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05 मई 2014

ये है दुनिया की सबसे बुजुर्ग महिला, उम्र है 117 साल, जानें कहां रहती हैं ये



लीमा। दक्षिण अमेरिकी देश पेरू की एक महिला का दावा है कि वह दुनिया की सबसे बुजुर्ग इंसान है। फिलोमेना ताइपे मेंडोजा की उम्र 116 साल है और इसे साबित करने के लिए उनके पास आईडी कार्ड भी है। 
 
एंडीज पर्वत श्रृंखला में स्थित एक गांव में रहने वाली मेंडोजा कम उम्र में विधवा हो गई थीं। उनके नौ बच्चे हैं। मेंडोजा कभी अपने छोटे से गांव से बाहर नहीं निकली। उनकी उम्र के रहस्य के बारे में तब मालूम चला, जब उन्हें खास तरह का रिटायरमेंट चेक लेने सरकारी दफ्तर जाना पड़ा। 
 
सबसे बुजुर्ग जापानी महिला से ढाई महीने बड़ी
 
पेरू विकास मंत्रालय द्वारा दिए गए पहचान पत्र में मेंडोजा की जन्म तारीख 20 दिसंबर, 1897 बताई गई है। मेंडोजा के आईडी कार्ड पर दी गई जन्मतिथि पर यकीन किया जाए तो वह वर्तमान समय में सबसे बुजुर्ग जापानी महिला से ढाई महीने बड़ी हैं।
 
गौरतलब है कि 5 मार्च, 1898 को जन्मी मिसाओ ओकावा को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड और गेरोटोलॉजी रिसर्च ग्रुप की ओर से दुनिया के सबसे ज्यादा उम्र के व्यक्ति का खिताब दिया गया है। हालांकि कैलिफोर्निया स्थित गेरोटोलॉजी रिसर्च ग्रुप के डायरेक्टर के का कहना है कि मेंडोजा के दावे की पुष्टि नहीं हुई है, इसलिए उन्हें सबसे उम्रदराज मानना गलत होगा।

दादी को उठाने की कोशिश करती रही डेढ़ साल की पोती, देखें सड़क हादसे की तस्वीर



इंदौर/देवास. देवास से इंदौर आ रही एक यात्री बस सोमवार दोपहर शिप्रा के पास अनियंत्रित होकर नाले में गिर गई। दुर्घटना में दो लोगों की मौत हो गई। 77 यात्री घायल हैं। 60 को इंदौर रैफर किया गया। 17 का उपचार देवास जिला अस्पताल में किया गया।  
 
हादसे में घायल मंदा बाई को बदहवास हालत में एमवाय अस्पताल लाया गया। उनके साथ डेढ़ साल की पोती खुशी भी थी। मासूम खुशी बार-बार दादी को उठा रही थी। उस वक्त दादी के अलावा उसके पास अपना कोई न था। दादी चाहकर भी पोती को दुलार नहीं कर पा रही थी। फिर कुछ लोग मदद के लिए आए। उन्होंने खुशी को संभाला और परिजनों को सूचना दी।
 
बाइक को बचाने के चक्कर में दुर्घटना 
 
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार तेज गति से चल रही बस रांग साइड से आ रही बाइक को बचाने के चक्कर में अनियंत्रित हो गई और नाले में गिरकर तीन-चार पलटी खा गई।
 
बैठक छोड़ पहुंचे कलेक्टर 
 
प्रभारी सीएमएचओ डॉ. एम.बी. अग्रवाल ने बताया समयावधि पत्रों की समीक्षा बैठक के दौरान दुर्घटना की सूचना मिलने पर बैठक छोड़कर कलेक्टर तत्काल घटनास्थल के लिए रवाना हुए। 17 घायलों को देवास लाकर उपचार किया गया, जिसमें से एक को इंदौर रैफर किया। 5 को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दी गई। 11 को भर्ती कर उपचार किया जा रहा है।
 
प्रभारी सिविल सर्जन योगेश वालिंबे एवं डॉ. एस.एस. डगांवकर ने बताया यहां भर्ती अधिकांश मरीज देवास के हैं। एक-दो मरीज अन्य जिलों के हैं। भर्ती मरीजों की पूर्णत: समस्त जांच उपचार, दवाइयां व भोजन व्यवस्था नि:शुल्क की जा रही है ।

जानिए क्या है ASTHMA की वजह और कैसे पा सकते हैं इससे छुटकारा!



अस्थमा की बीमारी से प्रभावित रोगी को श्वास नली में सूजन होने से सांस लेने में परेशानी का अनुभव होता है। फेफड़ों के रास्ते में रूकावट के कारण रोगी बहुत बेचैनी महसूस करता है। शहरों में धुएं और वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अगर समय रहते इसका समुचित इलाज न किया गया तो इससे प्रभावित मरीज के लिए यह जानलेवा रोग साबित हो सकता है।

यह एक आम बीमारी है। अस्थमा से प्रभावित मरीजे को सांस में लगातार घरघराहट की आवाज आती रहती है। यह बच्चों में पायी जाने वाली मुख्य बीमारियों में से एक है। वर्तमान में 23 करोड़ 50 लाख लोग अस्थमा से प्रभावित हैं।

2006 में इस बीमारी के बारे में जागरूकता लाने के लिए वार्षिक तौर पर ‘लिविंग विद अस्थमा’ नाम से एक पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस पोस्टर प्रतियोगिता में अमेरिका के 6 से लेकर 14 वर्ष के बच्चे शामिल थे। ये सभी बच्चे अस्थमा से प्रभावित थे। इस पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन ‘द अमेरिकन एकेडमी ऑफ एलर्जी, अस्थमा एंड इम्यूनोलॉजी’ (एएएएआई) और ‘द अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स’ ने किया था।
अस्थमा दो तरह का होता है। पहला एलर्जिक औऱ दूसरा नॉन एलर्जिक। एलर्जिक अस्थमा का अटैक मुख्य तौर पर अटैक बच्चों और नौजवानों में होता है। आम तौर पर 35 वर्ष के लोगों को यह बीमारी अटैक करती है। एलर्जिक अस्थमा तभी अटैक करता है जब आप उन वस्तुओं के संपर्क में आते हैं जिनसे आपको एलर्जी है।
इसी तरह से गैर-एलर्जिक यानी नॉन एलर्जिक अस्थमा का अटैक 35 वर्ष से अधिक आयु यानी अधेड़ उम्र के लोगों में होता है। मुख्यत: यह अधेड़ उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। इसका प्रमुख कारण शारीरिक व्यायाम, ठंडी हवा और सांस का इंफेक्शन है। सीधे तौर पर इसका एलर्जी से कोई संबंध नहीं है।
अस्थमा एक से दूसरे के शरीर में नहीं फैलता है।
यह फेफड़ों में हवा के पास होने वाली नली को पतला (संकीर्ण) कर देता है।
इससे प्रभावित मरीज को सांस लेने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है।
वर्तमान में 23 करोड़ 50 लाख लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। यह बच्चों में पायी जाने वाली आम बीमारी है।
अधिकांश तौर पर अस्थमा से प्रभावित रोगियों की मौत निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में होता है।
अस्थमा के कारणों में सबसे प्रमुख एलर्जी को बढ़ाने वाले फैक्टर हैं।
दवाओं से अस्थमा को नियंत्रित किया जा सकता है। अस्थमा से बचाव से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
उचित प्रबंधन से अस्थमा से प्रभावित रोगी अच्छी जिंदगी जी सकते हैं।
अलग-अलग व्यक्तियों में अस्थमा का असर भिन्न होता है। कई लोगों को तुरंत-तुरंत सांस लेने में समस्या आती है तो कई लोगों को दूसरों की अपेक्षा कम समस्या आती है।
किसी व्यक्ति को दिन में कई बार अस्थमा के कारण सांस लेने में परेशानी होती है तो कई को सप्ताह में एक-आध बार इससे परेशानी होती है। कुछ लोगों को शारीरिक श्रम के दौरान या रात में इससे ज्यादा परेशानी का अनुभव होता है। अस्थमा के अटैक के दौरान ब्रोन्कियल ट्यूब का आकार बड़ा हो जाता है। इस कारण से सांस की नली संकीर्ण हो जाती है और फेफड़ों पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है। अस्थमा के बार-बार अटैक से रोगी को अनिंद्रा, थकान, काम में मन नहीं लगता है। अन्य पुराने रोगियों की अपेक्षा अस्थमा के रोगियों की मौत कम होती है।
यह एक आम बीमारी है। सांस में लगातार घरघराहट की आवाज आती रहती है। यह बच्चों में पायी जाने वाली मुख्य बीमारियों में से एक है। वर्तमान में 23 करोड़ 50 लाख लोग अस्थमा से प्रभावित हैं।
 
अस्थमा एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। इसका आय से कोई सीधा संबंध नहीं है। इस बीमारी से प्रभावित देशों में विकसित और अविकसित सभी देश शामिल है। वैसे अस्थमा से प्रभावित रोगियों में अधिकांश मौतें निम्न आय और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में होती है।
 
अस्थमा का अभी तक समुचित इलाज नहीं खोजा जा सका है। इस बीमारी से प्रभावित लोग और उनके परिवार जिंदगी भर इससे जूझते रहते हैं। अस्थमा से उनके कार्यों पर असर होता है।
 
अभी तक अस्थमा के बुनियादी कारणों का पता नहीं चल सका है। इसके प्रमुख कारकों में प्रदूषित वातावरण, जेनेटिक यानी आनुवांशिकी और एलर्जी को बढ़ाने वाले तत्व हैं। जैसे – घरों में बिछावन, कारपेट्स, फर्नीचर, पालतू पशुओं के कारण धूल की समस्या। 
 
दूसरे कारकों में आउटडोर एलर्जी कारकों में फूलों के पराग औऱ गीली मिट्टी।
तंबाकू औऱ सिगरेट का धुंआ
कार्यस्थलों पर ऐसे रासायनिक तत्व जिनसे एलर्जी होता है।
वायु प्रदूषण।
अन्य कारकों में ठंडी हवा, अत्यंत भावनात्मक पल जैसे क्रोध या भय और शारीरिक व्यायाम। यहां तक कि कुछ दवाओं से भी अस्थमा रोगियों को परेशानी होती है। इसमें एस्पिरिन और अन्य नॉन-स्टेरॉयड एंटी इनफ्लेमेटरी ड्रग्स और बीटा-ब्लॉकर्स (जिसका इस्तेमाल उच्च रक्त चाप, हार्ट और माइग्रेन के इलाज के लिए किया जाता है) का नाम प्रमुख है। शहरीकरण के बढ़ने से अस्थमा की बीमारी भी बढ़ी है। लेकिन अभी तक इस बीमारी के सही कारकों का पता नहीं चल सका है।
हालांकि, अस्थमा का निश्चित इलाज अभी तक खोजा नहीं जा सका है। इस बीमारी से प्रभावित लोग अगर सही तरीके से अपना खान-पान रखें तो वे जिंदगी का भरपूर आनंद ले सकते हैं। शॉर्ट-टर्म मेडिकेशन से इस बीमारी में काफी लाभ मिलता है। लंबे समय तक स्टेरॉयड दवा लेने से गंभीर अस्थमा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
 
जिन लोगों में लगातार अस्थमा के लक्षण प्रकट होते रहते हैं उन्हें लंबे समय तक दवा लेनी चाहिए। इससे सूजन में मदद मिलती है और रोगी को आराम पहुंचता है। सही मात्रा में दवा न लेने के कारण इस बीमारी के नियंत्रण में परेशानी होती है।
सिर्फ दवा लेने से ही अस्थमा पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है। उचित प्रबंधन के द्वारा इस बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। और बीमारी से प्रभावित लोग जिंदगी का भरपूर आनंद ले सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि दवाओं के साथ-साथ अस्थमा के मरीज इस बीमारी से निपटने के लिए सही प्रबंधन पर ध्यान दें।
 
हालांकि अस्थमा के पेशेंट की मौत क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) या अन्य क्रोनिक बीमारियों की तरह नहीं होती है। उचित मात्रा में दवा न लेने और उपचार का पालन न करने के कारण मौत हो सकती है।
अस्थमा को रोकने और नियंत्रण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की रणनीति:
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अस्थमा को प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के तौर पर पहचान किया है। इस संगठन ने समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव कदम उठाया है। इसका मुख्य उद्देश्य इस बीमारी को बढ़ने से रोकना और अस्थमा से होने वाली मौतों को कम करना है।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रोग्राम के प्रमुख उद्देश्य:
 
अस्थमा की भयावहता का निर्धारण करना। इसके प्रमुख कारणों की पहचान करना और ट्रैंड्स की मॉनिटरिंग करना। इसके अलावा गरीब और वंचित आबादी पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन करना।
प्रमुख कारकों जैसे तंबाकू, सिगरेट स्मोकिंग को रोकना जिससे बच्चों की श्वास नली प्रभावित होती है। वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में इनडोर, आउटडोर और व्यावसायिक जोखिम पर ध्यान देना आदि।
दवाओं के उन्नत मानकों का निर्धारण करना औऱ स्वास्थ्य संबंधी प्रणाली पर समुचित ध्यान देना।
 
विश्व भर में इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना:
 
अस्थमा के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देना। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके लिए ‘द ग्लोबल एलायंस एगेंस्ट क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज’ (जीएआरडी) नाम से एक संगठन बनाया है जो इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने में महती भूमिका निभा रहा है। इस संगठन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में कई गैर-सरकारी संगठन कार्य कर रहे हैं। यह निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों पर स्थानीय जरूरतों के अनुसार विशेष ध्यान दे रहा है।

मोदी के खिलाफ लामबंद हुए बुद्धिजीवी, प्रचार में आगे निकले केजरीवाल




नई दिल्ली. भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवानरेंद्र मोदी की बनारस से जीत को मुश्‍किल बनाने के लिए विरोधी हर तरह से जोर लगा रहे हैं। इसी कड़ी में कुछ सामाजिक कार्यकर्ता रविवार को शहर में इकट्ठे हुए और उनके खिलाफ प्रचार की रणनीत‍ि बनाई। वैसे भी चुनावी बैठकों के मामले में बनारस में आम आदमी पार्टी के उम्‍मीदवार अरविंद केजरीवाल अपने प्रतिद्वंद्वी मोदी से आगे निकले हुए हैं। ऐसे में भाजपा ने बड़ा 'गेम प्‍लान' बनाया है। उसकी कोशिश पूरे पूर्वांचल के मतदाताओं पर डोरे डालने की है। मोदी बनारस समेत पूरे पूर्व उत्तर प्रदेश में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए भोजपुरी कार्ड को भुनाने की तैयारी में हैं।  
 
दरअसल, यूपी की चुनावी लड़ाई में अब सारी प्रमुख पार्टियों का जोर बनारस और अमेठी पर है। वजह यह है कि बनारस से जहां भाजपा के प्रधानमंत्री पद के पीएम उम्‍मीदवार और आम आदमी पार्टी के मुखिया चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं अमेठी से कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी मैदान में हैं।
 
बनारस में 12 मई को वोट पड़ने हैं। मोदी अब अपना ज्‍यादातर समय वहीं देने वाले हैं। बनारस से ही वह यूपी की बाकी बची सीटों के चुनाव की कमान संभालेंगे। अमेठी में सात मई को होने वाली वोटिंग से पहले सोमवार को चुनाव प्रचार के आखिरी दिन नरेंद्र मोदी प्रचार करेंगे।  
 
भाजपा और मोदी बनारस में अपनी जीत के प्रति आश्‍वस्‍त लग रहे हैं। लेकिन, मोदी को इस सीट से हराने के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस हर दांव चल रही है। इसकी काट में  मोदी भोजपुरी का मुद्दा उठा कर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।
भोजपुरी को आधिकारिक भाषा का दर्जा होगा मुद्दा-
 
मोदी पूर्वी उत्तर प्रदेश में भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करवाकर आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के मुद्दे को जोर शोर से उठाकर लोगों का दिल जीतना चाहते हैं। सूत्र बताते हैं कि मोदी यहां रैलियों के दौरान इस मुद्दे को हवा देंगे। बता दें कि इस क्षेत्र के लोग भोजपुरी को आधिकारिक दर्जा दिलाने की मांग काफी वक्‍त से उठाते रहे हैं, ताकि इसके प्रचार-प्रसार में सरकारी मदद मिल सके।

कहां कहां बोली जाती है भोजपुरी- 
भोजपुरी सिर्फ यूपी और बिहार के 27 जिलों में ही नहीं बोली जाती है, बल्कि इसकी ठसक विदेशों तक में है। यह विश्व के 14 देशों में सहजता के साथ बोली और स्वीकार की जाती है। 
 
यूपीए ने लटका रखा है मुद्दा-

भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के मुद्दे को यूपीए सरकार ने काफी वक्त पहले ठंडे बस्ते में डाल दिया था। वजह यह बताई गई कि अगर ऐसा हुआ तो यूपीएससी जैसी परीक्षाएं भी इस भाषा में करानी होंगी, जबकि इस भाषा के विशेषज्ञों की भारी कमी है। हालांकि, भाजपा का मानना है कि इस समस्या को दूर किया जा सकता है।

ममता को घेरने में फिर गलतबयानी कर गए मोदी




नई दिल्ली। रविवार को बांग्लादेश से आए मुस्लिमों के मुद्दे पर बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी ने प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को निशाने पर लिया। आसनसोल में सभा के दौरान मोदी ने ममता पर करारे वार भी किए। उन्होंने गुजरात के मुसलमानों और बंगाल के मुसलमानों की स्थिति पर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कुछ आंकड़े भी सामने रखे, जो गुजरात के मुसलमानों का बेहतर स्थिति में होना दर्शाते हैं। इन आंकड़ों की मदद से मोदी ने सांप्रदायिकता बनाम विकास और गर्वनेंस की बात की।
 
मोदी के द्वारा रखे गए इन आंकड़ों की पड़ताल करें, तो पता चलता है कि गुजरात में अल्पसंख्यक समुदाय कुछ मामलों बंगाल के मुस्लिमों से बेहतर स्थिति में हैं, लेकिन कुछ मामलों में मोदी के आंकड़े सही नहीं है। एक तथ्‍य यह भी है कि जिन विषयों पर मोदी ने ममता को घेरने की कोशिश की है, उन आंकड़ों के लिए वे जिम्मेदार ही नहीं थी, क्योंकि उस वक्त उनकी सरकार बंगाल में नहीं थी।

गुजरात में - 
4000 यात्री गुजरात सरकार से मिलने वाली सब्सिडी पाने योग्य हैं। इसमें हवाई यात्रा भी शामिल है।
वास्तविक आवेदकः 40 हजार

प. बंगाल में 
वास्तविक कोटा-12 हजार
सालाना आवेदन- कोटे से बेहद कम

मोदी का तर्क- बेहतर आर्थिक परिस्थितियों के चलते बंगाल की तुलना में गुजरात के ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों को यात्रा पर भेजा जाता है।

वास्तविकता- गुजरात हज कमेटी के चेयरमैन मेहबूब अली के मुताबिक, उनके राज्य में हजयात्रा का कोटा 4700 का है, न कि मोदी के कहे अनुसार 4000 का। हालांकि अंतर ज्यादा नहीं है, लेकिन आंकड़ों में यह ऊंच-नीच उनके दावों को कमजोर साबित करती है और उनकी स्थिति को भी।
प्रति व्यक्ति आय में आंकड़े गलत

गुजरात-
- ग्रामीण गुजरात में प्रति मुस्लिम की आय- 700 रुपए प्रतिमाह
- शहरी गुजरात में प्रति मुस्लिम की आय- 900 रुपए प्रतिमाह

प. बंगाल
- ग्रामीण बंगाल में प्रति मुस्लिम की आय- 500 रुपए प्रतिमाह
- शहरी बंगाल में प्रति मुस्लिम की आय- 700 रुपए प्रतिमाह
प्रति व्यक्ति आय में आंकड़े गलत

गुजरात-
- ग्रामीण गुजरात में प्रति मुस्लिम की आय- 700 रुपए प्रतिमाह
- शहरी गुजरात में प्रति मुस्लिम की आय- 900 रुपए प्रतिमाह

प. बंगाल
- ग्रामीण बंगाल में प्रति मुस्लिम की आय- 500 रुपए प्रतिमाह
- शहरी बंगाल में प्रति मुस्लिम की आय- 700 रुपए प्रतिमाह

वास्तविकता- यहां भी मोदी के आंकड़ों में भिन्नता है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि प्रति व्यक्ति द्वारा खर्च की गई राशि से आर्थिक मजबूती का अंदाजा लगाया जाता है, जिसमें ऊर्जा पर ज्यादा खर्च किया गया है। और इसके आंकड़े भी मोदी के दिए आंकड़ों से ज्यादा या कम हो सकते हैं। संभव है जब मोदी ने इन आंकड़ों को पेश किया, तो वे कागजात नीचे दब गए हों। मोदी के रणनीतिकारों ने भी इन आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। जबकि सच्चाई अलग है।
 
मोदी ने कहा कि गुजरात के शहरी इलाकों में मुस्लिम 900 रुपए प्रतिमाह कमाते हैं। लेकिन सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि 2004-2005 में यह आंकड़ा 875 रुपए था। मोदी ने कहा कि बंगाल के मुस्लिम 700 रुपए कमाते हैं, जबकि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट दिखाती है कि 2004-05 में शहरी बंगाल के मुस्लिमों की आय 748 रुपए प्रतिमाह थी। इसी तरह ग्रामीण इलाकों के आंकड़ों में भी अंतर है। मोदी ने कहा कि गुजरात में 700 रुपए कमाते हैं, जबकि रिपोर्ट कहती है कि यह सिर्फ 668 रुपए है। रिपोर्ट के अनुसार, बंगाल में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मुस्लिम 501 रुपए कमाते हैं, जबकि मोदी ने 500 रुपए कहा था।

जानिए, अगर PM नहीं बन सके तो क्या कर सकते हैं नरेंद्र मोदी?

dainikbhaskar.com | May 05, 2014, 13:40PM IST
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नई दिल्ली. बीजेपी के पीएम पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की कथित 'लहर' के भरोसे पार्टी सत्ता में आने को लेकर पूरी तरह आश्‍वस्‍त हो चुकी है। यहां तक कि उनके संभावित कैबिनेट को लेकर भी मीडिया में चर्चाएं शुरू हो गई हैं। हालांकि, सवाल यह भी है कि अगर किसी कारण से सत्ता की चाबी बीजेपी या एनडीए के हाथ नहीं लगी तो फिर मोदी क्‍या करेंगे? क्या वह गुजरात में बतौर सीएम अपनी पारी पूरी करेंगे या फिर केंद्र की राजनीति में अपनी सक्रियता बढ़ाएंगे?  ऐसे कई सवालों के बारे में बीजेपी फिलहाल सोच नहीं रही, लेकिन 2004 में सर्वेक्षणों में टॉप पर रहने वाली बीजेपी के असल मैदान में धराशायी होने की कहानी 2014 में भी दोहराई गई तो मोदी के भविष्य पर सवाल उठना तो लाजिमी है। 
 
अगर किसी भी कारण से बीजेपी की सरकार नहीं बनती है तो फिर मोदी के सामने दो विकल्प होंगे। एक गुजरात जाकर बतौर मुख्यमंत्री फिर से सक्रिय होना। दूसरा केंद्र की राजनीति में दखल बढ़ाते हुए विपक्ष के नेता जैसा कोई पद संभालना। मौजूदा संकेतों को देखते हुए मोदी इनमें से कौन सा विकल्‍प अपना सकते हैं,
बीजेपी के कुछ नेता कहते हैं कि देश के सबसे बड़े पद की दावेदारी में शरीक होकर वापस से सीएम पद संभालना मोदी के लिए मुमकिन नहीं होगा। इसके अलावा, सांसद चुने जाने के बाद उन्हें सीएम का पद छोड़ना होगा, क्योेंकि वह दो संवैधानिक पद एक साथ नहीं रख सकते। हालांकि, जानकार अलग राय रखते हैं। उनका कहना है कि जिस तरह की राजनीति मोदी करते हैं, उसको देखते हुए यह मानना बहुत मुश्किल है कि वह विपक्ष के नेता जैसी कोई जिम्मेदारी संभालेंगे। वह सांसद या विपक्ष का नेता बनने के बजाय सीएम बने रहना उचित समझेंगे। जानकारों के मुताबिक, मोदी को सत्ता की आदत लग चुकी है, इसलिए वह शर्तिया तौर पर गुजरात लौटना ही पसंद करेंगे।

मंच पर मंदिर और राम की तस्‍वीर लगा फंसे मोदी, ममता ने आयोग से की शिकायत




नई दिल्‍ली. बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी ने सोमवार को इस चुनाव प्रचार अभियान के दौरान शायद पहली बार राम और मंदिर का सहारा लिया। उत्‍तर प्रदेश के फैजाबाद में रैली के दौरान उनके मंच पर अयोध्‍या में प्रस्‍तावित राम मंदिर की तस्‍वीर लगी थी। भाषण में भी मोदी ने राम के नाम की सौगंध खा ली। इस तरह अब तक लगातार विकास के नाम पर चुनाव लड़ने की बात कहने वाले मोदी फैजाबाद में धार्मिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश करते दिखे। कांग्रेस ने भाजपा के इस कदम के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई और आयोग ने भी फौरन जिला प्रशासन से रिपोर्ट तलब कर ली। कांग्रेस के अलावा ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी आयोग से लिखित में इस मामले की शिकायत है। टीएमसी ने मोदी पर धर्म के नाम पर वोट मांगकर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने मोदी की गिरफ्तारी की मांग की है।
 
फैजाबाद में मोदी राम के नाम को भुनाते दिखाई दिए। मोदी ने कहा, 'मैं श्रीराम की सौगंध खाता हूं कि जिंदगी भर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ता रहूंगा।' उन्‍होंने यह भी कहा, 'श्रीराम की धरती से मैं कमल ले जाना चाहता हूं।'
 
कहा जाता है कि मोदी ने ही भाजपा के घोषणापत्र तक से मंदिर मुद्दे को दूर रखवाया। घोषणापत्र के आखिरी हिस्‍से में बस कुछ पंक्तियों में मंदिर मुद्दे का जिक्र है। लेकिन,  फैजाबाद में मोदी के मंच पर उस मंदिर की तस्‍वीर दिखाई गई जो अयोध्‍या में कथित तौर पर बनवाया जाना है।
 
मोदी ने सोमवार को उत्‍तर प्रदेश में एक के बाद कई रैलियां कीं। फैजाबाद और अंबेडकर नगर की उनकी रैलियों में कुछ न कुछ खास घटा। हालांकि, सब की नजर राहुल गांधी के गढ़ अमेठी में होने वाली उनकी रैली पर है।
 
अंबेडकर नगर की रैली में मोदी मंच से संजू देवी नाम की एक महिला के दुखों को बयां करते दिखे। महिला की ओर इशारा करते हुए मोदी ने कहा, 'इस महिला संजू देवी को देखिए। इनके पति मारे गए, लेकिन सरकार ने इनके लिए क्‍या किया?' मोदी के इस कदम को राहुल गांधी के 'कलावती वाले कदम' से जोड़कर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि राहुल महाराष्‍ट्र में कलावती नाम की एक विधवा के घर गए थे और संसद में अपने एक भाषण में उसका जिक्र किया था

क़ुरान का सन्देश

 
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