नई दिल्ली। दिल्ली के जिस
जनलोकपाल विधेयक को असंवैधानिक बताया जा रहा है, उसे पास कराने को लेकर अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अड़ गए हैं। उन्होंने इस मसले पर
दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) नजीब जंग को एक चिट्ठी लिखते हुए
कठोर सवाल किए हैं। केजरीवाल ने एलजी से पूछा है कि बिल भेजे जाने से पहले ही आखिर क्यों सॉलिसिटर जनरल से राय ली गई।
केजरीवाल ने अपनी चिट्ठी में उपराज्यपाल को बिल पर उठाए जा रहे सवालों के
जवाब भी दिए हैं। उन्होंने 'अगर कुछ बुरा लगे तो' इसके लिए एलजी से माफी भी मांगी है
(पढें, पूरी चिट्ठी)।
केजरीवाल ने चिट्ठी में बिल को लेकर उठ रहे दो बड़े सवालों के जवाब दिए:
पहला सवाल- क्या दिल्ली जनलोकपाल बिल असंवैधानिक है ?
केजरीवाल का जवाब – इस बिल को ड्राफ्ट करने के लिए एक
उच्चस्तरीय कमेटी बनी। दिल्ली के मुख्य सचिव इस कमेटी के अध्यक्ष थे।
अन्य सदस्यों के अलावा इस कमेटी में दिल्ली के विधि सचिव, वित्त सचिव,
गृह सचिव और जाने माने वकील राहुल मेहरा भी शामिल थे। इन सब ने मिलकर कानून
का पहला मसौदा तैयार किया। उस मसौदे को हर विभाग में भेजा गया और हर विभाग
की उस पर राय ली गई। उनकी राय के आधार पर कानून में कई बदलाव भी किए गए और
अंतत: कानून मंत्रालय ने अंतिम मसौदा तैयार किया गया, जिस पर कैबिनेट में
विस्तार से चर्चा हुई। फिर, सॉलिसिटर जनरल ने उस कानून को बिना पढ़े
असंवैधानिक कैसे करार दिया?
दूसरा सवाल- क्या दिल्ली जनलोकपाल बिल को विधानसभा में प्रस्तुत करने से पहले केन्द्र सरकार को मंजूरी जरूरी है ?
केजरीवाल का जवाब – मीडिया के अनुसार सॉलिसिटर जनरल साहब का
कहना है दिल्ली विधानसभा में कानून को प्रस्तुत करने से पहले केन्द्र
सरकार की मंजूरी लेनी होगी। लेकिन संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा। तीन
विषयों को छोड़कर संविधान दिल्ली विधानसभा को अन्य सभी विषयों पर कानून
बनाने का पूरा अधिकार देता है। यदि दिल्ली विधानसभा कोई ऐसा कानून पास
करती है, जिसकी कुछ धराएं किसी केन्द्रीय कानून के खिलाफ हैं तो ऐसे कानून
को दिल्ली विधानसभा में पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी की
जरूरत पड़ेगी।
ऐसा संविधान की धारा 239 ए (3) (सी) में लिखा है। संविधान में कहीं
नहीं लिखा है कि दिल्ली विधानसभा को विधानसभा में कानून प्रस्तुत करने से
पहले केन्द्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने एक
आदेश जारी किया हुआ है, जिसके तहत उन्होंने दिल्ली सरकार को आदेश दिया है
कि दिल्ली विधानसभा में बिल पेश करने से पहले केन्द्रीय सरकार से मंजूरी
लेनी होगी। जाहिर है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय का यह आदेश गैर
संवैधानिक है। दिल्ली विधानसभा का अधिकार क्षेत्र संविधान ने तय किया है।
क्या केन्द्रीय गृह मंत्रालय एक आदेश पारित करके उस पर अंकुश लगा सकता है
? यदि हर कानून पास करने के पहले केन्द्र सरकार से अनुमति लेनी हो तो
दिल्ली में चुनाव कराने की क्या जरूरत है? यह तो सीधे-सीधे दिल्ली की
जनता और दिल्ली विधानसभा की स्वायत्ता पर हमला है।
जैसे आपने सॉलिसिटर जनरल की राय ली है वैसे ही दिल्ली सरकार ने भी
देश के तीन जाने-माने वकीलों और रिटायर्ड चीफ जस्टिस की राय ली है। इन
चारों महानुभावों का मानना है कि गृह मंत्रालय का आदेश गैर संवैधानिक है।
उन चारों के नाम हैं-जस्टिस मुकुल मुदगल, पीवी कपूर, के एन भट्ट और पिनाकी
मिश्रा। इनकी राय मिलने के बाद दिल्ली कैबिनेट ने 3 फरवरी 2014 को
प्रस्ताव पारित करके केन्द्रीय गृह मंत्रालय के उस आदेश को वापस लिए जाने
की सिफारिश की और उसे न मानने का निर्णय लिया।
केजरीवाल ने यह भी लिखा कि यह सब बातें मैं आज आपसे मिलकर बताना चाह
रहा था, लेकिन उससे पहले ही कल मीडिया में सॉलिसिटर जनरल की राय लीक हो गई।