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15 अक्तूबर 2013

ईद उल जुहा [बकरीद]: कुर्बानी के मायने



। दुनिया भर के मुसलमानों के लिए आस्था और विश्वास के पर्व बकरीद को ईद उल जुहा भी कहा जाता है। बकरीद को बड़ी ईद के रूप में भी मनाया जाता है। हज की समाप्ति के अवसर पर मनाया जाने वाला यह पर्व कुर्बानी का पर्व कहलाता है।
मुस्लिमों द्वारा संपूर्ण जीवन काल में पांच फर्ज निभाना अत्यावश्यक माना जाता है। इन पांच फर्ज में एक होता है हज पर जाना। लेकिन हज जाने से पहले एक मुसलमान अपने बाकी सारे फर्ज को पूरा करता है। इसलिए हर साल हज की समाप्ति के बाद फर्ज पूरा करने की खुशी में बकरीद मनाया जाता है।


धार्मिक रीतियों में ऐसा माना जाता है कि हजरत इब्राहिम को जब अल्लाह ने अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने का आदेश दिया तो उन्होंने अपने 13 साल के बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। उनकी इस ईमानदार फर्ज अदायगी और अल्लाह के लिए असीम श्रद्धा देखकर अल्लाह ने उनके बेटे की जगह बकरे को रख दिया। तब से इस दिन की याद में बकरीद मनाया जाने लगा। इस तरह यह पर्व संदेश देता है कि अल्लाह की राह में नेकी करना हर बंदे का फर्ज है और अल्लाह की राह में नेकी करने वालों का कभी बुरा नहीं होता।
बकरीद पर्व मनाने का उद्देश्य परिवार, समाज और देश की भलाई में त्याग करने की भावना को सर्वोपरि बनाना है। इस दिन मुस्लिम समुदाय में नए कपड़े पहनने और मस्जिदों में जाकर प्रार्थना करने का रिवाज है। प्रार्थना के बाद बकरे की बलि दी जाती है और उसे तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा अपने परिवार के लिए, दूसरा हिस्सा अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बांटा जाता है और तीसरा हिस्सा गरीबों में बांट दिया जाता है। कुर्बानी के ये तीन हिस्से भी यही संदेश देते हैं कि हर सच्चे मुसलमान को अपने परिवार, समाज और देश के लिए बराबर रूप से सोचना चाहिए और यही उसका फर्ज है।

बकरीद का महत्व कुर्बानी का फर्ज








ईद-उल-जुहा अर्थात बकरीद मुसलमानों का प्रमुख त्योहार है। इस दिन मुस्लिम बहुल क्षेत्र के बाजारों की रौनक बढ़ जाती है। बकरीद पर खरीददार बकरे, नए कपड़े, खजूर और सेवईयाँ खरीदते हैं। बकरीद पर कुर्बानी देना शबाब का काम माना जाता है। इसलिए हर कोई इस दिन कुर्बानी देता है।
बकरीद

ND

इस्लामी साल में दो ईदों में से एक है बकरीद। ईद-उल-जुहा और ई-उल-फितर। ईद-उल-फिरत को मीठी ईद भी कहा जाता है। इसे रमजान को समाप्त करते हुए मनाया जाता है। एक और प्रमुख त्योहार है ईद-उल-मीनाद-उन-नबी, लेकिन बकरीद का महत्व अलग है। इसे बड़ी ईद भी कहा जाता है। हज की समाप्ति पर इसे मनाया जाता है।

इस्लाम के पाँच फर्ज माने गए हैं, हज उनमें से आखिरी फर्ज माना जाता है। मुसलमानों के लिए जिंदगी में एक बार हज करना जरूरी है। हज होने की खुशी में ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है। यह बलिदान का त्योहार भी है। इस्लाम में बलिदान का बहुत अधिक महत्व है। कहा गया है कि अपनी सबसे प्यारी चीज रब की राह में खर्च करो। रब की राह में खर्च करने का अर्थ नेकी और भलाई के कामों में।

कुर्बानी की कथा : यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों ही धर्म के पैगंबर हजरत इब्राहीम ने कुर्बानी का जो उदाहरण दुनिया के सामने रखा था, उसे आज भी परंपरागत रूप से याद किया जाता है। आकाशवाणी हुई कि अल्लाह की रजा के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करो, तो हजरत इब्राहीम ने सोचा कि मुझे तो अपनी औलाद ही सबसे प्रिय है। उन्होंने अपने बेटे को ही कुर्बान कर दिया। उनके इस जज्बे को सलाम करने का त्योहार है ईद-उल-जुहा।

कुर्बानी का फर्ज : कुर्बानी का अर्थ है कि रक्षा के लिए सदा तत्पर। हजरत मोहम्मद साहब का आदेश है कि कोई व्यक्ति जिस भी परिवार, समाज, शहर या मुल्क में रहने वाला है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह उस देश, समाज, परिवार की हिफाजत के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार रहे।

ईद-उल-फितर की तरह ईद-उल-जुहा में भी गरीबों और मजलूमों का खास ख्याल रखा जाता है। इसी मकसद से ईद-दल-जुहा के सामान यानी कि कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किए जाते हैं। एक हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है, बाकी दो हिस्से समाज में जरूरतमंदों में बाँटने के लिए होते हैं, जिसे तुरंत बाँट दिया जाता है।

नियम कहता है कि पहले अपना कर्ज उतारें, फिर हज पर जाएँ। तब बकरीद मनाएँ। इसका मतलब यह है कि इस्लाम व्यक्ति को अपने परिवार, अपने समाज के दायित्वों को पूरी तरह निभाने पर जोर देता है।

हर शाम को इस मंत्री से मिलने का था कॉंट्रेक्ट, कई बार हुईं थीं प्रेग्नेंट



नई दिल्ली. हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा की जमानत याचिका सोमवार को यहां दिल्ली में खारिज कर दी गई। गीतिका आत्महत्या कांड में आरोपी कांडा ने पिछले माह 24 सितंबर को रोहिणी अदालत में नियमित जमानत के लिए याचिका लगाई थी।
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अदालत ने कांडा को जमानत न देने का फैसला लिया है। रोहिणी की जिला अदालत में कांडा के वकील ने 10 अक्टूबर को जमानत के पक्ष में अपना तर्क रखा था। इससे पहले पांच सितंबर को अदालत ने कांडा को अंतरिम जमानत पर रिहा किया था।
कांडा की वजह से दो जिंदगियां मौत के मुंह में समा गईं थीं। एक थी गीतिका और दूसरी उसकी मां। गीतिका पर कांडा ने बहुत सारी ज्यादतियां की थीं जिसकी वजह से गीतिका ने मौत को गले लगा लिया। अपनी बेटी के गम में उसकी मां ने भी खुद को मौत के हवाले कर दिया।

पुलिस हिरासत में रखे युवक की मिली सिर कटी लाश, एक पैर में लगी थी हथकड़ी


अम्बाला सिटी. पुलिस की बर्बरता का फिर एक और उदाहरण सामने आया है। पिछले दिनों जीएमएन कॉलेज के अमरदीप ने जान गंवाई थी। कैंट में बवाल मचा। इस बार सिटी में हंगामा हुआ है।
सोमवार की रात दो युवकों को पुलिस चौकी नं. 2 के जवानों ने पकड़ लिया। इनमें से एक की मौत हो गई। मंगलवार की दोपहर से लेकर शाम तक हंगामा होता रहा। घटनाक्रम बदलते रहे। दूसरे युवक ने प्रकट होकर पूरी कहानी को उलट दिया।
इस पूरे घटनाक्रम की सिलसिलेवार कहानी यह है कि रविदास माजरी के रहने वाले रामकुमार (रामू) और विक्रम दिहाड़ी कर लौट रहे थे। विक्रम के अनुसार पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। पुलिस कर्मी नशे में थे। पुलिस ने उनके साथ मारपीट की। पैरों में बेड़ियां डाल दी। 

युवक-युवती को निर्वस्त्र कर बांधा, पीटा और जुलूस निकाला



इंदौर. धार जिले में बलवारी पंचायत के खोकरिया गांव में मंगलवार तड़के वह हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। प्रेम करने वाले युवक और विवाहिता को सुबह पांच बजे गांव के कुछ लोग बयड़ीपुरा और बलवारी से पकड़कर लाए और गरबा पंडाल के बीच खंभे से बांध दिया।
इसके बाद उन्हें बुरी तरह पीटा, सारे कपड़े फाड़ दिए और उनके आसपास नाचते रहे। साढ़े 6 बजे दोनों के शरीर पर कालिख पोती और कमर के नीचे खाद की थैली बांधकर पूरी पंचायत (तीनों गांव खोकरिया, बलवारी और बयड़ीपुरा) में घुमाया।
युवक से ही पूरे रास्ते थाली बजवाई गई। इस दौरान जब दोनों ने छोड़ देने की गुहार लगाते हुए जहां भी थोड़ा खड़ा होने कोशिश की उन्हें कील वाली लकड़ी से गोदा। इस दौरान कुछ महिलाएं भी पीछे चल रही थीं।

कुरान का सन्देश

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