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11 सितंबर 2013

हिंदी भाषा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :

आज ‘हिंदी दिवस’ है। जो प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि ‘हिन्दी’ ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हिंदी भाषा को देवनागरी लिपि में सन 1950 में अनुच्छेद 343 के अंतर्गत राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया।

हिंदी भाषा प्रेम, मिलन और सौहार्द की भाषा है,इस भाषा की उत्पत्ति ही इस बात का प्रमाण है। हिंदी मुख्यतः आर्यों और पारसियों की देन है। हिंदी के अधिकतम शब्द संस्कृत,अरबी और फारसी भाषा से लिए गये है और यह भाषा अवधी,ब्रज आदि स्थानीय भाषाओँ का परिवर्धन भी है। इसीलिए तो इस भाषा को ‘सम्बन्ध भाषा’ के नाम से भी जाना जाता है। हिंदी (खड़ी बोली) की पहली कविता प्रख्यात कवि ‘अमीर खुसरों’ ने लिखी थी।

स्वतंत्रता संग्राम के समय तो हिंदी का प्रयोग अपने चरम पर था। भारतेंदु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, हरिशंकर परसाई, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन,सुभद्रा कुमारी चौहान जैसे लेखकों और कवियों ने अपने शब्दों से जन मानस के ह्रदय में स्वतंत्रता की अलख जलाकर इस संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महात्मा गांधीजी के स्वदेशी आन्दोलन में तो अंग्रेजी भाषा का पूर्ण रूप से त्याग कर हिंदी भाषा को अपनाया गया।

हिंदी  भाषा का स्वरुप ही अलग है, यह भाषा अत्यंत मीठी और खुले प्रकृति की भाषा है। हिंदी अपने अन्दर हर भाषा को अन्तर्निहित कर लेती है और अपने इसी गुण के कारण ही वर्तमान में विश्व की चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह भाषा केवल एक देश तक सीमित नही है, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, सिंगापुर जैसे कई देशों तक इसका विस्तार है। हिंदी का सरल स्वाभाव इसकी लोकप्रियता को बढ़ा रहा है।  कुछ बाधाएं आयी है इसके मार्ग में,पर हमें पूर्ण विश्वास है कि हिंदी हमारे दिल में यूं ही समाकर हमारी भावनाओं को जन-जन तक पहुंचती रहेगी और राष्ट्रभाषा के रूप में हमे गौरान्वित करती रहेगी।

संस्कृत और हिंदी देश के दो भाषा रूपी स्तंभ हैं जो देश की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को विश्व के मंच पर बखूबी प्रस्तुत करते हैं। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं।

हिंदी भाषा को हम राष्ट्र भाषा के रूप में पहचानते हैं। हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है।

देश के गुलामी के दिनों में यहाँ अँग्रेज़ी शासनकाल होने की वजह से, अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ गया था। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात देश के कई हिस्सों को एकजुट करने के लिए एक ऐसी भाषा की जरुरत थी जो सर्वाधिक बोली जाती है, जिसे सीखना और समझना दोनों ही आसान हों।

इसके साथ ही एक ऐसी भाषा की तलाश थी जो सरकारी कार्यों, धार्मिक क्रियाओं और राजनीतिक कामों में आसानी से प्रयोग में लाई जा सके। हिंदी भाषा ही तब एक ऐसी भाषा थी जो सबसे ज्‍यादा लोकप्रिय थी।

धीरे-धीरे हिंदी भाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है।

हिंदी भाषा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :

- आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि हिंदी भाषा के इतिहास पर पहले साहित्य की रचना भी ग्रासिन द तैसी, एक फ्रांसीसी लेखक ने की थी।

- हिंदी और दूसरी भाषाओं पर पहला विस्तृत सर्वेक्षण सर जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन (जो कि एक अंग्रेज हैं) ने किया।

- हिंदी भाषा पर पहला शोध कार्य ‘द थिओलॉजी ऑफ तुलसीदास’ को लंदन  विश्वविद्यालय में पहली बार एक अंग्रेज विद्वान जे.आर.कार्पेंटर ने प्रस्तुत किया था।

एक और हिंदी दिवस -आशीष गर्ग



चौदह सितंबर समय आ गया है एक और हिंदी दिवस मनाने का आज हिंदी के नाम पर कई सारे पाखंड होंगे जैसे कि कई सारे सरकारी आयोजन हिंदी में काम को बढ़ावा देने वाली घोषणाएँ विभिन्न तरह के सम्मेलन इत्यादि इत्यादि। हिंदी की दुर्दशा पर घड़ियाली आँसू बहाए जाएँगे, हिंदी में काम करने की झूठी शपथें ली जाएँगी और पता नहीं क्या-क्या होगा। अगले दिन लोग सब कुछ भूल कर लोग अपने-अपने काम में लग जाएँगे और हिंदी वहीं की वहीं सिसकती झुठलाई व ठुकराई हुई रह जाएगी।
ये सिलसिला आज़ादी के बाद से निरंतर चलता चला आ रहा है और भविष्य में भी चलने की पूरी पूरी संभावना है। कुछ हमारे जैसे लोग हिंदी की दुर्दशा पर हमेशा रोते रहते हैं और लोगों से, दोस्तों से मन ही मन गाली खाते हैं क्यों कि हम पढ़े-लिखे व सम्मानित क्षेत्रों में कार्यरत होने के बावजूद भी हिंदी या अपनी क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के हिमायती हैं। वास्तव में हिंदी तो केवल उन लोगों की कार्य भाषा है जिनको या तो अंग्रेज़ी आती नहीं है या फिर कुछ पढ़े-लिखे लोग जिनको हिंदी से कुछ ज़्यादा ही मोह है और ऐसे लोगों को सिरफिरे पिछड़े या बेवक़ूफ़ की संज्ञा से सम्मानित कर दिया जाता है।
सच तो यह है कि ज़्यादातर भारतीय अंग्रेज़ी के मोहपाश में बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। आज स्वाधीन भारत में अंग्रेज़ी में निजी पारिवारिक पत्र व्यवहार बढ़ता जा रहा है काफ़ी कुछ सरकारी व लगभग पूरा ग़ैर सरकारी काम अंग्रेज़ी में ही होता है, दुकानों वगैरह के बोर्ड अंग्रेज़ी में होते हैं, होटलों रेस्टारेंटों इत्यादि के मेनू अंग्रेज़ी में ही होते हैं। ज़्यादातर नियम कानून या अन्य काम की बातें किताबें इत्यादि अंग्रेज़ी में ही होते हैं, उपकरणों या यंत्रों को प्रयोग करने की विधि अंग्रेज़ी में लिखी होती है, भले ही उसका प्रयोग किसी अंग्रेज़ी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को करना हो। अंग्रेज़ी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह से हावी हो गई है। हिंदी (या कोई और भारतीय भाषा) के नाम पर छलावे या ढोंग के सिवा कुछ नहीं होता है।
माना कि आज के युग में अंग्रेज़ी का ज्ञान ज़रूरी है, कई सारे देश अपनी युवा पीढ़ी को अंग्रेज़ी सिखा रहे हैं पर इसका मतलब ये नहीं है कि उन देशों में वहाँ की भाषाओं को ताक पर रख दिया गया है और ऐसा भी नहीं है कि अंग्रेज़ी का ज्ञान हमको दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में ले आया है। सिवाय सूचना प्रौद्योगिकी के हम किसी और क्षेत्र में आगे नहीं हैं और सूचना प्रौद्योगिकी की इस अंधी दौड़ की वजह से बाकी के प्रौद्योगिक क्षेत्रों का क्या हाल हो रहा है वो किसी से छुपा नहीं है। सारे विद्यार्थी प्रोग्रामर ही बनना चाहते हैं, किसी और क्षेत्र में कोई जाना ही नहीं चाहता है। क्या इसी को चहुँमुखी विकास कहते हैं? ख़ैर ये सब छोड़िए समझदार पाठक इस बात का आशय तो समझ ही जाएँगे। दुनिया के लगभग सारे मुख्य विकसित व विकासशील देशों में वहाँ का काम उनकी भाषाओं में ही होता है। यहाँ तक कि कई सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अंग्रेज़ी के अलावा और भाषाओं के ज्ञान को महत्व देती हैं। केवल हमारे यहाँ ही हमारी भाषाओं में काम करने को छोटा समझा जाता है।
हमारे यहाँ बड़े-बड़े नेता अधिकारीगण व्यापारी हिंदी के नाम पर लंबे-चौड़े भाषण देते हैं किंतु अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में पढ़ाएँगे। उन स्कूलों को बढ़ावा देंगे। अंग्रेज़ी में बात करना या बीच-बीच में अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग शान का प्रतीक समझेंगे और पता नहीं क्या-क्या।
कुछ लोगों का कहना है कि शुद्ध हिंदी बोलना बहुत कठिन है, सरल तो केवल अंग्रेज़ी बोली जाती है। अंग्रेज़ी जितनी कठिन होती जाती है उतनी ही खूबसूरत होती जाती है, आदमी उतना ही जागृत व पढ़ा-लिखा होता जाता है। शुद्ध हिंदी तो केवल पोंगा पंडित या बेवक़ूफ़ लोग बोलते हैं। आधुनिकरण के इस दौर में या वैश्वीकरण के नाम पर जितनी अनदेखी और दुर्गति हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की हुई है उतनी शायद हीं कहीं भी किसी और देश में हुई हो।
भारतीय भाषाओं के माध्यम के विद्यालयों का आज जो हाल है वो किसी से छुपा नहीं है। सरकारी व सामाजिक उपेक्षा के कारण ये स्कूल आज केवल उन बच्चों के लिए हैं जिनके पास या तो कोई और विकल्प नहीं है जैसे कि ग्रामीण क्षेत्र या फिर आर्थिक तंगी। इन स्कूलों में न तो अच्छे अध्यापक हैं न ही कोई सुविधाएँ तो फिर कैसे हम इन विद्यालयों के छात्रों को कुशल बनाने की उम्मीद कर सकते हैं और जब ये छात्र विभिन्न परीक्षाओं में असफल रहते हैं तो इसका कारण ये बताया जाता है कि ये लोग अपनी भाषा के माध्यम से पढ़े हैं इसलिए ख़राब हैं। कितना सफ़ेद झूठ? दोष है हमारी मानसिकता का और बदनाम होती है भाषा। आज सूचना प्रौद्योगिकी के बादशाह कहलाने के बाद भी हम हमारी भाषाओं में काम करने वाले कंप्यूटर नहीं विकसित कर पाए हैं। किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति को अपनी मातृभाषा की लिपि में लिखना तो आजकल शायद ही देखने को मिले। बच्चों को हिंदी की गिनती या वर्णमाला का मालूम होना अपने आप में एक चमत्कार ही सिद्ध होगा। क्या विडंबना है? क्या यही हमारी आज़ादी का प्रतीक है? मानसिक रूप से तो हम अभी भी अंग्रेज़ियत के गुलाम हैं।
अब भी वक्त है कि हम लोग सुधर जाएँ वरना समय बीतने के पश्चात हम लोगों के पास खुद को कोसने के बजाय कुछ न होगा या फिर ये भी हो सकता है कि किसी को कोई फ़र्क न पड़े। सवाल है आत्मसम्मान का, अपनी भाषा का, अपनी संस्कृति का। जहाँ तक आर्थिक उन्नति का सवाल है वो तब होती है जब समाज जागृत होता है और विकास के मंच पर देश का हर व्यक्ति भागीदारी करता है जो कि नहीं हो रहा है। सामान्य लोगों को जिस ज्ञान की ज़रूरत है वो है तकनीकी ज्ञान, व्यवहारिक ज्ञान जो कि सामान्य जन तक उनकी भाषा में ही सरल रूप से पहुँचाया जा सकता है न कि अंग्रेज़ी के माध्यम से।
वर्तमान अंग्रेज़ी केंद्रित शिक्षा प्रणाली से न सिर्फ़ हम समाज के एक सबसे बड़े तबक़े को ज्ञान से वंचित कर रहे हैं बल्कि हम समाज में लोगों के बीच आर्थिक सामाजिक व वैचारिक दूरी उत्पन्न कर रहे हैं, लोगों को उनकी भाषा, उनकी संस्कृति से विमुख कर रहे हैं। लोगों के मन में उनकी भाषाओं के प्रति हीनता की भावना पैदा कर रहे हैं जो कि सही नहीं है। समय है कि हम जागें व इस स्थिति से उबरें व अपनी भाषाओं को सुदृढ़ बनाएँ व उनको राज की भाषा, शिक्षा की भाषा, काम की भाषा, व्यवहार की भाषा बनाएँ।
इसका मतलब यह भी नहीं है कि भावी पीढ़ी को अंग्रेज़ी से वंचित रखा जाए, अंग्रेज़ी पढ़ें सीखें परंतु साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि अंग्रेज़ी को उतना ही सम्मान दें जितना कि ज़रूरी है, उसको सम्राज्ञी न बनाएँ, उसको हमारे दिलोदिमाग़ पर राज करने से रोकें और इसमें सबसे बड़े योगदान की ज़रूरत है समाज के पढ़े-लिखे वर्ग से ,युवाओं से, उच्चपदों पर आसीन लोगों से, अधिकारी वर्ग से बड़े औद्योगिक घरानों से। शायद मेरा ये कहना एक दिवास्वप्न हो क्यों कि अभी तक तो ऐसा हो नहीं रहा है और शायद न भी हो। पर साथ-साथ हमको महात्मा गांधी के शब्द 'कोई भी राष्ट्र नकल करके बहुत ऊपर नहीं उठता है और महान नहीं बनता है' याद रखना चाहिए।

हिन्दी दिवस
























हिन्दी दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। हिन्दी, विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है और अपने आप में एक समर्थ भाषा है। प्रकृति से यह उदार ग्रहणशील, सहिष्णु और भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका है। इस दिन विभिन्न शासकीय - अशासकीय कार्यालयों, शिक्षा संस्थाओं आदि में विविध गोष्ठियों, सम्मेलनों, प्रतियोगिताओं तथा अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कहीं- कहीं 'हिन्दी पखवाडा' तथा 'राष्ट्रभाषा सप्ताह' इत्यादि भी मनाये जाते हैं। विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा भी है, अतः इसके प्रति अपना प्रेम और सम्मान प्रकट करने के लिए ऐसे आयोजन स्वाभाविक ही हैं, परन्तु, दुःख का विषय यह है की समय के साथ - साथ ये आयोजन केवल औपचारिकता मात्र बनते जा रहे हैं।[1]

इतिहास

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है
भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्त्वपूर्ण निर्णय के महत्त्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी - दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में 13 सितम्बर, 1949 के दिन बहस में भाग लेते हुए तीन प्रमुख बातें कही थीं --
  1. किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता।
  2. कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती।
  3. भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिन्दी को अपनाना चाहिए।[2]
यह बहस 12 सितम्बर, 1949 को 4 बजे दोपहर में शुरू हुई और 14 सितंबर, 1949 के दिन समाप्त हुई। 14 सितम्बर, की शाम बहस के समापन के बाद भाषा संबंधी संविधान का तत्कालीन भाग 14 क और वर्तमान भाग 17, संविधान का भाग बन गया। संविधान - सभा की भाषा - विषयक बहस लगभग 278 पृष्ठों में मुद्रित हुई । इसमें डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और श्री गोपाल स्वामी आयंगार की महती भूमिका रही। बहस के बाद यह सहमति बनी कि संघ की भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, किंतु देवनागरी में लिखे जाने वाले अंकों तथा अंग्रेज़ी को 15 वर्ष या उससे अधिक अवधि तक प्रयोग करने के लिए तीखी बहस हुई। अन्तत: आयंगर - मुंशी फ़ार्मूला भारी बहुमत से स्वीकार हुआ। वास्तव में अंकों को छोड़कर संघ की राजभाषा के प्रश्न पर अधिकतर सदस्य सहमत हो गए। अंकों के बारे में भी यह स्पष्ट था कि अंतर्राष्ट्रीय अंक भारतीय अंकों का ही एक नया संस्करण है। कुछ सदस्यों ने रोमन लिपि के पक्ष में प्रस्ताव रखा, लेकिन देवनागरी को ही अधिकतर सदस्यों ने स्वीकार किया। स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफ़ी विचार - विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में इस प्रकार वर्णित है :-- संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।

....हिंदी के नारे का अपमान बंद करना होगा .....हमारी जुबान हमारी संस्क्रती है अगर इसे हम भूल गए तो हमारी संस्क्रती से हम दूर हो जायेंगे जो हम हो रहे है

हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है:

संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा ।दोस्तों संविधान की इस बाध्यता के बाद भी हमारे देश में कोंग्रेस ...भाजपा ..सपा और ना जाने केसी केसी पार्टियां जो बलात्कारी सांसदों को चुनाव लड़ने के कानून को एक रात में बदल देते है ..जो एक रात में सभी एक जुट होकर जेल से कानून नहीं लड़ने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदल देते है ..जो लोग खुद के वेतन और सुविधाओं पर एक रात में एक जुट होकर अपना वेतन बधवा लेते है व्ही लोग हिंदी की चिंदी करते नज़र आते है संसद जहां संविधान की पवित्र आत्मा होती है वहां हिंदी नहीं अंग्रेजी में बोला जाता है वहां हिंदी की बाध्यता खत्म कर दी जाती है ...दोस्तों अगर देश में सिर्फ और सिर्फ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और बेरोजगारों को रोज़गार देने सहित कई आवेदन भरने के नियम बदल जाए और निर्धारित नियमों में पंचायत ..पालिका ..विधायिका ..संसद तक के चुनाव में आवेदक के लियें खुद का हस्तलिखित हिंदी भाषा में आवेदन की बाध्यता कर दी जाए ..किसी भी नोकरी का आवेदन हो ..किसी भी योजना का आवेदन हो अगर आवेदक की हस्त लेखनी में हिंदी भाषा में भरने की बाध्यता कर दी जाए तो निश्चित तोर पर हिंदी का विकास हो सकेगा वरना हर साल करोड़ों अरबों रूपये खर्च कर जनता  को यह बेवकूफ बनाने का गोरख धंधा हमे बंद करना होगा ....हिंदी के नारे का अपमान बंद करना होगा .....हमारी जुबान हमारी संस्क्रती है अगर इसे हम भूल गए तो हमारी संस्क्रती से हम दूर हो जायेंगे जो हम हो रहे है ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

कुरान का सन्देश

राजस्‍थान में राहुल ने फूंका चुनावी बिगुल, सुषमा ले सकती हैं मोदी की जगह



उदयपुर. कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने राजस्‍थान के उदयपुर में एक रैली कर चुनावी बिगुल फूंका तो विपक्षी बीजेपी ने भी चुनावों की तैयारियां शुरू कर दी हैं। खबर है कि सुषमा स्‍वराज को नरेंद्र मोदी की जगह बीजेपी चुनाव अभियान समिति का अध्‍यक्ष बनाया जा सकता है। वहीं, राहुल ने सलंबूर में चुनावी सभा में कहा, 'विपक्ष जो चाहे कर लें, हम अपना काम करेंगे। विपक्ष मानता है कि गरीब देश पर बोझ है लेकिन हम मानते है कि गरीबों के पसीने से देश आगे बढ़ता है। गरीब, आदिवासी, दलित का हम पर भरोसा है। इसलिए हम विपक्ष का विरोध करते है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि दिल्ली में आपके सिपाही बैठे है और आपकी लड़ाई हम लड़ेंगे संसद में।'
नियमगिरी के रास्ते आदिवासियों में पैठ बनाने की कोशिश
 
ओडि़शा में 12 ग्राम सभाओं द्वारा वेदांता कंपनी के खिलाफ फैसला देने का जिक्र करते हुए राहुल ने कहा, आदिवासियों की जमीन विपक्ष बिना पूछे उद्योगपतियों को बांट रहा था। जबकि पहाड़ आदिवासियों के देवता थे और उनकी पूजा करते है वे लोग। गरीब आदिवासी कहां जाएगा, जब उसकी जमीन चली जाएगी। राहुल ने पंचायती राज कानून का जिक्र करते हुए कहा, आम आदमी आगे आए और कानून बनाने में शामिल हो।
 
उनका कहना था कि कांग्रेस पार्टी गरीबों के लिए रोजगार योजना और भोजन का अधिकार लेकर आई है। जब तक गरीब को भोजन नहीं मिलेगा। देश आगे नहीं बढ़ेगा। राहुल ने खाद्य सुरक्षा बिल, रोजगार गारंटी योजना के साथ साथ ट्राइबल एक्ट का जिक्र करते हुए केन्द्र सरकार की योजनाएं गिनाई।
 
केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने रैली में जुटे लाखों लोगों को गुरु शिष्य परंपरा की कहानी सुनाई। इस कहानी के माध्यम से राहुल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अपना काम करती रहेगी। विपक्ष को जो करना है कर लें।
 
आम आदमी की कहानी:
 
राजस्थान सरकार की निशुल्क दवा योजना और सस्ते दरों पर खाद्यान्न वितरण योजना की तारीफ करते हुए राहुल ने कहा कि यूपी में एक बार मैंने लोगों से पूछा कि भाई, कुछ अपनी जिंदगी के बारे में बताओ। उन्होंने ने कहा, राहुल जी हम लोग मजदूर आदमी जितना कमा नहीं पाते उतना दवाओं में चला जाता है। दो दिन काम करते है, लेकिन खाना नहीं मिलता। फिर बुखार आ जाता है और जो कमाये रहते वो दवाईयों में चला जाता है। आखिर में राहुल ने अपने आदिवासी समर्थकों को उनके स्वागत और नृत्य के लिए धन्यवाद दिया।

राजस्‍थान में राहुल ने फूंका चुनावी बिगुल, सुषमा ले सकती हैं मोदी की जगह


उदयपुर. कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने राजस्‍थान के उदयपुर में एक रैली कर चुनावी बिगुल फूंका तो विपक्षी बीजेपी ने भी चुनावों की तैयारियां शुरू कर दी हैं। खबर है कि सुषमा स्‍वराज को नरेंद्र मोदी की जगह बीजेपी चुनाव अभियान समिति का अध्‍यक्ष बनाया जा सकता है। वहीं, राहुल ने सलंबूर में चुनावी सभा में कहा, 'विपक्ष जो चाहे कर लें, हम अपना काम करेंगे। विपक्ष मानता है कि गरीब देश पर बोझ है लेकिन हम मानते है कि गरीबों के पसीने से देश आगे बढ़ता है। गरीब, आदिवासी, दलित का हम पर भरोसा है। इसलिए हम विपक्ष का विरोध करते है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि दिल्ली में आपके सिपाही बैठे है और आपकी लड़ाई हम लड़ेंगे संसद में।'
नियमगिरी के रास्ते आदिवासियों में पैठ बनाने की कोशिश
 
ओडि़शा में 12 ग्राम सभाओं द्वारा वेदांता कंपनी के खिलाफ फैसला देने का जिक्र करते हुए राहुल ने कहा, आदिवासियों की जमीन विपक्ष बिना पूछे उद्योगपतियों को बांट रहा था। जबकि पहाड़ आदिवासियों के देवता थे और उनकी पूजा करते है वे लोग। गरीब आदिवासी कहां जाएगा, जब उसकी जमीन चली जाएगी। राहुल ने पंचायती राज कानून का जिक्र करते हुए कहा, आम आदमी आगे आए और कानून बनाने में शामिल हो।
 
उनका कहना था कि कांग्रेस पार्टी गरीबों के लिए रोजगार योजना और भोजन का अधिकार लेकर आई है। जब तक गरीब को भोजन नहीं मिलेगा। देश आगे नहीं बढ़ेगा। राहुल ने खाद्य सुरक्षा बिल, रोजगार गारंटी योजना के साथ साथ ट्राइबल एक्ट का जिक्र करते हुए केन्द्र सरकार की योजनाएं गिनाई।
 
केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने रैली में जुटे लाखों लोगों को गुरु शिष्य परंपरा की कहानी सुनाई। इस कहानी के माध्यम से राहुल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अपना काम करती रहेगी। विपक्ष को जो करना है कर लें।
 
आम आदमी की कहानी:
 
राजस्थान सरकार की निशुल्क दवा योजना और सस्ते दरों पर खाद्यान्न वितरण योजना की तारीफ करते हुए राहुल ने कहा कि यूपी में एक बार मैंने लोगों से पूछा कि भाई, कुछ अपनी जिंदगी के बारे में बताओ। उन्होंने ने कहा, राहुल जी हम लोग मजदूर आदमी जितना कमा नहीं पाते उतना दवाओं में चला जाता है। दो दिन काम करते है, लेकिन खाना नहीं मिलता। फिर बुखार आ जाता है और जो कमाये रहते वो दवाईयों में चला जाता है। आखिर में राहुल ने अपने आदिवासी समर्थकों को उनके स्वागत और नृत्य के लिए धन्यवाद दिया।
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