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29 जुलाई 2013

सीईओ पिता प्रमोशन के लिए बेटी पर बनाता था अपने बॉस के साथ रात गुजारने का दबाव



पुणे: शहर के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित एक मैन्‍यूफैक्‍चरिंग कंपनी के सीईओ पर उसकी बेटी ने तीन साल से यौन शोषण  करने का आरोप लगा है। लड़की के मुताबिक इसकी शिकायत करने पर उसके दादा ने भी जबरदस्‍ती की और मारा-पीटा। लड़की की शिकायत के बाद पुलिस ने दोनों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है।
लड़की के आरोप के मुताबिक उसका पिता उसके साथ पिछले  3 साल से यौन शोषण  कर रहा था। यही नहीं, वह बेटी को अपने क्लाइंट और बॉस के पास भी जाने के लिए दबाव बनाता था और मना करने पर मारता -पीटता था। उसने इस बात की शिकायत अपने दादा से की तो उसने भी उस के साथ ज़बरदस्ती की और मारा-पीटा। पुलिस ने लड़की के दादा को गिरफ्तार कर लिया है जबकि उस का पिता अभी फ़रार है। पुलिस ने इस मामले में दो अन्य महिलाओं पर भी मामला दर्ज किया है। दोनों पर यौन शोषण  के दौरान पिता का साथ देने का आरोप है ।

लाश को कबाड़ की तरह जेसीबी में टांगकर ले गई पुलिस, दो सस्‍पेंड


लाश को कबाड़ की तरह जेसीबी में टांगकर ले गई पुलिस, दो सस्‍पेंड
आगरा/फिरोजाबाद. यूपी पुलिस का अमानवीय चेहरा एक बार फिर सबके सामने है। इस बार तो पुलिस ने मानवता का तमाशा ही बना दिया। कई दिन से लापता युवक का शव पुलिस को नाले में पड़ा मिला तो पुलिस सबके सामने शव को चार किमी तक जेसीबी में टांगकर ले गई। जिसने देखा वही पुलिस की इस हरकत पर सहम गया। 
 
प्रदेश के फिरोजाबाद निवासी जितेंद्र जोशी का बेटा शिवम कई दिन से लापता था। जब उसकी लाश मिली तो पुलिस ने जेसीबी से लाश को निकाला और कचरे समेत शव को पोस्टमॉर्टम के लिए अस्‍पताल लाई। फिरोजाबाद में थाना लाइनपार इलाके से चार दिन पहले शिवम गायब हो गया था। उसके पिता जितेंद्र जोशी ने अपहरण की शिकायत की तो पुलिस ने गुमशुदगी का मामला दर्ज किया। अब कई दिन बाद शव मिला तो पुलिस ने उसका तमाशा बना दिया।
 
पिता बार-बार पुलिस से मन्‍नतें करता रहा कि इस बेकद्री से बेटे के शव को इस तरह न ले जाओ। लेकिन पुलिसवालों ने नहीं सुनी। हजारों लोगों ने पुलिस की यह हरकत देखी लेकिन किसी ने सवाल तक नहीं किया। शिवम की लाश जेसीबी पर टंगी देख उसके पिता के मुंह से यही शब्द निकले कि काश पुलिस समय रहते कार्रवाई कर लेती तो उसके बेटे की जान बच सकती थी।
 
18 वर्षीय शिवम मंगला गोरी ट्रांसपोर्ट के पास चाट की ठेला लगाता था। 25 जुलाई की दोपहर वह ठेला लेकर गया था, इसके बाद घर नहीं पहुंचा। उसी रात युवक का ठेला थाना रामगढ़ क्षेत्र के 60 फुटा रोड पर खड़ा मिला। इसके बाद परिजनों ने अपहरण की आशंका जताते हुए थाना रामगढ़ क्षेत्र पर तहरीर दी थी। पुलिस ने उन्हें लौटा दिया।

बढ़ रही है शिवलिंग की मोटाई, हाथ लगाते ही पूरी होती हैं मनोकामनाएं



ग्वालियर/दमोह. महादेव भगवान शिव को लेकर कई प्राचीन कहानियां प्रचलित है और इनका जुड़ाव किसी न किसी रूप में हमें अपने जीवन में मिलता ही है। श्रावण मास के पवित्र महीने में आज हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसे ही शिव मंदिर की कहानी, जिसे सुन आप चौंक जाएंगे। यहां वह पुरानी मान्यता अब भी लोग काफी श्रद्धापूर्वक निभाते हैं और लोगों की मनोकामना भी पूरी होती है। 
 
दमोह क्षेत्र से करीब 16 किमी दूर विराजमान श्री जागेश्वरनाथ जी के मंदिर में एक खास मान्यता है। यहां मंदिर के पीछे हाथ लगाने से लोगों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
 
सदियों से ऐसा ही होता रहा है और हर सावन यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भी जुटती है। इससे भी रोचक बात यह है कि यहां मौजूद स्वंयभू शिवलिंग की मोटाई धीरे-धीरे बढ़ रही है।

यूपी: सपा नेता ने भी बताया निलंबन को गलत, अखिलेश को लौटानी होगी दुर्गा की 'शक्ति'!

लखनऊ. भ्रष्‍टाचार के दो मामलों में राजनीति और क्रिकेट जगत से आए दो फैसलों से बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। यूपी में सरकार ने रेत माफिया और अपराधियों के खिलाफ अभियान चलाने वाले अफसर को सस्‍पेंड कर दिया है और इस विभाग की जिम्‍मेदारी ऐसे मंत्री को दे दी जिस पर खुद माफिया होने के आरोप लगते रहे हैं। दूसरी ओर, देश में क्रिकेट को चलाने वाली संस्‍था बीसीसीआई ने महज डेढ़ महीने में अपनी ओर से जांच करा कर आईपीएल-6 स्पॉट फिक्सिंग के संदेह में आए सारे बड़े किरदारों को बेदाग करार दे दिया है। बोर्ड की इनहाउस जांच कमेटी ने रविवार को अपनी रिपोर्ट में चेन्नई सुपर किंग्स के गुरुनाथ मयप्पन और राजस्थान रॉयल्स के सह मालिक राज कुंद्रा को क्लीन चिट दे दी।
 
यूपी के गौतमबुद्धनगर जिले में रेत माफिया और अपराधियों के खिलाफ अभियान चला रही महिला एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को सस्पेंड किए जाने से नाराज आईएएस एसोसिएशन ने सोमवार को आपात बैठक की। इसके बाद एसोसिएशन के सदस्‍य राज्‍य के कार्यकारी मुख्‍य सचिव आलोक रंजन से मिले। एसोसिएशन के सदस्‍यों के साथ दुर्गा नागपाल भी थीं। एसोसिएशन ने दुर्गा नागपाल का संस्‍पेंशन वापस लेने की मांग की। मुख्‍य सचिव ने बताया कि एसोसिएशन की मांग से मुख्‍यमंत्री को अवगत करा दिया जाएगा।
 
2009 बैच की आईएएस अधिकारी नागपाल पिछले साल एसडीएम नोएडा सदर बनाई गई थीं। उन्‍हें सस्पेंड करने के आदेश शनिवार रात को जारी किए गए।
 
सूत्रों के मुताबिक एसडीएम के सस्‍पेंशन का मसला गरमाते देख राज्‍य सरकार नरम पड़ती दिख रही है। कहा जा रहा है कि आईएएस लॉबी के दबाव में सीएम अखिलेश यादव अपना फैसला वापस लेने पर मजबूर हो सकते हैं। सीएम फिलहाल सूबे से बाहर हैं। अखिलेश और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एक रैली को संबोधित करने के सिलसिले में बंगलुरू गए हैं।
 
आईएएस एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि दुर्गा नागपाल को परेशान किया जा रहा है। एसोसिएशन का यह रुख देखते हुए मुख्‍य सचिव ने कहा कि सस्‍पेंशन के फैसले की समीक्षा की जाएगी। सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा है कि दुर्गा नागपाल को बहाल किया जाना चाहिए। मामले की जांच के बाद ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होनी चाहिए। 
 
सूत्रों के मुताबिक, रघुनाथपुरा गांव में शनिवार रात एक मस्जिद की चहारदीवारी गिराने की कार्रवाई की गई थी। इसके बाद ही नागपाल को सस्पेंड करने के आदेश जारी हुए। आधिकारिक तौर पर इसकी कोई वजह नहीं बताई गई। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस कार्रवाई को प्रशासनिक फैसला बताया। ट्विटर पर उन्होंने लिखा, ‘एसडीएम ने धर्मस्थल पर एक दीवार गिराने के आदेश दिए थे। सपा सरकार में मंत्री नरेंद्र भाटी ने इस बारे में अफसर की शिकायत की। इसमें कहा कि कार्रवाई से एक वर्ग भड़क गया था। इससे सांप्रदायिक हिंसा हो सकती थी। 
 
यूपी में मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में किए गए मंत्रिमंडल विस्तार के तहत बनाए गए नए मंत्रियों के विभागों का बंटवारा कर दिया गया है। इसमें खनन माफिया होने का आरोप झेल रहे गायत्री प्रजापति को ही खनन मंत्रालय का प्रभार दिया गया है। उन पर अवैध खनन और ज़मीन अधिग्रहण के कई मामले चल रहे हैं।
 
कांग्रेस नेता पी एल पुनिया का कहना है कि ताजा घटनाओं से सूबे में गलत संदेश गया है। आईएएस अफसर का निलंबन बहुत दुखद है। बीजेपी प्रवक्‍ता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि यूपी में गुंडाराज कायम है और ऐसी घटनाएं बार-बार होती हैं। माफियाओं के खिलाफ काम करने वालों को सजा और माफिया से हाथ मिलाने वालों को प्रमोशन मिलता है। राज्‍य की जनता से सपा से हिसाब लेगी। कांग्रेस नेता अखिलेश सिंह ने कहा है कि अच्‍छे अधिकारियों का हौसला बढ़ाना करना चाहिए। माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने पर महिला आईएएस अफसर के निलंबन से अधिकारियों का मनोबल गिरेगा। ऐसे में कानून-व्‍यवस्‍था की स्थिति बेहतर नहीं हो सकती है।

कुरान का सन्देश

एक ही है इस्‍लाम और वैदिक धर्म


कुरान गीता का ही संदेशवाहक है और इस्‍लाम सनातन धर्म की ही एक सशक्‍त अंर्तधारा। दोनो आस्तिक और एकेश्‍वरवादी हैं। सनातन धर्मी और मानवकृत नहीं, अपौरुषेय हैं। दोनों सर्व समर्थ एक परमात्‍मा और एक परम तत्‍व (तौहीद) को सत्‍य मानते हैं। दोनों अहंकार को जीतने और ईश्‍वर के समक्ष पूर्ण समर्पण पर जोर देते हैं। गीता समग्र को मानती है , इस लिए उसका आरंभ और अंत शरणागति से हुआ है। यही कुरान कहता है- आओ, अल्‍लाह की ओर।
गीता- कुरान दोनों ईश्‍वर की वाणी हैं। ईश्‍वर की वाणी बडे बडे ऋषि-मुनियों की वाणी से भी श्रेष्‍ठ होती है, क्‍यों कि ईश्‍वर ही सब का आदि कारण है। पहले आने से गीता सभी दर्शनों की मां है। सभी गीता के अंर्तगत हैं, पर गीता किसी दर्शन के अंर्तगत नहीं है। बाद में आने से कुरान अलकिताब (सभी किताबों) का संरक्षक है और सभी की पुष्टि करने वाला है। दोनों आस्‍थावानों को जीव, जगत और ईश्‍वर का अनुभव कराते हैं। दोनों में किसी मत का आग्रह नहीं है। दोनों का उद्देश्‍य साधक को समग्र की ओर ले जाना है।
कुरान एक आयत में संकेत करता है कि कुरान और वे सभी किताबें जो विभिन्‍न समय और विभिन्‍न भाषाओं में अल्‍लाह की ओर से अवतीर्ण हुईं, सब की सब वास्‍तव में एक ही किताब(अलकिताब) हैं । एक ही उनका रचयिता है उनका एक ही आशय और उद्देश्‍य है। एक ही शिक्षा- ज्ञान है जो उनके माध्‍यम से मानव जाति को प्रदान किया गया है। अंतर है तो वर्णन का जो देश, काल और श्रोताओं की स्थिति को ध्‍यान में रख कर अलग अलग ढंग से किया गया।
गीता उपनिषद रूपी कामधेनु का दूध है जिसे जिसे भगवान श्रीकृष्‍ण ने दुहा था। कुरान कलाम ए इलाही है जो सन 610से 8जून 832 के दौरान रसूल पाक पर अवतीर्ण हुआ। कृष्‍ण ने गीता -ज्ञान युद्ध के मैदान में मोह ग्रस्‍त , धर्मसम्‍मूढचेता: , हो गए धर्नुधारी अर्जुन को दिया था। नबूवत के बाद मोहम्‍मद का काबा के शक्तिशाली कुरैश प्रबंधकों से अघोषित युद्ध शुरू हो गया था।
एक संस्‍कृत और एक अरबी में है। लेकिन, दोनों की भाषा में गजब का लालित्‍य, रवानी और वाणी का प्रभाव है। दोनों की वर्णन शैली लेख की नहीं, भाषण की है। गीता एक संवाद सत्र में समाप्‍त हुई तो कुरान करीब 22 वर्ष की समयावधि में टुकडों में आया। प्रसिद्ध इस्‍लामी विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी के शब्‍दों में- अवसर और आवश्‍यकता के अनुरूप एक अभिभाषण नबी सल्‍ला. पर उतारा जाता था और पैगम्‍बर उसे भाषण के रूप में लोगों को सुनाते थे। यानी कुरान मजीद की हर सूरा वास्‍तव में एक भाषण थी जो इस्‍लामी आह्वान के किसी चरण में एक विशेष अवसर पर अवतरित होती थी। उसकी एक विशेष पृष्‍ठभूमि होती थी। कुछ विशेष परिस्थितियां उसकी मांग करती थीं और कुछ आवश्‍यकतायें होती थीं जिन्‍हें पूरा करने के लिए वह उतरती थी।
गीता-कुरान दोनों किसी जाति, सम्‍प्रदाय, क्षेत्र या काल विशेष के लिए नहीं हैं। सर्वजनहिताय ,सार्वभैमिक और सर्वकालिक हैं। दोनों लोक-परलोक सुधारने का रास्‍ता बताने वाले हैं। परलोक का रास्‍ता लोक से हो कर ही जाता है। मनुष्‍य ईश्‍वर की सर्वोत्‍कृष्‍ट रचना है । ईश्‍वर ने मनुष्‍य को बुद्धि, विवेक और संवेदनशीलता का अनुपम गुण दिया है। मनुष्‍य जन्‍म ही सब जन्‍मों का आदि तथा अंतिम जन्‍म है । परमात्‍म प्राप्ति कर ले तो अंतिम जन्‍म भी यही है और न करे तो जन्‍म चक्रों का आदि जन्‍म भी यही है।इस लिए मनुष्‍य को अपना जीवन लक्ष्‍य और मार्ग बहुत सोच विचार कर चुनना चाहिए। गीता- कुरान दोनों इस उद्देश्‍य की पूर्ति करते हैं। दोनों किसी वाद विवाद या खंडन मंडन में नहीं पडते। दोनों आस्‍थावान दिलों में प्रकाश- पवित्रता भरने वाले हैं। परम पथ प्रकाश हैं।
प्रकाश और पवित्रता ज्ञान के सहज और अनिवार्य गुण हैं। पूर्णत: शुद्ध-पवित्र हो जाना ज्ञान का प्रतिफल है। कृष्‍ण कहते हैं- नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिहविद्यते…… ज्ञान के समान कुछ भी पवित्र नहीं है। अज्ञान का आवरण हट जाना, हकीकत खुल जाना या प्रकाशित हो जाना ज्ञान है। ज्ञान प्रकाश का प्रतिफल है पवित्रता-शुद्धता। इसी लिए रसूल के साथ पाक जोडते हैं।
ज्ञान ब्रहृम का प्रकाश है। ज्ञान से भक्ति है। ज्ञान और भक्ति ईश्‍वर तक पहुंचाने वाले दो द्वार हैं। ज्ञान-सूत्र के सहारे हम ईश्‍वरोन्‍मुखी यात्रा में आगे बढते हैं। ज्ञान का समुच्‍चय है वेद। वेद विद्- जानने से, पूर्ण को पूर्णता से जानने से है। जो पूर्ण है,वही सनातन है और जो सनातन है वह शास्‍वत भी है। ब्रह्म या ईश्‍वर ही सनातन है, शेष सब मरणधर्मा, मायावी, परिवर्तशील और क्षणभंगुर है। जो मार्ग या विद्या सूत्र सनातन से जोडे, वही सनातन धर्म है। इस्‍लाम ईश्‍वरीय आज्ञा के आगे सर झुकाना ,शांति चाहना, ईमान लाना और अपने आप को ईश्‍वर को समर्पित कर देना है। रामायण में इसी को लक्ष्‍मण गुह से कहते हैं- सखा परम परमारथ एहू , मनकर्म बचन राम पद नेहू। मुस्लिम वह जो अल्‍लाह के आदेशानुपान में स्‍वयं को समर्पित कर दे। अल्‍लाह ही को अपना स्‍वामी, शासक और पूज्‍य मान ले और अल्‍लाह की ओर आये आदेश के अनुसार जीवन व्‍यतीत करे। इसी धारणा और नीति का नाम इस्‍लाम है। यही सब नबियों का धर्म था जो संसार के आरंभ से विभिन्‍न देशों और जातियों में आए।
तत्‍वत: और मूलत: धर्म एक ही है। उसे सनातन,वैदिक या इस्‍लाम कुछ भी कह सकते हैं। तीनों का मन-प्राण एक है क्‍यों कि ईश्‍वर एक है। ब्रह्म को जानने में जो ज्ञान सहायक हो वही वैदिक है। वही विद्या ब्रहृम-विद्या है। इस विधा- विद्या का जानकार या उसके अनुसंधान में रत ब्‍यक्ति ही ब्राहृमण है। जन्‍मना नहीं, मनसा-कर्मणा। इस लिए वैदिक धर्म को ब्राह्मण धर्म भी कहा जाता है।
ब्रह्म-ईश्‍वर की तरह ही उनको जानने का ज्ञान, वेद, भी सनातन-शास्‍वत है। श्रृष्टि लय-प्रलय में भी ज्ञान नष्‍ट नहीं होता। वेद-ज्ञान नष्‍ट हो गया तो कोई ईश्‍वर को जानेगा कैसे ? अवतार के रूप में राम या कृष्‍ण ने वेदों को नहीं रचा-बनाया । ये पहले से हैं। उन्‍हों ने इनके बारे में केवल बताया भर है। किसी ने कोई धर्म नहीं चलाया, क्‍यों कि धर्म तो सनातन है। मोहम्‍मद भी जिस धर्म के ध्‍वजी बने वह पहले से, आदम- इब्राहीम के जमाने से चला आ रहा था। यानी सनातन।
गीता- कुरान दोनों ने कोई नयी बात नहीं बतायी। पहले से चले आ र‍हे सत्‍य-सिद्धांतों को ही नये सिरे से प्रकाशित किया। ज्ञान सनातन होने के चलते कोई नयी बात कह ही कैसे सकता है ? गीता में वर्णित सिद्धांत उपनिषदों-स्‍मृतियों में पहले से मौजूद हैं। गीता ज्ञानी विनोबा जी ने कहा था- इन सिद्धांतों को जीवन में कैसे उतारा जाए इसी में गीता की अपूर्वता है।
गीता में श्रीकृष्‍ण स्‍वयं अर्जुन को बताते हैं कि यह पुरातन योग है। ‘पुराप्रोक्‍ता मयानघ’ मेरे द्वारा पहले से कहा गया। कुरान का एक सूरा कहता है- हे नबी, तुम को जो कुछ कहा जा रहा है उसमें कोई भी चीज ऐसी नहीं है जो तुम से पहले गुजरे हुए रसूलों से न कही जा चुकी हो। उक अन्‍य कहती है- जो किताबें इससे पहले आयीं हैं, यह उन्‍हीं की पुष्टि है।
कृष्‍ण योगेश्‍वर थे। हम कह सकते हैं कि मोहम्‍मद भी जीने की कला जानते थे। जो जीने की कला जानता है वह योगी है। जीने की कला वही है जो मृत्‍यु की कला बतलाती है। मृत्‍यु भी जीवन और कदाचित उससे भी अधिक महत्‍वपूर्ण होती है। जो जन्‍मा है उसकी मृत्‍यु तय है – जातस्‍य हि ध्रुवोमृत्‍यु: (गीता)। सूरा अननिसा में यही कुरान कहता है- नहीं, मृत्‍यु तो जहां भी तुम हो वह प्रत्‍येक दशा में तुम्‍हें आकर रहेगी, चाहे तुम कैसे ही सुदृढ भवन में हो।
विनोबा जी ने कहा था- जीवन के सिद्धांतों को व्‍यवहार में लाने की जो कला या युक्ति है उसी को योग कहते हैं। ‘सांख्‍य ‘ का अर्थ है सिद्धांत अथवा शास्‍त्र और ‘योग’ का अर्थ है कला। शास्‍त्र और कला दोनों के योग से जीवन सौन्‍दर्य खिलता है। कोरा शास्‍त्र किस काम का ?
गीता ‘सांख्‍य’ और ‘योग’ – शास्‍त्र और कला दोनों से परिपूर्ण है। कुरान भी। वह भी अमीर- गरीब, सभी को दुनिया और आखरत संवारने के सरल कला सूत्र बताता है। गफलत में पडे लोगों को जगाता, सचेत करता है। कुरान भी गीता की तरह समरस और सब को लेकर चलने वाला है। एकेश्‍वर का उद्घोष करते हुए कुरान कहता है- रब्बिलआलमीन अर्रहमानर्रहीम(सूरा फातेहा) -वह सारे संसार – सृष्टि का प्रभु है, अत्‍यंत करुणामय और दया करने वाला है। एक अन्‍य आयत है- पूर्व और पश्चिम सब अल्‍लाह के हैं। जिस ओर भी तुम रुख करोगे , उसी ओर अल्‍लाह का रुख है। अल्‍लाह सर्व व्‍यापी और सब कुछ जानने वाला है। कृष्‍ण कहते हैं- वासुदेव सर्वं। सब कुछ ईश्‍वर है। सर्वस्‍य चाहं हृदिसन्निविष्‍ट: .. मैं ही सम्‍पूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित हूं। कुरान कहता है- सावधान कर दो, मेरे सिवा कोई तुम्‍हारा प्रभु पूज्‍य नहीं है, अत: तुम मुझी से डरो। गीता में कृष्‍ण कहते हैं- सर्वधर्मानपरित्‍यज्‍य मामेकं शरणंब्रज- अनन्‍य भाव से मेरी मेरी शरण में आ जा। तमेव शरणं गच्‍छ सर्वभावेन भारत- हे अर्जुन तू सर्व भाव से उसकी ही शरण में चला जा।
काबा में सात तवाफ(परिक्रमा) करते हैं। बाल कटवाने और सर मुडवाने की परंपरा है। भारत में मंदिरों में सात बार परिक्रमा करने और तीर्थों में बाल घुटवाने का रिवाज है। दायें हाथ से खानापीना , खाने से पहले बिस्मिल्‍ला या श्रीगणेश कहना और अंतिम क्रिया में शव को नहलाना-धोना जैसी कई बातों में समानता है।
जकात-सदका,रोजा, ईमान , नमाज और हज इस्‍लाम के स्‍तंभ हैं। ईमान परमेश्‍वर में श्रद्धा,रोजा व्रत-उपवास,जकात-दान, और नमाज प्रार्थना-योग है। यही वैदिकों का आधार है। विश्‍व बंधुत्‍व का संदेश देने वाले हज को कुंभ और संगम के माघ -महत्‍वों से जोड सकते हैं। जप भारतीय परंपरा में भी बहुत महत्‍वपूर्ण है। इसे श्रव्‍य,उपांसु और मानस तीन प्रकार का बताया गया है। कुरान कई जगह जप करने को कहा है। इसी तरह संतोष और तप का भी दोनों में समान महत्‍व है। इस्‍लाम ईमान को सर्वाधिक महत्‍व देता है। वेदांत में ध्‍यान और जप से भी अधिक श्रद्धा का महत्‍व बताया गया है। महा भारत कहती है- अश्रद्धा परमं पापं श्रद्धा पाप विमोचनी … अश्रद्धा से बढ कर कोई पाप नहीं है और श्रद्धा सब पापों से छुडाने वाली है। गीता का कहना है- श्रद्धावांल्‍लभते ज्ञानं..श्रद्धावान ज्ञान प्राप्‍त करता है। दान का महत्‍व बताते हुए गीता में कृष्‍ण ने कहा- दानंतपश्‍चैव पावनानि मनीषिणाम् । दान और तप मनुष्‍यों को पवित्र करने वाले हैं। और तो और वेदांत के निर्विकल्‍प समाधि के सिद्धांतों और महर्षि पतंजलि के अष्‍टांग योग की भी अधिकांश बातें इस्‍लामी विचार-दर्शन में समाहित हैं। दोनों में इतनी समानतायें हैं कि उन्‍हें संक्षेप में पुस्‍तक में ही समेटा जा सकता है। एक प्रमुख दृष्‍टांत-
वैदिक परंपरा में राजा,देवता और गुरू के पास खाली हाथ जाने मना किया गया है। यथा-रिक्‍तपाणिर्नसेवेत राजानां देवतां गुरुम् और रिक्‍त हस्‍तो न गच्‍छेत राजानांदेवतांगुरुम् । कुरान के सूरा अलमुजादला में इसकी नजदीकी यूं दिखती है – हे लोगों जो ईमान लाये हो, जब तुम रसूल से तन्‍हाई में बात करो तो बात करने से पहले कुछ सदका(दान) दो। यह तुम्‍हारे लिए अच्‍छा और अधिक पवित्र है। अलबत्‍ता अगर तुम सदका देने के‍ लिए कुछ न पाओ तो अल्‍लाह क्षमाशील और दयावान है। लोगों की असुविधा को देखते हुए यह आदेश बाद में वापस ले लिया गया।
अरब के लोगों, इस्‍लाम के अनुयायियों और भारत सनातन धर्मियों के बीच दार्शनिक – वैचारिक के साथ ही लोक व्‍यवहार की भी तमाम बातें इतनी अधिक समान हैं कि विचार करने पर पता चलता है कि दोनों की सांसें आपस में कितनी रचीबसी हैं। पूरी विनम्रता से कहा जा सकता है कि कुरान की एक भी सूरा या आयत ऐसी नहीं है जो वैदिक विचारधारा की विरोधी हो। गीता और रामायण में भी एक भी लाइन ऐसी नहीं है जो इस्‍लामी दर्शन से टकराती हो। कुरान के अल्‍लाह की ही अवधारणा से प्रभावित होकर तो गोस्‍वामी तुलसी दास ने अपने राम को ‘साहिब’ और ‘सुसाहिब’ कहा । तो फिर दिलों की दूरियां क्‍यों ? आप सब को इसका जवाब देना चाहिए
एक ही है इस्‍लाम और वैदिक धर्म
कुरान गीता का ही संदेशवाहक है और इस्‍लाम सनातन धर्म की ही एक सशक्‍त अंर्तधारा। दोनो आस्तिक और एकेश्‍वरवादी हैं। सनातन धर्मी और मानवकृत नहीं, अपौरुषेय हैं। दोनों सर्व समर्थ एक परमात्‍मा और एक परम तत्‍व (तौहीद) को सत्‍य मानते हैं। दोनों अहंकार को जीतने और ईश्‍वर के समक्ष पूर्ण समर्पण पर जोर देते हैं। गीता समग्र को मानती है , इस लिए उसका आरंभ और अंत शरणागति से हुआ है। यही कुरान कहता है- आओ, अल्‍लाह की ओर।
गीता- कुरान दोनों ईश्‍वर की वाणी हैं। ईश्‍वर की वाणी बडे बडे ऋषि-मुनियों की वाणी से भी श्रेष्‍ठ होती है, क्‍यों कि ईश्‍वर ही सब का आदि कारण है। पहले आने से गीता सभी दर्शनों की मां है। सभी गीता के अंर्तगत हैं, पर गीता किसी दर्शन के अंर्तगत नहीं है। बाद में आने से कुरान अलकिताब (सभी किताबों) का संरक्षक है और सभी की पुष्टि करने वाला है। दोनों आस्‍थावानों को जीव, जगत और ईश्‍वर का अनुभव कराते हैं। दोनों में किसी मत का आग्रह नहीं है। दोनों का उद्देश्‍य साधक को समग्र की ओर ले जाना है।
कुरान एक आयत में संकेत करता है कि कुरान और वे सभी किताबें जो विभिन्‍न समय और विभिन्‍न भाषाओं में अल्‍लाह की ओर से अवतीर्ण हुईं, सब की सब वास्‍तव में एक ही किताब(अलकिताब) हैं । एक ही उनका रचयिता है उनका एक ही आशय और उद्देश्‍य है। एक ही शिक्षा- ज्ञान है जो उनके माध्‍यम से मानव जाति को प्रदान किया गया है। अंतर है तो वर्णन का जो देश, काल और श्रोताओं की स्थिति को ध्‍यान में रख कर अलग अलग ढंग से किया गया।
गीता उपनिषद रूपी कामधेनु का दूध है जिसे जिसे भगवान श्रीकृष्‍ण ने दुहा था। कुरान कलाम ए इलाही है जो सन 610से 8जून 832 के दौरान रसूल पाक पर अवतीर्ण हुआ। कृष्‍ण ने गीता -ज्ञान युद्ध के मैदान में मोह ग्रस्‍त , धर्मसम्‍मूढचेता: , हो गए धर्नुधारी अर्जुन को दिया था। नबूवत के बाद मोहम्‍मद का काबा के शक्तिशाली कुरैश प्रबंधकों से अघोषित युद्ध शुरू हो गया था।
एक संस्‍कृत और एक अरबी में है। लेकिन, दोनों की भाषा में गजब का लालित्‍य, रवानी और वाणी का प्रभाव है। दोनों की वर्णन शैली लेख की नहीं, भाषण की है। गीता एक संवाद सत्र में समाप्‍त हुई तो कुरान करीब 22 वर्ष की समयावधि में टुकडों में आया। प्रसिद्ध इस्‍लामी विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी के शब्‍दों में- अवसर और आवश्‍यकता के अनुरूप एक अभिभाषण नबी सल्‍ला. पर उतारा जाता था और पैगम्‍बर उसे भाषण के रूप में लोगों को सुनाते थे। यानी कुरान मजीद की हर सूरा वास्‍तव में एक भाषण थी जो इस्‍लामी आह्वान के किसी चरण में एक विशेष अवसर पर अवतरित होती थी। उसकी एक विशेष पृष्‍ठभूमि होती थी। कुछ विशेष परिस्थितियां उसकी मांग करती थीं और कुछ आवश्‍यकतायें होती थीं जिन्‍हें पूरा करने के लिए वह उतरती थी।
गीता-कुरान दोनों किसी जाति, सम्‍प्रदाय, क्षेत्र या काल विशेष के लिए नहीं हैं। सर्वजनहिताय ,सार्वभैमिक और सर्वकालिक हैं। दोनों लोक-परलोक सुधारने का रास्‍ता बताने वाले हैं। परलोक का रास्‍ता लोक से हो कर ही जाता है। मनुष्‍य ईश्‍वर की सर्वोत्‍कृष्‍ट रचना है । ईश्‍वर ने मनुष्‍य को बुद्धि, विवेक और संवेदनशीलता का अनुपम गुण दिया है। मनुष्‍य जन्‍म ही सब जन्‍मों का आदि तथा अंतिम जन्‍म है । परमात्‍म प्राप्ति कर ले तो अंतिम जन्‍म भी यही है और न करे तो जन्‍म चक्रों का आदि जन्‍म भी यही है।इस लिए मनुष्‍य को अपना जीवन लक्ष्‍य और मार्ग बहुत सोच विचार कर चुनना चाहिए। गीता- कुरान दोनों इस उद्देश्‍य की पूर्ति करते हैं। दोनों किसी वाद विवाद या खंडन मंडन में नहीं पडते। दोनों आस्‍थावान दिलों में प्रकाश- पवित्रता भरने वाले हैं। परम पथ प्रकाश हैं।
प्रकाश और पवित्रता ज्ञान के सहज और अनिवार्य गुण हैं। पूर्णत: शुद्ध-पवित्र हो जाना ज्ञान का प्रतिफल है। कृष्‍ण कहते हैं- नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिहविद्यते…… ज्ञान के समान कुछ भी पवित्र नहीं है। अज्ञान का आवरण हट जाना, हकीकत खुल जाना या प्रकाशित हो जाना ज्ञान है। ज्ञान प्रकाश का प्रतिफल है पवित्रता-शुद्धता। इसी लिए रसूल के साथ पाक जोडते हैं।
ज्ञान ब्रहृम का प्रकाश है। ज्ञान से भक्ति है। ज्ञान और भक्ति ईश्‍वर तक पहुंचाने वाले दो द्वार हैं। ज्ञान-सूत्र के सहारे हम ईश्‍वरोन्‍मुखी यात्रा में आगे बढते हैं। ज्ञान का समुच्‍चय है वेद। वेद विद्- जानने से, पूर्ण को पूर्णता से जानने से है। जो पूर्ण है,वही सनातन है और जो सनातन है वह शास्‍वत भी है। ब्रह्म या ईश्‍वर ही सनातन है, शेष सब मरणधर्मा, मायावी, परिवर्तशील और क्षणभंगुर है। जो मार्ग या विद्या सूत्र सनातन से जोडे, वही सनातन धर्म है। इस्‍लाम ईश्‍वरीय आज्ञा के आगे सर झुकाना ,शांति चाहना, ईमान लाना और अपने आप को ईश्‍वर को समर्पित कर देना है। रामायण में इसी को लक्ष्‍मण गुह से कहते हैं- सखा परम परमारथ एहू , मनकर्म बचन राम पद नेहू। मुस्लिम वह जो अल्‍लाह के आदेशानुपान में स्‍वयं को समर्पित कर दे। अल्‍लाह ही को अपना स्‍वामी, शासक और पूज्‍य मान ले और अल्‍लाह की ओर आये आदेश के अनुसार जीवन व्‍यतीत करे। इसी धारणा और नीति का नाम इस्‍लाम है। यही सब नबियों का धर्म था जो संसार के आरंभ से विभिन्‍न देशों और जातियों में आए।
तत्‍वत: और मूलत: धर्म एक ही है। उसे सनातन,वैदिक या इस्‍लाम कुछ भी कह सकते हैं। तीनों का मन-प्राण एक है क्‍यों कि ईश्‍वर एक है। ब्रह्म को जानने में जो ज्ञान सहायक हो वही वैदिक है। वही विद्या ब्रहृम-विद्या है। इस विधा- विद्या का जानकार या उसके अनुसंधान में रत ब्‍यक्ति ही ब्राहृमण है। जन्‍मना नहीं, मनसा-कर्मणा। इस लिए वैदिक धर्म को ब्राह्मण धर्म भी कहा जाता है।
ब्रह्म-ईश्‍वर की तरह ही उनको जानने का ज्ञान, वेद, भी सनातन-शास्‍वत है। श्रृष्टि लय-प्रलय में भी ज्ञान नष्‍ट नहीं होता। वेद-ज्ञान नष्‍ट हो गया तो कोई ईश्‍वर को जानेगा कैसे ? अवतार के रूप में राम या कृष्‍ण ने वेदों को नहीं रचा-बनाया । ये पहले से हैं। उन्‍हों ने इनके बारे में केवल बताया भर है। किसी ने कोई धर्म नहीं चलाया, क्‍यों कि धर्म तो सनातन है। मोहम्‍मद भी जिस धर्म के ध्‍वजी बने वह पहले से, आदम- इब्राहीम के जमाने से चला आ रहा था। यानी सनातन।
गीता- कुरान दोनों ने कोई नयी बात नहीं बतायी। पहले से चले आ र‍हे सत्‍य-सिद्धांतों को ही नये सिरे से प्रकाशित किया। ज्ञान सनातन होने के चलते कोई नयी बात कह ही कैसे सकता है ? गीता में वर्णित सिद्धांत उपनिषदों-स्‍मृतियों में पहले से मौजूद हैं। गीता ज्ञानी विनोबा जी ने कहा था- इन सिद्धांतों को जीवन में कैसे उतारा जाए इसी में गीता की अपूर्वता है।
गीता में श्रीकृष्‍ण स्‍वयं अर्जुन को बताते हैं कि यह पुरातन योग है। ‘पुराप्रोक्‍ता मयानघ’ मेरे द्वारा पहले से कहा गया। कुरान का एक सूरा कहता है- हे नबी, तुम को जो कुछ कहा जा रहा है उसमें कोई भी चीज ऐसी नहीं है जो तुम से पहले गुजरे हुए रसूलों से न कही जा चुकी हो। उक अन्‍य कहती है- जो किताबें इससे पहले आयीं हैं, यह उन्‍हीं की पुष्टि है।
कृष्‍ण योगेश्‍वर थे। हम कह सकते हैं कि मोहम्‍मद भी जीने की कला जानते थे। जो जीने की कला जानता है वह योगी है। जीने की कला वही है जो मृत्‍यु की कला बतलाती है। मृत्‍यु भी जीवन और कदाचित उससे भी अधिक महत्‍वपूर्ण होती है। जो जन्‍मा है उसकी मृत्‍यु तय है – जातस्‍य हि ध्रुवोमृत्‍यु: (गीता)। सूरा अननिसा में यही कुरान कहता है- नहीं, मृत्‍यु तो जहां भी तुम हो वह प्रत्‍येक दशा में तुम्‍हें आकर रहेगी, चाहे तुम कैसे ही सुदृढ भवन में हो।
विनोबा जी ने कहा था- जीवन के सिद्धांतों को व्‍यवहार में लाने की जो कला या युक्ति है उसी को योग कहते हैं। ‘सांख्‍य ‘ का अर्थ है सिद्धांत अथवा शास्‍त्र और ‘योग’ का अर्थ है कला। शास्‍त्र और कला दोनों के योग से जीवन सौन्‍दर्य खिलता है। कोरा शास्‍त्र किस काम का ?
गीता ‘सांख्‍य’ और ‘योग’ – शास्‍त्र और कला दोनों से परिपूर्ण है। कुरान भी। वह भी अमीर- गरीब, सभी को दुनिया और आखरत संवारने के सरल कला सूत्र बताता है। गफलत में पडे लोगों को जगाता, सचेत करता है। कुरान भी गीता की तरह समरस और सब को लेकर चलने वाला है। एकेश्‍वर का उद्घोष करते हुए कुरान कहता है- रब्बिलआलमीन अर्रहमानर्रहीम(सूरा फातेहा) -वह सारे संसार – सृष्टि का प्रभु है, अत्‍यंत करुणामय और दया करने वाला है। एक अन्‍य आयत है- पूर्व और पश्चिम सब अल्‍लाह के हैं। जिस ओर भी तुम रुख करोगे , उसी ओर अल्‍लाह का रुख है। अल्‍लाह सर्व व्‍यापी और सब कुछ जानने वाला है। कृष्‍ण कहते हैं- वासुदेव सर्वं। सब कुछ ईश्‍वर है। सर्वस्‍य चाहं हृदिसन्निविष्‍ट: .. मैं ही सम्‍पूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित हूं। कुरान कहता है- सावधान कर दो, मेरे सिवा कोई तुम्‍हारा प्रभु पूज्‍य नहीं है, अत: तुम मुझी से डरो। गीता में कृष्‍ण कहते हैं- सर्वधर्मानपरित्‍यज्‍य मामेकं शरणंब्रज- अनन्‍य भाव से मेरी मेरी शरण में आ जा। तमेव शरणं गच्‍छ सर्वभावेन भारत- हे अर्जुन तू सर्व भाव से उसकी ही शरण में चला जा।
काबा में सात तवाफ(परिक्रमा) करते हैं। बाल कटवाने और सर मुडवाने की परंपरा है। भारत में मंदिरों में सात बार परिक्रमा करने और तीर्थों में बाल घुटवाने का रिवाज है। दायें हाथ से खानापीना , खाने से पहले बिस्मिल्‍ला या श्रीगणेश कहना और अंतिम क्रिया में शव को नहलाना-धोना जैसी कई बातों में समानता है।
जकात-सदका,रोजा, ईमान , नमाज और हज इस्‍लाम के स्‍तंभ हैं। ईमान परमेश्‍वर में श्रद्धा,रोजा व्रत-उपवास,जकात-दान, और नमाज प्रार्थना-योग है। यही वैदिकों का आधार है। विश्‍व बंधुत्‍व का संदेश देने वाले हज को कुंभ और संगम के माघ -महत्‍वों से जोड सकते हैं। जप भारतीय परंपरा में भी बहुत महत्‍वपूर्ण है। इसे श्रव्‍य,उपांसु और मानस तीन प्रकार का बताया गया है। कुरान कई जगह जप करने को कहा है। इसी तरह संतोष और तप का भी दोनों में समान महत्‍व है। इस्‍लाम ईमान को सर्वाधिक महत्‍व देता है। वेदांत में ध्‍यान और जप से भी अधिक श्रद्धा का महत्‍व बताया गया है। महा भारत कहती है- अश्रद्धा परमं पापं श्रद्धा पाप विमोचनी … अश्रद्धा से बढ कर कोई पाप नहीं है और श्रद्धा सब पापों से छुडाने वाली है। गीता का कहना है- श्रद्धावांल्‍लभते ज्ञानं..श्रद्धावान ज्ञान प्राप्‍त करता है। दान का महत्‍व बताते हुए गीता में कृष्‍ण ने कहा- दानंतपश्‍चैव पावनानि मनीषिणाम् । दान और तप मनुष्‍यों को पवित्र करने वाले हैं। और तो और वेदांत के निर्विकल्‍प समाधि के सिद्धांतों और महर्षि पतंजलि के अष्‍टांग योग की भी अधिकांश बातें इस्‍लामी विचार-दर्शन में समाहित हैं। दोनों में इतनी समानतायें हैं कि उन्‍हें संक्षेप में पुस्‍तक में ही समेटा जा सकता है। एक प्रमुख दृष्‍टांत-
वैदिक परंपरा में राजा,देवता और गुरू के पास खाली हाथ जाने मना किया गया है। यथा-रिक्‍तपाणिर्नसेवेत राजानां देवतां गुरुम् और रिक्‍त हस्‍तो न गच्‍छेत राजानांदेवतांगुरुम् । कुरान के सूरा अलमुजादला में इसकी नजदीकी यूं दिखती है – हे लोगों जो ईमान लाये हो, जब तुम रसूल से तन्‍हाई में बात करो तो बात करने से पहले कुछ सदका(दान) दो। यह तुम्‍हारे लिए अच्‍छा और अधिक पवित्र है। अलबत्‍ता अगर तुम सदका देने के‍ लिए कुछ न पाओ तो अल्‍लाह क्षमाशील और दयावान है। लोगों की असुविधा को देखते हुए यह आदेश बाद में वापस ले लिया गया।
अरब के लोगों, इस्‍लाम के अनुयायियों और भारत सनातन धर्मियों के बीच दार्शनिक – वैचारिक के साथ ही लोक व्‍यवहार की भी तमाम बातें इतनी अधिक समान हैं कि विचार करने पर पता चलता है कि दोनों की सांसें आपस में कितनी रचीबसी हैं। पूरी विनम्रता से कहा जा सकता है कि कुरान की एक भी सूरा या आयत ऐसी नहीं है जो वैदिक विचारधारा की विरोधी हो। गीता और रामायण में भी एक भी लाइन ऐसी नहीं है जो इस्‍लामी दर्शन से टकराती हो। कुरान के अल्‍लाह की ही अवधारणा से प्रभावित होकर तो गोस्‍वामी तुलसी दास ने अपने राम को ‘साहिब’ और ‘सुसाहिब’ कहा । तो फिर दिलों की दूरियां क्‍यों ? आप सब को इसका जवाब देना चाहिए
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