दीप दान करने से प्रसन्न होते हैं यमराज धनतेरस से दीवाली के पावन पर्व की शुरूआत हो जाती है। धनतेरस के अगले दिन रूपचौदस का त्यौहार आता है। रूपचौदस के दिन दीप दान करने की प्रथा है। रूपचतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। ऎसा माना जाता है कि इस दिन दीपदान करने से मृत्युपरांत नरक के दर्शन नहीं होते हैं। इस दिन गुजरात में मां काली की पूजा की जाती है और हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। इसलिए गुजरात में इसे काली चतुर्दशी के भी नाम से जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनके सहायक चित्रगुप्त की पूजा भी की जाती है।
प्राचीन काल से ही हमारे समाज में इस दिन दीप दान करने की प्रथा रही है। मान्यता है कि आज के दिन दीप दान करने से खुद के अन्दर के अंधकार के साथ-साथ पिछले जन्म के पाप भी धुल जाते हैं। साथ ही जीवन में एक नई रोशनी का संचार होता है। माना जाता है कि दीपदान करने से यमराज और चित्रगुप्त प्रसन्न होते हैं और मनुष्य को नरक के दर्शन नहीं करने पडते। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि दीप दान करने से अज्ञानता और अंधकार दूर होता है और जीवन में नए ज्ञान और धर्म का प्रकाश होता है।
दीपदान करने का मंत्र -
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीयतामिति।।
धनतेरस के दिन यमराज को प्रसन्न करने के लिए यमुना स्नान किया जाता है। जो इस दिन यमुना स्नान करके दीपदान करते हैं उन्हें कभी अकाल मृत्यु नहीं आती। यदि कोई यमुना तट पर जाकर स्नान नहीं कर सकता है तो वह स्नान करते समय यदि यमुना जी का स्मरण भी कर ले तो भी यमराज प्रसन्न होते हैं। यमराज और देवी यमुना दोनों सूर्य की संतानें हैं। इस कारण से इन दोनों भाई बहिन में अत्यन्त प्रेम है। इसलिए यमराज यमुना स्नान और दीपदान करने वालों पर अपनी कृपा करते हैं और अकाल मृत्यु नहीं देते। असामयिक मृत्यु के बंधन से मुक्ति भी एक प्रकार का धन ही है। जैसे कहा भी गया है कि जान है तो जहान है।
अत: अकाल मृत्यु का निवारण होना भी समृद्धि से कम नहीं हैं। उपरोक्त सभी तथ्यों का यदि चिंतन मनन किया जाये तो कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का नाम धनतेरस सार्थक प्रतीत होता है क्योंकि माँ लक्ष्मी का पूजन व चाँदी की वस्तुएं खरीदी जाती। इस प्रकार यमराज भी दीप दान द्वारा प्रसन्न होकर अकाल मृत्यु से मुक्त करते हैं। इस तरह धनतेरस तीन गुना फल प्रदान करके तीन तरह से धनप्रदायक सिद्ध होती है।