आपका-अख्तर खान

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17 मार्च 2014

मोलवी गिरी मोलाना गिरी छोडो और फिर सियासी रूप से आज़ाद होकर जिधर चाहे उधर जाइये और प्रचार करिये किसी को कोई ऐतराज़ नहीं रहेगा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

इस्लाम में  जिन मोलवी मौलानाओं को दीनी तालीम देने लायक़ बनाया है ,,जिन इमामों को नमाज़ पढ़ाने का दर्जा दिया है ऐसे  दीन के जानकार अगर दिनी तब्लीग को छोड़कर सियासत में जुड़कर खुद को बेच दे और हुलिया इस्लाम का बना कर इस्लाम को बदनाम करे अपने हुलिये के इस्लामिक तोर तरीक़े बताकर सियासी तोर पर रूपये और  सियासी पदों की सौदेबाज़ी करे तो ऐसे लोगों के लिए दुनिया तो क्या जहन्नुम में भी जगह नहीं है ,,,,,,,,,,,,ऐसा तो क़ुरान और हदीस की तालीम से निकल कर आता है फिर भी यह मोलाना ,,,मोलवी ,,,इमाम ,,जो इस्लाम आम मुसलमान से ज़यादा समझते है सियासी गुलामी और सौदेबाज़ी का जुर्म खूब करते है अल्लाह से डरते नहीं और दुनियावी लोगों से डर कर उनके सामने खुद को इस्लामिक हुलिया बनाकर बेच कर पार्टियों के ब्रांड एम्बेसेडर प्रचारक बनने का गुनाह करते है अल्लाह तोबा ऐसे लोगों को खुदा अक़ल दे ,,अगर सियासत करना है तो फिर तब्लीग का हुलिया इस्लाम का हुलिया हटा कर आम हुलिया बनाओ मोलवी गिरी मोलाना गिरी छोडो और फिर सियासी रूप से आज़ाद होकर जिधर चाहे उधर जाइये और प्रचार करिये किसी को कोई  ऐतराज़ नहीं रहेगा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

दोस्तों कितने शर्म की बात है ,निर्भीकता से आज़ादी की लड़ाई लड़कर देश को आज़ाद कराने वाला वकीलों का तबक़ा आज किसी ना किसी तरह सियासत का गुलाम हो गया है

दोस्तों कितने शर्म की बात है ,निर्भीकता से आज़ादी की लड़ाई लड़कर देश को आज़ाद कराने वाला वकीलों का तबक़ा आज किसी ना किसी तरह सियासत का गुलाम हो गया है और हालात यह है के खुद वकील अपनी मुसीबतों से जूझ रहे है ,,ना  वकीलों की सुरक्षा है ,,ना उन्हें सुविधाएं है ,,ना अदालते है ,,ना अदालतों में उनके बैठने की वाजिब जगह है ,,न किताबे है ,,अदालत है तो जज नहीं है ,,,,जज है तो उनका व्यवहार वकीलों से अभद्रता वाला है ,,,ना केंटीन है ,,,ना रहने के लिए ठीक तरह का घर ,,,,कुल मिलाकर देश को आज़ाद कराने वाला यह तबक़ा जो देश को देश के शोषित पीड़ितों को न्याय दिला रहा है सभी पार्टियों में अपना महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व रखता है लेकिन शेम शेम कहने को जी चाहता है के चाहे कोंग्रेस हो चाहे भाजपा या कोई और दल हो इन दलों में बेठे वकीलों के प्रतिनिधियों ने वकीलों की समस्याओं और समाधान के बारे में नहीं सोचा है ,,खुद को दलाल बना लिया और वकीलों को मज़ाक़ बना दिया है ,,,,,,,,दोस्तों हमारे सामने एक नयी आज़ादी की अपने हक़ों की लड़ाई है ,,हमे आने वाले लोकसभा चुनाव में अपना परचम लहराना होगा वकील कोई आम वोटर नहीं वोह  नेतृत्व करता है इसे हमे करके दिखाना होगा ,,ना कोंग्रेस ना भाजपा ना जनता दल न सपा बस वकील और वकीलों की समस्या और उनके समाधान की लड़ाई एक जुट होकर हमे लड़ना है ,,,अभी कोटा में एक मंत्री जी ने वकीलों में ही कुछ दलाल छोड़ कर वकीलों का अपमान करने का प्रयास क्या था सत्ता के नशे में चूर इन जनाब मंत्री जी ने खुद को खुदा समझ  लिया था लेकिन धन्य हो कोटा के वकीलों की एकता के इन जनाब को खुदा से ज़मीन पर पटखनी देकर कोटा के वकीलों ने रास्ते का पत्थर बना दिया और वकीलों के जोहर को क़ायम रखा ,,,कोटा के वकीलों को बधाई मुबारकबाद ,कोटा में भाजपा के विधायक वकीलों के आंदोलन के वक़त आंदोलन स्तर पर आये वकीलों की एक एक मांग को जायज़ बताया और सरकार बनते ही इन समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा जी ने अपने भाषण में सार्वजनिक रूप से वकीोलों की मानगो को जायज़ बताते हुए सरकार आने पर इन्हे स्वीकार करने का भरोसा दिलाया ,,,,,कहा गया वोह भरोसा ,,कहा गया  आश्वासन इन भाजपा के विधायकों भाजपा की मुख्यमंत्री का और कहा गया वकीलों का वोह जोश जो कोंग्रेस सरकार के खिलाफ उफान बनाकर उबला था और अब जी हुज़ूरी में लगा है कोई आंदोलन नहीं अपनी मांगों के समर्थन में कोई  सुगबुगाहट नही हेरान है सभी वकील इन बातों को लेकर खेर चुनाव  आचार संहिता है इंतिज़ार कर लेंगे लेकिन चुनाव के पहले अगर वकील अपनी मांगो के समर्थन में अपना वुजूद नहीं दिखाएँगे तो फिर उन्हें उना हक़ मिलना तो दूर उनका वुजूद ही खतरे में पढ़ जाएगा ,कोंग्रेस के शासन में राजस्थान के वकीलों ने जयपुर आंदोलन क्या ,,,वकीलों और जजों पर राजस्थान सरकार के निर्देशों पर लाठियां बरसाई गयी कई लोग लहुलुहान हुए ,,आंदोलन ने उग रूप लिया और राजस्थान सरकार ने एक लिखित समझोता वकीलों से क्या ,आज राजस्थान बार कोंसिल के लोग वकील सत्ता में मंत्री है ,,सांसद है ,,,भाजपा में पदाधिकारी है प्रवक्ता है लेकिन वकीलों की समस्या वोह नहीं उठा रहे है इसे हमे देखना होगा उनके हमे कान उमेठना होगे और हमारी समस्याओं को उजागर कर उन्हें मनवाने के लिए टेडी ऊँगली करना होगी आज भारत की बार कोंसिल सर्वोच्च वकीलों की संस्था के अध्यक्ष बीरी सिंह सिनसिनीवार राजस्थान के है इसका हमे फायदा लेना होगा और राजस्थान में भाजपा सरकार को धमकाना होगा इनके नेताओं का गिरेहबान पकड़ कर इन्हे याद दिलाना होगा के तुमने हमसे क्या वायदे किये थे ,,,,भाजपा में बेठे वकीलों के प्रतिनिधियों को पकडन होगा ,,यही हाल हमे दिल्ली के लोकसभा चुनाव में करना होगा ,,वर्ण हमे इनके चुनाव आवेदन नहीं भरना चाहिए इनका  चाहिए ,,राजस्थान मैबरील दो हज़ार बारह में आंदोलन के दोरान कोंग्रेस की सरकार ने बार कोंसिल के चेयरमेन संजय शर्मा के साथ कुछ समझोते किये थे जिनकी क्रियान्विति के लिए आज तक भी कोई पहल नहीं की गई है ,,,,,कोटा के एडवोकेट जमील अहमद द्वारा सुचना के अधिकार अधिनियम प्रावधान के तहत समझोते के बिंदुओं की प्रति प्राप्त की है जिसमे निम्न समझोे हुए ,,,,,,,,,,,सम्पूर्ण राजस्थान के वकीलों को न्यूनतम दर पर सभी स्थानों पर एडवोकेट कॉलोनी बनाकर देने ,,,,,,पांच साल से कम अनुभव वाले अधिवक्ताओं को दो हज़ार रूपये प्रतिमाह स्टाई फंड देने ,,,,,,,,राजस्थान अधिवक्ता कल्याण कोष में दस करोड़ रूपये का अनुदान देने ,,,अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम बनाये जाने ,,,,राजस्थान राजव बोर्ड में सदस्यों की  नियुक्तियों में अधिवक्ताओं को प्रतिनिधित्व देने ,,,ज़िला  उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष पदों पर पचास प्रतिशत पदों पर अधिवक्ताओं को नियुक्त करने ,,,,,,ज़िला और तहसील ,,क़स्बा स्तर की अदालतों में वकीलों के लिए सरकारी खर्च पर पुस्तकालय बनाने ,,,,जयपुर और जोधपुर ,,अजमेर में सरकारी खर्च पर अधिवक्ता भवन बनाये जाने ,,,,,,,राजस्थान के ट्रिब्यूनल में अधिवक्ताओं को नियुक्त करने ,,,राजस्थान में वकीलों के लिए पेंशन योजना लागू करने ,,, अधीनस्थ न्यायलों में मुलभुत ढांचा उपलब्ध कराने समस्याओं का सामधान करने ,लोकअभियोजक और सहायक लोक अभियोजक के लिए न्यूनतम आयु सीमा पेंतीस साल से बढ़ाकर चालीस साल करने ,,,जोधपुर नेशनल यूनिवर्सिटी में राजस्थान के छात्र छात्राओं का आरक्षण करने ,,,सहित कई मांगे शामिल थी जिनपर भाजपा सरकार द्वारा आजतक सत्ता में आने के बाद कोई अमल नहीं क्या है अफ़सोस तो यह है के भाजपा में वकीलों के प्रतिनिधियों ने भी सरकार का ध्यान इस तरफ नहीं दिलाया है ,,,,,,,ऐसे में राजस्थान के वकीलों को लोकसभा चुनाव के पहल अंगड़ाई लेना होगी और आर पार की लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ते हुए जो हमारी मांगे पूरी करा उसके साथ हम रहेंगे का अभियान चलाना होगा ,यही आंदोलन देश भर में सभी राज्यों में वकीलों के हक़ की लड़ाई को लेकर हमे चलाना होगा ,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

157 चुनाव हारने के बाद अब मोदी को चुनौती देंगे पद्माराजन

कोझिकोड: क्या आप उस शख्स से मिलना चाहेंगे जो अब तक किसी चुनाव में नहीं जीता, बावजूद इसके वह हर बार बड़े और लोकप्रिय नेताओं को उनके राज्यों में जाकर चुनौती देता है। देश के अधिकांश चुनावों में हिस्सा लेने के लिए डॉ के. पद्माराजन को लिम्का बुक ऑफ रिकाडर्स में शामिल किया गया है। बीते 25 सालों से भारत के लोकतंत्र उत्सव में हिस्सा ले रहे के. पद्माराजन 157 चुनावों में मिली हार को अपनी तरह का अनूठा सम्मान मानते हैं।
 
चुनावों में अब तक 12 लाख की जमापूंजी गंवा चुके पद्माराजन पेशे से होम्योपैथिक डॉक्टर हैं। वे अब बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने जा रहे हैं। 17 अप्रैल को वाराणसी पहुंचकर वे अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। लेकिन इससे पहले हर चुनाव की तरह वे सबरीमाला के दर्शन करेंगे। और उससे भी पहले वे अपनी स्थानीय सीट धरमपुरी (तमिलनाडु) से चुनाव में अपनी उम्मीदवारी के लिए ताल ठोकेंगे।
प्रणब मुखर्जी, मनमोहन को भी दी चुनौतीः 
बतौर निर्दलीय उम्मीदवार पद्माराजन ने बीते 25 सालों में देश के 2 राष्ट्रपति, 3 प्रधानमंत्री, 11 मुख्यमंत्री, 13 केंद्रीय मंत्रियों और 14  राज्यमंत्रियों के खिलाफ चुनाव में परचा दाखिल किया है। अपनी बुलंद आवाज और हंसमुख चेहरे से सभाओं में भीड़ खींचने में माहिर पद्माराजन ने देश के तीन प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिंहराव, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ मनमोहन सिंह के साथ-साथ एके एंटनी, एम करुणानिधि, जयललिता, वाईएस राजशेखर रेड्डी के अलावा पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन और मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी उनके राज्यों में जाकर चुनावी चुनौती दी है। 
 
ताकि देश समझें अपने वोट की ताकतः 
लगातार 157 चुनाव हारने के बाद भी चुनाव क्यों लड़ रहे हैं, पूछने पर पद्माराजन कहते हैं कि मेरा हर चुनाव में खड़ा होना देश की जनता को मिले उस अधिकार को प्रदर्शित करता है, जिसके तहत वह बड़े से बड़े व्यक्ति को मत-युद्ध के लिए चुनौती दे सकता है। लोगों को उनके वोट देने के अधिकार और उसकी ताकत का अंदाजा होना चाहिए खासकर तब, जब सक्षम व्यक्ति ही चुनावों में हिस्सा न ले रहा हो।
अपहरण तक हुआ, फिर भी नहीं मानेः
डॉ पद्माराजन पहली बार 1988 में तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में मेत्तूर सीट से सीपीएम के एम. श्रीरंगन के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़े हुए थे। तबसे लेकर अब तक उनकी चुनावी यात्रा जारी है। लेकिन चुनावों में कई छुपे खतरे भी होते हैं, यह उन्हें तब पता चला जब 1991 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव के खिलाफ नांदयाल उप चुनाव में खड़े होने की ठानी।
 
वे बताते हैं कि नामांकन दाखिल करने के पहले ही दिन जब वे राव के खिलाफ नामांकन दाखिल करने करनूल कलेक्ट्रेट जा रहे थे, तभी कुछ लोग, जो शायद कांग्रेस कार्यकर्त्ता थे, आए और उनका अपहरण कर किसी अज्ञात जगह ले गए। उस समय कांग्रेस किसी भी तरह से राव की जीत चाहती थी और मैं इसमें बाधक बन सकता था। मैं ईश्वर की दया के चलते किसी तरह बच सका वो भी तब, जब बीजेपी उम्मीदवार ने राव के खिलाफ नामांकन दाखिल कर दिया। उस दिन अहसास हुआ कि भारत में चुनाव और वोट की ताकत क्या अहमियत रखते हैं।

पाकिस्तान और चीन की तुलना में तिगुनी तेजी से हथियार खरीद रहा है भारत



पेरिस: स्वीडिश थिंक टैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत हथियार खरीद के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा मुल्क बन गया है। इतना ही नहीं, इस अंधाधुंध खरीद में उसने प्रतिद्वंदी चीन और पाकिस्तान को भी पीछे छोड़ दिया है। वह दोनों पड़ोसी मुल्कों की तुलना में  तीन गुना ज्यादा हथियार आयात कर रहा है। 
 
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, अगर 2009 से 2013 के पांच साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत ने हथियार खरीद में 14 फीसदी का इजाफा किया है। बीते पांच सालों में उसके बड़े हथियार आयात करने की दर 111 फीसदी रही। यह पूरी दुनिया का 7 से 14 फीसदी हिस्सा है। 
 
2010 में भारत ने तेजी से हथियार आयात करते हुए चीन को भी पछाड़ दिया था। भारत का घरेलू रक्षा उद्योग इन दिनों कम उत्पादन की मार झेल रहा है। वहीं, चीन से बेहतर हथियारों और सुरक्षा संबंधी कारणों से भारत को नए हथियार खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

क़ुरान का सन्देश

नरेंदर मोदी ने अपने हुनर और ताक़त के बल पर खुद को आकाश कर लिया है

नरेंदर मोदी देश के एक ताक़तवर सियासी लीडर के रूप में उभरे है ,,आज स्थिति यह है के उन्होंने सियासत में खुद को आकाश कर लिया है ,,भाजपा हो या फिर आर एस एस हो अगर इनमे से नरेंदर मोदी का नाम माइनस कर दिया जाए तो देश में इन दोनों सियासी और सामाजिक संगठनों का  वुजूद कोई महत्व नहीं रह जाता ,,,,नरेंदर मोदी की यह क़ाबलियत ही कहेंगे के उन्होंने पहले भाजपा को नहीं चाहकर भी नमो नमो करने पर मजबूर क्या फिर आर एस ऐस को झटका देकर नमो नमो करने पर मजबूर क्या ,,,,,,मोदी  मेनेजमेंट और मोदी तिलिस्म का ही नतीजा है के भाजपा के अध्यक्ष  चाहे राजनाथ सिंह हो लेकिन संगठन में होता वही है जो मोदी चाहते है ,,मोदी ने चाहा बनारस से टिकिट मिले  मुरली मनोहर  जोशी जेसे वरिष्ठ नेता छाती पीट पीट कर मर गए लेकिन हुआ वही जो मोदी ने चाहा ,,,टिकिट मोदी की मर्ज़ी से संघ के प्रमुख मोदी की मर्ज़ी से बयानबाज़ी कर रहे है ,,कुल मिलाकर संघ और भाजपा का रिमोट कुछ नहीं होते हुए भी मोदी के हाथ में है ,,,,मोदी मेनेजमेंट का ही नतीजा है के भाजपा और संघ के सिद्धांतों के खिलाफ एक मुख्यमंत्री रहते हुए भी वोह प्रधानमंत्री पद की दावेदारी जता रहे है और मुख्यमंत्री पद से भी इस्तीफा नहीं दिया है ,,,,,,,,महाराष्ट्र में शिवसेना को धूल चटाई तो बिहार और उत्तरप्रदेश में नमो नमो का जाप करवा कर भाजपा संगठन और संघ के फैसले के खिलाफ अपनी मर्ज़ी से गठबंधन क्या ,,इतना ही नहीं येदियुरप्पा को साथ रखा टिकिट दिया ,,,,,,,,इन दिनों नरेंदर मोदी ने अपनी जुबां भी क़ाबू में रखी है अपने नाटकीय किन्तु आकर्षक भाषणों में उन्होंने साम्प्रदायिक ,,अलगाववाद ,,हिंसा जेसी आपत्तिजनक बातें नहीं की है ,,,,,संघ की मर्ज़ी के खिलाफ उन्होंने सवदेशी अपनाने और सवदेशी योजनाओं को बढ़ाने की बातों को भाजपा के एजेंडा से हटवा दिया है ,,,,,,,,,,,,,,,,,चुनाव में कोन हारेगा कोन जीतेगा यह तो देश की जनता तय करेगी जो वक़त बतायेगा लेकिन वर्त्तमान में तो नरेंदर मोदी ने अपने हुनर और ताक़त के बल पर खुद को आकाश कर लिया है और भाजपा   सहित आर एस एस को अपने अधीनस्थ कर दिखाया है ,,,,,,,,,अखतर खान अकेला कोटा राजस्थान
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