आपका-अख्तर खान

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22 नवंबर 2013

"रिपोर्टर" ----------------


उसने देखा
खून से लथपथ
सड़क के बीचो-बीच
तडफड़ाता आदमी
और कन्नी काटते लोग
वो कैमरा घुमाता रहा
और बनायी उसने
मौक़ा-ए-वारदात की
सच्ची रिपोर्ट
लोग देख शर्मशार थे

उसने देखा आधी रात
पब से निकलती
अकेली लड़की
और उसके इस अपराध पर
बीच सड़क
उसके कपड़े नोचते लोग
और वो .....
उसके अधनंगे जिस्म पर
कैमरा घुमाता रहा
लाइव दिखता रहा
लोगों को सच्ची रिपोर्ट
जनता सकते में थी

उसने देखा
अनशन में
अपनी मांग पूर्ति के वास्ते
एक युवक को खुद पर
मिट्टी का तेल छिड़कते
फिर आग लगाते
भीड़ देखती रही
वो तस्वीर लेता रहा
इस रिपोर्ट पर
लोगों में ...
आग भड़क चुकी थी

उसने देखे
सुनामी, भूकंप
दंगे-फसाद
अँधेरगर्दी, अनाचार
और तैयार की
जाने कितनी ही ख़बरें
आला दर्जे का वो रिपोर्टर
अनगिन पुरस्कारों से नवाज़ा गया
उसने रिपोर्टर होने का फ़र्ज़ निभाया
बाक़ीयों को ..............
आदमी होने का फ़र्ज़ निभाना था !!
~s-roz~

सामने माँ का पार्थिव शरीर पड़ा था,


  • सामने माँ का पार्थिव शरीर पड़ा था,
    और बेटा निःशब्द किसी मूर्ती सा खड़ा था,
    फर्क था तो सिर्फ आंसुओं का जो निरंतर बह रहे थे,
    और बिना कुछ कहे ही सब कुछ कह रहे थे।
    बेटा इसलिए नहीं रो रहा था की
    माँ ज़िन्दगी से मुह मोड़ गयी थी,
    मुझे अकेला छोड़ गयी थी
    वो जानता है की मौत तो सिर्फ एक बहाना है,
    एक दिन हम सबको जाना है
    बल्कि इसलिए रो रहा है,
    कि मेरी माँ ने जीवन में बाज़ार से,
    कभी कुछ लाने के लिए नहीं कहा
    कभी कुछ खाने के लिए नहीं कहा,
    हर कमी को चुप चाप सहा
    और मैं अनजान बन सब देखता रहा।
    माँ खुद गीले में सोती है, बच्चे को को सूखे में सुलाती है,
    बच्चा रोये तो सारी रात बाँहों में झुलाती है,
    बच्चों को मुस्कुराता देख माँ के नयन कैसे ख़ुशी से फूल जाते हैं,
    और बच्चे बड़े हो कर कितनी आसानी से अपना फ़र्ज़ भूल जाते हैं।
    जब कभी घर देर से आता था,
    तो माँ को दरवाज़े पे खड़ा पता था,
    माँ उसी वक्त मेरे लिए गरमा गर्म खाना पकती थी,
    और मुझे खिलने के बाद ही बचा खुचा खुद खाती थी।
    एक बार जब मैं बीमार पड़ा
    और बहुत तेज़ बुखार चढ़ा,
    माँ कभी बातों से बहलाती -
    कभी पीठ सहलाती
    कभी दवा कभी दुआ करते कितना रोई,
    सारी रात जगी, एक पल भी नहीं सोयी।
    और एक बार माँ का शुगर लेवल थोडा सा बढ़ा पाया था,
    तो मुझे कितना गुस्सा आया था ,
    माँ ने तो बस प्रसाद का एक पेंडा खाया था,
    और उस दिन के बाद से मीठे को कभी हाथ नहीं लगाया था ।
    और जिस दिन हमारी फैमिली डिनर पर जाती थी,
    माँ घर पर अचार से रोटी खाती थी,
    शुगर से बहुत घबराती थी।
    हाँ मैंने माँ से किया था उस दिन दावा लाने का वादा,
    लेकिन दावा की दुकान पर थी भीड़ बहुत ज्यादा,
    बेटे का जन्मदिन है देर हो गयी तो मचल जायेगा,
    शीशी में ज़रा सी दावा बची है -
    माँ का काम तो किसी न किसी तरह चल जायेगा।
    माँ के न पैरों में जान न हाथ में छड़ी थी,
    दिखाई कम देता था एक बार गिर पड़ी थी,
    तब माँ ने पहली बार कहा था
    "बेटा मुझे एक चश्मा ला दे"
    कैसे भूलूँ माँ से किये हुए वो वादे,
    अभी तो टाईम नहीं है -
    अगले हफ्ते जब छुट्टी ले कर बीवी को शापिंग करने ले जाऊंगा,
    तो माँ तुमारा चश्मा ज़रूर बनवाऊंगा।
    और एक बार माँ और बीवी दोनों की साड़ी लेने बाज़ार गया,
    तो वहां भी माँ की ममता के आगे हार गया,
    बीवी एक महंगी साड़ी लेने के लिए अड़ गयी,
    और जेब की रकम बीवी की साड़ी के लिए ही कम पड़ गयी,
    माँ ने तब भी यही कहा था
    "बेटा तू बहु को ही साड़ी दिला दे मुझे कौन सा किसी पार्टी में जाना है ,
    सारा दिन घर पर ही तो बिताना है "
    और एक बार माँ ने कहा था "बेटा भरोसा नहीं रहा ,
    पता नहीं कब चली जाऊं,
    सोचती हूँ एक बार हरिद्वार हो आऊं"
    अगले साल चली जाना माँ
    मैंने ये कह कर टाल दिया था,
    और माँ को घर की रखवाली के लिए छोड़,
    हिल स्टेशन पर 'विद फैमिली' डेरा डाल दिया था।
    और एक बार माँ ने जब मेरी तरक्की के लिए व्रत रखा था,
    और भगवान् से मन्नत मांगी थी
    उस दिन मैंने अपनी निकृष्टता की हर सीमा लांघी थी,
    मैंने कहा था माँ मैं शाम को जल्दी घर आऊंगा
    और तुम्हारे लिए फल लाऊंगा,
    लेकिन जैसे ही हुई शाम-
    टकराए जाम से जाम घर पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी,
    और माँ फलों के इंतज़ार में भूखी ही सो चुकी थी।
    और जिस दिन मन्नत पूरी हुई मुझे माँ के साथ मंदिर जाना था,
    लेकिन दूसरी तरफ दोस्तों के साथ खाना खाना था,
    मैंने उस दिन भी अपने पुत्र धर्म से नाता तोड़ दिया था,
    और माँ के बूढ़े ज़र्ज़र शरीर को,
    बसों में धक्के खाने के लिए, भगवान् भरोसे छोड़ दिया था।
    माँ के नाम कोई प्रोपर्टी नहीं थी,
    और माँ का व्यवहार भी सख्त नहीं था,
    शायद इसी लिए मेरे पास माँ के लिए वक़्त नहीं था।
    वो माँ जिसने नौ महीने गर्भ में रखा अपने ही खून से छली गयी,
    और ज़रूरतों का इंतज़ार करते करते चली गयी।
    देखो देखो माँ का शरीर अब भी कुछ नहीं मांग रहा चुप चाप सो रहा है ,
    और वो बेटा किसी को क्या बताये की वो क्यों रो रहा है,
    अब तो केवल पश्चाताप के आंसू ही बहाऊंगा
    और जिस माँ ने अपना सबकुछ दिया उसे सिर्फ कन्धा ही दे पाउँगा .
    (साभार उद्धरत)

दोस्तों आज आपकी मुलाक़ात एक मस्त शख्सियत से कराते है ..आप से मिलिए ....आप है ओमेंद्र जी सक्सेना

दोस्तों आज आपकी मुलाक़ात एक मस्त शख्सियत से कराते है ..आप से मिलिए ....आप है ओमेंद्र जी सक्सेना .....क़रीब सो साल से जवान है ..कभी माइक और रेडियो का काम करने वाले ओमेंद्र रेडियोज के मालिक ....भाई ओमेंद्र प्रेस फोटोग्राफर बने और कोटा में इनके प्रेस फोटोग्राफर बन्ने के बाद ..जांबाज़ फोटोग्राफी के अलावा आटिस्टिक ..सहित कई विधाएं शुरू हुई ..बिना लिखे ..बिना अल्फ़ाज़ों के ....इनकी तस्वीरे मुंह से बोलने लगी .....केवल एक तस्वीर ...अपने आप में एक बढ़ी खबर ...एक बढ़ी कहानी बयान करती दिखी ...इनकी इस विधा को ...कोटा से प्रकाशित समाचार पत्रों ने गले लगाया .....तो  कोटा की जनता ने फोटोग्राफी की इनकी विधा को सर पर बिठाया .........ओमेंद्र जी का मृदुल व्यवहार ..चुटकुले बाज़ी का स्व्भाव ...सभी को अपना बनाने के लिए काफी है ...दोस्ती करो ..दोस्ती निभाओ ...हंसो और हंसाओ ....एक दूसरे कि मदद करो ..प्यार दो प्यार लो के सिद्धांत पर चलने वाले इस शख्स के बारे में हम यक़ीन से कह सकते है ...के ऐसा कोई शख्स नहीं होगा जो इनके साथ हो और इनकी बात पर ठहाका नहीं लगाये ....रोते हुए को हंसाना ..उदास की उदासी मिटाकर उसे ख़ुशी का अहसास दिलाना इनका हुनर है ...भाई ओमेंद्र जी पहले जार पत्रकारों की संस्था में पदाधिकारी रहे ....प्रेस कल्ब में अनेकों बार महत्वपूर्ण पदों के लिए चुनाव लड़कर एक तरफा जीत हांसील की ...ओमेंद्र जी हर वक़त प्रेस से मुताल्लिक़ लोगों कि मदद के लिए तय्यार मिलते है ..प्रेस कल्ब में इन्होने संचार क्रान्ति के लिए कम्प्यूटर सहित कई उपकरण भेंट किये .........वर्त्तमान में आप राष्ट्रीय प्रेस संस्था के प्रदेश अध्यक्ष है और कई सम्मेलन ..कई सेमिनार यह पत्रकारों के प्रशिशक्षण और कल्याण के लिए करा चुके है ....दोस्तों इनकी शक्शियत और कार्यो पुरस्कारो ..सम्मान कार्यक्रमों के लिए तो शब्द और स्थान कम पढ़ जाएगा इसलिए में माफ़ी चाहता हुए लेकिन इनके जीवन की महत्वपूर्ण दो घटनाएं बताना ज़रूरी है जो इनकी ज़ुबानी तो लुत्फ़ देती है लेकिन में अपनी फूहड़ जुबां में बया कर रहा हूँ ............दोस्तों ओमेंद्र जी की दाड़ी इनकी पहचान है लेकिन कई लोग इस दाड़ी कि वजह से इन्हे मुस्लिम समझते रहे है .............हर बार ईद के फोटू को कवर करना इनकी मुख्य ज़िम्मेदारी थी कोटा की किशोरपुरा ईद गाह पर यह ईद पर जाते वी आई पी प्रशासनिक चोकी पर चढ़ कर इन्हे फोटू खेंचना होता था वहाँ कुछ बुज़ुर्ग लोगों से यह सलाम करते और वोह कहते भाई फोटू बाद में खेंचना पहले नमाज़ तो पढ़ लो यह कहते अच्छा चाचा नमाज़ अभी पढ़ता हूँ फिर जब नमाज़ होती तो यह चाचा इन्हे काफी नाराज़गी भरे अल्फ़ाज़ों में खरी खोटी सुनाते यह हंसते हुए सुनते और कहते चाचा अब अगली बार पढूंगा ..यह सिलसिला एक दशक से भी अधिक चला चाचा के साथ कई चाचा जुड़ते गए और कुछ चाचा अल्लाह को प्यारे हो गए लेकिन ईद पर फोटू खेंचते वक़त नमाज़ पढ़ाने की ज़िद पर कई चाचाओं की नाराज़गी का शिकार इन्हे बनना पढ़ा और हर बार नए क़िस्से होते जिन्हे यह लुत्फ़ लेकर सुनते और एन्जॉय करते रहे है .....एक बार इनके लाडपुरा वाले मकान में कुछ लोगों से झगड़ा हुआ ओमेंद्र जी ने समझाइश की कोशिश की नहीं माने मारपिटाई हुई ओमेंद्र जी भरी पढ़े झगड़ने वाले प्रभावशाली थे उन्होेने इनेक खिलाफ रामपुरा कोटा कोतवाली में मुक़दमा दर्ज करवाया एक दाड़ी वाला और उसके बच्चों ने मार पिटाई की  ..मुक़दमा दर्ज हुआ ..गिरफ्तारी हुई ज़मानत  हुई और फिर मुक़दमा अदालत में चलता रहा तारीख पर तारीख में मामला चार साल तक चला गवाही में जब फरियादी आये और सरकार ओमेंद्र सक्सेना के नाम से आवाज़ पढ़ी तो यक़ीन मानिये फरियादी और गवाहों ने अदालत में मुझ से सवाल किया के आपके पक्षकार क्या ओमेंद्र सक्सेना हिनूद मेने हां कहते हुए उन्हें समझाइश की के समझोते से अगर मामला निपटाना चाहो तो निपटा लो ...बात चीत हुई ..फरियादी और गवाहो का कहना था के भाईसाहब हम तो आपको दाड़ी की वजह से मियाजी समझ बेठे थे और इसीलिए झगड़ा भी क्या मुक़दमा भी दर्ज कराया और बंद भी कराया ...उनका कहना था एक बार तो आप अपना नाम बताते ..ओमेंद्र जी हंस कर बोले भाई झगड़ा चल रहा था तो में पहले झगड़ा करता या फिर अपनी ज़ात और नाम बताता ..ओमेंद्र जी ने कहा के अब बताओ क्या करे ..फरियादी और गवाह ने उनसे हाथ मिलाया गले मिले अरे भाई साहब हमने तो दाड़ी के साथ मियाजी की गलत फहमी में मुक़दमा दर्ज कराया था अब हमारा केसा झगड़ा हम भाई भाई है ..तब ओमेंद्र जी ने कहा के देख लो में हिन्दू हूँ तो क्या मेरे वकील तो मुस्लिम है ..फरियादी और गवाह हँसे और कहने लगे नहीं हम सब भाई भाई है और यह मुक़दमा जो चार साल तक अदालत में घसीटा गया एक पल में राजीनाम से खत्म हो गया .....................ओमेंद्र जी इन दिनों डी डी वन चेनल सहित कई चेनलों के लिए स्व्तंत्र खोजी कार्यक्रम बना रहे है ..यह टेली फिल्मे भी बनाते है और जयपुर में इनका अपना स्टूडियों अपनी टीम है ...ऐसे पत्रकार को सलाम ..जो हँसे और हंसाये ...............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
दोस्तों कवियों ..लेखको ..समाजसेवको ..चिंतको ..विचारकों ....पत्रकारों और देश के संविधान ...क़ानून के रक्षकों से एक जलता हुआ सवाल ...पत्रकार तरुणतेजपाल के खिलाफ वर्ष दो हज़ार तीन यानि दस साल पहले गोवा कि लिफ्ट में छेड़ छाड़ की एक शिकायत जिस पर तरुण तेजपाल की स्वीकारोक्ति फिर इस्तीफा ..बाद में देश भर के टी वी चेनलो ..प्रिंट मिडिया और समाजसेवकों में बवाल ..ज़बरदस्त भूचाल ..टी वी चेनलों में रोज़ प्रमुख खबर ...लेकिन ठीक एक हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज के खिलाफ पूरी तरह से यौनशोषण और दूसरी महिलाओं के साथ भी यों शोषण करवाने वाली महिला की कहानी सामने आयी ..लेकिन यह मुख्य खबर होने के बाद ही प्रिंट मिडिया और टी वी चेनलों से गायब ..इस खबर पर ना बुद्धिजीवियों ने चर्चा की ना किसी लेखक ..कवि ..चिंतक ने टिप्पणी की .....सभी जानते है तरुण तेजपाल और उनकी टीम स्टिंग ऑपरेशन करती है . .. कहीं यह दस साल पुराना आरोप और यह कहानी समाज को यह बताने के लिए तो नहीं के दस साल तक चुप रहने के बाद ओरत के दस साल बाद लगाये गए आरोपों में भूचाल क्यूँ होता है इसकी समय सीमा क्यूँ निर्धारित नहीं है और फिर एक जज जो सुप्रीम कोर्ट का जज रहा है उस पर पुख्ता आरोप के बाद भी मुक़दमा दर्ज होने के स्थान पर केवल जांच बिठाई जाती है और मिडिया से यह खबर अचानक गायब हो जाती है कहीं तरुण तेजपाल मीडिया की यह मनमानी ..यह सौदेबाज़ी ..यह पक्षपात ..और क़ानून का यह दोहरा मापदंड के साथ साथ समाज को यह सच तो बताना नहीं चाहते के आखिर मर्द कब तक इस तरह से कई सालों पुराने आरोपों पर प्रताड़ित होता रहेगा ..आखिर आरोप की भी एक समय सीमा क़ानूनी रूप से अब होना ही चाहिए ताकि मर्दों के खिलाफ यह दस साल ..पन्द्राह साल ..बीस साल पुराने मामले बताकर उन्हें गिरफ्तार करने की क़ानूनी कार्यवाही में बदलाव आये शायद ऐसा हो सकता है शायद नहीं हो सकता ..लेकिन पक्षपात की तो पोल खुल ही गयी है क़ानून और पत्र्कारिता की है ना ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

मोदी को क्लीन चिट देने वाले केपीएस गिल बोले- राज्यपाल वो बूढ़ी वेश्या है जिसे कोई नहीं पूछता


गुवाहाटी/अमृतसर। पंजाब पुलिस के पूर्व प्रमुख केपीएस गिल ने राज्यपाल की तुलना बूढ़ी वेश्या से की है। उन्होंने कहा कि बूढ़ी वेश्या की तरह वे भी काम का इंतजार करते रहते हैं लेकिन उनके पास कोई काम नहीं होता। गिल ने यह विवादास्पद टिप्पणी एक टीवी इंटरव्यू में की।
गिल ने कहा, '1993 में राजेश पायलट ने मुझसे मणिपुर का राज्यपाल बनने के लिए रिक्वेस्ट की थी, लेकिन मैंने मना कर दिया। गवर्नर पद में मेरी दिलचस्पी कभी नहीं थी।' गिल ने यह बात तब कही जब उनसे असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के उस दावे के बारे में सवाल किया गया जिसमें, उन्होंने कहा था कि 2004 में एनडीए सरकार गिल को राज्यपाल बनाना चाहती थी। असम आंदोलन के दौरान 1979 से 1985 के बीच गिल असम में भी अपनी सेवा दे चुके हैं।

दिल्‍ली पुलिस को घर पर नहीं मिले तरुण तेजपाल, गोवा पुलिस ने कसा शिकंजा


पणजी/नई दिल्ली. अपने साथ काम करने वाली जूनियर पत्रकार के साथ 'हादसे' की बात स्‍वीकारते हुए छह महीने के लिए 'तहलका' का संपादक नहीं रहने का फैसला करने वाले तरुण तेजपाल पर शिकंजा कस गया है। शुरुआती जांच के बाद गोवा पुलिस ने तेजपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। पुलिस ने तेजपाल के खिलाफ रेप की कोशिश और महिला सहयोगी की आबरू के साथ खिलवाड़ करने का मामला दर्ज किया। इसके बाद शुक्रवार शाम को दिल्‍ली पुलिस तरुण तेजपाल के घर पहुंची, लेकिन वह घर पर नहीं मिले। गोवा के डीजीपी किशन कुमार ने कहा- अगर तेजपाल पुलिस टीम के साथ सहयोग नहीं करते हैं तो हम उन्‍हें गिरफ्तार कर लेंगे। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी यौन उत्पीड़न के इस मामले में गोवा सरकार से पूरा ब्योरा मांगा है। 
 
गोवा पुलिस ने दिल्‍ली पुलिस से सहयोग मांगा है। गोवा पुलिस ने दिल्‍ली पुलिस से कहा कि वह तरुण तेजपाल की गिरफ्तारी में सहयोग करे। सूत्रों का कहना है कि  गोवा पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज देख ली है और तरुण तेजपाल की गिरफ्तारी कभी भी हो सकती है।  तेजपाल ने शुक्रवार को बयान जारी कर कहा कि वह जांच में पुलिस को पूरा सहयोग देंगे। तेजपाल ने यह भी कहा है कि उन्‍होंने अपने 'दुर्व्‍यवहार' के लिए पहले ही माफी मांग ली है। उन्‍होंने यह भी कहा कि पुलिस सीसीटीवी फुटेज जारी कर दे, इससे सब कुछ साफ हो जाएगा। इससे पहले 'तहलका' की मैनेजिंग एडिटर शोमा चौधरी ने कहा था कि वह पुलिस की मदद नहीं करेंगी, क्‍योंकि पीडि़त ने एफआईआर दर्ज नहीं कराई है।
 
 
'तहलका' ने सफाई दी है कि तेजपाल देश से नहीं भागे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तेजपाल के खिलाफ केस पर गोवा पुलिस से रिपोर्ट मांगी है।
 
तहलका मैग्जीन के एक तरह से सर्वेसर्वा रहे तरुण तेजपाल से गोवा पुलिस पूछताछ करेगी। गोवा के डीजीपी किशन कुमार ने कहा, 'पुलिस की टीमें रवाना हो गई हैं। अगर वो सहयोग नहीं करते हैं तो हम उन्‍हें गिरफ्तार कर लेंगे।' गोवा के सीएम मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि ऐसे अपराध बर्दाश्‍त नहीं किए जाएंगे।
 

 
उधर, शुरू में तेजपाल के बचाव में ट्वीट करने वाले जावेद अख्‍तर ने भी गुरुवार देर रात एक ट्वीट पोस्‍ट किया और कहा कि उन्‍हें मामले की गंभीरता का पता नहीं था, वह पुराने सारे ट्वीट डिलीट कर रहे हैं। उधर, इस मामले में प्रेस काउंसिल के अध्‍यक्ष मार्कंडेय काटजू की चुप्‍पी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। कई लोग ट्वीट के जरिए पूछ रहे हैं कि हर मामले पर राय देने वाले काटजू मीडिया की बड़ी हस्‍ती पर यौन शोषण का आरोप लगने और इसका शिकार भी एक पत्रकार के ही होने के बावजूद प्रतिक्रिया देने में देर क्‍यों कर रहे हैं?
 
तेजपाल पर उन्हीं के संस्थान की महिला पत्रकार ने यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया है। इस आरोप को तेजपाल ने स्वीकार भी किया है। इसके बाद वह छह माह की छुट्टी पर चले गए हैं।

क़ुरान का सन्देश

देश भर के टी वी चेनलो ..प्रिंट मिडिया और समाजसेवकों में बवाल ..

दोस्तों कवियों ..लेखको ..समाजसेवको ..चिंतको ..विचारकों ....पत्रकारों और देश के संविधान ...क़ानून के रक्षकों से एक जलता हुआ सवाल ...पत्रकार तरुणतेजपाल के खिलाफ वर्ष दो हज़ार तीन यानि दस साल पहले गोवा कि लिफ्ट में छेड़ छाड़ की एक शिकायत जिस पर तरुण तेजपाल की स्वीकारोक्ति फिर इस्तीफा ..बाद में देश भर के टी वी चेनलो ..प्रिंट मिडिया और समाजसेवकों में बवाल ..ज़बरदस्त भूचाल ..टी वी चेनलों में रोज़ प्रमुख खबर ...लेकिन ठीक एक हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज के खिलाफ पूरी तरह से यौनशोषण और दूसरी महिलाओं के साथ भी यों शोषण करवाने वाली महिला की कहानी सामने आयी ..लेकिन यह मुख्य खबर होने के बाद ही प्रिंट मिडिया और टी वी चेनलों से गायब ..इस खबर पर ना बुद्धिजीवियों ने चर्चा की ना किसी लेखक ..कवि ..चिंतक ने टिप्पणी की .....सभी जानते है तरुण तेजपाल और उनकी टीम स्टिंग ऑपरेशन करती है . .. कहीं यह दस साल पुराना आरोप और यह कहानी समाज को यह बताने के लिए तो नहीं के दस साल तक चुप रहने के बाद ओरत के दस साल बाद लगाये गए आरोपों में भूचाल क्यूँ होता है इसकी समय सीमा क्यूँ निर्धारित नहीं है और फिर एक जज जो सुप्रीम कोर्ट का जज रहा है उस पर पुख्ता आरोप के बाद भी मुक़दमा दर्ज होने के स्थान पर केवल जांच बिठाई जाती है और मिडिया से यह खबर अचानक गायब हो जाती है कहीं तरुण तेजपाल मीडिया की यह मनमानी ..यह सौदेबाज़ी ..यह पक्षपात ..और क़ानून का यह दोहरा मापदंड के साथ साथ समाज को यह सच तो बताना नहीं  चाहते के आखिर मर्द कब तक इस तरह से कई सालों पुराने आरोपों पर प्रताड़ित होता रहेगा ..आखिर आरोप की भी एक समय सीमा क़ानूनी रूप से अब होना ही चाहिए ताकि मर्दों के खिलाफ यह दस साल ..पन्द्राह साल ..बीस साल पुराने मामले बताकर उन्हें गिरफ्तार करने की क़ानूनी कार्यवाही में बदलाव आये शायद ऐसा हो सकता है शायद नहीं हो सकता ..लेकिन पक्षपात की तो पोल खुल ही गयी है क़ानून और पत्र्कारिता की है ना ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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