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01 अक्तूबर 2013

लालबहादुर शास्त्री




 
लालबहादुर शास्त्री
लालबहादुर शास्त्री

  
 


लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय - मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द), भारत के द्वितीय प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्युपर्यन्त लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 19571962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया।
उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी, 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।
उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

संक्षिप्त जीवनी

लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे अत: सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी।[1] लालबहादुर की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उसकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही प्रबुद्ध बालक ने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया। इसके पश्चात् शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।
1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। ललिता शास्त्री से उनके छ: सन्तानें हुईं, दो पुत्रियाँ-कुसुम व सुमन और चार पुत्र-हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक। उनके चार पुत्रों में से दो-अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री अभी हैं, शेष दो दिवंगत हो चुके हैं। अनिल शास्त्री कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता है।

90 वर्ष की उम्र में बना बाप, 100 साल तक बाप बनने का देखता है ख्वाब



आइये, आज हम आपको उस शख्स के बारे में बताते हैं जो 90 वर्ष की उम्र में बना बच्चे का पिता।
बात सन 2007 की है जब अखवारों-समाचार चैनलों की सुर्खियों में एक ऐसे शख्स का नाम शामिल हुआ जिसने 90 साल की उम्र में 21 वें बच्चे का बाप बनने का सौभाग्य प्राप्त किया और दुनिया के सबसे बूढ़े बाप का ख़िताब प्राप्त किया।
इस शख्स का नाम है नानू राम जोगी, जो पश्चिमी राजस्थान के पांच इमली का रहने वाला है। एक मांसाहारी परिवार से संबंध रखने वाले नानू राम 12 बेटों और 9बेटियों के पिता हैं। वह अपने इलाके में महान यौन कौशल के क्षेत्र में लोग उन्हे नायक मानते है। 96 साल के यह व्यक्ति अपने आप को तंदरुस्त रखने के लिए कई प्रकार के मांस का सेवन करते हैं। एक इंटरव्यू में जोगी ने कहा था, "मैं सभी मांस के प्रकार के खाने - खरगोश, भेड़ का बच्चा, ऊट का दूध, चिकन और जंगली जानवरों को अपने खाने में शामिल करता हूं।"
21 वें बच्चे को जन्म देने के बाद नानू राम का कहना था कि 100 साल की उम्र तक उनका कोई प्लान नहीं है कि वे बच्चे पैदा करना बंद करें।

आसाराम के वकील जेठमलानी को पड़ी जज की फटकार!


आसाराम के वकील जेठमलानी को पड़ी जज की फटकार!
जोधपुर. नाबालिग से यौन उत्‍पीड़न के आरोप में जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद आसाराम की उम्‍मीदों को एक बार फिर तगड़ा झटका लगा है। राजस्थान हाईकोर्ट ने मंगलवार को आसाराम की जमानत याचिका खारिज कर दी। मशहूर वकील राम जेठमलानी घंटे भर से ज्‍यादा बहस के बावजूद अपने मुवक्किल आसाराम को जमानत नहीं दिलवा पाए। यही नहीं, जेठमलानी को जज निर्मलजीत कौर ने जमकर फटकार भी लगाई। 
 
जमानत याचिका पर बहस के दौरान हाईकोर्ट में जेठमलानी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन सरकारी वकील आनंद पुरोहित और जांच अधिकारी चंचल मिश्रा ने जेठमलानी की सारी दलीलों की हवा निकाल दी। बचाव पक्ष की तरफ से अदालत में चार हलफनामे दायर किए गए। पहला, लड़की गुरुकुल में नहीं रहना चाहती थी। दूसरा, लड़की का बर्थ सर्टिफिकेट गलत था। तीसरा, लड़की मानसिक तौर पर स्‍वस्‍थ नहीं है और चौथा, उसका एक लड़के साथ अफेयर था और वह फेसबुक पर एक्टिव थी। हालांकि कोर्ट ने इन हलफनामों पर विचार नहीं किया और कहा कि यह ट्रायल नहीं है, बल्कि जमानत याचिका पर सुनवाई हो रही है। 
 
अदालत से मिले झटके की खीझ आसाराम के वकील (जेठमलानी) पर साफ नजर आई। कोर्ट से बाहर निकलने के बाद पत्रकारों ने जेठमलानी से सवाल किया तो उन्‍होंने इतना बस कहा, 'मैं अपना काम कर रहा हूं। अब अगर क्‍लाइंट (आसाराम) की मर्जी होगी तो वे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। मैं बिन मांगे किसी को सलाह नहीं देता।'
 

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विश्व वृद्ध दिवस



पहली अक्तूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से विश्व वृद्ध दिवस का नाम दिया गया है ताकि इस दिन, समाज के वृद्धों की विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक , आर्थिक व सांस्कृतिक समस्याओं पर अधिक ध्यान दिया जाए।
हम सब बूढ़े होंगे और जर्मनी के प्रसिद्ध कवि गोयटे का कहना है कि बूढ़ापा हम सब को अचानक चौंका देता है। वर्तमान युग में जीवन आयु औसत में वृद्धि जैसे विभिन्न कारकों के दृष्टिगत वृद्धावस्था एक ठोस वास्तविकता है जिस तक हर स्वस्थ्य मनुष्य पहुंचता है। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में आयु का औसत लगभग ५० वर्ष था और केवल चार प्रतिशत लोग, साठ वर्ष से अधिक जीवित रहते थे किंतु अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की घोषणा के अनुसार अनुमान है कि वर्ष २०२० तक आयु का औसत ७७ वर्ष हो जाएगा और साठ वर्ष से अधिक लोगों की संख्या विश्व की कुल जनसंख्या की बीस प्रतिशत हो जाएगी। इसी प्रकार घोषित आंकड़ों के अनुसार वर्ष २०२५ तक वृद्धों की जनंसख्या दो गुना और वर्ष २०५० तक तीन गुना अधिक हो जाएगी। वृद्धों की जनसंख्या में वृद्धि की यह प्रक्रिया केवल विकसित देशों के लिए नहीं है बल्कि अनुमानों के अनुसार वर्ष २०५० तक विश्व में वृद्धों की कुल जनसंख्या का ७२ प्रतिशत भाग विकासशील देशों में रहेगा। इसी प्रकार आंकड़ों से पता चलता है कि साठ वर्ष से अधिक आयु वाले प्रत्येक तीन लोगों में से दो, विकासशील देशों में जीवन व्यतीत करते हैं और वर्ष २०५० तक हर ५ में से ४ वृद्ध, विकासशील देशों में रहेंगे। निश्चित रूप यदि इन लोगों के लिए उचित सुविधाएं नहीं होंगी तो विकासशील देशों में इसके भयानक परिणाम होंगे। एक समस्या यह भी है कि इस प्रकार के सभी देशों की जनसंख्या में चूंकि अधिकतर युवा हैं इस लिए वृद्धों के लिए उचित योजना और कार्यक्रम तैयार नहीं किये जाते किंतु इन सभी देशों को वर्ष २०५० और उसके बाद  की भिन्न परिस्थितियों के लिए स्वंय को तैयार करना होगा।

हालांकि विभिन्न समाजों में आयु के औसत में वृद्धि का विशेष महत्व है किंतु वुद्धावस्था में जीवनशैली का उससे अधिक महत्व है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हालिया वर्षों में विश्ववासियों का ध्यान, वृद्धावस्था की ओर आकृष्ट कराया है और इस संगठन का कहना है कि वृद्धों का स्वास्थ्य, अधिकांश समाजों की एक समस्या है और इस समस्या के निवारण के लिए सही और सूक्ष्म योजनाओं और कार्यक्रमों की आवश्यकता है। इस लिए वर्तमान युग में इस बात को निश्चित बनाना चाहिए कि वृद्धों की सामाजिक सहायता और उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की अनदेखी नहीं होगी। वृद्धों में संपर्क की भावना बढ़ाना, वृद्धावस्था में हानियों से बचाव का एक बुनियादी मार्ग है और उनके लिए बेहतर जीवन की व्यवस्था, अन्य वृद्धों से संपर्क में वृद्धि के मार्ग का प्रशिक्षण, विभिन्न सामाजिक व सांस्कृतिक मंचों पर उपस्थिति, उनकी मानसिक क्षमताओं को प्रबल बनाना तथा उन्हें प्रसन्न रखना, वृद्धों के लिए किये जाने वाले कामों में से है। वृद्धों पर विशेष ध्यान और उन्हें परिवार में उचित स्थान दिया जाना भी वृद्धों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है।

पारंपरिक समाजों में वृद्धों को विशेष सामाजिक स्थान प्राप्त होता है और वे आयु के अंतिम क्षणों तक सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करते हैं किंतु आधुनिक व औद्योगिक  समाजों में, धार्मिक व नैतिक आधारों की कमज़ोरी के कारण, वृद्धों के सम्मान में कमी हुई है। वैसे आधुनिक समाजों में वृद्धों की सुख सुविधाओं के लिए अत्याधिक प्रयास किये गये हैं किंतु इस प्रकार के सभी प्रयासों का उद्देश्य, पूर्वी और धार्मिक समाजों में वृद्धों के प्राप्त सम्मान को प्रचलित करने के लिए नहीं था और इसका कारण भी यह है कि इन आधुनिक समाजों में मनुष्य को केवल भौतिक विचारधारा के अंतर्गत देखा जाता है। इन समाजों में मनुष्य को एक मशीन समझा जाता है जिसकी उपयोगिता एक निर्धारित समय के बाद समाप्त हो जाती है और उसे एक तरफ डाल दिया जाता है। इस प्रकार के समाजों में, एक दंपत्ति पर आधारित परिवारों में वृद्धि तथा परिवारों की नींव में कमज़ोरी के कारण वृद्ध, परिजनों के प्रेम व स्नेह से दूर रह कर जीवन व्यतीत करने पर विवश हैं। इसी लिए बहुत से वृद्ध आयु के अंतिम दिनों में बिल्कुल अकेले रह जाते हैं। पश्चिमी समाजों में अकेलेपन का पिशाच न केवल वृद्धों को अपना शिकार बना रहा है बल्कि यह इन समाजों में एक सामूहिक पीड़ा बन चुका है। यहां तक कि एलविन टफलर अपनी किताब तीसरी लहर में लिखते हैं कि अकेलापन अब इतना व्यापक हो चुका है कि अविश्वस्नीय रूप में एक सामूहिक अनुभव बन गया है।

इस प्रकार की विभिन्न कटु वास्तविकताओं के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ , वृद्धों को, आधुनिक तकनीक की निष्क्रिय व कमज़ोर बलि समझता है और यह सिफारिश करता है कि विश्व के विभिन्न देश, वृद्धों के साथ अपनाए जाने वाले व्यवहार के संदर्भ में, आधुनिक देशों को अपना आदर्श न बनाएं। आज आधुनिक दुनिया में  अवकाश प्राप्त लोगों में अकेलापन, निष्क्रिय होना और मानसिक रोगों जैसी दसियों समस्याओं की भरमार है और इन्ही कारणों के अंतर्गत पश्चिम समाजों में वृद्धो को अलग थलग रहने वाली आबादी कहा जाता है और स्वीडन, नार्वे और डेनमार्क जैसे देशों में, वृद्धों को अकेलपन से बाहर निकालो जैसे नारे आम हो रहे हैं।
    सामूहिक रूप से विश्व के विभिन्न समाज, अपनी अपनी विशेष संस्कृतियों व विचारधाराओं के आधार पर वृद्धों के प्रति व्यवहार अपनाते हैं और इसी प्रकार उनकी सुविधा के लिए योजनाएं व कार्यक्रम बनाते हैं। आधुनिक देशों में वृद्धों के लिए किये जाने वाले कामों में वृद्धाश्रम बनाया जाना है जो परिवारों से दूर होते हैं। इस प्रकार के केन्द्र, इन समाजों के पारिवारिक स्नेह व प्रेम में अभाव के प्रतीक हैं। इन देशों में बहुत से वृद्ध, बेबसी की दशा में किसी वृद्धाश्रम या अस्पताल में दम तोड़ देते हैं और जीवन के अंतिम क्षणों में अपने परिजनों को देखने की इच्छा अपने मन में लेकर सदैव के लिए इस संसार से चले जाते हैं। इसी प्रकार पश्चिमी देशों में हर दिन आत्महत्या करने वाले वृद्धों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

    सौभाग्य से ईरान और बहुत से पूर्वी और इस्लामी देशों में वृद्धों का सम्मान पंरपरा व संस्कृति का अभिन्न अंग है। वर्तमान समय में ईरान में वृद्धों की दशा, पश्चिमी समाजों से  काफी बेहतर है और सरकारी और सामाजिक संगठन उन की दशा में अधिक बेहतरी के लिए व्यापक प्रयास कर रहे हें। इस्लाम में भी वृद्धों के सम्मान पर विशेष रूप से बल दिया गया है। पैगम्बरे इस्लाम का कथन है कि जो भी वृद्धों का उनकी आयु के कारण सम्मान करता है, ईश्वर उसे प्रलय के भय से मुक्त कर देता है।
अपने से बड़ों का सम्मान और छोटों से स्नेह इसलाम की नैतिक शिक्षाओं में से है और इससे परिवार का वातावरण प्रेमपूर्ण व स्वस्थ्य रहता है। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफरे सादिक अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में कहते हैं कि जो हमारे वृद्धों का सम्मान न करे और हमारे छोटों से स्नेह न करे वह हम में से नहीं है। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने भी कहा है कि बुद्धिजीवी का उसके ज्ञान और वृद्ध का उसकी आयु के कारण सम्मान किया जाना चाहिए। इसी प्रकार पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि वृद्ध अपने परिवार में, अपने राष्ट्र के मध्य ईश्वरीय दूत की भांति होता है।

वृद्धों ने हमारे लिए जो कुछ किया होता है उसके दृष्टिगत यह उनका अधिकार होता है कि जब वह कमज़ोर हो जाएं तो परिवार में उन्हें महत्व दिया जाए और उनका सम्मान किया जाए। अपने और दूसरे के घर के वृद्धों के अपमान और उनकी अनदेखी करने से बचना चाहिए और अनुभवों से भरी उनकी बातों को सुनना और उनसे शिक्षा प्राप्त करना चाहिए। हर सभ्य और ज़िम्मेदार समाज में ऐसा ही होता है। 
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