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29 अक्तूबर 2013

धनतेरस


इस दिन ऎश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी माँ लक्ष्मी के निमित्त चांदी के बर्तन खरीदे जाते हैं और घर लाकर उनका पंचोपचार द्वारा पूजन किया जाता है। ऎसा कहा जाता है कि इस दिन चांदी के बर्तन या चांदी की बनी वस्तु खरीदने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होकर वहां चिर काल तक स्थिर बनी रहती हैं। क्योंकि चांदी में लक्ष्मी जी का वास होता है। अत: चांदी की वस्तुओं के खरीदने का अति विशिष्ट महत्व है। चांदी के अतिरिक्त स्वर्णाभूष्ाण भी खरीदे जाते हैं। धनतेरस के दिन यमराज का भी सम्पूर्ण विधि-विधान से पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत रखने का बहुत महात्म्य है। इससे भी अधिक महात्म्य व पुण्य कार्य यमराज का गंधादि से पूजन करके संध्या काल में घर के मुख्य द्वार के बाहर आटे के पात्र में चार मुख का दीपक जलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त घर के दक्षिण भाग में दक्षिणाभिमुख होकर दीपदान भी करना चाहिए।

दीप दान करने से प्रसन्न होते हैं यमराज धनतेरस से दीवाली के पावन पर्व की शुरूआत हो जाती है। धनतेरस के अगले दिन रूपचौदस का त्यौहार आता है। रूपचौदस के दिन दीप दान करने की प्रथा है। रूपचतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। ऎसा माना जाता है कि इस दिन दीपदान करने से मृत्युपरांत नरक के दर्शन नहीं होते हैं। इस दिन गुजरात में मां काली की पूजा की जाती है और हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। इसलिए गुजरात में इसे काली चतुर्दशी के भी नाम से जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनके सहायक चित्रगुप्त की पूजा भी की जाती है।
प्राचीन काल से ही हमारे समाज में इस दिन दीप दान करने की प्रथा रही है।  मान्यता है कि आज के दिन दीप दान करने से खुद के अन्दर के अंधकार के साथ-साथ पिछले जन्म के पाप भी धुल जाते हैं। साथ ही जीवन में एक नई रोशनी का संचार होता है।  माना जाता है कि दीपदान करने से यमराज और चित्रगुप्त प्रसन्न होते हैं और मनुष्य को नरक के दर्शन नहीं करने पडते। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि दीप दान करने से अज्ञानता और अंधकार दूर होता है और जीवन में नए ज्ञान और धर्म का प्रकाश होता है।
दीपदान करने का मंत्र -
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीयतामिति।।
धनतेरस के दिन यमराज को प्रसन्न करने के लिए यमुना स्नान किया जाता है। जो इस दिन यमुना स्नान करके दीपदान करते हैं उन्हें कभी अकाल मृत्यु नहीं आती। यदि कोई यमुना तट पर जाकर स्नान नहीं कर सकता है तो वह स्नान करते समय यदि यमुना जी का स्मरण भी कर ले तो भी यमराज प्रसन्न होते हैं। यमराज और देवी यमुना दोनों सूर्य की संतानें हैं। इस कारण से इन दोनों भाई बहिन में अत्यन्त प्रेम है। इसलिए यमराज यमुना स्नान और दीपदान करने वालों पर अपनी कृपा करते हैं और अकाल मृत्यु नहीं देते। असामयिक मृत्यु के बंधन से मुक्ति भी एक प्रकार का धन ही है। जैसे कहा भी गया है कि जान है तो जहान है।
अत: अकाल मृत्यु का निवारण होना भी समृद्धि से कम नहीं हैं। उपरोक्त सभी तथ्यों का यदि चिंतन मनन किया जाये तो कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का नाम धनतेरस सार्थक प्रतीत होता है क्योंकि माँ लक्ष्मी का पूजन व चाँदी की वस्तुएं खरीदी जाती। इस प्रकार यमराज भी दीप दान द्वारा प्रसन्न होकर अकाल मृत्यु से मुक्त करते हैं। इस तरह धनतेरस तीन गुना फल प्रदान करके तीन तरह से धनप्रदायक सिद्ध होती है।

सौंदर्य निखारने की यह परंपरा :-रूपच



हमारे देश की धार्मिक संस्कृति में अँधेरे से उजाले की ओर जाने का संदेश दीपोत्सव पर्व के माध्यम से दिया गया है। रूपचौदस पर्व पर अपना सौंदर्य निखारने की यह परंपरा हमें विरासत में मिली है। युवतियाँ व महिलाएँ घरों के साथ अब ब्यूटी पार्लरों पर भी सुंदरता पाने के लिए जाने लगी हैं।  सजना-सँवरना और स्वयं को ऐसा बनाना कि अन्य लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रहे, सौंदर्य को निखारने की यह परंपरा हमारे देश में हड़प्पा, मोहन जोदड़ों काल से चली आ रही है। खजुराहो की मूर्तियाँ इस बात की गवाह हैं कि भारतीय नारियाँ आभूषणों को धारण कर अपना रूप निखारने को कितना महत्व देती थीं। प्राचीन औषधीय शास्त्र में वनस्पति युक्त ऐसे कई उबटनों के निर्माण एवं प्रयोग की विधियाँ दी गई हैं, लेकिन वर्तमान समय में किसी को उबटन बनाने की फुर्सत कहाँ, फिर भी रूप चौदस पर्व के लिए प्रत्येक व्यक्ति जितना हो सके, अपने सौंदर्य को निखारने का प्रयत्न अवश्य करता है। 
 
धनतेरस से दीवाली के पावन पर्व की शुरूआत हो जाती है। धनतेरस के अगले दिन रूपचौदस का त्यौहार आता है। रूपचौदस के दिन दीप दान करने की प्रथा है। रूपचतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। ऎसा माना जाता है कि इस दिन दीपदान करने से मृत्युपरांत नरक के दर्शन नहीं होते हैं।
इस दिन गुजरात में मां काली की पूजा की जाती है और हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। इसलिए गुजरात में इसे काली चतुर्दशी के भी नाम से जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनके सहायक चित्रगुप्त की पूजा भी की जाती है। प्राचीन काल से ही हमारे समाज में इस दिन दीप दान करने की प्रथा रही है। ऎसी मान्यता है कि आज के दिन दीप दान करने से खुद के अन्दर के अंधकार के साथ-साथ पिछले जन्म के पाप भी धुल जाते हैं। साथ ही जीवन में एक नई रोशनी का संचार होता है। ऎसा भी माना जाता है कि दीपदान करने से यमराज और चित्रगुप्त प्रसन्न होते हैं और मनुष्य को नरक के दर्शन नहीं करने पडते। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि दीप दान करने से अज्ञानता और अंधकार दूर होता है और जीवन में नए ज्ञान और धर्म का प्रकाश होता है।
 
हनुमान उत्सव का पर्व भी है चौदस
शास्त्रों में उल्लेख है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार की अर्द्घ रात्रि में देवी अंजनि के उदर से हनुमान जन्मे थे। देश के कई स्थानों में इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भक्ति भाव से मनाया जाता है। 
 
इस दिन वाल्मीकि रामायण व सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ कर चूरमा, केला व अमरूद आदि फलों का प्रसाद वितरित किया जाता है। शास्त्रों में हनुमान की राम के प्रति अगाध श्रद्घा व भक्ति को बताया गया है। 
 
ऐसी ही एक कथा में यह प्रमाणित भी होता है। भगवान श्रीराम लंका पर विजय कर अयोध्या लौटे। जब हनुमान को अयोध्या से बिदाई दी गई तब माता सीता ने उन्हें बहुमूल्य रत्नों से युक्त माला भेंट में दी, पर हनुमान संतुष्ट नहीं हुए व बोले माता इसमें राम-नाम अंकित नहीं है। तब माता सीता ने अपने ललाट का सौभाग्य द्रव्य सिंदूर प्रदान कर कहा कि इससे बड़ी कोई वस्तु उनके पास नहीं है। 
 
हनुमान को सिंदूर देने के साथ ही माता सीता ने उन्हें अजर-अमर रहने का वरदान भी दिया। यही कारण है कि हनुमान जी को तेल व सिंदूर अति प्रिय है।
ज्योतिष बताते हैं कि रूप चतुर्दशी को शास्त्रों में नरक चतुर्दशी भी कहा गया है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी के राजा का वध कर उसके द्वारा अपहृत 16 हजार कन्याओं को नारकीय जीवन से मुक्त करा कर वैकुंठ में स्थान दिलाया था। इस खुशी में कन्याओं ने सज-सँवरकर रूप निखारा था। इसीलिए इस दिन को रूप चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है। कन्याओं को नर्क जैसे जीवन से मुक्ति मिली है, इसलिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
नरक चौदस का दिन नरक के देवता यम की पूजा का भी पर्व है। इस दिन शरीर पर सुगंधित द्रव्य, उबटन, अपामार्ग (अझीझाड़) से जल मार्जन व स्नान करने से नरक का भय नहीं रहता। तिल युक्त जल से स्नान कर यम के निमित्त 3 अंजलि जल अर्पित किया जाता है। 

सायंकाल घर-द्वार, मंदिर, देववृक्ष व सरोवर के किनारे दीप लगाए जाते हैं। त्रयोदशी से 3 दिन तक दीप प्रज्ज्वलित करने से यमराज प्रसन्न होते हैं। अंतकाल में व्यक्ति को यम यातना का भय नहीं होता। दीपदान से यम की पूजा करने पर नरक का भय भी नहीं सताता। नरक चौदस को रूप चौदस के रूप में भी मनाया जाता है। 

लक्ष्मी पूजन के एक दिन पूर्व लक्ष्मी पर्व के आगमन की प्रत्याशा में लोग सुगंधित द्रव्य युक्त जल से स्नान कर नए वस्त्र धारण करते हैं। स्वयं के रूप का निखर मां लक्ष्मी के पूजन की तैयारी करते हैं।

दुष्‍यंत, मानवेंद्र, वरुण, आदित्‍य, सुखबीर...ये हैं मोदी खेमे के ‘शहजादे’



बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने रविवार को पटना में आयोजित हुंकार रैली में कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला था। मोदी ने कहा था कि कांग्रेस अपने वंशवाद को खत्म कर दे तो वे राहुल को शहजादा बोलना छोड़ देंगे। ये तो सभी जानते हैं कि राहुल को राजनीति विरासत में मिली है। इसीलिए मोदी ने कांग्रेस के इस वंशवाद को आड़े हाथों लिया। लेकिन बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार ये भूल गए कि उनकी पार्टी बीजेपी और उनकी सहयोगी पार्टियों में ‘शहजादों’ की कमी नहीं है। 
 
बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों में भी खूब पनप रहा है वंशवाद। वंशवाद के चलते ही दिग्गज नेताओं की संतानें आज पार्टी में तो बड़े पदों पर बैठी ही हैं, साथ ही चुनावों में जीतकर केंद्रीय राजनीति का भी हिस्सा बनती जा रही हैं। इसमें कई बड़े नाम शामिल हैं। बीजेपी में वंशवाद के उदाहरण के रूप में तो खुद राहुल गांधी के चचेरे भाई वरुण गांधी को भी आप देख सकते हैं।
मेनका गांधी और वरुण गांधी
 
मेनका गांधी और वरुण गांधी बीजेपी से जुड़े हुए हैं। यहां भी वंशवाद की तस्वीर साफ दिखाई देती है। मेनका गांधी भाजपा की सांसद हैं, वहीं उनका बेटा वरुण गांधी न सिर्फ सांसद हैं, बल्कि बीजेपी के युवा जनरल सेक्रेटरी भी हैं।
उद्धव और आदित्य ठाकरे
 
पिछले साल बाल ठाकरे के देहांत के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने शिव सेना की कमान अपने हाथों में ली। उद्धव के पुत्र आदित्य ठाकरे साल 2010 में राजनीति में उस समय नजर आए, जब भारतीय मूल के कनाडियन लेखक रोहिंग्टन मिस्त्री के उपन्यास ‘सच ए लॉन्ग जर्नी’ का देश में बेहद आक्रामक विरोध किया जा रहा था। इस समय आदित्य शिवसेना की यूथ विंग की कमान संभाल रहे हैं। रेम कुमार धूमल और अनुराग सिंह ठाकुर
 
प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके पुत्र अनुराग ठाकुर भी पिता की ही राह पर चल रहे हैं। अनुराग बीजेपी के सांसद होने के साथ ही युवा मोर्चा के प्रमुख भी  हैं।
प्रकाश सिंह बादल और सुखविंदर सिंह
 
प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। उनके पुत्र सुखविंद सिंह उप मुख्यमंत्री हैं। साथ ही, अपनी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के मुखिया भी हैं। सुखविंदर की पत्नी हरसिमरत कौर भी सक्रिय राजनीति में हैं और भटिंडा सीट से लोकसभा सांसद हैं।
वसुंधरा राजे और दुष्यंत सिंह
 
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के 40 वर्षीय पुत्र भी सक्रिय राजनीति में हैं। वे 2004 में झालावाड़-बेरन सीट से सांसद चुने गए थे। उस समय वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री थीं। दुष्यंत ने 2009 में पुन: चुनाव जीता था।
जसवंत सिंह और मानवेंद्र सिंह
 
राजस्थान में वंशवाद का एक और उदाहरण है। पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह भी अपने पिता की तरह बीजेपी के सक्रिय राजनेता हैं। साल 2004 में बाड़मेर सीट से सांसद चुने गए थे। हालांकि, 2009 के आम चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 
राजस्थान में वंशवाद का एक और उदाहरण है। पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह भी अपने पिता की तरह बीजेपी के सक्रिय राजनेता हैं। साल 2004  में बाड़मेर सीट सांसद चुने गए थे। हालांकि, 2009 के आम चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

क़ुरान का सन्देश

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