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07 मई 2014

"शबनम की शरारा से

"शबनम की शरारा से शरारत को सऊर मत समझो ,
समंदर के अन्दर समाया है बहुत कुछ
इसे समंदर का गुरूर मत समझो
मेरी आँखें आक्रोश से सुर्ख सी हैं इसको सुरूर मत समझो
फातिहा पढ़ के लौट आने दो मुझे तुझे फ़तह कर लूंगा
मैं किसी शख्स की नहीं , रियासत की नहीं
मुल्क की ही इबादत करता हूँ , इसे सियासत मत समझो ." ---- राजीव चतुर्वेदी

ये मंदिर की लाइन नहीं... बल्कि 'मौत के खौफ' से बचने का इंतजार है



दुर्ग। प्रदेश के अधिकांश इलाकों में पीलिया का खतरा मंडरा रहा है। अब तक 18 मौतेें हाे चुकी हैं, जिनमें से 12 मौतें दुर्ग में हुई हैं। प्रदेश सरकार ने इलाके को हाई एलर्ट करार देते हुए यहांं जगह-जगह मेडिकल टीम लगाई गई हैं, लेकिन स्थानीय लोग मेडिकल टीम से ज्यादा झाड़-फूंक कराते हुए देखे जा रहे हैं। यह तस्वीर दुर्ग के केलाबाड़ी की है, जहां बुधवार सुबह 6 बजे ही 500 से ज्यादा लोग चूना और थाली लेकर लाइन लगाए देखे गए।
 
डॉक्टर की राय,
 
इससे गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है मरीज

पीलिया होने पर झाड़-फूंक नहीं कराना चाहिए। इसके चक्कर में मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है। शिकायत पर तत्काल डॉक्टर की सलाह पर दवाइयां शुरू करें। ग्लूकोज लें व आराम करें। तैलीय चीजों से भी दूर रहें। - डॉ. अब्बास नकवी, एमडी रामकृष्ण हॉस्पिटल

जरा दिल थामकर देखिएगा अहमदाबाद की गलियों के ये नजारे...



अहमदाबाद। अहमदाबाद शहर के नजदीक भडियाद गांव में एक पीर महमूद शाह बुखारी की प्राचीन दरगाह है। पीरबाबा की पुण्यतिथि पर यहां प्रतिवर्ष उर्स (धार्मिक मेले) का आयोजन होता है। इस मेले की शुरुआत 5 मई से हो चुकी है, जिसका समापन 9 मई को होगा।
 
इस मौके पर एक विशाल जुलूस भी निकलता है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग उपस्थित होते हैं। यह जुलूस अहमदाबाद की कई गलियों-सड़कों से होकर गुजरता है। जहां-जहां से जुलूस निकलता है, वहां ठंडा पानी, शरबत, दूध, कोल्ड्रिंक्स सहित न्याज (प्रसाद) का वितरण भी होता है। इसके अलावा जुलूस में शामिल दूर-दराज से आए भक्त भी दिल दहला देने वाले करतब दिखाते हैं। 
 
आपको बताते चलें कि पीर महमूद शाह बुखारी की दरगाह पूरे गुजरात में एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह दरगाह हिंदु-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। इतना ही नहीं, उर्स के दौरान पहला ध्वज दलित समाज द्वारा चढ़ाया जाता है और इसी के बाद जुलूस प्रस्थान करता है। इस विधि के दौरान यहां पूरे गुजरात से हजारों की तादाद में हिंदु-मुस्लिम श्रद्धालु मौजूद होते हैं।

10 घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं इस दीवार पर, जो चीन की दीवार को देती है टक्कर



जोधपुर. उदयपुर. ग्रेट वॉल का नाम आते ही जेहन में एक ही नाम आता है चीन। लेकिन भारत में भी एक ग्रेट वॉल है। चौंकिए मत! ये सच है। यह दीवार राजस्थान के मेवाड़ इलाके में राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ किले की है। अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित कुंभलगढ़ किले की यह दीवार दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है। जिस पर एक साथ दस घोड़े दौड़ सकते हैं। वैसे तो राजस्थान में दुर्गों के निर्माण का इतिहास काफी पुराना है। जिसका प्रमाण कालीबंगा की खुदाई में प्राप्त हुआ है। चीन की दीवार को टक्कर देने वाली इस दीवार को भेदने की कोशिश महान राजा अकबर ने भी की थी, पर उन्हें सफलता नहीं मिलती। 
 
कभी न हार मानने वाले वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जन्मस्थली रहा यह किला एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुंभा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी किले में रहा।
कैसे बनी ये 36 किलोमीटर लंबी दीवार
 
किले की दीवार के निर्माण से जुड़ी कहानी बहुत ही दिलचस्प है। वर्ष 1443 में राणा कुंभा ने किले का निर्माण शुरू करवाया। दरअसल, इस दीवार का काम इसलिए करवाया जा रहा था, ताकि विरोधियों से सुरक्षा हो सके। लेकिन दीवारें थीं कि उनका काम पूरा हो ही नहीं पा रहा था। फिर कारीगरों ने राजा को बताया कि शायद यहां पर किसी देवी का वास है

क़ुरान का सन्देश

 
 

दोस्तों धर्म मज़हब ओर सियासत का भी अजीब रिश्ता है ,धर्म मज़हब के ठेकेदार जब सियासी गुलाम हो जाते है तो सभी मर्यादाएं भुलाकर इश्वर ,,अल्लाह ,,पीर फकीरो ,,सूफी संतों को भी यह सियासी गुलाम चकमा देते नजऱ आते है

दोस्तों  धर्म मज़हब ओर सियासत का भी अजीब रिश्ता है ,धर्म मज़हब के ठेकेदार जब सियासी गुलाम हो जाते  है तो सभी मर्यादाएं भुलाकर इश्वर ,,अल्लाह ,,पीर फकीरो ,,सूफी संतों को भी यह सियासी गुलाम चकमा देते नजऱ आते है ,,,,,,,अभी हाल ही मे अजमेर मे सूफी सन्त हिन्द वली ख़वाजा साहब के उर्स थे ,,मुस्लिम सियासी लोगों ने कभी मुख्यमंत्री वसुंधरा तो कभी सोनीया गाँधी तो राहुल गांधी तो परधानमंत्री मनमोहन सिंह तो राजनाथ सिंह  नरेंदर मोदी सभी की तरफ से सियासी कार्यकर्ताओं ने ख्वाजा के दरबार मे चादर ओर अक़ीदत के फूल पेश किये ,,अख़बारों मे इस खबर को सुर्ख़ियों मे लिया गया लेकिन दोस्तो धर्म  के खिलाफ़ सियासत के लिये अपने धर्म से यह गद्दारी तोबा तोबा कहलवाती है सभी जानते है के अव्वल तो चादर ओर अक़ीदत के फ़ुल  खुद आकर चदाये  त्तब कूबूल होते है ,,अगर  लूले लंगड़े हो बीमार हो ,,,अत्यँत व्यस्त हो कोसो दूर हो तो भी ऐसे लोगों की तरफ से पेश होने वाले फूल ओर चादर की कीमत वही अदा करेगा जिसने चादर पेश की है ओर अक़ीदत के फूल पेश किये है लेकिन दोस्तों प्रधानमंत्री जी ,,सोनिया जी ,,वसुँधरा जी ,,राजनाथ  सिंह जी ,,,,मोदी जी ,,राहुल जी वगेरा वगेरा के नाम की पेश सियासी चादरों ओर अक़ीदत के पेश किये गए फूलों की कीमत किसी ने भी चुकता नहीं की है फ़िर भी मुस्लिम धर्म के सियासी लोग सियासी मौलाना बेशर्मी से ख़वाजा के दरबार मे भी धोखा कर रहे है ,,,,,,,,

,,अगर मे इन्साफ की बात करता हूँ तो इस्लाम की बात करता हूँ अगर मे अमन की बात करता हूँ अगर मे ज़ालिमों को सज़ा देने की बात करता हूँ तो मे इस्लाम की बात करता हूँ ,,,,,लेकिन मे अगर किसी के धर्म मज़हब को चोट पहूँचाने किसी मज़हब को बदनाम करने की बात करता हुँ तो मे हराम करतां हुँ

दोस्तों कल मेने माई नेम इस खान ,,,,,की तर्ज़ पर एक पोस्ट लिखी थी मेरे कै अपनोँ ने ,,भाइयोँ ने उस पोस्ट तीखी  निर्भीक टिप्पणियां की है मेरे भाई राजीव चतुर्वेदी साहब सहित दो साथियों ने कमाल ही कर  दिया इस पोस्ट को मुद्दा बनाकर एक नयी पोस्ट बना दी ,,भाई राजीव चतुर्वेदी की फनकारी ने इस पोस्ट की प्रतीक्रिया ओर बढा दी ,,,मेरे कै दोस्त मुझ से नाराज़ हुए ,,,कई खामोश रहे तो कई ने खुद को देशभक्त मानकर दूसरोँ को गददार मान  लिया ,,भाई राजीव चतुर्वेदी पर कुछ मेरे भाई उन्हे आर एस ऐस का एजेन्ट बठाकर पिल पढें ,कुछ ने मेरी पोस्ट की तारीफ़ की ,,,कुछ ने कुछ ने ललकारा ,,कुछ ने फटकारा लेकिन खुशी की बात यह रही के बहस एक़ मर्यादाओं के दायरे मे रही मुद्दे पर निर्भीकता ओर निष्पक्षता से निजी विचारधारा को प्रभवित रखकर भी टिप्पणियाँ की गयी ,,,,,,
मेरे दोस्तों बुज़ुर्गो मेंने फिर अपनी इस पोस्ट मे अपनी विचारधारा आप भाइयोँ पर थोपने की  गुस्ताखी की है ,,दोस्तोँ   कोई भी आदमी पुरी तरह से बुरा ओर पुरी तरह से अच्छा नहीं होता ,,, वोह आधा अचछा ओर आधा खराब होता है अगर हम उस शख्स मे केवल ओर केवल बुराइयाँ देख्ते है तो वोह हमै बुरा लगता है ओर अगर हम उसमे  केवल अच्छाइयां देख्ते है तो वोह सिर्फ़ और सिर्फ़ अच्छा लगता है यानी हमारी सोच ओर हमारी जानकारी को हम अन्तिम मानकर लोगो को अचछा बुरा कहने लगते है ,,,,,,,,,,,भाई राजीव चतुर्वेदी को मेरे मित्र ने आर एस एस का एजेन्ट कहा तो क्या हुआ अगर वोह आर एस ऐस के एजेन्ट है लेकिन लिखते तो अच्छा है कठोर कड़वा मुस्लिम विरोधी भी  लिखते है तो काफ़ी अच्छा ओर  निष्पक्ष भी लिखते है ,,,,,मुस्लिम समाज के विरोध मे लिखना उन्की बराई हो सकती है अगर हम उनकी इस बुराई का विरोध करते है तो हमे उनके अच्छे लेखन की तारीफ़ करने का साहस  भी होना चाहिये ,,,,,,,,,,,,अगर नरेन्द्र मोदी को हम मुस्लिमों का कातिल कहकर उन्हे बुरा बुरा कहते है तो उनके गुजरात के विकास ओर गुड गवर्नेन्स ,,अच्छी भाषण शैली की हमे बिना किसी पूर्वाग्रह के प्रशंसा भी करना चाहिये ,,,,अगर हम कॉँग्रेस के नुमाइंदों पर मुसलमानों की तबाही ,,बर्बादी के मामले को लेकर पुख्ता सुबूतो के साथ इल्जाम लगाते है ,,मस्जिद तुड्वाने का उन्हे दौषी कहते है तो कई जगह पर फसादात के माहौल मे उनके निष्पक्ष काम की हमे तारीफ़ भी  करना चाहिये ,,,यह बिना पूर्वाग्रह का लेखन है ओर कोइ भी बिना पूर्वाग्रह के लिखा गया लेखन क्भी किसी के खिलाफ़ तो कभी किसी के पक्ष मे होता है बस यहीं पूर्वाःग्रह से ग्रसित लोग या आधी अधुरी जान्कारी रखने वाले लोग भर्मित ओर  कनवयुज़ हो जाती है ओर अपने कयास अपने दिल दिमाग मे रखी बसी विचारधारा ओर ज़ानकारी के हिसाब से लिखने वाले की विचारधारा के बारे मे कयास लगाने लगते है ,,,,मे कभी भाजपा के खिलाफ़  लिखता हु  तो कांग्रेसी खुश होते है कभी कॉँग्रेस की करतूतें लिखता हूँ तो भाजपाई खुश होते है ,,कभी आप पार्टीः के कुछ सिद्धान्त की  तारीफ लिखता हूँ तो लोग आपिया कहते है ,,कुल मिलकर लेखनी के सच को जान्ने की जगह मेरे कई भाई उसमे मेरी ज़ात ,,मेरा धर्म ,,मेरा मज़हब ,,मेरा समाज ,,,तलाशने लगते है ,,,,,मे  सन्त कबीर दास की समझ का एक उदाहरण देन चाहता हूँ ,,,,,,,,,,,,कबीर दास जो हरे भरे इलाक़े मे रहे उन्होने छायादार घने वृक्ष देखे ऍसे खजूर का पेढ़ दखकर उनकी मन मे छायादार वृक्षों के मुकाबले मे खजूर के पेढ़ को लेकर बदगुमानी आना वाजिब बात थी उन्होने  दोहा लिख ड़ाला ,, बढा हुआ तो क्या हुआ ,,,,,जेसे पेढ़ खजूर ,,पंछी को छांया नहीं फल लागे अति दूर ,यानि कबीर दास की निगाह मे मैदानी इलाके के हरियाली मे रहने के कारण ,,,,,खजूर के पेढ की कोई क़ीमत नहीँ रही ,,लेकिन दोस्तों ठीक इसके विपरीत सच्चाई अलग है ,,,बसंत के मौसम मे सभी हरे भरे पेड़  के पत्ते पीले पढ़ जाते है ,,कम्जोर होकर नीचे गिरते है लेकिन एक मात्र  खजूर का पेड़ होता है जो तनकर खड़ा रहता है ओर आंधी तूफ़ान पतझड़ उसकी ऐक पत्ती भी नहीं  गिरा सकता ,,,,,,,,,,रेगिस्तानी देश मे यही खजूर का पेढ़  वरदान बन जाता है ,,यही खजूर का पेढ जिसे कबीर दास नाकारा बतातें रेगिस्तानों को उजढने से बचाते है ,,,,,,ग्राऊँड वॉटर पानी का जलस्तर उपर रखते है ,,,,रेगिस्तान को आँधियों से बचाते है ओर फ़िर खजूर के रुप मे एक पौष्टिक फ़ल देते है  जो सब फलो से ज़्यादा ताक़तवर होती है ,इस्की रेगिस्तानी इलाक़ों  मिठाइयॉँ बनती है ओर रेगिस्तानी इलाक़ों मे यहीं खजर इश्वर का वरदांन मानी जाती है ,,,इसके तने से वहॉं लोग रेहने के लिएँ मकान बनाते है ,,पत्तो को छायां के लिये ओर नीचे बिछाने के लिये चटाई के रूप मे इस्तेमाल करते है ,,,,,,,,,,,,,,,,गंदगी साफ़ करने के लिये झाड़ू बनाते है दवाइयाँ बनाते है तो दोस्तों अगर कबीर दास खजूर के पेड़ का यह पहलु जान्ते रेगिस्तान मे रहते तो वोह खजूर के लिये ऐसा उपेक्षित दोहा नहीँ लिखते इसी तरह से भाई सोच ओर सम्झ का दायरा अगर हम बढ़ाएंगे अपनीं जानकारीयाँ बढाएंगे ,,किसी भी पोस्ट को पूर्वाग्रह से नहीं ज्ञान की द्रष्टी से मनोरंजन की द्रष्टी से पढेंगें तो नयापन लगेगा ,,लुत्फ़ आयेगा नफरत का भाव ओर गुस्सा  दूर भाग जायेगा लेकिन जो लोग धर्मे के नाम पर नफरत फैलाते है समाजो को लड़ाते है केवल ऐक तरफा सोच परवीन तोगडिया ,,,गिरराज शर्मा ,,,आज़म खान ,,असदुल्ला ओबेसी ,,बोडो ,नक्सलि ,,आतंकवादीयों की सोच रखते है उनका पक्षधर ना तो मे हुँ ओर ना ही कभी किसी से उनकी पैरवी करने की बात करता हूँ ,,अगर मे हिन्दुस्तान की बात करता हूँ तो इस्लाम  की बात करता हूँ ,,अगर मे इन्साफ की बात करता हूँ तो इस्लाम की बात करता हूँ अगर मे अमन की बात करता हूँ अगर मे ज़ालिमों को सज़ा देने की बात करता हूँ तो मे इस्लाम की बात करता हूँ ,,,,,लेकिन मे अगर किसी के धर्म मज़हब  को चोट पहूँचाने किसी  मज़हब को बदनाम करने की बात करता हुँ तो मे हराम  करतां हुँ ,,,,,,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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