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03 अक्तूबर 2013

दोस्तों यह मुस्कुराते दाड़ी वाले जनाब हाजी अज़ीज़ जावा साहब जो कोटा के मशहूर पीर बाबा मजार जन्ग्लीशाह बाबा के गद्दी नशीं जा नशीं है .

दोस्तों यह मुस्कुराते दाड़ी वाले जनाब हाजी अज़ीज़ जावा साहब जो कोटा के मशहूर पीर बाबा मजार जन्ग्लीशाह बाबा के गद्दी नशीं जा नशीं है ....इनकी मुस्कराहट में दर्द है ..प्यार है ..खिदमत है ..अपनापन है ..जी हा दोस्तों कभी जावा मोटर साइकल के जादूगर मिस्त्री के रूप में पहचान बना चुके भाई अज़ीज़ साहब और इने परिवार को जावा के नाम से जाना जाने लगा ....यह सूफियाना अंदाज़ में थे इसीलिए इनके वालिद के साथ साथ हजरत जंगली शाह बाबा के जीवन काल में उनके खिदमत गार थे फिर अज़ीज़ जावा उनकी म्रत्यु के बाद उनके मजार के निर्माण से लेकर उनके खिदमतगार बन गए ..हर साल मशहूर कव्वालों के साथ मिलकर आलिशान उर्स करवाना ....इनका मिजाज़ है ..अज़ीज़ जावा हज के बाद अल्लाह अल्लाह करने लगे लेकिन दुनिया का प्यार आज भी इनके साथ है अपने परिवार दोस्तों में यह लोकप्रिय है ..हंसी मजाक और एक दुसरे इ मदद का जज्बा इनमे शामिल है .हाजी अज़ीज़ जावा जवानी में इन्द्रा गान्धी की निकटतम रहे सांसद मोलाना असारुल हक के निकटतम सहयोगी और सलाहकारों में से एक प्रमुख रहे है और इनके कार्यकाल में इन्होने मुख्यमंत्री ..राज्यपाल ..केन्द्रीय मंत्रियों के साथ काफी वक्त गुज़ारा है लेकिन कभी किसी को निजी काम नहीं बताया हां अलबत्ता इन्होने सार्वजनिक हित में आम मुसलमानों के शादी ब्याह के लिए कोटा के मंत्री शान्ति कुमार धारीवाल से मिलकर उनके जरिये जन्ग्लिशाह बाबा परिसर में महफिल खाने का निर्माण करवाया है बाद में पूर्व मंत्री स्वर्गीय अबरार अहमद के सांसद कोष से महफिल खाने के सामने महमान खाना और एक मदरसा बनवाया ..लेकिन खुदा को शायद इस महफिल खाने का व्यवसायीकरण मंजूर था इसलिए इनकी महनत और लगन का फल इन्हें उपेक्षा से मिला जिस महफिल खाने को यह गरीबों को केवल सो रूपये साफ़ सफाई खर्च पर कार्यक्रमों के लिए देते थे इनके हाथ से निकलने के बाद इसका शुद्ध व्यवसायीकरण होगया वाकिफ की मंशा के खिलाफ महमान खाने में वक्फ का कार्यालय खोल दिया गया जबकि महफ़िल खाने का किराया व्यवसायीकरण के रूप में वसूला जाने लगा और इसे खिदमत की जगह पेट पालने और मुसलमानों को लूटने का जरिया बना दिया गया ........हाजी अज़ीज़ जावा यारो के यार कहलाते है ..यह बच्चो में बच्चे बूढों में बूढ़े बनकर रहते है .हंसी मजाक इनकी जीवन शेली है ...हाजी अज़ीज़ जावा से जब बाबा जन्लिशाह मजार परिसर में एक करोड़ की लागत के महफिल खाने के बारे में पूंछा जाता है तो उनकी आँखों में आंसू आ जाते है और वोह सुबक कर कहते है के जिस मजार की वजह से इस परिसर की रोनक है यहाँ महफिल खाने बने है कोटा वक्फ और राजस्थान सरकार के मंत्री ..न्यास अध्यक्ष इस मजार की बेहुरमती कर रहे है करोडो रूपये महफिल खाने पर खर्च लेकिन मजार की देखरेख और मरम्मत रखरखाव पर थोडा भी खर्च नहीं किया गया पिछले दिनों पेढ़ गिरा ..मजार की दीवारे पटांन  खराब हुआ लेकिन अफ़सोस सद अफ़सोस बाबा के मजार परिसर के सोंद्र्य्करण के बारे में किसी कोंग्रेसी मुसलमान या पास की मस्जिद में नमाजियों या वक्फ के पदाधिकारियों हुकूमत में बेठे मंत्री ने नहीं सोचा जबकि इस मामले में वोह लगातार पत्र व्यवहार करते रहे है ..उनका कहना है के जायरीनों का तो क्या वोह तो आते जाते रहते है लेकिन जो बाबा जन्ग्लिशाह परिसर में आया हो और बाबा साहब के यहाँ फूल पेश नहीं किये हो उनकी आस्थाने पर सजदा नहीं किया हो बाबा साहब की उपेक्षा करने वाली ऐसी बढ़ी बढ़ी हस्तियों को हमने मिटते देखा है .....और बाबा साहब की नाराजगी से ऐसे उपेक्षा करने वालों को खुदा इस बार भी सबक सिखाएंगा बख्शेगा नहीं ......वोह कहते है के पीर फकीर जो आराम फरमा है उन्हें माइक लगाकर बेचें किया जाता है तो उनकी रूह को तकलीफ होती है ....जब खुद को खुदा समझने वाले मंत्री मुख्यमंत्री इस परिसर में आते है सियासत करते है और बिना बाबा साहब के दरबार में हाजरी लगाये तकब्बुर के साथ रवाना हो जाते है तो इतिहास गवाह रहा है के वोह कभी कामयाब नहीं हो सके है और इस बार भी कमोबेश ऐसा ही हुआ है ..........देखते है वक्त का इन्तिज़ार है .............................

600 साल पुरानी परंपरा, यहां बेल के कांटों पर झूलेगी 12 साल की मासूम



जगदलपुर।  बेल के कांटों के झूले पर शुक्रवार को 12 साल की विशाखा झूलेगी। वह काछन देवी मानी जाएगी। पूरे विश्व में विख्यात बस्तर दशहरा की एक अहम रस्म आगे बढ़ेगी। उसकी पूजा होगी। देवी हमेशा मिरगान जाति की ही बनती है। माना जाता है कि इससे दशहरे का पर्व निर्विघ्न रुप से संपन्न होगा और बस्तर पर कोई संकट न आएगा। कांटों में बैठने से जो पीड़ा होती है, वह संकटों का प्रतिरुप माना जाता है जिसे देवी हर लेती हैं। बस्तर का दशहरा उत्सव 70 दिनों से ज्यादा चलता है।
600 साल पुरानी परंपरा है। सातवीं में पढऩे वाली बच्ची विशाखा आज इस परंपरा को निभाएगी। उसे देवी के रूप में सजाया, संवारा जाएगा। नाच, गाने, संगीत के साथ अनुष्ठान होगा। शाम चार बजे काछन की गुड़ी मंदिर में पूजा होगी। मेले जैसा माहौल होगा। बस्तर के राज परिवार के प्रतिनिधि अपने मांझी, चालकी, नाइक आदि के साथ यहां पहुंचेंगे, मन्नत मांगेंगे। विशाखा से पहले उसकी मां और नानी भी देवी बन चुकी हैं।

यहीं पहुंच कर पांडवों के सिर से उतरा था अपनों की हत्या का पाप


कोटा. राजस्थान की धरती पर अनेक सांस्कृतिक रंग रह पग पर नजर आते हैं। वीर सपूतों की इस धरती पर धर्म और आध्यात्म के भी कई रंग दिखाई देते हैं। कहीं बुलट वाले बाबा की पूजा होती है तो कहीं तलवारों के साये में मां की आरती की जाती है तो एक मंदिर ऐसा भी है जिसने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।। धर्म-यात्रा सीरीज में आज हम एक एक ऐसे स्थान के बारे में जहां पर कृष्ण के एक वरदान के बाद पांडव मोक्ष के लिए आए थे। इस चमत्कारी कुंड में गल गई थी भीम की गदा।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, लेकिन जीत के बाद भी पांडव अपने पूर्वजों की हत्या के पाप से चिंतित थे। श्री कृष्ण ने उनका दर्द देख उन्हें बताया कि जिस तीर्थ स्थल के तालाब में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांण्ड़व लोहार्गल आये तथा जैसे ही उन्होंने यहां के सूर्य कुंड़ में स्नान किया उनके सारे हथियार गल गये। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ स्थान घोषित किया। फिर शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की।
राजस्थान के झुंझुनूं जिले से 70 कि. मी. दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में उदयपुरवाटी नाम से एक कस्बा स्थित है। इस कस्बे से करीब दस कि.मी. की दूरी पर स्थित है लोहार्गल। जहां पर पांडवों का मनोरथ पूर्ण हुआ था। लोहार्गल का अर्थ होता है ऐसा स्थान जहां लोहा गल जाए। पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है। झुंझुनू जिले में अरावली पर्वत की शाखाये उदयपुरवाटी तहसील से प्रवेश कर खेतडी, सिंघाना तक निकलती है, जिसकी सबसे उंची चोटी 1050 मीटर लोहार्गल में है।
लोहार्गल का इतिहास पांडवों के कुल हत्या के पाप से मोक्ष प्राप्त करने तक नहीं ही नहीं, बल्कि ये जगह परशुराम द्वारा किए गए पश्चाताप की भी गवाह है। क्रोध में आकर परशुराम ने क्षत्रियों का संहार कर दिया था। इसके बाद विष्णु के छठें अवतार परशुराम को क्रोध शांत होने पर अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने इसी स्थान पर अपने किए का पश्चाताप किया था।

अध्‍यादेश को बकवास कहने पर पहली बार बोले राहुल गांधी, कहा- शब्‍द गलत, सोच सही



अहमदाबाद। दागी सांसदों/विधायकों से जुड़े अध्‍यादेश को वापस लिए जाने के एक दिन बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गुरुवार को गुजरात के सीएम और बीजेपी के पीएम उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी के गढ़ में पहुंचे हैं। इस अध्‍यादेश को 'बकवास' कहने पर राहुल गांधी ने आज पहली बार सफाई दी है। उन्‍होंने कहा, 'मैंने जो शब्‍द कहे वो शायद गलत थे लेकिन मेरी सोच सही थी। मां (सोनिया गांधी) ने कहा कि शब्‍द गलत थे।'
 
केंद्र सरकार ने दागियों से जुड़ा अध्‍यादेश राहुल के विरोध के बाद ही वापस लिया है। माना जा रहा है कि राहुल इसे कांग्रेस पार्टी के हक में भुनाएंगे। राहुल गुजरात में पार्टी कार्यकर्ताओं को यह संदेश फैलाने की सलाह भी दे सकते हैं कि कांग्रेस किसी रूप में राजनीति में भ्रष्‍टाचार को बढ़ावा नहीं देगी और इसके लिए सरकार से भी भिड़ जाती है। इस अध्‍यादेश के मामले में जिस तरह सब कुछ सोची-समझी रणनीति के तहत होता दिखा, उससे ऐसी भी उम्‍मीद जताई जा रही है कि राहुल के गुजरात दौरे से पहले अध्‍यादेश वापस लेने का फैसला गुजरात में नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रचार में कांग्रेस को एक मजबूत मुद्दा मुहैया कराने की नीति का हिस्‍सा भी हो सकती है।
 
राहुल का गुजरात दौरा ऐसे समय हुआ है जब नरेंद्र मोदी हफ्ते भर के भीतर दो बार दिल्‍ली में सभाएं कर केंद्र सरकार पर निशाना साध चुके हैं। मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद राहुल का यह पहला गुजरात दौरा है।

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