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08 दिसंबर 2013

१० दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस


इंसानी अधिकारों को पहचान देने और वजूद को अस्तित्व में लाने के लिए, अधिकारों के लिए जारी हर लड़ाई को ताकत देने के लिए हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार दिवस यानी यूनिवर्सल ह्यूमन राइट्स डे मनाया जाता है. पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों-सितम को रोकने, उसके खिलाफ संघर्ष को नई परवाज देने में इस दिवस की महत्वूपूर्ण भूमिका है.

क्या है 'मानव अधिकार'
किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार है. भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है.

भारत में 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में आया. 12 अक्‍टूबर, 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया.

आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं. जैसे बाल मजदूरी, एचआईवी/एड्स, स्वास्थ्य, भोजन, बाल विवाह, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार.देता है ...

१० दिसंबर को राष्ट्रसंघ की ओर से अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार का नाम दिया गया है। वर्ष १९४८ में आज ही के दिन राष्ट्रसंघ की महासभा की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणापत्र पारित किया गया। आज के दिन को मानवाधिकार के लिए विशेष किये जाने का उद्देश्य विश्व में शांति व सुरक्षा स्थापित करना और लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित बनाना है। राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में लोगों के अधिकारों का सम्मान वर्तमान समय में मानव समाज की एक चिंता है। पूरे इतिहास में ईश्वरीय आदेशों व शिक्षाओं के अनुसार लोगों के अधिकारों, प्रतिष्ठा और शांति व सुरक्षा की स्थापना पर बल दिया गया है। २० वीं शताब्दी में दो विश्व युद्ध हुए जिसके दौरान मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ वह भी पश्चिमी देशों की ओर से। मानव समाज के अधिकारों के उल्लंघन व हनन को रोकने के लिए राष्ट्रसंघ ने मानवाधिकार के अर्थों पर ध्यान दिया और अंततः १० दिसंबर वर्ष १९४८ को राष्ट्रसंघ की महासभा की बैठक ने इस संबंध में एक घोषणापत्र पारित किया। इस घोषणापत्र में मनुष्यों की प्रतिष्ठा, महिलाओं और पुरुषों के आधारभूत अधिकार जैसे विषयों पर बल दिया गया है। इसी प्रकार इस घोषणापत्र में आज़ादी, बराबरी, बंधुत्व और भेदभाव समाप्त करने पर भी बल दिया गया है। विश्व के अधिकांश देश मानवाधिकारों के घोषणापत्र से जुड़ गये हैं और सरकारों ने वचन दिया है कि वे इस घोषणापत्र के मूल सिद्धांतों के प्रति वचनबद्ध हैं। मानवाधिकार घोषणापत्र को संकलित हुए ६० से अधिक वर्षो का समय बीत रहा है पंरतु आज भी विभिन्न समाजों में मानवाधिकार की स्थिति व दशा इस बात की सूचक है कि सरकारों व देशों ने इस संबंध में कोई प्रगति नहीं की है और आज विश्व के बहुत से देशों में लोगों के प्राथमिक अधिकारों का हनन होता है। ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि मानवाधिकारों का घोषणापत्र पारित कराने में जहां पश्चिमी देशों ने महत्वपूर्ण भूमिका है वहीं ये देश मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले देशों की सूचि में पहले स्थान पर हैं। अमेरिकी सरकार जो प्रतिवर्ष दूसरे देशों में मानवाधिकार की स्थिति के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित करती है, दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करती है और कुछ देशों पर सैनिक आक्रमण करके उनका अतिग्रहण करती है। पिछले वर्ष राष्ट्रसंघ के मानवाधिकार आयोग की ओर से अमेरिका पर देश के भीतर और बाहर मानवाधिकारों के उल्लंघन का विभिन्न आरोप लगाया गया। हालिया दिनों में अमेरिकी सरकार "वॉल स्ट्रीट पर अधिकार करो" आंदोलन का दमन कर रही है, लोगों को मार रही है, उनके ऊपर मिर्च की स्प्रे डाल रही है, उनके तंबुओं पर बुल्डोजर चला रही है इसके अतिरिक्त अमेरिकी पुलिस इस आंदोलन में शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करने वाले लोगों के विरुद्ध नाना प्रकार की अमानवीय कार्यवाहियां कर रही है जिससे मानवाधिकारों की रक्षा के बारे में अमेरिका सरकार के दावों की कलई खुल जाती है। संक्षेप में यह है कि केवल मानवाधिकारों का घोषणापत्र संकलित करने से मानवाधिकारों की रक्षा नहीं होगी बल्कि सबसे महत्वपूर्ण चीज़ यह है कि मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरने वाली सरकारों को चाहिये कि वे अपनी कथनी और करनी में समानता उत्पन्न करें तथा इस विषय का प्रयोग दूसरे देशों पर दबाव डालने के हथकंडे के रूप में न करें।

क़ुरान का सन्देश

 
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