एक मासूम सा सवाल ..जी हाँ दोस्तों दंगा क्या होता है और क्यूँ होता है ..यही था कल मेरी छोटी से मासूम सी बच्ची का मासूम सा सवाल जिसने मुझे लाजवाब कर दिया ...कल हम टी वी देख रहे थे ..मुज़फ्फर नगर की खबर आ रही थी दंगा हो गया ...मेरी बच्ची कार्टून देखना चाहती थी ..छुट्टी थी में घर पर ही था मेने बिटिया से रिक्येस्ट की बेटा यह मुज़फ्फर नगर की खबर देख ले फिर चेनल बदल लेना बस उसने भी देखा और ..एंकर के अलफ़ाज़ मुस्फ्फर नगर में साम्प्रदायीक हिंसा अब तक दंगे में इक्कीस मरे यह सुनकर बिटिया के भी कान खड़े हो गए उसने मासूमियत से सवाल खड़ा किया पापा यह साम्प्रदायिक हिंसा यह दंगा क्या होता है ..में चुप रहा में उल्टा सवाल कियता बेटा तुम अब तो स्कूल में जाती हो तुम्हे भी यह बातें तो यद् होना चाहिए ..बेटी का फिर मासूम सा जवाब नहीं पापा ...सुनामि…भूकम्प ..ज्वालामुखी तो याद है जिससे लोग मरते रहते है लेकिन यह दंगा का मुझे पता नहीं ...में समझ गया और मजबूरी में बताया के बेटा एक धर्म का आदमी जब दुसरे धर्म के आदमी पर समूह बनाकर हमला करता है उसे दंगा कहते है ...बिटिया का फिर सवाल मुज़फ्फर नगर में कोन किस पर हमला कर रहा है ..मेरा जवाब था यह तो पता नहीं लेकिन हिन्दू मुस्लिम भाई आपस में लड़ रहे है ..बिटिया को आश्चर्य हुआ हिन्दू मुस्लिम तो भाई भाई है फिर यह क्यूँ लड़ रहे है ..में फिर बेपरवाह जवाब दिया पता नहीं ...बिटिया ने कहा पापा ..जानकी बुआ अपने घर खान बनाती है ..सुशीला आंटी अपने कपड़े धोती है ....आशु अंकल से अपन किराना लेते है ..परसराम अंकल दूध देते है ...सक्सेना अंकल डिस्क लगा कर गए है ...मेरी फ्रेंड तान्या ....महिमा ...सुनीता है ..मेरे ओटो वाले अंकल अशोक ठाकुर है ..फिर यह सब भी तो हिन्दू है हमारे तो झगड़ा होता ही नहीं ..हम तो ईद ..दीपावली पर एक साथ रहते है ..त्यौहार सेलिब्रेट करते है ..में अपनी इस बिटिया के मासूम सवालों से लाजवाब होकर पीछा छुड़ाते हुए चेनल बदल कर कार्टून का चेनल लगाकर बाहर दुसरे कमरे में आ गया ..लेकिन में सोचता रहा के यही सवाल फिर से मेरी बिटिया ने मुझ से पूंछे तो में केसे बता पाऊंगा के हम हमारी मोहब्बत ..प्यार ..भाईचारे ..सद्भाव की तहजीब को खत्म कर रहे है ..हम इंसान नहीं राक्षस होते जा रहे है भाई भाई के दुश्मन होते जा रहे है ...में सोचने लगा कहने को गीता कुरान और बाइबिल की हम बात करते है शान्ति की बात करते है और काम शेतानों की तरह राक्षसों की तरह करते है कहते है मेरा आदर्श हिन्दुस्तान है कहते है मेरा भारत महान है लेकिन हम न तो इस हिन्दुस्तान को आदर्श बना पा रहे है ना ही इस भारत को महान बना पा रहे है नफरत ..हिंसा ...सियासत की भेंट मेरे इस देश के खुशहाली के नारे ....सद्भाव की बातें ..प्यार ..मोहब्बत के सलीके ...एक दुसरे की मदद का जज्बा चढ़ गए है और हम सिर्फ सियासत और वोटों के लियें एक दुसरे को नफरत की निगाह से देख रहे है ...बच्ची ने टीवी बंद किया फिर बाहर जिस कमरे में में था वहा आई तो में वहां से कांपता लरजता हुआ इस खोफ से भाग खड़ा हुआ के फिर अगर इस बिटिया ने यह मासूम सवाल दंगा क्या होता है साम्प्रदायिक हिंसा क्या होती है पूंछ लिया तो में उसे केसे बता पाऊंगा के भाई भाई का जब कत्ल करता है तो वही दंगा कहलाता है ...और इस बेशर्मी बेहयाई क्रूरतम कार्य को हम लोग करते है यह सच कडवा सच में मेरी बेटी को केसे बता पाऊंगा यह सोच कर में बाहर आ गया ......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
08 सितंबर 2013
ये आंसू, ये दर्द, ये टीस, ये गुस्सा….! ये एहसास,
प्रिय अखिलेश जी……!!
ये आंसू,
ये दर्द,
ये टीस,
ये गुस्सा….!
ये एहसास,
शायद एक साल पुराना है........ !
मेरे अपने शहर में 45 घर जले थे.......!
मैं सुबह के 5:30 बजे आपके पास बैठा हुआ था..!
आपको दिल्ली की फ़्लाइट पकड़नी थी... !
उस वक़्त मैंने आपसे ये बात कही थी....!
हमें लैपटॉप नहीं चाहिए,
हमें बेरोज़गारी भत्ता नहीं चाहिए,
हमें विकास भी नहीं चाहिए,
हमें नौकरी भी नहीं चाहिए
हमें बड़े-बड़े और लोक लुभावन वादे भी नहीं चाहिए.....!
अगर कुछ दे सकने की हैसियत में हैं आप .
अगर सच में कुछ देना चाहते हैं आप... !
तो बस हमारी नस्लों को,
हमारे समाज को ,
महफ़ूज़ होने का एहसास दे दीजिए....!
ये कहते हुए रो पड़ा था मैं.....
उन जले हुए घरों में मेरा घर शामिल नहीं था....!
लेकिन क्या करूं...
नहीं देखे जाते हमसे ये जले हुए घर...!
नहीं देखे जाते हमसे !
आज फिर आंसुओं के साथ उदास बैठा हूं,
जल रहा है मुज़फ़्फरनगर... …………………..!
कभी आपने सोचा,
बिना प्रशासन की इजाज़त कैसे 50,000 से ज़्यादा लोग पंचायत में इकट्ठे हो जाते हैं....!
खुलेआम नफ़रत के भाषण होते हैं... !
राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं.....
लाशें,
चीखें,
डर,
ख़ामोशी... …………..!
आख़िर कौन लेगा इस सबकी ज़िम्मेदारी…….??
कभी सोचा आपने.... ?
रोकिए इस सब को !
क्योंकि क्या हिन्दू क्या मुसलमान...!
भरोसा टूट रहा है सबका....!
और किसी भी हुकूमत का खूबसूरत महल खड़ा होता है तो सिर्फ़ आवाम के भरोसे की बुनियाद पर... !
‘सरिता शर्मा’ का एक शेर याद आ रहा है....
अगर लौटा सको तो टूटता विश्वास लौटा दो,
बनो बादल धरा को फिर पुरानी प्यास लौटा दो !
अगर मजबूर हो तुम प्यार सच्चा दे नहीं सकते,
तो झूठा ही सही पर प्यार का एहसास लौटा दो !!
~ Imran Pratapgarhi
प्रिय अखिलेश जी……!!
ये आंसू,
ये दर्द,
ये टीस,
ये गुस्सा….!
ये एहसास,
शायद एक साल पुराना है........ !
मेरे अपने शहर में 45 घर जले थे.......!
मैं सुबह के 5:30 बजे आपके पास बैठा हुआ था..!
आपको दिल्ली की फ़्लाइट पकड़नी थी... !
उस वक़्त मैंने आपसे ये बात कही थी....!
हमें लैपटॉप नहीं चाहिए,
हमें बेरोज़गारी भत्ता नहीं चाहिए,
हमें विकास भी नहीं चाहिए,
हमें नौकरी भी नहीं चाहिए
हमें बड़े-बड़े और लोक लुभावन वादे भी नहीं चाहिए.....!
अगर कुछ दे सकने की हैसियत में हैं आप .
अगर सच में कुछ देना चाहते हैं आप... !
तो बस हमारी नस्लों को,
हमारे समाज को ,
महफ़ूज़ होने का एहसास दे दीजिए....!
ये कहते हुए रो पड़ा था मैं.....
उन जले हुए घरों में मेरा घर शामिल नहीं था....!
लेकिन क्या करूं...
नहीं देखे जाते हमसे ये जले हुए घर...!
नहीं देखे जाते हमसे !
आज फिर आंसुओं के साथ उदास बैठा हूं,
जल रहा है मुज़फ़्फरनगर... …………………..!
कभी आपने सोचा,
बिना प्रशासन की इजाज़त कैसे 50,000 से ज़्यादा लोग पंचायत में इकट्ठे हो जाते हैं....!
खुलेआम नफ़रत के भाषण होते हैं... !
राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं.....
लाशें,
चीखें,
डर,
ख़ामोशी... …………..!
आख़िर कौन लेगा इस सबकी ज़िम्मेदारी…….??
कभी सोचा आपने.... ?
रोकिए इस सब को !
क्योंकि क्या हिन्दू क्या मुसलमान...!
भरोसा टूट रहा है सबका....!
और किसी भी हुकूमत का खूबसूरत महल खड़ा होता है तो सिर्फ़ आवाम के भरोसे की बुनियाद पर... !
‘सरिता शर्मा’ का एक शेर याद आ रहा है....
अगर लौटा सको तो टूटता विश्वास लौटा दो,
बनो बादल धरा को फिर पुरानी प्यास लौटा दो !
अगर मजबूर हो तुम प्यार सच्चा दे नहीं सकते,
तो झूठा ही सही पर प्यार का एहसास लौटा दो !!
~ Imran Pratapgarhi
ये आंसू,
ये दर्द,
ये टीस,
ये गुस्सा….!
ये एहसास,
शायद एक साल पुराना है........ !
मेरे अपने शहर में 45 घर जले थे.......!
मैं सुबह के 5:30 बजे आपके पास बैठा हुआ था..!
आपको दिल्ली की फ़्लाइट पकड़नी थी... !
उस वक़्त मैंने आपसे ये बात कही थी....!
हमें लैपटॉप नहीं चाहिए,
हमें बेरोज़गारी भत्ता नहीं चाहिए,
हमें विकास भी नहीं चाहिए,
हमें नौकरी भी नहीं चाहिए
हमें बड़े-बड़े और लोक लुभावन वादे भी नहीं चाहिए.....!
अगर कुछ दे सकने की हैसियत में हैं आप .
अगर सच में कुछ देना चाहते हैं आप... !
तो बस हमारी नस्लों को,
हमारे समाज को ,
महफ़ूज़ होने का एहसास दे दीजिए....!
ये कहते हुए रो पड़ा था मैं.....
उन जले हुए घरों में मेरा घर शामिल नहीं था....!
लेकिन क्या करूं...
नहीं देखे जाते हमसे ये जले हुए घर...!
नहीं देखे जाते हमसे !
आज फिर आंसुओं के साथ उदास बैठा हूं,
जल रहा है मुज़फ़्फरनगर... …………………..!
कभी आपने सोचा,
बिना प्रशासन की इजाज़त कैसे 50,000 से ज़्यादा लोग पंचायत में इकट्ठे हो जाते हैं....!
खुलेआम नफ़रत के भाषण होते हैं... !
राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं.....
लाशें,
चीखें,
डर,
ख़ामोशी... …………..!
आख़िर कौन लेगा इस सबकी ज़िम्मेदारी…….??
कभी सोचा आपने.... ?
रोकिए इस सब को !
क्योंकि क्या हिन्दू क्या मुसलमान...!
भरोसा टूट रहा है सबका....!
और किसी भी हुकूमत का खूबसूरत महल खड़ा होता है तो सिर्फ़ आवाम के भरोसे की बुनियाद पर... !
‘सरिता शर्मा’ का एक शेर याद आ रहा है....
अगर लौटा सको तो टूटता विश्वास लौटा दो,
बनो बादल धरा को फिर पुरानी प्यास लौटा दो !
अगर मजबूर हो तुम प्यार सच्चा दे नहीं सकते,
तो झूठा ही सही पर प्यार का एहसास लौटा दो !!
~ Imran Pratapgarhi
Wasim Akram Tyagi· बारूद कभी जख्म का मरहम नहीं होती।
जिस मुजफ्फरनगर की आग की लपटें मेरठ के गांवों तक और शामली तक पहुंच गई है
अंतराष्ट्रीय स्तर पर यह शहर उर्दू के मशहूर शायर, अशोक साहिल, खालिद
जाहिद मुजफ्फरनगरी, और मरहूम मुजफ्फर रज्मी कैरानवी के नाम से जाना जाता
है। अपनी शायरी के द्वारा पुल बनाने के लिये जाना जाता है काबा और काशी को
नजदीक लाने वाले शायर अशोक साहिल के इस शहर में लोग आपस में लड़ रहे हैं ये
कोई बाहर से आये लोग नहीं हैं ये वही लोग हैं जिनके पुरखों ने कभी
अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे जिन्होंने गुलाम भारत की आजादी की
लड़ाईयां कांधे से कांधा मिलाकर लड़ीं थीं। मगर आज उनके वंशज सियासी
मदारियों के चक्कर में आकर एक दूसरे की जान के दुश्मन बने हुऐ हैं। कहने को
चारों ओर से अम्न और शान्ती की दुआऐं की जा रहीं हैं मगर इनका कुछ सरफिरों
पर कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है। सियासी मदारी बारूद के ढेर को
चिंगारी दिखाखर पीछे से हवा कर रहे हैं ताकी ये शौले भड़कते ही रहे हैं
आपसी भाईचारे की दीवारें रोज टूटती रहें, और उनका सियासी कारोबार चलता रहे
किसी का हिंदू के नाम पर तो किसी का मुस्लिम के नाम पर। जब इस बारे में
मश्हूर शायर हाफिज खालिद जाहिद मुजफ्फरनगरी से बात की गई तो उन्होंने कहा
कि “ ये कैसा दौर मेरे शहर को देखने को मिला है ये वही सानिहा है जिससे
लम्हों की खता सदियों तक भी माफ नहीं होती, ये वही खताऐं हैं जिनसे सदियों
पुराने आपसी भाई चारे, आपसी सदभाव में दरारें आ जाती हैं, सुना है लोग
नाखून बढ़ने पर नाखून काटते हैं उंगलियों को नहीं काटते, लेकिन ये कैसे लोग
हैं जो नाखूनों के साथ – साथ उंगलियों को भी तराश रहे हैं। ” इतना कहते ही
उनका गला रुंध जाता है थोड़ी देर रुकने के बाद वे आगे कहते हैं कि जब किसी
घर में आपस में भाईयों में झगड़ा होता है तो यकीनन वो घर फिर काटने को
दौड़ता है, ऐसे माहौल में उसमें जी नहीं लगता बस यही दुआ हर दम रहती है कि
काश इस घर की खुशी लौट आयें वो पुराना भाईचार फिर से कांयम हो जाये।
दंगाईयों से मुखातिब होकर वे कहते हैं -
तेजी से तबाही की तरफ दौड़ने वालो, तलवार से दुश्मन की जबीं खम नहीं होती
अंजाम कभी जंग का अच्छा नहीं होता, बारूद कभी जख्म का मरहम नहीं होती।
वास्तविकता तो यही है बारूद कभी किसी के जख्म का मरहम नहीं बने, लेकिन फिर
भी उस बारूद का इलाज तो मुमकिन है जो बंदूक के माध्यम से इंसानी जिस्म को
तार तार कर देता है, मगर उस बारूद का क्या किया जाये जो सियासी लोगों ने
सांप्रदायिकता के रूप में युवाओं की रगों में भर दिया है ? और अभी तक ये
खेल जारी है जिसकी बदौलत कभी मुजफ्फरनगर से उठने वाली चिंगारी शौला बन जाती
है तो कभी सीतापुर, मुरादाबाद, मेरठ, अलीगढ़, बनारस, लखनऊ, इत्यादी शहर
जलने सुलगने लगते हैं। अशोक साहिल भी इसी शहर के हैं, फिलहाल वो शहर से
बाहर थे मैंने जब उनसे फोन पर बात की तो उन्होंने रुंधे हुऐ गले के साथ
कहा, भाई मेरे शहर का मौसम ऐसा कभी नहीं रहा है, इस बार ये खिजा अपने पीछे
तबाहियों के न जाने कितने निशानात छोड़ जायेगी, हिंदू मुस्लिम की बात करने
पर वे कहते हैं कि उन्होंने तो बस इंसान ही रहने की कसम खाई है उन्हें
हिंदू मुसलमान कौन समझेगा। ये वही अशोक साहिल थे जो अक्सर अंतराष्ट्रीय
स्तर पर होने वालो मुशायरों में कहा करते हैं, कि..
काबा और काशी को कुछ नजदीक लाने के लिये
मैं गजल कहता हूं सिर्फ पुल बनाने के लिये।
हमेशा शायरी में पुल बनाने वाले शायर के शहर का जलना, और उस जलते शहर से
मासूमों की चीखों का आना वैसा ही है जैसे किसी डूबने वाले की चीखें आतीं
हैं, और वे कानों में जम जाती हैं कठोर से कठोर इंसान का भी दिल उस वक्त
पिघल जाता है। यहां से करीब तीस किलो मीटर की दूरी पर आलमी शौहरत याफ्ता
शायर डॉ. नवाज देवबंदी रहते हैं, वे दो जुमलों में अपनी बात खत्म कर देते
हैं बहुत अफसोसनाक है कि अब शहर की आग गांव तक पहुंच रही है, अभी तक गांव
इस सांप्रदायिकता की आग से महफूज थे लेकिन इस बार सियासत ने कुछ ऐसा खेल
खेला है कि जिससे गांव में चौपालों पर बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते लोगों के
जहन भी चाक हो गये हैं। पंजाब के जालांधर से कुछ ही दूरी पर बसे मुजफ्फरनगर
से उठने वाली लपटों की आंच जालांधर के रहने वाले खुशबीर सिंह शाद को भी
गर्मी का तपिश का एहसास दिला रही हैं वे कहते हैं कि मुजफ्फरनगर की घटना ने
उनको सदमा पहुंचाया है, जिस एकता को चौधरी चरण सिंह ने सींचकर यहां तक
लाये थे उस एकता को सियासी लोगों ने एक पल में ढ़ेर कर दिया। वे कहते हैं
कि इस बार चली इस पागल हवा ने जाने कितने चरागों को बुझा दिया है, और इस
शेर के गुनगुनाते हुऐ अपनी बात खत्म करते हैं कि
देव कामत पेड़ सब लरजे रहे सहमे रहे
जंगलों में चीखती फिरती रही पागल हवा।
सवाल ये है कि आखिर हमेशा एक साथ रहने वाले, एक दूसरे के दुख सुख में
बराबर साथ निभाने वाले एक दूसरे की जां के दुश्मन क्यों बन जाते हैं ? वो
क्यों भूल जाते हैं कि ‘रामलीला’ में राम का किरदार भी ‘मुस्लिम’ लड़के ही
निभाते हैं, रावण के पुतले भी मुस्लिमों के यहां बनते हैं, और मुस्लिम
क्यों भूल जाते हैं कि ईद पर खरीदारी तो सेठ जी के यहां से ही होती है। ये
सच है कि सियासी लोगों ने जख्म दिये हैं मगर अभी हालात ऐसे भी नहीं हैं कि
उनके इलाज किसी के पास न हो, जब मुजफ्फरनगर से वापस दिल्ली आ रहा था तो वे
रास्ते भी सुनसान पड़े थे जहां जश्न का माहौल रहता था, फिर अपने सवाल किया
कि सांप्रदायिकता कि सियासत और मज्हबी आताताईयों ने इस जन्नत कहे जाने वाले
मुल्क को क्या बना दिया ? सोचना हम सबको है आखिर जिम्मेदारी सबकी है ? एक
दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने से कोई फायदा नहीं है फायदा तो तब है जब
गौरव के जख्म पर सुहेल पट्टी बांधे। आखिर हम आपस में हैं तो एक ही देश के
नागरिक एक ही आंगन बच्चे एक ही क्यारी के फूल महक अलग है तो क्या हुआ मगर
खूबसूरती तो सबके साथ रहकर ही आती है।
तेजी से तबाही की तरफ दौड़ने वालो, तलवार से दुश्मन की जबीं खम नहीं होती
अंजाम कभी जंग का अच्छा नहीं होता, बारूद कभी जख्म का मरहम नहीं होती।
वास्तविकता तो यही है बारूद कभी किसी के जख्म का मरहम नहीं बने, लेकिन फिर भी उस बारूद का इलाज तो मुमकिन है जो बंदूक के माध्यम से इंसानी जिस्म को तार तार कर देता है, मगर उस बारूद का क्या किया जाये जो सियासी लोगों ने सांप्रदायिकता के रूप में युवाओं की रगों में भर दिया है ? और अभी तक ये खेल जारी है जिसकी बदौलत कभी मुजफ्फरनगर से उठने वाली चिंगारी शौला बन जाती है तो कभी सीतापुर, मुरादाबाद, मेरठ, अलीगढ़, बनारस, लखनऊ, इत्यादी शहर जलने सुलगने लगते हैं। अशोक साहिल भी इसी शहर के हैं, फिलहाल वो शहर से बाहर थे मैंने जब उनसे फोन पर बात की तो उन्होंने रुंधे हुऐ गले के साथ कहा, भाई मेरे शहर का मौसम ऐसा कभी नहीं रहा है, इस बार ये खिजा अपने पीछे तबाहियों के न जाने कितने निशानात छोड़ जायेगी, हिंदू मुस्लिम की बात करने पर वे कहते हैं कि उन्होंने तो बस इंसान ही रहने की कसम खाई है उन्हें हिंदू मुसलमान कौन समझेगा। ये वही अशोक साहिल थे जो अक्सर अंतराष्ट्रीय स्तर पर होने वालो मुशायरों में कहा करते हैं, कि..
काबा और काशी को कुछ नजदीक लाने के लिये
मैं गजल कहता हूं सिर्फ पुल बनाने के लिये।
हमेशा शायरी में पुल बनाने वाले शायर के शहर का जलना, और उस जलते शहर से मासूमों की चीखों का आना वैसा ही है जैसे किसी डूबने वाले की चीखें आतीं हैं, और वे कानों में जम जाती हैं कठोर से कठोर इंसान का भी दिल उस वक्त पिघल जाता है। यहां से करीब तीस किलो मीटर की दूरी पर आलमी शौहरत याफ्ता शायर डॉ. नवाज देवबंदी रहते हैं, वे दो जुमलों में अपनी बात खत्म कर देते हैं बहुत अफसोसनाक है कि अब शहर की आग गांव तक पहुंच रही है, अभी तक गांव इस सांप्रदायिकता की आग से महफूज थे लेकिन इस बार सियासत ने कुछ ऐसा खेल खेला है कि जिससे गांव में चौपालों पर बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते लोगों के जहन भी चाक हो गये हैं। पंजाब के जालांधर से कुछ ही दूरी पर बसे मुजफ्फरनगर से उठने वाली लपटों की आंच जालांधर के रहने वाले खुशबीर सिंह शाद को भी गर्मी का तपिश का एहसास दिला रही हैं वे कहते हैं कि मुजफ्फरनगर की घटना ने उनको सदमा पहुंचाया है, जिस एकता को चौधरी चरण सिंह ने सींचकर यहां तक लाये थे उस एकता को सियासी लोगों ने एक पल में ढ़ेर कर दिया। वे कहते हैं कि इस बार चली इस पागल हवा ने जाने कितने चरागों को बुझा दिया है, और इस शेर के गुनगुनाते हुऐ अपनी बात खत्म करते हैं कि
देव कामत पेड़ सब लरजे रहे सहमे रहे
जंगलों में चीखती फिरती रही पागल हवा।
सवाल ये है कि आखिर हमेशा एक साथ रहने वाले, एक दूसरे के दुख सुख में बराबर साथ निभाने वाले एक दूसरे की जां के दुश्मन क्यों बन जाते हैं ? वो क्यों भूल जाते हैं कि ‘रामलीला’ में राम का किरदार भी ‘मुस्लिम’ लड़के ही निभाते हैं, रावण के पुतले भी मुस्लिमों के यहां बनते हैं, और मुस्लिम क्यों भूल जाते हैं कि ईद पर खरीदारी तो सेठ जी के यहां से ही होती है। ये सच है कि सियासी लोगों ने जख्म दिये हैं मगर अभी हालात ऐसे भी नहीं हैं कि उनके इलाज किसी के पास न हो, जब मुजफ्फरनगर से वापस दिल्ली आ रहा था तो वे रास्ते भी सुनसान पड़े थे जहां जश्न का माहौल रहता था, फिर अपने सवाल किया कि सांप्रदायिकता कि सियासत और मज्हबी आताताईयों ने इस जन्नत कहे जाने वाले मुल्क को क्या बना दिया ? सोचना हम सबको है आखिर जिम्मेदारी सबकी है ? एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने से कोई फायदा नहीं है फायदा तो तब है जब गौरव के जख्म पर सुहेल पट्टी बांधे। आखिर हम आपस में हैं तो एक ही देश के नागरिक एक ही आंगन बच्चे एक ही क्यारी के फूल महक अलग है तो क्या हुआ मगर खूबसूरती तो सबके साथ रहकर ही आती है।
उसने सहेलियों को हंसकर बताया जहर पी लिया है, नहीं हुआ किसी को विश्वास
रायपुर. केशकाल के भाजपा विधायक सेवकराम नेताम के प्रतिनिधि मनसुखलाल बुरड़ की 17 साल की बेटी बुलबुल जैन ने शनिवार रात संदिग्ध परिस्थिति में जहर पीकर जान दे दी। बुलबुल निमोरा स्थित रेडिएंट पब्लिक स्कूल में 12वीं कॉमर्स की छात्रा थी। वह स्कूल के हॉस्टल में ही रहती थी। कल रात करीब दस बजे कोचिंग क्लास में पढ़ाई के बाद वह सहेलियों से कुछ पहले हॉस्टल पहुंच गई। हॉस्टल के गेट पर उसने सहेलियों को हंसते हुए बताया कि मच्छर भगाने वाला जहरीला लिक्विड पी लिया है।
सहेलियों ने इस मजाक में लिया। रात 11.20 बजे के आसपास छात्रा की तबियत बिगड़ गई। उसका शरीर अकडऩे लगा था। बुलबुल को तुरंत निजी अस्पताल में दाखिल किया गया। वहां इलाज के दौरान करीब 20 मिनट बाद ही उसकी मौत हो गई। छात्रा का मनोचिकित्सक के पास इलाज चल रहा था।
बुलबुल जैन दो साल पहले ही रायपुर में पढऩे आई थी। हॉस्टल के कैंपस में ही शाम को कोचिंग का भी इंतजाम है रोज की तरह बाकी लड़कियों के साथ बुलबुल शाम को कोचिंग अटेंड करने गई। रात 10 बजे जब कोचिंग छूटी, तो वह बाकी सहेलियों से पहले हॉस्टल पहुंच गई।
बाकी सहेलियां जब वहां पहुंची, तो बुलबुल चैनल गेट के पास ही खड़ी मिल गई। उसकी रूममेट स्वर्णाली बैनर्जी और के. फातिमा हॉस्टल पहुंची तो बुलबुल चैनल गेट के पास ही खड़ी थी। बुलबुल ने हंसते हुए सहेलियों से कहा कि उसने मच्छर मारने का जहर (मॉस्किटो लिक्विड) पी लिया है।
सीरिया: हमले के नए वीडियो जारी, चारों ओर बिखरी हैं बच्चों-महिलाओं की लाशें
वाशिंगटन। अमेरिकी सीनेट के एक प्रतिनिधि मंडल ने 21 अगस्त को सीरिया में हुए रासायनिक हमलों के 13 वीडियो जारी किए हैं। सीनेट की खुफिया समिति ने सभी वीडियो अपनी वेबसाईट पर जारी किए हैं। जारी करने से पहले वीडियो को समिति के सदस्यों को दिखाया गया। वीडियों में बच्चों, महिलाओं तथा पुरूषों को तडपते हुए दिखाया गया है।
समिति ने कहा कि ये सभी वीडियो सीरिया की राजधानी दमिश्क के हैं तथा सभी वीडियो सीरिया सरकार विरोधी समर्थकों द्वारा इंटरनेट पर जारी किए गए है। टीवी समाचार चैनल सी एन एन ने कहा कि अभी तक उसने स्वयं भी इन वीडियो की प्रमाणिकता को नहीं जांचा है।
गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शुक्रवार को जी-20 सम्मेलन में सीरिया पर सैन्य हमला न करने के दबाव को खारिज कर दिया है। उन्हें इस सम्मेलन में दस शीर्ष नेताओं का समर्थन भी मिला है। उन्होंने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन द्वारा सीरिया पर हमला न करने वाले कैम्पेन को भी खारिज कर दिया है।
सीनेट समिति की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद रूस में संपन्न दो दिनी जी-20 सम्मेलन में स्पेन सहित 10 राष्ट्रों ने बयान जारी करते हुए कहा है कि रासायनिक हमले के खिलाफ जोरदार सबक सिखाया जाना चाहिए। इस सम्मेलन में अर्थव्यवस्था के मुद्दे से भटक सभी देश सीरिया के मुद्दे पर ही चर्चा करते रहे। जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल एकमात्र ऐसी यूरोपियन नेता थीं, जिन्होंने इस तरह के बयान पर कोई हस्ताक्षर नहीं किए।
रोने की आवाज सुन पहुंचे लोगों ने देखा मानवता को शर्मसार करने वाला नजारा
गौतमेश्वर (प्रतापगढ़)। वो बेटी थी। या मां की कोई और मजबूरी थी। 24 घंटे भी नहीं हुए थे दुनिया में आए। लेकिन मानवता के दुश्मनों ने दुधमुंही को जिंदा जमीन में गाड़ दिया। निर्ममता की यह घटना प्रतापगढ़ के अचनेरा क्षेत्र स्थित बडग़ांव कला गांव की है। ग्रामीण सोहनलाल मीणा ने रविवार सुबह 11.30 बजे खेत में बच्ची के रोने की आवाज सुनी। वहां पहुंचे तो देखा उसकी सांसें चल रही थीं।
सिर जमीन के बाहर था और धड़ मिट्टी व घास में दबा था। ऊपर कीड़े रेंग रहे थे। सोहन ने अन्य ग्रामीणों को बुलाया। बच्ची को अचनेरा पीएचसी पहुंचाया। डॉ. विष्णु शर्मा ने आधे घंटे तक मासूम को बचाने की कोशिश की, लेकिन बचा नहीं सके।
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