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22 जुलाई 2013

आज भारतीय राष्ट्रध्वज है कहा गए राष्ट्रीय लोग

भारत का ध्वज
आज भारतीय राष्ट्रध्वज है कहा गए राष्ट्रीय लोग
भारत का ध्वज
नाम तिरंगा
प्रयोग राष्ट्रीय ध्वज एवं चिन्ह National flag and ensign
अनुपात 2:3
अंगीकृत 1947
अभिकल्पना क्षैतिज तिरंगा झंडा (भारत केसरिया, सफेद और भारत हरा) सफेद पट्टी के केंद्र में 24 तीलियां के साथ एक गहरे नीले रंग का पहिया।
अभिकल्पनाकर्ता पिंगली वैंकैया

भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच एक नीले रंग के चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है, जिसकी अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी।[1][2] इसे १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व २२ जुलाई, १९४७ को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था।[3] इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं , जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात २:३ का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें २४ अरे होते हैं। इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है व रूप सम्राट अशोक की राजधानी सारनाथ में स्थित स्तंभ के शेर के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले की तरह होता है।

सरकारी झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार झंडा खादीमें ही बनना चाहिए। यह एक विशेष प्रकार से हाथ से काते गए कपड़े से बनता है जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया था। इन सभी विशिष्टताओं को व्यापक रूप से भारत में सम्मान दिया जाता हैं भारतीय ध्वज संहिता के द्वारा इसके प्रदर्शन और प्रयोग पर विशेष नियंत्रण है। [4] ध्वज का हेराल्डिक वर्णन इस प्रकार से होता है:

गांधी जी ने सबसे पहले 1921 में कांग्रेस के झंडे की बात की थी। इस झंडे को पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था। इसमें दो रंग थे लाल रंग हिन्दुओं के लिए और हरा रंग मुस्लिमों के लिए। बीच में एक चक्र था। बाद में इसमें अन्य धर्मो के लिए सफेद रंग जोड़ा गया। स्वतंत्रता प्राप्ति से कुछ दिन पहले संविधान सभा ने राष्ट्रध्वज को मॉडीफाई किया। इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली। इस नए झंडे की देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने फिर से व्याख्या की।

21 फीट बाई 14 फीट के झंडे पूरे देश में केवल तीन किलों के ऊपर फहराए जाते हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित किला उनमें से एक है। इसके अतरिक्त कर्नाटक का नारगुंड किले और महाराष्ट्र का पनहाला किले पर भी सबसे लम्बे झंडे को फहराया जाता है।

1951 में पहली बार भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने पहली बार राष्ट्रध्वज के लिए कुछ नियम तय किए। 1968 में तिरंगा निर्माण के मानक तय किए गए। ये नियम अत्यंत कड़े हैं। केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडा बनाने के लिए उपयोग किया जाता। कपड़ा बुनने से लेकर झंडा बनने तक की प्रक्रिया में कई बार इसकी टेस्टिंग की जाती है। झंडा बनाने के लिए दो तरह की खादी का प्रयोग किया जाता है। एक वह खादी जिससे कपड़ा बनता है और दूसरा खादी-टाट। खादी के केवल कपास, रेशम और ऊन का प्रयोग किया जाता है। यहां तक की इसकी बुनाई भी सामन्य बुनाई से भिन्न होती है। [7] ये बुनाई बेहद दुर्लभ होती है। इसे केवल पूरे देश के एक दर्जन से भी कम लोग जानते हैं। धारवाण के निकट गदग और कर्नाटक के बागलकोट में ही खादी की बुनाई की जाती है। जबकी '''हुबली''' एक मात्र लाइसेंस प्राप्त संस्थान है जहां से झंडा उत्पादन व आपूर्ति की जाती है।[8] बुनाई से लेकर बाजार में पहुंचने तक कई बार बीआईएस प्रयोगशालाओं में इसका परीक्षण होता है।बुनाई के बाद सामग्री को परीक्षण के लिए भेजा जाता है। कड़े गुणवत्ता परीक्षण के बाद उसे वापस कारखाने भेज दिया जाता है। इसके बाद उसे तीन रंगो में रंगा जाता है। केंद्र में अशोक चक्र को काढ़ा जाता है। उसके बाद इसे फिर परीक्षण के लिए भेजा जाता है। बीआईएस झंडे की जांच करता है इसके बाद ही इसे बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है।
तिरंगे का विकास

यह ध्वज भारत की स्वतंत्रता के संग्राम काल में निर्मित किया गया था। १८५७में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय भारत राष्ट्र का ध्वज बनाने की योजना बनी थी, लेकिन वह आंदोलन असमय ही समाप्त हो गया था और उसके साथ ही वह योजना भी बीच में ही अटक गई थी। वर्तमान रूप में पहुंचने से पूर्व भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अनेक पड़ावों से गुजरा है। इस विकास में यह भारत में राजनैतिक विकास का परिचायक भी है। कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं[

*प्रथम चित्रित ध्वज १९०४ में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था।[11]७ अगस्त, १९०६ को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर वंदेमातरम् लिखा गया था।[

द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और १९०७ में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह १९०५ में हुआ था। यह भी पहले ध्वज के समान था; सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।[

१९१७ में भारतीय राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान तृतीय चित्रित ध्वज को फहराया। इस ध्वज में ५ लाल और ४ हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्ततऋषि के अभिविन्यास में इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।

कांग्रेस के सत्र बेजवाड़ा (वर्तमान विजयवाड़ा) में किया गया यहाँ आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वैंकैया ने एक झंडा बनाया (चौथा चित्र) और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्वं करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।

वर्ष १९३१ तिरंगे के इतिहास में एक स्मरणीय वर्ष है। तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र-ध्वज के रूप में मान्यता मिली।[11] यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।

२२ जुलाई १९४७ को संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।

पोखरण में गरजेगा भारतीय 'नाग', खोज-खोज कर लेगा दुश्मनों की जान


जोधपुर। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित 'दागो और भूल जाओ' की तर्ज पर विकसित एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल 'नाग' के अत्याधुनिक तीसरे संस्करण का  ट्रायल अगस्त में पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में होगा।

एक साल पहले पोकरण में ही इस मिसाइल का यूजर ट्रायल हुआ था जो विफल माना गया। इसका कारण भीषण गर्मी बताया गया था। इसके बाद डीआरडीओ के मिसाइल कॉम्पलेक्स ने इसमें थल सेना के सुझाव के अनुसार आवश्यक बदलाव किए है। ट्रायल के दौरान डीआरडीओ के अलावा सेना के वरिष्ठ अफसर मौजूद रहेंगे। पिछले दिनो जोधपुर यात्रा के दौरान डीआरडीओ प्रमुख अविनाश चंदर ने इसके संकेत दिए थे।
संवेदनशील व उच्च क्षमता फीचर
डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने 'नाग' मिसाइल में परिवर्तन कर इसे नए सिरे से तैयार किया है। इसमें संवेदनशील व उच्च क्षमता के फीचर्स जोड़े गए हैं। इसके लिए डीआरडीओ की हैदराबाद इकाई ने यूजर ट्रायल की तैयारी कर ली है। इन्फैन्ट्री कॉम्बेट व्हीकल बीएमपी-2 नमिका से भी इस मिसाइल का दागा जा सकेगा।

दिल्ली से आए नेताजी ने कहा - मंत्रियों को जिम्मेदारी समझनी होगी


 
 
जयपुर. प्रदेश में कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन के लिए दूसरे दौर के रूप में कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकें अगस्त में शुरू हो जाएंगी। इसमें दावेदारों के बारे में चर्चा की जाएगी और काफी हद तक सूचियों को अंतिम रूप देने का प्रयास किया जाएगा। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और प्रदेश प्रभारी गुरुदास कामत ने प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में यह जानकारी दी।
स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अजय माकन हैं। उन्होंने बताया कि इसके बाद तैयार होने वाली रिपोर्ट को राहुल गांधी और सोनिया गांधी के समक्ष पेश किया जाएगा।
कामत ने कहा कि यहां हो रही बैठकों में 1000 से अधिक लोगों से मिला जाएगा और उनसे पार्टी संगठन और सरकार के बारे में फीडबैक लिया जा रहा है। कामत ने कहा कि जो पार्टी में काम करना चाहते हैं, उनको आगे बढ़ाया जाए। ऐसे लोगों को मौका दिया जाए और उनको इज्जत भी बख्शी जाए। दूसरी तरफ जो काम नहीं करे और पद सिर्फ विजिटिंग कार्ड छपवाने के लिए हासिल करें, ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।
पार्टी में एक आदमी बाहर जाता है तो एक सौ आते हैं। कामत ने एक सवाल के जवाब में कहा कि कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चंद्रभान को हटाने का कोई कार्यक्रम नहीं है। उनकी ओर से दिए गए वक्तव्य को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है।
किसी के आने-जाने से कोई असर नहीं
इससे पहले प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में कामत ने कहा कि किसी व्यक्ति के आने या जाने से पार्टी पर कोई असर नहीं आता है। एक व्यक्ति चुनाव लडऩे के इनकार करता है तो उसके स्थान पर सौ व्यक्ति तैयार हो जाते हैं।
मंत्री जिम्मेदारी समझें
उन्होंने कहा कि लोगों की नाराजगी और समस्याओं को देखते हुए मंत्रियों को जिम्मेदारी समझनी होगी। इन मंत्रियों को जिलों में जाकर लोगों से मिलना होगा, कार्यकर्ताओं की सुननी होगी। इसके बिना काम नहीं चलने वाला। उन्होंने कहा कि मंत्रियों को अपने जिलों का भी ख्याल रखना जरूरी है।

भारत के पास है दुनिया का सबसे बुजुर्ग शख्स!



भारत के कश्मीर निवासी फिरोज-उन-दिर-मीर ने दावा किया है कि वह दुनिया के सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं। उनके दावे के मुताबिक सरकारी दस्तावेजों में उनकी उम्र 141 साल है। इनमें उनकी जन्म तिथि 10 मार्च, 1872 दर्ज है। गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉ‌र्ड्स जल्द ही मीर के दावे की जांच कर सकता है। फिलहाल दुनिया के सबसे उम्रदराज शख्स का खिताब 115 वर्षीय जापानी महिला मिसाओ ओकावा के सिर है। मीर अपनी मौजूदा पत्नी से साठ साल बड़े हैं। वह सबसे उम्रदराज जीवित शख्स के अलावा सबसे लंबी उम्र जीने का खिताब भी अपने नाम कर सकते हैं। सबसे ज्यादा समय तक जीने का रिकॉर्ड फ्रांसीसी महिला जीने कामेंट के नाम है। उनकी मौत 1997 में 122 साल की उम्र में हुई थी। मीर सिर्फ पहाड़ी भाषा बोल सकते हैं।

उत्तराखंडः केदारनाथ के मलबे से निकल रही हैं लाशें ही लाशें

देहरादून. केदारनाथ मंदिर में आए मलबे की सफाई का काम शुरू होने के बाद सोमवार को मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा केदारनाथ पहुंचे। बहुगुणा ने चीफ सेक्रेटरी सुभाष कुमार और इंजीनियर्स इंडिया प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (ईआईपीएल) के विशेषज्ञों के साथ मंदिर का दौरा किया। ईआईपीएल के पांच सौ लोगों की टीम मंदिर से मलबा हटाने के काम में लगी है। इसे राज्य सरकार ने यह जिम्मा सौंपा है। मलबे के नीचे से लाशें भी निकल रही हैं। टीम को उम्मीद है कि जल्द ही इसकी सफाई करा यहां नियमित पूजा शुरू कराई जा सकेगी। मंदिर के आस-पास की जगह में कम से कम 40 छोटी-बड़ी इमारतें क्षतिग्रस्त हैं। इन्हें हटाने और मरम्मत के काम की चुनौती है। इससे पहले सीएम ने यह ऐलान किया था कि मंदिर के 500 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के निर्माण की इजाजत नहीं दी जाएगी। यहां ध्वस्त की जाने वाली परिसंपत्तियों की बाकायदा वीडियो रिकार्डिग और नंबरिंग की जाएगी। ताकि पुनर्निर्माण में संबंधित लोगों को प्राथमिकता दी जा सके। सीएम बहुगुणा ने कहा है कि जल्द ही मंदिर में पूजा शुरू कराई जाएगी। हालांकि उन्होंने इसके लिए कोई तय तारीख बताने से मना कर दिया लेकिन साथ में कहा कि यहां पर पूजा करना सुरक्षित है और इसे जल्द ही दोबारा से शुरू किया जाएगा।

कुरान का सन्देश

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