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07 अप्रैल 2014

सुबह का क़त्ल होने से पहले बयान सुन लो

"इस मुस्कुराती सुबह का क़त्ल होने से पहले बयान सुन लो
जजवात मेरे तेरी जागीर नहीं हो सकते
रिश्ते तो रिश्ते हैं जंजीर नहीं हो सकते
जिन्दगी की हर गुमनाम सी गुंजाइश की नुमाइश करते लोग सुन लो
देह से होकर गुजरते रास्ते रिश्ते नहीं हो सकते
वह जो सूरज है जिन्दगी की रात में क्यों डूब जाता है ?
रोशनी क्यों बिक रही थी बस्तियों में रात को
तुलसी के पौधे पर अगरबत्ती जलाते लोग रातरानी की सुगंधें सोचते है
रात को बदनाम किसने कर दिया है
एक सूरज जल उठा है और तुम ठन्डे पड़े हो
धूप से सहमे हुए हो, चांदनी चर्चित है क्यों ?
आत्मा के आवरण को व्याकरण किसने कहा ?
सूरज के पिघलने पर धूप बहती है पहाड़ों से
वहां एक झरना फूटा है
शब्द बहते हैं वहां संकेत के
कह रहे है इस सुबह के क़त्ल में साजिश तुम्हारी है
धूप चिल्लाने लगी है अब सड़क पर
याद रखना सत्य का संगीत रागों से परे है
इस मुस्कुराती सुबह का क़त्ल होने से पहले बयान सुन लो
जजवात मेरे तेरी जागीर नहीं हो सकते " ----राजीव चतुर्वेदी

तुम्हारी हर कहानी

तुम्हारी हर कहानी
हर व्यथा -किस्से कथा -
सुनने को .
तेरी पथराई हुई आँखों में
कल के सपने बुनने को -
मैं हूँ न !

गुलशन से पुष्प कमल चुनने को
विजय के हार सजाने को -
तेरे साथ हर जंग में कंधे से कंधे मिला
लड़ जाने को -
मैं हूँ ना !!!

धूप मैं साया बन जाने को -
बाग़ से कच्ची अमिया चुराने को
तुझे हर फ़िक्र से बचाने को -
मैं हूँ ना !!

वैसे ही जैसे पृथ्वीराज के संग -
चन्द्रबरदाई - अर्जुन के संग
कृषण कन्हाई-
अरे हम तुम अलग अलग
कहाँ है भाई .

"चिराग जलने को है

"चिराग जलने को है
चरागाहों से शब्द लौट रहे हैं बेमन से
पेट में भूख लिए भावना में हूक लिए
शब्द भूखे रहे तो निःशब्द हो जायेंगे
और फिर न शोर होगा न संगीत न साहित्य
शब्द जब अर्थ खो बैठें तो उनका मर जाना ही बेहतर
और उसके बाद किसी आहट का अनुवाद नहीं होगा
वैसे भी इस दौर में दौरे पड़ रहे हैं लोगों को
और शब्दों के संक्रमण को साहित्य कहने लगे हैं लोग
मरीचिका में परी स्नान करके लौटती हो जैसे किसी कुत्सित कल्पना में
संक्रमण को साहित्य समझने वालो
आत्ममुग्धता की मरीचिका से उबरो
विकिरण की व्याख्या में साहित्य छिपा है
चिराग जलने को है
चरागाहों से शब्द लौट रहे हैं बेमन से
पेट में भूख लिए भावना में हूक लिए
शब्द भूखे रहे तो निःशब्द हो जायेंगे ." ----- राजीव चतुर्वेदी

"क़यामत तो उस दिन होगी

"क़यामत तो उस दिन होगी
जिस दिन पूरी कायनात के क़त्ल हो चुके लोग एक साथ खड़े हो जायेंगे
और चीख कर पूछेंगे ---
भगवान् तू क्यों था कातिलों पर मेहरवान
किसी खुदा का खौफ अब मुझको नहीं
खून से सना यह खुदा तेरा है मेरा नहीं

फूल कली मकरंदों की तुम बात न करना,
इस कोलाहल में हत्यारे हमको हैं प्यारे
भगवान् वही बन पाया जिसके हाथों में हथियार बहुत थे
ह्त्या का अधिकार उसे था
शान्ति कभी पूजी थी हमने ?--- यह बतलाओ
भय का यह भूगोल समझ लो
सफदरजंग बड़ा कातिल था उसके नाम अस्पताल है
अल्लाह उनके लिए महान है घर- घर उनके सूफियान है
इतिहासों में दर्ज इमारत को तुम देखो
हर मजहब की दर्ज इबारत को तुम देखो
मजहब का हर हर्फ़ लहू से लिखने वालो
आंधी की दहशत से दीपक सहमे तो हैं
सच्चाई की शहतीरों पर तहरीरों को दर्ज करो तुम
क़त्ल हो चुके लोगों की रूहें चीख रही हैं
मंदिर की आवाज़े मस्जिद की नवाज की नैतिकता नृशंस है कितनी
कातिल को भगवान् बताने वालो बोलो ---यह मजहब तेरा है
मेरा कैसे होगा ?---मैं तो क़त्ल हुआ था
मेरे खून के धब्बे धर्म तुम्हें लगते हैं
शब्द हैं तेरे , संसद तेरी, शास्त्र तुम्हारे, शर्त तुम्हारी, सूत्र हैं तेरे ,शरियत तेरी
तुम शातिर हो, सूफियान हो, अल्लाह तुम हो, भगवान् हो
मैं ज्ञानी हूँ, मैं ही दानी बब्रूवाहन का आवाहन कौन करेगा ?
हर प्रबुद्ध के युद्ध को देखो ...हर टूटी प्रतिमा जो टूटी प्रेम की प्रतिमा सी दिखती है
क़त्ल कर दिए बच्चों पर जो बिलख रही हर औरत मुझको फातिमा सी दिखती है
क़त्ल हो चुके कर्ण से पूछो
धर्म -कर्म के बीच की दूरी आज उत्तरा के आंसू में उत्तर खोज रही है.
क़यामत तो उस दिन होगी
जिस दिन पूरी कायनात के क़त्ल हो चुके लोग एक साथ खड़े हो जायेंगे
और चीख कर पूछेंगे ---
भगवान् तू क्यों था कातिलों पर मेहरवान
किसी खुदा का खौफ अब मुझको नहीं
खून से सना यह खुदा तेरा है मेरा नहीं." ----राजीव चतुर्वेदी
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