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26 दिसंबर 2013

संघ की दो हस्तियों ने 'दामोदरदास' को बनाया नरेंद्र मोदी



नई दिल्ली. बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदार मोदी लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक रहे हैं। संघ की शाखा से शुरू हुआ सामाजिक जीवन का सिलसिला आज भी जारी है।
 
वैसे तो नरेंद्र मोदी संघ, जनसंघ और बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं और पदाधिकारियों को अपनी प्रेरणा का स्रोत बताते रहे हैं। लेकिन संघ से जुड़ी रही दो हस्तियों-लक्ष्मण राव ईनामदार उर्फ वकील साहब और डॉ. प्राणलाल व्रजलाल दोषी उर्फ पप्पाजी  (तस्वीर में पत्नी के साथ) का खासतौर पर मोदी के जीवन पर बहुत गहरा असर रहा है। इन दोनों शख्सियतों ने मोदी की सोच और उनके काम करने के तरीके को प्रभावित किया। वकील साहब ने जहां मोदी का परिचय संघ से करवाया और उन्हें इस संगठन के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया, वहीं पप्पाजी ने मोदी के शब्दों में उन्हें समाज के लिए समर्पित होकर काम करने की प्रेरणा देते रहे।
2001 में नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद गुजराती भाषा में एक किताब लिखी थी। उस किताब का नाम 'ज्योतिपुंज' था। इस किताब के एक अध्याय में मोदी ने डॉ. प्राणलाल व्रजलाल दोषी उर्फ पप्पाजी को याद करते हुए उन्हें अपनी प्रेरणा का स्रोत बताया है। मोदी के मन में पप्पाजी को लेकर कितना आदर और सम्मान था, यह उनके शब्दों से ही पता चलता है। मोदी के शब्दों में, 'मुझे याद नहीं है कि मैं पहली बार कब पप्पाजी से मिला था। मैं उस लम्हे को याद नहीं कर पा रहा हूं। वह हमेशा आसपास होते थे। यही वजह थी कि वे विशेष थे। उनसे मेरी पहली मुलाकात से लेकर उनके निधन तक, कई दशकों तक मैं उन्हें जानता रहा। इस लंबे समय में भी वे कभी नहीं बदले। उनका व्यवहार, उनकी सोच यहां तक कि उनका शरीर। सभी कार्यों में, सभी संकटों में, कुदरत के कहर में उन्होंने अपना जीवट दिखाया। पप्पाजी ने कोलकाता (तब कलकत्ता) में डेंटिस्ट की पढ़ाई की थी।'
डॉक्टर होकर भी नहीं सोचा अपने बारे में 
 
नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रेरणा के स्रोत रहे डॉ. प्राणलाल व्रजलाल दोषी उर्फ पप्पाजी को याद करते हुए 'ज्योतिपुंज' नाम की किताब में लिखा है, 'पप्पाजी जिस दौर में कोलकाता (तब कलकत्ता) डेंटिस्ट की पढ़ाई करने के लिए गए थे उस दौर में कलकत्ता अभिजात्य समाज का प्रतिनिधि था। इस तबके के लिए क्लब में जाना, शराब पीना और कार्ड खेलने जैसी चीजें आम थीं। तब के राजकोट में भी कलकत्ता के कुछ लक्षण थे। वहां भी क्लब में जाना, शराब पीना, कार्ड खेलना समाज के संभ्रांत वर्ग के लिए आम बात थी। उस दौर में पप्पाजी राजकोट लौटे और अपनी प्रैक्टिस शुरू की। लेकिन उन्होंने खुद को ऊंचे तबके के शौक समझे जाने वाली चीजों से दूर रखा। राजकोट शहर का यह वह दौर था जब डॉक्टर समाज के ऊंचे तबके का हिस्सा थे। ऐसे समय में पप्पाजी ने स्व (खुद के हित) का त्याग कर खुद को संघ में पूरी तरह से रमा दिया। वे एक शानदार वक्ता थे। उनकी बातों का सार दिमाग में बसा रहता था। जब इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र का गला घोंटा तब देश जेल में तब्दील हो गया। पप्पाजी ने इंदिरा के खिलाफ संघर्ष किया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। वे तब तक बूढ़े हो चुके थे। उनके दोस्तों ने कहा कि आप परोल पर रिहा हो जाइए। लेकिन उन्होंने कहा कि जब मेरे साथी जेल में हैं, तो मैं कैसे बाहर आ सकता हूं।' 
मैं उनके सामने सिर झुकाता हूं 
 
नरेंद्र मोदी अपनी प्रेरणा के स्रोत रहे डॉ. प्राणलाल व्रजलाल दोषी उर्फ पप्पाजी को याद करते हुए लिखते हैं, 'गुजरात में संघ के पहले प्रांत संघचालक के तौर पर पप्पाजी ने आरएसएस का काम राज्य के कोने-कोने में फैला दिया। वे हमेशा कार्यकर्ताओं पर ध्यान देते थे। उनका मानना था कि आप अगर कार्यकर्ता पर ध्यान देंगे तो काम तो अपने आप हो जाएगा। 75 साल की उम्र में भी वे राजकोट से वलसाड के धर्मपुर तक की यात्रा रात भर बस में बैठकर करते थे। वहां जंगलों में आदिवासियों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को समझते और उनका समाधान करवाते थे। उन्होंने आदिवासी परिवारों को अपना परिवार बना लिया। उमरगांव से लेकर अंबाजी तक आदिवासियों की पूरी पट्टी पप्पाजी से भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई थी। उन्होंने संघ के सांस्कृतिक संदेश को आदिवासी इलाकों में गांव-गांव तक पहुंचाया। वे हम सबके लिए प्रेरणा और शक्ति का स्रोत रहे। मैं उनके सामने अपना सिर झुकाता हूं।'
वकील साहब 
 
लक्ष्मणराव ईनामदार को आरएसएस के स्वयंसेवक प्यार से वकील साहब (तस्वीर में) कहते थे। वकील साहब वह शख्सियत थे जिन्होंने गुजरात में संघ की जड़ें फैलाईं। 1958 में गुजरात के वडनगर में कुछ बाल स्वयंसेवकों को संघ में शामिल किया गया था। संघ में शामिल हुए इन बाल स्वयंसेवकों में एक नाम नरेंद्र मोदी का भी था। वे तब 8 साल के थे। हालांकि, बाल स्वयंसेवक बनने के कुछ साल मोदी लक्ष्मणराव ईनामदार से दूर हो गए। लेकिन 1974 में वे एक बार फिर उनके संपर्क में आए। मोदी के आधिकारिक जीवनीकार एमवी कामत ने अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी द आर्किटेक्ट ऑफ मॉडर्न स्टेट' में मोदी के हवाले से लिखा है, '1974 में नवनिर्माण आंदोलन के दौरान आरएसएस के अहमदाबाद कार्यालय हेडगेवार भवन में वकील साहब ने मुझे रहने के लिए आमंत्रित किया। वहां वकील साहब करीब 12 से 15 लोगों के साथ रहते थे। मेरा रोजमर्रा का काम प्रचारकों के लिए चाय और नाश्ता बनाने के साथ शुरू होता था। उसके बाद पूरी बिल्डिंग के करीब 8-9 कमरों में झाड़ू लगाता था। मैं अपने और वकील साहब के कपड़े भी धोता था। यह सिलसिला करीब एक साल तक चला। इस दौरान मेरी मुलाकात संघ के कई नेताओं और पदाधिकारियों से हुई।' मोदी के बारे में कहा जाता है कि वे वकील साहब को आज भी नहीं भूले हैं। 

क़ुरान का सन्देश

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