपों के चलते जेल पहुंचे मध्यप्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री राघव मंगलवार 9 जुलाई को रातभर सो नहीं सके। जेल की बैरक नंबर-10 में रात में मच्छरों ने उन्हें रात में सोने नहीं दिया। उन्होंने शायद सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं की होगी कि उनका बुढ़ापा इतना बदनाम होगा।
रविवार यानी 9 जुलाई को गिरफ्तारी के दो दिन पूर्व ही राघव ने बदनामी के बावजूद अपना जन्मदिन मनाया था। शुक्रवार 5 जुलाई को जब उनका नौकर राजकुमार हबीबगंज थाने में 79 वर्ष के राघवजी की कुकर्म गाथा लेकर पहुंचा, तो देखते ही देखते मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया था। भले ही वे अब भी खुद को निर्दोष बता रहे हैं, लेकिन जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, राजनीतिक और सामाजिक कीचड़ उछलना जारी रहेगा।
 
बुधवार यानी 10 जुलाई को सुबह होने पर उन्होंने लाइन में लगकर दूसरे कैदियों की तरह नाश्ता लिया। बताया जाता है कि वे जेल में खूब रोये और हर किसी को अपने निर्दोष होने की दुहाई देते रहे। राघव को जेल में दो कंबल और एक चादर दी गई। जेल के बैरक नंबर-10 में करीब 100 कैदियों को रखने की क्षमता है। रात में ठंड और मच्छर होने के कारण वह पूरी रात जागते रहे। बुधवार 10 जुलाई को उन्हें नाश्ते में पोहा, चना, दलिया और चाय मिली। हालांकि उन्होंने रात में दूध पीने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन मना कर दिया गया।

जनता को सरकार द्वारा किए गए कामों के बारे में जानने का पूरा अधिकार : प्रणब मुखर्जी



 
जयपुर। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि लोकतंत्र में पारदर्शिता बहुत जरूरी है। जनता के लिए, जनता के द्वारा बनाई सरकार के किए काम को जनता को जानने का पूरा अधिकार है। आज के जमाने में जानने का अधिकार और सूचना का अधिकार है, ऐसे में लोगों को सरकार के हर काम की जानकारी मिलनी चाहिए। राष्ट्रपति बुधवार को यहां राजभवन में वेबसाइट के लोकार्पण कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने माउस से क्लिक करके वेब साइट की शुरुआत की। इस अवसर पर राज्यपाल मारग्रेट अल्वा और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मौजूद थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि राज्य की सरकार में क्या हो रहा है, राज्य के प्रथम नागरिक क्या कर रहे है और उनके लिए कौन सी योजना है और कितनी कारगर है, यह जानने के लिए लोग उत्साहित रहते हैं। इसलिए सारी सूचनाएं पारदर्शिता के साथ प्रदर्शित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट को भी लोग बड़ी उत्सुकता से देखते हैं, इनकी संख्या बहुत अधिक हैं।

इससे पहले राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने वेबसाइट के बारे में जानकारी दी और कहा कि वेबसाइट के जरिए सरकार के काम में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया जा रहा है। अभी इसका अंग्रेजी वर्जन दिया जा रहा है, जल्द ही हिंदी में भी सारी सूचनाएं मिलने लगेंगी, ताकि प्रदेश के अधिक से अधिक लोगों तक इसकी पहुंच हो सके।

चीन की घुसपैठ पर राष्ट्रपति का नौ कमेंट्स : वेबसाइट के लोकार्पण के बाद मीडिया से मुखातिब हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनकी पहली यात्रा है। यहां की मेहमान नवाजी से प्रसन्न है। मीडिया ने जब उनसे चीन की घुसपैठ के संबंध में सवाल किया तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया देने के स्थान पर 'नो कमेंट्सÓ कहकर सवाल को टाल दिया। उन्होंने अन्य किसी सवाल का भी जवाब नहीं दिया।

नेताओं पर चला सुप्रीम कोर्ट का डंडा, लालू यादव हो सकते हैं पहले शिकार

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अब कोई भी नेता जेल से चुनाव नहीं लड़ सकेगा। किसी कोर्ट में दोषी करार दिए जाने वाले जनप्रतिनिधियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनकी सदस्‍यता उसी क्षण से खत्‍म मानी जाएगी जिस क्षण कोई अदालत उन्‍हें किसी मामले में दोषी करार देगी।
 
पीपुल्‍स रिप्रेजेंटेटिव एक्‍ट की एक धारा के तहत किसी आपराधिक मामले में भी दोषी करार दिए जाने की स्थिति में सांसदों और विधायकों को अयोग्‍य करार दिए जाने के खिलाफ उन्‍हें मिली सुरक्षा के बारे में कानूनी प्रावधान को स्‍पष्‍ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि यह आदेश तत्‍काल प्रभाव से लागू होगा। यानी अब ट्रायल कोर्ट में भी दोषी करार दिए जाने पर सांसदों या विधायकों को सदस्‍यता छोड़नी पड़ेगी और कोई नेता जेल से चुनाव भी नहीं लड़ पाएगा। वैसे, जिन नेताओं ने सजा के खिलाफ अपील कर रखी है, उन पर यह फैसला अभी लागू नहीं होगा। 
 
क्‍या होगा असर
 
1. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर कई नेताओं पर हो सकता है। दो पूर्व रेल मंत्री और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव इसके पहले शिकार हो सकते हैं। चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में लालू के खिलाफ अदालत का फैसला जल्‍द ही आने वाला है। 
 
2. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद न्यायपालिका और विधायिका के बीच  टकराव के भी आसार बन गए हैं। नेता एक मत से संसद के जरिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्‍त कर सकते हैं। 
 
3. जयललिता का उदाहरण: तमिलनाडु की मुख्‍यमंत्री जयललिता को दो मामलों में क्रमश: दो और तीन साल की सजा हुई है। उन्‍होंने इसके खिलाफ अपील कर रखी है और इसी आधार पर वह मुख्‍यमंत्री बनी हुई हैं। लेकिन अब ऐसा संभव नहीं हो सकेगा। हालांकि फिलहाल के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिन नेताओं ने अपनी सजा के खिलाफ अपील कर रखी है, उन पर ताजा आदेश नहीं लागू होगा। लेकिन यह केवल पुराने मामलों में लागू होगा। अब नए केस में अपील के आधार पर कोई नेता ऐसा फायदा नहीं उठा पाएगा। पहले अदालती प्रक्रिया पूरी होने में देरी का फायदा उठा कर नेता अपना राजनीतिक कॅरियर सुरक्षित रख लिया करता था। सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला नेताओं की इस प्रवृत्ति पर रोक लगाएगा।
 
4. राजनीति का अपराधीकरण रुकेगा: इस फैसले से राजनीति का अपराधीकरण रोकने में मदद मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने खुशी जताई है। उन्होंने कहा है कि न्यायपालिका को यह कदम आजादी मिलने के बाद ही उठा लेना चाहिए था।

कुरान का सन्देश

 
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