आपका-अख्तर खान

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02 फ़रवरी 2014

दोस्तों देश में अगर महिलाओं को नसीहत देने की बात करें तो महिला आयोग की डाँट फटकारो और महिला संगठनों का विरोध शुरू हो है अब तक सलीक़े के कपड़े पहनने ,,रात बिरात में सावधानी बरतने की समझाइश वाले बयानों पर इसी तरह की आपत्तियां आई है

दोस्तों देश में अगर महिलाओं को नसीहत देने की बात करें तो महिला आयोग की डाँट फटकारो और महिला संगठनों का विरोध शुरू हो है अब तक सलीक़े के कपड़े पहनने ,,रात बिरात में सावधानी बरतने की समझाइश वाले बयानों पर इसी तरह की आपत्तियां आई है ,,,लेकिन कई जगहों पर डर ,,खौफ या फिर स्थानीय परम्परा दिखावे के तोर पर घूँघट और बुर्क़े परदे पर महिला आयोग ने आज तक कोई ऐतराज़ नहीं जताया है ना ही महिलाओं को बुर्क़े परदे घूँघट के झंझट और दिखावे से आज़ाद कराया है।,,बुर्क़ा और पर्दा आँख की शर्म और हया का होता है दिखावे का नहीं ,देश के कई ऐसे शहर ऐसे गाँव ऐसे क़स्बे है जहां परम्परा की वजह से बुर्क़ा ओढ़ा जाता है ,,घूँघट निकाला जाता है पर्दा किया जाता है ,,,अफ़सोस तो तब होता है जब ऐसे शहरों की ओरते अपने शहर में बुर्क़े ,,पर्दे और घूँघट की पूरी एहतियाती नोटंकी करती है ,,इनके परिजन इनके साथ ऐसा करने के लिए सख्ती करते है और ऐसा नहीं करने पर नाक कट जाना ,,बेशर्म हो जाने जेसे ताने देते नज़र आते है लेकिन यही लोग यही महिलाये ,,यही पुरुष अपने परिवार के साथ जब अपने स्थान को अपने शहर को छोड़ कर दूसरे शहर में जाते है तो यक़ीन मानिये वहाँ इनका घूँघट ,,पर्दा और इनका बुर्क़ा गायब हो जाता है ,,अब आप ही बताइये अगर एक महिला या बच्ची या फिर लड़की,,,बहु बेटी जो भी हो अपने शहर अपने क़स्बे में बुर्क़ा ,,पर्दा और घूँघट का सख्ती से पालना कर रही है उसके घर के मर्द और परिजन ऐसा करने के लिए मजबूर कर रहे है और ऐसा नहीं करने पर तानेबाजी और ऐतराज़ात कर रहे है और यही लोग अपने शहर से बाहर जाते ही सारी शर्म ,,सारे बुर्क़े ,,सारे घूँघट सब ताक़ में रख कर सुकून से एक आम ओरत की तरह घुमंते है ज़िंदगी का लुत्फ़ लेते है ऐसे में फिर ऐसे दिखावे के बुर्क़े ,,परदे ,,घूँघट का क्या ,,महिला आयोग को इस कुप्रथा जबरिया बुर्क़ा और पर्दे की मजबूरी के मामले में सर्वेक्षण कर इस मामले में महिलाओं को दिखावटी बुर्क़े परदे से आज़ाद करना चाहिए जो महिला अपने शहरे में आज़ाद न घूम सके और दूसरे शहरे में बुर्क़ा उतार पर्दा उतार घूँघट उतार आज़ादी से घूमना चाहती है निश्चित तोर पर उसे अपने शहर में इस दिखावे से घुटन होती है इसलिए यह परम्परा और ज़िद किसी महिला की आज़ादी को छीने उसे बुर्क़े परदे घूँघट के लिए मजबूर करे यह गलत है ,,,,,,,,,,,,,,,,वेसे भी अगर धर्म परम्परा की बात करे तो महिला के लिए धर्म परम्परा में तो बस सजना संवारना उसेक पति के लिए ही है फिर धार्मिक ऐतेबार से तो महिलाओं का घर के अलावा बाज़ार या पार्टियों में जाते वक़त सजने संवारने पर पाबंदी हो जाती है ,,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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